14-03-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


बापदादा द्वारा देश विदेश का समाचार

बापदादा बोले:-

‘‘आज बापदादा बच्चों के साथ सैर करने गये थे। बापदादा को सारी सृष्टि की परिक्रमा लगाने में कितना समय लगता होगा? जितने समय में चाहें उतने समय में परिक्रमा को पूरा कर सकते हैं। चाहे विस्तार से करें, चाहे सार में करें। आज डबल विदेशियों से मिलने का दिन है ना। इसलिए सैर समाचार सुनाते हैं। विदेश में क्या देखा और देश में क्या देखा?

कुछ समय पहले विदेश की विशेषता की लहर भारत में आई - वह क्या थी? जैसे विदेश में अल्पकाल के सुख के साधनों की मस्ती में सदा मस्त रहते थे - ऐसे भारतवासियों ने भी विदेशी सुख के साधनों को खूब अपने प्रति कार्य में लाया। खूब विदेशी साधनों द्वारा अल्पकाल के सुखों में मस्त होने की अनुभूति की। और अब भी कर रहे हैं। भारत वालों ने अल्पकाल के साधनों की कापी की और कापी करने के कारण अपनी असली शक्ति को खो दिया। रूहानियत से किनारा कर लिया और विदेशी सुख के साधनों का सहारा ले लिया। और विदेश ने क्या किया? समझदारी का काम किया। भारत की असली रूहानी शक्ति ने उन्हों को विदेश में आकर्षित किया। इसका परिणाम हरेक नामधारी रूहानी शक्ति वाले के पास अथवा निमित्त गुरूओं के पास विदेशी फालोअर्स ज्यादा देखने में आयेंगे। विदेशी आत्मायें नकली साधनों को छोड़कर असलियत की तरफ, रूहानियत की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रही हैं और भारतवासी नकली साधनों में मस्त हो गये हैं। अपनी चीज को छोड़ पराई चीज के तरफ जा रहे हैं और विदेशी आत्मायें असली चीज को ढूँढ़ने, परखने और पाने की ज्यादा इच्छुक हैं।

तो आज बापदादा देश-विदेश का सैर कर रहे थे। उस सैर में यही देखा कि भारतवासी क्या कर रहे हैं और विदेशी क्या कर रहे हैं? भारतवासियों को देख बापदादा को तरस आ रहा था कि इतने ऊँचे कुल की नम्बरवन धर्म की आत्मायें, पीछे के धर्म वालों की छोड़ी हुई चीजों को अपनाने में ऐसे मस्त हो गये हैं जो अपनी विशेष वस्तु को भूल गये हैं। इस कारण भारत रूपी घर में बैठे हुए, भारत रूपी घर में आये हुए श्रेष्ठ मेहमान बाप को भी नहीं जानते और विदेश की आत्मायें दूर बैठे भी सिर्फ सन्देश सुनते ही पहचान कर और पहुँच गई हैं। तो बापदादा देख रहे हैं कि डबल विदेशी बच्चों की परखने की आँख बहुत तेज है। दूर से परखने की आँख द्वारा, अनुभव द्वारा बाप देख लिया और पा लिया। और भारतवासी, उनमें भी बापदादा को आबू निवासियों पर ज्यादा तरस है जो पास होते भी परखने की आँख नहीं। परखने की आँख से अंधे रह गये ना! ऐसे बच्चों को देख तरस तो आयेगा ना! तो डबल विदेशियों की कमाल देख रहे थे।

दूसरा क्या देखा है कि आजकल जैसे भारत गरीब है ऐसे अब लास्ट समय नजदीक होने के कारण विदेशियों में भी सम्पन्नता में कमी आ गई है। जैसे वृक्ष जब हरा भरा होता है तो फल-फूल सब लगे हुए होते हैं लेकिन जब वृक्ष सूखने शुरू होता है तो सब फल फूल भी सूखने शुरू हो जाते हैं। तो यह देश की प्राप्ति रूपी विशेषता जिससे प्रजा सुखी रहे, खुश रहे, शान्ति का वातावरण रहे वह फल फूल सूखने लग गये हैं। अभी विदेश में भी नौकरी सहज नहीं मिलती। पहले कब विदेश में यह प्रॉब्लम सुनी थी? तो यह भी निशानी है सुख के साधन और शान्ति के फल सूख रहे हैं। भारत रूपी मुख्य तना सूख रहा है उसका प्रभाव मुख्य शाखाओं पर भी पड़ना शुरू हो गया है। यह क्रिश्चयन धर्म लास्ट की मुख्य बड़ी शाखा है। वृक्ष के चित्र में क्रिश्चयन धर्म कौन-सी शाखा है? जो मुख्य शाखायें दिखाते हो उसमें तो लास्ट हुआ ना। उस शाखा तक सम्पन्नता के प्राप्ति की हरियाली सूख गई है। यह निशानी है सारे वृक्ष के जड़जडीभूत अवस्था की। तो सारे विश्व में अल्पकाल के प्राप्ति रूपी फल-फूल सूखे हुए देखे। सिर्फ बाकी दो बातें हैं –

