26-11-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


परमात्म पालना और परिवर्तन शक्ति का प्रत्यक्ष स्वरूप - सहजयोगी जीवन

ज बापदादा हर एक बच्चों के मस्तक पर विशेष श्रेष्ठ भाग्य की तीन आ लकीरें देख रहे हैं। सर्व बच्चों का भाग्य तो सदा सर्वश्रेष्ठ है ही लेकिन आज विशेष तीन लकीरें चमक रही हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की लकीर और दूसरी है बेहद के ऊंचे ते ऊंचे पढ़ाई के भाग्य की लकीर। तीसरी है श्रेष्ठ मत प्राप्त होने के भाग्य की लकीर। चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक, हर एक को इस जीवन में ये तीन प्राप्तियाँ होती ही हैं। पालना भी मिलती, पढ़ाई भी मिलती और मत भी मिलती है। इन तीनों द्वारा ही हर आत्मा अपना वर्तमान और भविष्य बनाने के निमित्त बनती हैं। आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं को किसकी पालना मिल रही है? परमात्म­पालना के अन्दर हर सेकण्ड पल रहे हो। जैसे परम आत्मा ऊंचे ते ऊंचे हैं तो परमात्म­पालना भी कितनी श्रेष्ठ है! और इस परमात्म­पालना के पात्र कौन बने हैं और कितने बने हैं? सारे विश्व की आत्मायें ‘बाप’ कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं। और आप कितनी थोड़ी­सी आत्मायें इस भाग्य के पात्र बनती हो! सारे कल्प में यही थोड़ा­सा समय परमात्म­पालना मिलती है। दैवी पालना, मानव पालना-ये तो अनेक जन्म मिलती है लेकिन ये श्रेष्ठ पालना अब नहीं तो कब नहीं। ऐसे श्रेष्ठ भाग्य की श्रेष्ठ लकीर सदा अपने मस्तक में चमकते हुए अनुभव करते हो? कोई भी प्राप्ति सदा करना चाहते हो या कभी­कभी करना चाहते हो? तो प्राप्ति का पुरूषार्थ भी सदा चाहिये या कभी­कभी चाहिये? और सदा तीव्र चाहिये या कभी साधारण, कभी तीव्र? प्रैक्टिकल क्या है? चाहना और प्रैक्टिकल में अन्तर हो जाता है ना! सोचते तो बहुत हो लेकिन स्मृति में कम रखते हो। सोचना स्वरूप बनना है या स्मृति स्वरूप बनना है? स्मृति स्वरूप बनने वाले हो ना! तो एक बात भी स्मृति में रखो कि अमृतवेले आपको उठाने वाला कौन? बाप का प्यार उठाता है। दिन का आरम्भ कितना श्रेष्ठ है! और बाप स्वयं मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रूहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! तो हर दिन का आदि कितना श्रेष्ठ है! बाप की मोहब्बत से उठते हो कि कभी­कभी मजबूरी से भी उठते हो? यथार्थ तो मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। अमृतवेले से बाप कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ.....। तो जिसका आदि इतना श्रेष्ठ है तो मध्य और अन्त क्या होगा? श्रेष्ठ होगा ना!

