25-02-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


मधुबन में 50 विदेशी भाई-बहिनों के समर्पण समारोह पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

आज बापदादा विशेष श्रेष्ठ दिन की, विशेष स्नेह भरी मुबारक दे रहे हैं। आज कौन-सा समारोह मनाया? बाहर का दृश्य तो सुन्दर था ही। लेकिन सभी के उमंग उत्साह और दृढ़ सकंल्प का, दिल का आवाज दिलाराम बाप के पास पहुँचा। तो आज के दिन को विशेष उमंग उत्साह भरा दृढ़ संकल्प समारोहकहेंगे। जब से बाप के बने तब से सम्बन्ध है और रहेगा। लेकिन यह विशेष दिन विशेष रूप से मनाया इसको कहेंगे दृढ़ संकल्पकिया? कुछ भी हो जाए चाहे माया के तूफान आयें, चाहे लोगों की भिन्न-भिन्न बातें आयें, चाहे प्रकृति का कोई भी हलचल का नजारा हो। चाहे लौकिक वा अलौकिक सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के सरकमस्टांस हो, मन के सकंल्पों का बहुत जोर से तूफान भी हो तो भी - एक बाप दूसरा न कोई। एक बल एक भरोसा ऐसा दृढ़ संकल्प किया वा सिर्फ स्टेज पर बैठे! डबल स्टेज पर बैठे थे या सिंगल स्टेज पर? एक थी यह स्थूल स्टेज, दूसरी थी दृढ़ संकल्पकी स्टेज, दृढ़ता की स्टेज। तो डबल स्टेज पर बैठे थे ना।! हार भी बहुत सुन्दर पहने। सिर्फ यह हार पहना वा सफलता का भी हार पहना! सफलता गले का हार है। यह दृढ़ता ही सफलता का आधार है। इससे स्थूल हार के साथ सफलता का हार भी पड़ा हुआ था ना! बापदादा डबल दृश्य देखते हैं। सिर्फ साकार रूप का दृश्य नहीं देखते। लेकिन साकार दृश्य के साथ-साथ आत्मिक स्टेज, मन के दृढ़ संकल्प और सफलता की श्रेष्ठ माला यह दोनों देख रहे थे। डबल माला, डबल स्टेज देख रहे थे। सभी ने दृढ़ संकल्प किया। बहुत अच्छा। कुछ भी हो जाए लेकिन सम्बन्ध को निभाना है। परमात्म प्रीती की रीति सदा निभाते हुए सफलता को पाना है। निश्चित है - सफलता गले का हार है। एक बाप दूसरा न कोई’ - यह है दृढ़ संकल्प। जब एक है तो एकरस स्थिति स्वत: और सहज है। सर्व सम्बन्धों की अविनाशी तार जोड़ी है ना? अगर एक भी सम्बन्ध कम होगा तो हलचल होगी। इसलिए सर्व सम्बन्धों की डोर बांधी। कनेक्शन जोड़ा। संकल्प किया। सर्व सम्बन्ध हैं या सिर्फ मुख्य 3 सम्बन्ध हैं? सर्व सम्बन्ध हैं तो सर्व प्राप्तियाँ हैं। सर्व सम्बन्ध नहीं तो कोई न कोई प्राप्ति की कमी रह जाती है। सभी का समारोह हुआ ना। दृढ़ संकल्प करने से आगे पुरूषार्थ में भी विशेष रूप से लिफ्ट मिल जाती है। यह विधी भी विशेष उमंग उत्साह बढ़ाती है। बापदादा भी सभी बच्चों को दृढ़ संकल्प करने के समारोह की बधाई देते हैं। और वरदान देते - सदा अविनाशी भव। अमर भव

