01-03-84 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
एक का हिसाब
स्नेह में लवलीन बच्चों प्रति अति मीठे बाबा बोले –
आज सर्व सहजयोगी, सदा सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। सर्व तरफ से आये हुए बाप के बच्चे - एक बल एक भरोसा, एक मत, एकरस, एक ही के गुण गाने वाले, एक ही के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले, एक के साथ सदा रहने वाले, एक ही प्रभु परिवार के एक लक्ष्य, एक ही लक्षण, सर्व को एक ही शुभ और श्रेष्ठ भावना से देखने वाले, सर्व को एक ही श्रेष्ठ शुभ कामना से सदा ऊँचा ऊड़ाने वाले, एक ही संसार, एक ही संसार में सर्व प्राप्ति का अनुभव करने वाले, आंख खोलते ही एक बाबा! हर एक काम करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते कर्मयोग वा सेवा का कार्य समाप्त करते एक के लव में लीन हो जाते, एक के साथ लवलीन बन जाते अर्थात् एक के स्नेह रूपी गोदी में समा जाते। दिन रात एक ही के साथ दिनचर्या बिताते। सेवा के सम्बन्ध में आते, परिवार के सम्बन्ध में आते फिर भी अनेक में एक देखते। एक बाप का परिवार है। एक बाप ने सेवा प्रति निमित्त बनाया है। इसी विधि से अनेकों के सम्बन्ध सम्पर्क में आते, अनेक में भी एक देखते। ब्राह्मण जीवन में, हीरो पार्टधारी बनने की जीवन में, पास विद् आनर बनने की जीवन में, सिर्फ सीखना है तो क्या? - ‘एक का हिसाब’। बस एक को जाना तो सब कुछ जाना। सब कुछ पाया। एक लिखना, सीखना, याद करना, सबसे सरल, सहज है।
वैसे भी भारत में कहावत है - ‘तीन-पाँच की बातें नहीं करो, एक की बात करो’। तीन-पाँच की बातें मुश्किल होती हैं, एक को याद करना, एक को जानना अति सहज है। तो यहाँ क्या सीखते हो? एक ही सीखते हो ना। एक में ही पदम समाए हुए हैं। इसीलिए बापदादा सहज रास्ता एक का ही बताते हैं। ‘एक का महत्व जानो और महान बनो’। सारा विस्तार एक में समाया हुआ है। सब ज्ञान आ गया ना। डबल फारेनर्स तो एक को अच्छी तरह जान गये हैं ना! अच्छा- आज सिर्फ आये हुए बच्चों को रिगार्ड देने के लिए, स्वागत करने के लिए एक का हिसाब सुना दिया।
बापदादा आज सिर्फ मिलने के लिए आये हैं। फिर भी सिकीलधे बच्चे जो आज वा कल आये हैं उन्हों के निमित्त कुछ न कुछ सुना लिया। बापदादा जानते हैं कि स्नेह के कारण कैसे मेहनत कर आने के साधन जुटाते हैं। मेहनत के ऊपर बाप की मुहब्बत पदमगुणा बच्चों के साथ है। इसीलिए बाप भी स्नेह और गौल्डन वर्शन्स से सभी बच्चों का स्वागत कर रहे हैं। अच्छा-
सर्व चारों ओर के स्नेह में लवलीन बच्चों को, सर्व लगन में मगन रहने वाले मन के मीत बच्चों को, सदा एक बाप के गीत गाने वाले बच्चों को, सदा प्रीति की रीति निभाने वाले साथी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात - जर्मन ग्रुप से
सभी अपने को सदा श्रेष्ठ भाग्यवान, श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? सदा यह खुशी रहती है कि हम ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे हैं? क्योंकि जैसा बाप वैसे बच्चे हैं ना। बाप सदा खुशी का भण्डार है तो बच्चे भी बाप समान होंगे ना। कभी भूलना, कभी याद रहना, इससे जीवन का मजा नहीं आ सकता। जब एकरस स्थिति हो तब जीवन में मजा है। कभी नीचे होंगे कभी ऊपर तो थक जायेंगे। वैसे भी किसको कहो बार-बार नीचे उतरो ऊपर चढ़ो तो थक जायेंगे ना। आप सब तो सदा बाप के साथ-साथ रहने वाले बाप समान आत्मायें हो ना! सेवा में सभी स्वयं से सन्तुष्ट हो? एक-दो से सन्तुष्ट हो? जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से संतुष्ट हैं उनको बापदादा सदा सन्तुष्ट मणियाँ कहते हैं। ऐसी सन्तुष्ट मणियाँ सदा ताज में चमकती हैं। ताज की मणियाँ अर्थात् सदा ऊँची स्थिति में स्थित रहने वाली। ऐसे ही अविनाशी भव। अच्छा-
