12-12-84 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विशेष आत्माओं का फर्ज़
सदा दाता, वरदाता शिवबाबा अपने बच्चों प्रति बोले-
आज दिलाराम बाप अपने दिलखुश बच्चों से मिलने आये हैं। सारे विश्व में सदा दिल खुश आप बच्चे ही हैं। बाकी और सभी कभी न कभी किसी न किसी दिल के दर्द में दुखी हैं। ऐसे दिल के दर्द को हरण करने वाले दुःख हर्ता सुख दाता बाप के सुख स्वरूप आप बच्चे हो। और सभी के दिल के दर्द की पुकार हाय-हाय का आवाज़ निकलता है। और आप दिल-खुश बच्चों की दिल से सदा वाह-वाह का आवाज़ निकलता है। जैसे स्थूल शरीर के दर्द भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ऐसे आज की मनुष्य आत्माओं के दिल के दर्द भी अनेक प्रकार के हैं। कभी तन के कर्म भोग का दर्द, कभी सम्बन्ध सम्पर्क से दुखी होने का दर्द, कभी धन ज्यादा आया वा कम हो गया दोनों की चिंता का दर्द, और कभी प्राकृतिक आपदाओं से प्राप्त हुए दुःख का दर्द। कभी अल्पकाल की इच्छाओं की अप्राप्ति के दुःख दर्द, ऐसे एक दर्द से अनेक दर्द पैदा होते रहते हैं। विश्व ही दुःख दर्द की पुकार करने वाला बन गया है। ऐसे समय पर आप सुखदाई सुख स्वरूप बच्चों का फर्ज़ क्या है? जन्म-जन्म के दुःख दर्द के कर्ज़ से सभी को छुड़ाओ। यह पुराना कर्ज़ दुःख दर्द का मर्ज बन गया है। ऐसे समय पर आप सभी का फर्ज़ है दाता बन जिस आत्मा को जिस प्रकार के कर्ज़ का मर्ज लगा हुआ है उनको उस प्राप्ति से भरपूर करो। जैसे तन के कर्मभोग की दुःख दर्द वाली आत्मा को कर्मयोगी बन कर्मयोग से कर्म भोग समाप्त करे, ऐसे कर्मयोगी बनने की शक्ति की प्राप्ति महादान के रूप में दो। वरदान के रूप में दो, स्वयं तो कर्ज़दार हैं अर्थात् शक्तिहीन ही हैं, खाली हैं। ऐसे को अपने कर्मयोग की शक्ति का हिस्सा दो। कुछ न कुछ अपने खाते से अनेक खाते में जमा करो तब वह कर्ज़ के मर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इतना समय जो डायरेक्ट बाप के वारिस बन सर्व शक्तियों का वर्सा जमा किया है उस जमा किये हुए खाते से फराखदिली से दान करो, तब दिल के दर्द की समाप्ति कर सकेंगे। जैसे अन्तिम समय समीप आ रहा है, वैसे सर्व आत्माओं के भक्ति की शक्ति भी समाप्त हो रही है। द्वापर से रजोगुणी आत्माओं में फिर भी दान-पुण्य, भक्ति की शक्ति अपने खातों में जमा थी। इसलिए अपने आत्म-निर्वाह के लिए कुछ न कुछ शान्ति के साधन प्राप्त थे। लेकिन अब तमोगुणी आत्मायें इस थोड़े समय के सुख के आत्म-निर्वाह के साधनों से भी खाली हो गई हैं। अर्थात् भक्ति के फल को भी खाकर खाली हो गई हैं। अब नामधारी भक्ति है। फलस्वरूप भक्ति नहीं है। भक्ति का वृक्ष विस्तार को पा चुका है। वृक्ष की रंग-बिरंगी रंगत की रौनक जरूर है। लेकिन शक्तिहीन होने के कारण फल नही मिल सकता। जैसे स्थूल वृक्ष जब पूरा विस्तार को प्राप्त कर लेता, जड़जड़ीभूत अवस्था तक पहुँच जाता है तो फलदायक नहीं बन सकता है। लेकिन छाया देने वाला बन जाता है। ऐसे भक्ति का वृक्ष भी दिल खुश करने की छाया जरूर दे रहा है। गुरू कर लिया, मुक्ति मिल जायेगी। तीर्थयात्रा दान-पुण्य किया, प्राप्ति हो जायेगी। यह दिल खुश करने के दिलासे की छाया अभी रह गई है। ‘‘अभी नहीं तो कभी मिल जायेगा!’’ इसी छाया में बिचारे भोले भक्त आराम कर रहे हैं लेकिन फल नहीं है। इसलिए सबके आत्म-निर्वाह के खाते खाली हैं। तो ऐसे समय पर आप भरपूर आत्माओं का फर्ज़ है अपने जमा किये हुए हिस्से से ऐसी आत्माओं को हिम्मत हुल्लास दिलाना। जमा है या अपने प्रति ही कमाया और खाया! कमाया और खाया उसको राजयोगी नहीं कहेंगे। स्वराज्य अधिकारी नहीं कहेंगे। राजा के भण्डारे सदा भरपूर रहते हैं। प्रजा के पालना की जिम्मेवारी राजा पर होती है। स्वराज्य अधिकारी अर्थात् सर्व खज़ाने भरपूर। अगर खज़ाने भरपूर नहीं तो अब भी प्रजा- योगी हैं। राजयोगी नहीं। प्रजा कमाती और खाती है। साहूकार प्रजा थोड़ा बहुत जमा रखती है। लेकिन राजा खज़ानों का मालिक है। तो राजयोगी अर्थात् स्वराज्य अधिकारी आत्मायें। किसी भी खज़ाने में जमा का खाता खाली नहीं हो सकता। तो अपने को देखो कि खज़ाने भरपूर हैं? दाता के बच्चे सर्व को देने की भावना है वा अपने में ही मस्त हैं? स्व की पालना में ही समय बीत जाता वा औरों की पालना का समय और खज़ाना भरपूर है। यहाँ संगम से ही रूहानी पालना के संस्कार वाले भविष्य में प्रजा के पालनहार विश्व राजन् बन सकते हैं। राजा वा प्रजा का स्टैम्प यहाँ से ही लगता है। स्टेटस वहाँ मिलता है। अगर यहाँ की स्टैम्प नहीं तो स्टेटस नहीं। संगमयुग स्टैम्प आिफस है। बाप द्वारा ब्राह्मण परिवार द्वारा स्टैम्प लगती है। तो अपने आप को अच्छी तरह से देखो। स्टाक चेक करो। ऐसे न हो समय पर एक अप्राप्ति भी सम्पन्न बनने में धोखा दे देवे! जैसे स्थूल स्टाक जमा करते, अगर सब राशन जमा कर लिया लेकिन छोटा-सी माचिस रह गयी तो अनाज़ क्या करेंगे? अनेक प्राप्तियाँ होते भी एक अप्राप्ति धोखा दे सकती है। ऐसे एक भी अप्राप्ति सम्पन्नता का स्टैम्प लगाने के अधिकारी बनने में धोखा दे देगी।
यह नहीं सोचो - याद की शक्ति तो है, किसी गुण की कमी है तो कोई हर्जा नहीं। याद की शक्ति महान है, नम्बरवन है यह ठीक है। लेकिन किसी भी एक गुण की कमी भी समय पर फुल पास होने में फेल कर देगी। यह छोटी बात नहीं समझो। एक एक गुण का महत्व और सम्बन्ध क्या है, यह भी गहरा हिसाब है, वह फिर कभी सुनायेंगे।
आप विशेष आत्माओं की फर्ज़ अदाई क्या है, आज यह विशेष स्मृति दिलाई। समझा! इस समय देहली राजधानी वाले आये हैं ना। तो राज्य अधिकारी की बातें सुनाई। ऐसे ही राजधानी में महल नहीं मिल जायेगा। पालना कर प्रजा बनानी होगी। देहली वाले तो जोर-शोर से तैयारी कर रहे होंगे ना। राजधानी में रहना है ना, दूर तो नहीं जाना है ना!
