14-12-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


समय­संकल्प­बोल द्वारा कमाई जमा करने का आधार - तीन बिन्दी लगाना

आज बापदादा किस सभा में आये हैं? ये सारी सभा किन आत्माओं की है? आ बापदादा देख रहे हैं कि हर एक हाइएस्ट (Highest), रिचेस्ट (Richest) हैं। दुनिया वाले तो कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप सभी हैं रिचेस्ट इन कल्पा। इस समय का जमा किया हुआ खज़ाना सारा कल्प साथ में चलता है। सारे कल्प में ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा जो ये सोचे कि इस जन्म में तो रिचेस्ट हूँ लेकिन भविष्य में भी अनेक जन्म साहूकार से साहूकार रहूंगा। और आप सभी निश्चय और नशे से कहते हो कि हमारा ये खज़ाना अनेक जन्म साथ रहेगा। गैरेन्टी है ना? तो ऐसा रिचेस्ट सारे कल्प में देखा? तो आज बापदादा अपने शाहन के भी शाह, राजाओं के भी राजा बच्चों को देख रहे हैं। एक­एक दिन में कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकालो, जमा का खाता कितना तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है? और बढ़ाने का साधन कितना सहज है! इसमें मेहनत है क्या? आपकी कमाई वा जमा खाता बढ़ने का सबसे सहज साधन है - बिन्दी लगाते जाओ और बढ़ाते जाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में भी बीती को बिन्दी लगाना। तो कमाई का आधार है बिन्दी लगाना। और कोई मात्रा है ही नहीं। क्या, क्यों, कैसे-ये क्वेश्चन मार्क की मात्रा, आश्चर्य की मात्रा, किसी की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल बन गये। तो ‘कैसे’ शब्द ‘ऐसे’ में बदल गया। बदल गया या अभी भी ‘कैसे­कैसे’ कहते हो? ‘पता नहीं’ ये शब्द संकल्प में भी बदल गया? त्रिकालदर्शी ये स्वप्न में भी नहीं सोच सकते तो मुख से तो बोलने का सवाल ही नहीं है। संगम पर सारा खेल ही तीन बिन्दियों का है। सबसे सहज बिन्दी होती या क्वेश्चन मार्क सहज है? बिन्दी सहज है ना? बिन्दी लगाने में कितना टाइम लगता? सेकण्ड से भी कम। बिन्दी लगाना आता है कि कलम खिसक जाती है? कई बार बिन्दी के बजाय कलम भी लम्बी लकीर खींच लेती है। बिन्दी लगाने से एक सेकण्ड में आपके कितने खज़ाने बच जाते हैं। खज़ानों की लिस्ट तो जानते हो ना? अगर बिन्दी के बजाय और कोई मात्रा लगाते हो वा लग जाती है, तो सोचो ज्ञान का खज़ाना गया, शक्तियों का खज़ाना गया, गुणों का खज़ाना गया, संकल्प का खज़ाना गया, इनर्जा गई, श्वास सफल के बजाय असफलता में गया, समय गया! कितना गया? लम्बी लिस्ट हो गई ना? तो ये कभी भी नहीं सोचो कि एक­दो सेकण्ड ही तो गया। लेकिन एक सेकण्ड में गँवाया कितना? एक सेकण्ड भी कितना भारी हो गया? हर समय अपने जमा का खाता बढ़ाते चलो। कमाया क्या और गँवाया क्या? इन सभी खज़ानों में से कितने खज़ाने गँवाये? बापदादा भी बच्चों के जमा के खाते चेक करते रहते हैं। जब खाता देखते हैं तो मुस्कराते रहते हैं। क्या देखते होंगे जो मुस्कराते हैं? अमृतवेले मिलन भी मनाते, रूहरिहान भी करते, वायदे भी बहुत अच्छे करते कि ये करेंगे, ये करेंगे, बहुत अच्छी­अच्छी बातें करते हैं लेकिन चलते­चलते सारे दिन में कोई न कोई खज़ाना गँवा भी देते हैं। फिर आधार क्या बनाते हैं? बापदादा को भी अपनी अच्छी­अच्छी बातें सुनाने लगते हैं। अगर व्यर्थ संकल्प चला तो क्या ये जमा हुआ या गँवाया? तो फिर बातें क्या करते हैं? सिर्फ संकल्प में चला ना-वो तो ठीक हो जायेगा, बाप को भी दिलासे दिलाते हैं कि ठीक हो जायेगा, पुरूषार्थी हैं ना, सम्पूर्ण तो नहीं हुए हैं, हो जायेगा.....। तो बापदादा कहते हैं कि ये गा­गा के गीत सारे दिन में बहुत सुनते हैं लेकिन ये भी कब तक? क्या अंत में सम्पूर्ण होना है? कि बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल का वर्सा पाना है? वर्सा अविनाशी चाहते हो? सम्पूर्ण वर्सा चाहते हो कि अधूरा चलेगा? और पुरूषार्थ में अधूरा पुरूषार्थ चलेगा? तो पुरूषार्थ के समय तो करेंगे, देखेंगे, बनेंगे, कर ही लेंगे, हो ही जायेगा..... ये सोचते हो और प्राप्ति के समय गे­गे करेंगे? उसमें तो सम्पूर्ण प्राप्ति चाहिये, सम्पूर्ण वर्सा चाहिये। सभी लक्ष्मी­नारायण बनने में हाथ उठाते हो। मालूम भी है कि लक्ष्मी­नारायण की भी आठ गद्दियाँ चलेंगी लेकिन हाथ तो लक्ष्मी­नारायण में उठाते हो ना? तो लक्ष्मी­नारायण का अर्थ है नम्बरवन पास विद् ऑनर होना। बापदादा बच्चों की हिम्मत को देखकर खुश भी होते हैं। राम­सीता में कोई नहीं हाथ उठाता। हिम्मत अच्छी है और हिम्मत वाले को मदद भी मिलती है। सिर्फ पुरूषार्थ के समय भी जैसे बाप के आगे संकल्प करते हो वैसे ही ये बोल और कर्म में लाओ।

