04-03-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सर्वश्रेष्ठ नई रचना का फाउण्डेशन - निःस्वार्थ स्नेह

सर्व स्नेही बापदादा बोले

आज बापदादा अपने श्रेष्ठ आत्माओं की रचना को देख हर्षित हो रहे हैं। यह श्रेष्ठ वा नई रचना सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ है और अति प्रिय है। क्योंकि पवित्र आत्माओं की रचना है। पवित्र आत्मा होने के कारण अभी बापदादा को प्रिय हो और अपने राज्य में सर्व के प्रिय होंगे। द्वापर में भक्तों के प्रिय देव आत्मायें बनेंगे। इस समय हो परमात्मा-प्रिय ब्राह्मण आत्मायें। और सतयुग त्रेता में होंगे राज्य अधिकारी परम श्रेष्ठ दैवी आत्मायें और द्वापर से अब कलियुग तक बनते हो पूज्य आत्मायें। तीनों में से श्रेष्ठ हो इस समय - परमात्मा प्रिय ब्राह्मण सो फरिश्ता आत्मायें। इस समय की श्रेष्ठता के आधार पर सारा कल्प श्रेष्ठ रहते हो। देख रहे हो कि इस लास्ट जन्म तक भी आप श्रेष्ठ आत्माओं का भक्त लोग कितना आह्वाहन कर रहे हैं। कितना प्यार से पुकार रहे हैं। जड़ चित्र जानते भी आप श्रेष्ठ आत्माओं की भावना से पूजा करते, भोग लगाते, आरती करते हैं। आप डबल विदेशी समझते हो कि हमारे चित्रों की पूजा हो रही है! भारत में बाप का कर्त्तव्य चला है इसलिए बाप के साथ आप सबके चित्र भी भारत में ही हैं। ज्यादा मन्दिर भारत में बनाते हैं। यह नशा तो है न कि हम ही पूज्य आत्मायें हैं। सेवा के लिए चारों ओर विश्व में बिखर गये थे। कोई अमेरिका तो कोई अफ्रीका पहुँच गये। लेकिन किसलिए गये हो? इस समय सेवा के संस्कार, स्नेह के संस्कार हैं। सेवा की विशेषता है ही - स्नेह। जब तक ज्ञान के साथ रूहानी स्नेह की अनुभूति नहीं होती तो ज्ञान कोई नहीं सुनेगा।

आप सब डबल विदेशी बाप के बने तो आप सबका फाउण्डेशन क्या रहा? बाप का स्नेह। परिवार का स्नेह। दिल का स्नेह। नि:स्वार्थ स्नेह। इसने श्रेष्ठ आत्मा बनाया। तो सेवा का पहला सफलता का स्वरूप हुआ स्नेह। जब स्नेह में बाप के बन जाते हो तो फिर कोई भी ज्ञान की पाइंट सहज स्पष्ट होती जाती। जो स्नेह में नहीं आता वह सिर्फ ज्ञान को धारण कर आगे बढ़ने में समय भी लेता, मेहनत भी लेता। क्योंकि उनकी वृत्ति - क्यों, क्या ऐसा कैसे इसमें ज्यादा चली जाती। और स्नेह में जब लवलीन हो जाते तो स्नेह के कारण बाप का हर बोल स्नेही लगता। क्वेश्चन समाप्त हो जाते। बाप का स्नेह आकर्षित करने के कारण क्वेश्चन करेंगे तो भी समझने के रूप से करेंगे। अनुभवी हो ना। जो प्यार में खो जाते हैं तो जिससे प्यार है उसको वह जो बोलेगा उनको वह प्यार ही दिखाई देगा। तो सेवा का मूल आधार है - स्नेह। बाप भी सदैव बच्चों को स्नेह से याद करते हैं। स्नेह से बुलाते हैं, स्नेह से ही सर्व समस्याओं से पार कराते हैं। तो ईश्वरीय जन्म का, ब्राह्मण जन्म का फाउण्डेशन है ही - स्नेह। स्नेह के फाउण्डेशन वाले को कभी भी कोई मुश्किल बात नहीं लगेगी। स्नेह के कारण उमंग उत्साह रहेगा। जो भी श्रीमत बाप की है, हमें करना ही है। देखेंगे, करेंगे यह स्नेही के लक्षण नहीं। बाप ने मेरे प्रति कहा है और मुझे करना ही है। यह है - स्नेही आशिक आत्माओं की स्थिति। स्नेही हलचल वाले नहीं होंगे। सदा बाप और मैं, तीसरा न कोई। जैसे बाप बड़े ते बड़ा है वैसे स्नेही आत्मायें भी सदा बड़ी दिल वाली होती हैं। छोटी दिल वाले थोड़ी-थोड़ी बात में मूंझेंगे। छोटी बात भी बड़ी हो जायेगी। बड़ी दिल वालों के लिए बड़ी बात छोटी हो जायेगी। डबल विदेशी सब बड़ी दिल वाले हो ना! बापदादा सभी डबल विदेशी बच्चों को देख खुश होते हैं। कितना दूर-दूर से परवाने शमा के ऊपर फिदा होने पहुँच जाते हैं। पक्के परवाने हैं।

