20-01-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"प्रीत की रीत न्न्निभाने का सहज तरीका"

शिव शमा अपने परवानों के प्रति बोले:-

‘‘आज शमा अपने परवानों के रूहानी महफिल में आये हैं। यह रूहानी महफिल कितनी अलौकिक और श्रेष्ठ है। शमा भी अविनाशी है, परवाने भी अविनाशी हैं और शमा-परवानों की प्रीति भी अविनाशी है। इस रूहानी प्रीति को शमा और परवानों के सिवाए और कोई जान नहीं सकता। जिन्होंने जाना उन्होंने प्रीत निभाया और उन्होंने ही सब कुछ पाया। प्रीत की रीति निभाना अर्थात् सब कुछ पाना। निभाना नहीं आता तो पाना भी नहीं आता। इस प्रीत के अनुभव जानें कि यह प्रीत की रीत निभाना कितना सहज है! प्रीत की रीत क्या है, जानते हो ना? सिर्फ दो बातों की रीत है। और वह भी इतनी सरल है जो सब जानते भी हैं और सब कर भी सकते हैं। वह दो बातें हैं - गीत गाना और नाचना'। इसके सब अनुभवी हो ना? गाना और नाचना तो सबको पसन्द है ना? तो यहाँ करना ही क्या है? अमृतवेले से गीत गाना शुरू करते हो। दिनचर्या में भी उठते ही गीत से हो। तो बाप के वा अपने श्रेष्ठ जीवन की महिमा के गीत गाओ। ज्ञान के गीत गाओ। सर्व प्राप्तियों के गीत गाओ। यह गीत गाना नहीं आता? आता है ना? तो गीत गाओ और खुशियों में नाचो। खुशियों में नाचते-नाचते हर कर्म करो। जैसे स्थूल डांस में भी सारे शरीर की डांस हो जाती है। ड्रिल हो जाती है। भिन्न-भिन्न पोज से डांस करते हो। वैसे खुशी के डांस में भिन्न-भिन्न कर्मों के पोज करते। कभी हाथ से कोई कर्म करते, कभी पाँव से करते हो तो यह काम नहीं करते हो लेकिन भिन्न-भिन्न डांस के पोज करते हो। कभी हाथ की डांस करते हो, कभी पाँव को नचाते हो। तो कर्मयोगी बनना अर्थात् भिन्न-भिन्न प्रकार की खुशी में नाचते चलो। बापदादा को वा शमा को वही परवाना पसन्द है जो गाना और नाचना जानता हो। यही प्रीत की रीत है। तो यह तो मुश्किल नहीं है ना? क्या लगता है - सहज या मुश्किल? अभी मधुबन में तो इजी-इजी कर रहे हो, वहाँ जाकर भी इजी-इजी कहेंगे ना? बदल तो नहीं जायेंगे वहाँ जाकर? (यहाँ इजी हैं वहाँ बिजी हो जायेंगे) लेकिन इसी गाने और नाचने में ही बिजी रहेंगे ना?

सदा कानों में यही मीठा साज सुनते रहना। क्योंकि गाने और नाचने के साथ साज भी तो चाहिए ना! कौन-सा साज सुनते रहेंगे? (मुरली) मुरली का भी सार' जो हर मुरली में बापदादा मीठे बच्चे, लाडले बच्चे, सिकीलधे बच्चे कहकर याद-प्यार देते हैं। यही बाप के स्नेह का साज सदा कानों में सुनते रहना। तो और बातें सुनते भी समझ में नहीं आयेंगी, बुद्धि में नहीं आयेंगी। क्योंकि एक ही साज सुनने में बिजी होंगे ना तो दूसरा सुनेंगे कैसे! ऐसे ही सदा गीत गाने में बिजी होंगे तो और व्यर्थ बातें मुख से बोलने की फुर्सत ही नहीं। सदा बाप के साथ खुशी में नाचते रहेंगे तो तीसरा कोई डिस्टर्ब कर नहीं सकता। दो के बीच में कोई आ नहीं सकता। तो मायाजीत तो हो ही गये ना! न सुनना, न बोलना, न माया का आना। तो प्रीत की रीति क्या हुई? - गाना और नाचना। जब दोनों से थक जाओ तो तीसरी बात है, सो जाना। यहाँ का सोना क्या है? सोना अर्थात् कर्म से डिटैच हो जाना। तो आप कर्मेन्द्रियों से डीटैच हो जाओ। अशरीरी बनना अर्थात् सो जाना। याद ही बापदादा की गोदी है। तो जब थक जाओ तो अशरीरी बन, अशरीरी बाप की याद में खो जाओ अर्थात् सो जाओ। जैसे शरीर से भी बहुत गाते और नाचते हैं और थक जाते हैं तो जल्दी ही नींद आ जाती है, ऐसे यह रूहानी गीत गाते, खुशी में नाचते-नाचते सोयेंगे और खो जायेंगे। तो समझा - सारा दिन क्या करना है? और डबल फारेनर्स तो इसमें बहुत शौकीन है। तो जिस बात का शौक है वही करो, बस। सोते भी शौक से हैं। तो तीनों ही बातें करने आती है। तो समझा - प्रीत की रीति निभाने का सहज तरीका क्या है? अच्छा - अभी एक शब्द तो यहाँ डबल फॉरेनर्स छोड़कर जाना। कौन-सा? (सभी ने कोई न कोई बात सुनाई- कोई ने कहा उदासी, कोई ने कहा थकावट) अच्छा - इससे सिद्ध है कि जो बोल रहे हो वह अभी तक है। अच्छा - बोलना माना छोड़ना। तो एक शब्द - डिपरेशन-डिपरेशन' कभी नहीं कहना। रियलाइजेशन न कि डिपरेशन'। जो बाप को डायवोर्स देते हैं, वह डिपरेशन में आते है। आप तो बाप के सदा कम्पेनियन हो। तो डिपरेशन शब्द शोभता नहीं है। सेल्फ रियलाइजेशन हो गया, रियलाइजेशन हो गया फिर यह कैसे हो सकता! समझा - जब द्वापर पूरा हो जाए, कलियुग शुरू हो तब फिर भले होना। इतने समय के लिए तो तलाक दे दो इसको। अच्छा –