एक - मन से, मुख से चिल्लाना और दूसरा कैसे भी मजबूरी से जीवन को, देश को चलाना। चिल्लाना और कार्य से चलाना। यह दो काम बाकी रह गये हैं। खुशी-खुशी से चलना वह समाप्त हो गया है। कैसे भी चलाना है यह रह गया है। विदेश में भी यह रूपरेखा बन गई है। तो यह भी क्या निशानी हुई? मजबूरी से चलाना कहाँ तक चलेगा! अब जो चिल्ला रहे हैं ऐसे विश्व को क्या करना है? मजबूरी से चलाने वालों को प्राप्ति के पंख दे उड़ाना है। कौन उड़ा सकेगा? जो स्वयं उड़ती कला में होगा। तो उडती कला में हो? उड़ती कला वा चढ़ती कला - किस कला में हो? चढ़ती कला भी नहीं, अभी उड़ती कला चाहिए। कहाँ तक पहुँचे हो? डबल विदेशी क्या समझते हैं? मैजारिटी तो बाप समान शिक्षक क्वालिटी हैं ना। तो टीचर अर्थात् उड़ती कला वाले। ऐसे ही हो ना?

अच्छा - आज तो सिर्फ सैर समाचार सुनाया। अब देश-विदेश वाले प्रैक्टिकल में निशानियाँ स्पष्ट देख रहे हैं। आजकल जो बात होती तो कहते हैं 100 वर्ष पहले हुई थी। सब विचित्र बातें हो रही हैं। क्योंकि यह विचित्र बाप को प्रत्यक्ष करेंगी। सबके मुख से अभी यह आवाज निकल रहा है कि अब क्या होगा? यह क्वेश्चन मार्क सबकी बुद्धि में स्पष्ट हो गया है। अब फिर यह बोल निकलेंगे कि जो होना था वह हो गया। बाप आ गया। क्वेश्चन मार्क्स समाप्त हो, फुल स्टॉप लग जाएगा। जैसे मथनी से मक्खन निकाला जाता है तो पहले हलचल होती है बाद में मक्खन निकलता है। तो यह क्वेश्चन मार्क रूपी हलचल के बाद प्रत्यक्षता का मक्खन निकलेगा। अब तेजी से हलचल शुरू हो गई है। चारों ओर अब प्रत्यक्षता का मक्खन विश्व के आगे दिखाई देगा। लेकिन इस मक्खन को खाने वाले कौन? तैयार हो ना खाने के लिए? सभी आप फरिश्तों का आह्वान कर रहे हैं। अच्छा –

सर्व अप्राप्त आत्माओं को सर्व प्राप्ति कराने वाले, सर्व को परखने का नेत्र दान करने वाले महादानी, सर्व को सन्तुष्टता का वरदान देने वाले वरदानी सन्तुष्ट आत्मायें, सदा स्व के प्राप्ति के पंखों द्वारा अन्य आत्माओं को उड़ाने वाले, सदा उड़ती कला वाले, सदा स्व द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, विश्व के आगे प्रख्यात होने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।''

