31-12-90   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


तपस्या ही बड़े ते बड़ा समारोह है, तपस्या अर्थात् बाप से मौज मनाना

सदा मौज में रहने वाली भाग्यवान आत्माओं प्रति बापदादा बोले: -

आज बापदादा चारों ओर के सर्व नये नालेज द्वारा हर समय नये जीवन, नई वृत्ति, नई दृष्टि, नई सृष्टि अनुभव करने वाले बच्चों को मोहब्बत की मुबारक दे रहे हैं। इस समय चारों ओर के बच्चे अपने दिल रूपी दूरदर्शन द्वारा वर्तमान समय के दिव्य दृष्य को देख रहे हैं। सभी का एक ही संकल्प दूर होते समीप करने का है। बापदादा भी सभी बच्चों को देख रहे हैं। सभी के नये उमंग-उत्साह के दिल के मुबारकों के साज सुन रहे हैं। सभी के वैरायटी स्नेह भरे साज बहुत सुन्दर हैं। इसलिए सभी को साथ-साथ रिटर्न रेसपान्ड कर रहे हैं। नये वर्ष की नये उमंग उत्साह की हर समय अपने में दिव्यता लाने की सदा की मुबारक हो। सिर्फ आज नये वर्ष के कारण मुबारक नहीं, लेकिन अविनाशी बाप की अविनाशी प्रीत निभाने वाले बच्चों प्रति संगमयुग की हर घड़ी जीवन में नवीनता लाने वाली है। इसलिए हर घड़ी अविनाशी बाप की अविनाशी मुबारकें हैं। बापदादा की विशेष खुशियों भरी बधाइयों से ही सर्व ब्राह्मण वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। ब्राह्मण जीवन की पालना का आधार बधाइयाँ हैं। बधाइयों की खुशी से ही आगे बढ़ते जा रहे हो। बाप के स्वरूप में हर समय बधाइयाँ हैं। शिक्षक के स्वरूप से हर समय शाबास शाबास का बोल पास विद् आनर बना रहा है। सतगुरु के रूप में हर श्रेष्ठ कर्म की दुआएं सहज और मौज वाली जीवन अनुभव करा रही हैं। इसलिए पद्मापद्म भाग्यवान हो। भाग्यविधाता भगवान के बच्चे बन गये। अर्थात् सम्पूर्ण भाग्य के अधिकारी बन गये। लोग तो विशेष दिन पर विशेष मुबारक देते हैं। और आपको सिर्फ नये वर्ष की मुबारक मिलती है क्या? पहली तारीख से दूसरी तारीख हो जायेगी तो मुबारक भी खत्म हो जायेगी क्या? आपके लिए हर समय, हर घड़ी विशेष है। संगमयुग है ही विशेष युग, मुबारकों का युग। अमृतवेले हर रोज बाप से मुबारकें लेते हो ना! ये तो निमित्त मात्र दिन को मनाते हो। लेकिन सदा याद रखो कि हर घड़ी मौजों की घड़ी है। मौज ही मौज है ना? कोई पूछे आपके जीवन में क्या है? तो क्या उत्तर देंगे? मौज ही मौज है ना! सारे कल्प की मौजें इस जीवन में अनुभव करते हो। क्योंकि बाप से मिलन की मौजों का अनुभव सारे कल्प के राज्य अधिकारी और पूज्य अधिकारी दोनों का अनुभव कराते हैं। पूज्यपन की मौज और राज्य करने की मौज - दोनों का नॉलेज अभी है। इसलिए मौज अब है।