परिवर्तन भूमि में अविनाशी परिवर्तन करने वाले, सदा प्रीत की रीति निभाने वाले, शमा के दिलपसन्द परवाने, सदा रूहानी गीत गाने वाले, खुशी में नाचते रहने वाले, जब चाहें बाप की गोदी में सो जाने वाले, ऐसे सिकीलधे, लाडले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

टीचर्स के साथ-अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(डबल विदेशी टीचर्स)

सभी ने सेवा का सबूत अपने-अपने शक्ति प्रमाण दिया है और देते रहेंगे? सेवाधारी अर्थात् हर सेकण्ड, हर श्वांस, हर संकल्प में विश्व की स्टेज पर पार्ट बजाने वाले। तो सदा स्वयं को विश्व की स्टेज पर हीरो पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं, यह समझकर चलते रहो। यह भी ड्रामा में चांस मिला है। तो दूसरे के निमित्त बनने से स्वयं स्वत: ही उसी बातों के अटेन्शन में रहते। इसलिए सदा अपने को बापदादा के साथी हैं, सेवा पर उपस्थित हैं, इस स्मृति में रहकर हर कार्य करते रहना। सदा आगे बढ़ते चलेंगे और बढ़ाते चलेंगे। हिम्मत अच्छी रखी है, मदद भी बाप की मिल रही है और मिलती रहेगी। निमित्त शिक्षक बनना वा रूहानी सेवाधारी बनना अर्थात् फादर को फालो करना। इसलिए बाप समान बाप के सिकीलधे। बापदादा भी सेवाधारियों को देख खुश होते हैं। सभी सदा अपने को निमित्त समझकर चलना और नम्रचित्त होकर चलना। जितना निमित्त और नम्रचित्त होकर चलेंगे उतनी सेवा में सहज वृद्धि होगी। कभी भी मैंने किया, मैं टीचर हूँ, यह ‘‘मैं'' का भाव नहीं रखना। इसको कहा जाता है सर्विस करने के बजाए सर्विस मे रूकती कला आने का आधार। चलते-चलते कभी सर्विस कम हो जाती है या ढीली होती है, उसका कारण विशेष यही होता है जो निमित्त के बजाए मैं-पन आ जाता है और इसके कारण ही सर्विस ढीली हो जाती है, फिर अपनी खुशी और अपना नशा ही गुम हो जाता है। तो कभी भी न स्वयं इस स्मृति से दूर होना, न औरों को बाप से वर्सा लेने से वंचित करना। दूसरी बात कि सदा यह स्लोगन याद रखना - कि स्व परिवर्तन से किसी भी परिवार की आत्मा को भी बदलना है और विश्व को भी बदलना है। स्व परिवर्तन के ऊपर विशेष अटेन्शन। तो सेवा स्वत: ही वृद्धि को पायेगी। घटने का कारण भी समझा और बढ़ाने का आधार भी समझा। तो सदा खुशी में आगे बढ़ते जायेंगे और औरों को भी खुशी में लाते रहेंगे। समझा!

तो नम्बरवन योग्य टीचर वा नम्बरवन सेवाधारियों की लाइन में आ जायेंगे। तो डबल विदेशी सभी नम्बरवन टीचर हो ना! मेहनत अच्छी कर रहे हो और मुहब्बत भी अच्छी है। सबूत भी लाया है। हरेक बच्चा सेवाधारी अर्थात् टीचर है। चाहें सेवाकेन्द्र पर रहे, चाहें जहाँ भी रहे लेकिन सेवाधारी हैं। क्योंकि ब्राह्मणों का आक्यूपेशन ही है - सेवाधारी'। किसको सेवा का क्या पार्ट मिला है, किसको क्या... कोई को लाने की सेवा करनी है, कोई को सुनाने की, कोई को भोग बनाने की तो कोई को भोग लगाने की... सब सेवाधारी हैं। बापदादा सभी को सेवाधारी ही समझते हैं।

(83 के कांफ्रेंस के लिए सभी ने नये-नये प्लैन बनाये हैं, वह बापदादा को सुना रहे हैं)

प्लैन बनाने में मेहनत की है उसके लिए मुबारक। यह भी बुद्धि चलाई अर्थात् अपनी कमाई जमा की। तो मीटिंग नहीं की लेकिन जमा किया। सदा निर्विघ्न, सदा विघ्न-विनाशक और सदा सन्तुष्ट रहना तथा सर्व को सन्तुष्ट करना। यही सर्टीफिकेट सदा लेते रहना। यही सर्टीफिकेट लेना अर्थात् तख्तनशीन होना। सन्तुष्ट रहने का और सर्व को सन्तुष्ट करने का लक्ष्य रखो। दोनों का बैलेन्स रखो। अच्छा - जो प्लैन बनाये हैं - वह सब प्रैक्टिकल में लाना। वी. आई. पीज का संगठन लेकर आना।