22-01-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


बधाई और विदाई दो

अव्यक्त बापदादा अलौकिक जन्मधारी विशेष आत्माओं के प्रति बोले:-

‘‘आज विश्व कल्याणकारी बापदादा विश्व के चारों ओर के बच्चों को सम्मुख देख रहे हैं। सभी बच्चे अपने याद की शक्ति से आकारी रूप में मधुबन पहुँचे हुए हैं। हरेक बच्चे के अन्दर मिलन मनाने का शुभ संकल्प हैं। बापदादा सर्व बच्चों को देख-देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि बापदादा हरेक बच्चे की विशेषता को जानते हैं। उसी विशेषता के आधार पर हरेक अपना-अपना विशेष पार्ट बजा रहे हैं। यही ब्राह्मण आत्माओं की वा ब्राह्मण परिवार में नवीनता है जो एक भी ब्राह्मण आत्मा विशेषता के सिवाए साधारण नहीं है। सभी ब्राह्मण अलौकिक जन्मधारी, अलौकिक हैं। इसलिए सभी अलौकिक अर्थात् कोई न कोई विशेषता के कारण विशेष आत्मा हैं। विशेषता की अलौकिकता है। इसलिए बापदादा को बच्चों पर नाज़ है। सब विशेष आत्मायें हो। ऐसे ही अपने में इस अलौकिक जन्म का, अलौकिकता का, रूहानियत का, मास्टर सर्वशक्तिवान का नशा अपने में समझते हो? यह नशा सर्व प्रकार की कमज़ोरियों को समाप्त करने वाला है। तो सदा के लिए सर्व कमज़ोरियों को विदाई देने का मुख्य साधन, सदा स्वयं को और सर्व को संगमयुगी विशेष आत्मा के विशेष पार्ट की बधाई दो। जैसे कोई भी विशेष दिन होता है वा कोई विशेष कार्य करता है तो क्या करते हो? उसको बधाई देते हो ना, एक दो को बधाई देते हो। तो सारे कल्प में संगमयुग का हर दिन विशेष दिन है और आप विशेष युग के विशेष पार्टधारी हो। इसलिए आप विशेष आत्माओं का हर कर्म अलौकिक अर्थात् विशेष है। तो सदा आपस में भी मुबारक दो और स्वयं को भी मुबारक दो, बधाई दो। जहाँ बधाई होगी वहाँ विदाई हो ही जायेगी। तो इस डबल विदेशियों की सीजन का सार यही याद रखो - ‘‘सदा बधाई द्वारा विदाई दे देना है।'' यहाँ आये ही हो विदाई दे बधाईयाँ मनाने के लिए तो विदाई और बधाई' यही दो शब्द याद रखना। विदाई देनी है, नहीं, विदाई दे दी। वरदान भूमि में आना अर्थात् सदा के लिए कमज़ोरियों को विदाई देना। रावण को तो जला देते हो लेकिन रावण के वंश अपना दांव लगाते हैं। जैसे आपकी साकारी दुनिया में कोई बड़ी प्रॉपर्टी वाला शरीर छोड़ता है तो उनके भूले भटके हुए सम्बन्धी भी आकर निकलते हैं।

ऐसे रावण को तो मार लेते हो लेकिन उनके वंश जो अपना हक लेने के लिए सामना करते हैं, उस वंश को विनाश करने में कभी-कभी कमजोर हो जाते हो। जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन्हों के वंश अर्थात् अंश बड़े रायल रूप से अपना बना देते हैं। जैसे लोभ का अंश है - आवश्यकता। लोभ नहीं है लेकिन आवश्यकता सब है। आवश्यकता की भी हद है। अगर आवश्यकता बेहद में चली जाती है तो लोभ का अंश हो जाता है।

ऐसे काम विकार नहीं है, सदा ब्रह्मचारी हैं लेकिन किसी आत्मा के प्रति विशेष झुकाव है जिसका रायल रूप स्नेह है। लेकिन एकस्ट्रा स्नेह अर्थात् काम का अंश। स्नेह राइट है लेकिन ‘‘एकस्ट्रा'' अंश है।

