06-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


निरंतर सहज योगी बनने की सहज युक्ति
याद और सेवा की धुन में लगाने वाले
, सदा स्नेह के बन्धन में बाँधने वाले माता-पिता अपने सिकीलधे बच्चों प्रति बोले –


आज बागवान अपने वैरायटी खुशबूदार फूलों के बगीचे को देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा वैरायटी रूहानी पुष्पों की खुशबू और रूप की रंगत देख हरेक की विशेषता के गीत गा रहे हैं। जिसको भी देखो हरेक एक दो से प्रिय और श्रेष्ठ है। नम्बरवार होते हुए भी बापदादा के लिए लास्ट नम्बर भी अति प्रिय है। क्योंकि चाहे अपनी यथा शक्ति मायाजीत बनने में कमज़ोर है फिर भी बाप को पहचान दिल से एक बार भी मेरा बाबाकहा तो बापदादा रहम के सागर ऐसे बच्चे को भी एक बार के रिटर्न में पदमगुणा उसी रूहानी प्यार से देखते कि मेरे बच्चे विशेष आत्मा हैं। इसी नजर से देखते हैं फिर भी बाप का तो बना ना! तो बापदादा ऐसे बच्चे को भी रहम और स्नेह की दृष्टि द्वारा आगे बढ़ाते रहते हैं क्योंकि मेराहै। यही रूहानी मेरे-पन की स्मृति ऐसे बच्चों के लिए समर्थी भरने की आशीर्वाद बन जाती है। बापदादा को मुख से आशीर्वाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि शब्द, वाणी सेकेण्ड नम्बर है लेकिन स्नेह का संकल्प शक्तिशाली भी है और नम्बरवन प्राप्ति का अनुभव कराने वाला है। बापदादा इसी सूक्ष्म स्नेह के संकल्प से मात पिता दोनों रूप से हर बच्चे की पालना कर रहे हैं। जैसे लौकिक में सिकीलधे बच्चे की माँ बाप गुप्त ही गुप्त बहुत शक्तिशाली चीजों से पालना करते हैं। जिसको आप लोग खोरश (खातिरी) कहते हो। तो बापदादा भी वतन में बैठे सभी बच्चों की विशेष खोरश (खातिरी) करते रहते हैं। जैसे मधुबन में आते हो तो विशेष खोरश (खातिरी) होती है ना। तो बापदादा भी वतन में हर बच्चे को फरिश्ते आकारी रूप में आह्वान कर सम्मुख बुलाते हैं और आकारी रूप में अपने संकल्प द्वारा सूक्ष्म सर्व शक्तियों की विशेष बल भरने की खातिरी करते हैं। एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा शक्ति की प्राप्ति करना। यह है मात-पिता के स्नेह की पालना के रूप में विशेष खातिरी करना। जैसे यहाँ भी किस-किस की खातिरी करते हो। नियम प्रमाण रोज के भोजन से विशेष वस्तुओं से खातिरी करते हो ना। एक्स्ट्रा देते हो। ऐसे ब्रह्मा माँ का भी बच्चों में विशेष स्नेह है। ब्रह्मा माँ वतन में भी बच्चों की रिमझिम बिना रह नहीं सकते। रूहानी ममता है। तो सूक्ष्म स्नेह के आह्वान से बच्चों के स्पेशल ग्रुप इमर्ज करते हैं। जैसे साकार में याद हैं ना, हर ग्रुप को विशेष स्नेह के स्वरूप में अपने हाथों से खिलाते थे और बहलाते थे। वही स्नेह का संस्कार अब भी प्रैक्टिकल में चल रहा है। इसमें सिर्फ बच्चों को बाप समान आकारी स्वरूपधारी बन अनुभव करना पड़े। अमृतवेले ब्रह्मा माँ - ‘‘आओ बच्चे, आओ बच्चे’’ कह विशेष शक्तियों की खुराक बच्चों को खिलाते हैं। जैसे यहाँ घी पिलाते थे और साथ-साथ एक्सरसाइज भी कराते थे ना! तो वतन में भी घी भी पिलाते अर्थात् सूक्ष्म शक्तियों की (ताकत की) चीजें देते और अभ्यास की एक्सरसाइज भी कराते हैं। बुद्धि बल द्वारा सैर भी कराते हैं। अभी-अभी परमधाम, अभी-अभी सूक्ष्मवतन। अभी-अभी साकारी सृष्टि, ब्राह्मण जीवन। तीनों लोकों में दौड़ की रेस कराते हैं। जिससे विशेष खातिरी जीवन में समा जाए। तो सुना ब्रह्मा माँ क्या करते हैं।

