07-04-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


तपस्वी-मूर्त, त्याग मूर्त, विधाता ही विश्व-राज्य अधिकारी

विश्व राज्य के भाग्य के अधिकारी बनाने वाले शिव बाबा बोले

आज रूहानी शमा अपने रूहानी परवानों को देख रहे हैं। सभी रूहानी परवाने - शमा से मिलन मनाने के लिए चारों ओर से पहुँच गये हैं। रूहानी परवानों का प्यार रूहानी शमा जाने और रूहानी परवाने जाने। बापदादा जानते हैं कि सभी बच्चों के दिल का स्नेह आकर्षण कर इस अलौकिक मेले में सभी को लाया है। यह अलौकिक मेला अलौकिक बच्चे जानें और बाप जाने! दुनिया के लिए यह मेला गुप्त है। अगर किसी को कहो रूहानी मेले में जा रहे हैं तो वह क्या समझेंगे? यह मेला सदा के लिए मालामाल बनाने का मेला है। यह परमात्म-मेला सर्व प्राप्ति स्वरूप बनाने वाला है। बापदादा सभी बच्चों के दिल के उमंग उत्साह को देख रहे हैं। हर एक के मन में स्नेह के सागर की लहरें लहरा रहीं हैं। यह बापदादा देख भी रहे हैं और जानते भी हैं कि लगन ने विघ्न विनाशक बनाए मधुबन निवासी बना लिया है। सभी की सब बातें स्नेह में समाप्त हो गई। एवररेडी की रिहर्सल कर दिखाई। एवररेडी हो गये हो ना! यह भी स्वीट ड्रामा का स्वीट पार्ट देख बापदादा और ब्राह्मण बच्चे हर्षित हो रहे हैं। स्नेह के पीछे सब बातें सहज भी लगती हैं और प्यारी भी लगती। जो ड्रामा बना, वाह ड्रामा वाह! कितनी बार ऐसे दौड़े-दौड़े आये हैं। ट्रेन में आये हैं या पंखो से उड़के आये हैं! इसको कहा जाता है - जहाँ दिल है वहाँ असम्भव भी संभव हो जाता है। स्नेह का स्वरूप तो दिखाया, अब आगे क्या करना है। जो अब तक हुआ वह श्रेष्ठ है और श्रेष्ठ रहेगा।

