31-12-89 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नये वर्ष पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य
आज नव विश्व-निर्माता, विश्व के बाप अपने समीप साथी नव-निर्माणकर्त्ता बच्चों को देख रहे हैं। आप सब बच्चे बाप के नव-निर्माण करने के कार्य में समीप सम्बन्धी हो। वैसे विश्व नव-निर्माण के कार्य में प्रकृति भी सहयोगी बनती है, वर्तमान समय के नामीग्रामी वैज्ञानिक बच्चे भी सहयोगी बनते हैं लेकिन आप सभी समीप के साथी हो। सभी बच्चों के इस ब्राह्मण-जीवन का विशेष कर्त्तव्य अथवा सेवा क्या है? दिन-रात सेवा के उमंग-उत्साह में उड़ रहे हो। किस कार्य के लिए? विश्व को नया बनाने के लिए। दुनिया वाले तो नया वर्ष मनाते हैं लेकिन आपकी दिल में यह लग्न है-इस विश्व को ऐसा नया बना देवें जो सब बातें नई हो जाएँ। मनुष्य आत्मायें, चाहे प्रकृति - सतोप्रधान नई बन जाए। पुरानी दुनिया को तो देख ही रहे हो। चारों ओर हाहाकार है। तो ‘हाहाकार' की दुनिया से ‘जय-जयकार' की दुनिया बना रहे हो जिसमें हर घड़ी, हर कर्म, हर वस्तु नई बन जायेगी। वैसे भी हर एक व्यक्ति को सब कुछ नया ही अच्छा लगता है ना। पुरानी चीज़ें अगर अच्छी भी लगती हैं तो यादगार-मात्र, यूज करने के लिए अच्छी नहीं लगेंगी। सिर्फ म्यूजयम में यादगार बनाके रखेंगे लेकिन नई चीज़ हर एक को पसन्द आती हैं। इस समय आप ब्राह्मण आत्मायें पुरानी दुनिया में होते हुए भी नई दुनिया में हो। दूसरी आत्मायें पुरानी दुनिया में हैं लेकिन आप कहाँ हो ? आप नये युग ‘‘संगम'' पर रहते हो। पुराना जीवन समाप्त हो गया और अब नये ब्राह्मण-जीवन में हो। दुनिया वाले एक दिन नया वर्ष मनाते हैं लेकिन आपका तो है ही नया युग, नई जीवन। हर कर्म, हर सेकण्ड नया है। तुम हो संगम पर। एक तरफ पुरानी दुनिया और दूसरी तरफ नई दुनिया देख रहे हो। तो बुद्धि किस तरफ जाती है? नये तरफ वा कभी-कभी पुरानी दुनिया तरफ भी चली जाती है? पुरानी दुनिया अच्छी लगती है क्या? जो चीज़ अच्छी नहीं लगती तो वहाँ बुद्धि क्यों जाती है? पुरानी दुनिया से दु:ख, अशान्ति, परेशानी के अनुभव कर लिये हैं या अभी थोड़ा अनुभव करना है?
आज तो मिलने और मनाने के लिए आये हैं। आप सभी भी दूरदेश से आकर पहुंचे हो नया वर्ष मनाने लिए। तो नये वर्ष के लिए, अपने लिए, विश्व की सेवा के लिए और अपने समीप साथियों के लिए, प्रकृति के लिए और अपने दूर के परिवार के लिए क्या सोचा? नये वर्ष में क्या नया करेंगे? सिर्फ अपने लिए तो नहीं सोचना है ना! बेहद के बाप के बच्चे आप भी बेहद के हो। तों सबका सोचेंगे ना, क्योंकि इस समय बापदादा के साथ आप सभी की भी जिम्मेवारी है। बाप है करावनहार लेकिन करने के निमित्त आप तो हो ना!
बापदादा ने दो वर्ष पहले - नये वर्ष में क्या नवीनता लानी है वह डॉयरेक्शन दिये थे। बीच में एक वर्ष एक्स्ट्रा मिल गया। तो आज अमृतवेले बापदादा देख रहे थे कि हर एक बच्चे ने अपने में नवीनता कहाँ तक लाई है! मन्सा में, वाणी में, कर्म में क्या नवीनता लाई और सेवा-सम्पर्क में क्या नवीनता लाई? जो अगले वर्ष मन्सा का चार्ट रहा वह अभी मन्सा का चार्ट क्या है? ऐसे सब बातों का चार्ट चेक करो। नवीनता अर्थात् विशेषता। सब बातों में विशेषता लाई? मन्सा की विशेषता उड़ती कला के हिसाब से कैसी है? उड़ती कला वालों की विशेषता अर्थात् हर समय हर आत्मा के प्रति स्वत: ही शुभभावना और शुभकामना के शुद्ध वायब्रेशन अपने को और दूसरों को भी अनुभव हों अर्थात् मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति दुआयें स्वत: ही निकलती रहें। मन्सा सदा इस सेवा में बिजी रहे। जैसे वाचा की सेवा में सदा बिजी रहने के अनुभवी हो गये हो। अगर सेवा नहीं मिलती तो अपने को खाली अनुभव करते हो। ऐसे हर समय वाणी के साथ-साथ मन्सा सेवा स्वत: ही होनी चाहिए। वाचा सेवा के बहुत अच्छे प्लैन्स बनाते हो। यह कान्फ्रेन्स करेंगे - नेशनल करेंगे, अभी इण्टरनेशनल करेंगे, वर्गीकरण की करेंगे। तो वाचा की सेवा में अपने को बिजी रखने के लिए एक के पीछे दूसरा प्लैन पहले ही सोचते हो। इसमें बिजी रहना आ गया है।
मैजारिटी अच्छे उमंग से इस सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। बिजी रहने का तरीका आ गया है। लेकिन मन्सा सेवा में भी बिजी रहें - इसमें मैनारिटी हैं, मैजारिटी नहीं हैं। जब कोई ऐसी बात सामने आती है तो उस समय विशेष मन्सा सेवा की स्मृति आती है। लेकिन निरन्तर जैसे वाचा सेवा नेचुरल हो गई है, ऐसे मन्सा सेवा भी साथ-साथ और नेचुरल हो। यह विशेषता और ज्यादा चाहिए। वाणी के साथ-साथ मन्सा सेवा भी करते रहो तो आपको बोलना कम पड़ेगा। बोलने में जो एनर्जी लगाते हो वह मन्सा सेवा के सहयोग कारण वाणी की एनर्जी जमा होगी और मन्सा की शक्तिशाली सेवा सफलता ज्यादा अनुभव करायेगी। जितना अभी तन, मन, धन और समय लगाते हो, उससे बहुत थोड़े समय में सफलता ज्यादा मिलेगी और जो अपने प्रति भी कभी-कभी मेहनत करनी पड़ती है - अपनी नेचर को परिवर्तन करने की वा संगठन में चलने की वा सेवा में सफलता कभी कम देख दिलशिकस्त होने की, यह सब समाप्त हो जायेगी। छोटी-छोटी बात जो बड़ी बन जाती है वह सब ऐसे समाप्त हो जायेगी जो आप स्वयं सोचेंगे कि यह तो जादू हो गया! अभी जादूमंत्र पसन्द आता है ना! तो यह अभ्यास जादू का मन्त्र हो जायेगा। जहाँ मन्त्र होता है वहाँ अन्तर जल्दी आता है, इसलिए जादूमन्त्र कहते हैं।
