18-01-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


““18 जनवरीजिम्मेवारी के ताजपोशी का दिवस

अव्यक्त बापदादा अपने नूरे रत्न बच्चों के प्रति बोले:-

‘‘आज जहाँन के नूर अपने नूरे रत्नों से मिलने आये हैं। सिकीलधे बच्चे बाप के नूर हैं। जैसे शरीर में, आँखों में नूर नहीं तो जहाँन नहीं, ऐसे विश्व में आप रूहानी नूर नहीं तो विश्व में रोशनी नहीं, अंधकार है। बापदादा के नयनों के नूर अर्थात् विश्व की ज्योति हो। आज के विशेष स्मृति दिवस पर बापदादा के पास सबके स्नेह के गीत अमृतवेले से वतन में सुनाई दे रहे थे। हरेक बच्चे के गीत एक-दो से ज्यादा प्रिय थे। मीठी-मीठी रूह-रूहान भी बहुत सुनी। बच्चों के प्रेम के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पिरो गई। ऐसे मोतियों की मालायें बापदादा के गले में भी सारे कल्प के अन्दर अभी ही पड़ती हैं। फिर यह अमूल्य स्नेह के मोतियों की माला पिरो नहीं सकती, पड़ नहीं सकती। इस एक- एक मोती के अन्दर क्या समाया हुआ था, हरेक मोती में यही था - ‘‘मेरा बाबा'', ‘‘वाह बाबा''। बताओ कितनी मालायें होंगी? और इन्हीं मालाओं से बापदादा कितने अलौकिक सजे हुए श्रृंगारे हुए होंगे। जैसे स्थूल में स्नेह की निशानी मालाओं से सजाया है। तो यहाँ स्थूल सजावट से सजाया है लेकिन वतन में अमृतवेले से बापदादा को सजाना शुरू किया। एक के ऊपर एक माला बापदादा का सुन्दर श्रृंगार बन गई। आप सभी भी वह चित्र देख रहे हो ना?

आज का विशेष दिन सर्व बच्चों के ताजपोशी का दिन है। आज के दिन आदि देव ब्रह्मा बाप ने स्वयं साकारी जिम्मेवारियाँ अर्थात् साकारी रूप से सेवा का ताज, नयनों की दृष्टि द्वारा हाथ में हाथ मिलाते, मुरब्बी बच्चों को अर्पण किया। तो आज का दिन ब्रह्मा बाप का साकार रूप की जिम्मेवारियों का ताज बच्चों को देने का - ताजपोशी दिवस' है। (दादी से) आज का दिन याद है ना? आज का दिन ब्रह्मा बाप का बच्चों को ‘‘बाप समान भव'' के वरदान देने का दिन है।

ब्रह्मा बाप के अन्तिम संकल्प के बोल वा नयनों की भाषा सुनी? क्या थी? नयनों के इशारे के बोल यही थे -’’बच्चे, सदा बाप के सहयोग की विधि द्वारा वृद्धि को पाते रहेंगे।'' यही अन्तिम बोल, वरदानी बोल प्रत्यक्षफल के रूप में देख रहे हैं। ब्रह्मा बाप के अन्तिम वरदान का साकार स्वरूप आप सब हो। वरदान के बीज से निकले हुए वैरायटी फल हो। आज शिव बाप, ब्रह्मा को वरदान के बीज से निकला हुआ सुन्दर विशाल वृक्ष दिखा रहे थे। साइंस के साधनों से तो बहुत प्रयत्न कर रहे हैं कि एक वृक्ष में वैरायटी फल निकलें लेकिन ब्रह्मा बाप वरदान का वृक्ष, सहज योग की पालना से पला हुआ वृक्ष कितना विचित्र और दिलखुश करने वाला वृक्ष' है। एक ही वृक्ष में वैरायटी फल हैं। अलग-अलग वृक्ष नहीं हैं। वृक्ष एक है, फल अनेक प्रकार के हैं। ऐसा वृक्ष देख रहे हो? हरेक अपने को इस वृक्ष में देख रहे हो? तो आज वतन में ऐसा विचित्र वृक्ष भी इमर्ज हुआ। ऐसा वृक्ष सतयुग में भी नहीं होगा। हाँ, साइंस वाले जो कोशिश कर रहे हैं उसका फल आपको थोड़ा-बहुत मिल जायेगा। एक ही फल में दो-चार फल के रस का अनुभव होगा। मेहनत यह करेंगे और खायेंगे आप। अभी से खा रहे हो क्या?

