22-03-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


राज्यसत्ता और धर्मर्स्सत्ता के अध्ध्धिकारी बच्चों से बापदादा की मुलाकात

बापदादा अपने सर्व अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए जो गायन है कि राज्य सत्ता और धर्म की सत्ता - दोनों सत्ता एक के हाथ में रहती है। यह महिमा आपके भविष्य प्रालब्ध रूप की गाई हुई है। लेकिन भविष्य प्रालब्ध का आधार वर्तमान श्रेष्ठ जीवन है। बापदादा चारों ओर के बच्चों को देख रहे हैं कि राज्य सत्ता और धर्म सत्ता दोनों कहाँ तक प्राप्त की हैं! संस्कार सब इस समय ही आत्मा में भरते हैं। अब के राजे वही भविष्य में राज्य अधिकारी बन सकते हैं। अब की धारणा स्वरूप आत्मायें ही धर्म सत्ता प्राप्त कर सकती हैं। तो दोनों ही सत्तायें हरेक ने अपने में कहाँ तक धारण की है?

राज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी, अथार्टी स्वरूप। राज्य सत्ता वाली आत्मा अपने अधिकार द्वारा जब चाहे, जैसे चाहे वैसे अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को चला सकती है। यह अथार्टी राज्य सत्ता की निशानी है। दूसरी निशानी - राज्य सत्ता वाले हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकते हैं। राज्य सत्ता अर्थात् मात-पिता के स्वरूप में अपनी प्रजा की पालना करने की शक्ति वाला। राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं भी सदा सर्व में सम्पन्न और औरों को भी सम्पन्नता में रखने वाले। राज्य सत्ता अर्थात् विशेष सर्व प्राप्तियाँ होंगी - सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों के खजानों से भरपूर। स्वयं भी और सर्व भी खजानों से भरपूर। राज्य सत्ता वाले अर्थात् अधिकारी आत्मायें बने हो? मातपिता के समान पालना की विशेषता अनुभव करते हो? जो भी आत्मायें सम्बन्ध वा सम्पर्क में आवें, वे अनुभव करें कि यही श्रेष्ठ आत्मायें हमारे पूर्वज' हैं। इन्हीं आत्माओं द्वारा जीवन का सच्चा प्रेम, और जीवन की उन्नति का साधन प्राप्त हो सकता है क्योंकि पालना द्वारा ही प्रेम और जीवन की उन्नति प्राप्त होती है। पालना द्वारा आत्मा योग्य बन जाती है। छोटा सा बच्चा भी पालना द्वारा अपनी जीवन की मंजिल को पहुँचने के लिए हिम्मतवान बन जाता है। ऐसे रूहानी पालना द्वारा आत्मा निर्बल से शक्ति स्वरूप बन जाती है। अपनी मंजिल की ओर तीव्रगति से पहुंचने की हिम्मतवान बन जाती है। पालना में वह सदा प्रेम के सागर बाप द्वारा सच्चे अथाह प्रेम की अनुभूति करती है। ऐसे राज्य सत्ता की निशानियां अपने में अनुभव करते हो? अधीनता के संस्कार परिवर्तन हो, अधिकारीपन के संस्कार अनुभव करते हो? राज्य सत्ता के संस्कार भर गये हैं? निशानियाँ तो यहाँ दिखाई देंगी वा भविष्य में? राज्य सत्ता की एक और भी विशेषता है, जानते हो? ‘सदा अटल और अखण्ड राज्य।' यह महिमा अपने राज्य की करते हो ना! यह भी निशानी चेक करो कि राज्य सत्ता की जो भी निशानियाँ हैं वह अटल और अखण्ड हैं? सत्ता खण्डित तो नही होती! अभी-अभी अधिकारी, अभी-अभी अधीन होगा तो उनको अखण्ड कहा जायेगा? इससे ही अपने आपको जान सकते हो कि मेरी प्रालब्ध क्या है - राज्य अधिकारी हूँ वा राज्य के अन्दर रहने वाला हूँ?

