03-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुगी ब्राह्मण - चतुर सुजान सौदागर, रत्नागर

रत्नागर बापदादा अपने चतुर सुजान बच्चों के प्रति बोले:-

आज रत्नागर बाप अपने सौदागर बच्चों को देख रहे हैं। सौदा सभी बच्चों ने किया है। किससे सौदा किया और किन्होंने किया है? दुनिया के हिसाब से तो बहुत भोले बच्चे हैं लेकिन भोले बच्चों ने चतुर-सुजान बाप को जाना। तो भोले वा चतुर हुए! दुनिया वाले जो अपने को अनेक बातों में चतुर समझते हैं उसके अन्तर में आप सबको भोले समझते हैं लेकिन आप सब उनको भोले कहते हो - क्योंकि चतुर-सुजान बाप को जानने की समझ, चतुराई उन्हों में नहीं है। आप लोगों ने मूल को जान लिया और वह विस्तार में जा रहे हैं। आप सबने एक में पदम पा लिया और वह अरब-खरब गिनते ही रह गये। पहचानने की आँख, जिसको श्रेष्ठ नॉलेज की आँख कहते हैं, वह कल्प-कल्प किसको प्राप्त होती है? आप भोली आत्माओं को। वे क्या और क्यों, ऐसे और कैसे के विस्तार में ढूँढते ही रह जाते हैं और आप सभी ने वो ही मेरा बाप है’, मेरा बाबा कहकर रत्नागर से सौदा कर लिया। ज्ञान सागर कहो, रत्नागर कहो, रत्नों की थालियाँ भर-भरकर दे रहे हैं। उन रत्नों से खेलते हो! रत्नों से पलते हो। रत्नों में झूलते हो। रत्न ही रत्न हैं। हिसाब कर सकते हो। कितने रत्न मिले हैं। अमृतवेले आँख खोलते बाप से मिलन मनाते, रत्नों से खेलते हो ना। सारे दिन में धन्धा कौन सा करते हो! रत्नों का धन्धा करते हो ना! बुद्धि में ज्ञान रत्नों की पाइंट्स गिनते हो ना। तो रत्नों के सौदागर, रत्नों की खानों के मालिक हो। जितने कार्य में लगाओ उतने बढ़ते ही जाते। सौदा करना अर्थात् मालामाल बनना। तो सौदा करना आ गया है! सौदा कर लिया है वा अभी करना है? सौदागर नम्बरवार हैं वा सभी नम्बर वन हैं? लक्ष्य तो सभी का नम्बर वन है लेकिन नम्बर वन सदा रत्नों में इतना बिजी रहेगा जो और कोई बातों को देखने, सुनने और सोचने की फुर्सत ही नहीं होगी। माया भी बिजी देख वापस चली जायेगी। माया को बार-बार भगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। तो आज बापदादा एक तरफ बड़े-बड़े नामीग्रामी नॉलेजफुल कहलाने वाले बच्चों को देख रहे थे, क्या-क्या कर रहे हैं! अनेक बातों की समझ है, एक बात की समझ नहीं है। उसके अन्तर में ब्राह्मण बच्चों को देख रहे थे। बापदादा भी दोनों का अन्तर देख गीत गा रहे थे। आप भी वह गीत गाते हो। जो ब्रह्मा बाप को बहुत प्रिय लगता है। बापदादा बच्चों के प्रति गा रहे हैं। जो ब्रह्मा बाप आज बहुत मस्ती में गा रहे थे - कितने भोले कितने प्यार मीठे-मीठे बच्चे। जैसे आप लोग बाप के लिए गाते हो ना। बाप भी बच्चों के लिए यही गीत गाते, ऐसे ही इसी स्मृति-स्वरूप में किसके प्यारे हैं, किसके मीठे हैं, कौन बच्चों का गीत गाता है! यह स्मृति सदा निर्मान बनाए स्व-अभिमान के नशे में स्थित कर देती है। इसी नशे में कोई नुकसान नहीं। इतना नशा रहता है! आधा कल्प आपने भगवान के गीत गाये और अब भगवान गीत गा रहे हैं। दोनों तरफ के बच्चों को देख हम और स्नेह दोनों आ रहे थे।

ब्रह्मा बाप को आज भारत के और विदेश के अनजान बच्चे विशेष याद आ रहे थे। दुनिया वाले तो उन्हों को वी.आई.पी (VIP) कहते हैं लेकिन बाप उन बच्चों को वी.आई.पी. अर्थात् वेरी इनोसेन्ट परसन, (Very Innocent Person) इस रूप में देख रहे थे। आप सेन्ट (Saint) हो वे इनोसेन्ट हैं लेकिन अभी उन्हों को भी अंचली दो। अंचली देने आती है! आपके लाइन में उन्हों का नम्बर अभी पीछे है वा आगे है? क्या समझते हो?(साइलेन्स की ड्रिल)

ऐसे विशेष साइलेन्स की शक्ति उन आत्माओं को दो। अभी संकल्प उठता है कि कोई सहारा, कोई नया रास्ता मिलना चाहिए। अभी चाह उत्पन्न हो रही है। अब राह दिखाना आप सबका कार्य है। एकता और दृढ़ता’ - यह दो साधन हैं राह दिखाने के। संगठन की शुभ भावना ऐसी आत्माओं को भावना का फल दिलाने के निमित्त बनेगी। सर्व का शुभ संकल्प, उन आत्माओं में भी शुभ कार्य करने के संकल्प को उत्पन्न करेगा। इसी विधि को अभी से अपनाओ। फिर भी बड़ा कार्य सफल तब होता है जब सबके शुभ संकल्पों की आहुति पड़ती है। समझा। बापदादा तो यही सभी के प्रति कहते हैं कि कोई बच्चा वंचित न रह जाए। आप सभी तो मालामाल हो गये ना। अच्छा-

