18-02-85 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग तन-मन-धन और समय सफल करने का युग
विश्व कल्याणकारी बापदादा सफलतामूर्त बच्चों प्रति बोले
आज विश्व-कल्याणकारी बाप अपने सहयोगी बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे की दिल में बाप को प्रत्यक्ष करने की लगन लगी हुई है। सभी का एक ही श्रेष्ठ संकल्प है और सभी इसी कार्य में उमंग-उत्साह से लगे हुए हैं। एक बाप से लगन होने कारण सेवा से भी लगन लगी हुई है। दिन-रात साकार कर्म में वा स्वप्न में भी बाप और सेवा यही दिखाई देता है। बाप का सेवा से प्यार है इसलिए स्नेही सहयोगी बच्चों का भी प्यार सेवा से अच्छा है। यह स्नेह का सबूत है अर्थात् प्रमाण है। ऐसे सहयोगी बच्चों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। अपना तन-मन-धन, समय कितना प्यार से सफल कर रहे हैं। पाप के खाते से बदल पुण्य के खाते में वर्तमान भी श्रेष्ठ और भविष्य में भी जमा कर रहे हैं। संगमयुग है ही एक का पद्मगुणा जमा करने का युग। तन सेवा में लगाओ और 21 जन्मों के लिए सम्पूर्ण निरोगी तन प्राप्त करो। कैसा भी कमज़ोर तन हो, रोगी हो लेकिन वाचा-कर्मणा नहीं तो मंसा सेवा अन्तिम घड़ी तक भी कर सकते हो। अपने अतीन्द्रिय सुख-शान्ति की शक्ति चेहरे से, नयनों से दिखा सकते हो। जो सम्पर्क वाले देखकर यही कहें कि यह तो वण्डरफुल पेशेन्ट है। डाक्टर्स भी पेशेन्ट को देख हर्षित हो जाएँ। वैसे तो डाक्टर्स पेशेन्ट को खुशी देते हैं, दिलाते हैं लेकिन यह देने के बजाए लेने का अनुभव करें। कैसे भी बीमार हो अगर दिव्य-बुद्धि सालिम है तो अन्त घड़ी तक भी सेवा कर सकते हैं। क्योंकि यह जानते हो कि इस तन की सेवा का फल 21 जन्म खाते रहेंगे। ऐसे तन से, मन से-स्वयं सदा मन के शान्ति स्वरूप बन, सदा हर संकल्प में शक्तिशाली बन, शुभ भावना शुभ कामना द्वारा, दाता बन सुख-शान्ति के शक्ति की किरणें वायुमण्डल में फैलाते रहो। जब आपकी रचना सूर्य चारों ओर प्रकाश की किरणें फैलाते रहते हैं तो आप मास्टर रचता, मास्टर सर्वशक्तिवान, विधाता, वरदाता, भाग्यवान, प्राप्ति की किरणें नहीं फैला सकते हो? संकल्प शक्ति अर्थात् मन द्वारा एक स्थान पर होते हुए भी चारों ओर वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बना सकते हो। थोड़े से समय की इस जन्म में मन द्वारा सेवा करने से 21 जन्म मन सदा सुख-शान्ति की मौज में होगा। लेकिन आधाकल्प भक्ति द्वारा, चित्रों द्वारा मन की शान्ति देने के निमित्त बनेंगे। चित्र भी इतना शान्ति का, शक्ति का देने वाला बनेगा। तो एक जन्म के मन की सेवा सारा कल्प चैतन्य स्वरूप से वा चित्र से शान्ति का स्वरूप बनेगा।
