10-12-87   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


तन, मन, धन और सम्बन्ध का श्रेष्ठ सौदा

सर्व खज़ानों के अखुट भण्डार, सर्व शक्तियों के दाता, रत्नागर बाप अपने परमात्म-सौदागर बच्चों प्रति बोले

आज सर्व खज़ानों के सागर रत्नागर बाप अपने बच्चों को देख मुस्करा रहे हैं कि सर्व खज़ानों के रत्नागर बाप के सौदागर बच्चे अर्थात् सौदा करने वाले कौन हैं और किससे सौदा किया है? परमात्म-सौदा देने वाले और परमात्मा से सौदा करने वाली सूरतियाँ कितनी भोली हैं और सौदा कितना बड़ा किया है! यह इतना बड़ा सौदा करने वाले सौदागर आत्मायें हैं - यह दुनिया वालों की समझ में नहीं आ सकता। दुनिया वाले जिन आत्माओं को नाउम्मीद, अति गरीब समझ, असम्भव समझ किनारे कर दिया कि यह कन्यायें, मातायें परमात्म-प्राप्ति के क्या अधिकारी बनेंगे? लेकिन बाप ने पहले माताओं, कन्याओं को ही इतना बड़े ते बड़ा सौदा करने वाली श्रेष्ठ आसामी बना दिया। ज्ञान का कलश पहले माताओं, कन्याओं के ऊपर रखा। यज्ञ-माता जगदम्बा निमित्त गरीब कन्या को बनाया। माताओं के पास फिर भी अपनी कुछ न कुछ छिपी हुई प्रापर्टी रहती है लेकिन कन्या माताओं से भी गरीब होती। तो बाप ने गरीब से गरीब को पहले सौदागर बनाया और सौदा कितना बड़ा किया! जो गरीब कुमारी से जगत- अम्बा सो धन देवी लक्ष्मी बना दिया! जो आज दिन तक भी भल कितने भी मल्टी-मिलिनीयर (करोड़पति) हों लेकिन लक्ष्मी से धन जरूर मांगेंगे, पूजा जरूर करेंगे। रत्नागर बाप अपने सौदागर बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। एक जन्म का सौदा करने से अनेक जन्म सदा मालामाल भरपूर हो जाते हैं। और निमित्त सौदा करने वाला भल कितना भी बड़ा बिजनिसमैन हो लेकिन वह सिर्फ धन का सौदा, वस्तु का सौदा करेंगे। एक ही बेहद का बाप है जो धन का भी सौदा करते, मन का भी सौदा करते, तन का भी और सदा श्रेष्ठ सम्बन्ध का भी सौदा करते। ऐसा दाता कोई देखा? चारों ही प्रकार के सौदे किये हैं ना? तन सदा तन्दुरूस्त रहेगा, मन सदा खुश, धन के भण्डार भरपूर और सम्बन्ध में नि:स्वार्थ स्नेह। और गैरन्टी है। आजकल भी जो मूल्यवान वस्तु होती है उसकी गैरन्टी देते हैं। 5 वर्ष, 10 वर्ष की गैरन्टी देंगे, और क्या करेंगे? लेकिन रत्नागर बाप कितने समय की गैरन्टी देते हैं? अनेक जन्मों की गैरन्टी देते हैं। चारों में एक की भी कमी नहीं हो सकती। चाहे प्रजा की प्रजा भी बनें लेकिन उनको भी लास्ट जन्म तक अर्थात् त्रेता के अन्त तक भी यह चारों ही बातें प्राप्त होंगी। ऐसा सौदा कब किया? अब तो किया है ना सौदा? पक्का सौदा किया है या कच्चा? परमात्मा से कितना सस्ता सौदा किया है! क्या दिया, कोई काम की चीज़ दी?