आज अमेरिका वालों का टर्न है! अमेरिका वालों को बाप कहते हैं -आ मेरे। अमेरिका वाले भी कहते हैं, ‘आ मेरे यह विशेषता है न। वृक्ष के चित्र मे आदि से विशेष शक्ति के रूप में अमेरिका दिखाया हुआ है। जब से स्थापना हुई है तो अमेरिका को बाप ने याद किया है। विशेष पार्ट है ना। जैसे एक विनाश की शक्ति श्रेष्ठ है - दूसरी क्या विशेषता है? विशेषतायें तो स्थान की हैं ही। लेकिन अमेरिका की विशेषता यह भी है - एक तरफ विनाश कि तैयारियाँ भी ज्यादा हैं। दूसरी तरफ फिर विनाश को समाप्त करने की यू.एन. भी वहाँ है। एक तरफ विनाश की शक्ति। दूसरे तरफ है सभी को मिलाने की शक्ति। तो डबल शक्ति हो गई ना। वहाँ सभी को मिलाने के लिए प्रयत्न करते हैं, तो वहाँ से ही फिर यह रूहानी मिलन का भी आवाज बुलन्द होगा। वह लोग तो अपनी रीति से सभी को मिलाकर शांति का प्रयत्न करते हैं लेकिन यथार्थ रीति से मिलाना तो आप लोगों का ही कर्त्तव्य है ना। वह मिलाने की कोशिश करते भी हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं। वास्तव में सभी धर्म की आत्माओं को एक परिवार में लाना यह है - आप ब्राह्मणों का वास्तविक कार्य। यह विशेष करना है। जैसे विनाश की शक्ति वहाँ श्रेष्ठ है ऐसे ही स्थापना की शक्ति का आवाज बुलन्द हो। विनाश और स्थापना साथ-साथ दोनों झण्डे लहरावें। एक साइंस का झण्डा और एक साइलेन्स का। साइन्स की शक्ति का प्रभाव और साइलेन्स की शक्ति का प्रभाव दोनों जब प्रत्यक्ष हों तब कहेंगे प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना। जैसे कोई वी.आई.पी. किसी भी देश में जाते हैं तो उनका स्वागत करने के लिए झण्डा लगा लेते हैं ना। अपने देश का भी लगाते हैं और जो आता है उनके देश का भी लगाते हैं। तो परमात्म-अवतरण का भी झण्डा लहरावें। परमात्म-कार्य का भी स्वागत करें। बाप का झण्डा कोने-कोने में लहरावे तब कहेंगे विशेष शक्तियों को प्रत्यक्ष किया। यह गोल्डन जुबली का वर्ष है ना। तो गोल्डन सितारा सभी को दिखाई दे। कोई विशेष सितारा आकाश में दिखाई देता है तो सभी का अटेन्शन उस तरफ जाता है ना। यह गोल्डन चमकता हुआ सितारा सभी की आँखों में, बुद्धि में दिखाई दे। यह है गोल्डन जुबली मनाना। यह सितारा पहले कहाँ चमकेगा?

