07-03-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संकल्प की गति धैर्यवत होने से लाभ

सर्वगुणों के सागर शिव बाबा बोले:-

‘‘आज बापदादा अपने एक बाप दूसरा न कोई' ऐसे एकनामी, एकरस स्थिति में स्थित होने वाले स्मृति स्वरूप बच्चों से मिलने आये हैं। हर बच्चे के मरजीवा जन्म की श्रेष्ठ रेखायें बापदादा देख रहे हैं। आजकल की दुनिया में विशेष हस्त रेखायें देखने से आत्मा के भाग्य का वर्णन करते हैं वा गुण, कर्त्तव्य की श्रेष्ठता का वर्णन करते हैं। लेकिन बापदादा हस्त रेखायें नहीं देखते हैं। हरेक बच्चे के मुख, नयन और मस्तक इन द्वारा हरेक की स्पीड और स्टेज की रेखायें देख रहे हैं। वैसे भी फेस द्वारा ही मनुष्य, आत्मा को परखने की कोशिश करते हैं। वे लोग देह अभिमानी होने के कारण स्थूल बातों को चेक करते हैं। बापदादा मस्तक द्वारा स्मृति स्वरूप को देखते हैं। नयनों द्वारा ज्वाला रूप को देखते हैं, मुख की मुस्कान द्वारा न्यारे और प्यारेपन की कमल पुष्प समान स्थिति को देखते हैं। जो सदा स्मृति स्वरूप रहते, उनकी रेखायें सदा मस्तक में संकल्पों की गति धैर्यवत होगी। किसी भी प्रकार का बोझ नहीं होगा। प्रेशर नहीं होगा। एक मिनट में एक संकल्प द्वारा अनेक संकल्पों को जन्म नहीं देंगे। जैसे शरीर में कोई भी बीमारी को नब्ज की गति से चेक करते हैं ऐसे संकल्प की गति, यह मस्तक की रेखा की पहचान है। अगर संकल्प की गति बहुत तीव्र गति में है, एक से एक, एक से एक संकल्प चलते ही रहते हैं तो संकल्पों की गति अति तीव्र होना, यह भी भाग्य की एनर्जी को वेस्ट करना है। जैसे मुख द्वारा अति तीव्र गति से और सदा ही बोलते रहने से शरीर की शक्ति वा एनर्जी वेस्ट होती है। कोई सदा बोलते ही रहते हैं, ज्यादा बोलते हैं, जोर से बोलते तो उसको क्या कहते हो? - धीरे बोलो, कम बोलो। ऐसे ही संकल्पों की गति रूहानी एनर्जी को वेस्ट करती है। सभी बच्चे अनुभवी हैं- जब व्यर्थ संकल्प चलते हैं तो संकल्पों की गति क्या होती है। और जब ज्ञान का मनन चलता है तो संकल्पों की गति क्या होती है? वह एनर्जी वेस्ट करता है, वह एनर्जी बनाता है। व्यर्थ संकल्प की तेज गति होने के कारण अपने आपको शक्ति स्वरूप कभी अनुभव नहीं करेंगे। जैसे शरीर की शक्ति गायब होने से वर्णन करते हो कि आज हमारा माथा खाली- खाली है। ऐसे आत्मा सर्व प्राप्तियों से अपने को खाली-खाली अनुभव करती है।