बापदादा देख रहे थे कि कितना पालना का भाग्य वर्तमान समय बच्चों को प्राप्त है! जितना प्राप्त है उतना फायदा उठाते हो? स्वप्न में भी संकल्प मात्र नहीं था कि इतने भाग्य के पात्र बनेंगे! सोचने से बाहर था लेकिन मिला कितना सहज! बाप के प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ही है ‘सहज योगी जीवन’। जिससे प्यार होता है उसके लिये मुश्किल परिस्थिति या मुश्किल कोई भी बात देखी­सुनी नहीं जाती। तो बाप ने भी मुश्किल को सहज बनाया है ना! सदा सहज है। तो सदा ही पुरूषार्थ की गति तीव्र हो। आज बहुत अच्छा पुरूषार्थ है और कल थोड़ी परसेन्टेज कम हो गई तो क्या सदा सहज कहेंगे? सदा मुश्किल कौन बनाते हैं? स्वयं ही बनाते हो ना? कारण क्या? सोचने की तो आदत है लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कार कभी इमर्ज रखते हो, कभी मर्ज हो जाते हैं। क्योंकि स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। सोचना, यह समर्थी स्वरूप नहीं है। स्मृति समर्थी है। विस्मृति में क्यों आ जाते हो? आदत से मजबूर हो जाते हो। अगर मजबूत नहीं तो मजबूर हो जायेंगे। जहाँ मजबूत हैं वहाँ मजबूरी नहीं है। जब ओरीजिनल आदत विस्मृति की नहीं है। आदि में स्मृति स्वरूप प्रालब्ध प्राप्त करने वाली देवात्मायें हो, योग लगाने का पुरूषार्थ नहीं करते लेकिन स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त करते हो। तो आदि में भी स्मृति स्वरूप का प्रत्यक्ष जीवन है और अनादि आत्मा, जब आप परमधाम से आई तो आप विशेष आत्माओं के संस्कार स्वत: ही स्मृति स्वरूप हैं। और अन्त में संगम पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो ना! तो अनादि, आदि और अन्त - तीनों ही काल स्मृति स्वरूप हैं। विस्मृति तो बीच में आई। तो आदि, अनादि स्वरूप सहज होना चाहिये या मध्य का स्वरूप? सोचते हो कि हाँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन स्मृति स्वरूप हो चलना, बोलना, देखना उसमें अन्तर पड़ जाता है। तो यह स्मृति में रखो कि हम परमात्म पालना की अधिकारी आत्मायें हैं।

बापदादा चार्ट चेक करते हैं तो लकीर कभी ऊंची, कभी नीची होती है, कभी कोई दाग होता है, कभी जीवन के कागज में कोई दाग नहीं भी होता है

और कोई समय दाग ही दाग, एक पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा दाग ही नजर आते हैं। क्यों? एक तो गलती हो जाती है लेकिन गलती होने के बाद भी उसी गलती को सोचते रहते हो। क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं, वैसे..... कई रूप से बात को छोड़ते नहीं हो। बात आपको छोड़ कर चली जाती है लेकिन आप बात को नहीं छोड़ते हो। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो, यथार्थ स्मृति स्वरूप नहीं बनते हो, तो दाग के ऊपर दाग लगते जाते हैं। पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार होने के कारण पेपर का टाइम बढ़ा देते हो। सेकण्ड पूरा हुआ और निर्विकल्प स्थिति बन जाये - यह संस्कार इमर्ज करो।