ऐसे धन द्वारा सेवा के निमित्त बनने वाले 21 जन्म अनगिनत धन के मालिक बन जाते हैं। साथ-साथ द्वापर से अब तक भी ऐसे आत्मा कभी धन की भिखारी नहीं बनेंगी। 21 जन्म राज्य भाग्य पायेंगे। जो धन मिट्टी के समान होगा। अर्थात् इतना सहज और अकीचार होगा। आपकी प्रजा की भी प्रजा अर्थात् प्रजा के सेवाधारी भी अनगिनत धन के मालिक होंगे। लेकिन 63 जन्मों में किसी जन्म में भी धन के भिखारी नहीं बनेंगे। मजे से दाल-रोटी खाने वाले होंगे। कभी रोटी के भिखारी नहीं होंगे। तो एक जन्म दाता के प्रति धन लगाने से, दाता भी क्या करेगा? सेवा में लगायेगा। आप तो बाप के भण्डारी में डालते हो ना और बाप फिर सेवा में लगाते हैं। तो सेवा अर्थ वा दाता के अर्थ धन लगाना अर्थात् पूरा कल्प भिखारी पन से बचना। जितना लगाओ उतना द्वापर से कलियुग तक भी आराम से खाते रहेंगे। तो तन-मन-धन और समय सफल करना है।
समय लगाने वाले, एक तो सृष्टि चक्र के सबसे श्रेष्ठ समय - सतयुग में आते हैं। सतोप्रधान युग में आते हैं। जिस समय का भक्त लोग अब भी गायन करते रहते हैं। स्वर्ग का गायन करते हैं ना। तो सतोप्रधान में भी वन-वन-वन ऐसे समय पर अर्थात् सतयुग के पहले जन्म में, ऐसे श्रेष्ठ समय का अधिकार पाने वाले, पहले नम्बर वाली आत्मा के साथ-साथ जीवन का समय बिताने वाले होंगे। उनके साथ पढ़ने वाले, खेलने वाले, घूमने वाले होंगे। तो जो संगम पर अपना समय सफल करते हैं उसका श्रेष्ठ फल सम्पूर्ण सुनहरे, श्रेष्ठ समय का अधिकार प्राप्त होता है। अगर समय लगाने में अलबेले रहे तो पहले नम्बर वाली आत्मा अर्थात् श्रीकृष्ण स्वरूप में स्वर्ग के पहले वर्ष में न आकर पीछे-पीछे नम्बरवार आयेंगे। यह है समय देने का महत्व। देते क्या हो और लेते क्या हो? इसलिए चारों ही बातों को सदा चेक करो तन-मन-धन, समय चारों ही जितना लगा सकते हैं उतना लगाते हैं? ऐसे तो नहीं जितना लगा सकते उतना नहीं लगाते? यथाशक्ति लगाने से प्राप्ति भी यथाशक्ति होगी। सम्पूर्ण नहीं होगी। आप ब्राह्मण आत्मायें सभी को सन्देश में क्या कहती हो? सम्पूर्ण सुख-शान्ति आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। यह तो नहीं कहते हो यथा शक्ति आपका अधिकार है। सम्पूर्ण कहते हो ना। जब सम्पूर्ण अधिकार है तो सम्पूर्ण प्राप्ति करना ही ब्राह्मण जीवन है। अधूरा है तो क्षत्रिय है। चन्द्रवंशी आधे में आते हैं ना। तो यथा शक्ति अर्थात् अधूरापन और ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर बात में सम्पूर्ण। तो समझा, बापदादा बच्चों के सहयोग देने का चार्ट देख रहे थे। हैं सब सहयोगी। जब सहयोगी बने हैं तब सहज योगी बने हैं। सभी सहयोगी, सहजयोगी, श्रेष्ठ आत्मायें हों। बापदादा हर एक बच्चे को सम्पूर्ण अधिकारी आत्मा बनाते हैं। फिर यथाशक्ति क्यों बनते हो? वा यह सोचते हो - कोई तो बनेगा! ऐसे बनने वाले बहुत हैं। आप नहीं हो। अभी भी सम्पूर्ण अधिकार पाने का समय है। सुनाया था ना - अभी टूलेट का बोर्ड नहीं लगा। लेट अर्थात् पीछे आने वाले आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए अभी भी गोल्डन चांस है। जब टूलेट का बोर्ड लग जायेगा फिर गोल्डन चांस के बजाए सिल्वर चांस हो जायेगा। तो क्या करना