इसी प्रकार क्रोध को भी जीत लिया है लेकिन किसी आत्मा के कोई संस्कार देखते हुए स्वयं अन्दर ज्ञान स्वरूप से नीचे आ जाते और उसी आत्मा से किनारा करने का प्रयत्न करते, क्योंकि उसको देख उसके सम्पर्क में रहते अवस्था नीचे ऊपर होती है इसलिए स्वभाव को देख किनारा करना, यह भी घृणा अर्थात् क्रोध का ही अंश है। जैसे क्रोध अग्नि से जलने के कारण दूर रहते हैं, तो यह सूक्ष्म घृणा भी क्रोध के अग्नि के समान, किनारा करा देती है। इसका रायल शब्द है - अपनी अवस्था को खराब करें इससे किनारा करना अच्छा है। न्यारा बनना और चीज है, किनारा करना और चीज है। प्यारे बन न्यारे बनते हो,वह राइट है। लेकिन सूक्ष्म घृणा भाव - ‘‘यह ऐसा है, यह तो बदलना ही नहीं है।'' ऐसे सदा के लिए उसको सूक्ष्म में श्रापित करते हो। सेफ रहो लेकिन उसको सर्टीफिकेट फाइनल नहीं दो। ऐसे ही विशेषता को देखते हुए सदा सर्व के प्रति श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना रखते हुए इस अंश को भी विदाई दो। अपनी श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना को छोड़ो नहीं, अपना बचाव करते हुए दूसरी आत्माओं को गिरा करके अपना बचाव नहीं करो। यह घृणा भाव अर्थात् गिराना। दूसरे को गिरा करके अपने को बचाना यह ब्राह्मणों की विशेषता नहीं। खुद को भी बचाओ, दूसरे को भी बचाओ। इसको कहा जाता है - विशेष बनना और विशेषता देखना। यह छोटी-छोटी बातें चलते-चलते दो स्वरूप धारण कर लेती हैं - एक दिलशिकस्त और दूसरा अलबेला। तो अभी रावण के अंश को सदा के लिए विदाई देने के लिए इन दोनों रूपों को विदाई दो। और सदा अपने में बाप द्वारा मिली हुई विशेषता को देखो। मेरी विशेषता नहीं, बाप द्वारा मिली हुई विशेषता है। मेरी विशेषता सोचेंगे फिर अहंकार का अंश आ जायेगा। मेरी विशेषता से काम क्यों नहीं लिया जाता, मेरी विशेषता को जानते ही नहीं है! ‘‘मेरी'' कहाँ से आई? विशेष जन्म की गिफ्ट है विशेषता पाना। तो जन्म दाता ने गिफ्ट दी, ‘‘मेरी'' कहाँ से आई? मेरी विशेषता, मेरी नेचर, मेरी दिल यह कहती है, वा मेरी दिल यह करती है, यह मेरी नहीं है लेकिन वरी (चिंता) है। आप लोग कहते हो ना - वरी, हरी, करी। समझा - यही अंश समाप्त करो और सदा बाप द्वारा मिली हुई स्वयं की विशेषता और सर्व की विशेषता देखो अर्थात् सदा स्वयं को और सर्व को बधाई दो। सबका अंश समझ लिया ना? अभी मोह का अंश क्या है? नष्टोमोहा नहीं हुए हो क्या? अच्छा - मोह का रायल रूप कोई भी वस्तु व व्यक्ति अच्छा लगता है, यह, यह चीज मुझे अच्छी लगती है, मोह नहीं लेकिन अच्छी लगती है। अगर किसी भी व्यक्ति या वस्तु में अच्छा लगता तो सब अच्छा लगना चाहिए - चत्तियों वाले कपड़े भी अच्छे तो बढ़िया कपड़ा भी अच्छा। 36 प्रकार के भोजन भी अच्छे तो सूखी रोटी और गुड़ भी अच्छा। हर वस्तु अच्छी, हर व्यक्ति अच्छा। ऐसे नहीं - यह ज्यादा अच्छा लगता है! यह वस्तु ज्यादा अच्छी लगती है ऐसा समझकर कार्य में नहीं लगाओ। दवाई है, दवाई करके भले खाओ। लेकिन अच्छा लगता है इसलिए खाओ, यह नहीं। अच्छा अर्थात् अट्रैक्शन जायेगी। तो यह है मोह का अंश। खाओ, पियो, मौज करो लेकिन अंश को विदाई दे करके न्यारे बन प्रयोग करने में प्यारे बनो। समझा! - बापदादा के भण्डारे से स्वत: ही सर्व प्रमाण, सर्व प्राप्ति का साधन बना हुआ है, खूब खाओ लेकिन बाप के साथ-साथ खाओ, अलग नही खाओ। बाप के साथ खायेंगे, बाप के साथ मौज मनायेंगे तो स्वत: ही सदा लकीर के अन्दर अशोक वाटिका में होंगे'। जहाँ रावण का अंश आ नहीं सकता। खाओ, पियो, मौज करो लेकिन लकीर के अन्दर और बाप के साथ-साथ। फिर कोई बात मुश्किल नहीं लगेगी। हर बात मनोरंजन अनुभव होगी। समझा क्या करना है? सदा मनोरंजन करो। अच्छा - डबल विदेशी सदा मनोरंजन की विधि समझ गये? मुश्किल तो नही लगता ना? बाप के साथ बैठ जाओ तो कोई मुश्किल नहीं - हर घड़ी मनोरंजन अनुभव करेंगे। हर सेकण्ड स्व प्राप्ति और सर्व प्रति बधाई के बोल निकलते रहेंगे। तो विदाई देकर जाना है ना। साथ में तो नहीं ले जायेंगे ना? यह सर्व अंश को विदाई दे बधाई मनाके जाना। तैयार हो ना सभी डबल विदेशी। अच्छा बापदादा भी ऐसे सदाकाल की विदाई देने वालों को बधाई दे रहे हैं। पद्म-पद्म विदाई की बधाई। अच्छा-

