20-02-84 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
एक सर्वश्रेष्ठ, महान, और सुहावनी घड़ी
विश्व परिवर्तन के निमित्त बनाने वाले बापदादा अपने देशी और विदेशी बच्चों प्रति बोले:-
आज भाग्य बनाने वाले बाप श्रेष्ठ भाग्यवान सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा कैसे कल्प पहले मुआफिक तकदीर जगाकर पहुँच गया है। तकदीर जगाकर आये हो। पहचानना अर्थात् तकदीर जगना। विशेष डबल विदेशी बच्चों का वरदान भूमि पर संगठन हो रहा है। यह संगठन तकदीरवान बच्चों का संगठन है। सबसे पहले तकदीर खुलने का श्रेष्ठ समय वा श्रेष्ठ घड़ी वो ही है जब बच्चों ने जाना, माना - मेरा बाप। वह घड़ी ही सारे कल्प के अन्दर श्रेष्ठ और सुहावनी है। सभी को उस घड़ी की स्मृति अब भी आती है ना! बनना, मिलना, अधिकार पाना यह तो सारा संगमयुग ही अनुभव करते रहेंगे। लेकिन वह घड़ी जिसमें अनाथ से सनाथ बने, क्या से क्या बने। बिछुड़े हुए फिर से मिले। अप्राप्त आत्मा प्राप्ति के दाता की बनी वह पहली परिवर्तन की घड़ी, तकदीर जगने की घड़ी कितनी श्रेष्ठ महान है। स्वर्ग के जीवन से भी वह पहली घड़ी महान है जब बाप के बन गये। मेरा सो तेरा हो गया। तेरा माना और डबल लाइट बने। मेरे के बोझ से हल्के बन गये। खुशी के पंख लग गये। फर्श से अर्श पर उड़ने लगे। पत्थर से हीरा बन गये। अनेक चक्करों से छूट स्वदर्शन चक्रधारी बन गये। वह घड़ी याद है? वह बृहस्पति के दशा की घड़ी जिसमें तन-मन-धनजन सर्व प्राप्ति की तकदीर भरी हुई है। ऐसी दशा, ऐसी रेखा वाली वेला में श्रेष्ठ तकदीरवान बने। तीसरा नेत्र खुला और बाप को देखा। सभी अनुभवी हो ना? दिल में गीत गाते हो ना वह श्रेष्ठ घड़ी। कमाल तो उस घड़ी की है ना! बापदादा ऐसी महान वेला में, तकदीरवान वेला में आये हुए बच्चों को देखे-देख खुश हो रहे हैं।
ब्रह्मा बाप भी बोले, वाह मेरे आदि देव के आदिकाल के राज्य भाग्य अधिकारी बच्चे! शिव बाप बोले - वाह मेरे अनादि काल के अनादि अविनाशी अधिकार को पाने वाले बच्चे! बाप और दादा दोनों के अधिकारी सिकीलधे स्नेही साथी बच्चे हो। बापदादा को नशा है। विश्व में सभी आत्मायें जीवन का साथी, सच्चा साथी प्रीत की रीति निभाने वाले साथी बहुत ढूँढने के बाद पाते भी हैं फिर भी सन्तुष्ट नहीं होते। एक भी ऐसा साथी नहीं मिलता। और बापदादा को कितने जीवन के साथी मिले हैं! और एक-एक एक दो से महान हैं। सच्चे साथी हो ना! ऐसे सच्चे साथी हो जो प्राण जाए लेकिन प्रीति की रीति न जाए। ऐसे सच्चे साथी जीवन के साथी हो।
बापदादा की जीवन क्या है, जानते हो? विश्व सेवा ही बापदादा की जीवन है। ऐसी जीवन के साथी आप सभी हो ना। इसलिए सच्चे जीवन के साथी साथ निभाने वाले, बापदादा के कितने बच्चे हैं। दिन-रात किसमें बिजी रहते हो? साथ निभाने में ना। सभी जीवन साथी बच्चों के अन्दर सदा क्या संकल्प रहता है? सेवा का नगाड़ा बजावें। अभी भी सभी मुहब्बत में मगन हो। सेवा के साथी बन सेवा का सबूत लेकर आये हो ना। लक्ष्य प्रमाण सफलता को पाते जा रहे हो। जितना किया वह ड्रामा अनुसार बहुत अच्छा किया। और आगे बढ़ना है ना। इस