01-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सुख, शान्ति और पवित्रता के तीन अधिकार

सुख, शान्ति और पवित्रता का जन्म-सिद्ध अधिकार देने वाले शिवबाबा, तकदीरवान, अधिकारी बच्चों प्रति बोले:-

आज बापदादा अति स्नेही और सिकीलधे बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा अति स्नेह से मिलन मनाने अपने घर में पहुँच गये हैं। इसी भूमि को कहा जाता है - अपना घर, दाता का दर। यह महिमा इसी स्वीट होम की है। स्वीट होम में स्वीट बच्चों से स्वीटेस्ट बाप मिलन मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे के मस्तक पर आज विशेष अधिकार की तीन लकीरें देख रहे हैं। हर एक के मस्तक पर तीन लकीरें तो लगी हुई हैं, क्योंकि बच्चें तो सभी हैं। बच्चे होने के नाते अधिकारी तो सभी हैं लेकिन नम्बरवार हैं। किसी बच्चे की तकदीर, सुख के अधिकार की लकीर बहुत स्पष्ट और गहरी है। कितनी भी परिस्थितियाँ आवें, दु:ख की लहर भी उत्पत्ति दिलाने वाली लहर हो लेकिन दुःख शब्द की अविद्या वाले हों। दुख की परिस्थिति को अपने सुख के सागर से प्राप्त हुए अधिकार द्वारा दुख की परिस्थितियों में भी, ‘वाह मीठा ड्रामा, वाह हरेक पार्टधारी का पार्ट- इस नालेज की रोशनी द्वारा, अधिकार की खुशी द्वारा दुख को सुख में परिवर्तन कर देता। अधिकार से दुख के अंधकार को परिवर्तन कर, मास्टर सुखदाता बन स्वयं तो सुख के झूले में झूलते ही हैं लेकिन औरों को भी सुख के वायब्रेशन देने के निमित्त बनते हैं। ऐसे सुख के अधिकार की लकीर स्पष्ट और गहरी हैं, जिसको कोई मिटा न सके। मिटाने वाले बदल जाएँ लेकिन वह नहीं। मास्टर सुख दाता से सुख की अंचली ले लें। ऐसे लकीर वाले भी देखे। इसको कहा जाता है - नम्बर वन तकदीरवान! सुनाया था वन की निशानी है विन

दूसरी लकीर शान्ति। आप सब शान्ति को स्वधर्म मानते हो ना! यह सभी को बताते हो ना। धर्म के लिए क्या गाया हुआ है? - ‘धरत परिये धर्म न छोड़िये। सिर जावे लेकिन धर्म न जाये। तो सुख-शान्ति के वर्स के अधिकारी कभी शान्ति को छोड़ नहीं सकते। ऐसे अशान्त को शान्त बनाने वाले, सदा शान्ति की किरणें स्वयं द्वारा औरों को देने वाले, कुछ भी हो जाए लेकिन शान्तिका धर्म शान्ति का अधिकार छोड़ नहीं सकते। इसको कहते दूसरे अधिकार की लकीर में नम्बर वन। तीसरी है प्यूरिटी के अधिकार की लकीर। पवित्र आत्मायें तो सभी बच्चे हैं। फिर भी नम्बरवन अधिकार के तकदीरवान बच्चा कौन है! जिसकी चलन से, चेहरे से प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी अनुभव हो। लौकिक जीवन में लौकिकता वाली पर्सनैलिटी रॉयल्टी दिखाई देती है लेकिन अधिकार के तकदीरवान बच्चों में प्युरिटी की अलौकिक पर्सनैलिटी और रॉयल्टी दिखाई देंगी। इसको कहा जाता है - नम्बरवन पवित्रता के तकदीर की लकीर।

आज सर्व बच्चों के इस अधिकार की लकीरों को देख रहे थे। आप सब भी अपनी तीनों लकीरों को देख रहे हो ना। चेक करो तीनों अधिकार प्राप्त कर लिया है? पूरा अधिकार लिया है वा परसेन्टेज में लिया है! अगर संगम पर भी परसेन्टेज में रहे तो सारा कल्प परसेन्टेज में ही रह जायेंगे। पूज्य पद में भी परसेन्टेज होगी, फुल पूजा नहीं होगी। और प्रालब्ध में भी परसेन्टेज रह जायेगी। अच्छा-

आज मैजारिटी नये सो पुराने बच्चे आये हैं। नये बच्चे कहो वा कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चे कहो, अपना अधिकार लेने के लिए फिर से अपने स्थान पर पहुँच गये। सबसे ज्यादा खुशी किसको है! हर एक समझेंगे मेरे को है। ऐसे समझते हो वा किसको कम किसको ज्यादा है! अधिकारी बच्चों को विशेष मिलन का अधिकार देने के लिए बापदादा को भी आना ही पड़ता है।

बाप को बच्चों से स्नेह ज्यादा है वा बच्चों को बाप से स्नेह ज्यादा है? अटूट स्नेह किसका है? बापदादा तो बच्चों को अपने से आगे रखते। पहले बच्चे! अगर बच्चे याद वा प्यार नहीं करते तो बाप रेसपाण्ड किनको देते। इसलिए आगे बच्चे पीछे बाप। सदैव बच्चों को आगे चलाना होता, बाप पीछे चलता है। इसलिए बापदादा भी ऐसे बच्चों को देख-देख हर्षित होते हैं। ऐसे बच्चे भी हैं जो अटूट स्नेह प्यार में समाए हुए हैं। ऐसे बच्चों की भी माला है। चाहे देश में चाहे विदेश में दोनों तरफ ऐसे बच्चे हैं जिन्हों को सिवाए बाप और सेवा के और कोई बात याद नहीं।