फारेनर्स बापदादा के पास सदैव दिल बनाकर भेज देते हैं। पत्र भी दिल के चित्र के अन्दर लिखेंगे, गिफ्ट भी दिल की भेजेंगे। तो दिल दिया ना। लेकिन कौनसी दिल दी? एक दिल के कितने टुकड़े हुए पड़े थे? माँ, बाप, चाचा, मामा, कितनी लम्बी लिस्ट है? अगर सम्बन्ध की लिस्ट निकालो कलियुग में तो कितनी लम्बी लिस्ट होगी! एक सम्बन्ध में दिल दे दिया, दूसरा वस्तुओं में भी दिल दे दी... तो दिल लगाने वाली वस्तुएं कितनी हैं, व्यक्ति कितने हैं? सबमें दिल लगाके दिल ही टुकड़ा-टुकड़ा कर दी। बाप ने अनेक टुकड़े वाली दिल को एक तरफ जोड़ लिया। तो दिया क्या और लिया क्या! और सौदा करने की विधि कितनी सहज है! सेकण्ड का सौदा है ना। ‘‘बाबा'' शब्द ही विधि है। एक शब्द की विधि है, इसमें कितना समय लगता? सिर्फ दिल से कहा - ‘‘बाबा'' तो सेकण्ड में सौदा हो गया। कितनी सहज विधि है। इतना सस्ता सौदा सिवाए इस संगमयुग के और किसी भी युग में नहीं कर सकते। तो सौदागरों की सूरत-मूरत देख रहे थे। दुनिया के अन्तर में कितने भोले-भाले हैं! लेकिन कमाल तो इन भोले-भालों ने किया है। सौदा करने में तो होशियार निकले ना। आज के बड़ेबड़ े नामीग्रामी धनवान, धन कमाने के बजाए धन को सम्भालने की उलझन में पड़े हुए हैं। उसी उलझन में बाप को पहचानने की भी फुर्सत नहीं है। अपने को बचाने में, धन को बचाने में ही समय चला जाता है। बादशाह भी हों लेकिन फिकर वाले बादशाह हैं। क्योंकि फिर भी काला धन है ना। इसलिए फिकर वाले बादशाह हैं। और आप बाहर से बिन कौड़ी हो लेकिन बेफिकर बादशाह' हो, बेगर होते भी बादशाह। शुरू-शुरू में साइन क्या करते थे? बेगर टू प्रिन्स। अभी बादशाह और भविष्य में भी बादशाह हैं। आजकल के नम्बरवन धनवान आसामी हो लेकिन उनके सामने आपके त्रेता अन्त वाली प्रजा भी ज्यादा धनवान होगी। आजकल की संख्या के हिसाब से सोचो - धन तो वही होगा, और ही दबा हुआ धन भी निकलेगा। तो जितनी बड़ी संख्या है, उसी प्रमाण धन बांटा हुआ है। और वहाँ संख्या कितनी होगी? उसी हिसाब से देखो तो कितना धन होगा! प्रजा को भी अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। तो बादशाह हुए ना। बादशाह का अर्थ यह नहीं कि तख्त पर बैठें। बादशाह अर्थात् भरपूर, कोई अप्राप्ति नहीं, कमी नहीं। तो ऐसा सौदा कर लिया है या कर रहे हो? वा अभी सोच रहे हो? कभी कोई बड़ी चीज़ सस्ती और सहज मिल जाती है तो भी उलझन में पड़ जाते कि पता नहीं ठीक है वा नहीं? ऐसी उलझन में तो नहीं हो ना? क्योंकि भक्ति मार्ग वालों ने सहज को इतना मुश्किल कर और चक्र में डाल दिया है, जो आज भी बाप को उसी रूप से ढूँढ़ते रहते हैं। छोटी बात को बड़ी बात बना दी है, इसलिए उलझन में पड़ जाते हैं। ऊँचे ते ऊँचा भगवान उनसे मिलने की विधियाँ भी लम्बी-चौड़ी बता दी। उसी चक्र में भक्त आत्मायें सोच में ही पड़ी हुई हैं। भगवान भक्ति का फल देने भी आ गये हैं लेकिन भक्त आत्मायें उलझन के कारण पत्ते-पत्ते को पानी देने में ही बिजी हैं। कितना भी आप सन्देश देते हो तो क्या कहते हैं? इतना ऊँचा भगवान, ऐसे सहज आये - हो ही नहीं सकता। इसलिए बाप मुस्करा रहे थे कि आजकल के चाहे भक्ति के नामीग्रामी, चाहे धन के नामीग्रामी, चाहे किसी भी आक्यूपेशन के नामीग्रामी - अपने ही कार्य में बिजी हैं। लेकिन आप साधारण आत्माओं ने बाप से सोदा कर लिया। पाण्डवों ने पक्का सौदा कर लिया ना? डबल फारेनर्स सौदा करने में होशियार हैं। सौदा तो सबने किया लेकिन सब बात में नम्बरवार होते हैं। बाप ने तो सभी को एक जैसे सर्व खज़ाने दिये क्योंकि अखुट सागर है। बाप को देने में नम्बरवार देने की आवश्यकता ही नहीं है।