तो नये वर्ष में जादू का मन्त्र यूज करो। यह नवीनता वा विशेषता करो और जादू का मन्त्र क्या है? मन्सा और वाचा-दोनों का मेल करो। दोनों का बैलेन्स, दोनों का मिलन - यही जादू का मन्त्र है। जब मन्सा में सदा शुभ भावना वा शुभ दुआयें देने का नेचुरल अभ्यास हो जायेगा तो मन्सा आपकी बिजी हो जायेगी। मन में जो हलचल होती है, उससे स्वत: ही किनारे हो जायेंगे। अपने पुरूषार्थ में जो कभी दिलशिकस्त होते हो वह नहीं होंगे। जादूमन्त्र हो जायेगा। संगठन में कभी-कभी घबरा जाते हो। सोचते हो - हमने तो वायदा किया था ‘‘बाप और मैं'', यह थोड़े ही वायदा किया था कि संगठन में रहेंगे। बाप तो बहुत अच्छा है, बाप के साथ रहना भी बहुत अच्छा है लेकिन संगठन में सबके संस्कारों में रहना, यह बहुत मुश्किल है। लेकिन यह भी बहुत सहज हो जायेगा क्योंकि मन से, दिल से हर आत्मा के प्रति दुआयें, शुभभावना, शुभकामना पावरफुल होने के कारण दूसरे के संस्कार दब जायेंगे। वह आपका सामना नहीं करेंगे और दबते-दबते समाप्त हो जायेंगे। फिर कहेंगे - हाँ, हम 40 के साथ भी रह सकते हैं। इस वर्ष चारों ओर के देश-विदेश के बच्चों को यह हर समय की नवीनता वा विशेषता अपने में लानी है। कभी-कभी सोचते हो ना कि अभी तो 9 लाख पूरे नहीं हुए हैं। अन्त तक 33 करोड़ देवतायें हैं - उसकी तो बात ही छोड़ो। 9 लाख तो अच्छी आत्मायें चाहिए। पहली राजधानी में अच्छी आत्मायें चाहिए। प्रजा भी अच्छी नम्बर वन चाहिए। क्योंकि वन-वन-वन शुरू होगा। तो उसमें जो भी प्रकृति होगी, व्यक्ति होंगे, वैभव होंगे - वे सब नम्बर वन होंगे। तो अभी नम्बर वन प्रजा 9 लाख बनाई है? कितने लाख तैयार किये हैं? आप जो रिपोर्ट बनाते हो उसमें तो कभी-कभी वाले भी एड करते हो ना। लेकिन अभी तो आधा भी नहीं हुआ है। नम्बर वन प्रजा भी कम से कम बाप के स्नेह का अनुभव अवश्य करेगी। सहयोग में रहते हैं, वह पहला कदम है। लेकिन दूसरा कदम है सहयोगी, स्नेही बनेंगे। समर्पण नहीं हो, वह दूसरी बात है लेकिन सदा बाप का स्नेह रहे। सिर्फ परिवार वा भाई-बहिनों का स्नेह नहीं। अभी यहाँ तक पहुँचे हैं - जो सेवा करते हैं उन्हों प्रति स्नेही बनते। लेकिन बाप के स्नेह की अनुभूति करें। उन्हों के भी दिल से बाबा निकले तब तो प्रजा बनेंगे। ब्रह्मा की प्रजा, पहले विश्व-महाराजन की बनेगी। जिसकी प्रजा बननी है, उसका स्नेह तो अभी से चाहिए ना। यह जो सोचते हो ना कि अभी तो बहुत सेवा पड़ी है, वह इस मन्सा-वाचा की सम्मिलित सेवा में विहंग-मार्ग की सेवा का प्रभाव देखेंगे। पहले की सेवा से अभी की सेवा को विहंग-मार्ग की सेवा कहते हो। आगे चल करके और विहंग-मार्ग की सेवा का अनुभव करेंगे। बापदादा बच्चों की सेवा से खुश हैं। जब एक-एक की सेवा को देखते हैं तो एक-एक के प्रति बहुत स्नेह पैदा होता है। देश चाहे विदेश में सेवा की धुन तो अच्छी लगी हुई है। कितने गांवों में चारों ओर सेवा फैल रही है! मेहनत तो करते हैं लेकिन स्नेह के कारण मेहनत नहीं लगती है। भागदौड़ करके अपने को बिजी रखने की युक्ति अच्छी करते हैं। बाप का स्नेह और बाप की मदद ऐसे चला रही है।
बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं - कितनी सेवा करते रहे हैं! जहाँ तक जैसे की है, बहुत अच्छा किया है। अभी और विहंग-मार्ग की सेवा के लिए जो विधि सुनाई, इससे क्वालिटी की आत्मायें समीप आयेंगी और वह क्वालिटी की आत्मायें अनेकों के निमित्त बनेंगी। एक से अनेक होते हुए विहंग-मार्ग की सेवा हो जायेगी। लेकिन क्वालिटी की सेवा में उन्हों को निमित्त बनाने अथवा उन्हों की बुद्धि को टच करने के लिए अपनी ‘मन्सा' बहुत शक्तिशाली चाहिए क्योंकि क्वालिटी वाली आत्मायें वाणी में तो पहले ही होशियार होती हैं लेकिन अनुभूति में कमज़ोर होती हैं, बिल्कुल ही खाली होती हैं।
तो जो जिस बात में कमज़ोर होते हैं, उसको उसी कमज़ोरी का ही तीर लग सकता है और जब अनुभूति होती है तब समझते हैं कि यह तो हमारे से ऊँचे हैं। नहीं तो कभी-कभी मिक्स कर देते - आप लोग भी बहुत अच्छे हैं और भी सब अच्छे हैं, आपको भी भगवान आशीर्वाद दे। यही कहके समाप्त कर देते हैं। लेकिन यह आशीर्वाद से चल रहे हैं, परमात्म-आशीर्वाद से इन्हों की जीवन है - अब यह अनुभूति करानी है। अभी तो थोड़ा-थोड़ा अभिमान होता है। अपने को बड़ा समझने कारण समझते हैं कि इन्हों को हिम्मत दिलाते हैं। लेकिन फिर समझेंगे कि यह हमको भी हिम्मत दिलाने वाले हैं। अभी ऐसा जादू का मन्त्र चलाओ। अभी तो वाणी की सेवा द्वारा धरनी बनाई है, हल चलाया है, धरनी को सीधा किया है। इतनी रिजल्ट निकाली है। बीज भी डाला है लेकिन अभी उस बीज को प्राप्ति का पानी चाहिए। तो फल निकलने का अनुभव करेंगे।
मन्सा की क्वालिटी को बढ़ाओ तो क्वालिटी समीप आयेगी। इसमें डबल सेवा है। स्व की भी और दूसरों की भी। स्व के लिए अलग मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। प्रालब्ध प्राप्त है, ऐसी स्थिति अनुभव होगी। भविष्य प्रालब्ध तो है - विश्व का राज्य लेकिन इस समय की प्रालब्ध है - ‘‘सदा स्वयं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न रहना और सम्पन्न बनाना''। इस समय की प्रालब्ध सबसे श्रेष्ठ है। भविष्य की तो है ही गारंटी। भगवान की गारण्टी कभी बदल नहीं सकती। तो ऐसा नया वर्ष मनायेंगे ना? सबसे पहले सेवा आरम्भ कौन करेगा? मधुबन! क्योंकि मधुबन वालों को कहते हैं - चुल पर भी हैं और दिल पर भी हैं, बेहद के भण्डारे से सदा ब्रह्मा भोजन खाने वाले हैं। वैसे तो इस समय आप सब मधुबन में बैठे हो, मधुबन निवासी हो और आप लोगों से अगर कोई पूछे - आपकी परमानेंट एड्रेस कौन-सी है? तो मधुबन ही कहेंगे ना! वा जहाँ रहते हो वह परमानेंट एड्रेस है? ब्रह्माकुमार/कुमारी अर्थात् परमानेंट एड्रेस एक ही है, बाकी वहाँ सेवा के लिए भेजा गया है। ऐसे नहीं-हम तो विदेशी हैं, नहीं। हम ब्राह्मण हैं, बाप ने वहाँ भेजा है सेवा अर्थ। यह बुद्धि की टचिंग से आपको वहाँ भेजा गया है। बाप के संकल्प से वहाँ पहुँचे हो। राज्य भारत में करेंगे वा लंदन में? कभी भी यह नहीं सोचना हम तो विदेश में पैदा हुए हैं तो वहाँ के हैं। ब्रह्मा से पैदा हुए न कि विदेश से। नहीं तो फिर विदेश-कुमार, विदेशी कुमारी कहलाओ। ब्रह्माकुमार/ ब्रह्माकुमारी हो ना! जैसे भारत में कोई यू.