22-04-84 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विचित्र बाप द्वारा विचित्र पढ़ाई तथा विचित्र प्राप्ति
श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी बनाने वाले सत बाप, सत शिक्षक - ज्ञान स्वरूप बच्चों प्रति बोले:-
आज रूहानी बाप अपने रूहानी बच्चों से मिलने आये हैं। रूहानी बाप हर- एक रूह को देख रहे हैं कि हर-एक में कितनी रूहानी शक्ति भरी हुई है। हर एक आत्मा कितनी खुशी स्वरूप बनी है। रूहानी बाप अविनाशी खुशी का खज़ाना बच्चों को जन्म-सिद्ध अधिकार में दिया हुआ देख रहे हैं कि हरेक ने अपना वर्सा, अधिकार कहाँ तक जीवन में प्राप्त किया है। खज़ाने के बालक सो मालिक बने हैं! बाप दाता है, सभी बच्चों को पूरा ही अधिकार देते हैं। लेकिन हर एक बच्चा अपनी-अपनी धारणा की शक्ति प्रमाण अधिकारी बनता है। बाप का तो सभी बच्चों के प्रति एक ही शुभ संकल्प है कि हर एक आत्मा रूपी बच्चा सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न अनेक जन्मों के लिए सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी बन जाएँ। ऐसे प्राप्ति करने के उमंग उत्साह में रहने वाले बच्चों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। हर एक छोटा-बड़ा, बच्चा युवा वा वृद्ध मीठी-मीठी मातायें, अनपढ़ या पढ़े हुए, शरीर से निर्बल फिर भी आत्मायें कितनी बलवान हैं! एक परमात्मा की लगन कितनी है! अनुभव है कि हमने परमात्मा बाप को जाना, सब कुछ जाना। बापदादा भी ऐसे अनुभवी आत्माओं को सदा यही वरदान देते हैं - ‘हे लगन में मगन रहने वाले बच्चे, सदा याद में जीते रहो। सदा सुख शान्ति की प्राप्ति में पलते रहो। अविनाशी खुशी के झूले में झूलते रहो। और विश्व की सभी आत्माओं रूपी अपने रूहानी भाईयों को सुख-शान्ति का सहज साधन सुनाते हुए, उन्हों को भी रूहानी बाप के रूहानी वर्से के अधिकारी बनाओ’। यही एक पाठ सभी को पढ़ाओ। हम सब आत्मायें एक बाप के हैं। एक ही परिवार के हैं, एक ही घर के हैं। एक ही सृष्टि मंच पर पार्ट बजाने वाले हैं। हम सर्व आत्माओं का एक ही स्वधर्म शान्ति और पवित्रता है। बस इसी पाठ से स्व-परिवर्तन और विश्व परिवर्तन कर रहे हो और निश्चित होना ही है। सहज बात है ना! मुश्किल तो नहीं। अनपढ़ भी इस पाठ से नॉलेजफुल बन गये हो। क्योंकि रचयिता बीज को जान रचयिता द्वारा रचना को स्वत: ही जान जाते। सभी नॉलेजफुल हो ना! सारी पढ़ाई - रचता और रचना की, सिर्फ तीन शब्दों में पढ़ ली है। ‘आत्मा परमात्मा और सृष्टि चक्र।’ इन तीनों शब्दों से क्या बन गये हो! कौन-सा सार्टिफिकेट मिला है? बी.ए., एम.