निर्विकल्प बनना आता है ना? अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाकर सदा हर्षित रहो। अपने परमात्म पालना को सदा बार­बार स्मृति में लाओ। सुनना भी आता है, सोचना भी आता है लेकिन फर्क क्या पड़ जाता है? बापदादा बच्चों का खेल देखते रहते हैं। सारे दिन में क्या­क्या खेल करते हो - ये रात्रि को चेक करते हो ना? माया के खिलौने बड़े आकर्षण वाले हैं। तो उन खिलौनों से खेलने लग जाते हो। पहले तो बहुत प्यार से माया खेल कराती है और खेल कराते­कराते जब हार खिलाती है तब होश में आते हैं। मैजारिटी में एक विशेष शक्ति की कमी रह जाती है। कभी बहुत अच्छे चलते हो, कभी चलते हो, कभी उड़ते हो, आगे बढ़ते हो लेकिन फिर नीचे क्यों आ जाते हो? इसका विशेष कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमज़ोरी है। समझते भी हो कि ये यथार्थ नहीं है लेकिन परिवर्तित होने की कमी हो जाती है। ब्राह्मण जीवन में परिवर्तन में आ गये, अब कोई कहेंगे कि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ? सभी अपने को बी.के. लिखते हो ना! हम ब्राह्मण हैं, यह समझते हो ना? ब्राह्मण जीवन में जो परीक्षायें आती हैं उसमें परिवर्तन करने की शक्ति आवश्यक होती है। जब व्यर्थ संकल्प चलते हैं तो समझते भी हो कि ये व्यर्थ हैं। लेकिन व्यर्थ संकल्पों का बहाव इतना तेज होता है जो अपने तरफ खींचता जाता है। जैसे नदी का वा सागर का बहुत फोर्स होता है तो कितना भी अपने को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर भी बहते जाते हैं। समझते भी हो, सोचते भी हो कि ये ठीक नहीं है, इससे नुकसान है फिर भी बहाव में बह जाते हो-इसका कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमी। पहला विशेष परिवर्तन है स्वरूप का परिवर्तन। मैं शरीर नहीं, लेकिन आत्मा हूँ, यह स्वरूप का परिवर्तन है। यह आदि परिवर्तन है। इसमें भी चेक करो तो जब देहभान का फोर्स होता है तो आत्म अभिमान के स्वरूप में टिक सकते हो या बह जाते हो? अगर सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति काम में आ जाये तो समय, संकल्प कितने बच जाते हैं। वेस्ट से बेस्ट में जमा हो जाते हैं।

पहली परिवर्तन शक्ति है स्वरूप का परिवर्तन और स्वभाव का परिवर्तन। पुराना स्वभाव पुरूषार्थी जीवन में धोखा देता है। समझते भी हो कि यह मेरा स्वभाव यथार्थ नहीं है और यह स्वभाव समय प्रति समय धोखा भी देता है-यह भी समझते हो, लेकिन फिर भी स्वभाव के वश हो जाते हो। फिर अपने बचाव के लिये कहते हो कि मेरा भाव नहीं था, मेरा स्वभाव ऐसा है, मैं चाहता या चाहती नहीं हूँ लेकिन मेरा स्वभाव है। ब्राह्मण बन गये तो जन्म बदल गया, सम्बन्ध बदल गया, माँ­बाप बदल गये, परिवार बदल गया लेकिन स्वभाव नहीं बदला। फिर रॉयल शब्द कहते कि मेरी नेचर है। तो पहली कमज़ोरी स्वरूप का परिवर्तन, दूसरा स्वभाव का परिवर्तन, तीसरा संकल्प का परिवर्तन। सेकण्ड में व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करो। कई समझते हैं बस आधा घण्टे का तूफान था, आधा घण्टा, 15 मिनट चला, लेकिन आधा घण्टा वा 15 मिनट की कमज़ोरी संस्कार बना देती है ना? जैसे शरीर में अगर कोई बार­बार कमज़ोर होता रहे तो सदा के लिये कमज़ोर बन जाते हैं। तो 15 मिनट कोई कम नहीं हैं। संगमयुग का एक­एक सेकण्ड वर्षों के समान है। तो ऐसे अलबेले नहीं बनो। भल थोड़ा ही चला लेकिन गँवाया कितना? जब कदम में पदम कहते हो तो 15 मिनट में कितने कदम उठेंगे और कितने पदम गंवाये? जमा में तो हिसाब अच्छा रखते हो कि कदम में पदम जमा हो गया लेकिन गँवाने का भी तो हिसाब रखो। तो न चाहते हुए भी संस्कार खींचते हैं। जो भी बात बार­बार होती वो संस्कार रूप में भर जाती है। तो संकल्प परिवर्तन करो। सिर्फ सोचते नहीं रहो - करना नहीं चाहिये, हो गया, क्या करूँ? नहीं, सोचो और करके दिखाओ? कहते हो बीती को बिन्दी लगाओ, एक­दो को ज्ञान देते हो ना - कोई आकर बात करेंगे तो कहेंगे ठीक है, बिन्दी लगा दो, लेकिन स्वयं बिन्दी लगाते हो? बिन्दी लगाने लिये कौन­सी शक्ति चाहिए? परिवर्तन शक्ति। परिवर्तन शक्ति वाला सदा ही निर्मल और निर्माण रहता है। जैसे पहले भी बापदादा ने सुनाया है कि मोल्ड होने वाला ही रीयल गोल्ड है। रीयल गोल्ड की निशानी है वो मोल्ड हो जायेगा। तो चेक करो कि परिवर्तन शक्ति समय पर काम आती है या समय बीत जाने के बाद सोचते ही रहते हैं? तो परिवर्तन शक्ति को बढ़ाना है। जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है। विचारों में भी सहज रहेगा, आगे बढ़ते सेवा में रहते हो ना? सेवा में भी विघ्न रूप क्या होता है? मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया? तो उसको रीयल गोल्ड कहेंगे? मेरापन आ गया, मेरापन आना अर्थात् अलाय मिक्स होना। जब रीयल गोल्ड में अलाए मिक्स हो जाता है तो वो रीयल रहता है? उसका मूल्य रहता है? कितना फर्क पड़ जाता है! तो समय और वायुमण्डल को परखकर अपने को परिवर्तन करना, इसकी आवश्यकता है। मोटी­मोटी बातों में परिवर्तन करना तो सहज है लेकिन हर परिस्थिति में, हर सम्बन्ध, सम्पर्क में समय और वायुमण्डल को समझ स्वयं को परिवर्तन करना, यही नम्बरवन बनना है। ये नहीं सोचो कि फलाना भी समझे ना, ये भी तो परिवर्तन करे ना, सिर्फ मैं ही परिवर्तन करूँ क्या? जो ओटे सो अर्जुन, इसमें अगर आपने अपने को परिवर्तन किया तो ये परिवर्तन ही विजयी बनने की निशानी है। समझा।