तो सुना आज का दिन क्या है? आज का दिन जैसे आदि में ब्रह्मा बाप ने स्थूल धन विल किया बच्चों को, ऐसे अपनी अलौकिक प्रॉपर्टी बच्चों को विल की। तो आज का दिन बच्चों को विल करने का दिवस है। इसी अलौकिक प्रॉपर्टी के विल के आधार पर कार्य में आगे बढ़ने की विलपावर प्रत्यक्षफल दिखा रही है। बच्चों को निमित्त बनाए विलपावर की विल की। आज का दिन विशेष बाप समान वरदानी बनने का दिवस है। आज का दिन - स्नेह और शक्ति कम्बाईन्ड वरदानी दिन है। प्रैक्टिकल अनुभव किया ना - दोनों का? अति स्नेह और अति शक्ति। (दादी से) याद है ना अनुभव। ताजपोशी हुई ना? अच्छा - आज के दिन के महत्व को जाना। अच्छा –

ऐसे सदा बाप के वरदानों से वृद्धि को पाने वाले, सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी स्मृति स्वरूप, सदा ब्रह्मा बाप के समान फरिश्ता भव के वरदानी, ऐसे समान और समीप बच्चों को बापदादा का समर्थ दिवस' पर यादप्यार और नमस्ते।''

(दादी-दीदी से):- साकार बाप के वरदानों की विशेष अधिकारी आत्मायें हो ना? साकार बाप ने आप बच्चों को कौन-सा वरदान दिया? जैसे ब्रह्मा को आदि में वरदान मिला ‘‘तत् त्वम्''। ऐसे ही ब्रह्मा बाप ने भी बच्चों को विशेष तत् त्वम' का वरदान दिया। तो विशेष तत् त्वम' के वरदान के अधिकारी वारिस हो। इसी वरदान को सदा स्मृति में रखना अर्थात् समर्थ आत्मा होना। इसी वरदान की स्मृति से जैसे ब्रह्मा बाप के हर कर्म में बाप प्रत्यक्ष अनुभव करते थे ऐसे आपके हर कर्म में ब्रह्मा बाप प्रत्यक्ष होगा। ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले आदि रत्न कितने थोड़े निमित्त बने हुए हैं? आप विशेष आत्माओं की सूरत द्वारा ब्रह्मा की मूर्त अनुभव करें, और करते भी हैं। ब्रह्माकुमारी नहीं। ब्रह्मा बाप के समान, ब्रह्मा बाप की अनुभूति हो। ऐसी सेवा के निमित्त वरदानी विशेष आत्मायें हो। सब क्या कहते हैं? बाबा को देखा, बाबा को पाया। तो अनुभव कराने वाले, प्रत्यक्ष करने वाले कौन? आप ताजधारी विशेष आत्मायें अभी जल्दी फिर से ब्रह्मा बाप और ब्रह्मा वत्स शक्तियों के रूप में, शक्ति में शिव समाया हुआ, शिव शक्ति और साथ में ब्रह्मा बाप, ऐसे साक्षात्कार चारों ओर शुरू हो जायेंगे। ब्रह्माकुमारी के बजाए ब्रह्मा बाप दिखाई देगा। साधारण स्वरूप के बजाए शिवशक्ति स्वरूप दिखाई देगा। जैसे आदि में साकार की लीला देखी। ऐसे ही अन्त में भी होगी। सिर्फ अभी एडीसन शिवशक्ति' स्वरूप का भी साक्षात्कार होगा। फिर भी साकार पिता तो ब्रह्मा है ना। तो साकार रूप में आये हुए बच्चे बाप को देखेंगे और अनुभव जरूर करेंगे। यह भी समाचार सुनेंगे। ब्रह्मा बाप के सहयोग का, स्नेह का सदा अनुभव करते हो ना? साथ हैं या वतन में हैं? सिर्फ शरीर के बन्धन से बन्धनमुक्त हो और तीव्रगति रूप से सहयोगी बन गये। क्योंकि ड्रामा अनुसार वृद्धि होने की अनादि नूंध थी।