चाहिए? गोल्डन चांस लेने वाले हो ना। गोल्डन एज में न आये तो ब्राह्मण बन करके क्या किया? इसलिए बापदादा स्नेही बच्चों को फिर भी स्मृति दिला रहे हैं, अभी बाप के स्नेह कारण एक का पद्मगुणा मिलने का चांस है। अभी जितना और उतना नहीं है। एक का पद्मगुणा है। फिर हिसाब-किताब जितना और उतने का रहेगा। लेकिन अभी भोलेनाथ के भरपूर भण्डार खुले हुए हैं। जितने चाहो, जितना चाहो ले सकते हो। फिर कहेंगे अभी सतयुग के नम्बरवन की सीट खाली नहीं। इसलिए बाप समान सम्पूर्ण बनो। महत्व को जान महान बनो। डबल विदेशी गोल्डन चांस वाले हो ना! जब इतनी लगन से बढ़ रहे हो, स्नेही हो, सहयोगी हो तो हर बात में सम्पूर्ण लक्ष्य द्वारा सम्पूर्णता के लक्षण धारण करो। लगन न होती तो यहाँ कैसे पहुँचते! जैसे उड़ते-उड़ते पहुँच गये हो ऐसे ही सदा उड़ती कला में उड़ते रहो। शरीर से भी उड़ने के अभ्यासी हों। आत्मा भी सदा उड़ती रहे। यही बापदादा का स्नेह है। अच्छा –
सदा सफलता स्वरूप बन संकल्प, समय को सफल करने वाले, हर कर्म में सेवा का उमंग-उत्साह रखने वाले, सदा स्वयं को सम्पन्न बनाए सम्पूर्ण अधिकार पाने वाले, मिले हुए गोल्डन चांस को सदा लेने वाले, ऐसे फॉलो फादर करने वाले सपूत बच्चों को, नम्बरवन बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
काठमाण्डू तथा विदेशी भाई-बहिनों के ग्रुप से बापदादा की पर्सनल मुलाकात - (1) सभी सदा अपने को विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सारे विश्व में ऐसी विशेष आत्मायें कितनी होंगी? जो कोटों में कोई गायन है, वह कौन हैं? आप हो ना! तो सदा अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? कभी स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि इतनी श्रेष्ठ आत्मा बनेंगे लेकिन साकार रूप में अनुभव कर रहे हो। तो सदा अपना यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है? वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो भगवान ने खुद आपका भाग्य बनाया है। डायरेक्ट भगवान ने भाग्य की लकीर खींची, ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है। जब यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है तो खुशी में बुद्धि रूपी पाँव इस पृथ्वी पर नहीं रहते। ऐसे समझते हो ना। वैसे भी फरिश्तों के पाँव धरनी पर नहीं होते। सदा ऊपर। तो आपके बुद्धि रूपी पाँव कहाँ रहते हैं? नीचे धरनी पर नहीं। देह- अभिमान भी धरनी है। देह-अभिमान की धरनी से ऊपर रहने वाले। इसको ही कहा जाता है - ‘फरिश्ता’। तो कितने टाइटिल हैं - भाग्यवान हैं, फरिश्ते हैं, सिकीलधे हैं - जो भी श्रेष्ठ टाइटिल हैं वह सब आपके हैं। तो इसी खुशी में नाचते रहो। सिकीलधे धरती पर पाँव नहीं रखते, सदा झूले में रहते। क्योंकि नीचे धरनी पर रहने के अभ्यासी तो 63 जन्म रहे। उसका अनुभव करके देख लिया। धरनी में मिट्टी में रहने से मैले हो गये। और अभी सिकीलधे बने तो सदा धरनी से ऊपर रहना। मैले नहीं, सदा स्वच्छ। सच्ची दिल, साफ दिल वाले बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं। क्योंकि बाप भी सदा स्वच्छ है ना। तो बाप के साथ रहने वाले भी सदा स्वच्छ हैं। बहुत अच्छा, मिलन मेले में पहुँच गये। लगन ने मिलन मनाने के लिए पहुँचा ही दिया। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि बच्चे नहीं तो बाप भी अकेला क्या करेगा? भले पधारे अपने घर में। भक्त लोग यात्रा पर निकलते तो कितना कठिन रास्ते क्रास करते हैं। आप तो काठमाण्डू से बस में आये हो। मौज मनाते हुए पहुँच गये। अच्छा –
लण्डन ग्रुप - सभी स्नेह के सूत्र में बंधे हुए बाप के माला के मणके हो ना! माला का इतना महत्व क्यों बना है? क्योंकि स्नेह का सूत्र सबसे श्रेष्ठ सूत्र है। तो स्नेह के सूत्र में सब एक बाप के बने हैं, इसका यादगार माला है। जिसका ‘एक बाप दूसरा न कोई है’ वही एक ही स्नेह के सूत्र में माला के मणके बन पिरोये जाते हैं। सूत्र एक है और दाने अनेक हैं। तो यह एक बाप के स्नेह की निशानी है। तो ऐसे अपने को माला के मणके समझते हो ना। यह समझते हो 108 में तो बहुत थोड़े आयेंगे। क्या समझते हो? यह तो 108 का नम्बर निमित्त मात्र है। जो भी बाप के स्नेह में समाये हुए हैं वह गले की माला के मोती हैं ही। जो ऐसे एक ही लगन में मगन रहने वाले हैं तो मगन अवस्था निर्विघ्न बनाती है और निर्विघ्न आत्माओं का ही गायन और पूजन होता है। सबसे ज्यादा गायन कौन करता है? बाप करता है ना! आप सभी एक बाप का गायन करते और बाप कितनों का करता? तो सबसे ज्यादा कौन करता? अगर एक बच्चे का भी गायन न करे तो बच्चा रूठ जायेगा। इसलिए बाबा हरेक बच्चे का गायन करते हैं। क्योंकि हरेक बच्चा अपना अधिकार समझता है। अधिकार के कारण हरेक अपना हक समझता है। बाप की गति इतनी फास्ट है जो और कोई इतनी फास्ट स्पीड वाला है ही नहीं। एक ही सेकण्ड में अनेकों को राजी कर सकता है। तो बाप बच्चों से बिजी रहते और बच्चे बाप में बिजी रहते। बाप को बिजनेस ही बच्चों का है।
अविनाशी रत्न बने हो - इसकी मुबारक हो। 10 साल या 15 साल से माया से जीते रहे हो - इसकी मुबारक हो। आगे संगमयुग पूरा ही जीते रहो। सभी पक्के हो। इसलिए बापदादा ऐसे पक्के अचल बच्चों को देख खुश हैं। हरेक बच्चे की विशेषता ने बाप का बनाया है, ऐसा कोई बच्चा नहीं जिसमें ‘विशेषता’ न हो। इसलिए बापदादा हरेक बच्चे की विशेषता देख सदा खुश होते हैं। नहीं तो कोटों में कोई, कोई में कोई, आप ही क्यों बनें! जरूर कोई विशेषता है। कोई कौन सा रत्न है, कोई कौन सा? भिन्न-भिन्न विशेषताओं के 9 रत्न गाये हुए हैं। हरेक रत्न विशेष विघ्न-विनाशक होता है। तो आप सभी भी विघ्न-विनाशक हो।
विदेशी भाई-बहिनों के याद प्यार तथा पत्रों का रेसपाण्ड देते हुए