पी. के हैं, कोई देहली के हैं। वैसे आप भी सेवा अर्थ गये हो विदेश में। विदेशी हो नहीं। यह नशा है ना। सेवा स्थान वह है, जन्म स्थान मधुबन है। वह हिसाब-किताब खत्म हुआ तब तो ब्राह्मण बनें। हिसाब खत्म तो हिसाब का किताब ही जल गया। गवर्मेन्ट से छूटने के लिए भी किताब को ही जला देते हैं ना। तो पुराना खाता खत्म कर दिया ना! कोई होशियार होते हैं तो वह पूरा ही अपना खाता खत्म कर देते हैं और जो होशियार नहीं होते वह कहीं-न कहीं कर्ज में अटके हुए होते हैं, उधार में फंसे हुए होते हैं। होशियार कभी भी फंसे हुए नहीं होते। तो हिसाब का किताब खत्म माना कोई उधार नहीं, सब खाते साफ। सबसे अच्छी रीति-रस्म ब्राह्मणों की है। अच्छा।
चारों ओर के सर्व सेवा के समीप साथियों को, सर्व हिम्मतवान और बाप के मदद के पात्र आत्माओं को, सदा मन्सा और वाचा - डबल सेवा साथ-साथ करने वाले विहंग-मार्ग के सेवाधारियों को, सदा बाप के समान सर्व आत्माओं प्रति दुआयें देने वाले मास्टर सतगुरू बच्चों को, सदा स्वयं में हर समय नवीनता वा विशेषता लाने वाले सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
1.1.90 प्रात: अमृतवेले 1.45 पर बापदादा ने नये वर्ष की मुबारक दी
चारों ओर के सर्व नव-निर्माण करने वाले सेवाधारी बच्चों को, नव जीवन में हर समय नवीनता लाने वाले, हर समय अपने वायब्रेशन्स द्वारा सर्व को नई जीवन देने वाले - ऐसे नव जीवन और नवयुग और नई राजधानी में चलने वाले, सदा नवीनता अनुभव करने वाले ऐसे बच्चों को नये वर्ष की अविनाशी मुबारक हो। सदा ही सेवा और बाप, एक आँख में सेवा दूसरी आँख में बाप - इस विधि से सेवा में भी नवीनता लाते रहो। नया दिन है, नई रात है और नये ते नई सेवा सफलता को पाती रहेगी। सफलता की मुबारक। अच्छा! सभी बच्चों को गोल्डन मॉर्निंग।
डबल विदेशी भाई-बहिनों से अव्यक्त-बापदादा की मुलाकात:-
सदा अपने को विशेष आत्मायें समझते हो? विशेष आत्माओं का कार्य वा सेवा क्या है? विशेष आत्माओं की विशेषता वा सेवा हर कर्म में यही होगी जो उनका एक-एक कर्म विशेषता अनुभव करायेगा। उनकी वृत्ति विशेष होगी, साधारण नहीं होगी। दृष्टि में विशेषता होने के कारण अलौकिक अनुभव होंगे। सबको महसूस होगा कि इनकी दृष्टि में अलौकिकता है, रिवाजी नहीं है। उनका हर कर्म विशेष है, यह अनुभव होगा। साधारण रीति से जो काम-काज के लिए बोल होते हैं, उस बोल में भी साधारणता नहीं होगी, विशेषता होगी। चाहे साधारण कार्य कर रहे हैं - खाना बना रहे हैं, कपड़े धुलाई कर रहे हैं। कोई भी साधारण कार्य कर रहे हैं लेकिन उस कार्य में भी विशेषता अनुभव होगी। क्या विशेषता अनुभव होगी? सभी अनुभव करेंगे कि यह काम तो हाथ से कर रहे हैं लेकिन काम करते हुए भी यह शक्तिशाली स्टेज पर स्थित हैं, ‘कर्मयोगी' हैं। सिर्फ कर्मकर्त्ता नहीं हैं लेकिन योगयुक्त होकर कर्म कर रहे हैं - यह महसूसता आयेगी। चाहे साधारण रीति से चल रहे हैं, खड़े हैं लेकिन उसकी रूहानी पर्सनैलिटी दूर से अनुभव होगी। जैसे दुनियावी पर्सनैलिटी उनको आकर्षित करती है, अटेन्शन जाता है। ऐसा रूहानी पर्सनैलिटी, प्योरिटी की पर्सनैलिटी, ज्ञानी वा योगी तू आत्मा की पर्सनैलिटी स्वत: आकर्षित करेगी। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा - चाहे बच्चों के साथ सब्जी भी काटते रहे, खेल करते रहे लेकिन पर्सनैलिटी सदा आकर्षित करती रही। तो ऐसे विशेष आत्माओं की भी यही निशानी दिखाई देगी।