अब समय प्रमाण सर्व स्नेही, सर्वश्रेष्ठ बच्चों से बापदादा और विशेष क्या चाहते हैं? वैसे तो पूरी सीजन में समय प्रति समय इशारे देते हैं। अब उन इशारों को प्रत्यक्ष रूप में देखने का समय आ रहा है। स्नेही आत्मायें हो, सहयोगी आत्मायें हो। सेवाधारी आत्मायें भी हो। अभी महातपस्वी आत्मायें बनो। अपने संगठित स्वरूप की तपस्या की रूहानी ज्वाला से सर्व आत्माओं को दुःख-अशान्ति से मुक्त करने का महान कार्य करने का समय है। जैसे एक तरफ खूने-नाहक खेल की लहर बढ़ती जा रही है, सर्व आत्मायें अपने को बेसहारे अनुभव कर रहीं हैं, ऐसे समय पर सभी सहारे की अनुभूति कराने के निमित्त आप महातपस्वी आत्मायें हो। चारों ओर इस तपस्वी स्वरूप द्वारा आत्माओं को रूहानी चैन अनुभव कराना है। सारे विश्व की आत्मायें प्रकृति से, वायुमण्डल से, मनुष्य आत्माओं से, अपने मन के कमज़ोरियों से, तन से, बेचैन हैं। ऐसी आत्माओं को सुख-चैन की स्थिति का एक सेकण्ड भी अनुभव करायेंगे तो आपका दिल से बार-बार शुक्रिया मानेंगे। वर्तमान समय संगठित रूप के ज्वाला स्वरूप की आवश्यकता है। अभी विधाता के बच्चे विधाता स्वरूप में स्थित रह, हर समय देते जाओ। अखण्ड महान लंगर लगाओ। क्योंकि रॉयल भिखारी बहुत हैं। सिर्फ धन के भिखारी, भिखारी नहीं होते लेकिन मन के भिखारी अनेक प्रकार के हैं। अप्राप्त आत्मायें प्राप्ति के बूँद की प्यासी बहुत हैं। इसलिए अभी संगठन में विधातापन की लहर फैलाओ। जो खज़ाने जमा किये हैं वह जितना मास्टर विधाता बन देते जायेंगे उतना भरता जायेगा। कितना सुना है। अभी करने का समय है। तपस्वी मूर्त का अर्थ है - तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारो ओर फैलती हुई अनुभव में आवें। सिर्फ स्वयं के प्रति याद स्वरूप बन शक्ति सेना का मिलन मनाना वह अलग बात है। लेकिन तपस्वी स्वरूप औरों को देने का स्वरूप है। जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है। ऐसे महान तपस्वी रूप द्वारा प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराओ। इसके लिए पहले जमा का खाता बढ़ाओ। ऐसे नहीं, याद से वा ज्ञान के मनन से स्वयं को श्रेष्ठ बनाया, मायाजीत विजयी बनाया इसी में सिर्फ खुश नहीं रहना। लेकिन सर्व खज़ानों में सारे दिन में कितनों के प्रति विधाता बने? सभी खज़ाने हर रोज कार्य में लगाये वा सिर्फ जमा को देख खुश हो रहे हैं? अभी यह चार्ट रखो कि खुशी का खज़ाना, शान्ति का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, गुणों का खज़ाना, सहयोग देने का खज़ाना कितना बाँटा अर्थात् कितना बढ़ाया। इससे वह कामन चार्ट जो रखते हो वह स्वत: ही श्रेष्ठ हो जायेगा। समझा - अभी कौन-सा चार्ट रखना है? यह तपस्वी स्वरूप का चार्ट है - विश्व-कल्याणकारी बनना। तो कितने का कल्याण किया! वा स्व-कल्याण में ही समय जा रहा है? स्व-कल्याण करने का समय बहुत बीत चुका। अभी विधाता बनने का समय आ गया है। इसलिए बापदादा फिर से समय का इशारा दे रहे हैं। अगर अब तक भी विधातापन स्थिति का अनुभव नहीं किया तो अनेक जन्म विश्व-राज्य अधिकारी बनने के पद्मापदम भाग्य को प्राप्त नहीं कर सकेंगे, क्योंकि विश्व-राजन विश्व के मात-पिता अर्थात् विधाता हैं। अब के विधातापन के संस्कार अनेक जन्म प्राप्ति कराता रहेगा, अगर अभी तक लेने के संस्कार, कोई भी रूप में हैं तो नाम लेवता, शान लेवता वा किसी भी प्रकार के लेवता के संस्कार विधाता नहीं बनायेंगे।

तपस्या स्वरूप अर्थात् लेवता के त्यागमूर्त। यह हद के लेवता, त्याग मूर्त, तपस्वी मूर्त बनने नहीं देगा। इसलिए तपस्वी मूर्त अर्थात् हद के इच्छा मात्रम् अविद्या रूप। जो लेने का संकल्प करता वह अल्पकाल के लिए लेता है लेकिन सदाकाल के लिए गँवाता है। इसलिए बापदादा बार-बार इस बात का इशारा दे रहे हैं। तपस्वी रूप में विशेष विघ्न रूप यही अल्पकाल की इच्छा है। इसलिए अभी विशेष तपस्या का अभ्यास करना है। समान बनने का यह सबूत देना है। स्नेह का सबूत दिया यह तो खुशी की बात है। अभी तपस्वी मूर्त बनने का सबूत दो। समझा। बैराइटी संस्कार होते हुए भी विधाता-पन के संस्कार अन्य संस्कारों को दबा देगा। तो अब इस संस्कार को इमर्ज करो। जैसे मधुबन में भाग कर पहुँच गये हो ऐसे तपस्वी स्थिति की मंज़िल तरफ भागो। अच्छा - भले पधारे। सभी ऐसे भागे हैं जैसे कि अभी विनाश होना है। जो भी किया, जो भी हुआ बापदादा को प्रिय है, क्योंकि बच्चे प्रिय हैं। हर एक ने यही सोचा है कि हम जा रहे हैं। लेकिन दूसरे भी आ रहे हैं यह नहीं सोचा! सच्चा कुम्भ मेला तो यहाँ लग गया है। सभी अन्तिम मिलन, अन्तिम टुब्बी देने आये है। यह सोचा कि इतने सब जा रहे हैं तो मिलने की विधि कैसी होगी! इस सुध-बुध से भी न्यारे हो गये! न स्थान देखा न रिजर्वेशन को देखा। अभी कब भी यह बहाना नहीं दे सकेंगे कि रिजर्वेशन नहीं मिलती। ड्रामा में यह भी एक रिहर्सल हो गई। संगम युग पर अपना राज्य नहीं है। स्वराज्य है लेकिन धरनी का राज्य तो नहीं है, न बापदादा को स्व का रथ है। पराया तन है। इसलिये समय प्रमाण नई विधि का आरम्भ करने के लिए यह सीजन हो गई। यहाँ तो पानी का भी सोचते रहते, वहाँ तो झरनों में नहायेंगे। जो भी जितने भी आये हैं, बापदादा स्नेह के रेसपाण्ड में स्नेह से स्वागत करते हैं।

