09-03-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


होली मनाने और जलाने की अलौव्व्किक रीत्त्ति

होली के उपलक्ष्य में अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए महावाक्य: -

‘‘आज हाइस्ट बाप अपने होलीहंसों से मिलने आये हैं। हरेक होलीहंस की बुद्धि में सदा ज्ञान के मोती माणिक रतन भरे हुए हैं। ऐसे होलीहंस बापदादा को भी सारे कल्प में एक ही बार मिलते हैं। ऐसे विशेष होलीहंस से बापदादा सारा ही संगमयुग होली मनाते रहते हैं। संसारी लोग वर्ष में एक दो दिन होली मनाते लेकिन मनाने के साथ गंवाते भी हैं और आप होली हंस, मनाते भी हो तो कमाते भी हो, गंवाते नहीं हो। बापदादा से सभी बच्चे दूर बैठे भी होली मना रहे हैं। बापदादा के पास देश-विदेश के बच्चों का श्रेष्ठ स्नेह का संकल्प पहुँच रहा है। सभी बच्चों के नयनों और मस्तक की पिचकारी द्वारा प्रेम की धारा, अति स्नेह की सुगन्धित पिचकारी आ रही है। बापदादा भी रिटर्न में सर्व बच्चों को नयनों की पिचकारी द्वारा अष्ट शक्ति अर्थात् अष्ट रंगों की पिचकारी से खेल रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं जैसे स्थूल रंगों द्वारा लाल रंग से लाल बना देते हैं। भिन्नभिन्न रंगों से भिन्न-भिन्न रूप बना देते हैं ऐसे हर शक्ति के रूहानी रंग से हर शक्ति स्वरूप बन जाते हैं, हर गुण स्वरूप हो जाते हैं। दृष्टि के द्वारा रूप परिवर्तन हो जाता है। ऐसी रूहानी होली मनाने के लिए आये हो ना?

बापदादा पुष्पों की वर्षा कर होली मनाने के बजाए हरेक बच्चे को सदा के लिए रूहाब द्वारा रूहानी गुलाब बना देते हैं। स्वयं ही पुष्प बन जाते हैं। ऐसी होली सिवाए बाप और बच्चों के कोई मना नहीं सकते हैं। जन्म लेते ही बाप ने होली मनाए होली बना दिया। तो वह है मनाने वाले और आप हो सदा होली' बनने वाले। सदा हर गुण का रंग, हर शक्ति का रंग, स्नेह का रंग लगा हुआ ही है। ऐसे होली हंस हो ना! तिलक लगाने की भी जरूरत नहीं। हो ही सदा तिलकधारी। अविनाशी तिलक लगा हुआ ही है ना। जो मिटाते भी मिट नहीं सकता। अल्पकाल के बजाए सदाकाल मनाते रहते और औरों को भी बनाते रहते। वे लोग तो मंगल मिलन के लिए गले मिलते हैं लेकिन आप होली हंस बापदादा के गले का हार ही बन गये हो। सदा गले का हार बन चमकते हुए रत्न विश्व के आगे रोशनी फैला रहे हो। एक-एक रत्न ऐसे चमकते हुए लाइट स्वरूप हो जो हजारों बल्ब भी वह रोशनी नहीं दे सकते। ऐसे चमकते हुए रत्न - अपने लाइट माइट स्वरूप को जानते हो ना! सारे विश्व को अन्धकार से रोशनी में ले जाने वाले आप चमकते हुए रत्न हो। बापदादा ऐसे होली हंसों से विशेष दिन के प्रमाण रूहानी होली मना रहे हैं।

