07-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


ब्राह्मणों का संसार - बेगमपुर

बेगमपुर का बादशाह बनाने वाले, सदा सुखदाता शिव बाबा बोले:-

आज बेगमपुर के बादशाह अपने मास्टर बेगमपुर के बादशाहों से मिलने आये हैं। यह संगमयुगी बादशाहों की सभा है। इसी बादशाही से भविष्य प्रालब्ध प्राप्त करते हैं। बापदादा देख रहे हैं कि सभी बच्चे बेगम अर्थात् किसी भी प्रकार के गम अर्थात् दुख से परे, ऐसे बादशाह बने हैं! ब्राह्मणों का संसार - बेगमपुर है। संगमयुगी ब्राह्मण संसार के अधिकारी आत्मायें अर्थात् बेगमपुर के बादशाह। संकल्प में भी गम अर्थात् दुख की लहर न हो - ऐसे बने हो? बेगमपुर के बादशाह सदा सुख की शैय्या पर सुखमय संसार में स्वयं को अनुभव करते हो? ब्राह्मणों के संसार वा ब्राह्मण जीवन में दुख का नाम निशान नहीं क्योंकि ब्राह्मणों के खज़ाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। अप्राप्ति दुःख का कारण है। प्राप्ति सुख का साधन है। तो सर्व प्राप्ति स्वरूप अर्थात् सुख स्वरूप! ऐसे सदा सुख स्वरूप बने हो? सुख के साधन-सम्बन्ध और सम्पत्ति यही विशेष हैं। सोचो - अविनाशी सुख का सम्बन्ध प्राप्त है ना! सम्बन्ध में भी कोई एक सम्बन्ध की भी कमी होती है तो दुख की लहर आती है। ब्राह्मण संसार में सर्व सम्बन्ध बाप के साथ अविनाशी हैं। कोई एक सम्बन्ध की भी कमी है क्या? सर्व सम्बन्ध अविनाशी हैं तो दुख की लहर कैसे होगी? सम्पत्ति में भी सर्व खज़ाने वा सर्व सम्पत्ति का श्रेष्ठ खज़ाना ज्ञान धनहै, जिससे सर्व धन की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है। जब सम्पत्ति, सम्बन्ध सब प्राप्त हैं तो बेगमपुर अर्थात् बेगम संसार है। सदा सुख के संसार के बालक सो मालिक अर्थात् बादशाह हो। बादशाह बने हो कि अभी बन रहे हो? बापदादा बच्चों के दुख की लहर की बातें सुनकर वा देखकर क्या सोचते हैं? सुख के सागर के बच्चे, बेगमपुर के बादशाह फिर दुख की लहर कहाँ से आई! अवश्य सुख के संसार की बाउन्ड्री से बाहर चले जाते हैं। कोई न कोई आर्टीफिशल आकर्षण वा नकली रूप के पीछे आकर्षित हो जाते हैं। जैसे कल्प पहले के यादगार कथाओं में दिखाते हैं - सीता आकर्षित हो गई और मर्यादा की लकीर अर्थात् सुख के संसार की बाउन्ड्री पार कर ली, तो कहाँ पहुँच गई? शोक वाटिका में। जब बाउन्ड्री के अन्दर हैं तो जंगल में भी मंगल है। त्याग में भी भाग्य है। बिन कोड़ी होते बादशाह हैं। बेगरी जीवन में भी प्रिन्स की जीवन है। ऐसा अनुभव है ना! संसार से परे मधुबन में आते हो तो क्या अनुभव करते हो? है छोटे से स्थान पर कोने में लेकिन पहुँचते ही कहते हो कि सतयुगी स्वर्ग से भी श्रेष्ठ संसार में पहुँच गये हैं। तो जंगल में मंगल अनुभव करते हो ना। सूखे पहाड़ों को हीरे जैसा श्रेष्ठ सुख का संसार अनुभव करते हो। संसार ही बदल गया, ऐसा अनुभव करते हो ना। ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें जहाँ भी हों दुख के वायुमण्डल के बीच भी कमल समान। दु:ख से न्यारे, बेगमपुर के बादशाह हो। तन के बीमारी के दु:ख की लहर वा मन में व्यर्थ हलचल के दु:ख की लहर वा विनाशी धन के अप्राप्ति की वा कमी के दुख की लहर, स्वयं के कमज़ोर संस्कार वा स्वभाव वा अन्य के कमज़ोर स्वभाव और संस्कार के दु:ख की लहर, वायुमण्डल वा वायब्रेशन्स के आधार पर दुख की लहर, सम्बन्ध सम्पर्क के आधार पर दुःख की लहर, अपनी तरफ खींच लेती है! न्यारे हो ना! संसार बदल गया तो संस्कार भी बदल गये। स्वभाव बदल गया इसलिए सुखमय संसार के बन गये। वैसे तो बेगर बन गये अर्थात् यह देह रूपी घर भी अपना नहीं। बेगर हो गये ना। लेकिन बाप के सर्व खज़ानों के मालिक भी तो बन गये। स्वराज्य अधिकारी भी बन गये। ऐसा नशा वा खुशी रहती है? इसको ही कहा जाता है - ‘बेगमपुर के बादशाह। तो सभी बादशाह बैठे हो ना। बादशाही का हालचाल ठीक चल रहा है? सभी राज्य कारोबारी आपके आर्डर में चल रहे हैं? कोई भी आप बादशाहों को धोखा तो नहीं देता? जी हाजिर वा जी हजूर करने वाले सभी राज्य कारोबारी हैं? अपनी दरबार लगाते हो? राजाओं की तो दरबार लगती है - तो सभी दरबारी यथार्थ कार्य कर रहे हैं? खज़ानों से भण्डारे भरपूर हैं? इतने भण्डारे भरपूर हैं जो सदा महादानी बन दान करते रहो तो भी अखुट भण्डार हो। चेक करते हो? ब्रह्माकुमार तो बन ही गये, योगी तो बन ही गये, इस अलबेलेपन के नशे में चेकिंग तो नहीं भूल जाते हो? सदा अपने राज्य कारोबार की चेकिंग करो। समझा! चेकिंग करना तो आता है ना। मैजारटी पुराने अनुभवियों का संगठन है ना। अनुभवी अर्थात् अथार्टी वाले। कौन सी अथार्टी? स्वराज्य की अथार्टी। ऐसी अथार्टी वाले हो ना! अभी तो आज आये हो। चेकिंग कराने, सर्टिफिकेट लेने आये हो ना कि हम ठीक बादशाह हैं! सर्टिफिकेट लेकर जायेंगे ना कि कौन से राजे हैं - नामधारी हैं या कामधारी। यह सब शीशमहल में आपेही देख लेंगे। अच्छा –