जैसे शारीरिक शक्ति के लिए इन्जेक्शन लगाकर ताकत भरते हैं वा ग्लूकोज की बोतल चढ़ाते हैं, ऐसे रूहानियत से कमजोर आत्मा पुरूषार्थ की विधि स्मृति में लाती है - मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, आज मुरली में बापदादा ने क्या-क्या पॉइंटस सुनाये, व्यर्थ संकल्प का ब्रेक क्या है! बिन्दी लगाने का प्रयत्न करना, तो यह हुआ इन्जेक्शन लगाना। ऐसे पुरूषार्थ की विधि के इन्जेक्शन द्वारा कुछ समय शक्तिशाली हो जाते हैं वा विशेष याद के प्रोग्राम्स द्वारा वा विशेष संगठन और संग द्वारा ग्लूकोज चढ़ा लेते हैं। लेकिन संकल्प की गति फास्ट के अभ्यासी थोड़े समय की शक्ति भरने से कुछ समय तो अपने को शक्तिवान अनुभव करेंगे लेकिन फिर भी कमजोर बन जायेंगे। इसलिए बापदादा मस्तक की रेखाओं द्वारा रिजल्ट देखते हुए फिर से बच्चों को यही श्रीमत याद दिलाते हैं कि संकल्प की गति अति तीव्र नहीं बनाओ। जैसे मुख के बोल के लिए कहते हैं कि दस शब्द के बजाए दो शब्द बोलो, जो दो शब्द ही ऐसे समर्थ हो जो 100 बोल का कार्य सिद्ध कर दें। ऐसे संकल्प की गति, संकल्प भी वही चले जो आवश्यक हो। संकल्प रूपी बीज सफलता के फल से सम्पन्न हो। खाली बीज न हो जिससे फल न निकले। इसको कहा जाता है सदा समर्थ संकल्प हो। व्यर्थ न हो। समर्थ की संख्या स्वत: ही कम होगी लेकिन शक्तिशाली होगी और व्यर्थ की संख्या ज्यादा होगी प्राप्ति कुछ भी नहीं। व्यर्थ संकल्प ऐसे समझो जैसे बट (बांस) का जंगल। जो एक से अनेक स्वत: पैदा होते जाते हैं और आपस में टकरा कर आग लगा देते हैं। और स्वयं ही अपनी आग में भस्म हो जाते हैं। ऐसे व्यर्थ संकल्प भी एक दो से टकराकर कोई-न-कोई विकार की अग्नि प्रज्वलित करते हैं और स्वयं ही स्वयं को परेशान करते हैं। इसलिए संकल्प की गति धैर्यवत बनाओ। इस मरजीवे जन्म का खजाना कहो वा विशेष एनर्जी कहो, वह है ही -संकल्प'। मरजीवे बनने का आधार ही शुद्ध संकल्प है। ‘‘मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ'', इस संकल्प ने कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया ना! ‘‘मैं कल्प पहले वाला बाप का बच्चा हूँ, वारिस हूँ, अधिकारी हूँ'', इस संकल्प ने मास्टर सर्वशक्तिवान बनाया। तो खजाना भी यही है, एनर्जी भी यही तो संकल्प भी यही है। विशेष खजानों को कैसे यूज़ किया जाता है, ऐसे अपने संकल्प के खजाने वा एनर्जी को पहचान, ऐसे कार्य में लगाओ तब ही सर्व संकल्प सिद्ध होंगे और सिद्ध स्वरूप बन जायेंगे। तो समझा आज क्या रेखायें देखी? कम सोचो अर्थात् सिद्धि स्वरूप संकल्प करो। ऐसी रेखा वाले सदा बेगमपुर के बादशाह होंगे। मुख से सदैव महावाक्य बोलो। महावाक्य गिनती के होते हैं। जैसे महान आत्मायें गिनती की होती, आत्मायें अनेक होतीं और परमात्मा एक होता है। तो दोनों एनर्जी - संकल्प की और वाणी की व्यर्थ खर्च नहीं करो। महावीर महारथी अर्थात् मुख द्वारा महावाक्य बोलने वाले, बुद्धि द्वारा सिद्धि स्वरूप संकल्प करने वाले, यह निशानी है महावीर वा महारथी की। ऐसे महारथी बनो जो कोई भी सामने आये तो यही इच्छा रखे कि यह महान आत्मा मेरे प्रति श्रेष्ठ संकल्प सुनाये, आशीर्वाद के दो बोल बोले। आशीर्वाद के बोल सदा कम होते हैं। जो आप महारथी महावीर देवात्मायें, भक्तों की पूज्य आत्मायें हो। सदा संकल्प और बोल से आशीर्वाद के संकल्प और बोल बोलो। अमृतवाणी बोलो। लौकिक वाणी नहीं। अच्छा-