इस वर्ष क्या करेंगे? नवीनता करेंगे ना! इस वर्ष को समारोह वर्ष मनाना। सोच रहे हो तपस्या करनी है या समारोह मनाना है? तपस्या ही बड़े ते बड़ा समारोह है। क्योंकि हठयोग तो करना नहीं है। तपस्या अर्थात् बाप से मौज मनाना। मिलन की मौज, सर्व प्राप्तियों की मौज, समीपता के अनुभव की मौज, समान स्थिति की मौज। तो ये समारोह हुआ ना। सेवा के बड़े-बड़े समारोह नहीं करेंगे, लेकिन तपस्या का वातावरण वाणी के समारोह से भी ज्यादा आत्माओं को बाप की तरफ आकर्षित करेगा। तपस्या रूहानी चुम्बक है जो आत्माओं को शान्ति और शक्ति के अनुभव का दूर से अनुभव होगा। तो अपने में क्या नवीनता लायेंगे? नवीनता ही सबको प्रिय लगती है ना। तो सदैव अपने को चेक करो कि आज के दिन मन्सा अर्थात् स्वयं के संकल्प शक्ति में विशेष क्या विशेषता लाई? और अन्य आत्माओं के प्रति मन्सा सेवा अर्थात् शुभ भावना, शुभ कामना के विधि द्वारा कितना वृद्धि को प्राप्त किया? अर्थात् श्रेष्ठता की नवीनता क्या लाई? साथ-साथ बोल में मधुरता, सन्तुष्टता, सरलता की नवीनता कितनी लाई? ब्राह्मण आत्माओं के बोल साधारण बोल नहीं होते। बोल में इन तीनों बातों में से अपने को और अन्य आत्माओं को अनुभूति हो। इसको कहा जायेगा नवीनता। साथ में हर कर्म में नवीनता अर्थात् हर कर्म स्व के प्रति व अन्य आत्मा के प्रति प्राप्ति का अनुभव करायेगा। कर्म का प्रत्यक्षफल व भविष्य जमा का फल अनुभव हो। वर्तमान समय प्रत्यक्षफल सदा खुशी और शक्ति की प्रसन्नता की अनुभूति हो और भविष्य जमा का अनुभव हो। तो सदैव अपने को भरपूर सम्पन्न अनुभव करेंगे। कर्म रूपी बीज प्राप्ति के वृक्ष से भरपूर हो। खाली नहीं हो। भरपूर आत्मा का नेचुरल नशा अलौकिक होता है। तो ऐसे नवीनता के कर्म किये? साथ में सम्बन्ध-संपर्क इसमें नवीनता क्या लानी है? इस वर्ष दाता के बच्चे मास्टर दाता - इस स्मृति स्वरूप में अनुभव करो। चाहे ब्राह्मण आत्मा हो, चाहे साधारण आत्मा हो लेकिन जिसके भी सम्पर्क-सम्बन्ध में आओ,उन आत्माओं को मास्टर दाता द्वारा प्राप्ति का अनुभव हो। चाहे हिम्मत मिले, चाहे उल्लास-उत्साह मिले, चाहे शान्ति वा शक्ति मिले, सहज विधि मिले, खुशी मिले - अनुभव की वृद्धि की अनुभूति हो। हरेक को कुछ न कुछ देना है, लेना नहीं है, देना है। देने में लेना समाया हुआ है। लेकिन मुझ आत्मा को मास्टर दाता बनना है। इसी प्रमाण अपने स्वभाव संस्कार में बाप समान की नवीनता लानी है। मेरा स्वभाव नहीं, जो बाप का स्वभाव सो मेरा स्वभाव। जो ब्रह्मा के संस्कार वो ब्राह्मणों के संस्कार। ऐसे हर रोज अपने में नवीनता लाते हुए नये संसार की स्थापना स्वत: ही हो जायेगी। तो समझा नये वर्ष में क्या करेंगे? जो बीत चुका तो बीते वर्ष का समाप्ति समारोह मनाना और वर्तमान का समानता और समीपता का समारोह मनाना और भविष्य का सदा सफलता का समारोह मनाना। समारोह वर्ष मनाते उड़ते रहना।