विदेशी बच्चों के साथ- अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

सदा अपने को सर्व प्राप्ति सम्पन्न अनुभव करते हो? सर्व प्राप्तियों की अनुभूति है? जिस आत्मा को सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होगी, उनकी निशानी क्या दिखाई देगी? वह सदा सन्तुष्ट होगा। उनके चेहरे पर सदा प्रसन्नता की निशानी दिखाई देगी। उनके चेहरे से दिखाई देगा कि यह सब कुछ पाई हुई आत्मा है। जैसे देखो लौकिक रीति से जो राजकुमार, राजकुमारी होते हैं वा ऊँचे कुल के होते हैं तो उनके चेहरे से दिखाई देता कि यह भरपूर आत्मायें हैं। ऐसे आप रूहानी कुल की आत्माओं के चेहरे से दिखाई दे - जो किसको नहीं मिला है वह इनको मिला है। ऐसे अनुभव होता है कि हमारी चलन और चेहरा बदल गया है चेहरे पर प्राप्ति की चमक आ गई है? डबल विदेशियों को डबल चांस मिला है तो सेवा भी डबल करनी है। डबल सेवा कैसे करेंगे? सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन चलन से भी और चेहरे से भी। जैसे स्वयं परवाने बने हो, ऐसे अनेक परवानों को शमा के पास लाने वाली आत्मायें हो। तो आपकी उड़ान देखते ही अन्य परवाने भी आपके पीछे-पीछे उड़ने लग जायेंगे। जैसे आप सभी हर बात की गहराई में जाते हो, ऐसे हर गुण की अनुभूति की गहराई में जाओ। जितना गहराई में जायेंगे उतना रोज नया अनुभव कर सकेंगे। जैसे शान्त स्वरूप का अनुभव रोज करते हो लेकिन हर रोज नवीनता का अनुभव करो। नया अनुभव तब होगा जब एकान्तवासी होंगे। एकान्तवासी अर्थात सदा स्थूल एकान्त के साथ-साथ एक के अन्त में सदा रहना।

एक ‘‘बाबा'' शब्द भी जो बार-बार कहते हो, वह हर बार नया अनुभव होना चाहिए। जैसे शुरू में जब आये तब भी बाबा शब्द कहते थे, मधुबन में आये तब भी यही बोला और अब जब जायेंगे तब भी बाबा' शब्द बोलेंगे लेकिन पहले बोलने में और अब के बोलने में कितना अन्तर होगा! यह अनुभव तो है ना? बाबा शब्द तो वही है लेकिन जिगरी प्राप्ति के आधार पर वही बाबा शब्द अनुभव में आगे बढ़ता गया। तो फर्क पड़ता है ना! ऐसे सब गुणों में भी रोज नया अनुभव करो। शान्त स्वरूप तो हो लेकिन शान्ति की अनुभूति किस प्वाइन्ट के आधार पर होती है, जैसे देखो मैं आत्मा परमधाम निवासी हूँ, इससे भी शान्ति की अनुभूति होती हैं और - मैं आत्मा सतयुग में सुख-शान्ति स्वरूप हूँगी उसका अनुभव देखो तो और होगा। ऐसे ही कर्म करते हुए अशान्ति के वातावरण में होते भी - मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, उसकी अनुभूति करते हो तो उसका अनुभव और होगा। फर्क हो गया ना तीनों में। हैं तो शान्त स्वरूप। ऐसे रोज उस शान्त स्वरूप की अनुभूति में भी प्रोग्रेस हो। कब किस प्वाइन्ट से शान्त स्वरूप की अनुभूति करो, कभी किससे तो रोज का नया अनुभव होगा और सदा इसी में बिजी रहेंगे कि नया-नया मिले। नहीं तो क्या होता है चलते- चलते वही याद की विधि, वही मुरली सुनने और सुनाने की विधि, फिर वही बात कहाँ-कहाँ कामन अनुभव होने लगती है। इसलिए फिर उमंग भी जैसे सदा रहता है वैसे ही रहता है, आगे नहीं बढ़ता। और इसकी रिजल्ट में फिर कहाँ अलबेलापन भी आ जाता है। यह तो मुझे आता ही है, यह तो जानते ही हैं! तो उड़ती कला के बजाय ठहरती कला हो जाती है। इसलिए स्वयं तथा जिन आत्माओं के लिए निमित्त बनते हो, उन्हें सदा नवीनता का अनुभव कराने के लिए यह विधि जरूर चाहिए। समझा! आप सब मैजारिटी सेवा के निमित्त आत्मायें हो ना तो यह विशेषता जरूर धारण करनी है। रोज कोई न कोई प्वाइन्ट निकालो - शान्त स्वरूप के अनुभूति की प्वाइन्टस क्या हैं? ऐसे प्रेम स्वरूप, आनन्द स्वरूप सबकी विशेष प्वाइन्ट बुद्धि में रखते हुए रोज नया-नया अनुभव करो। सदा ऐसे समझो कि आज नया अनुभव करके औरों को कराना है। फिर अमृतवेले बैठने में भी बड़ी रूचि होगी। नहीं तो कभी-कभी सुस्ती की लहर आ जाती है। जहाँ नई चीज मिलती है वहाँ सुस्ती नहीं होती है। और वही-वही बातें हैं तो सुस्ती आने लगती है। तो समझा क्या करना है? तरीका समझ में आया? अभी कोई प्रश्न पूछना है तो पूछो - विदेशियों को वैसे भी वैरायटी अच्छी लगती है। जैसे पिकनिक में नमकीन भी चाहिए, मीठा भी चाहिए। और वैरायटी प्रकार का चाहिए तो जब भी अनुभव करने बैठते हो तो समझो अभी बापदादा से वैरायटी पिकनिक करने जा रहे हैं। पिकनिक का नाम सुनकर ही फुर्त हो जायेंगे। सुस्ती भाग जायेगी। वैसे भी आप लोगों को पिकनिक करना, बाहर में जाना अच्छा लगता है ना! तो चले जाओ बाहर, कभी परमधाम में चले जाओ, कभी स्वर्ग में चले जाओ, कभी मधुबन में आ जाओ, कभी लण्डन सेन्टर में चले जाओ, कभी आस्ट्रेलिया पहुँच जाओ। वैरायटी होने से रमणीकता में आ जायेंगे। अच्छा-