ए. का सार्टिफिकेट तो नहीं मिला। लेकिन ‘त्रिकालदर्शी, ज्ञान स्वरूप’ यह टाइटल तो मिले हैं ना। और सोर्स आफ इन्कम क्या हुआ? क्या मिला? सत शिक्षक द्वारा अविनाशी जन्म-जन्म सर्व प्राप्ति की गैरन्टी मिली है। वैसे टीचर गैरन्टी नहीं देता कि सदा कमाते रहेंगे वा धनवान रहेंगे। वह सिर्फ पढ़ा के योग्य बना देते हैं। तुम बच्चों को वा गाडली स्टूडेन्ट को बाप-शिक्षक द्वारा, वर्तमान के आधार से 21 जन्म सतयुग त्रेता के सदा ही सुख शान्ति, सम्पत्ति, आनन्द, प्रेम, सुखदाई परिवार मिलना ही है। मिलेगा नहीं, मिलना ही है। यह गैरन्टी है। क्योंकि अविनाशी बाप है, अविनाशी शिक्षक है। तो अविनाशी द्वारा प्राप्ति भी अविनाशी है। यही खुशी के गीत गाते हो ना कि हमें सत बाप, सत शिक्षक द्वारा सर्व प्राप्ति का अधिकार मिल गया। इसी को ही कहा जाता है - विचित्र बाप, विचित्र स्टूडेन्टस और विचित्र पढ़ाई वा विचित्र प्राप्ति। जो कोई भी कितना भी पढ़ा हुआ हो लेकिन इस विचित्र बाप और शिक्षक की पढ़ाई वा वर्से को जान नहीं सकते। चित्र निकाल नहीं सकते। जाने भी कैसे। इतना बड़ा ऊँचे ते ऊँचा बाप शिक्षक और पढ़ाता कहाँ और किसको हैं! कितने साधारण हैं! मानव से देवता बनाने की, सदा के लिए चरित्रवान बनाने की पढ़ाई है और पढ़ने वाले कौन हैं? जिसको कोई नहीं पढ़ा सकते उनको बाप पढ़ाते हैं। जिसको दुनिया पढ़ा सकती, बाप भी उन्हों को ही पढ़ावे तो क्या बड़ी बात हुई! ना उम्मीद आत्माओं को ही उम्मीदवार बनाते हैं। असम्भव को सम्भव कराते हैं। इसलिए ही गायन है - ‘तुम्हारी गत मत तुम ही जानो।’ बापदादा ऐसे नाउम्मीद से उम्मीदवार बनने वाले बच्चों को देख खुश होते हैं। भले आये। बाप के घर के श्रृंगार भले पधारे। अच्छा-
सदा स्वयं को श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, एक जन्म में अनेक जन्मों की प्राप्ति कराने वाले ज्ञान स्वरूप बच्चों को, सदा एक पाठ पढ़ाने और पढ़ने वाले श्रेष्ठ बच्चों को, सदा वरदाता बाप के वरदानों में पलने वाले भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
बापदादा के सम्मुख सिरोही के इनकम टैक्स ऑफीसर बैठे हैं, उनके प्रति उच्चारे हुए मधुर महावाक्य
यह तो समझते हो ना कि अपने घर में आये हैं? यह घर किसका है? परमात्मा का घर, सबका घर हुआ ना? तो आपका भी घर हुआ ना? घर में आये यह तो बहुत अच्छा किया - अब और अच्छे ते अच्छा क्या करेंगे? अच्छे ते अच्छा करना और ऊँचे ते ऊँचा बनना यह तो जीवन का लक्ष्य होता ही है। अब अच्छे ते अच्छा क्या करना है? जो पाठ अभी सुनाया - वह एक ही पाठ पक्का कर लिया तो इस एक पाठ में सब पढ़ाई समाई हुई है। यह वन्डरफुल विश्व विद्यालय है, देखने में घर भी है लेकिन बाप ही सत शिक्षक है, घर भी है और विद्यालय भी है। इसलिए कई लोग समझ नहीं सकते हैं - कि यह घर है या विद्यालय है। लेकिन घर भी है और विद्यालय भी है क्योंकि जो सबसे श्रेष्ठ पाठ है, पह पढ़ाया जाता है। कालेज में वा स्कूल में पढ़ाने का लक्ष्य क्या है? चरित्रवान बने, कमाई योग्य बने, परिवार को अच्छी तरह से पालना करने वाला बने, यही लक्ष्य है ना। तो यहाँ यह सब लक्ष्य पूरा हो ही जाता है। एक-एक चरित्रवान बन जाता है।
