25-03-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


होली का रहस्य

हाइएस्ट बापदादा अपने होली, हैपी हंसों प्रति बोले-

आज बापदादा सर्व स्वराज्य अधिकारी अलौकिक राज्य सभा देख रहे हैं। हर एक श्रेष्ठ आत्मा के ऊपर लाइट का ताज चमकता हुआ देख रहे हैं। यही राज्य सभा - होली सभा है। हर एक परम पावन पूज्य आत्मायें सिर्फ इस एक जन्म के लिए पावन अर्थात् होली नहीं बने हैं। लेकिन पावन अर्थात् होली बनने की रेखा अनेक जन्मों की लम्बी रेखा है। सारे कल्प के अन्दर और आत्मायें भी पावन होली बनती हैं। जैसे पावन आत्मायें धर्मपिता के रूप में धर्म स्थापन करने के निमित्त बनती हैं। साथ-साथ कई महान आत्मायें कहलाने वाले भी पावन बनते हैं लेकिन उन्हों के पावन बनने में और आप पावन आत्माओं में अन्तर है। आपके पावन बनने का साधन अति सहज है। कोई मेहनत नहीं। क्योंकि बाप से आप आत्माओं को सुख शान्ति पवित्रता का वर्सा सहज मिलता है। इस स्मृति से सहज और स्वत: ही अविनाशी बन जाते! दुनिया वाले पावन बनते हैं लेकिन मेहनत से। और उन्हें 21 जन्मों के वर्से के रूप में पवित्रता नहीं प्राप्त होती है। आज दुनिया के हिसाब से होलीका दिन कहते हैं। वह होली मनाते और आप स्वयं ही परमात्मा रंग में रंगने वाले होली आत्मायें बन जाते हो। मनाना थोड़े समय के लिए होता है, बनना जीवन के लिए होता है। वह दिन मनाते और आप होली जीवन बनाते हो। यह संगमयुग होली जीवन का युग है। तो रंग में रंग गये अर्थात् अविनाशी रंग लग गया। जो मिटाने की आवश्यकता नहीं। सदाकाल के लिए बाप समान बन गये। संगमयुग पर निराकार बाप समान कर्मातीत निराकारी स्थिति का अनुभव करते हो और 21 जन्म ब्रह्मा बाप समान सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी श्रेष्ठ जीवन का समान अनुभव करते हो। तो आपकी होली हैसंग के रंगमें बाप समान बनना। ऐसा पक्का रंग हो जो समान बना दे। ऐसी होली दुनिया में कोई खेलते हैं? बाप समान बनाने की होली खेलने आते हैं। कितने भिन्न-भिन्न रंग बाप द्वारा हर आत्मा पर अविनाशी चढ़ जाते हैं। ज्ञान का रंग, याद का रंग, अनेक शक्तियों के रंग, गुणों के रंग, श्रेष्ठ दृष्टि, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना स्वत: सदा बन जाए, यह रूहानी रंग कितना सहज चढ़ जाता है। होली बन गये अर्थात् होली हो गये। वह होली मनाते हैं, जैसे गुण हैं वैसा रूप बन जाते हैं। उसी समय कोई उन्हों का फोटो निकाले तो कैसा लगेगा। वह होली मनाकर क्या बन जाते और आप होली मनाते हो तो फरिश्ता सो देवता बन जाते हो। है सब आपका ही यादगार लेकिन आध्यात्मिक शक्ति न होने के कारण आध्यात्मिक रूप से नहीं मना सकते हैं। बाहरमुखता होने कारण बाहरमुखी रूप से ही मनाते रहते हैं। आपका यथार्थ रूप से मंगल मिलन मनाना है।

होली की विशेषता है जलाना, फिर मनाना और फिर मंगल मिलन करना। इन तीन विशेषताओं से यादगार बना हुआ है। क्योंकि आप सभी ने होली बनने के लिए पहले पुराने संस्कार, पुरानी स्मृतियाँ सभी को योग अग्नि से जलाया तभी संग के रंग में होली मनाया अर्थात् बाप समान संग का रंग लगाया। जब बाप के संग का रंग लग जाता है तो हर आत्मा के प्रति विश्व की सर्व आत्मायें परमात्म परिवार बन जाते हैं। परमात्म परिवार होने के कारण हर आत्मा के प्रति शुभ कामना स्वत: ही नेचुरल संस्कार बन जाती है। इसलिए सदा एक दो में मंगल मिलन मनाते रहते हैं। चाहे कोई दुश्मन भी हो, आसुरी संस्कार वाले हों लेकिन इस रूहानी मंगल मि्ालन से उनको भी परमात्म रंग का छींटा जरूर डालते। कोई भी आपके पास आयेगा तो क्या करेगा? सबसे गले मिलना अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझ गले मिलना। यह बाप के बच्चे हैं। यह प्यार का मिलन शुभ भावना का मिलन उन आत्माओं को भी पुरानी बातें भूला देती हैं। वह भी उत्साह में आ जाते। इसलिए उत्सव के रूप में यादगार बना लिया है। तो बाप से होली मनाना अर्थात् अविनाशी रूहानी रंग में बाप समान बनना। वह लोग तो उदास रहते हैं इसलिए खुशी मनाने के लिए यह दिन रखे हैं। और आप लोग तो सदा ही खुशी में नाचते-गाते, मौज मनाते रहते हो। जो ज्यादा मूँझते हैं - क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, वह मौज में नहीं रह सकते। आप त्रिकालदर्शी बन गये तो फिर क्या, क्यों कैसे यह संकल्प उठ ही नहीं सकते। क्योंकि तीनों कालों को जानते हो। क्यों हुआ? जानते हैं पेपर है आगे बढ़ने लिए। क्यों हुआ? नथिंग न्यू। तो क्या हुआ का क्वेश्चन ही नहीं। कैसे हुआ? माया और मजबूत बनाने के लिए आई और चली गई। तो त्रिकालदर्शी स्थिति वाले इसमें मूँझते नहीं। क्वेश्चन के साथ-साथ रेसपाण्ड पहले आता। क्योंकि त्रिकालदर्शी हो। नाम त्रिकालदर्शी और वर्तमान को भी न जान सके - क्यों हुआ, कैसे हुआ तो उसको त्रिकालदर्शी कैसे कहेंगे! अनेक बार विजयी बने हैं और बनने वाले भी हैं। पास्ट और फ्युचर को भी जानते हैं कि हम ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता बनने वाले हैं। आज और कल की बात है। क्वेश्चन समाप्त हो फुल स्टाप आ जाता है।

