21-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


गीता पाठशाला चलने वाले भाई-बहेनो के सम्मुख अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

आज परम आत्मा अपने महान आत्माओं से मिलने आये हैं। बापदादा सभी बच्चों को महान आत्मायें देखते हैं। दुनिया वाले जिन आत्माओं को महात्मा कहते ऐसे महात्मायें भी आप महान आत्माओं के आगे क्या दिखाई देंगे! सबसे बड़े से बड़ी महानता जिससे महान बने हो, वह जानते हो?

जिन आत्माओं को, विशेष माताओं को हर बात में अयोग्य बना दिया है ऐसी अयोग्य आत्माओं को योग्य अर्थात् बाप के भी अधिकारी आत्मायें बना दिया। जिनको चरणों की जूती समझा है, बाप ने नयनों का नूर बना दिया। जैसे कहावत है - नूर नहीं तो जहान नहीं। ऐसे ही बापदादा भी दुनिया को दिखा रहे हैं - भारत माता शक्ति अवतार नहीं तो भारत का उद्धार नहीं। ऐसे अयोग्य आत्माओं से योग्य आत्मा बनाया। तो महान आत्मायें बन गये ना! जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वह महान हैं। पाण्डवों ने भी जाना है और अपना बनाया है वा सिर्फ जाना है? अपना बनाने वाले हो ना! जानने की लिस्ट में तो सभी हैं। अपना बना लेना इसमें नम्बरवार बन जाते हैं।

अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना और अधिकार अनुभव होना अर्थात् सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त होना। अधीनता अनेक प्रकार की है। एक है स्व की स्व प्रति अधीनता । दूसरी है सर्व के सम्बन्ध में आने की। चाहे ज्ञानी आत्मायें, चाहे अज्ञानी आत्मायें, दोनों के सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा अधीनता । तीसरी है प्रकृति और परिस्थितियों द्वारा प्राप्त हुई अधीनता। तीनों में से किसी भी अधीनता के वश हैं तो सिद्ध है सर्व अधिकारी नहीं है।

अभी अपने को देखो कि अपना बनाना अर्थात् अधिकारी बनने का अनुभव सदा और सर्व में होता है। वा कभी कभी और किस बात में होता है और किसमें नहीं होता है। बापदादा बच्चों के श्रेष्ठ तकदीर को देख हर्षित भी होते हैं। क्योंकि दुनिया की अनेक प्रकार की आग से बच गये। आज का मानव अनेक प्रकार की आग में जल रहा है। और आप बच्चे शीतल सागर के कण्ठे पर बैठे हो। जहाँ सागर की शीतल लहरों में, अतीन्द्रिय सुख की, शान्ति की प्राप्ति में समाये हुए हो। एटामिक बाम्बस या अनेक प्रकार के बाम्बस की अग्नि ज्वाला जिससे लोग इतना घबरा रहे हैं, वह तो सिर्फ सेकण्डों की, मिनटों की बात है। लेकिन आजकल के अनेक प्रकार के दुख, चिन्तायें, समस्यायें यह भिन्न-भिन्न प्रकार की चोट जो आत्माओं को लगती है यह अग्नि जीते हुए जलाने का अनुभव कराती है। न जिन्दा हैं, न मरे हुए हैं। न छोड़ सकते, न बना सकते। ऐसे जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये हो - इसलिए सदा सर्व के प्रति रहम आता है ना। तब तो घर-घर में सेवाकेन्द्र बनाया है। बहुत अच्छा सेवा का लक्ष्य रखा है। अब तो गाँव गाँव या मोहल्ले में हैं, लेकिन अब गली गली में ज्ञान-स्थानहो। भक्ति में देव-स्थान बनाते हैं लेकिन यहाँ घर-घर में ब्राह्मण आत्मा हो। जैसे घर घर में और कुछ नहीं तो देवताओं के चित्र जरूर होंगे। ऐसे घर घर में चैतन्य ब्राह्मण आत्मा हो। गली गली में ज्ञान-स्थान हो तब हर गली में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। अभी तो सेवा बहुत पड़ी है। फिर भी बच्चों ने हिम्मत रख जितनी भी सेवा की है, बापदादा हिम्मतवान बच्चों को मुबारक देते हैं। और सदा मदद लेते हुए आगे बढ़ने की शुभ आशीर्वाद भी देते हैं। और फिर जब घर- घर में दीपक जगाकर दीपावली मनाकर आयेंगे तो इनाम भी देंगे।