वर्ष आवाज़ बुलन्द तो किया लेकिन अभी कोई-कोई तरफ के माइक लाये हैं। चारों ओर के माइक नहीं आये हैं। इसलिए आवाज़ तो फैला लेकिन चारों ओर के निमित्त बने हुए आवाज़ बुलन्द करने वाले बड़े माइक कहो या सेवा के निमित्त आत्मायें कहो, यहाँ आये और हरेक अपने को अपने तरफ का मैसेन्जर समझकर जाते हैं। जिस तरफ से आयें उस तरफ के मैसेन्जर बनें। लेकिन चारों ओर के माइक आयें और मैसेन्जर बन जाएँ। चारों तरफ हर कोने से ये मैसेज सर्व को मिल जाए तो एक ही समय चारों ओर का आवाज़ निकले। इसको कहा जाता है बड़ा नगाड़ा बजना। चारों ओर एक नगाड़ा बजे, एक ही है। एक हैं। तब कहेंगे प्रत्यक्षता का नगाड़ा।
अभी हर एक देश के बैण्ड बजे हैं। नगाड़ा बजना है अभी। बैण्ड अच्छी बजाई है। इसलिए बापदादा भिन्न-भिन्न देश के निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा वैराइटी बैण्ड सुन और देख खुश हो रहे हैं। भारत की भी बैण्ड सुनी। बैण्ड की आवाज़ और नगाड़े की आवाज़ में भी फर्क है। मन्दिरों में बैण्ड के बजाए नगाड़ा बजाते हैं। अब समझा आगे क्या करना है? संगठन रूप का आवाज़, बुलन्द आवाज़ होता है। अभी भी सिर्फ एक हाँ जी कहे और सभी मिलकर हाँ जी कहें तो फर्क होगा ना। एक है, एक ही हैं, यही एक हैं। यह बुलन्द आवाज़ चारों ओर से एक ही समय पर निकले। टी.वी. में देखो, रेडियो में देखो, अखबारों में देखो, मुख में देखो यही एक बुलन्द आवाज़ हो। इन्टरनेशनल आवाज़ हो। इसलिए तो बापदादा जीवन साथियों को देख खुश होते है। जिसके इतने जीवन साथी और एक-एक महान तो सर्व कार्य हुए ही पड़े हैं। सिर्फ बाप निमित्त बन श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध बना रहे हैं। अच्छा- अभी तो मिलने की सीजन है। सबसे छोटे और सिकीलधे पोलैण्ड वाले बच्चे हैं। छोटे बच्चे सदैव प्यारे होते हैं। पोलैण्ड वालों को यह नशा है ना कि हम सबसे ज्यादा सिकीलधे हैं। सर्व समस्याओं को पार कर फिर भी पहुँच तो गये हैं ना! इसको कहा जाता है लगन। लगन विघ्न को समाप्त कर देती है। बापदादा के भी और परिवार के भी प्यारे हो। पोलैण्ड और पोरचुगीज दोनों देश लगन वाले हैं। न भाषा देखी न पैसे को देखा लेकिन लगन ने उड़ा लिया। जहां स्नेह हैं वहां सहयोग अवश्य प्राप्त होता है। असम्भव से सम्भव हो जाता है। तो बापदादा ऐसे स्वीट बच्चों का स्नेह देख हर्षित होते हैं। और लगन से सेवा करने वाले निमित्त बने हुए बच्चों को भी आफरीन देते हैं। अच्छी ही मुहब्बत से मेहनत की है।
वैसे तो इस वर्ष अच्छे ग्रुप लायें हैं सभी ने। लेकिन इन देशों की भी विशेषता है। इसलिए बापदादा विशेष देख रहे हैं। सभी ने अपने-अपने स्थान पर वृद्धि को अच्छा प्राप्त किया है। इसलिए स्थानों के नाम नहीं लेते। लेकिन हर स्थान की विशेषता अपनी-अपनी है। मधुबन तक पहुँचना यही सेवा की विशेषता है। चारों ओर के जो भी निमित्त बच्चे हैं, उन्हों को बापदादा विशेष स्नेह के पुष्प भेंट कर रहे हैं। चारों ओर की एकानामी में नीचे ऊपर होते हुए भी इतनी आत्माओं को उड़ाकर ले आये हैं। यही मुहब्बत के साथ मेहनत की निशानी है। यह सफलता की निशानी