सभी स्नेही बच्चों का स्नेह पाया। सभी के दिल के उमंग और उत्साह बाप के पास पहुँचते हैं और जैसे उमंग उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं - सदा आगे बढ़ने वाले बच्चों के ऊपर बापदादा और परिवार की विशेष ब्लेसिंग है। इसी ब्लेसिंग द्वारा आगे बढ़ते रहेंगे और दूसरों को भी आगे बढ़ाते रहेंगे। अच्छी सेवा में रेस कर रहे हो। जैसे उमंग-उत्साह में रेस कर रहे हो ऐसे अविनाशी उन्नति को पाते रहना। तो अच्छा नम्बर आगे ले लेंगे। सभी अपने नाम, विशेषता से याद स्वीकार करना। अभी भी सभी बच्चे अपनी-अपनी विशेषता से बापदादा के सम्मुख हैं। इसलिए पद्मगुणा यादप्यार।
दादी चन्द्रमणि जी ने पंजाब जाने की छुट्टी ली - सभी बच्चों को यादप्यार भी देना और विशेष सन्देश देना कि उड़ती कला में जाएं। औरों को उड़ाने के लिए समर्थ स्वरूप धारण करो। कैसे भी वातावरण में उड़ती कला द्वारा अनेक आत्माओं को उड़ाने का अनुभव करा सकते हो। इसलिए सभी को, याद और सेवा सदा साथ-साथ चलती रहे, यह विशेष स्मृति दिलाना। बाकी तो सभी सिकिलधे हैं। अच्छी विशेषता वाली आत्मायें हैं। सभी को अपनी-अपनी विशेषता से याद प्यार स्वीकार हो। अच्छा है डबल पार्ट बजा रही हो। बेहद के आत्माओं की यही निशानी है - जिस समय जहाँ आवश्यकता है, वहाँ पहुँचना। अच्छा-
युगलों के साथ - अव्यक्त बापदादा की मुलाकात (1) प्रवृत्ति में रहते सर्व बंधनों से न्यारे और बाप के प्यारे हो ना? फंसे हुए तो नहीं हो? पिंजड़े के पंछी तो नहीं, उड़ते पंछी हो ना! जरा भी बंधन फँसा लेता है। बंधनमुक्त हैं तो सदा उड़ते रहेंगे। तो किसी भी प्रकार का बंधन नहीं। न देह का, न संबंध का, न प्रवृत्ति का, न पदार्थ का। कोई भी बंधन न हो इसको कहा जाता है - ‘न्यारा और प्यारा’। स्वतन्त्र सदा उड़ती कला में होंगे और परतन्त्र थोड़ा उड़ेंगे भी फिर बंधन उसको खींच कर नीचे ले आयेगा। तो कभी नीचे, कभी ऊपर, टाइम चला जायेगा। सदा एकरस उड़ती कला की अवस्था और कभी नीचे, कभी ऊपर यह अवस्था, दोनों में रात-दिन का अन्तर है। आप कौन-सी अवस्था वाले हो? सदा निर्बन्धन, सदा स्वतन्त्र पंछी? सदा बाप के साथ रहने वाले? किसी भी आकर्षण में आकर्षित होने वाले नहीं। वही जीवन प्यारी है। जो बाप के प्यारे बनते उनकी जीवन सदा प्यारी बनती। खिट-खिट वाली जीवन नहीं। आज यह हुआ, कल यह हुआ, नहीं। लेकिन सदा बाप के साथ रहने वाले, एकरस स्थिति में रहने वाले। वह है मौज की जीवन। मौज में नहीं होंगे तो मूँझेंगे जरूर। आज यह प्राब्लम आ गई, कल दूसरी आ गई, यह दुःखधाम की बातें दुःखधाम में तो आयेंगी ही लेकिन हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं तो दुःख नीचे रह जायेगा। दुःखधाम से किनारा कर लिया तो दुःख दिखाई देते भी आपको स्पर्श नहीं करेगा। कलियुग को छोड़ दिया, किनारा छोड़ चुके, अब संगमयुग पर पहुँचे तो संगम सदा ऊँचा दिखाते हैं। संगमयुगी आत्मायें भी सदा ऊँची, नीचे वाली नहीं। जब बाप उड़ाने के लिए आये हैं तो उड़ती कला से नीचे आयें ही क्यों! नीचे आना माना फँसना। अब पंख मिले हैं तो उड़ते रहो, नीचे आओ ही नहीं। अच्छा!