डबल विदेशी बच्चों को वैसे भी छुट्टी के दिनों में कहाँ दूर जाकर एक्जरशन करने की आदत हैं। तो बापदादा भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष निमंत्रण दे रहे हैं। जब भी फ्री हो तो वतन में आ जाओ। सागर के किनारे मिट्टी में नहीं जाओ। ज्ञान सागर के किनारे आ जाओ। बिगर खर्चे के बहुत प्राप्ति हो जायेगी। सूर्य की किरणें भी लेना, चन्द्रमा की चाँदनी भी लेना, पिकनिक भी करना और खेल कूद भी करना। लेकिन बुद्धि रूपी विमान में आना पड़ेगा। सबका बुद्धि रूपी विमान एवररेडी है ना। संकल्प रूपी स्विच स्टार्ट किया और पहुँचे। विमान तो सबके पास रेडी है ना कि कभी-कभी स्टार्ट नहीं होता है वा पेट्रोल कम होता आधा में लौट आते। वैसे तो सेकण्ड में पहुँचने की बात है। सिर्फ डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइण्ड पेट्रोल कौन सा है? एक है निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ। दूसरा है साकार रूप में सर्व सम्बन्धों का नशा। सिर्फ बाप और बच्चे के सम्बन्ध का नशा नहीं। लेकिन प्रवृत्ति मार्ग पवित्र परिवार है। तो बाप से सर्व सम्बन्धों के रस का नशा साकार रूप में चलते फिरते अनुभव हो। यह नशा और खुशी निरंतर सहज योगी बना देती है। इसलिए निराकारी और साकारी डबल रिफाइण्ड साधन की आवश्यकता है।

अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है इसलिए फिर दुबारा साकारी और निराकारी नशे पर सुनायेंगे। डबल विदेशी बच्चों को सर्विस के प्रत्यक्ष फल की, आज्ञा पालन करने की विशेष मुबारक बापदादा दे रहे हैं। हरेक ने अच्छा बड़ा ग्रुप लाया है। बापदादा के आगे अच्छे ते अच्छे बड़े गुलदस्ते भेंट किये हैं। उसके लिए बापदादा ऐसे वफादार बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से यही वरदान दे रहे हैं –

‘‘सदा जीते रहो - बढ़ते रहो’’

अच्छा - चारों ओर के स्नेही बच्चों को, जो चारों ओर याद और सेवा की धुन में लगे हुए हैं, ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बने हुए सिकीलधे बच्चों की सेवा के रिटर्न में प्यार और याद के रिटर्न में अविनाशी याद। ऐसे अविनाशी लग्न में रहने वालों को अविनाशी याद प्यार और नमस्ते।’’

आस्ट्रेलिया पार्टी से - आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों की विशेषता बापदादा देख रहे हैं। आस्ट्रेलिया निवासियों की विशेषता क्या है, जानते हो? (पहली बार आये हैं इसलिए नहीं जानते हैं) नये स्थान पर आये हो वा अपने पहचाने हुए स्थान पर आये हो? यहाँ पहुँचने से कल्प पहले की स्मृति इतनी स्पष्ट हो जाती है जैसे इस जन्म में भी अभी-अभी देखा है। यही निशानी है समीप आत्मा की। इसी अनुभव द्वारा ही अपने को जान सकते हो कि हम ब्राह्मण आत्माओं में भी समीप की आत्मा हैं वा दूर की आत्मा है। फर्स्ट नम्बर है या सेकण्ड नम्बर हैं। यही इस अलौकिक सम्बन्ध में विशेषता है जो हरेक समझता है कि मैं फर्स्ट जाऊँगा। लौकिक में तो नम्बरवार समझेंगे यह बड़ा है, यह दूसरा नम्बर, यह तीसरा नम्बर है। लेकिन यहाँ लास्ट वाला भी समझता है कि मैं लास्ट सो फर्स्ट हूँ। यही लक्ष्य अच्छा है। फर्स्ट आना ही है। तो फर्स्ट की निशानी - सदा बाप के साथ रहना। प्रयत्न नहीं करना है लेकिन सदा साथ का अनुभव रहे। जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेराहोता है वह स्वत: ही याद रहता है, याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। ‘‘मेरा बाबा और मैं बाबा का’’, कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है - सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना! तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो? माया आती है? बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती। जैसे अपने शरीर के रहने का स्थान मालूम है, बना हुआ है तो जब भी फ्री होते हो तो सहज ही अपने घर में जाकर रेस्ट करते हो। इसी रीति से जब मालूम है कि मुझे बाप के पास रहना है, यही ठिकाना है तो कार्य करते भी रह सकते हो। ऐसे बुद्धि द्वारा अनुभव हो। हरेक अपनी तकदीर बना कर, तकदीर बनाने वाले के सामने पहुँच गये। बापदादा हरेक की तकदीर का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं। वैरायटी ग्रुप है। बच्चे भी हैं, बुजुर्ग भी हैं, यूथ भी हैं। लेकिन अभी तो सब छोटे बच्चे बन गये। अभी कोई कहेंगे 8 मास के हैं, कोई 12 मास के। अलौकिक जन्म का ही वर्णन करेंगे ना! अच्छा - सभी कल्प पहले वाली सिकीलधी आत्मायें हो। सदा बाप के अटूट लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं को हल कर, उड़ता पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी। बापदादा के दिलतख्त-नशीन रहते हुए सदा इसी नशे में रहो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। कल्प-कल्प अपना अधिकार लेते रहेंगे। मुबारक हो। सदा ही मुबारक लेने पात्र आत्मायें हो।

मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। ‘‘मेरा बाबा और मैं बाबा का’’ कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना। तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो? माया आती है? तो फर्स्ट की निशानी है - सदा बाप के साथ रहना। बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती।