23-11-89   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


वरदाता को राजी करने की सहज विधि अव्यक्त बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले

आज वरदाता बाप अपने वरदानी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। वरदाता के बच्चे वरदानी सब बच्चे हैं लेकिन नम्बरवार हैं। वरदाता सभी बच्चों को वरदानों की झोली भर कर के देते हैं। फिर नम्बर क्यों? वरदाता देने में नम्बरवार नहीं देते हैं क्योंकि वरदाता के पास अखुट वरदान हैं जो जितना लेने चाहे खुला भण्डार है। ऐसे खुले भण्डार से कई बच्चे सर्व वरदानों से सम्पन्न बनते हैं और कोई बच्चे यथा-शक्ति तथा सम्पन्न बनते हैं। सबसे ज्यादा झोली भरकर देने में भोलानाथ, ‘वरदाता' रूप ही है। पहले भी सुनाया है - दाता, भाग्यविधाता और वरदाता। तीनों में से वरदाता' रूप से भोले भगवान कहा जाता है। क्योंकि वरदाता बहुत जल्दी राजी हो जाते हैं। सिर्फ राजी करने की विधि जान जाते हो तो सिद्धि अर्थात् वरदानों की झोली से सम्पन्न रहना बहुत सहज है। सबसे सहज विधि वरदाता को राजी करने की जानते हो? उनको सबसे प्रिय कौन लगता है? उनको एक' शब्द सबसे प्रिय लगता, जो बच्चे एकव्रता' आदि से अब तक हैं वही वरदाता को अति प्रिय हैं।

एकव्रता अर्थात् सिर्फ पतिव्रता नहीं, सर्व सम्बन्ध से एकव्रता'। संकल्प में भी, स्वप्न में भी दूजा-व्रता न हो। एक-व्रता अर्थात् सदा वृत्ति में एक हो। दूसरा - सदा मेरा तो एक दूसरा न कोई - यह पक्का व्रत लिया हुआ हो। कई बच्चे एकव्रता बनने में बड़ी चतुराई करते हैं। कौन-सी चतुराई? बाप को ही मीठी बातें सुनाते कि बाप, शिक्षक, सत्गुरू का मुख्य सम्बन्ध तो आपके साथ है लेकिन साकार शरीरधारी होने के कारण, साकारी दुनिया में चलने के कारण कोई साकारी सखा वा सखी सहयोग के लिए, सेवा के लिए, राय-सलाह के लिए साकार में जरूर चाहिए, क्योंकि बाप तो निराकार और आकार है, इसलिए सेवा साथी है। और तो कुछ नहीं है। क्योंकि निराकारी, आकारी मिलन मनाने के लिए स्वयं को भी आकारी, निराकारी स्थिति में स्थित होना पड़ता है। वह कभी-कभी मुश्किल लगता है। इसलिए समय के लिए साकार साथी चाहिए। जब दिमाग में बहुत बातें भर जायेंगी तो क्या करेंगे? सुनने वाला तो चाहिए ना! एकव्रता आत्मा के पास ऐसी बोझ की बातें इकटठी नहीं होतीं जो सुनानी पड़ें। एक तरफ बाप को बहुत खुश करते हो - बस, आप ही सदैव मेरे साथ रहते हो, सदा बाप मेरे साथ है, साथी है। फिर उस समय कहाँ चला जाता है? बाप चला जाता या आप किनारे हो जाते हो? हर समय साथ है वा 6-8 घण्टा साथ है। वायदा क्या है? साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, यह वायदा पक्का है ना! ब्रह्मा बाप से तो इतना वायदा है कि सारे चक्र में साथ पार्ट बजायेंगे! जब ऐसा वायदा है, फिर भी साकार में कोई विशेष साथी चाहिए?

बापदादा के पास सबकी जन्मपत्री रहती है। बाप के आगे तो कहेंगे आप ही साथी हो। जब परिस्थिति आती है फिर बाप को ही समझाने लगते कि यह तो होगा ही, इतना तो चाहिए ही.....। इसको एकव्रता कहेंगे? साथी हैं तो सब साथी हैं, कोई विशेष नहीं। इसको कहते हैं - एकव्रता। तो वरदाता को ऐसे बच्चे अति प्रिय है। ऐसे बच्चों की हर समय की सर्व जिम्मेवारियाँ वरदाता बाप स्वयं अपने ऊपर उठाते हैं। ऐसी वरदानी आत्मायें हर समय, हर परिस्थिति में वरदानों के प्राप्ति सम्पन्न स्थिति अनुभव करती हैं और सदा सहज पार करती हैं और पास विद् ऑनर बनती हैं। जब वरदाता सर्व जिम्मेवारियाँ उठाने के लिए एवररेडी है फिर अपने ऊपर जिम्मेवारी का बोझ क्यों उठाते हो? अपनी जिम्मेवारी समझते हो तब परिस्थिति में पास विद् ऑनर नहीं बनते लेकिन धक्के से पास होते हो। किसी के साथ' का धक्का चाहिए। अगर बैटरी फुल चार्ज नहीं होती तो कार को धक्के से चलाते हैं ना। तो धक्का अकेला तो नहीं देंगे, साथ चाहिए। इसलिए वरदानी नम्बरवार बन जाते हैं। तो वरदाता को एक शब्द प्यारा है - एकव्रता'। एक बल एक भरोसा। एक का भरोसा दूजे का बल - ऐसा नहीं कहा जाता। एक बल एक भरोसा' ही गाया हुआ है। साथ-साथ एकमत, न मनमत न परमत, एकरस - न और कोई व्यक्ति, न वैभव का रस। ऐसे ही एकता, एकान्तप्रिय। तो एक' शब्द ही प्रिय हुआ ना। ऐसे और भी निकालना।

बाप इतना भोला है जो एक में ही राजी हो जाता है। ऐसे भोलानाथ वरदाता को राजी करना क्या मुश्किल लगता है? सिर्फ एक' का पाठ पक्का करो। 5-7 में जाने की जरूरत नहीं है। वरदाता को राजी करने वाले अमृतवेले से रात तक हर दिनचर्या के कर्म में वरदानों से ही पलते हैं, चलते हैं और उड़ते हैं। ऐसे वरदानी आत्माओं को कभी कोई मुश्किल चाहे मन से, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से अनुभव नहीं होगी। हर संकल्प में, हर सेकण्ड, हर कर्म में, हर कदम में वरदाता' और वरदान' सदा समीप, सम्मुख साकार रूप में अनुभव होगा। वह ऐसे अनुभव करेगा जैसे साकार में बात कर रहे हैं। उनको मेहनत अनुभव नहीं होगी। ऐसी वरदानी आत्मा को यह विशेष वरदान प्राप्त होता है, जो वह, निराकार-आकार को जैसे साकार अनुभव कर सकते हैं! ऐसे वरदानियों के आगे हजूर सदा हाजर है, सुना? वरदाता को राजी करने की विधि और सिद्धि - सेकण्ड में कर सकते हो? सिर्फ एक में दो नहीं मिलाना, बस। फिर सुनायेंगे - एक के पाठ का विस्तार।

बापदादा के पास सभी बच्चों के चरित्र भी हैं तो चतुराई भी है। रिजल्ट तो सारी बापदादा के पास है ना। चतुराई की बातें भी बहुत इकटठी हैं। नई-नई बातें सुनाते हैं। सुनते रहते हैं। सिर्फ बापदादा नाम नहीं लेते हैं इसलिए समझते हैं बाप को मालूम नहीं पड़ता। फिर भी चांस देते रहते हैं। बाप समझाते हैं बच्चे रीयल समझ से भोले हैं। तो ऐसे भोले नहीं बनो। अच्छा।

विदेश का भी चक्र लगा कर बच्चे पहुँच गये हैं। (जानकी दादी, डॉक्टर निर्मला और जगदीश भाई विदेश का चक्र लगाकर आये हैं) अच्छी रिजल्ट है। और सदा ही सेवा की सफलता में वृद्धि होनी ही है। यू.एन. का भी विशेष सेवा के कार्य में सम्बन्ध है। नाम उन्हों का, काम तो आपका ही हो रहा है। आत्माओं को सहज सन्देश पहुँच जाए - यह काम आपका हो रहा है। तो वहाँ का भी प्रोग्राम अच्छा हुआ। रशिया भी रहा हुआ था, उनको भी आना ही था। बापदादा ने तो पहले ही सफलता का यादप्यार दे दिया था। भारत के एम्बसडर बन कर गये तो भारत का नाम बाला हुआ ना! चक्रवर्ती बन चक्र लगाने में मजा आता है ना! कितनी दुआयें जमा करके आये! निर्मल-आश्रम (डॉ0 निर्मला) भी चक्र ही लगाती रहती है। वैसे तो सब सेवा में लगे हुए हैं लेकिन समय के प्रमाण विशेष सेवा होती तो विशेष सेवा की मुबारक देते हैं। सेवा के बिना तो रह नहीं सकते हो। लंदन, अमेरिका, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया - आप लोगों ने यह 4 जोन बनाये हैं ना। पाँचवाँ है भारत। भारत वालों को पहले चांस मिला है मिलने का। जो करके आये और जो आगे करेंगे - सब अच्छा है और सदा ही अच्छा रहेगा। चारों ही जोन के सभी डबल विदेशी बच्चों को आज विशेष यादप्यार दे रहे हैं। रशिया भी एशिया में आ जाता है। सेवा का रेसपाण्ड अच्छा मिल रहा है। हिम्मत भी अच्छी है तो मदद भी मिल रही है और मिलती रहेगी। भारत में भी अभी विशाल प्रोग्राम करने का प्लैन बना रहे हैं। एक-एक को, विशेषता और सेवा की लगन में मगन रहने की मुबारक और यादप्यार। अच्छा।

सर्व बच्चों को सदा सहज चलने की सिद्धि को प्राप्त करने की सहज युक्ति जो सुनाई, इसी विधि को सदा प्रयोग में लाने वाले प्रयोगी और सहजयोगी, सदा वरदाता के वरदानों से सम्पन्न वरदानी बच्चों को, सदा एक' का पाठ हर कदम में साकार स्वरूप में लाने वाले, सदा निराकार आकार बाप के साथ की अनुभूति से सदा साकार स्वरूप में लाने वाले, ऐसे सदा वरदानी बच्चों को बापदादा का दाता, भाग्यविधाता और वरदाता का यादप्यार और नमस्ते।

मुलाकात दादी जानकी जी से:- जितना सभी को बाप का प्यार बाँटते हैं उतना ही और प्यार का भण्डार बढ़ता जाता है। जैसे हर समय प्यार की बरसात हो रही है - ऐसे ही अनुभव होता है ना! एक कदम में प्यार दो और बार-बार प्यार लो। सबको प्यार ही चाहिए। ज्ञान तो सुन लिया है ना! तो एक ऐसे बच्चे हैं जिनको प्यार चाहिए और दूसरे हैं जिनको शक्ति चाहिए। तो क्या सेवा की? यही सेवा की ना - किसको प्यार दिया बाप द्वारा और किसको शक्ति बाप से दिलाई। ज्ञान के राजों को तो जान गये हैं। अभी चाहिए उन्हों में उमंग-उत्साह सदा बना रहे, वह नीचे-ऊपर होता है। फिर भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों को आफरीन (शाबाश) देते हैं - भिन्न धर्म में चले तो गये ना! भिन्न देश, भिन्न रस्म - फिर भी चल रहे हैं और कई तो वारिस भी निकले हैं। अच्छा!

महाराष्ट्र-पूना ग्रुप:- सभी महान आत्मायें बन गये ना! पहले सिर्फ अपने को महाराष्ट्र निवासी कहलाते थे, अभी स्वयं महान बन गये। बाप ने हरेक बच्चे को महान बना दिया। विश्व में आपसे महान और कोई है? सबसे नीचे भारतवासी गिरे और उसमें भी जो 84 जन्म लेने वाली ब्राह्मण आत्मायें हैं, वह नीचे गिरी। तो जितना नीचे गिरे उतना अभी ऊँचा उठ गये। इसलिए कहते हैं ब्राह्मण अर्थात् ऊँची चोटी। जो ऊँचाई का स्थान होता है उसको चोटी कहा जाता है। पहाड़ों की ऊँचाई को भी चोटी कहते हैं। तो यह खुशी है कि क्या-से-क्या बन गये! पांडवों को ज्यादा खुशी है या शक्तियों को? (शक्तियों को) क्योंकि शक्तियों को बहुत नीचे गिरा दिया था। द्वापर से लेकर पुरूष तन ने ही कोई-न-कोई पद प्राप्त किया। धर्म में भी अभी-अभी फीमेल्स भी महामण्डलेश्वरियाँ बनी हैं। नहीं तो महामण्डलेश्वर ही गाये जाते थे। जब से बाप ने माताओं को आगे किया है तब से उन्होंने 2-4 मण्डलेश्वरियाँ रख दी हैं। नहीं तो धर्म के कार्य में माताओं को कभी भी आसन नहीं देते थे। इसीलिए माताओं को ज्यादा खुशी है और पांडवों का भी गायन है। पांडवों ने जीत प्राप्त कर ली। नाम पांडवों का आता है लेकिन पूजन ज्यादा शक्तियों का होता है। पहले गुरूओं का कर चुके हैं, अभी शक्तियों का करते हैं। जागरण गणेश वा हनुमान का नहीं करते, शक्तियों का करते हैं। क्योंकि शक्तियाँ अभी खुद जग गई हैं। तो शक्तियाँ अपने शक्ति रूप में रहती हैं ना! या कभी-कभी कमज़ोर बन जाती हैं? माताओं को देह के सम्बन्ध का मोह कमज़ोर करता है। थोड़ा-थोड़ा बाल बच्चों में, पोत्रे-धोत्रों में मोह होता है। और पांडवों को कौन-सी बात कमज़ोर करती है? पांडवों में अहंकार के कारण क्रोध जल्दी आता है। लेकिन अब तो जीत हो गई ना! अब तो शान्त स्वरूप पांडव हो गये और मातायें निर्मोही हो गईं। दुनिया कहे कि माताओं में मोह होता है और आप चैलेन्ज करो कि हम मातायें निर्मोही हैं। ऐसे ही पांडव भी शान्त स्वरूप, कोई भी आये तो यह कमाल के गीत गाये कि यह सब इतने शान्त स्वरूप बन गये हैं जो क्रोध का अंश मात्र भी दिखाई नहीं देता। नैन-चैन तक भी नहीं आवे। कई ऐसे कहते हैं - क्रोध तो नहीं है, थोड़ा जोश आता है। तो वह क्या हुआ वह भी क्रोध का ही अंश हुआ ना। तो पांडव विजयी हैं अर्थात् बिल्कुल संकल्प में भी शान्त, बोल और कर्म में भी शान्तस्वरूप। मातायें सारे विश्व के आगे अपना निर्मोही रूप दिखाओ। लोग तो समझते हैं यह असम्भव है और आप कहते हो - सम्भव भी है और बहुत सहज भी है। लक्ष्य रखो तो लक्षण जरूर आयेंगे। जैसी स्मृति वैसी स्थिति हो जायेगी। धरनी में मात-पिता के प्यार का पानी पड़ा हुआ है, इसलिए फल सहज निकल रहा है। अच्छा है। बापदादा सेवा और स्व-उन्नति - दोनों को देखकर खुश होते हैं सिर्फ सेवा को देख कर के नहीं। जितनी सेवा में वृद्धि उतनी स्व-उन्नति में भी - दोनों -साथ-साथ हों। कोई इच्छा नहीं, जब आपे ही सब मिलता है तो इच्छा क्या रखें। बिना कहे, बिना मांगे इतना मिल गया है जो मांगने की इच्छा की आवश्यकता नहीं। तो ऐसे सन्तुष्ट हो ना! यही टाइटल अपना स्मृति में रखना कि सन्तुष्ट हैं और सर्व को सन्तुष्ट कर प्राप्ति स्वरूप बनाने वाले हैं। तोसन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना' - यह है विशेष वरदान। असन्तुष्टता का नाम निशान नहीं। अच्छा।