है। इसलिए हरेक नाम सहित स्नेह के पुष्प स्वीकार करना। जो नहीं भी आयें हैं उन्हों के याद-पत्र बहुत मालायें लाई हैं। तो बापदादा साकार रूप से न पहुँचने वाले बच्चों को भी स्नेह भरी यादप्यार दे रहे हैं। चारों ओर कि तरफ से आये हुए बच्चों की याद प्यार का रेसपाण्ड दे रहे हैं। सभी स्नेही हो। बापदादा के जीवन साथी हो। सदा साथ निभाने वाले समीप रत्न हो। इसलिए सभी की याद पत्रों के पहले मैसेन्जर के पहले ही बापदादा के पास पहुँच गई और पहुँचती रहती है। सभी बच्चे अब यही सेवा की धूम मचाओ। बाप द्वारा मिले हुए शान्ति और खुशी के खज़ाने सर्व आत्माओं को खूब बाँटो। सर्व आत्माओं की यही आवश्यकता है। सच्ची खुशी और सच्ची शान्ति की। खुशी के लिए कितना समय, धन और शारीरिक शक्ति भी खत्म कर देते हैं। हिप्पी बन जाते हैं। उन्हों को अब हैपी बनाओ। सर्व की आवश्यकता को पूर्ण करने वाले अन्नपूर्णा के भण्डार बनो। यही सन्देश सर्व विदेश के बच्चों को भेज देना। सभी बच्चों को मैसेज दे रहे हैं। कई ऐसे भी बच्चें हैं जो चलते-चलते थोड़ा सा अलबेलेपन के कारण तीव्र पुरुषार्थी से ढीले पुरुषार्थी हो जाते हैं। और कई माया के थोड़े समय के चक्र में भी आ जाते हैं। फिर भी जब फँस जाते हैं तो पश्चाताप में आते हैं। पहले माया की आकर्षण के कारण चक्र नहीं लगता लेकिन आराम लगता है। फिर जब चक्र में फँस जाते हैं तो होश में आ जाते हैं और जब होश में आते हैं तो कहते - बाबा-बाबा क्या करें। ऐसे चक्र के वश होने वाले बच्चों के भी बहुत पत्र आते हैं। ऐसे बच्चों को भी बापदादा यादप्यार दे रहे हैं। और फिर से यही याद दिला रहे हैं। जैसे भारत में कहावत है कि ‘रात का भूला अगर दिन में घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता’। ऐसे फिर से जागृति आ गई तो बीती सो बीती। फिर से नया उमंग नया उत्साह नई जीवन का अनुभव करके आगे बढ़ सकते हैं।
बापदादा भी तीन बार माफ करते हैं। तीन बार फिर भी चांस देते हैं। इसलिए कोई भी संकोच नहीं करें। संकोच को छोड़कर स्नेह में आ जाए तो फिर से अपनी उन्नती कर सकते हैं। ऐसे बच्चों को भी विशेष सन्देश देना। कोई-कोई सरकमस्टाँस के कारण नहीं आ सके है और वह बहुत तड़पते याद कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों की सच्ची दिल को जानते हैं। जहाँ सच्ची दिल हैं वहां आज नहीं तो कल फलता है ही। अच्छा-
सामने डबल विदेशी हैं। उन्हों की सीजन है ना। सीजन वालों को पहले खिलाया जाता है। सभी देश वाले अर्थात् भाग्यवान आत्माओं को, देश वालों को यह भी एडीशन में नशा है कि हम बाप के अवतरित भूमि वाले हैं। ऐसे सेवा की भारत भूमि, बाप की अवतरण भूमि और भविष्य की राज्य भूमि वाले सभी बच्चों को बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं। क्योंकि सभी ने अपनी-अपनी लगन, उमंग उत्साह प्रमाण सेवा की। और सेवा द्वारा अनेक आत्माओं को बाप के समीप लाया। इसलिए सेवा के रिटर्न में बापदादा सभी बच्चों को स्नेह के पुष्पों का गुलदस्ता दे रहे हैं। स्वागत कर रहे हैं। आप भी सभी को गुलदस्ता दे स्वागत करते हो ना। तो सभी बच्चों को गुलदस्ता भी दे रहे हैं और सफलता का बैज भी लगा रहे हैं। हरेक बच्चे अपने-अपने नाम से बापदादा द्वारा मिला हुआ बैज और गुलदस्ता स्वीकार करना। अच्छा-