ऐसे श्रेष्ठ सौदा करने वाले श्रेष्ठ सौदागर, सदा रत्नों से पलने और खेलने वाले मास्टर रत्नागर, बाप के अति स्नेही सदा सहयोगी सिकीलधे, पहचानने के नेत्रधारी, सदा सेवाधारी, सदा मेरा बाबाके गीत गाने वाले, विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से मुलाकात

मद्रास निवासियों प्रति:- ‘‘सभी उमंग-उत्साह में हो ना। सभी के मन में एक ही उमंग-उत्साह है ना कि बाप को कैसे प्रत्यक्ष करें! अभी तो स्टेज भी तैयार कर रहे हो ना। स्टेज तैयार कर रहे हो प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने के लिए। स्थूल झण्डा और भी लहराते हैं, आप सभी कौन सा झण्डा लहरायेंगे,(कपड़े वाला झण्डा लहरायेंगे) क्या करेंगे? वह तो हुआ निमित्त मात्र लेकिन असली झण्डा कौन सा लहरायेंगे। बाप को प्रत्यक्ष करने का। बाप आये हैं यह आवाज़ फैलाने का झण्डा लहरायेंगे। इसकी तैयारी कर रहे हो ना। सभी आत्मायें जो वंचित हैं उन्हों को रोशनी मिल जाए, रास्ता मिल जाए। यही पुरूषार्थ सभी कर रहे हैं और आगे भी करना है। अभी से यह लहर फैलायेंगे तब उस समय चारों ओर यह लहर फैला सकेंगे। ऐसी तैयारी की है ना। सदा यह सोचो जो अब तक कहाँ नहीं हुआ है वह हम करके दिखायेंगे। नया कुछ करना है। नई बात यही है जो सर्व आत्माओं को परिचय मिले और वह समझें, वर्णन करें, अनुभव करें कि बाप आ गये! अच्छा -’’

प्रश्न:- सबसे बड़ा खज़ाना कौन सा है? जिससे ही ज्ञान और योग की परख होती है?

उत्तर:- सबसे बड़ा खज़ाना है - खुशी। चाहे कितना भी ज्ञान हो, योग हो लेकिन खुशी की प्राप्ति नहीं तो ज्ञान ठीक नहीं। कोई भी परिस्थिति आ जाए खुशी गायब नहीं हो सकती। अविनाशी बाप का अविनाशी खज़ाना मिला है इसलिए खुशी कभी गायब नहीं हो सकती। योग लगाते लेकिन खुशी नहीं तो योग ठीक नहीं। आपकी खुशी देख दूसरे आपसे पूछें कि आपको क्या मिला है! यही ज्ञान और योग की प्रत्यक्षता का साधन है।

प्रश्न:- किस लगन के आधार पर विघ्नों की समाप्ति स्वत: हो जाती है?

उत्तर:- एक बाप दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन रहो तो विघ्न टिक नहीं सकता। विघ्न है तो लगन नहीं। विघ्न भल आयें लेकिन उसका प्रभाव न पड़े। जब स्वयं प्रभावशाली आत्मा बन जाते तो किसी का प्रभाव नहीं पड़ सकता। जैसे सूर्य को कोई कितना भी छिपाये तो छिप नहीं सकता! सदा चमकता रहता है। ऐसे ही प्रभावशाली आत्माओं को कोई भी प्रभाव अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो सदा एक बाप दूसरा न कोई’, इसी लगन में मगन रहने वाले, यही विशेष संगमयुग का अनुभव है।

प्रश्न:- सदा अपने को श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मायें हैं - ऐसा अनुभव करते हो?

उत्तर:- श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कौन ? बाप। और बाप के साथ पार्ट बजाने वाले क्या हुए? विशेष पार्टधारी। ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं, यही सदा याद रहे। कोई कितना भी कई जन्म पुरूषार्थ करे लेकिन आप जैसा ऊँच पार्टधारी नहीं बन सकता। महात्मा बन सकते, धर्म पिता बन सकते। वह मैसेन्जर हैं, आप बच्चे हो। कितना रात-दिन का फर्क है। ऐसे अपने श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हो वा कभी भूलता, कभी याद रहता? जब हैं ही बच्चे तो भूल कैसे सकता! अविनाशी वर्सा प्राप्त होता है तो याद भी अविनाशी रहेगी। घर बैठे बिना मेहनत के बाप ने स्वयं आकर अपनी पहचान दी और अपना बनाया, आप लोग तो भटकते रहे। परिचय ही नहीं था, यथार्थ रूप का मालूम ही नहीं था, जिसको आया उसको ही बाप मान लिया। बड़ा भाई बाप समान हो सकता है लेकिन भाई से कोई वर्सा नहीं मिल सकता। पहचान न हाेने के कारण ढूँढते रहे। बाप ने जब परिचय दिया तब पाया। तो ऐसे खुशी के खज़ाने में सदा खेलते रहो, मिट्टी से कभी नहीं खेलना। छोटे कुल के बच्चे मिट्टी से खेलते हैं। रॉयल बच्चे मिट्टी से नहीं खेल सकते। वह तो सदा रत्नों से खेलेंगे।

अच्छा - ओम शान्ति।