जैसे आजकल की विनाशकारी आत्मायें कहती हैं कि विनाश की इतनी सामग्री तैयार की है जो ऐसी कई दुनिया विनाश हो सकती है। बाप भी कहते बाप के पास भी इतना खज़ाना है जो सारे विश्व की आत्मायें आप जैसे समझदार बन सौदा कर लें तो भी अखुट है। जितनी आप ब्राह्मणों की संख्या है, उससे और पद्मगुणा भी आ जाए तो भी ले सकते हैं। इतना अथाह खज़ाना है! लेकिन लेने वालों में नम्बर हो जाते हैं। खुले दिल से सौदा करने वाले हिम्मतवान थोड़े ही निकलते हैं। इसलिए दो प्रकार की माला पूजी जाती है। कहाँ अष्ट रत्न और कहाँ 16 हजार का लास्ट! कितना अन्तर हो गया! सौदा करने में तो एक जैसा ही है। लास्ट नम्बर भी कहता - बाबा' और फर्स्ट नम्बर भी कहता - बाबा'। शब्द में अन्तर नहीं है। सौदा करने की विधि एक जैसी है और देने वाला दाता भी एक जैसा देता है। ज्ञान का खज़ाना वा शक्तियों का खज़ाना, जो भी संगमयुगी खज़ाने जानते हो, सबके पास एक जैसा ही है। किसको सर्वशक्तियाँ दी, किसको एक शक्ति दी वा किसको एक गुण वा किसको सर्वगुण दिये - यह अन्तर नहीं। सभी की टाइटिल एक ही है - आदि-मध्य-अन्त के ज्ञान को जानने वाले त्रिकालदर्शी, मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। ऐसे नहीं कि कोई सर्वशक्तिवान है, कोई सिर्फ शक्तिवान है। नहीं। सभी को सर्वगुण सम्पन्न बनने वाली देव आत्मा कहते हैं, गुण मूर्ति कहते हैं। खज़ाना सभी के पास है। एक मास से स्टडी करने वाला भी ज्ञान का खज़ाना ऐसे ही वर्णन करता जैसे 50 वर्ष वाले वर्णन करते हैं। अगर एक-एक गुण पर, शक्तियों पर भाषण करने के लिए कहें तो बहुत अच्छा भाषण कर सकते हैं। बुद्धि में है तब तो कर सकते हैं ना। तो खज़ाना सबके पास है, बाकी अन्तर क्या हो गया? नम्बरवन सौदागर खज़ाने को स्व के प्रति मनन करने से कार्य में लगाते हैं। उसी अनुभव की अथार्टी से अनुभवी बन दूसरों को बांटते। कार्य में लगाना अर्थात् खज़ाने को बढ़ाना। एक हैं सिर्फ वर्णन करने वाले, दूसरे हैं मनन करने वाले। तो मनन करने वाले जिसको भी देते हैं वह स्वयं अनुभवी होने के कारण दूसरे को भी अनुभवी बना सकते हैं। वर्णन करने वाले दूसरे को भी वर्णन करने वाला बना देते। महिमा करते रहेंगे, लेकिन अनुभवी नहीं बनेंगे। स्वयं महान नहीं बनेंगे लेकिन महिमा करने वाले बनेंगे।