होली जलाई भी और मनाई भी। जलाना और मनाना दोनों ही आता है ना? जलाने के बाद ही मनाना होता है। संकल्प की तीली से, जो भी कुछ स्व प्रति वा सेवा प्रति व्यर्थ संकल्प अर्थात् कमज़ोरी के संकल्प संस्कार हैं, सबको इकट्ठे करके तीली लगा दो, इसी को ही सूखी लकड़ियाँ कहते हैं। तो सबको इकट्ठे करके दृढ़ संकल्प की तीली लगा दो। तो जलाना भी हो जायेगा। जलाना ही मनाना और बनना है। तीली लगाने आती है ना? तो जलाओ और मनाओ। अर्थात् स्व को सदा होली' बनाओ। ऐसे तो नहीं तीली लगाते तो तीली लगती ही नहीं। तीली भी माचिस के सम्बन्ध बिना जलती नहीं। तो बाप के साथ सम्पर्क सम्बन्ध होगा, अभ्यास की तीली पर मसाला ठीक होगा तब सेकण्ड में संकल्प किया और बना। तो सब साधन ठीक चाहिए। सम्बन्ध भी चाहिए। अभ्यास भी चाहिए। सम्बन्ध है और अभ्यास कम है तो मेहनत के बाद सफलता मिलेगी। सेकण्ड में संकल्प का स्वरूप नहीं बन सकेंगे। बार-बार संकल्प करते-करते मेहनत के बाद सफलता होगी। आप सभी के मेहनत अर्थात् भक्ति का समय समाप्त हो गया ना! भक्ति का अर्थ ही है मेहनत! भक्ति का समय समाप्त हुआ अर्थात् मेहनत समाप्त हुई। अब भक्ति का फल लेने का समय है। भक्ति का फल है ज्ञान' अर्थात् मुहब्बत न कि मेहनत। 63 जन्म मेहनत की, थोड़ी वा ज्यादा लेकिन मेहनत तो की ना! अब अन्तिम एक जन्म मुहब्बत के समय भी मेहनत करेंगे क्या? अब तो मेहनत का फल खाओ। फल खाने के समय भी बीज बोते रहेंगे क्या! अब तो सदा बाप की मुहब्बत द्वारा फल खाओ अर्थात् सदा फलीभूत बनो। फल खाओ अर्थात् सदा सफल रहो। फल खाना अर्थात् सदा होली मनाना वा होली बन जाना। अब मेहनत करने के, युद्ध करने के संस्कार समाप्त करो। अब तो राज्य भाग्य पा लिया फिर युद्ध काहे की? देवपद के भाग्य से भी श्रेष्ठ भाग्य तो अब पाया है। स्वराज्य का मजा विश्व के राज्य में भी नहीं होगा। तो राज्य भाग्यवान आत्मायें अभी भी युद्ध क्यों करती हो? इसलिए मेहनत के संस्कार, युद्ध के संस्कार वा संकल्प की पुरानी लकड़ियों को आग लगा दो। यही होली जलाओ। बापदादा को भी बच्चों के मेहनत के संस्कार देख तरस पड़ता है। अभी तक भी मेहनत करेंगे तो फल कब खायेंगे? इसका मतलब अलबेला नहीं बनना कि मेहनत तो करनी नहीं है। अलबेला नहीं बनना है लेकिन सदा मुहब्बत में मगन रहना है। लवलीन रहना है। सोचा और हुआ - ऐसे अभ्यासी बनो। मास्टर सर्वशक्तिवान हो तो संकल्प किया और अनुभूति हुई - ऐसे सहज अभ्यासी बनो। श्रेष्ठ संकल्पों के खजाने को स्वरूप में लाओ। कोई भी श्रेष्ठ कार्य करते हो तो सजाते हो ना! जैसे कल भी श्रृंगार किया ना? (कल मधुबन मे 5 कन्याओं का समर्पण समारोह हुआ जिसमें उन्हें खूब सजाया गया था) श्रृंगारी हुई सजी हुई मूर्त भी शुभ निशानी है। तो आप सदा शुभ कार्य में उपस्थित हो तो सदा गुणों के गहनों से सजायें हुए रहो। सिर्फ बुद्धि की तिजारी में बन्द कर नहीं रखो। सदा गुणों के गहनों से सजी सजाई हुई मूर्त, यही 16 श्रृंगार अर्थात् 16 कला सम्पन्न, सर्वगुण सम्पन्न बनो। ऐसे ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे सदा सुहागिन, सदा भाग्यवान आत्मायें बिगर श्रृंगार के कैसे सजेगी! सुहाग की निशानी भी श्रृंगार है और राज्य कुल की निशानी भी श्रृंगार है। तो आप कौन हो? राजाओं का राजा बनाने वाले के कुल के हो और सदा सुहागिन हो। तो गुणों के गहनों से सजी सजाई रूहानी मूर्त सदा बनो। ऐसी होली मनाई है?