सदा सुख के संसार में रहने वाले, बेगमपुर के बादशाहों को, सदा राज्य अधिकारी समर्थ आत्माओं को, सदा सर्व दुख की लहरों से न्यारे और सुखदाता बाप के प्यारे, ऐसे अनुभव की अथार्टी वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

दादियों से

सभी बाप समान बच्चों को देख बापदादा हर्षित होते हैं। सदा समान आत्मायें अति प्यारी लगती हैं। तो यह सारा संगठन समान आत्माओं का है। बापदादा सदा समान बच्चों को साथी देखते हैं। विश्व की परिक्रमा लगाते तो भी साथ और बच्चों की रेख देख करने जाते तो भी साथ। सदा साथ ही साथ है इसलिए समान आत्मायें हैं ही सदा के योगी। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन। अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे। स्वत: याद है ही। जहाँ साथ होता है तो याद स्वत: रहती है। तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है। समाये हुए रहने की है। तो सदा हर कदम में आगे-आगे बच्चे, पीछे-पीछे बाप। हर कार्य में सदा आगे। बच्चे आगे हैं और बाप सकाश तो क्या लेकिन सदासाथ का अनुभव कराते हैं। जैसे बाप औरों को सकाश देते हैं वैसे समान बच्चे भी सकाश भी देने वाले हो गये। ऐसा संगठन है ना! विशेष मणकों की विशेष माला है। स्वत: तैयार हो रही है ना माला! तैयार करनी नहीं पड़ती लेकिन हो रही है। वैसे अगर नम्बर निकालें या नम्बर दें तो क्वेश्चन उठेंगे लेकिन स्वत: ही नम्बरवार सेट होते जा रहे हैं। अच्छा –