अच्छा, सब आराम से पहुँच गये ना? आराम से रहे हुए हो ना? भक्ति मार्ग के मेलों में कितनी मेहनत और मुश्किल होती है! और ये मेला आराम देने वाला है ना? नींद तो आराम से करते हो ना? फिर भी नीचे (पट में) सोने के लिये, बैठने के लिये फोम तो मिला है ना। और नदी के किनारे के मेले में तो भोजन भी खाओ तो मिट्टी भी खाओ। मेले में अपना भी प्रोग्राम रखते हो तो कितनी मिट्टी होती है! यहाँ तो आराम से अच्छा ब्रह्मा भोजन मिलता है। प्राप्तियों को सदा सामने रखो तो प्राप्ति के स्मृति स्वरूप से कमज़ोरियाँ सहज समाप्त हो जायेंगी। अमृतवेले से लेकर क्या­क्या प्राप्त होता है? अगर कोई पूछे आपको अमृतवेले कौन उठाता है? कोई समझेगा कि परमात्मा इन्हों को उठाता है? हंसेंगे कि परमात्मा आपके लिये बहुत फ्री बैठा है क्या? पढ़ाने के लिये भी फ्री है, उठाने के लिये भी फ्री है? तो फलक से कहते हो ना कि है ही हमारे लिये। कोई बुजुर्ग माताओं से पूछे - आपका टीचर कौन है तो क्या कहेंगी? परमात्मा हमें पढ़ाता है! आश्चर्य की बात है ना! परमात्मा को और कोई स्टूडेण्ट नहीं मिले! अच्छा!

जैसे मधुबन में खुश रहते हो - ऐसे अपने स्थानों को मधुबन बनाओ। माताओं को सबसे ज्यादा खुशी है ना? खुशी को सम्भालना आता है? माताओं को वैसे भी चीज़ें सम्भालने की आदत होती है तो खुशी को सदा सम्भालकर रखना। पाण्डवों को जमा करना आता है, कमाना अर्थात् जमा करना। तो पाण्डव जमा करने में होशियार हैं। जेब खर्च रखने में होशियार होते हैं। तो सदा चेक करो - कितना गँवाया, कितना जमा किया? जमा का खाता सदा बढ़ता रहे। अच्छे कमाने वाले की निशानी यही होती है कि आज एक हजार है तो कल दो होना चाहिये। ऐसे होशियार हो ना?