वैसे भी ज्यादा स्थान पर अगर रोशनी फैलानी होती है तो क्या करते हैं? ऊँची रोशनी करते हैं ना! सूर्य भी विश्व में रोशनी तब दे सकता है जब ऊँचा है। तो साकार सृष्टि को सकाश देने के लिए ब्रह्मा बाप को भी ऊँचे स्थान निवासी बनना ही था। अब तो सेकण्ड में जहाँ चाहें अपना कार्य कर सकते और करा सकते हैं। मुख द्वारा व पत्रों द्वारा कैसे इतना कार्य करते, इसलिए तीव्र विधि द्वारा बच्चों के सहयोगी बन कार्य कर रहे हैं। सबसे तीव्रगति की सेवा का साधन है - ‘संकल्प शक्ति'। तो ब्रह्मा बाप श्रेष्ठ संकल्प की विधि द्वारा वृद्धि में सदा सहयोगी है। तो वृद्धि की भी गति तीव्र हो रही है ना। विधि तीव्र है तो वृद्धि भी तीव्र है। बगीचे को देख खुशी होती है ना? अच्छा –

साकार बाबा का लौकिक परिवार

(नारायण तथा उनकी युगल)

सब कार्य ठीक चल रहे हैं? अभी जम्प कभी लगाते हो? इतनी वृद्धि को देख सहज विधि अनुभव में नहीं आती है? क्या सोच रहे हो? संकल्प की ही तो बात है ना? और कुछ करना है क्या? संकल्प किया और हुआ। यह (विदेशी) इतना दूर-दूर से पहुँच गये हैं, किस आधार पर? संकल्प किया - जाना ही है, करना ही है, तो पहुँच गये ना। तो दूर से दृढ़ संकल्प के आधार पर अधिकारी बन गये। आप तो बचपन के अधिकारी हो। याद है बचपन? तो क्या करेंगे? देखेंगे या उड़ती कला में जाकर बाप समान फरिश्ता बनेंगे? देख तो रहे ही हो। देखेंगे कब तक? सोचेंगे भी कब तक? 83 तक ? कब तक सोचना है? बापदादा उसी स्नेह के पंखों से बच्चों को उड़ाना चाहते हैं। तो पंखों पर बैठने के लिए भी क्या करना पड़े? डबल लाइट तो बनना पड़ेगा ना। सब कुछ करते भी तो डबल लाइट बन सकते हो। सिर्फ कल्पना का खेल है, बस! एक सेकण्ड का खेल है। तो सेकण्ड का खेल नहीं आता है? बाप ने क्या किया? सेकण्ड में खेल किया ना? जब दोनों एक दो के सहयोगी होंगे तब कर सकेंगे। एक पहिया भी नहीं चल सकता। दोनों पहिए चाहिए। फिर भी बापदादा के घर में आते हो। बापदादा तो बच्चों को सदा ऊपर देखते हैं। ऊँचा बाप बच्चों को भी ऊँचा देखने चाहते हैं। यह तो कायदा है ना! अभी बच्चे कहाँ सीट लेते हैं वह आपके हाथ में है। सोच लो भले अच्छी तरह से लेकिन है सेकण्ड की बात। सौदा करना तो सेकण्ड में है। अच्छा