इस क्लास में आप में से सबसे नॉलेजफुल, ज्ञानी तू आत्मा कौन है? (सभी) जैसा लक्ष्य होता है वैसा नम्बर आ ही जाता है। नम्बरवन का लक्ष्य है तो वह लक्षण आते रहेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों को देख खुश होते हैं - कैसे लगन से बाप की याद और सेवा में लगे हुए हैं। एक-एक रत्न बाप के आगे सदा ही महान है। बिना बाप की याद और सेवा के सारे दिन में चैन आता है कि बस वही लगन लगी रहती है। रिजल्ट अच्छी है जर्मनी की। रत्न भी अच्छे-अच्छे हैं और सेवा में जगह-जगह विस्तार भी अच्छा किया है, इसको कहा जाता है - बाप समान रहमदिल आत्मायें। अभी हिन्दी के अक्षर याद कर लो - थोड़ा-थोडा तो हिन्दी सीखेंगे ना। जब यहाँ थोड़े बहुत संस्कार डालेंगे तब तो सतयुग में भी बोल सकेंगे। वहाँ तो यह आपकी गिटपिट की भाषा होगी नहीं। हिन्दी न समझने कारण डायरेक्ट तो बाप का नहीं सुनते हो ना। अगर सीख जायेंगे तो डायरेक्ट सुनेंगे। बापदादा समझते हैं - बच्चे डायरेक्ट सुनें, डायरेक्ट सुनने से और मजा आयेगा। अच्छा - सेवा के लिए जितना भी आगे बढ़ो उतना बहुत अच्छा है। सर्विस के लिए किसी को मना नहीं है, जितने सेन्टर चाहो खोल सकते हो सिर्फ डायरेक्शन प्रमाण। उसमें सहज सफलता हो जाती है। अच्छा-
पौलैण्ड ग्रुप से - बापदादा को खुशी है कि सभी बच्चे अपने स्वीट होम में पहुँच गये। आप सबको भी यह खुशी है ना कि हम ऐसे महान तीर्थ पर पहुँच गये। श्रेष्ठ जीवन तो अभ्यास करते-करते बन ही जायेगी लेकिन ऐसा श्रेष्ठ भाग्य पा लिया जो इस स्थान पर अपने सच्चे ईश्वरीय स्नेह वाली परिवार में पहुँच गये। इतना खर्च करके आये हो इतनी मेहनत से आये हो, अभी समझते हो कि खर्चा और मेहनत सफल हुई। ऐसे तो नहीं समझते हो पता नहीं कहाँ पहुँच गये! कितना परिवार के और बाप के प्यारे हो। बापदादा सदा बच्चों की विशेषता को देखते हैं। आप लोग अपनी विशेषता को जानते हो? यह विशेषता तो हैं - जो लगन से इतना दूर से यहाँ पहुँचे। अभी सदा अपने ईश्वरीय परिवार को और इस ईश्वरीय विधि राजयोग को सदा साथ में रखते रहना। अभी वहाँ जाकर राजयोग केन्द्र अच्छी तरह से आगे बढ़ाना। क्योंकि कई ऐसी आत्मायें हैं जो सच्चे शान्ति, सच्चे प्रेम और सच्चे सुखकी प्यासी हैं। उन्हों को रास्ता तो बतायेंगे ना। वैसे भी कोई पानी का प्यासा हो, अगर समय पर कोई उसे पानी पिलाता है तो जीवन भर वह उसके गुण गाता रहता है। तो आप जन्म-जन्मान्तर के लिए आत्माओं के सुख-शान्ति की प्यास बुझाना, इससे पुण्य आत्मा बन जायेंगे। आपकी खुशी देखकर सब खुश हो जायेंगे। खुशी ही सेवा का साधन है। इस महान तीर्थ स्थान पर पहुँचने से सभी तीर्थ इसमें समाये हुए हैं।
इस महान तीर्थ पर ज्ञान स्नान करो और जो कुछ कमज़ोरी है उसका दान करो। तीर्थ पर कुछ छोड़ना भी होता है। क्या छोड़ेंगे? जिस बात में आप परेशान होते हो वही छोड़ना है। बस। तब महान तीर्थ सफल हो जाता है। यही दान करो तो इसी दान से पुण्य आत्मा बन जायेंगे क्योंकि बुराई छोड़ना अर्थात् अच्छाई धारण करना। जब अवगुण छोड़ेंगे, गुण धारण करेंगे तो पुण्य आत्मा हो जायेंगे। यही है इस महान तीर्थ की सफलता। महान तीर्थ पर आये यह तो बहुत अच्छा - आना अर्थात् भाग्यवान की लिस्ट में हो जाना, इतनी शक्ति है इस महान तीर्थ की। लेकिन आगे क्या करना है। एक है भाग्यवान बनना दूसरा है सौभाग्यवान बनना और उसके आगे है पदमापदम भाग्यवान बनना। जितना संग करते रहेंगे, गुणों की धारणा करते रहेंगे, उतना पदमापदम भाग्यवान बनते जायेंगे। अच्छा-
सेवाधारियों से:- यज्ञ सेवा का भाग्य मिलना यह भी बहुत बड़े भाग्य की निशानी है। चाहे भाषण नहीं करो, कोर्स नहीं कराओ लेकिन सेवा की मार्क्स तो मिलेंगी ना। इसमें भी पास हो जायेंगे। हर सब्जेक्ट की अपनी-अपनी मार्क्स है। ऐसे नहीं समझो कि हम भाषण नहीं कर सकते तो पीछे हैं। सेवाधारी सदा ही वर्तमान और भविष्य फल के अधिकारी हैं। खुशी होती है ना! माताओ को मन का नाचना आता है। और कुछ भी नहीं करो, सिर्फ खुशी में मन से नाचती रहो तो भी बहुत सेवा हो जायेगी। अच्छा- ओम् शान्ति।