कुमारों के साथ अलग-अलग ग्रुप से

1. गॉडली यूथ ग्रुप - लौकिक रीति से वह यूथ ग्रुप अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार कार्य कर रहे हैं लेकिन उन्हों का कार्य नुकसान करना है। आप लोगों का काम है स्थापना के कार्य में सदा सहयोगी बनना। कभी कोई भी कारण वा विघ्न आये तो उसका निवारण सहज कर सकते हो? कुमार ग्रुप में बापदादा की सदा उम्मीदें रहती हैं। इतने यूथ हिम्मत और उमंग रख सदा के विजयी बन जाएं तो विश्व में विजय का झण्डा उठाकर सारे विश्व में घूमें। सदा उड़ती कला में जा रहे हो, कोई रूकती कला वाला तो नहीं है। यूथ ग्रुप अर्थात् सदा शक्तिशाली सेवा करने वाले। यूथ जो चाहे वह कर सकते हैं। वह विनाशकारी और आप स्थापना के कार्य वाले। वे अशान्ति मचाने वाले और आप शान्त स्वरूप हो। शान्ति फैलाने वाले हो। कुमारों के लिए तो बहुत तैयारी कर रहे हैं। ऐसे पक्के कुमार हों जो कभी हलचल में न आवें। ऐसे नहीं, यहाँ नाम बाला हो और फिर वहाँ पुरानी दुनिया में चले जाएं। कई कुमार पहले बहुत उमंग उत्साह से सेवा में चलते फिर थोड़ा भी टक्कर हुआ तो पुरानी दुनिया में चले जाते। छोड़ी हुई चीज़ फिर से जाकर लें तो अच्छा लगता है! आप सबने भी पुरानी दुनिया छोड़ दी है ना! अगर कोई रस्सी बंधी होगी तो हिलते रहेंगे। तो सदा अपने को गॉडली यूथ ग्रुपसमझो। इतने सब कुमार रिफ्रेश होकर खज़ानों से भरपूर होकर जायेंगे तो देखने वाले कहेंगे यह देवात्माबनकर आ गये। ऐसा कोई कमाल का प्लैन बनाओ। यूथ को देखकर गवर्मेन्ट भी घबराती है। गवर्मेन्ट को भी रास्ता दिखाने के निमित्त आप लोग बनेंगे। कुमारों को सदा सेवा के शक्तिशाली प्लैन बनाने चाहिए। परन्तु याद और सेवा का सदा बैलेन्स रहे। अच्छा -

सदा निर्विघ्न रहने की गुडमोर्निंग जब होगी तो निर्विघ्न होंगे ना! जब सतयुग गुडमोर्निंग होगा तो निर्विघ्न होंगे। अभी निर्विघ्न बनने की गुडमोर्निंग। शुभ दिन कहते हैं ना। शुभ प्रात: कहते हैं तो शुभ प्रातः अर्थात् जिसमें अशुभ कुछ नहीं। आप सबकी सदा ही शुभ प्रात: है। शुभ दिन है और शुभ रात्रि है। तो सदा निर्विघ्न अर्थात् शुभ। इसलिए निर्विघ्न भव की गुडमोर्निंग। अच्छा –

विदाई के समय

सतगुरू की कृपा आपका वर्सा बन गया। इसलिए कृपा करो, यह संकल्प करने की भी आवश्यकता नहीं। हो ही वृक्षपति के बच्चे। तो बृहस्पति की दशा, गुरू की कृपा सब स्वत: ही प्राप्त है। मांगने की आवश्यकता ही नहीं। मांगने से छूट गए, संकल्प करने से भी छुड़ा दिया। अभी मांगने का कुछ रहा है क्या! बाप के भी सिर के ताज हो गये। वह माँगेगा क्या! तो वृक्षपति दिवस की, बृहस्पति के दशा की सदा ही बच्चों को बधाई सहित याद-प्यार।

ओम शान्ति।