बापदादा ने देखा समय के खज़ाने का महत्व जितना रखना चाहिये उतना कई बच्चे नहीं रखते हैं। एक दिन का भी चार्ट चेक करें तो मैजारिटी का समय वेस्ट के खाते में जाता दिखाई देता है। द्वापर काल से व्यर्थ सुनने, देखने और फिर सोचने की आदत न चाहते भी आकर्षित कर लेती है और इसी कारण समय का खज़ाना वेस्ट के खाते में चला जाता है। पहले भी सुनाया कि सेकण्ड का भी कितना महत्व है! दूसरी बात, मैजारिटी व्यर्थ बोल में भी समय वेस्ट करते हैं। एक घण्टे के अन्दर भी चेक करो कि जो भी बोल बोला, हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना है? बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती है। अगर हर बोल में शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना नहीं है तो अवश्य माया की भावनायें हैं। वो तो अनेक हैं, ईर्ष्या, हषद, घृणा, ये भावनायें चाहे किसी भी परसेन्ट में समाई हुई होती है। कई बार बोल के टेप रिकॉर्ड बापदादा सुनते हैं। हर एक की ऑटोमेटिक टेप भरती जाती है और जिस घड़ी जिसकी भी सुनना चाहे वो सुन सकते हैं। हर बोल का सार नहीं होता। कई बार कहते भी हो मेरी भावना, मेरा भाव खराब नहीं था, ऐसे ही निकल गया वा बोल दिया लेकिन जिस बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना नहीं, वो किस खाते में जमा होगा? वेस्ट में हुआ ना? तो कमाई का खाता ज्यादा होगा या गँवाने का खाता ज्यादा होगा? ये तो गँवाया ना? तो बोल में भी गँवाने का खाता ज्यादा होता है। तो बोल को भी चेक करो। ऐसे ही बोल दिया-ये भाषा बदली करो। समर्थ बोल का अर्थ ही है-जिस बोल में किसी आत्मा को प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर सार नहीं है तो जमा का खाता तो नहीं होगा ना? जितना एक दिन में जमा कर सकते हो, तो बापदादा ने देखा जितने के हिसाब से उतना नहीं है। तो क्या करना पड़ेगा? लक्ष्मी­नारायण तो बनना ही है ना? कि नहीं बने तो भी हर्जा नहीं! पहले जन्म से लेकर श्रेष्ठ प्रालब्ध पानी है कि दूसरे­तीसरे जन्म से शुरू करेंगे? पहले जन्म में नहीं आओ, दूसरे­तीसरे में आओ, पसन्द है? नहीं पसन्द है ना? तो इतना जमा का खाता है? अगर खाता कम जमा होगा तो प्रालब्ध क्या खायेंगे? उतना ही खायेंगे जितना जमा किया है। तो आज बापदादा ने सभी के जमा के खाते देखे। दूसरों को समय का महत्व बहुत अच्छा सुनाते हो, संगमयुग की महिमा कितनी अच्छी करते हो! तो स्वयं भी सदा समय के महत्व को सामने रखो। समय के पहले अपने श्रेष्ठ भाग्य के आधार से प्राप्तियों का खाता फुल जमा करो।

संगमयुग के समय की विशेषता है कि तीनों रूप की प्राप्ति है। एक-वर्से के रूप में, दूसरा-पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहते हैं तो पढ़ाई की प्राप्ति के आधार से और तीसरा है वरदान के रूप में। वर्सा भी है, इनकम भी है और वरदान भी है। प्राप्ति बहुत भारी है, बहुत बड़ी है! सिर्फ सम्भालने वाले बनो। वर्सा भी बेहद है, इनकम भी बेहद है और वरदान भी बेहद के हैं। कभी सोचा था कि रोज भगवान का वरदान मिलेगा? इतने वरदान किसी को भी, कभी भी नहीं मिल सकते। लेकिन आप तो कहते हो हमारा तो अधिकार है। वर्से पर भी, पढ़ाई पर भी और वरदान पर भी। छोटी बात नहीं है, बहुत बड़ी है! तीनों ही सम्बन्ध से तीनों के ऊपर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया ना? सभी फखुर से कहते हैं ना-बाप मेरा है। ये कहते हो क्या कि मेरा नहीं, तेरा है? हमारे लिये बाप पढ़ाने आता है-ये समझते हो ना? तो पढ़ाई पर अधिकार है ना? और वरदाता के पास वरदान है ही किसके लिये? हरेक सोचता है कि मेरे लिये ही वरदाता बाप है। तो तीनों पर अधिकार है। कहने में तो बहुत साधारण है। इसीलिये तो दुनिया वाले हंसते हैं कि, हैं क्या और कहते क्या हैं? तो अधिकार को सदा स्मृति में रख कदम उठाओ। इमर्ज रूप में रखो, मर्ज रूप में नहीं। हैं तो ब्रह्माकुमार, हैं ही बाबा के... ऐसे नहीं। इमर्ज रूप में, मन में, बुद्धि में, कर्म में इमर्ज रखो। मन में ये संकल्प इमर्ज हो कि मैं ये हूँ, बुद्धि में स्मृति स्वरूप हो और कर्म में अधिकारी के निश्चय और नशे से हर कर्म हो। ऐसे नहीं, अमृतवेले तो इमर्ज रहता है फिर सारे दिन में मर्ज हो जाता है। नहीं, सदा इमर्ज रूप में रहे। तो जमा का खाता बढ़ाओ। तीव्र गति से बढ़ाना, ढीला­ढाला नहीं करना। क्योंकि समय आप मास्टर रचयिता के लिये रूका हुआ है। अभी भी प्रकृति को ऑर्डर करें तो क्या नहीं कर सकती है? अगर पांचों ही तत्व हलचल मचाना शुरू कर दें तो क्या नहीं हो सकता और कितने में हो सकता? तो समय, प्रकृति और माया विदाई के लिये इन्तजार कर रही है। आप सम्पूर्णता की बधाइयाँ मनाओ तो वो विदाई लेकर ही जायेगी। माया भी देखती है अभी ये तैयार नहीं हैं तो चांस लेती रहती है। प्रकृति को ऑर्डर करें? पुरूष तैयार हैं? प्रकृति तो तैयार हो जायेगी। ऑर्डर करें? कि ज्ञान सरोवर तैयार हो पीछे ऑर्डर करें? ऐसे एवररेडी हो, कि रेडी हो? शक्तियाँ एवररेडी हैं? सम्पूर्ण हो गये? थोड़े को तो एवररेडी नहीं कहेंगे ना? ये सोचो, चेक करो कि अगर इस घड़ी भी महाविनाश हो जाये तो अपनी तस्वीर देखो नॉलेज के आइने में, कि मैं क्या बनूँगा? आइना तो सबके पास है ना? क्लीयर है ना? तो अपने तकदीर की तस्वीर देखो। बाप को क्या टाइम लगेगा? जब ब्रह्मा के लिये गायन है कि संकल्प से सृष्टि रच ली तो क्या संकल्प से विनाश नहीं हो सकता? बाप जानते हैं राजधानी चलनी है तो उसमें एक ब्रह्मा क्या करेगा? साथी चाहिये ना? तो ब्रह्मा बाप भी आप साथियों के लिये रूके हुए हैं। तो बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं, बच्चे तो बाप से प्रश्न बहुत कर चुके हैं। अभी बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं कि डेट फिक्स करो। सभी काम की डेट फिक्स करते हो ना? तो इसकी भी डेट फिक्स करो, इसका भी मुहूर्त होना है ना। ज्ञान सरोवर की भी डेट फिक्स है, हॉस्पिटल की भी डेट फिक्स है। इसकी डेट क्या है? ये किसको फिक्स करनी है? बाप को नहीं करनी है। ये बाप ने आप बच्चों के हाथ में दिया है। कोई काम तो आप भी करेंगे, कि सब बाप करेंगे? डेट फिक्स का प्रोग्राम बनाना। अच्छा!