ऐसे सदा मन्मनाभव अर्थात् सदा मनोरंजन करने वाले, सदा एक बाप मे सारा संसार अनुभव करने वाले, ऐसे विशेषतायें देखने वाले विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

सेवाधारियों से:- सेवाधारियों को मधुबन से क्या सौगात मिली? प्रत्यक्षफल भी मिला और भविष्य प्रालब्ध भी जमा हुई। तो डबल सौगात हो गई। खुशी मिली, निरन्तर योग के अभ्यासी बने, यह प्रत्यक्षफल मिला। लेकिन इसके साथसाथ भविष्य प्रालब्ध भी जमा हुई। तो डबल चांस मिला। यहाँ रहते सहजयोगी, कर्मयोगी, निरन्तर योगी का अभ्यास हो गया है। यही संस्कार अब ऐसे पक्के करके जाओ जो वहाँ भी यही संस्कार रहें। जैसे पुराने संस्कार न चाहते भी कर्म में आ जाते हैं ऐसे यह संस्कार भी पक्के करो। तो संस्कारों के कारण यह अभ्यास चलता ही रहेगा। फिर माया विघ्न नहीं डालेगी क्योंकि संस्कार बन गये। इसलिए सदा इन संस्कारों को अन्डरलाइन करते रहना। फ्रेश करते रहना। यहाँ रहते निर्विघ्न रहे? कोई विघ्न तो नहीं आया? कोई मन से भी आपस में टक्कर वगैरा तो नहीं हुआ? संगठन में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हुए भी ‘‘सी फादर'' किया या सी ब्रदर-सिस्टर भी हो गया? जो सदा सी फादर करने वाले हैं वे बापदादा के समीप बच्चे हैं। और जो सी फादर के साथ- सी सिस्टर-ब्रदर कर देते वह समीप के बच्चे नहीं, दूर के हैं। तो आप सब कौन हो? समीप वाले हो ना? तो सदा इसी स्मृति में चलते चलो। बाहर रहते हुए भी यही पाठ पक्का करो - ‘‘सी फादर या फालो फादर'', फालो फादर करने वाले कभी भी किसी परिस्थिति में डगमग नहीं होंगे क्योंकि फादर कभी डगमग नहीं हुआ है ना। तो सी फादर करने वाले अचल, अडोल, एकरस रहेंगे। अच्छा - सब आशायें पूरी हुई? सभी ने अपनी-अपनी सेवा में अच्छा पार्ट बजाया है। अच्छा पार्ट बजाने की निशानी है - हर वर्ष आपे ही निमंत्रण आयेगा। यह है प्रैक्टिकल यादगार बनाना। वह यादगार तो बनेगा ही लेकिन अभी भी बन जाता है। कोई अच्छी सेवा करके जाते हैं तो सबके मुख से यही निकलता कि - उसी को बुलाओ। तो ऐसा सबूत दिखाना चाहिए- जो सेवाधारी से सदा के सेवाधारी बन जाओ - सब कहे इन्हें यहाँ ही रख लो। अच्छा –

