12-03-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


चैतन्य पुष्पों में रंग, रूप, खुशबु का आधार

बागवान शिव बाबा अपने चैतन्य फूलों के प्रति बोले:-

‘‘आज बागवान बाप अपने चैतन्य बगीचे में वैरायटी प्रकार के फूलों को देख रहे हैं। ऐसा रूहानी बगीचा बापदादा को भी कल्प में एक बार मिलता है। ऐसा रूहानी बगीचा रूहानी खुशबूदार फूलों की रौनक और किसी भी समय मिल नहीं सकती। चाहे कितना भी नामीग्रामी बगीचा हो लेकिन इस बगीचे के आगे वो बगीचे क्या अनुभव होंगे! यह हीरे तुल्य वो कौड़ी तुल्य। ऐसे चैतन्य ईश्वरीय बगीचे का रूहानी पुष्प हूँ - ऐसा नशा रहता है? जैसे बापदादा हरेक फुल के रंग, रूप और खुशबू तीनों को देखते हैं ऐसे अपने रंग, रूप और खुशबू को जानते हो?

रंग का आधार है - ज्ञान की सबजेक्ट। जितना-जितना ज्ञान स्वरूप होंगे उतना रंग आकर्षण करने वाला होगा। जैसे स्थूल फूलों के रंग देखते हो, भिन्नभिन्न रंग देखते हुए कोई-कोई रंग विशेष दूर से ही आकर्षित करता है। देखते ही मुख से यह महिमा जरूर निकलेगी कि कितना सुन्दर फूल है! और सदा दिल होगी कि देखते रहें। ऐसे ही ज्ञान के रंग में रंगे हुए फूल कितने सुन्दर लगेंगे। ऐसे ही रूप और खुशबू का आधार है - याद और दिव्य गुण मूर्त। सिर्फ रंग हो और रूप न हो तो भी आकर्षण नहीं होगी। और रंग रूप हो लेकिन खुशबू न हो तो भी आकर्षित नहीं करेंगे। कहा जाता है - यह नकली है, यह असली है। सिर्फ रंग रूप वाले पुष्प डैकोरेशन के लिए ज्यादा काम आते हैं लेकिन खुशबूदार पुष्प मानव अपने समीप रखेंगे। खुशबूदार पुष्प सदा ही स्वत: ही सेवा का स्वरूप है। तो अपने से पूछो - कि मैं कौन-सा पुष्प हूँ? कहाँ भी हैं लेकिन स्वत: सेवा होती रहती है अर्थात् रूहानी वायुमण्डल बनाने के निमित्त बने हुए हैं। नजदीक आने से अर्थात् सम्पर्क में आने से खुशबू पहुँचती है वा दूर से ही खुशबू फैलाते हैं! अगर सिर्फ ज्ञान सुन लिया, योग लगाने के अभ्यासी बन गये लेकिन ज्ञान स्वरूप वा योगी जीवन वाले वा प्रैक्टिकल दिव्यगुण मूर्त न बने तो सिर्फ डैकोरेशन अर्थात् प्रजा बन जायेंगे। राजा की प्रजा डैकोरेशन ही है। तो अल्लाह के बगीचे के पुष्प तो बन गये लेकिन कौन से? यही अपनी चेकिंग करनी है। बगीचा एक है, बागवान भी एक है लेकिन फूलों में वैरायटी है। डबल विदेशी अपने को क्या समझते हैं? राज्य अधिकारी हो वा राज्य करने वालों को देखने वाले? आज बापदादा बगीचे में मिलने के लिए आये हैं। सभी के मन में रूह-रूहान करने का संकल्प रहता है। तो आज रूह-रूहान करने के लिए आये हैं। विशेष दो ग्रुप हैं ना। बापदादा को तो सभी देश-विदेश दोनों तरफ के बच्चे अति प्रिय हैं। कर्नाटक वाले और डबल विदेशी भी सदा खुशी में झूलते रहते हैं। मधुबन में आते सभी मायाजीत बनने के अनुभवी बन गये हो वा मधुबन में भी माया आती है? मधुबन में आते ही हो मायाजीत स्थिति की अनुभूति करने के लिए। तो यहाँ माया का वार नहीं लेकिन माया हार खा कर जायेगी क्योंकि मधुबन में विशेष अपनी कमाई जमा करने के लिए आते हो। डबल विदेशियों को तो डबल लाक लगा देना चाहिए।

मधुबन में आकर विशेष अपने में कौन-सी विशेषतायें धारण की? (बाबा विदेशियों से तथा कर्नाटक वालों से प्रश्न पूछ रहे थे) जैसे सहजयोगी बनने की विशेषता देखी वैसे और क्या देखा? लव भी मिला, पीस भी मिली, लाइट भी मिली। सब कुछ मिला ना! जितनी स्व को प्राप्ति होगी तो प्राप्ति वाला सेवा के सिवाए रह नहीं सकता। इसलिए प्राप्ति स्वरूप सो सेवा स्वरूप स्वत: ही हो।