(ये बच्चों को देखते हुए) देखो, आप नये­नये बच्चे जो आये हैं, आप से सबका कितना प्यार है? पहला चांस आप सबको ही देते हैं। सब खुशराजी हैं? कितने पैर पृथ्वी मिली है? दो पैर या तीन पैर? (दो पैर) दो पैर में भी राजी तो हो, तकलीफ तो नहीं है ना? खाना­पीना तो अच्छा मिल रहा है ना? मेले में ऐसी पालना और कोई की हो ही नहीं सकती। मेले देखे हैं ना? ऐसा ब्रह्मा भोजन, ऐसा परमात्म परिवार कहाँ मिलता है? सर्दी लगती है? मौसम की भी मिठाई होती है। तो ये सर्दी भी मौसम की मिठाई है, मिठाई तो खानी चाहिये ना? सबको शालों की सौगात तो मिलती है ना? कोई मेले में ऐसी सौगात मिलती है या खाली होकर आते हो? अच्छा-नयों की दिल पूरी हुई, मधुबन देख लिया? पहले स्वप्न में था, अभी साकार में हो गया। कितना भी स्थान बढ़ायेंगे लेकिन कम होना ही है। क्यों? सोचो, अभी 9 लाख जमा हुए हैं? पहले जन्म की संख्या ही तैयार नहीं हुई है। वो तो होनी है ना? कितने मकान बनायेंगे? कितने ज्ञान सरोवर बनायेंगे? सभी कहते हैं संख्या बढ़ाओ। जितना संख्या बढ़ायेंगे, उतनी संख्या दूसरे वर्ष और हो जायेगी तो क्या करेंगे? जितना मिले उतने में राजी रहो। मेला भी करना है ना? (तलहटी में ब्राह्मणों का विशाल संगठन होना है) ये तो मेले में आने नहीं हैं, ये तो आ गये। दूसरों के लिये इतना बड़ा मेला पसन्द है? दस हजार सोयेंगे! भीड़ नहीं हो जायेगी? ये तो समझते हैं हमको तो चांस मिलना नहीं है। इन्तजार की घड़ियाँ भी प्यारी होती हैं। एक साल के बाद जाना है-ये इन्तजार होता है ना? तो इन्तजार में पुरूषार्थ कितना अच्छा चलता है! और जब होकर चले जायेंगे तो देख लिया, फिर क्या होगा? फिर अलबेलापन आयेगा? नहीं आयेगा? और आगे बढ़ेंगे? ये भी ड्रामा में जो विधि बनी है वो बहुत ही फायदे वाली है। एक साल में पक्के तो हो जाते हो ना? नहीं तो कच्चे­कच्चे आ जाते फिर युद्ध करनी पड़ती।

हर साल में आपके यहाँ (मधुबन में) इन्टरनेशनल मेले कितने लगते हैं? अभी भी ये मेला क्या है? इन्टरनेशनल है ना? देशय्विदेश सब तरफ के हैं ना? दुनिया वाले तो सोचते हैं इन्टरनेशनल प्रोग्राम पांच साल में एक किया तो बहुत कर लिया। और मधुबन में कितने होते हैं, पता पड़ता है? इन्टरनेशनल मेला हो गया। और सब खुश! मजा आता है ना? लेकिन आना टर्न पर। अभी तो देखो दस हजार में भी टेन्ट तो मिलेगा ना? आखिर में ये सब साधन समाप्त हो जायेंगे। सारे आबू के पहाड़ों को सोने के स्थान बना लो तो कितने रह सकते हैं? अच्छा!