तो नम्बरवन अर्थात् मनन शक्ति से खज़ाने के अनुभवी बन अनुभवी बनाने वाले अर्थात् दूसरे को भी धनवान बनाने वाले। इसलिए उन्हों का खज़ाना सदा बढ़ता जाता है और समय प्रमाण स्वयं प्रति और दूसरों के प्रति कार्य में लगाने से सफलता स्वरूप सदा रहते हैं। सिर्फ वर्णन करने वाले दूसरे को भी धनवान नहीं बना सकेंगे और अपने प्रति भी समय प्रमाण जो शक्ति, जो गुण, जो ज्ञान की बातें यूज करनी चाहिए वह समय पर नहीं कर सकेंगे। इसलिए खज़ाने के भरपूर स्वरूप का सुख और दाता बन देने का अनुभव नहीं कर सकते। धन होते भी धन से सुख नहीं ले सकते। शक्ति होते भी समय पर शक्ति द्वारा सफलता पा नहीं सकते। गुण होते भी समय प्रमाण उस गुण को यूज नहीं कर सकते। सिर्फ वर्णन कर सकते हैं। धन सबके पास है लेकिन धन का सुख समय पर यूज करने से अनुभव होता। जैसे आजकल के समय में भी कोई-कोई विनाशी धनवान के पास भी धन बैंक में होगा, अलमारी में होगा या तकिये के नीचे होगा, न खुद कार्य में लायेगा, न औरों को लगाने देगा। न स्वयं लाभ लेगा, न दूसरों को लाभ देगा। तो धन होते भी सुख तो नहीं लिया ना। तकिये के नीचे ही रह जायेगा, खुद चला जायेगा। तो यह वर्णन करना अर्थात् यूज न करना, सदा गरीब दिखाई देंगे। यह धन भी अगर स्वयं प्रति वा दूसरों प्रति समय प्रमाण यूज नहीं करते, सिर्फ बुद्धि में रखा है तो न स्वयं अविनाशी धन के नशे में, खुशी में रहते, न दूसरों को दे सकते। सदा ही क्या करें, कैसे करें... इस विधि चलते रहेंगे। इसलिए दो मालायें हो जाती हैं। वह मनन करने वाली, वह सिर्फ वर्णन करने वाली। तो कौन से सौदागर हो, नम्बरवन वाले या दूसरे नम्बर वाले? इस खज़ाने का कन्डीशन (शर्त) यह है - जितना औरों को देंगे, जितना कार्य में लगायेंगे उतना बढ़ेगा। वृद्धि होने की विधि यह है। इसमें विधि को न अपनाने के कारण स्वयं में भी वृद्धि नहीं और दूसरों की सेवा करने में भी वृद्धि नहीं। संख्या की वृद्धि नहीं कह रहे हैं, सम्पन्न बनाने की वृद्धि। कई स्टूडेन्टस संख्या में तो गिनती में आते हैं लेकिन अब तक भी कहते रहते - समझ में नहीं आता योग क्या है, बाप को याद कैसे करें? अभी शक्ति नहीं है। तो स्टूडेन्टस की लाइन में तो हैं, रजिस्टर में नाम है लेकिन धनवान तो नहीं बना ना। मांगता ही रहेगा। कभी कोई टीचर के पास जायेगा - मदद दे दो, कभी बाप से रूह-रूहान करेगा - मदद दे दो। तो भरपूर तो नहीं हुआ ना। जो स्वयं अपने प्रति मनन शक्ति से धन को बढ़ाता है वह दूसरे को भी धन में आगे बढ़ा सकता हैं। मनन शक्ति अर्थात् धन को बढ़ाना। तो धनवान की खुशी, धनवान का सुख अनुभव करना। समझा? मनन शक्ति का महत्त्व बहुत है। पहले भी थोड़ा इशारा सुनाया है। और भी मनन शक्ति के महत्त्व का आगे सुनायेंगे। चेक करने का काम देते रहते हैं। रिजल्ट आऊट हो और फिर आप कहो कि हमें तो पता नहीं, यह बात तो बापदादा ने कही नहीं थी। इसलिए रोज सुनाते रहते हैं। चेक करना अर्थात् चेन्ज करना। अच्छा –

सर्व श्रेष्ठ सौदागर आत्माओं को, सदा सर्व खज़ानों को समय प्रमाण कार्य में लगाने वाले महान विशाल बुद्धिवान बच्चों को, सदा स्वयं को और सर्व को सम्पन्न अनुभव कर अनुभवी बनाने वाले अनुभव की अथार्टी वाले बच्चों को आलमाइटी अथार्टी बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात (ईस्टर्न जोन)

(1) ईस्ट से सूर्य उदय होता है ना। तो ईस्टर्न जोन अर्थात् सदा ज्ञान सूर्य उदय है ही। ईस्टर्न वाले अर्थात् सदा ज्ञान सूर्य के प्रकाश द्वारा हर आत्मा को रोशनी में लाने वाले, अंधकार समाप्त करने वाले। सूर्य का काम है अंधकार को खत्म करना। तो आप सब मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् चारों ओर का अज्ञान समाप्त करने वाले हो ना। सभी इसी सेवा में बिजी रहते हो या अपनी वा प्रवृत्ति की परिस्थितियों के झंझट में फंसे रहते हो? सूर्य का काम है रोशनी देने के कार्य में बिजी रहना। चाहे प्रवृत्ति में, चाहे कोई भी व्यवहार में हो, चाहे कोई भी परिस्थिति सामने आये लेकिन सूर्य रोशनी देने के कार्य के बिना रह नहीं सकता। तो ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य हो या कभी उलझन में आ जाते हो? पहला कर्त्तव्य है - ज्ञान की रोशनी देना। जब यह स्मृति में रहता है कि परमार्थ द्वारा व्यवहार और परिवार दोनों को श्रेष्ठ बनाना है तब यह सेवा स्वत: होती है। जहाँ परमार्थ है वहाँ व्यवहार सिद्ध व सहज हो जाता है। और परमार्थ की भावना से परिवार में भी सच्चा प्यार, एकता स्वत: ही आ जाती है। तो परिवार भी श्रेष्ठ और व्यवहार भी श्रेष्ठ। परमार्थ व्यवहार से किनारा नहीं कराता, और ही परमार्थ-कार्य में बिजी रहने से परिवार और व्यवहार में सहारा मिल जाता है। तो परमार्थ में सदा आगे बढ़ते चलो। नेपाल वालों की निशानी में भी सूर्य दिखाते हैं ना। वैसे राजाओं में सूर्यवंशी राजायें प्रसिद्ध हैं, श्रेष्ठ माने जाते हैं। तो आप भी मास्टर ज्ञान सूर्य सबको रोशनी देने वाले हो। अच्छा –