आज एशिया का ग्रुप बैठा है। एशिया की विशेषता क्या है? विदेश सेवा का पहला ग्रुप जापान में गया, यह विशेषता हुई ना। साकार बाप की प्रेरणा प्रमाण विशेष विदेश सेवा का निमन्त्रण और सेवा का आरम्भ जापान से हुआ। तो एशिया का नम्बर स्थापना में आगे हुआ ना। पहला विदेश का निमन्त्रण था। और धर्म वाले निमन्त्रण दे बुलावें इसका आरम्भ एशिया से हुआ। तो एशिया कितना लकी है! और दूसरी विशेषता - सबसे भारत के समीप एशिया देश है। जो समीप होता है उनको सिकीलधे कहते हैं। सिकीलधे बच्चे छिपे हुए हैं। हर स्थान पर कितने अच्छे-अच्छे रत्न निकले हैं। क्वान्टिटी भले कम है लेकिन क्वालिटी है। मेहनत का फल अच्छा है। इस तरह धीरे-धीरे अब संख्या बढ़ रही है। सब स्नेही हैं। सब लवली हैं। हर एक-दो से ज्यादा स्नेही है। यही ब्राह्मण परिवार की विशेषता है। हर एक यह अनुभव करता है कि मेरा सबसे ज्यादा स्नेह है और बाप का भी मेरे से ज्यादा स्नेह है। मेरे को ही बापदादा आगे बढ़ाता है। इसलिए भक्ति मार्ग वालों ने भी बहुत अच्छा एक चित्र अर्थ से बनाया है। करके गोपी के साथ गोपी-वल्लभहै। सिर्फ एक राधे से वा सिर्फ 8 पटरानियों के साथ नहीं। हर एक गोपी के साथ गोपीवल्लभ है। जैसे दिलवाला मन्दिर में जाते हो तो नोट करते हो ना कि यह मेरा चित्र है अथवा मेरी कोठी है। तो इस रास मण्डल में भी आप सबका चित्र है। इसको कहते ही हैं - महारास। इस महारास का बहुत बड़ा गायन है। बापदादा का हर एक से एक दो से ज्यादा प्यार है। बापदादा हरेक बच्चे के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित होते है। कोई भी है लेकिन कोटो में कोई है। पद्मापद्म भाग्यवान है। दुनिया के हिसाब से देखो तो इतने कोटों में से कोई हो ना! जापान तो कितना बड़ा है लेकिन बाप के बच्चे कितने हैं! तो कोटो में कोई हुए ना। बापदादा हर एक की विशेषता, भाग्य देखते हैं। कोटों में कोई सिकीलधे हैं। बाप के लिए सभी विशेष आत्मायें हैं। बाप किसको साधारण, किसको विशेष नहीं देखते। सब विशेष हैं। इस तरफ और ज्यादा वृद्धि होनी है। क्योंकि इस पूरे साइड में डबल सेवा विशेष है। एक तो अनेक वैरायटी धर्म के हैं। और इस तरफ सिन्ध की निकली हुई आत्मायें भी बहुत हैं। उन्हों की सेवा भी अच्छी कर सकते हो। उन्हों को समीप लाया तो उन्हों के सहयोग से और धर्मों तक भी सहज पहुँच सकेंगे। डबल सेवा से डबल वृद्धि कर सकते हो। उन्हों में किसी न किसी रीति से उल्टे रूप में चाहे सुल्टे रूप में बीज पड़ा हुआ है। परिचय होने के कारण सहज सम्बन्ध में आ सकते हैं। बहुत सेवा कर सकते हो। क्योंकि सर्व आत्माओं का परिवार है। ब्राह्मण सभी धर्मों में बिखर गये हैं। ऐसा कोई धर्म नहीं जिसमें ब्राह्मण न पहुँचे हो। अब सब धर्मों से निकलनिकलकर आ रहे हैं। और जो ब्राह्मण परिवार के हैं उन्हों से अपना-पन लगता है ना! जैसे कोई हिसाब किताब से गये और फिर से अपने परिवार में पहुँच गये। कहाँ-कहाँ से पहुँच अपना सेवा का भाग्य लेने के निमित्त बन गये। यह कोई कम भाग्य नहीं। बहुत श्रेष्ठ भाग्य है। बड़े ते बड़े पुण्य आत्मायें बन जाते। महादानियों, महान सेवाधारियों की लिस्ट में आ जाते। तो निमित्त बनना भी एक विशेष गिफ्ट है। और डबल विदेशियों को यह गिफ्ट मिलती है। थोड़ा ही अनुभव किया और निमित्त बन जाते सेन्टर स्थापन करने के। तो यह भी लास्ट सो फास्ट जाने की विशेष गिफ्ट है। सेवा करने से मैजारिटी को यह स्मृति में रहता है कि जो हम निमित्त करेंगे अथवा चलेंगे, हमको देख और करेंगे। तो यह डबल अटेन्शन हो जाता है। डबल अटेन्शन होने के कारण डबल लिफ्ट हो जाती है। समझा - डबल विदेशियों को डबल लिफ्ट है। अभी सब तरफ धरनी अच्छी हो गई है। हल चलने के बाद धरनी ठीक हो जाती है ना। और फिर फल भी अच्छे और सहज निकलते हैं। अच्छा - एशिया के बड़े माइक का आवाज भारत में जल्दी पहुँचेगा। इसलिए ऐसे माइक तैयार करो। अच्छा -’’