अधरकुमारों से - सभी एक ही लगन में मगन रहने वाले हो ना? एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई। इसको कहा जाता है लगन में मगन रहने वाले। मैं और मेरा बाबा। इसके सिवाए और भी कोई मेरा है? मेरा बच्चा, मेरा पोत्रा....ऐसे तो नहीं। ‘‘मेरे’’ में ममता रहती है। मेरा-पन समाप्त होना अर्थात् ममता समाप्त होना। तो सारी ममता यानी मोह बाप में हो गया। तो बदल गया, शुद्ध मोह हो गया। बाप सदा शुद्ध है तो मोह बदलकर प्यार हो गया। एक मेरा बाबा, इस एक मेरे से सब समाप्त हो जाता और एक की याद सहज हो जाती। इसलिए सदा सहजयोगी। मैं श्रेष्ठ आत्मा और मेरा बाबा बस! श्रेष्ठ आत्मा समझने से श्रेष्ठ कर्म स्वत: होंगे, श्रेष्ठ आत्मा के आगे माया आ नहीं सकती।
माताओं से - मातायें सदा बाप के साथ खुशी के झूले में झूलने वाली हैं ना! गोप गोपियाँ सदा खुशी में नाचते या झूले में झूलते। तो सदा बाप के साथ रहने वाले खुशी में नाचते हैं। बाप साथ है तो सर्वशक्तियाँ भी साथ हैं। बाप का साथ शक्तिशाली बना देता। बाप के साथ वाले सदा निर्मोही होते, उन्हें किसी का मोह सतायेगा नहीं। तो नष्टोमोहा हो? कैसी भी परिस्थिति आवे लेकिन हर परिस्थिति में ‘नष्टोमोहा’। जितना नष्टमोहा होंगी उतना याद और सेवा में आगे बढ़ती रहेंगी।
मधुबन में आये हुए सेवाधारियों से - सेवा का खाता जमा हो गया ना। अभी भी मधुबन के वातावरण में शक्तिशाली स्थिति बनाने का चांस मिला और आगे के लिए भी जमा किया। तो डबल प्राप्ति हो गई। यज्ञ सेवा अर्थात् श्रेष्ठ सेवा, श्रेष्ठ स्थिति में रहकर करने से पद्मगुणा फल बन जाता है। कोई भी सेवा करो, पहले यह देखो कि शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो सेवाधारी बन सेवा कर रहे हैं? साधारण सेवाधारी नहीं, रूहानी सेवाधारी। रूहानी सेवाधारी की रूहानी झलक, रूहानी फलक सदा इमर्ज रूप में होनी चाहिए। रोटी बेलते भी ‘स्वदर्शन चक्र’ चलता रहे। लौकिक निमित्त स्थूल कार्य लेकिन स्थूल सूक्ष्म दोनों साथ-साथ, हाथ से स्थूल काम करो और बुद्धि से मंसा सेवा करो तो डबल हो जायेगा। हाथ द्वारा कर्म करते हुए भी याद की शक्ति से एक स्थान पर रहते भी, बहुत सेवा कर सकते हो। मधुबन तो वैसे भी लाइट हाउस है, लाइट हाउस एक स्थान पर स्थित हो, चारों ओर सेवा करता है। ऐसे सेवाधारी अपनी और दूसरों की बहुत श्रेष्ठ प्रालब्ध बना सकते हैं। अच्छा – ओम शान्ति।