दिल्ली ग्रुप - पहले तो दिल्ली वालों को डेट फिक्स करनी पड़ेगी। क्योंकि देहली को परिस्तान बनाना है ना? राज गद्दी तो दिल्ली में होनी है ना? तो पहले दिल्ली वालों को तैयारी करनी पड़ेगी तब तो राज्य करेंगे ना? तो दिल्ली वाले क्या तैयारी करेंगे? दिल्ली वालों को एक्स्ट्रा सेवा करनी पड़ेगी। क्योंकि एक तो आत्माओं को योग्य और योगी बनाना है, दूसरा धरणी को भी तैयार करना है। तो विशेष अपने वाणी के साथ­साथ वृत्ति को और तीव्र गति देनी पड़ेगी। क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा, तब तैयार होंगे। तो दिल्ली वालों को डबल सेवा का सदा अटेन्शन रखना है। वाणी और वृत्ति दोनों साथ­साथ सेवा में लगे रहें। सभी पावरफुल वृत्ति वाले हो ना? ढीला पुरूषार्थ नहीं करना। क्योंकि अगर आप देरी करेंगे तो राज्य भी देरी से स्थापन होगा। इसलिये दिल्ली वालों को सदा ही डबल सेवा द्वारा तीव्र गति से तैयारी करनी है, राजधानी बनानी है। बनायेंगे तो नजदीक भी रहेंगे ना? तो डबल सेवा द्वारा ऐसा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ जो प्रकृति भी दासी बन जाये, हलचल करने के बजाय दासी बनकर सेवा करे। तो देहली निवासी विश्व परिवर्तक तो हो ही लेकिन विश्व में भी राजधानी परिवर्तन के विशेष निमित्त हो। नशा है ना? तो डबल सेवा करनी है, तब ही डबल ताज मिलेगा, ऐसे नहीं मिलेगा। सेवाधारी सो ताजधारी। अच्छा।

बम्बई, महाराष्ट्र - बम्बई वाले क्या करेंगे? देहली वाले राजधानी तैयार करेंगे, आप प्रजा और राजा­रानी तैयार करेंगे? बाम्बे वालों को विशेष ब्रह्मा बाप का वरदान है। (रमेश भाई से) कौन­सा वरदान है? (नरदेसावर) नरदेसावर का अर्थ है सदा सम्पूर्ण, सदा भरपूर। कभी कोई कमी नहीं होगी। नरदेसावर अर्थात् सदा कमाने वाले, कमाने में होशियार। ऐसे नरदेसावर, सदा भरपूर हो? या कभी खाली हो जाते हो? इतना भरपूर जो औरों को भी भरपूर करने वाले। बाम्बे वाले राजधानी के राजा­रानी और प्रजा तैयार करेंगे। बाम्बे वालों का तो बहुत बड़ा काम हो गया! देहली वालों को भी राज्य अधिकारी तो बनाने पड़ेंगे। क्योंकि अभी भी देखो लास्ट जन्म में भी राज्य अधिकारी तो देहली में ही हैं। तो देहली और बाम्बे दोनों को मिलकर राजधानी जल्दी­जल्दी तैयार करनी है। पसन्द है? डेट भी फिक्स करेंगे ना? डेट नहीं भूल जाना। देहली और बाम्बे वाले जब कहेंगे राजधानी तैयार हो गई तब तो काम होगा ना? राज्य अधिकारी हो नहीं और राज्य तैयार हो जाये, कैसे होगा? बाम्बे में सेवा के रत्न भी अच्छे­अच्छे हैं। अच्छे हैं या अच्छे ते अच्छे हैं? बाप कहते हैं अच्छे ते अच्छे हैं। देखो, एक­एक रत्न, पुराने­पुराने रत्न गिनती करो तो कितने अच्छे हैं। दिल्ली में भी हैं, बाम्बे में भी हैं। क्योंकि आदि से सेवा के निमित्त बने हो। ऐसे तो गुजरात भी कम नहीं हैं। गुजरात लास्ट सो फास्ट है और ये आदि हैं। गुजरात ने वृद्धि बहुत जल्दी की है।