कर्नाटक वालों ने भी वृद्धि अच्छी की है और विदेश में भी अच्छी वृद्धि हुई है। विदेश ने सेवाकेन्द्र और सेवाधारी भी अच्छे निकालें हैं। बापदादा भी बच्चों की हिम्मत, उमंग, उत्साह देख हर्षित होते हैं। चाहे देश में, चाहे विदेश में सेवा का उमंग उत्साह बच्चों में देख बाप खुश होते हैं। अच्छा जो सेवाकेन्द्र में रहते हैं वा सेवा में उपस्थित हैं - देश चाहे विदेश में, सब अमृतवेला शक्तिशाली रखते हो? यह ग्रुप बहुत अच्छा है लेकिन अच्छे-अच्छे बच्चों को माया भी अच्छी तरह से देखती है। माया को भी वे अच्छे लगते हैं। इसलिए मायाजीत बनना है क्योंकि निमित्त आत्मायें हो ना। इसलिए विशेष अटेन्शन। निमित्त बनी हुई आत्मायें जितनी शक्तिशाली होंगी उतना वायुमण्डल को शक्तिशाली बना सकेंगी। नहीं तो वायुमण्डल कमजोर हो जाएगा। प्रॉब्लम्स बहुत आयेंगी। शक्तिशाली वायुमण्डल होने कारण स्वयं भी विघ्न विनाशक होंगे और औरों के भी विघ्न-विनाशक अर्थ निमित्त बनेंगे। जैसे सूर्य खुद प्रकाशमय है तो अंधकार को मिटाकर औरों को रोशनी देता और किचड़ा भस्म करता है। तो जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं वे शक्ति स्वरूप विघ्न विनाशक स्थिति में स्थित रहने का अटेन्शन रखो। सिर्फ स्वयं प्रति नहीं। स्टाक भी जमा हो जो औरों को भी विघ्न-विनाशक बना सको। तो यह मैजारिटी ग्रुप मास्टर ज्ञान सूर्य है! अभी सदा यही स्मृति स्वरूप बनकर रहना है कि - मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ।' स्वयं भी प्रकाश स्वरूप और औरों का भी अंधकार मिटाना है। अच्छा-

मधुबन वाले भी बापदादा को याद हैं। मधुबन निवासी भी ब्राह्मण परिवार की नजरों में हैं। जब मधुबन की महिमा करते तो सामने मधुबन निवासी आते हैं। मधुबन की महिमा का तो पूरा भाषण बना हुआ है। जो मधुबन की महिमा है वह मधुबन निवासी हरेक अनुभव करते हो ना, कि हमारी महिमा है। अच्छा –

सदा सर्व विशेषता सम्पन्न विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं के स्वरूप द्वारा सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी आत्माओं को, सदा रंग रूप और खुशबूदार फूलों को बागवान बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

डबल विदेशी बच्चों का एक प्रश्न रहता है कि हमें डबल सर्विस (ईश्वरीय सेवा के साथ नौकरी) के लिए क्यों कहा जाता है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए बापदादा बोले-

‘‘समय कम है और प्राप्ति करने चाहते हो सबसे ज्यादा। इसके कारण तन भी लगे, मन लगे और धन भी लगे, इसलिए तीनों प्रकार की सर्विस करनी पड़े। थोड़े समय में आपका तीनों प्रकार का लाभ जमा होता है क्योंकि धन की भी मार्क्स हैं। वह मार्क्स जमा होने कारण नम्बर आगे ले लेते हो। तो आप लोगों के फायदे के लिए कहा जाता है कि अपना धन लगाना तो धन की सबजेक्ट में भी एक का पद्म मिलता है। सब तरफ से अगर एक ही समय में लाभ हो सकता है तो क्यों न करो। बाकी जब निमित्त बनी हुई आत्मायें देखेंगी, समय ही नहीं है, इसे फुर्सत ही नहीं है, अपने खाने का भी समय नहीं मिलता, यह इतना बिजी हो गये हैं तो आटोमेटिकली उससे फ्री कर देंगी। लेकिन जब तक इतने बिजी हो जाओ तब तक यह जरूरी है। यह व्यर्थ नहीं जाता है, इसकी भी मार्क्स जमा हो रही हैं। बिजी हो जायेंगे तो ड्रामा ही आपको वह नौकरी करने नहीं देगा। कोई न कोई कारण ऐसा बनेगा जो चाहो भी लेकिन कर नहीं सकेंगे। इसीलिए जैसे अभी चल रहे हो उस में ही कल्याण है। ऐसे नहीं समझो हम सरेन्डर नहीं हैं। सरेन्डर हो, डायरेक्शन प्रमाण कर रहे हो। अपने मन से करते हो तो सरेन्डर नहीं हो। इसमें अगर अपनी मत चलाते हो, कि नहीं! मैं तो नहीं करूंगी, और ही मनमत है। इसलिए स्वयं को सदा हल्का रखो। जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं वह अगर कहती हैं तो समझो इसमें हमारा कल्याण है। इसमें आप निश्चिन्त रहो। इसमें जो ज्यादा सोचेंगे - मेरा शायद पार्ट नहीं है, मेरे को क्यों नहीं कहा जाता है, यह फिर व्यर्थ है। समझा।

टीचर्स के प्रति:- टीचर्स के लिए सेवास्थान कौन-सा है? टीचर्स सदा विश्व की स्टेज पर हैं। आपका सेवास्थान है - विश्व स्टेज। तो स्टेज पर समझने से हर कर्म अटेन्शन से करेंगे। जब कोई प्रोग्राम करते हो तो स्टेज पर बैठते समय कितना अटेन्शन रहता है। अलबेला नहीं होते। तो टीचर्स बनना अर्थात् विश्व की स्टेज पर रहना। सेन्टर पर दो बहनें रहती हों, लेकिन दो नहीं, विश्व के आगे हो। अच्छा-

ओम् शान्ति