01-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


विश्व के हर स्थान पर आध्यात्मिक लाईट और ज्ञान जल पहुँचाओ

सदा एकरस स्थिति में स्थित करने वाले अव्यक्त बापदादा बोले:-

आज बापदादा वतन में रूह-रूहान कर रहे थे। साथ-साथ बच्चों की रिमझिम भी देख रहे थे। वर्तमान समय मधुबन वरदान भूमि पर कैसे बच्चों की रिमझिम लगी हुई है वह देख-देख हर्षा रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मधुबन पावर हाउस से चारों ओर कितने कनेक्शन्स गये हुए हैं। जैसे स्थूल पावर हाउस से अनेक तरफ लाइट के कनेक्शन जाते हैं। ऐसे इस पावर हाउस से कितने तरफ कनेक्शन गये हैं। विश्व के कितने कोनों मे लाइट के कनेक्शन गये हैं और कितने कोनों में अभी कनेक्शन नहीं हुआ है। जैसे आजकल की गवर्मेन्ट भी यही कोशिश करती है कि अपने राज्य में सभी कोनों में सभी गाँवों में चारों तरफ लाइट और पानी का प्रबन्ध जरूर हो। तो पाण्डव गवर्मेन्ट क्या कर रही है! ज्ञान गंगायें चारों ओर जा रही हैं। पावर हाउस से चारों ओर लाइट का कनेक्शन जा रहा है। जैसे ऊपर से किसी भी शहर को या गाँव को देखो तो कहाँ-कहाँ रोशनी है। नज़दीक में रोशनी है या दूर-दूर है, वह दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। बापदादा भी वतन से दृश्य देख रहे थे कि कितने तरफ लाइट है और कितने तरफ अभी तक लाइट नहीं पहुँची है। रिजल्ट को तो आप लोग भी जानते हो कि देश विदेश में अभी तक कई स्थान रहे हुए हैं जहाँ अभी कनेक्शन्स देने हैं। जैसे लाइट और पानी बिगर उस स्थान की वैल्यु नहीं होती। ऐसे जहाँ आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल की पूर्ति नहीं हुई है वहाँ की चैतन्य आत्मायें किस स्थिति में है! अंधकार में प्यास में भटक रहीं हैं, तड़प रहीं हैं। ऐसे आत्माओं की वैल्यु क्या बताते हो? चित्र बनाते हो ना कौड़ी तुल्य और हीरे तुल्य! लाइट और ज्ञान जल मिलने से कौड़ी से हीरा बन जाते हैं। तो वैल्यु बढ़ जाती है ना। बापदादा देख रहे थे कि आये हुए देश-विदेश से बच्चे, पावर हाउस से विशेष पावर लेकर अपने अपने स्थान पर जा रहे हैं।

एक तरफ तो बच्चों के स्नेह में बापदादा समझते हैं कि मधुबन अर्थात् बापदादा के घर का शृंगार जा रहे हैं। जब भी बच्चे मधुबन में आते हैं तो मधुबन की रौनक या स्वीट होम की झलक क्या हो जाती है! बच्चे भी खुश होते हैं और घर भी सजा हुआ लगता है। मधुबन वाले भी ऐसे महसूस करते हैं कि मधुबन की रौनक बढ़ाने वाले हमारे स्नेही साथी आये हैं। जैसे आप लोग वहाँ याद करते हो, चलते, फिरते, उठते-बैठते मधुबन की स्मृति सदा ताजी रहती है वैसे बापदादा और मधुबन निवासी भी आप सबको याद करते हैं। स्नेह के साथ-साथ सेवा भी विशेष सब्जेक्ट है - इसलिए स्नेह से तो समझते हैं यहाँ ही बैठ जाएँ। लेकिन सेवा के हिसाब से चारों ओर जाना ही पड़े। हाँ, ऐसा भी सयम आयेगा जो जाना नहीं पड़ेगा लेकिन एक ही स्थान पर बैठे-बैठे चारों ओर के परवाने स्वत: शमा पर आयेंगे। यह तो छोटा सा सैम्पुल देखा कि आबू हमारा ही है। अभी तो किराये पर मकान लेने पड़े ना! फिर भी थोड़ी सी रौनक देखी। ऐसा समय आयेगा जो चारों ओर फरिश्ते नजर आयेंगे। अभी मुख द्वारा सेवा का पार्ट चल रहा है और अभी कुछ रहा हुआ है इसलिए दूर-दूर जाना पड़ता है। अभी श्रेष्ठ संकल्प की शक्तिशाली सेवा जो पहले भी सुनाई है, अन्त में वही सेवा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देगा। हमें कोई बुला रहा है कोई दिव्य बुद्धि द्वारा, शुभ संकल्प का बुलावा हो रहा है, ऐसे अनुभव करेंगे। कोई दिव्य दृष्टि द्वारा बाप और स्थान को देखेंगे। दोनों प्रकार के अनुभवों द्वारा बहुत तीव्रगति से अपने श्रेष्ठ ठिकाने पर पहुँच जायेंगे। इस वर्ष क्या करेंगे?