होली का अर्थ भी है - हो ली। पास्ट इज पास्ट। ऐसे बिन्दी लगाने आती है ना! यह भी होली का अर्थ है। जलाने वाली होली भी आती। रंग में रंगने वाली होली भी आती और बिन्दी लगाने की होली भी आती। मंगल मिलन मनाने की होली भी आती। चारों ही प्रकार की होली आती है ना! अगर एक प्रकार भी कम होगी तो लाइट का ताज टिकेगा नहीं। गिरता रहेगा। ताज टाइट नहीं होता तो गिरता रहता है ना। चारों ही प्रकार की होली मनाने में पास हो? जब बाप समान बनना है तो बाप सम्पन्न भी है और सम्पूर्ण भी है। परसेन्टेज की स्टेज भी कब तक? जिससे स्नेह होता है तो स्नेही को समान बनने में मुश्किल नहीं होता। बाप के सदा स्नेही हो तो सदा समान क्यों नहीं! सहज है ना। अच्छा।

सभी सदा होली और हैपी रहने वाले होली हँसो को, हाइएस्ट ते हाइएस्ट बाप समान होली बनने की अविनाशी मुबारक दे रहें हैं। सदा बाप समान बनने की, सदा होली युग में मौज मनाने की मुबारक दे रहे हैं। सदा होली हंस बन ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बनने की मुबारक दे रहे हैं। सर्व रंगों में रंगे हुए पूज्य आत्मा बनने की मुबारक दे रहे हैं। मुबारक भी है और यादप्यार भी सदा है। और सेवाधारी बाप की, मालिक बच्चों के प्रति नमस्ते भी सदा है। तो यादप्यार और नमस्ते।’’

आज मलेशिया ग्रुप है! साउथ ईस्ट। सभी यह समझते हो कि हम कहाँ-कहॉ बिखर गये थे। परमात्म परिवार के स्टीमर से उतर कहाँ-कहाँ कोने में चले गये। संसार सागर में खो गये। क्योंकि द्वापर में आत्मिक बाम्ब के बजाए शरीर के भान का बाम्ब लगा। रावण ने बाम्ब लगा दिया तो स्टीमर टूट गया। परमात्म परिवार का स्टीमर टूट गया और कहाँ-कहाँ चले गये। जहाँ भी सहारा मिला। डूबने वाले को जहाँ भी सहारा मिलता है तो ले लेते हैं ना। आप सबको भी जिस धर्म, जिस देश का थोड़ा सा भी सहारा मिला, वहाँ पहुँच गये। लेकिन संस्कार तो वही हैं ना। इसलिए दूसरे धर्म में जाते भी अपने वास्तविक धर्म का परिचय मिलने से पहुँच गये। सारे विश्व में फैल गये थे। यह बिछुड़ना भी कल्याणकारी हुआ। जो अनेक आत्माओं को एक ने निकालने का कार्य किया। विश्व में परमात्म परिवार का परिचय देने के लिए कल्याणकारी बन गये। सब अगर भारत में ही होते तो विश्व में सेवा कैसे होती? इसलिए कोने-कोने में पहुँच गये हो। सभी मुख्य धर्मों में कोई न कोई पहुँच गये हैं। एक भी निकलता है तो हमजिन्स को जगाते जरूर हैं। बापदादा को भी 5 हजार वर्ष के बाद बिछड़े हुए बच्चों को देख करके खुशी होती है। आप सबको भी खुशी होती हैं ना। पहुँच तो गये। मिल तो गये।

मलेशिया का कोई वी. आई. पी. अभी तक नहीं आया है। सेवा के लक्ष्य से उन्हों को भी निमित्त बनाया जाता है। सेवा की तीव्रगति के निमित्त बन जाते हैं इसलिए उन्हों को आगे रखना पड़ता है। बाप के लिए तो आप ही श्रेष्ठ आत्मायें हो। रूहानी नशे में तो आप श्रेंष्ठ हो ना। कहाँ आप पूज्य आत्मायें और कहाँ वह माया में फँसे हुए! अंजान आत्माओं को भी पहचान तो देनी है ना। सिंगापुर में भी अब वृद्धि हो रही है। जहाँ बाप के अनन्य रत्न पहुँचते हैं तो रत्न, रत्नों को ही निकालते हैं। हिम्मत रख सेवा में लगन से आगे बढ़ रहे हैं। तो मेहनत का फल श्रेष्ठ ही मिलेगा। अपने परिवार को इकट्ठे करना है। परिवार का बिछुड़ा हुआ परिवार में पहुँच जाता है तो कितना खुश होते और दिल से शुक्रिया गाते। तो यह भी परिवार में आकर कितना शुक्रिया गाते होंगे। निमित्त बन बाप का बना लिया। संगम पर शुक्रिया की मालायें बहुत पड़ती हैं। अच्छा।