29-04-84 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ज्ञान सूर्य के रूहानी सितारों की भिन्न-भिन्न विशेषताएँ
ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, बापदादा यथाशक्ति और शक्तिशाली सितारों के प्रति बोले:-
आज ज्ञान सूर्य ज्ञान चन्द्रमा, अपने वैरायटी सितारों को देख रहे हैं। कोई स्नेही सितारे हैं, कोई विशेष सहयोगी सितारें हैं, कोई सहजयोगी सितारे हैं, कोई श्रेष्ठ ज्ञानी सितारे हैं, कोई विशेष सेवा के उमंग वाले सितारे हैं। कोई मेहनत का फल खाने वाले सितारे हैं, कोई सहज सफलता के सितारे हैं। ऐसे भिन्न-भिन्न विशेषताओं वाले सभी सितारे हैं। ज्ञान सूर्य द्वारा सर्व सितारों को रूहानी रोशनी मिलने कारण चमकने वाले सितारे तो बन गये। लेकिन हरेक प्रकार के सितारों की विशेषता की झलक भिन्न-भिन्न है। जैसे स्थूल सितारे भिन्न-भिन्न ग्रह के रूप में भिन्न-भिन्न फल अल्पकाल का प्राप्त कराते हैं। ऐसे ज्ञान सूर्य के रूहानी सितारों का भी सर्व आत्माओं को अविनाशी प्राप्ति का सम्बन्ध है। जैसा स्वयं जिस विशेषतासे सम्पन्न सितारा है वैसा औरों को भी उसी प्रमाण फल की प्राप्ति कराने के निमित्त बनता है। जितना स्वयं ज्ञान चन्द्रमा वा सूर्य के समीप हैं उतना औरों को भी समीप सम्बन्ध में लाते हैं अर्थात् ज्ञान सूर्य द्वारा मिली हुई विशेषताओं के आधार पर औरों को डायरेक्ट विशेषताओं की शक्ति के आधार पर इतना समीप लाया है जो उन्हों का डायरेक्ट ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा से सम्बन्ध हो जाता है। इतने शक्तिशाली सितारे हो ना! अगर स्वयं शक्तिशाली नहीं, समीप नहीं तो डायरेक्ट कनेक्शन नहीं जुटा सकते। दूर होने के कारण उन्हीं सितारों की विशेषता अनुसार उन्हों के द्वारा जितनी शक्ति, सम्बन्ध सम्पर्क प्राप्त कर सकते हैं उतनी यथा शक्ति प्राप्ति करते रहते हैं। डायरेक्ट शक्ति लेने की शक्ति नहीं होती है। इसलिए जैसे ज्ञान सूर्य ऊँचे ते ऊँचे हैं, विशेष सितारे ऊँचे हैं। वैसे ऊँची स्थिति का अनुभव नहीं कर सकते। यथा शक्ति, यथा प्राप्ति करते हैं। जैसी शक्तिशाली स्थिति होनी चाहिए वैसे अनुभव नहीं करते।
ऐसी आत्माओं के सदा यही बोल मन से वा मुख से निकलते कि होना यह चाहिए लेकिन है नहीं। बनना यह चाहिए लेकिन बने नहीं हैं। करना यह चाहिए लेकिन कर नहीं सकते। इसको कहा जाता है - यथाशक्ति आत्मायें। सर्व शक्तिवान आत्मायें नहीं हैं। ऐसी आत्मायें वा स्व के वा दूसरों के विघ्न विनाशक नहीं बन सकते। थोड़ा-सा आगे बढ़े और विघ्न आया। एक विघ्न मिटाया, हिम्मत में आये, खुशी में आये फिर दूसरा विघ्न आयेगा। जीवन की अर्थात् पुरुषार्थी की लाइन सदा क्लीयर नहीं होगी। रूकना, बढ़ना इस विधि से आगे बढ़ते रहेंगे। और औरों को भी बढ़ाते रहेंगे। इसलिए रूकने और बढ़ने के कारण तीव्रगति का अनुभव नहीं होता। कब चलती कला, कब चढ़ती कला, कब उड़ती कला। एकरस शक्तिशाली अनुभूति नहीं होती। कभी समस्या, कभी समाधान स्वरूप। क्योंकि यथाशक्ति है। ज्ञान सूर्य से सर्व शक्तियों को ग्रहण करने की शक्ति नहीं। बीच का कोई सहारा जरूर चाहिए। इसको कहा जाता है - यथा-शक्ति आत्मा।