दूर बैठने वाले और ही बापदादा के अति समीप है। क्योंकि बापदादा के पास ऐसी टी.वी. है जो दूर वाले बिल्कुल नयनों में आ जाते हैं। अच्छा! सब नाच रहे हैं। बस, नाचो, गाओ और ब्रह्मा भोजन खाओ।

डबल विदेशी:­ डबल विदेशी बहुत चतुर हैं। सभी ग्रुप में डबल विदेशी होते ही हैं। वैसे विदेशियों की सीजन में भी भारत वाले तो होते ही हैं। पहले तो यहाँ के (आबू के) पांच स्थानों के होते हैं। तो डबल विदेशी फ्रीखदिल हैं तो भारतवासी भी फ्रीखदिल बने हैं। डबल विदेशी सिकीलधे हैं। विशेष उमंग उड़ती कला का ज्यादा रहता है। तो जैसे उड़ती कला का लक्ष्य है, वैसे ही लक्ष्य और लक्षण को समान बनाते हुए उड़ते चलो और उड़ाते चलो। उड़ने वाले तो वैसे भी हो। प्लेन में तो उड़कर आते हो ना। तो शरीर से भी उड़ने वाले हो और पुरूषार्थ में भी उड़ती कला। लेकिन लक्ष्य और लक्षण को और समीपता में आगे लाओ। है, लेकिन और समीपता में लाओ। इससे सदा ही श्रेष्ठ रहेंगे। समझा! अच्छा!

दिल्ली:­ दिल्ली की कल्प के आदि से अब अन्त तक क्या विशेषता है? (राजधानी रही है) तो देहली वाले अपने को सदा राज्य अधिकारी आत्मायें हैं ­­ ऐसे श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप अनुभव करते हो? क्योंकि बापदादा ने अभी भी स्वराज्य अधिकारी बनाया है। तो स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी। स्वराज्य अधिकारी कम तो विश्व राज्य अधिकारी भी कम। इसलिये दिल्ली वालों को विशेष ये नशा है और सदा रहना है कि हम स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी हैं। अभी विश्व सेवाधारी और स्वराज्यधारी हैं। क्योंकि दिल्ली में जो भी कार्य होते हैं वो विश्व के कोने­कोने में पहुँच जाते हैं। तो विश्व सेवाधारी भी हो और स्वराज्य अधिकारी भी हो और विश्व के राज्य अधिकारी भी हो। तो सेवा और राज्य दोनों की स्मृति स्वरूप, ये है दिल्ली की विशेषता। समझा? अच्छा।

राजस्थान:­ राजस्थान की विशेषता क्या है? राजस्थान अर्थात् ताज­तख्तधारी। राजाओं की निशानी-ताज होता है ना। तो राजस्थान अर्थात् सदा सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी। और साथ­साथ बाप के दिलतख्त नशीन। एक सेवा की जिम्मेवारी का ताज और दूसरा लाइट का। तो डबल ताजधारी भी हैं और डबल तख्तधारी भी। बाप का दिलतख्त भी है और अकालतख्त भी है। तो दोनों तख्त के अधिकारी। डबल तख्तधारी और डबल ताजधारी। समझा।

अभी राजस्थान वालों को और सेवा स्थान बढ़ाने हैं। राजस्थान के सेवाकेन्द्र की संख्या और बढ़ाओ। सभी जोन में से सेवाकेन्द्र की लिस्ट सबसे कम से कम किसकी है? (राजस्थान की) आज तो राजस्थान है ना! राजस्थान वाले अभी क्या करेंगे? सेवाकेन्द्र बढ़ायेंगे? करके दिखाओ। थोड़ी मेहनत लगती है ना। लेकिन अभी समय सहयोगी बन रहा है इसलिये अभी मेहनत कम लगेगी। अच्छा!