गुजरात वाले तो अभी भी साथ हैं। संगम पर मधुबन के साथ हैं तो राज्य में भी साथ होंगे ना! साथ रहने का दृढ़ संकल्प किया हैं ना। तीसरा है इन्दौर। इन-डोर अर्थात् घर में ही रहने वाले। तो इन्दौर जोन वाले राज्य के घर में रहेंगे ना। अभी भी बाप के दिल रूपी घर में रहने वाले। तो तीनों की समीपता की राशि मिलती है। सदा ऐसे ही इस भाग्य की रेखा को स्पष्ट और विस्तार को प्राप्त करते रहना। अच्छा –
ऐसे सदा सम्पन्न-पन की फर्ज़-अदाई पालन करने वाले, अपने दाता-पन के श्रेष्ठ संस्कारों से सर्व के दर्द मिटाने वाले, सदा स्वराज्य अधिकारी बन रूहानी पालना करने वाले, सर्व खज़ानों से भरपूर भण्डारे करने वाले, मास्टर दाता वरदाता, ऐसे राजयोगी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
1. सदा अपने को साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मायें अनुभव करते हो? यह साक्षीपन की स्थिति सबसे बढ़िया श्रेष्ठ सीट है। इस सीट पर बैठ कर्म करने या देखने में बहुत मजा आता है। जैसे सीट अच्छी होती है तो बैठने में मजा आता है ना। सीट अच्छी नहीं तो बैठने में मजा नहीं। यह ‘साक्षीपन की सीट’ सबसे श्रेष्ठ सीट है। इसी सीट पर सदा रहते हो? दुनिया में भी आजकल सीट के पीछे भाग-दौड़ कर रहे हैं। आपको कितनी बढ़िया सीट मिली हुई है। जिस सीट से कोई उतार नहीं सकता। उन्हों को कितना डर रहता है, आज सीट है कल नहीं। आपको अविनाशी है, निर्भय होकर बैठ सकते हो। तो साक्षी-पन की सीट पर सदा रहते हो? अपसेट वाला सेट नहीं हो सकता। सदा इस सीट पर सेट रहो। यह ऐसी आराम की सीट है जिस पर बैठकर जो देखने चाहो जो अनुभव करने चाहो वह कर सकते हो।
2. अपने को इस सृष्टि के अन्दर कोटों में कोई और कोई में भी कोई... ऐसी विशेष आत्मा समझते हो? जो गायन है कोटों में कोई बाप के बनते हैं, वह हम हैं। यह खुशी सदा रहती है? विश्व की अनेक आत्मायें बाप को पाने का प्रयत्न कर रहीं हैं और हमने पा लिया! बाप का बनना अर्थात् बाप को पाना। दुनिया ढूंढ रही है और हम उनके बन गये! भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग की प्राप्ति में बहुत अन्तर है। ज्ञान है पढ़ाई, भक्ति पढ़ाई नहीं है। वह थोड़े समय के लिए आध्यात्मिक मनोरंजन है। लेकिन सदा काल की प्राप्ति का साधन ‘ज्ञान’ है। तो सदा इसी स्मृति में रह औरों को भी समर्थ बनाओ। जो ख्याल ख्वाब में न था - वह प्रैक्टिकल में पा लिया। बाप ने हर कोने से बच्चों को निकाल अपना बना लिया। तो इसी खुशी में रहो।
3. सभी अपने को एक ही बाप के, एक ही मत पर चलने वाले एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले अनुभव करते हो? जब एक बाप है, दूसरा है ही नहीं तो सहज ही एकरस स्थिति हो जाती है। ऐसे अनुभव है? जब दूसरा कोई है ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी और कहाँ जाने की मार्जिन ही नहीं है। है ही एक। जहाँ दो चार बातें होती हैं तो सोचने को मार्जिन हो जाती। जब एक ही रास्ता है तो कहाँ जायेंगे! तो यहाँ मार्ग बताने के लिए ही सहज विधि है - एक बाप, एक मत, एकरस एक ही परिवार। तो एक ही बात याद रखो तो वन नम्बर हो जायेंगे। एक का हिसाब जानना है, बस। कहाँ भी रहो लेकिन एक की याद है तो सदा एक के साथ हैं, दूर नहीं। जहाँ बाप का साथ है वहाँ माया का साथ हो नहीं सकता। बाप से किनारा करके फिर माया आती है। ऐसे नहीं आती। न किनारा हो न माया आये। एक का ही महत्व है।