जैसे यहाँ ऊँची पहाड़ी पर चढ़ते हो। जिस भी वाहन पर आते हो, चाहे बस में, चाहे कार में, तो इन्जन पावरफुल होती है तो तीव्रगति से और बिना कोई हवा पानी के सहारे सीधा ही पहुँच जाते हो। और इन्जन कमज़ोर है तो रूक कर पानी वा हवा का सहारा लेना पड़ता है। नानस्टाप नहीं। स्टाप करना पड़ता है। ऐसी यथा शाक्ति आत्मायें, कोई न कोई आत्माओं का सैलवेशन का, साधनों का आधार लेने के बिना एक तीव्रगति उड़ती कला की मंज़िल पर पहुँच नहीं पाते हैं। कभी कहेंगे - आज खुशी कम हो गई, आज योग इतना शक्तिशाली नहीं है। आज इस धारणा करने में समझते हुए भी कमज़ोर हूँ। आज सेवा का उमंग नहीं आ रहा है। कभी पानी चाहिए, कभी हवा चाहिए, कभी धक्का चाहिए। इसको शक्तिशाली कहेंगे? हूँ तो अधिकारी, लेने में नम्बरवन अधिकारी हूँ। किसी से कम नहीं। और करने में क्या कहते? हम तो छोटे हैं। अभी नये हैं। पुराने नहीं है। सम्पूर्ण थोड़े ही बने हैं। अभी समय पड़ा है। बड़ों का दोष है। हमारा नहीं है। सीख रहे हैं, सीख जायेंगे। बापदादा तो सदा ही कहते हैं। सभी को चांस देना चाहिए। हमको भी यह चांस मिलना चाहिए। हमारा सुनना चाहिए। लेने में हम और करने में जैसे बड़े करेंगे। अधिकार लेने में अब और करने में कब कर लेंगे। लेने में बड़े बन जाते और करने में छोटे बन जाते। इसको कहा जाता है - यथा-शक्ति आत्मा।
बापदादा यह रमणीक खेल देख-देख मुस्कराते रहते हैं। बाप तो चतुर सुजान है। लेकिन मास्टर चतुर सुजान भी कम नहीं। इसलिए यथा-शक्ति आत्मा से अब मास्टर सर्वशक्तिवान बनो। करने वाले बनो। स्वत: ही शक्तिशाली कर्म का फल शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना का फल स्वत: ही प्राप्त होगा। सर्व प्राप्ति स्वयं ही आपके पीछे परछाई के समान अवश्य आयेगी। सिर्फ ज्ञान सूर्य की प्राप्त हुई शक्तियों की रोशनी में चलो तो सर्व प्राप्ति-रूपी परछाई आपे ही पीछे-पीछे आयेगी। समझा-
आज यथा-शक्ति और शक्तिशाली सितारों की रिमझिम देख रहे थे। अच्छा –
सभी तीव्रगति से भाग-भाग कर पहुँच गये हैं। बाप के घर में पहुँचे - तो बच्चों को कहेंगे भले पधारे। जैसा जितना भी स्थान है, आपका ही घर है। घर तो एक दिन में बढ़ेगा नहीं लेकिन संख्या तो बढ़ गई है ना। तो समाना पड़ेगा। स्थान और समय को संख्या प्रमाण ही चलाना पड़ेगा। सभी समा गये हो ना! ‘क्यू’ तो सभी बाद में लगेगी ही। फिर भी अभी भी बहुत-बहुत लकी हो। क्योंकि पाण्डव भवन वा जो स्थान है उसके अन्दर ही समा गये। बाहर तक तो क्यू नहीं गई है ना! वृद्धि होनी है, क्यू भी