मधुबन निवासियों से- मधुबन निवासी तो हैं ही सर्व प्राप्ति स्वरूप। क्योंकि मधुबन की महिमा, मधुबन की विशेष पढ़ाई, मधुबन का विशेष संग, मधुबन का विशेष वायुमण्डल सब आपको प्राप्त है। मधुबन में बाहर वाले अपनी सब इच्छायें पूर्ण करने आते हैं और आप तो यहाँ बैठे ही हो। शरीर से भी बापदादा के सदा साथ हो क्योंकि मधुबन में सभी साथ का अनुभव साकार रूप में करते हैं। तो शरीर से भी साथ हो अर्थात् साकार में भी साथ हो और आत्मा तो है ही बाप के साथ। तो डबल साथ हो गया ना? सर्व प्रकार की खानों पर बैठे हो। तो सर्व खानों के मालिक हो गये ना! मधुबन वालों के मन से हर सेकण्ड, हर श्वांस यही गीत निकलना चाहिए कि - पाना था वह पा लिया, अप्राप्त नही कोई वस्तु भण्डारे में'। मधुबन वाले तो सदा ताजा माल खाने वाले हैं। तो जो सदा ताजा खाने वाले होते हैं वह कितने हेल्दी होंगे। आप सब वरदानी आत्मायें हो, सदा बापदादा की पालना में पलते हो। बाहर वालों को तो दूसरे वातावरण में जाना पड़ता है इसलिए खास उन्हों को कोई न कोई वरदान देना पड़ता, आप तो वरदान भूमि में बैठे हो। बाहर वालों को तो एक वर्ष के लिए रिफ्रेशमेन्ट चाहिए।

इसलिए आप लोगों से एक-एक से बापदादा क्या बोलें। उनको तो कहते हैं लाइट हाउस होकर रहना, माइट हाउस होकर रहना। क्या आपको भी यह बोलें? बाहर वालों को इस बात की आवश्यकता है क्योंकि यही उनके लिए कमलपुष्प बन जाता है जिस पर न्यारे और प्यारे बनकर रहते हैं। वैसे भी घर में कोई आता है तो उसका ख्याल करना ही होता है। आप तो सदा ही घर में हो। उन्हों को डबल पार्ट बजाना है इसलिए डबल फोर्स भरना पड़ता है। उन्हों के लिए यह एक-एक शब्द संसार के सागर में नाव का काम करता है और आप तो संसार सागर से निकल ज्ञान सागर के बीच में बैठे हो। आपका संसार ही बाप है।

प्रश्न- बाबा में ही संसार है, इसका भाव क्या है?

उत्तर- वैसे भी बुद्धि जाती है तो संसार में ही जाती है ना! संसार में दो चीजें हैं - एक व्यक्ति दूसरा, वस्तु। बाप ही संसार है अर्थात् सर्व व्यक्तियों से जो प्राप्ति है वह एक बाप से है। और जो सर्व वस्तुओं से तृप्ति होती है वह भी बाप से है। तो संसार हो गया ना। सम्बन्ध भी बाप से, सम्पर्क भी बाप से। उठना,  बैठना भाr बाप से। तो संसार ही बाप हो गया ना। अच्छा –

आस्ट्रेलिया पार्टी से- आज सभी ने क्या संकल्प किया? सभी ने माया को विदाई दी? जिन्हों को अभी भी सोचना है वह हाथ उठाओ। अगर अभी से कहते हो सोचेंगे तो यह भी कमजोर फाउण्डेशन हो गया। सोचेंगे अर्थात् कमजोरी। ब्रह्माकुमार कुमारियों का धन्धा ही है मायाजीत बनना और बनाना। तो अपना निजी धन्धा- जो है उसके लिए सोचा जाता है क्या! बोलो हुआ ही पड़ा है। जैसे देखो अगले वर्ष दृढ़ संकल्प रखकर गये कि अनेक स्थानों पर सेवाकेन्द्र खोलेंगे तो खुल गये ना! अभी कितने सेन्टर हैं? 17, तो जैसे यह संकल्प किया और पूरा हुआ। ऐसे मायाजीत बनने का भी संकल्प करो। बापदादा तो बच्चों की हिम्मत पर बार-बार मुबारक देते हैं। और भी आगे सेवा में वृद्धि करते रहना। सभी बापदादा के दिल पसन्द बच्चे हो। बापदादा भी आप साथियों के बिना कुछ नहीं कर सकते। आप बहुत-बहुत वैल्युएबल हो। अच्छा - अभी रूह-रूहान करो, जो पूछना है पूछो।