इसी रीति - धर्म सत्ता अर्थात् हर धारणा की शक्ति स्वयं में अनुभव करने वाली आत्मा। जैसे पवित्रता के धारणा की शक्ति अनुभव करने वाली। पवित्रता की शक्ति से सदा परमपूज्य बन जाते। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन कर लेते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। पवित्रता की शक्ति आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता की शक्ति नेत्रहीन को तीसरा नेत्र दे देती है। पवित्रता की शक्ति से इस सारे सृष्टि रूपी मकान को गिरने से थमा सकते हैं। पवित्रता पिलर्स हैं - जिसके आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। पवित्रता लाइट का क्राउन है। ऐसे पवित्रता की धारणा - यह है धर्म सत्ता'। इसी प्रकार हर गुण की धारणा, हर गुण की विशेषता आत्मा में समाई हुई हो। इसको कहा जाता है धर्म सत्ता'। धर्म सत्ता अर्थात् धारणा की सत्ता। ऐसी धर्म सत्ता वाली आत्मायें बने हो? धर्म में दो विशेषतायें होती हैं। धर्म सत्ता स्व को और सर्व को सहज परिवर्तन कर लेती है। परिवर्तन शक्ति स्पष्ट होगी। सारे चक्र में देखो जो भी धर्म सत्ता वाली आत्मायें आई हैं उन्हों की विशेषता है - मनुष्य आत्माओं को परिवर्तन करना। साधारण मनुष्य से परिवर्तन हो कोई बौद्धी, कोई क्रिश्चयन बना, कोई मठ पंथ वाले बने। लेकिन परिवर्तन तो हुए ना! तो धर्म सत्ता अर्थात् परिवर्तन करने की सत्ता। पहले स्वयं को फिर औरों को। धर्म सत्ता की दूसरी विशेषता है - परिपक्वता'। हिलने वाले नहीं। परिपक्वता की शक्ति द्वारा ही परिवर्तन कर सकेंगे। चाहे सितम हों, ग्लानी हो, आपोजिशन हो लेकिन अपनी धारणा में परिपक्व रहें। यह हैं धर्म सत्ता की विशेषतायें। धर्म सत्ता वाली हर कर्म में निर्मान। जितना ही गुणों की धारणा सम्पन्न होगा अर्थात् गुणों रूपी फल स्वरूप होगा उतना ही फल सम्पन्न होते भी निर्मान होगा। अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा ही हर गुण को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। जो भी ब्राह्मण कुल की धारणायें हैं उन सर्व धारणाओं की शक्ति होना अर्थात् धर्म सत्ताधारी होना। तो राज्य सत्ता और धर्म सत्ता दोनों संस्कार हर आत्मा में भर गये हैं! दोनों का बैलेन्स है?

आज बापदादा सभी बच्चों का यह चार्ट देख रहे थे कि कहाँ तक धर्म सत्ता और राज्य सत्ता अधिकारी बने हैं! नम्बरवार होंगे वा सभी एक जैसे होंगे? मेरा नम्बर क्या है यह जान सकते हो? यहाँ सब राजे बैठे हो ना! प्रजा बनाने वाले हो ना! स्वयं तो प्रजा नहीं हो ना! तो सभी अपने को ऐसे राज्य सत्ता और धर्म सत्ता अधिकारी बनाओ। समझा - राज्य वंश की निशानियाँ क्या हैं? देहली और महाराष्ट्र जोन वाले बैठे हैं ना! राजधानी वाले भी राज्य अधिकारी बनेंगे ना! और महाराष्ट्र वाले महान बनेंगे। महान अर्थात् राज्य अधिकारी। तो दोनों ही स्थान की महान श्रेष्ठ आत्मायें आई हुई हैं। और विदेशी क्या बनेंगे? राज्य करने वाले वा राज्य को देखने वाले बनेंगे? सबसे आगे जायेंगे ना! अच्छा –

ऐसे राज्य सत्ता और धर्म सत्ता अधिकारी, सदा सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बनाने वाले, परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सारा कल्प महिमा और पूजन होने वाली पवित्र आत्मायें, सदा अपने पवित्रता के गुण द्वारा सर्व को गुणवान बनाने वाली गुण मूर्त आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

पार्टियों के साथ:-

1. समय के प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करो:- अभी समय के प्रमाण परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए। जब समय तीव्रगति में जा रहा है और परिवर्तन करने वाले तीव्रगति में नहीं होंगे तो समय परिवर्तन हो जायेगा और स्वयं कमी वाले ही रह जायेंगे। कमी वाली आत्माओं की निशानी क्या दिखाई है? कमान। तो कमानधारी बनना है वा छत्रधारी बनना है? सूर्यवंशी बनना है ना? तो सूर्य सदा तेज होता है और तीव्रगति में कार्य करता है। सूर्य के अन्तर में चन्द्रमा शीतल गाया जाता है। तो पुरूषार्थ में शीतल नहीं होना है। पुरूषार्थ में शीतल हुए तो चन्द्रवंशी हो जायेंगे। सूर्यवंशी की निशानी है - तीव्र पुरूषार्थ। सोचा और किया। ऐसे नहीं, सोचा एक वर्ष पहले और किया दूसरे वर्ष में। तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला वाले। अभी चढ़ती कला का समय भी चला गया। अब तो आगे बढ़ने का बहुत सहज साधन मिला हुआ है सिर्फ एक शब्द की गिफ्ट है - वह कौन सी? ‘मेरा बाबा', यही एक शब्द ऐसी लिफ्ट है जो एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर जा सकते हो। क्या यह लिफ्ट यूज़ करने नहीं आती? अब लिफ्ट का जमाना है फिर सीढ़ी क्यों चढ़ते हो? लिफ्ट में कोई थकावट नहीं होती। सोचा और पहुँचा। तो कौन हो? एक ही शब्द लिफ्ट है - ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं, एक शब्द एक नम्बर में पहुँचा देगा। जब मेरा बाबा हुआ तो मैं उसमें समा गई।' इतनी सहज लिफ्ट यूज़ करो - यूज़ करने वाले पहुँच जाते और देखने वाले, सोचने वाले रह जाते। तो अब एक शब्द के स्मृति स्वरूप होकर सदा समर्थ आत्मा बन जाओ।

सदा हर कदम आगे बढ़ाते दूसरों को भी आगे बढ़ाते रहो। जितना स्वयं सम्पन्न होंगे उतना औरों को भी सम्पन्न बना सकेंगे।

अच्छा - ओमशान्ति।