अधर कुमारों से बापदादा की मुलाकात
सदा प्रवृति में रहते अलौकिक वृत्ति में रहते हो? गृहस्थी जीवन से परे रहने वाले। सदा ट्रस्टी रूप में रहने वाले। ऐसे अनुभव करते हो? ट्रस्टी माना सदा सुखी और गृहस्थी माना सदा दुखी, आप कौन हो? सदा सुखी। अभी दुःख की दुनिया छोड़ दी। उससे निकल गये। अभी संगमयुगी सुखों की दुनिया में हो। अलौकिक प्रवृत्ति वाले हो, लौकिक प्रवृत्ति वाले नहीं। आपस में भी अलौकिक वृत्ति, अलौकिक दृष्टि रहे।
ट्रस्टी-पन की निशानी है - सदा न्यारा और बाप का प्यारा। अगर न्याराप् यारा नहीं तो ट्रस्टी नहीं। गृहस्थी जीवन अर्थात् बन्धन वाली जीवन। ट्रस्टी जीवन निर्बन्धन है। ट्रस्टी बनने से सब बन्धन सहज ही समाप्त हो जाते हैं। बन्धनमुक्त हैं तो सदा सुखी हैं। उनके पास दुख की लहर भी नहीं आ सकती। अगर संकल्प में भी आता है - मेरा घर, मेरा परिवार, मेरा यह काम है तो यह स्मृति भी माया का आह्वान करती है। तो मेरे को ‘तेरा’ बना दो। जहाँ तेरा है वहाँ दु:ख खत्म। मेरा कहना और मूंझना। तेरा कहना और मौज में रहना। अभी मौज में नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे! संगमयुग ही मौजों का युग है। इसलिए सदा मौज में रहो। स्वप्न और संकल्प में भी व्यर्थ न हो। आधा कल्प सब व्यर्थ गंवाया, अब गंवाने का समय पूरा हुआ। कमाई का समय है। जितने समर्थ होंगे उतना कमाई कर जमा कर सकेंगे।
इतना जमा करो जो 21 जन्म आराम से खाते रहो। इतना स्टाक हो जो स्वयं भी दे सको। क्योंकि दाता के बच्चे हो। जितना जमा होगा उतनी खुशी जरूर होगी।
सदा एक बाप दूसरा न कोई इसी लगन में मगन रहो। जहाँ लगन है वहाँ विघ्न नहीं रह सकता। दिन है तो रात नहीं, रात है तो दिन नहीं। ऐसे यह लगन और विघ्न हैं। लगन ऐसी शक्तिशाली है जो विघ्न को भस्म कर देती है। ऐसी लगन वाली निर्विघ्न आत्मायें हों? कितना भी बड़ा विघ्न हो, माया विघ्न रूप बन कर आये लेकिन लगन वाले उसे ऐसे पार करते हैं जैसे माखन से बाल। लगन ही सर्व प्राप्तियों का अनुभव कराती है। जहाँ बाप है वहाँ प्राप्ति जरूर है। जो बाप का खज़ाना वह बच्चे का।
माताओं के साथ - शक्ति दल है ना! मातायें, जगत मातायें बन गई। अभी हद की मातायें नहीं। सदा अपने को ‘जगत माता’ समझो। हद की गृहस्थी में फँसने वाली नहीं। बेहद की सेवा में सदा खुश रहने वाली। कितना श्रेष्ठ मर्तबा बाप ने दिला दिया। दासी से सिर का ताज बना दिया। ‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य’! बस यही गीत गाती रहो। बस यही एक काम बाप ने माताओं को दिया है। क्योंकि मातायें बहुत भटक-भटकर थक गई। तो बाप माताओं की थकावट देख, उन्हें थकावट से छुड़ाने आये हैं। 63 जन्म की थकावट एक जन्म में समाप्त कर दी। एक सेकण्ड में समाप्त कर दी। बाप के बने और थकावट खत्म! माताओं को झूलना और झुलाना अच्छा लगता है। तो बाप ने माताओं को खुशी का, अतीन्द्रिय सुख का झूला दिया है। उसी झूले में झूलती रहो। सदा सुखी, सदा सुहागिन बन गई। अमर बाप के अमर बच्चे बन गये। बापदादा भी बच्चों को देखकर खुश होते हैं। अच्छा।