गुजरात-पूना ग्रुप:- सभी दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति की अनुभूति करने के अनुभवी हो ना! जैसे वाणी द्वारा शक्ति की अनुभूति करते हो। मुरली सुनते हो तो समझते हो ना शक्ति मिली। ऐसे दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति के अनुभूति के अभ्यासी बने हो या वाणी द्वारा अनुभव होता है, दृष्टि द्वारा कम। दृष्टि द्वारा शक्ति कैच कर सकते हो? क्योंकि कैच करने के अनुभवी होंगे तो दूसरों को भी अपने दिव्य दृष्टि द्वारा अनुभव करा सकते हैं। और आगे चल कर वाणी द्वारा सबको परिचय देने का समय भी नहीं होगा और सरकमस्टांस भी नहीं होंगे, तो क्या करेंगे? वरदानी दृष्टि द्वारा, महादानी दृष्टि द्वारा महादान देंगे, वरदान देंगे। तो पहले जब स्वयं में अनुभव होगा तब दूसरों को करा सकेंगे। दृष्टि द्वारा शान्ति की शक्ति, प्रेम की शक्ति, सुख वा आनन्द की शक्ति सब प्राप्त होती है। जड़ मूर्तियों के आगे भी जाते हैं तो जड़ मूर्ति बोलती तो नहीं है ना! फिर भी भक्त आत्माओं को कुछ-न-कुछ प्राप्ति होती है, तब तो जाते हैं। कैसे प्राप्ति होती है? उनकी दिव्यता के वायब्रेशन से और दिव्य नयनों की दृष्टि को देख कर वायब्रेशन लेते हैं। कोई भी देवता या देवी की मूर्ति में विशेष अटेन्शन नयनों के तरफ देखेंगे। हरेक का अटेन्शन सूरत की तरफ जाता है। क्योंकि मस्तक के द्वारा वायब्रेशन मिलते हैं, नयनों के द्वारा दिव्यता की अनुभूति होती है। वह आप चैतन्य मूर्तियों की जड़ मूर्तियाँ हैं। आप सबने चैतन्य में यह सेवा की है तब जड़ मूर्तियाँ बनी हैं। तो दृष्टि द्वारा शक्ति लेना और दृष्टि द्वारा शक्ति देना - यह प्रैक्टिस करो। शान्ति के शक्ति की अनुभूति बहुत श्रेष्ठ है। जैसे वर्तमान समय साइंस की शक्ति का प्रभाव है, हर एक अनुभव करते हैं। लेकिन साइंस की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही निकली है ना! जब साइंस की शक्ति अल्पकाल के लिए प्राप्ति करा रही है तो साइलेन्स की शक्ति कितनी प्राप्ति करायेगी। पद्मगुणा तो इतनी शक्ति जमा करो। बाप की दिव्य दृष्टि द्वारा स्वयं में शक्ति जमा करो। तब समय पर दे सकेंगे। अपने लिए ही जमा किया और कार्य में लगा दिया अर्थात् कमाया और खाया। जो कमाते हैं और खा के खत्म कर देते हैं उनका कभी जमा का खाता नहीं रहता और जिसके पास जमा का खाता नहीं होता है उसको समय पर धोखा मिलता है। धोखा मिलेगा तो दुःख की प्राप्ति होगी। अगर साइलेन्स की शक्ति जमा नहीं होगी, दृष्टि के महत्त्व का अनुभव नहीं होगा तो लास्ट समय श्रेष्ठ पद प्राप्त करने में धोखा खा लेंगे फिर दुःख होगा। पश्चाताप् होगा ना। इसलिए अभी से बाप की दृष्टि द्वारा प्राप्त हुई शक्तियों को अनुभव करते जमा करते रहो।