बनारस, यू.पी.:­ यू.पी.वाले क्या करेंगे? विशेषता करेंगे ना। देहली और यू.पी. में पहले­पहले ब्रह्मा बाप ने साकार में बहुत प्यार से निमन्त्रण स्वीकार किया। ब्रह्मा बाप के साकार में जाने की धरनी है। तो जहाँ ब्रह्मा बाप के पांव पड़े हैं वहाँ क्या होगा? ज्यादा में ज्यादा पावन होंगे ना! तो यू.पी. वाले सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रख हीरो पार्टधारी बन हीरो पार्ट बजायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप की विशेषता हीरो पार्ट रहा, वैसे यू.पी.निवासी हर एक हीरो पार्टधारी बन विशेष पार्ट बजाने के निमित्त हैं और रहेंगे। समझा!

कर्नाटक:­ कनार्टक में संख्या अच्छी है, सेवा अच्छी है लेकिन विशेष निर्विघ्न सेवाधारी बनना है। निर्विघ्न सेवाधारी सो निर्विघ्न विश्व राज्य अधिकारी भव। तो कर्नाटक निवासियों को विशेष टाइटल है-विघ्न विनाशक आत्मायें। इसी का ही गायन और पूजन है । तो कर्नाटक वाले अपना यह विशेष टाइटल स्मृति में रख अपने पूज्य स्वरूप को सदा सामने रखो। हर एक विघ्न विनाशक हैं ना? फलक से कहो कि विघ्न विनाशक हैं और सदा रहेंगे। अभी देखेंगे कि क्या समाचार आते हैं? विघ्न विनाशक का समाचार आता है?

महाराष्ट्र:­ जैसा नाम है महाराष्ट्र वैसा विस्तार भी है। नाम है महाराष्ट्र तो जोन वा संख्या में भी महान महाराष्ट्र है। इसलिये महाराष्ट्र को सदा महादानी बनना है। कौन­सा दान करेंगे? पहले सबसे बड़ा दान है सर्विस हैण्ड्स। तो महाराष्ट्र को सेवा के हैण्ड्स निकालने में महादानी बनना है। वैसे निकलते भी हैं लेकिन और निकालो। तो महाराष्ट्र अर्थात् महादानी, महादानी बनना अर्थात् महान बनना। तो थोड़ा और फ्रीखदिल बनो। वैसे रिजल्ट में देखा गया है कि ट्रेनिंग में जो हैण्ड्स निकलते हैं वो ज्यादा महाराष्ट्र के ही निकलते हैं। ये विशेषता है। इसलिये बापदादा इस विशेषता की मुबारक दे रहे हैं। अब इस मुबारक को और बढ़ाते जाना फिर और मुबारक देंगे।

बम्बई वाले भी सदा सेवा में आगे बढ़ते रहते हैं और बढ़ते रहेंगे। सेवा के प्लैन विशेष देहली और बाम्बे में ज्यादा बनते हैं। और बाम्बे को विशेष वरदान है कि यज्ञ सहयोगी आत्माओं के निमित्त बाम्बे है। आन्ध्रा में आई.पीज सहयोगी हैं और बाम्बे के वारिस सहयोगी हैं। तो बाम्बे की विशेषता वारिस क्वालिटी के सहयोगी अच्छे हैं। ऐसे है ना? भण्डारा भरपूर करने वाले।

आन्ध्र प्रदेश:­ आन्ध्रा वाले सदा स्वयं को आगे बढ़ाने के उमंग­उत्साह में अच्छे हैं। और आगे बढ़ो तो आन्ध्रा से विशेष आई.पीज आत्मायें निकल सकती हैं। आन्ध्रा वालों को विशेष सहयोगी आत्मायें बनाने का वरदान है, तो सहयोगी बनाओ। रेग्युलर स्टूडेण्ट नहीं बनेंगे सहयोगी बनेंगे। तो जो विशेषता है उसको और बढ़ाते चलो। जितनी सहयोगी आत्मायें निकालने चाहो उतने निकालो। क्योंकि कर्नाटक और आन्ध्रा दोनों भावना प्रधान हैं। कर्नाटक से भी स्नेही आत्मायें बहुत निकल सकती हैं। अभी उन्हों को आगे लाओ। हैं बहुत। तो अभी देखेंगे कि ज्ञान सरोवर में सहयोगी आत्मायें कितने निकालते हैं? समझा?