प्रयत्न अच्छा किया है। इस वर्ष रहे हुए स्थानों को लाइट तो देंगे ही। लेकिन हर स्थान की विशेषता इस वर्ष यही दिखाओ कि हर सेवा केन्द्र उसमें भी विशेष बड़े-बड़े केन्द्र जो हैं उसमें यह लक्ष्य रखो, जैसे कभी धर्म सम्मेलन करते हो तो सभी धर्म वाले इकट्ठे करते हो या राजनीतिक को बुलाते हो, साइंस वालों को विशेष बुलाते हो, अलग-अलग प्रकार के स्नेह मिलन करते हो तो इस वर्ष हर स्थान पर सर्व प्रकार के विशेष आक्यूपेशन वाले, सम्बन्ध में आने वाले तैयार करो। तो जैसे अभी ऐसे कहते हैं कि यहाँ काले गोरे सब प्रकार की वैरायटी है। एक स्थान पर सर्व रंग, देश, धर्म वाले हैं, ऐसे यह कहें कि यहाँ सर्व आक्यूपेशन वाले हैं। विशेष आत्मायें एक ही गुलदस्ते में वैरायटी फूलों के मिसल दिखाई दें। हर सेन्टर पर हर आक्यूपेशन वाली विशेष आत्माओं का संगठन हो। जो दुनिया में यह आवाज़ बुलन्द हो कि यह एक बाप एक ही सत्य ज्ञान सर्व आक्यूपेशन वालों के लिए कितना सहज और सरल है! अर्थात् हर सेवा स्थान की स्टेज पर सर्व आक्यूपेशन वाले इकट्ठे दिखाई दें। कोई भी आक्यूपेशन वाला रह न जाएँ। गरीब से लेकर साहूकार तक, गाँव वालों से लेकर बड़े शहर वाले तक, मजदूर से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति तक, सर्व प्रकार की विशेष आत्माओं की अलौकिक रौनक दिखाई दे। जिससे कोई भी यह नहीं कह सके कि क्या यह ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ इन्हीं के लिए है? सर्व का बाप सर्व के लिए है - बच्चे से लेकर परदादे तक, सभी ऐसा अनुभव करें कि विशेष हमारे लिए यह ज्ञान है जैसे आप सभी ब्राह्मणों के मन से, दिल से एक ही आवाज़ निकलती है, कि हमारा बाबा है। ऐसे विश्व के कोने-कोने से, विश्व के हर आक्यूपेशन वाली आत्मा दिल से कहे कि हमारे लिए बाप आये हैं, हमारे लिए ही यह ज्ञान सहारा है। ज्ञान दाता और ज्ञान दोनों के लिए सब तरफ से सब प्रकार की आत्माओं से यह ही आवाज़ निकले। वैसे सर्व आक्यूपेशन वालों की सेवा करते भी रहते हो लेकिन हर स्थान पर सब वैरायटी हो। और फिर ऐसे वैरायटी आक्यूपेशन वालों का गुलदस्ता बापदादा के पास ले आओ। तो हर सेवाकेन्द्र विश्व की सर्व आत्माओं के संगठन का एक विशेष चैतन्य म्यूजियम हो जायेगा। समझा! जो भी सम्पर्क में हैं, उन्हीं को सम्बन्ध में लाते हुए सेवा की स्टेज पर लाओ। समय प्रति-समय जो भी वी.आई.पीज. वा पेपर्स वाले आये हैं उन्हीं को सेवा की स्टेज पर लाते रहो तो मुख से बोलने से भी वह मुख का बोल उन आत्माओं के लिए ईश्वरीय बन्धन में बन्धने का साधन बन जाता है। एक बार बोला कि बहुत अच्छा है और फिर सम्बन्ध से दूर हो गये, तो भूल जाते हैं। लेकिन बार-बार बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहते रहें, अनेकों के सामने, तो वह बोल भी उन्हीं को अच्छा बनने का उत्साह बढ़ाता है। और साथ-साथ सूक्ष्म नियम भी है कि जितनों को अनेक बोल द्वारा परिचय मिलता है अर्थात् उनके नाम द्वारा, बोल द्वारा जितनों पर प्रभाव पड़ता है उन आत्माओं का शेयर उनको मिल जाता है। अर्थात् उन्हों के खाते में पुण्य की पूंजी जमा हो जाती है। और वही पुण्य की पूंजी अर्थात् पुण्य का श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बनने के लिए उन्हीं को खींचता रहेगा। इसलिए जो अभी डायरेक्ट बाप की भूमि से कुछ न कुछ ले गये हैं चाहे थोड़ा, चाहे बहुत लेकिन उन्हीं से दान कराओ। अर्थात् सेवा कराओ। तो जैसे स्थूल धन का फल सकामी अल्पकाल का राज्य मिलता है वैसे इस ज्ञान धन वा अनुभव के धन दान करने से भी नये राज्य में आने का पात्र बना देगा। बहुत अच्छे प्रभावित हुए, अब उन प्रभावित हुई आत्माओं द्वारा सेवा कराए उन आत्माओं को भी सेवा के बल द्वारा आगे बढ़ाओ और अनेकों के प्रति निमित्त बनाओ। समझा क्या करना है! सर्विस वृद्धि को तो पा ही रही है और पाती रहेगी लेकिन अब क्लास में स्टूडेन्ट्स की वैरायटी बनाओ

अभी तो विदेश वालों का मिलने का साकार रूप का इस वर्ष के लिए सीजन का पार्ट पूरा हो रहा है। लेकिन देश वालों का तो आह्वान हो रहा है सुनाया ना साकार वतन में तो समय का नियम बनाना पड़ता है और आकारी वतन में इस बन्धन से मुक्त हैं अच्छा –

चारों ओर के उमंग उत्साह वाले सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप के साथसाथ अनुभव करने वाले समीप आत्मायें बच्चों को, सदा एक ही याद में एकरस रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।