‘‘विदेशी बच्चों द्वारा पूछे गये कुछ प्रश्न - बापदादा के उत्तर''

प्रश्न - चलते-चलते पुरूषार्थ मे जब रूकावट आती है तो क्या करना चाहिए? रूकावट आने का कारण क्या होता है?

उत्तर - जब कई प्रकार के पेपर्स सामने आते हैं, तो उन पेपर्स का सामना करने की शक्ति न होने के कारण पुरूषार्थ में रूकावट आ जाती है, ऐसे समय पर दूसरों का सहयोग लेना जरूरी होता है। जैसे कार में बैटरी जब थोड़ी ढीली हो जाती है, कार अपने आप नहीं चलती है तो दूसरों से थोड़ा धक्का लगवाते हैं ना! तो जिस भी आत्मा में आपका फेथ हो और समझो इनसे हमको मदद मिल सकती है तो उनसे थोड़ा-सा सहयोग लेकर आगे बढ़ जाना चाहिए। पहले उसे अपनी बात स्पष्ट सुनाना चाहिए कि ऐसे है, फिर सहयोग मिलने से चल पड़ेंगे। क्योंकि होता क्या है - जिस समय ऐसी स्टेज आती है उस समय डायरेक्ट बाप से सहयोग लेने की हिम्मत नहीं होती है, इसलिए फिर साकार में थोड़ासा सहयोग लेंगे तो फिर डायरेक्ट लेने में मदद मिल जायेगी।

प्रश्न - बाबा के साथ हम बच्चे भी चक्कर पर (विश्व परिक्रमा पर) कैसे जा सकते हैं?

उत्तर - इसके लिए बाप समान विश्व कल्याणकारी की बेहद की स्टेज में स्थित होना पड़े जब उस स्टेज में स्थित होंगे तो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे चित्र दिखाते हो - ग्लोब के ऊपर श्रीकृष्ण बैठा हुआ है, ऐसे मैं विश्व के ग्लोब पर बैठा हूँ। तो आटोमेटिकली विश्व का चक्र लग जायेगा। जैसे बहुत ऊँचे स्थान पर चले जाते हो तो चक्कर लगाना नहीं पड़ता लेकिन एक स्थान पर रहते सारा दिखाई देता है। ऐसे जब टॉप की स्टेज पर, बीजरूप स्टेज पर, विश्व कल्याणकारी स्थिति में स्थित होंगे तो सारा विश्व ऐसे दिखाई देगा जैसे छोटाबाल' है। तो सेकण्ड में चक्कर लगाकर आयेंगे क्योंकि ऊँची स्टेज पर रहेंगे। बाकी कभी-कभी दिव्य दृष्टि द्वारा अनुभव होता है प्रैक्टिकल चक्कर लगाने का। वह फिर सूक्ष्म आकारी स्वरूप द्वारा। जैसे प्लेन में चक्कर लगाकर आओ वैसे आकारी रूप द्वारा विश्व का चक्कर लगा सकते हो। दोनों प्रकार से चक्र लगा सकते। जब हैं ही विश्व के रचयिता के बच्चे तो सारी रचना का चक्र तो लगायेंगे ना!

प्रश्न - कई बार योग में बहुत अच्छी-अच्छी टाचिंग होती हैं लेकिन यह बाबा की ही टाचिंग है, उसका पता कैसे चले?