बड़ी दादियों से - आप लोगों की महिमा भी क्या करें - जैसे बाप के लिए कहते हैं ना - सागर की स्याही बनायें, धरनी को कागज बनायें.....ऐसे ही आप सभी दादियों की महिमा है। अगर महिमा शुरू करें तो सारी रात-दिन एक सप्ताह का कोर्स हो जायेगा। अच्छे हैं, सबकी रास अच्छी है। सभी की रास मिलती है और सभी रास करते भी अच्छी हैं। हाथ में हाथ मिलाना अर्थात् विचार मिलाना यही रास है। तो बापदादा दादियों की यही रास देखते रहते हैं। अष्ट रत्नों की यही रास है।

आप दादियाँ परिवार का विशेष श्रृंगार हो। अगर श्रृंगार न हो तो शोभा नहीं होती है। तो सभी उसी स्नेह से देखते हैं। (बृजइन्द्रा दादी से) बचपन से लौकिक में, अलौकक में श्रृंगार करती रही तो श्रृंगार करते-करते श्रृंगार बन गई। ऐसे हैं ना! बापदादा महावीर महारथी बच्चों को सदा ही याद तो क्या करते लेकिन समाये हुए रहते हैं। जो समाया हुआ होता है उनको याद करने की भी जरूरत नहीं। बापदादा सदा ही हर विशेष रत्न को विश्व के आगे प्रत्यक्ष करते हैं। तो विश्व के आगे प्रत्यक्ष होने वाली विशेष रत्न हो। एकस्ट्रा सभी के खुशी की मदद है। आपकी खुशी को देखकर सबको खुशी की खुराक मिल जाती है। इसलिए आप सबकी आयु बढ़ रही है। क्योंकि सभी के स्नेह की आशीर्वाद मिलती रहती है। अभी तो बहुत कार्य करना है। इसलिए श्रृंगार हो परिवार का। सभी कितने प्यार से देखते हैं। जैसे कोई का छत्र उतर जाए तो माथा कैसे लगेगा। छत्र पहनने वाला अगर छत्र न पहनें तो क्या लगेगा! तो आप सभी भी परिवार के छत्र हो। (निर्मलशान्ता दादी से) अपना यादगार सदा ही मधुबन में देखती रहती हो। यादगार होते हैं याद करने के लिए। लेकिन आपकी याद, यादगार बना देती है। चलते-फिरते सभी परिवार को निमित्त बने हुए आधार मूर्त्त याद आते रहते हैं। तो आधार मूर्त्त हो। स्थापना के कार्य के आधार मूर्त्त मजबूत होने के कारण यह वृद्धि की, उन्नति की बिल्डिंग कितनी मजबूत हो रही है। कारण? आधार मजबूत है। अच्छा –