डबल विदेशी मौजों में रहना पसन्द करते हैं ना! तो मौजों के लिए दो बोल याद रखना एक डॉट (DOT) और दूसरा नॉट (NOT)। नॉट किसको करना है - यह तो जानते हो ना। माया को नॉट एलाऊ। नॉट करना आता है? कि थोड़ा-थोड़ा एलाऊ करेंगे। डॉट लगा दो तो नॉट हो ही जायेगा। डबल नशा है ना।

भारतवासी क्या करेंगे? भारत महान देश है - यह आजकल का स्लोगन है। और भारत की ही महान आत्माएं महात्माएं गाई हुई हैं। तो भारत महान अर्थात् भारतवासी महान आत्माएं। तो हर समय अपनी महानता से भारत महान आत्माओं का स्थान, देव आत्माओं का स्थान साकार रूप में बनायेंगे। चित्र समाप्त हो चैतन्य देव आत्माओं का स्थान सभी को दिखायेंगे। तो डबल विदेशी और भारत निवासी नहीं, लेकिन दोनों ही अभी मधुबन निवासी हो। अच्छा।

चारों ओर के सर्व मास्टर दाता आत्माओं को, सदा बाप द्वारा मुबारक प्राप्त करने वाले विशेष आत्माओं का, सदा मौज में रहनेवाले भाग्यवान आत्माओं को, सदा स्वयं में नवीनता लाने वाली महान आत्माओं को, फरिश्ता सो देव आत्मा बनने वाले सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार। हर घड़ी की मुबारक और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) अचल-अडोल आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? एक तरफ है हलचल और दूसरी तरफ आप ब्राह्मण आत्माएं सदा अचल हैं। जितनी वहाँ हलचल है उतनी आपके अन्दर अचल-अडोल स्थिति का अनुभव बढ़ता जा रहा है। कुछ भी हो जाये, सबसे सहज युक्ति है - नाथिंग न्यु। कोई नई बात नहीं है। कभी आश्चर्य लगता है कि यह क्या हो रहा है, क्या होगा? आश्चर्य तब हो जब नई बात हो। कोई भी बात सोची नहीं हो, सुनी नहीं हो, समझी नहीं हो और अचानक होती है तो आश्चर्य लगता है। तो आश्चर्य नहीं लेकिन फुलस्टॉप हो। दुनिया मूँझने वाली और आप मौज में रहने वाले हो। दुनिया वाले छोटी-छोटी बात में मूँझेंगे - क्या करें, कैसे करें...। और आप सदा मौज में हो, मूँझना खत्म हो गया। ब्राह्मण अर्थात् मौज, क्षत्रिय अर्थात् मूँझना। कभी मौज, कभी मूँझ। आप सभी अपना नाम ही कहते हो - ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ। क्षत्रिय कुमार और क्षत्रिय कुमारी तो नहीं हो ना? सदा अपने भाग्य की खुशी में रहने वाले हो। दिल में सदा, स्वत: एक गीत बजता रहता - वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य। यह गीत बजता रहता है, इसको बजाने की आवश्यकता नहीं है। यह अनादि बजता ही रहता है। हाय-हाय खत्म हो गई, अभी है वाह-वाह। हाय-हाय करने वाले तो बहुत मैजारिटी हैं और वाह वाह करने वाले बहुत थोड़े हो। तो नये वर्ष में क्या याद रखेंगे? वाह-वाह। जो सामने देखा, जो सुना, जो बोला - सब वाह-वाह, हाय-हाय नहीं। हाय ये क्या हो गया! नहीं, वाह, ये बहुत अच्छा हुआ। कोई बुरा भी करे लेकिन आप अपनी शक्ति से बुरे को अच्छे में बदल दो। यही तो परिवर्तन है ना। अपने ब्राह्मण जीवन में बुरा होता ही नहीं। चाहे कोई गाली भी देता है तो बलिहारी गाली देने वाले की, जो सहन शक्ति का पाठ पढ़ाया। बलिहारी तो हुई ना, जो मास्टर बन गया आपका! मालूम तो पड़ा आपको कि सहन शक्ति कितनी है, तो बुरा हुआ या अच्छा हुआ? ब्राह्मणों की दृष्टि में बुरा होता ही नहीं। ब्राह्मणों के कानों में बुरा सुनाई देता ही नहीं। इसलिए तो ब्राह्मण जीवन मौजों की जीवन है। अभी-अभी बुरा, अभी-अभी अच्छा तो मौज नहीं हो सकेगी। सदा मौज ही मौज है। सारे कल्प में ब्रह्माकुमार और कुमारी श्रेष्ठ हैं। देव आत्माएं भी ब्राह्मणों के आगे कुछ नहीं हैं। सदा इस नशे में रहो, सदा खुश रहो और दूसरों को भी सदा खुश रखो। रहो भी और रखो भी। मैं तो खुश रहता हूँ, ये नहीं। मैं सबको खुश रखता हूँ - यह भी हो। मैं तो खुश रहता हूँ - यह भी स्वार्थ है। ब्राह्मणों की सेवा क्या है? ज्ञान देते ही हो

खुशी के लिए।

(2) विश्व में जितनी भी श्रेष्ठ आत्माएं गाई जाती हैं उनसे आप कितने श्रेष्ठ हो। बाप आपका बन गया। तो आप कितने श्रेष्ठ बन गये! सर्वश्रेष्ठ हो गये। सदैव यह स्मृति में रखो - ऊंचे ते ऊंचे बाप ने सर्वश्रेष्ठ आत्मा बना दिया। दृष्टि कितनी ऊंची हो गई, वृत्ति कितनी ऊंची हो गई! सब बदल गया। अब किसी को देखेंगे तो आत्मिक दृष्टि से देखेंगे और सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति हो गई। ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर आत्मा के प्रति दृष्टि और वृत्ति श्रेष्ठ बन गई।

(3) अपने आपको सफलता के सितारे हैं - ऐसे अनुभव करते हो? जहाँ सर्वशक्तियाँ हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है। कोई भी कार्य करते हो, चाहे शरीर निर्वाह अर्थ, चाहे ईश्वरीय सेवा अर्थ। कार्य में कार्य करने के पहले यह निश्चय रखो। निश्चय रखना अच्छी बात है लेकिन प्रैक्टिकल अनुभवी आत्मा बन निश्चय और नशे में रहो। सर्व शक्तियाँ इस ब्राह्मण जीवन में सफलता के सहज साधन हैं। सर्व शक्तियों के मालिक हो इसलिए किसी भी शक्ति को जिस समय आर्डर करो, उस समय हाजिर हो। जैसे कोई सेवाधारी होते हैं, सेवाधारी का जिस समय आर्डर करते हैं तो सेवा के लिए तैयार होता है ऐसे सर्व शक्तियाँ आपके आर्डर में हो। जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट होंगे उतना सर्वशक्तियाँ सदा आर्डर में रहेंगी। थोड़ा भी स्मृति की सीट से नीचे आते हैं तो शक्तियाँ आर्डर नहीं मानेंगी। सर्वेन्ट भी होते है तो कोई ओबीडियेन्ट होते हैं, कोई थोड़ा नीचे-ऊपर करने वाले होते हैं। तो आपके आगे सर्वशक्तियाँ कैसे हैं? ओबिडियेन्ट हैं या थोड़े देर के बाद पहुँचती है। जैसे इन स्थूल कर्मेन्द्रियों को, जिस समय, जैसा आर्डर करते हो, उस समय वो आर्डर से चलती है? ऐसे ही ये सूक्ष्म शक्तियाँ भी आपके आर्डर पर चलने वाली हो। चेक करो कि सारे दिन में सर्वशक्तियाँ आर्डर में रहीं? क्योंकि जब ये सर्वशक्तियाँ अभी से आपके आर्डर पर होंगी तब ही अन्त में भी आप सफलता को प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिए बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। तो इस नये वर्ष में आर्डर पर चलाने का विशेष अभ्यास करना। क्योंकि विश्व का राज्य प्राप्त करना है ना। विश्व राज्य अधिकारी बनने के पहले स्वराज्य अधिकारी बनो। निश्चय और नशा हर एक बच्चे को उड़ती कला का अनुभव करा रहा है। डबल फॉरेनर्स लकी हैं जो उड़ती कला के टाइम पर आ गये। चढ़ने की मेहनत नहीं करनी पड़ी। विजय का तिलक सदा मस्तक पर