जोन वाली दादियाँ तो हैं ही चेयरमैन। चेयरमैन अर्थात् सदा सीट पर सेट होने वालीं। जो सदा सीट पर सेट हैं उनको ही चेयरमैन कहा जाता है। सदा चेयर के साथ नियर भी हैं। इसलिए सदा बाप के आदि सो अन्त तक हर कदम के साथी हैं। बाप का कदम और उन्हों का कदम सदा एक हैं। कदम ऊपर कदम रखने वालीं हैं। इसलिए ऐसे सदा के हर कदम के साथियों को पद्म, पद्म, पद्म गुणा यादप्यार बापदादा दे रहे हैं। और बहुत सुन्दर हीरे का पद्म पुष्प बाप द्वारा स्वीकार हो। महारथियों में भाई भी आ गये हैं। पाण्डव सदा शक्तियों के साथी हैं। पाण्डवों को यह खुशी है कि शक्ति सेना और पाण्डव दोनों मिलकर जो बाप के निमित्त बने हुए कार्य हैं उन्हों को सफल करने वाले सफलतामूर्त्त हैं। इसलिए पाण्डव भी कम नहीं, पाण्डव भी महान हैं। हर पाण्डव की विशेषता अपनी-अपनी हैं। विशेष सेवा कर रहे हैं। और उसी विशेषता के आधार पर बाप और परिवार के आगे विशेष आत्मायें हैं। इसलिए ऐसी सेवा के निमित्त विशेष आत्माओं को विशेष रूप से बापदादा विजय के तिलक से स्वागत कर रहे हैं। समझा। अच्छा-
आप सभी को तो सब मिल गया ना। कमल, तिलक, गुलदस्ता, बैज सब मिला ना। डबल विदेशियों की स्वागत कितने प्रकार से हो गई। यादप्यार तो सभी को मिल ही गया। फिर भी डबल विदेशी और स्व देशी सभी बच्चे सदा उन्नती को पाते रहो, विश्व को परिवर्तन कर सदा के लिए सुखी और शान्त बनाते रहो। सबको खुश खबरी सुनाते रहो, खुशी के झूले में झुलाते रहो। ऐसे विशेष सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
ट्रीनीडाड पार्टी से:- सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें हैं, ऐसे समझते हो! ब्राह्मणों को सदा ऊँची चोटी की निशानी दिखाते हैं। ऊँचे ते ऊँचा बाप और ऊँचे ते ऊँचा समय तो स्वयं भी ऊँचे हुए। जो सदा ऊँची स्थिति पर स्थित रहते हैं वह सदा ही डबल लाइट स्वयं को अनुभव करते हैं। किसी भी प्रकार का बोझ नहीं। न सम्बन्ध का, न अपने कोई पुराने स्वभाव संस्कार का। इसको कहते हैं सर्व बन्धनों से मुक्त। ऐसे फ्री हो? सारा ग्रुप निर्बन्धन ग्रुप है। आत्मा से और शरीर के सम्बन्ध से भी। निर्बन्धन आत्मायें क्या करेंगी? सेन्टर सम्भालेंगी ना। तो कितने सेवाकेन्द्र खोलने चाहिए। टाइम भी है और डबल लाइट भी हो तो आप समान बनायेंगी ना! जो मिला है वह औरों को देना है। समझते हो ना कि आज के विश्व की आत्माओं को इसी अनुभव की कितनी आवश्यकता है! ऐसे समय पर आप प्राप्ति स्वरूप आत्माओं का क्या कार्य है! तो अभी सेवा को और वृद्धि को प्राप्त कराओ। ट्रीनीडाड वैसे भी सम्पन्न देश है तो सबसे ज्यादा संख्या ट्रीनीडाड सेन्टर की होनी चाहिए। आसपास भी बहुत एरिया है, तरस नहीं पड़ता? सेन्टर भी खोलो और बड़े-बड़े माइक भी लाओ। इतनी हिम्मत वाली आत्मायें जो चाहे वह कर सकती हैं। जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों द्वारा श्रेष्ठ सेवा समाई हुई है। अच्छा-