आप लोग तो कहेंगे कि हमने ब्रह्मा बाप को तो देखा नहीं। आपने देखा है। जिन्होंने देखा है, उनके लिए तो सहज है लेकिन आप सबने ब्रह्मा बाप को नहीं देखा है! ब्रह्मा बाप के कमरे में जब जाते हो तो पर्सनैलिटी अनुभव नहीं होती है? डबल फारेनर्स ने तो बहुत अच्छी तरह से देखा है। क्योंकि ब्रह्मा बाप विशेष जिन्होंने साकार रूप में नहीं देखा, उन्हें कभी अव्यक्त रूप में विशेष अनुभव कराते हैं। इसीलिए साकार आँखों से देखने से ज्यादा, अनुभव की आँख से देखना श्रेष्ठ है। तो अनुभव की आँख से देखा है ना! बापदादा अच्छे-अच्छे अनुभव सुनते रहते हैं। तो सदा अपने इस रूहानी पर्सनैलिटी में रहो तब बाप के समीप अनुभव करेंगे। अच्छा! बापदादा का विशेष प्यार किससे है? सभी को कहना चाहिए - मेरे से है! हर एक कहता है - मेरा बाबा! यह थोड़े ही कहता है - फलाने का बाबा। तो हरेक से बाप का विशेष प्यार है। प्यार में नम्बर है? बाप प्यार किसको करते हैं? हर-एक बच्चे की विशेषता से प्यार करते हैं और कोई ऐसा बच्चा नहीं है जिसमें विशेषता न हो, इसीलिए सभी से प्यार है। आप भी हर एक की विशेषता को देखो तो सबसे प्यार होगा। अगर दूसरी बात देखेंगे तो किससे ज्यादा प्यार होगा, किससे कम होगा, किसकी बातें अच्छी लगेंगी, किसकी अच्छी नहीं लगेंगी, किसके साथ रहना अच्छा लगेगा, किसके साथ नहीं। लेकिन बाप देखते हुए भी और बातें नहीं देखते, विशेषता ही देखते हैं, इसलिए सबसे प्यार है। तो इसमें फालो फादर करो। जैसे हंस होता है, हंस का काम है पत्थर-कंकड़ और रत्न को छांटना। रत्न चुगता है, पत्थर नहीं। तो आप भी होलीहंस हो, आपका काम है हरेक की विशेषता को देखना और उनकी विशेषता को सेवा में लगाना। उन्हें विशेषता के उमंग में लाकर उन द्वारा उनकी विशेषता सेवा में लगाओ तो उनकी दुआयें आपको मिलेगी। तो विशेषता सिर्फ देखना नहीं लेकिन देख करके अपने में धारण करना और धारण करने के साथ-साथ उनकी विशेषता से सेवा लो और उनको भी महत्व बताकर सेवा में लगाओ तो दुआयें मिलेंगी और आपने उनकी विशेषता द्वारा उनको सेवा में लगाया तो वह जो सेवा करेगा उसका शेयर आपको मिलेगा। तो शेयर-होल्डर हो जायेंगे।
आजकल की दुनिया में भी यह कमाई बहुत होती है। तो आपका एक-एक शेयर पद्मों से भी बड़ा है। तो जैसे बाप ने आप सबकी विशेषता से कार्य लिया है तब तो सेन्टर सम्भाल रहे हो, सेवा कर रहे हो। बाप ने स्मृति दिलाई - आप ऐसे हो...! बापदादा सदैव बच्चों को विशेष आत्माओं की नजर से देखते हैं, साधारण नजर से नहीं देखते। यह प्यारा है, यह घोड़े सवार है, यह महारथी है - जानते भी हैं लेकिन देखते उसी नजर से हैं। ऐसे ही आप भी विशेषता को देखो। अपनी भी विशेषता को जानो और उसे सेवा में लगाओ। अभिमान में नहीं आना क्योंकि यह विशेषतायें ब्राह्मण-जीवन में बाप की देन है, बाप का दिया हुआ वरदान है। इसमें अगर अभिमान किया तो विशेषता गायब हो जायेगी। इसलिए सेवा में जरूर लगाओ, अभिमान में नहीं आओ। अच्छा।