मधुबन में होली मनाई ना? नाचना, गाना यह है मनाना। तो सदा गाते हो, सदा नाचते हो और स्थूल में भी नाचा और गाया भी। मनाया ना? गाया भी, खाया भी। योग भी लगाया, भोग भी लगाया। मन भी सदा मीठा, मुख भी सदा मीठा। तो होली हो गई ना! है ही कल्प कल्प की होली। बाकी क्या करेंगे? गुलबासी डालेंगे? गुलाब की पत्तियाँ डालेंगे? स्वयं ही गुलाब हो। बाकी कोई आशा रह गई हो तो कल गुलाब जल डाल देना। रंग में तो रंगे हुए ही हो। वह रंग तो मिटाना पड़ेगा और यह रंग तो जितना चढ़ा हुआ हो उतना अच्छा है।

ऐसे सदा रूहानी गुलाब, सदा ज्ञान के रंग में रंगे हुए, सदा प्रभु मिलन मनाने वाले, सदा गुणों के गहनों से सजी सजाई हुई मूर्त, बापदादा के समीप और समान रत्नों को, चाहे दूर हैं चाहे सम्मुख हैं, लेकिन सभी होली हंसों को बापदादा अविनाशी होली बनने की मुबारक दे रहे हैं। साथ-साथ सर्व लवलीन आत्माओं को स्नेह के रेसपान्ड में यादप्यार और सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।''

पार्टियों के साथ अव्यक्त मुलाकात (गुजरात)

1- आप सब बड़े ते बड़े व्यापारी हो ना? विश्व के अन्दर कोई भी इतना बड़ा बिजनेस नहीं कर सकता। जो होशियार बिजनेसमैन होते हैं वे कमाई को बढ़ाते जाते हैं। लौकिक में जब वृद्धि होती है तो एक-एक बिन्दी लगाते जाते हैं। आपको भी बिन्दी लगाना है। मैं भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी। बड़े ते बड़े व्यापारी हो लेकिन लगाना है बिन्दी। 68 लिखने में मुश्किल भी हो सकती है लेकिन बिन्दी तो सब लगा सकते हो। यह सहज भी है और श्रेष्ठ भी। सारे दिन में कितनी बिन्दी लगाते हो? जब क्वेश्चन होता है तो बिन्दी मिट जाती है। बिन्दी के बिना क्वेश्चन भी हल नहीं होता। तो बिन्दी लगाने में सब होशियार हो ना? बिन्दी लगाने में समय भी नहीं लगता। मैं भी बिन्दी, बाबा भी बिन्दी। इसके लिए यह भी कोई नहीं कह सकता कि समय नहीं है। सेकण्ड की बात है। तो जितने सेकण्ड मिलें बिन्दी लगाओ फिर रात को गिनो कितनी बिन्दी लगाई! किसी बात को सोचो नहीं, जो बात ज्यादा सोचते हो वो ज्यादा बढ़ती है। सब सोच छोड़ एक बाप को याद करो, यही दुआ हो जायेगी। याद में बहुत फायदे भरे हैं - जितना याद करेंगे उतना शक्ति भरती जायेगी, सहयोग भी प्राप्त होगा। और सेवा भी हो जायेगी। अच्छा -