सदा महान संकल्प द्वारा स्वयं को और सर्व को शीतल बनाने वाले, वाणी द्वारा सदा आशीर्वाद के बोल बोलने वाले, ऐसे श्रेष्ठ रेखाओं वाले, सदा श्रेष्ठ आत्माओं को, महान आत्माओं को, देव आत्माओं को, पूज्य आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

बापदादा के सदा स्नेही, सदा सहयोगी और सदा सेवाधारी सर्विसएबल रत्न हो ना? हरेक रत्न कितना अमूल्य है जो विश्व के शो केश के बीच रखने वाला है। बापदादा जानते हैं कि कितनी ऊँची-ऊँची अनेक प्रकार की दीवारों को पार कर बाप के बने हैं! धर्म की दीवार, रीति रस्म की दीवार, ऐसे कितनी दीवारें पार की? लेकिन बाप के सहयोग के कारण इतनी ऊँची दीवारें भी ऐसे पार की जैसे एक कदम उठाया। कोई भी मुश्किल नहीं। इतना सहज लगा जो समझते हो कि हम तो थे ही बाप के। अगर आप सब बाप के नहीं बनते तो विदेश में इतने सेन्टर क्यों खुलते? सेवा के अर्थ अपने-अपने स्थान पर पहुँच गये थे, फिर से बाप ने आकर अपना बना लिया। तो अभी क्या समझते हो? मधुबन निवासी हो ना? आप सबका वोट मधुबन है। ऐसे समझते हो कि हम मधुबन निवासी सेवा पर गये हुए हैं? जैसे भारतवासी बच्चे भी और-और स्थान पर गये तो आप भी चले गये। हरेक बच्चे का भिन्न-भिन्न सर्विस का पार्ट है। अपनी हमजिन्स को जगाने के लिए कितना सहज सेवा के निमित्त बन गये। बापदादा वैरायटी स्थान के वैरायटी फूलों को देख बहुत खुश हैं। वैरायटी फूलों का एक वृक्ष हो जाए, ऐसा वृक्ष कभी देखा? एक वृक्ष के भिन्न-भिन्न प्रकार के गुलाब हो, फूल हो। सदा सिद्धि स्वरूप हो। क्योंकि बापदादा द्वारा वरदानी आत्मायें बन गये! तीन शब्द सदा याद रखो। एक - सदा बैलेन्स रखना है। दूसरा - सदा ब्लिसफुल रहना है। तीसरा - सर्व को ब्लैसिंग देना है। सेवा और स्व की सेवा दोनों का सदा बैलेन्स। बैलेन्स द्वारा कितनी कलायें दिखाते हैं। आप भी बुद्धि के बैलेन्स द्वारा सदा 16 कला सम्पन्न स्वरूप हो जायेंगे। आपका हर कर्म कला हो जायेगा। देखना भी कला! क्योंकि आत्मा होकर सुनते हो ना। ऐसे बोलना, चलना हर कदम में हर कर्म में कला। लेकिन इन सबका आधार है - बुद्धि का बैलेंस'। ऐसे ही सदा ब्लिसफुल अर्थात् आनन्द स्वरूप। आनन्द के सागर के बच्चे सदा आनन्द स्वरूप। अच्छा - अब तो मिलते ही रहेंगे। संगमयुग है ही मेला। तो सदा मिलते ही रहेंगे। एक दिन भी बाप और बच्चों का मिलन न हो वा एक- एक सेकण्ड भी मिलन न हो ऐसा हो नहीं सकता। ऐसा अनुभव तो करते हो ना? सदा बाप के साथ-साथ कम्बाइन्ड हो ना? कम्बाइन्ड रूप से अलग करने की कोई को भी हिम्मत नहीं। किसी की भी ताकत नहीं। अच्छा-