अभी समय दिया है विशेष फाइनल इम्तहान के पहले तैयारी करने के लिए। फाइनल पेपर के पहले टाइम देते हैं। छुट्टी देते हैं ना! तो बापदादा अनेक राजों से यह विशेष समय दे रहे है। कुछ राज़ गुप्त हैं, कुछ राज़ प्रत्यक्ष हैं। लेकिन विशेष हर एक इतना अटेन्शन रखना कि सदा बिन्दुलगाना है अर्थात् बीती को बीती करने का बिन्दु लगाना है। और बिन्दुस्थिति में स्थित हो राज्य अधिकारी बन कार्य करना है। सर्व खज़ानों के बिन्दुसर्व प्रति विधाता बन, सिन्धु बन सभी को भरपूर बनाना है। तो बिन्दुऔर सिन्धुयह दो बातें विशेष स्मृति में रख श्रेष्ठ सर्टीफिकेट लेना है। सदा ही श्रेष्ठ संकल्प की सफलता से आगे बढ़ते रहना। तो बिन्दु बनना, सिन्धु बननायही सर्व बच्चों प्रति वरदाता का वरदान है। वरदान लेने के लिए भागे हो ना! यही वरदाता का वरदान स्मृति में रखना। अच्छा!

चारों ओर के सर्व स्नेही, सहयोगी बच्चों को, सदा बाप की आज्ञा का पालन करने वाले आज्ञाकारी बच्चों को, सदा फराखदिल बड़ी दिल, सर्व को सर्व खज़ाने बांटने वाले, महान पुण्य आत्मायें बच्चों को, सदा बाप समान बनने के उमंग-उत्साह से उड़ती कला में उड़ने वाले बच्चों को विधाता, वरदाता सर्व खज़ानों के सिन्धु बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

विदाई के समय

सभी ने जागरण किया! आपके भक्त जागरण करते हैं तो भक्तों को सिखाने वाले तो इष्ट देव ही होते हैं, जब यहाँ इष्ट देव जागरण करें तब भक्त कॉपी करें। तो सभी ने जागरण किया अर्थात् अपने खाते में कमाई जमा की। तो आज की रात कमाने के सीजन की रात हो गई। जैसे कमाई की सीजन होती है तो सीजन में जागना ही होता है। तो यह कमाई की सीजन है इसलिए जागना अर्थात् कमाना। तो हरेक ने अपने-अपने यथाशक्ति जमा किया और यही जमा किया हुआ महादानी बन औरों को भी देते रहेंगे। और स्वयं भी अनेक जन्म खाते रहेंगे। अभी सभी बच्चों को परमात्म मेले के गोल्डन चांस की गोल्डन मार्निंग कर रहें हैं। वैसे तो गोल्डन से भी डायमण्ड मार्निंग है। स्वयं भी डायमण्ड हो और मोर्निंग भी डायमण्ड है और जमा भी डायमण्ड ही करते हो तो सब डायमण्ड ही डायमण्ड है इसलिए डायमण्ड मार्निंग कर रहे हैं।