चमक रहा है। यही विजय का तिलक औरों को खुशी दिलायेगा। क्योंकि विजयी आत्मा का चेहरा सदा ही हर्षित रहता है। तो आपके हर्षित चेहरे को देखकर सब खुशी के पीछे आकर्षित होते हैं। क्योंकि दुनिया की आत्माएं खुशी को ढूँढ रही हैं और आपके चेहरों पर जब खुशी की झलक देखते तो खुद भी खुश होते। वो समझते हैं इन्हों को कुछ प्राप्ति हुई है। आगे चलकर आपके चेहरे खुशी की आकर्षण से और नजदीक लायेंगे। किसी को सुनने का समय नहीं भी होगा तो सेकेण्ड में आपका चेहरा उन आत्माओं की सेवा करेगा। आप सभी भी प्यार और खुशी को देखकर ब्राह्मण बने ना। तो तपस्या वर्ष में ऐसी सेवा करना। (4) एक बाप, दूसरा न कोई - ऐसी स्थिति में सदा स्थित रहने वाली सहयोगी आत्मा हो? एक को याद करना सहज है। अनेकों को याद करना मुश्किल होता है। अनेक विस्तार को छोड़ सार स्वरूप एक बाप - इस अनुभव में कितनी खुशी होती है। खुशी जन्म सिद्ध अधिकार है, बाप का खज़ाना है तो बाप का खज़ाना बच्चों के लिए जन्म सिद्ध अधिकार होता है। अपना खज़ाना है तो अपने पर नाज होता है - अपना है। और मिला भी किससे है? अविनाशी बाप से। तो अविनाशी बाप जो देगा, अविनाशी देगा। अविनाशी खज़ाने का नशा भी अविनाशी है। यह नशा कोई छुड़ा नहीं सकता क्योंकि यह नुकसान वाला नशा नहीं है। यह प्राप्ति कराने वाला नशा है। वह प्राप्तियाँ गंवाने वाला नशा है। तो सदा क्या याद रहता? एक बाप, दूसरा न कोई। दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी। और एक बाप है तो एकरस स्थिति होगी। एक के रस में लवलीन रहना बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि आत्मा का ओरीजनल स्वरूप ही है - एकरस।

विदाई के समय नये वर्ष 1991 के शुभारम्भ की बधाई बापदादा ने सभी बच्चों को दी...

चारों ओर के लवली और लकी सभी बच्चों को विशेष नये उमंग, नये उत्साह की हर घड़ी की मुबारक। स्वयं भी डायमंड हो और जीवन भी डायमंड है और डायमंड मोर्निंग, इवनिंग, डायमंड नाइट सदा रहे। इसी विधि से बहुत जल्दी अपना राज्य स्थापन करेंगे और राज्य करेंगे। अपना राज्य प्यारा लगता है ना। तो अभी जल्दी-जल्दी लाओ और राज्य करो। अपना राज्य सामने दिखाई दे रहा है ना। तो अभी फरिश्ता बनो और देवता बनो। चारों ओर के बच्चों को विशेष पद्मगुणा यादप्यार स्वीकार हो। विदेश वाले, चाहे देश वाले तपस्या के उमंग-उत्साह में अच्छे हैं और जहाँ तपस्या है वहाँ सेवा है ही है। सदा सफलता की मुबारक हो। हर एक ऐसी नवीनता दिखाना जो सारा विश्व आपकी ओर देखे। नवीनता के लाइट हाउस बनना। अच्छा। हर एक अपने लिए यादप्यार और मुबारक स्वीकार करें ।