लगनी है। सदा हर बात में खुशी मौज में रहो। फिर भी बाप के घर में जैसा दिल का आराम कहाँ मिल सकेगा! इसलिए सदा हर हाल में सन्तुष्ट रहना, संगमयुग की वरदानी भूमि की तीन पैर पृथ्वी सतयुग के महलों से भी श्रेष्ठ है। इतनी बैठने की जगह मिली है यह भी बहुत श्रेष्ठ है। यह दिन भी फिर भी याद आयेगा। अभी फिर भी दृष्टि और टोली तो मिलती है। फिर दृष्टि और टोली दिलाने वाले बनना पड़ेगा। वृद्धि हो रही है यह भी खुशी की बात है ना। जो मिलता, जैसे मिलता सब में राजी और वृद्धि अर्थात् कल्याण है। अच्छा-
कर्नाटक विशेष सिकीलधा हो गया है। महाराष्ट्र भी सदा संख्या में महान रहा है। देहली ने भी रेस की है। भल वृद्धि को पाते रहो। यू.पी. भी किसी से कम नहीं है। हर स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। वह फिर सुनायेंगे।
बापदादा को भी साकार शरीर का आधार लेने के कारण समय की सीमा रखनी पड़ती है। फिर भी लोन लिया हुआ शरीर है। अपना तो नहीं है। शरीर का जिम्मेवार भी बापदादा हो जाता है। इसलिए बेहद का मालिक भी हद में बंध जाता है। अव्यक्त वतन में बेहद है। यहाँ तो संयम, समय और शरीर की शक्ति सब देखना पड़ता है। बेहद में आओ, मिलन मनाओ। वहाँ कोई नहीं कहेगा कि अभी आओ अभी जाओ वा नम्बरवार आओ। खुला निमन्त्रण है अथवा खुला अधिकार है। चाहे दो बजे आओ, चाहे चार बजे आओ। अच्छा -
सदा सर्व शक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा ज्ञान सूर्य के समीप और समान ऊँची स्थिति में स्थित रहने वाली विशेष आत्माओं को, सदा हर कर्म करने में ‘‘पहले मैं’’ का उमंग-उत्साह रखने वाले हिम्मतवान आत्माओं को, सदा सर्व को शक्तिशाली आत्मा बानाने वाले सर्व समीप बच्चों को ज्ञान-सूर्य, ज्ञान-चन्द्रमा का यादप्यार और नमस्ते।’’
दादियों से:- बापदादा को आप बच्चों पर नाज़ है, किस बात का नाज़ हैं? सदैव बाप अपने समान बच्चों को देख नाज़ करते हैं। जब बच्चे बाप से भी विशेष कार्य करके दिखाते तो बाप को कितना नाज़ होगा! दिन-रात बाप की याद और सेवा यह दोनों ही लगन लगी हुई है। लेकिनि महावीर बच्चों की विशेषता यह है कि पहले याद को रखते फिर सेवा को रखते। घोड़ेसवार और प्यादे पहले सेवा पीछे याद। इसलिए फर्क पड़ जाता है। पहले याद फिर सेवा करें तो सफलता है। पहले सेवा को रखने से सेवा में जो भी अच्छा-बुरा होता है उसके रूप में आ जाते हैं और पहले याद रखने से सहज ही न्यारे हो सकते हैं। तो बाप को भी नाज़ है ऐसे समान बच्चों पर! सारे विश्व में ऐसे समान बच्चे किसके होंगे? एक-एक बच्चे की विशेषता वर्णन करें तो भागवत बन जाए। शुरू से एक महारथी की विशेषता वर्णन करें तो भागवत बन जायेगा। मधुबन में जब ज्ञान-सूर्य और सितारे संगठित रूप में चमकते हैं तो मधुबन के आकाश की शोभा कितनी श्रेष्ठ हो जाती है। ज्ञान-सूर्य के साथ सितारे भी जरूर चाहिए।