जगदीश भाई से:- आपने ऐसे बच्चे देखे ना! अच्छा चक्कर लगाया ना। साकार बाप का दिया हुआ विशेष वरदान, साकार में लाया। सफलता का जन्मसिद्ध अधिकार अनुभव किया न। सर्व सफलता में विशेष सफलता की निशानी कौन सी है? श्रेष्ठ सफलता है कि बापदादा दिखाई दे। आप में बाप दिखाई दे - यह है श्रेष्ठ सफलता। यही प्रत्यक्षता का साधन है। जो भी चक्कर पर निकले विशेष बाप समान अनुभूति कराना, यही सफलता की निशानी है। और आगे चल कर भी ज्यादा से ज्यादा यही आवाज़ चारों ओर फैलता जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही। करावनहार करा लेता है। अच्छा-

ऐसे सदा सम्पूर्ण तकदीरवान, सम्पन्न अधिकार को पाने वाले अधिकारी, सदा बाप और आप के कम्बाइन्ड रूप में रहने वाले, स्नेह के सागर में सदा समाये हुए, लकी और लवली बच्चों को, भाग्य विधाता, वरदाता का यादप्यार और नमस्ते।’’

(जगदीश भाई ने विदेश यात्रा का समाचार बापदादा को बताया और नाम सहित सभी भाई-बहनों की याद दी)

‘‘सभी के स्नेह का समाचार बापदादा के पास पहुँचता ही रहता है और अभी भी पहुँचा। बापदादा सर्व विदेश के चारों ओर रहने वाले बच्चों को विशेष एक बात की मुबारक भी देते हैं। किस बात की? संस्कार, भाषा, रहन-सहन सबका परिवर्तन करने में मैजारिटी बहुत तीव्र पुरुषार्थी निकले हैं। जैसे कोई नइ दुनिया में आ जाए। ऐसे नई रीति रसम, नया सम्बन्ध फिर भी अपने को सदा कल्प पहले वाले पुराने अधिकारी आत्माएं समझते चल रहे हैं। इसलिए स्वयं को परिवर्तन करने की विशेषता पर विशेष मुबारक। बापदादा को कितना प्यार से याद करते वह बापदादा के पास सदा ही पहुँचता है। स्वयं को भूल बाप को ही सदा हर बात में याद करते यह परिवर्तन विशेष है। और इसी प्यार के आधार पर चल रहे हैं। यह प्यार ही पालना कर रहा है। सूक्ष्म प्यार की पालना ही आगे बढ़ा रही है। अच्छा-

सभी को, जिन्होंने भी यादप्यार दिया है उन्हों को प्यार के सागर बाप का सदा प्यार की झोली भर-भरकर यादप्यार। भारतवासी बच्चे भी कम नहीं है, भारत का भाग्य तो विदेश वाले गा-गाकर खुश होते हैं। भारत वाले जगे तब विदेश को जगाया। जागने वाले तो भारत के हैं। अगर विदेश में भी यह सब नहीं होते तो इतने विदेश के सेन्टर भी कैसे होते। इसी के निमित्त चारो ओर, अिफ्रीका.. सब तरफ फैले हुए हैं। सेन्टर खोलते भी कितने में हैं। पैदा हुए, थोड़ा सा बड़े हुए, सेन्टर खोला। वह भी अपने पांव पर खड़े होकर, किसी पर आधार नहीं। निमन्त्रण मिले यह आधार नहीं। स्थूल, सूक्ष्म दोनों लगार हिम्मत रख सेन्टर खोल देते हैं। बाकी उन्हों की पालना करना यह तो आप लोगों की जिम्मेवारी है। हिम्मत में पीछे नहीं हैं। मदद देना यह बाप के साथ-साथ आपका भी कार्य है।

ज्ञान की गहराई को सुनकर खुश हो गये। योग और प्यार के आधार पर चल रहे हैं, लेकिन अभी ज्ञान की गहराई को जाना यह और भी इन्हों को सेवा के निमित्त बनायेगी। माइन्ड तैयार हो जाए उसके लिए ज्ञान की गहराई चाहिए। ज्ञान और बाप यह दोनों की महसूसता दिलाना, यह रिजल्ट अच्छी है। कोई भी जाता है तो कितने खुश होते हैं, जैसे कोई आकाश से सितारा नीचे आ जाए, ऐसी अनुभूति करते हैं। अच्छा-’’

दादी जी और जानकी दादी से:- दोनों में तीसरी मूर्त (दीदी) समाई हुई है। बाप समान हैं ही। बनना है नहीं। हैं ही! ऐसे अनुभव होता है! जैसे बाप ब्रह्मा का आधार ले सेवा करते हैं वैसे आप भी बापके माध्यम हो। वर्तमान समय बाप माध्यम द्वारा करावनहार अपना कार्य करा रहे हैं। विशेष माध्यम हो। ब्रह्मा के आकार द्वारा और आपके साकार द्वारा कार्य करा रहे हैं। बहुत-बहुत पद्म से भी ज्यादा बापदादा हर सेकण्ड याद और प्यार करते हैं। शृंगार हो। विशेष बाप का और मधुबन का शृंगार हो। बापदादा हर समय देख-देख हर्षित होते हैं। अच्छा –