उत्तर - 1- बाबा की टाचिंग हमेशा पॉवरफुल होगी और अनुभव होगा कि यह मेरी शक्ति से कुछ विशेष शक्ति है।
2- जो बाबा की टाचिंग होगी उसमें सहज सफलता की अनुभूति होगी।

3- जो बाबा की टाचिंग होगी उसमें कभी भी क्यों, क्या का क्वेश्चन नहीं होगा। बिल्कुल स्पष्ट होगा। तो इन बातों से समझ लो कि यह बाबा की टाचिंग है।

प्रश्न- हम बुद्धि से सरेन्डर हैं या नहीं, उसकी परख क्या है?

उत्तर- बुद्धि से सरेन्डर का अर्थ है - बुद्धि जो भी निर्णय करे वह श्रीमत के अनुकूल हो। क्योंकि बुद्धि का कार्य है निर्णय करना। तो बुद्धि में श्रीमत के सिवाए और कोई बात आये ही नहीं। बुद्धि में सदा बाबा की स्मृति होने के कारण आटोमेटिकली निर्णय शक्ति वही होगी और उसकी प्रैक्टिकल निशानी यह होगी - कि उनकी जजमेन्ट सत्य होगी तथा सफलता वाली होगी। उनकी बात स्वयं को भी जँचेगी और औरों को भी जँचेगी कि बात बड़ी अच्छी कही है। सभी महसूस करेंगे कि इनकी बुद्धि बड़ी क्लीयर और सरेन्डर है। अपनी बुद्धि पर सन्तुष्टता होगी। क्वेश्चन नहीं होगा कि पता नहीं राइट है या रांग है।

प्रश्न- कई निश्चयबुद्धि बच्चे 4-5 साल चलने के बाद चले गये, यह लहर क्यों? इस लहर को कैसे समाप्त करें?

उत्तर- जाने का विशेष कारण - सेवा में बहुत बिजी रहते है लेकिन सेवा और स्व का बैलेन्स खो देते हैं। तो जो अच्छे-अच्छे बच्चे रूक जाते हैं उन्हों का एक तो यह कारण होता और दूसरा उन्हों का कोई विशेष संस्कार ऐसा होता है जो शुरू से ही उसमें कमजोर होते हैं लेकिन उसे छिपाते हैं, युद्ध करते रहते हैं अपने आप से। बापदादा को वा निमित्त बनी हुई आत्माओं को अपनी कमज़ोरी स्पष्ट सुनाकर उसे खत्म नहीं करते। छिपाने के कारण वह बीमारी अन्दर ही अन्दर विकराल रूप लेती जाती है और आगे बढ़ने का अनुभव नहीं होता, फिर दिलशिकस्त हो छोड़ देते हैं। तीसरा कारण यह भी होता - कि आपस में संस्कार नहीं मिलते हैं। संस्कारों का टक्कर हो जाता है।

अब इस लहर को समाप्त करने के लिए एक तो सेवा के साथ-साथ स्व का फुल अटेन्शन चाहिए। दूसरा जो भी आते हैं उन्हों को बापदादा वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे बिल्कुल क्लीयर होना चाहिए। अगर सर्विस में थोड़ा भी अनुभव करो टू मच' है तो अपनी उन्नति का साधन पहले सोचना चाहिए और निमित्त बनी हुई आत्माओं को भी अपनी राय दे देनी चाहिए। जो नये आते हैं उन्हों को पहले इन बातों का अटेन्शन दिलाना चाहिए। अपने संस्कारों की चेकिंग पहले से ही करनी चाहिए। अगर किसी से अपना संस्कार टक्कर खाता है तो उससे किनारा कर लेना अच्छा है। जिस सरकमस्टांस में संस्कारों का टक्कर होता है, उनमें अलग हो जाना ही अच्छा है।

प्रश्न- अगर किसी स्थान पर सेवा की रिजल्ट नही निकलती है तो अपनी कमी है या धरनी ऐसी है?

उत्तर- पहले तो सेवा के सब साधन सब प्रकार से यूज़ करके देखो। अगर सब तरह से सेवा करने के बाद भी कोई रिजल्ट नहीं तो धरनी का फर्क हो सकता है। अगर अपनी कोई कमज़ोरी है, जिस कारण सर्विस नहीं बढ़ती तो जरूर अन्दर मे दिल खाती है कि हमारे कारण सेवा नहीं होती। ऐसे समय में फिर एक दो का सहयोग ले फोर्स दिलाना चाहिए। यदि अपना कारण होगा तो उस धरनी से निकलने वाली आत्मायें भी ढीली ढाली होंगी। तीव्र पुरूषार्थ नहीं। अच्छा।