सभी को जमा करना आता है ना! जमा हो रहा है, उसकी निशानी क्या है? उसे नशा होगा! जैसे साहूकार लोगों की साहूकारी की निशानी का पता उनके नशे से पड़ता है। उनके चलने में, बैठने में, उठने में नशा दिखाई देता है। और जितना नशा होगा उतनी खुशी होगी। तो आप भी सदा खुश रहते हो ना! खुशी' जन्म-सिद्ध अधिकार है। तो यही वरदान सदा स्मृति में रखना कि हम सदा जमा के नशे में रहने वाले, सदा खुशी की झलक से औरों को भी रूहानी झलक दिखाने वाले हैं। कुछ भी हो जाए - खुशी के वरदान को खोना नहीं। समस्या आयेगी और जायेगी लेकिन खुशी नहीं जाये। क्योंकि खुशी हमारी चीज़ है, समस्या परिस्थिति है, दूसरे के तरफ से आई हुई है। अपनी चीज़ को सदा साथ रखते हैं। पराई चीज़ तो आयेगी भी जायेगी भी। परिस्थिति माया की है, अपनी नहीं है। तो खुशी को खोना नहीं। चाहे यह शरीर भी चला जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। खुशी से शरीर भी जायेगा तो बढ़िया मिलेगा, पुराना जायेगा तो नया मिलेगा। डरना नहीं कि पता नहीं क्या बनेंगे। अच्छे-से-अच्छा बनेंगे। अच्छा!

गुजरात ग्रुप:- ब्राह्मण जीवन में लास्ट जन्म होने के कारण शरीर से चाहे कितने भी कमज़ोर हैं या बीमार हैं, चल सकते हैं वा नहीं भी चल सकते हैं लेकिन मन की उड़ान के लिए पंख दे दिये हैं, शरीर से चल नहीं सकते लेकिन मन से उड़ तो सकते हैं ना! क्योंकि बापदादा जानते हैं कि 63 जन्म भटकते-भटकते कमज़ोर हो गये। शरीर तमोगुणी हो गये हैं। तो कमज़ोर हो गये, बीमार हो गये। लेकिन मन सबका दुरूस्त है। शरीर में तन्दुरूस्त नहीं भी हो लेकिन मन में तो बीमार कोई नहीं है ना। मन सबका पंखों से उड़ने वाला है। पावरफुल मन की निशानी है - सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच जाएँ। ऐसे पावरफुल हो या कभी कमज़ोर हो जाते हो। मन को जब उड़ना आ गया, प्रैक्टिस हो गई तो सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकता है। अभी-अभी साकार वतन में, अभी-अभी परमधाम में एक सेकण्ड की रफ्तार है। तो ऐसी तेज रफ्तार है? सदा अपने भाग्य के गीत गाते उड़ते रहो। सदैव अमृतवेले अपने भाग्य की कोई-न-कोई बात स्मृति में रखो, अनेक प्रकार के भाग्य मिले हैं, अनेक प्रकार की प्राप्तियाँ हुई हैं, कभी किसी प्राप्ति को सामने रखो, कभी किसी प्राप्ति को रखो तो बहुत रमणीक पुरूषार्थ रहेगा। कभी पुरूषार्थ में अपने को बोर नहीं समझेंगे, नवीनता अनुभव करेंगे। नहीं तो कई बच्चे कहते हैं। बस, आत्मा हूँ, शिवबाबा का बच्चा हूँ, यह तो सदैव कहते ही रहते हैं। लेकिन मुझ आत्मा को बाप ने क्या-क्या भाग्य दिया है, क्या-क्या टाइटल दिये हैं, क्या-क्या खज़ाना दिया है, ऐसे भिन्न-भिन्न स्मृतियाँ रखो। लिस्ट निकालो। स्मृतियों की कितनी बड़ी लिस्ट है! कभी खज़ानों की स्मृतियाँ रखो, कभी शक्तियों की स्मृतियाँ रखो, कभी गुणों की रखो, कभी ज्ञान की रखो, कभी टाइटल रखो। वैरायटी में सदैव मनोरंजन हो जाता है। कहाँ भी मनोरंजन का प्रोग्राम होगा तो वैराइटी डांस होगी, वैराइटी खाना होगा, वैराइटी लोगों से मिलना होगा। तब तो मनोरंजन होता है ना! तो यह भी सदा मनोरंजन में रहने के लिए वैराइटी प्रकार की बातें सोचो। अच्छा!