अभी विदेश में अच्छी वृद्धि हो रही है और होनी ही है। बाप के बिछुड़े हुए बच्चे कोने-कोने में जो छिपे हुए हैं वह समय प्रमाण सम्पर्क में आ रहे हैं। सभी एक दो से सेवा में उमंग उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं। हिम्मत से मदद भी बाप की मिल जाती है। नाउम्मीद में भी उम्मीदों के दीपक जग जाते हैं। दुनिया वाले सोचते हैं यह होना तो असम्भव है। बहुत मुश्किल है। और लगन निर्विघ्न बनाकर उड़ते पंछी के समान उड़ाते पहुँचा देती है। डबल उड़ान से पहुँचे हो ना। एक प्लेन, दूसरा बुद्धि का विमान। हिम्मत उमंग के पंख जब लग जाते हैं तो जहाँ भी उड़ना चाहें उड़ सकते हैं। बच्चों की हिम्मत पर बापदादा सदा बच्चों की महिमा करते हैं। हिम्मत रखने से एक से दूसरा दीपक जगते माला तो बन गई है ना। मुहब्बत से जो मेहनत कहते हैं उसका फल बहुत अच्छा निकलता है। यह सभी के सहयोग की विशेषता है। कोई भी बात हो लेकिन पहले दृढ़ता, स्नेह का संगठन चाहिए। उससे सफलता प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती है। दृढ़ता कलराठी जमीन में भी फल पैदा कर सकती है। आजकल साइंस वाले भी रेत में भी फल पैदा करने का प्रयत्न कर रहें हैं। तो साइलेन्स की शक्ति क्या नहीं कर सकती है। जिस धरनी को स्नेह का पानी मिलता है वहाँ के फल बड़े भी होते और स्वादिष्ट भी होते हैं। जैसे स्वर्ग में बड़े-बड़े फल और टेस्टी भी अच्छे होते हैं। विदेश में बड़े फल होते हैं लेकिन टेस्टी नहीं होते। फल की शक्ल बहुत अच्छी होती लेकिन टेस्ट नहीं। भारत के फल छोटे होते लेकिन टेस्ट अच्छी होती है। फाउण्डेशन तो सब यहाँ ही पड़ता। जिस सेन्टर पर स्नेह का पानी मिलता है वह सेन्टर सदा फलीभूत होता है। सेवा में भी और साथियों में भी। स्वर्ग में शुद्ध पानी शुद्ध धरती होगी। तब ऐसे फल मिलते हैं। जहाँ स्नेह है वहाँ वायुमण्डल अर्थात् धरनी श्रेष्ठ होती है। वैसे भी जब कोई डिस्टर्ब होता है तो क्या कहते हैं? मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ स्नेह चाहिए। तो डिस्टर्ब होने से बचने का साधन भी स्नेह ही है। बापदादा को सबसे बड़ी खुशी इस बात की है कि खोये हुए बच्चे फिर से आ गये हैं। अगर आप वहाँ नहीं पहुँचते तो सेवा कैसे होती? इसलिए बिछुड़ना भी कल्याणकारी हो गया। और मिलना तो है ही कल्याणकारी। अपने-अपने स्थान पर सब अच्छे उमंग से आगे बढ़ रहे हैं और सभी के अन्दर एक लक्ष्य है कि बापदादा की जो एक ही आश है कि सर्व आत्माओं को अनाथ से सनाथ बना दें, यह आश हम पूर्ण करें। सभी ने मिलकर जो शान्ति के लिए विशेष प्रोग्राम बनाया है वह भी अच्छा है। कम से कम सभी को थोड़ा साइलेन्स में रहने का अभ्यास कराने के निमित्त तो बन जायेंगे। अगर कोई सही रीति से एक मिनट भी साइलेन्स का अनुभव करे तो वह एक मिनट का साईलेन्स का अनुभव बार-बार उनको स्वत: ही खींचता रहेगा। क्योंकि सभी को शांति चाहिए। लेकिन विधि नहीं आती है। संग नहीं मिलता है। जबकि शांति प्रिय सब आत्मायें है तो ऐसी आत्माओं को शांति की अनुभूति होने से स्वत: ही आकर्षित होते रहेंगे। हर स्थान पर अपने-अपने विशेष कार्य करने वाले अच्छी निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्मायें हैं। तो कमाल करना कोई बड़ी बात नहीं है। आवाज फैलाने का साधन है ही आज कल की विशेष आत्मायें। जितना कोई विशेष आत्मायें सम्पर्क में आती हैं तो उनके सम्पर्क से अनेक आत्माओं का कल्याण होता है। एक वी.आई.पी. द्वारा अनेक साधारण आत्माओं का कल्याण हो जाता है। बाकी समीप सम्बन्ध में तो नहीं आयेंगे। अपने धर्म में, अपने पार्ट में उन्हों को विशेषता का कोई न कोई फल मिल जाता है। बाप को पसन्द साधारण ही है। समय भी वह दे सकते। उन्हों को तो समय ही नहीं है। लेकिन वह निमित्त बनते हैं तो फायदा अनेकों को हो जाता है। अच्छा - ओमशांति।’’

पार्टियों से

सदा अमर भव की वरदानी आत्मायें हैं - ऐसा अनुभव करते हो? सदा वरदानों से पलते हुए आगे बढ़ रहे हो न! जिनका बाप से अटूट स्नेह है वहअमर भवके वरदानी हैं, सदा बेफिकर बादशाह हैं। किसी भी कार्य के निमित्त बनते भी बेफिकर रहना यही विशेषता है। जैसे बाप निमित्त तो बनता है न। लेकिन निमित्त बनते भी न्यारा है इसलिए बेफिकर है। ऐसे फालो फादर। सदा स्नेह की सेफ्टी से आगे बढ़ते चलो। स्नेह के आधार पर बाप सदा सेफ कर आगे उड़ाके ले जा रहा है। यह भी अटल निश्चय है ना। स्नेह का रूहानी सम्बन्ध जुट गया। इसी रूहानी सम्बन्ध से कितना एक दो के प्रिय हो गये। बापदादा ने माताओं को एक शब्द की बहुत सहज बात बताई है, एक शब्द याद करो ‘‘मेरा बाबा’’ बस। मेरा बाबा कहा और सब खज़ाने मिले। यह बाबा शब्द की चाबी है खज़ानों की। माताओं को चाबियाँ सम्भालना अच्छा आता है ना। तो बापदादा ने भी चाबी दी है। जो खज़ाना चाहें वह मिल सकता है। एक खज़ाने की चाबी नहीं है, सभी खज़ानों की चाबी है। बस बाबा-बाबाकहते रहो तो अभी भी बालक सो मालिक और भविष्य में भी मालिक। सदा इसी खुशी में नाचते रहो। अच्छा।