भारत देश के नेतायें क्या चाहते हैं? भारत का बापू जी क्या चाहता था? यही चाहता था ना - कि भारत लाइट हाउस बने। भारत - दुनिया के आध्यात्मिक शक्ति का केन्द्र बने। वही कार्य यहाँ गुप्त रूप से हो रहा है। अगर एक भी राम-सीता समान बन जाए तो एक राम-सीता के कारण रामराज्य हुआ और इतने सब राम-सीता के समान बन जाएं तो क्या होगा? तो यह पाठ मुश्किल नहीं है, बहुत सहज है। इस पाठ को पक्का करेंगे तो आप भी सत् टीचर द्वारा रूहानी सार्टिफिकेट भी लेंगे और फिर गैरन्टी भी ले लेंगे - सोर्स आफ इनकम की। बाकी वण्डरफुल जरूर है। दादा भी, परदादा भी यहाँ ही पढ़ता है तो पोत्रा-धोत्रा भी यहाँ ही पढ़ता है। एक ही क्लास में दोनों ही पढ़ते हैं क्यांकि आत्माओं को यहाँ पढ़ाया जाता है, शरीर को नहीं देखा जाता है। आत्मा को पढ़ाया जाता है - चाहे पांच साल का बच्चा है, वह भी यह पाठ तो पढ़ सकता है ना। और बच्चा ज्यादा काम कर सकता है। और जो बुजुर्ग हो गये उन्हों के जिए भी यह पाठ जरूरी है, नहीं तो जीवन से निराश हो जाते हैं। अनपढ़ मातायें उन्हों को भी श्रेष्ठ जीवन तो चाहिए ना। इसलिए सत शिक्षक सभी को पढ़ाता है। चाहे कितना भी वी.वी.वी.आई.पी. हो लेकिन सत् शिक्षक के लिए तो सब स्टूडेण्ट हैं। यह एक ही पाठ सबको पढ़ाता है। तो क्या करेंगे? पाठ पढ़ेंगे ना, फायदा आपको ही होगा। जो करेगा वो पायेगा। जितना करेंगे उतना फायदा होगा - क्योंकि यहॉ एक का पद्मगुणा होकर मिलता है। वहाँ विनाशी में ऐसा नहीं है। अविनाशी पढ़ाई में एक का पद्म हो जायेगा क्योंकि दाता है ना! अच्छा-
राजस्थान जोन से बापदादा की मुलाकात:-
राजस्थान जोन की विशेषता क्या है? राजस्थान में ही मुख्य केन्द्र है। तो जैसे जोन की विशेषता है वैसे राजस्थान निवासियों की भी विशेषता होगी ना! अभी राजस्थान में कोई विशेष हीरे निकलने हैं या आप ही विशेष हीरे हो? आप तो सबसे विशेष हो ही लेकिन सेवा के क्षेत्र में दुनिया की नजरों में जो विशेष हैं, उन्हों को भी सेवा के निमित्त बनाना है। ऐसी सेवा की है? राजस्थान को सबसे नम्बरवन होना चाहिए। संख्या में, क्वालिटी में, सेवा की विशेषता में, सब में नम्बरवन! मुख्य केन्द्र नम्बरवन तो है ही लेकिन उसका प्रभाव सारे राजस्थान में होना चाहिए। अभी नम्बरवन संख्या में महाराष्ट्र, गुजरात को गिनती करते हैं। अभी यह गिनती करें कि सबसे नम्बरवन - राजस्थान है। अभी इस वर्ष तैयारी करो। अगले वर्ष महाराष्ट्र और गुजरात से भी नम्बरवन जाना। निश्चय बुद्धि विजयी। कितने अच्छे-अच्छे अनुभवी रत्न हैं। सेवा को आगे बढ़ायेंगे - जरूर बढ़ेगी। अच्छा-