बापदादा को यह देख खुशी है कि महान आत्माओं को भी चैलेन्ज करने वाले पवित्र प्रवृत्ति का सबूत दिखाने वाले, हद के घर को बाप की सेवा का स्थान बनाने वाले, सपूत बच्चों का प्रत्यक्ष पार्ट बजा रहे हैं। इसलिए बापदादा ऐसे सेवाधारी बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं। इसमें भी संख्या ज्यादा माताओं की है। अगर पाण्डव किसी भी बात में आगे जाते हैं तो शक्तियों को सदा खुशी होती है। बापदादा भी पाण्डवों को आगे करते हैं। पाण्डव स्वयं भी शक्तियों को आगे रखना जरूरी समझते हैं। पहली कोशिश क्या करते हो? मुरली कौन सुनाव, इसमें भी ब्रह्मा बाप को फालो करते हो। शिव बाप ने ब्रह्मा माँ को आगे बढ़ाया और ब्रह्मा माँ ने सरस्वती माँ को आगे बढाया। तो फालो फादर मदर हो गया ना। सदैव यह स्मृति में रखो कि आगे बढ़ाने में आगे बढ़ता समाया हुआ है। जबसे बापदादाने माताओं के ऊपर नजर डाली तब से दुनिया वालों ने भीलेडीज फर्स्टका नारा जरूर लगाया। नारा तो लगाते हैं ना? भारत की राजनीति में भी देखो तो सभी पुरूष भी नारी के लिए महिमा तो गाते हैं ना। ऐसे तो पाण्डव भी किसी हिसाब से नारियाँ ही हो। आत्मा नारी है और परमात्मा पुरूष है। तो क्या हुआ। आत्मा कहती है, आत्मा कहता है - ऐसे नहीं कहा जाता। कुछ भी बन जाओ लेकिन नारी तो हो। परमात्मा के आगे तो आत्मा नारी है। आशिक नहीं हो? सर्व सम्बन्ध एक बाप से निभाने वाले हो। यह तो वायदा है ना। यह तो बापदादा बच्चों से रूह-रूहान कर रहे हैं। सभी सिकीलधे बच्चे सदाएक बाप दूसरा न कोई’ - इसी अनुभव में सदा रहने वाले हैं। ऐसे बच्चे ही बाप समान श्रेष्ठ आत्मायें बनते हैं। अच्छा –

ऐसे सदा सेवा के उमंग उत्साह में रहने वाले, सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ कल्याण की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ हिम्मत द्वारा बाप दादा के मदद के पात्र आत्मायें - ऐसे सेवास्थान के निमित्त बने हुए महान आत्माओं को परम आत्मा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

बापदादा ने बच्चों की विशेषता के गुण तो सुना ही दिये। जो बापदादा के समान सेवाधारी हैं उन बच्चों को बापदादा सदा कहाँ रखते हैं? (नयनों में) नयन सारे शरीर में सूक्ष्म हैं ओर नयनों में भी जो नूर है वह कितना सूक्ष्म है, बिन्दी है ना। तो बाप के नयनों में समाने वाले अर्थात् अति सूक्ष्म। अति न्यारे और बाप के प्यारे। ऐसे ही अनुभव करते हो ना! बहुत अच्छा चांस ड्रामा अनुसार मिला है। क्यों अच्छा कहते हैं? क्योंकि जितना बिजी रहेंगे उतना ही मायाजीत हो जायेंगे। बिजी रहेने का अच्छा साधन मिला है ना। सेवा बिजी रहने का साधन है। चाहे किसी भी समय माया का विघ्न आया हुआ है लेकिन जब सेवा वाले सामने आयेंगे तो अपने को ठीक करके उनकी सेवा करेंगे। क्या भी होगा, तैयार होकर के ही मुरली सुनायेंगे ना। और सुनाते सुनाते स्वयं को भी सुना लेंगे। दूसरों की सेवा करने से स्वयं को भी मदद मिल जाती है। इसलिए बहुत बहुत श्रेष्ठ साधन मिला हुआ है। एक होता है अपना पुरूषार्थ करना, एक होता है दूसरे के सहयोग का साधन। तो डबल हो गया ना! प्रवृत्ति सम्भालते सेवा की जिम्मेवारी सम्भाल रहे हो यह भी डबल लाभ हो गया। यह तो रास्ते चलते खुदा दोस्त द्वारा बादशाही मिल गई। डबल प्राप्ति, डबल जिम्मेवारी, लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट डबल लाइट समझने से कभी लौकिक जिम्मेवारी भी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो ना। ट्रस्टी को क्या थकावट। अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। पाण्डव को कभी लौकिक व्यवहार, लौकिक वायुमण्डल में बोझ तो नहीं लगता। बिल्कुल न्यारे और प्यारे! बालक सो मालिक,ऐसा नशा रहता है? मालिकपन का नशा बेहद का है। बेहद का नशा बेहद चलेगा और हद का नशा हद तक चलेगा। सदा इस बेहद के नशे को स्मृति में लाओ कि क्या-क्या बाप ने दिया है, उस दिये हुए खज़ाने को सामने लाते हुए फिर अपने को देखो कि सर्व खज़ानों से सम्पन्न हुए हैं, अगर नहीं तो कौन सा खज़ाना और क्यों नहीं धारण हुआ है, फिर उसी प्रमाण से देखो और धारण करो। समय कौन सा है? बाप भी श्रेष्ठ, प्राप्ति भी श्रेष्ठ और स्वयं भी। जहाँ श्रेष्ठता है वहाँ जरूर प्राप्ति है ही। साधारणता है तो प्राप्ति भी साधारण। अच्छा –