केरला:­ (3-4 हैं) अच्छा है, आप केरला वाले लाडले हो। जो थोड़े होते हैं वो लाडले होते हैं। विशेष लाडली आत्मायें हो।

गुजरात:­ गुजरात तो मधुबन का कमरा है। गुजरात की विशेषता हर कार्य में सहयोगी बनने की है। आप ब्रह्मा भोजन खाते हो, तो गुजरात की मातायें जो रोटी पकाती हैं वो और कोई नहीं पका सकता। इसीलिये कांफ्रेंस में या कोई भी फंक्शन होता है तो गुजरात की माताओं को निमन्त्रण ज्यादा मिलता है। तो गुजरात की विशेषता है सहयोग देना। सब प्रकार का सहयोग देते हैं। सेवा स्थान और गीता पाठशालाओं की विशेषता भी गुजरात में है। तो सेवा की विधि भी अच्छी है और वृद्धि भी है इसीलिये वरदानी हैं। तो गुजरात को जन्म से ही वरदान है - ‘‘बढ़ते रहो, बढ़ाते रहो।’’ आवाज दो और पहुँच जाते हैं ना। जैसे कमरे से किसी को बुला लेते हैं ना, वैसे आवाज दो तो पहुँच जाते हैं। अच्छे हैं, हल्के भी हैं और उमंग­उत्साह वाले भी हैं। सेवा में अथक हैं। जो भी मुश्किल ड्यूटीज होती हैं वो गुजरात वाले ही उठाते हैं। सबसे मुश्किल ड्यूटी होती है आवासय्निवास की, वो भी गुजरात उठाता है ना। भोजन बनाने की, रोटी बनाने की गुजरात उठाता है। और सबको सन्तुष्ट करने की विशेषता भी है। तो गुजरात सैल्वेशन आर्मा है। सब सैलवेशन देने वाले हैं। गुजरात ने अपनी विशेषता को समझा, अभी इसको और बढ़ाना। अच्छा!

टीचर्स:­ सभी टीचर्स तो सदा ही ज्ञान स्वरूप, स्मृति स्वरूप हैं ही। क्योंकि जैसे बाप शिक्षक बनकर आते हैं तो बाप समान निमित्त शिक्षक हो। बाप जैसे नहीं हो, लेकिन निमित्त शिक्षक हो। तो टीचर्स की विशेषता निमित्त भाव और निर्मान भाव। सफल टीचर वही बनती है जिसका निर्मल स्वभाव हो। अभी निर्मल स्वभाव के ऊपर विशेष अण्डरलाइन करो। कुछ भी हो जाए लेकिन अपना स्वभाव सदा निर्मल रहे। यही निर्मल स्वभाव निर्मानता की निशानी है। तो अण्डरलाइन करो ‘निर्मल स्वभाव’। बिल्कुल शीतल। शीतलता का गायन शीतला देवी है। तो निर्मल स्वभाव अर्थात् शीतल स्वभाव। बात जोश दिलाने की हो लेकिन आप निर्मल हो तब कहेंगे सफल टीचर। तो बापदादा फिर भी अण्डरलाइन करा रहा है किस पर? निर्मल स्वभाव। समझा? अच्छा!

अच्छा, चारों ओर के सर्व सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सहज योगी अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को, सदा बाप के समीप और समान बनने के उमंग­उत्साह में रहने वाली सर्व आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।