नागपुर, पूना - नागपुर वा पूना वाले राजधानी में विशेष क्या करेंगे? राजधानी को सजायेंगे? महाराष्ट्र सजाने की ड्युटी ज्यादा लेता है ना? कितना भी तैयार हो जाये कोई लेकिन सजावट नहीं तो कुछ नहीं। तो महाराष्ट्र वाले राजधानी को सजायेंगे। सजाने के लिये साधन तैयार करने पड़ते हैं ना? तो महाराष्ट्र वाले सदा अपने सहयोग से सहयोगी आत्माओं को निमित्त बनायेंगे। क्योंकि जितना आगे चलते जायेंगे, सहयोगी आत्मायें सदा ही सहयोग के हाथ बढ़ाते हुए परिवर्तन में आगे बढ़ेंगे। ब्राह्मणों के जोन में तो महाराष्ट्र बहुत बड़ा है ना? तो जैसे अभी भी सेवा में, हर कार्य में सहयोगी बनते हो और आगे भी अनेक सहयोगी आत्माओं द्वारा राजधानी को सजाने में सहयोगी बनेंगे। तो महाराष्ट्र वाले सहयोग देने में और सहयोगी बनाने में अच्छे निमित्त हैं और आगे भी रहेंगे। ऐसे हैं ना? योग शिविर में भी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के आते हैं ना और ब्राह्मण परिवार में संख्या किसकी ज्यादा आती है? (महाराष्ट्र की) अच्छा है, वृद्धि है और सहयोग की विधि से सफलता को पाते रहना ही है। समझा? अच्छा!

भोपाल -  भोपाल वाले राजधानी में क्या तैयारी करेंगे? भोपाल वाले नगाड़ा बजायेंगे। वैसे भी जब तक नगाड़ा नहीं बजेगा तो तैयारी कैसे होगी? तो भोपाल वाले बहुत जोरशोर से चारों ओर नगाड़ा बजायेंगे। क्या नगाड़ा बजायेंगे? बाप आ गया, वर्सा ले लो-ये नगाड़ा बजायेंगे। नक्शे के हिसाब से भी मध्य प्रदेश है ना। वैसे भी जब कोई आवाज फैलाना होता है तो बीच में खड़े होकर फैलायेंगे ना? तो खूब नगाड़ा बजाओ। बजा भी रहे हैं और बजायेंगे भी। सबको खुशनसीब बनने की खुशखबरी सुनायेंगे। खुशखबरी सुनाने में होशियार हो ना? सबको खुशखबरी सुनाना, यही सबसे बड़ा श्रेष्ठ कर्तव्य है। क्योंकि चारों ओर दु:ख­अशान्ति की खबरें सुनते रहते हैं। तो ऐसी आत्मायें खुशखबरी सुनकर कितनी खुश होंगी! सबके दिल से निकलेगा कि वाह! परमात्म बच्चे वाह! तो ऐसा श्रेष्ठ कार्य करना ही है। हुआ ही पड़ा है, सिर्फ निमित्त करना है। राजधानी भी तैयार हुई पड़ी है, प्रजा भी तैयार है, आप सिर्फ ठप्पा लगाते जाओ, बस। अच्छा।

कर्नाटक - कर्नाटक वाले क्या करेंगे? कर्नाटक के धरनी की क्या विशेषता है? भावना वाले ज्यादा हैं, तो भावना प्रधान आत्मायें क्या करेंगी? आत्माओं में श्रेष्ठ भावना पैदा करने के निमित्त बनेंगी। जैसे धरनी की विशेषता है, वैसे चारों ओर सारे विश्व को तैयार करने के लिये सभी में श्रेष्ठ भावना, शुभ भावना उत्पन्न करेंगे। श्रेष्ठ भावना क्या है? हम बाप के और बाप हमारा। इस श्रेष्ठ भावना से सभी भावना का फल सहज प्राप्त करेंगे। भावना का फल बहुत जल्दी मिलता है। तो ऐसी सहज सेवा करो जो भावना उत्पन्न करो और भावना का फल सहज प्राप्त करो। तो ये सेवा करना आता है कि नहीं? अभी से फरिश्ते बन गये हैं क्योंकि भाषा नहीं समझते हैं लेकिन इशारों से समझ जाते हैं। तो समझा, कर्नाटक वालों को क्या करना है? सहज फल खिलाओ, मेहनत नहीं कराओ। कर्नाटक की धरनी में वृद्धि बहुत सहज होती है। तो जैसे आप लोगों की धरनी है वैसे औरों की धरनी को भी तैयार करो और फल की प्राप्ति करो।

आन्ध्र प्रदेश - आन्ध्र प्रदेश क्या करेंगे? ऐसा कोई नया प्लैन बनाओ, जैसे साइन्स वाले नई­नई इन्वेन्शन निकालते रहते हैं ना, तो थोड़े समय में प्राप्ति ज्यादा हो तो आन्ध्र प्रदेश ऐसे ही इन्वेन्शन करो जो थोड़े समय में आत्मायें अनुभूति की प्राप्तियाँ ज्यादा अनुभव करें, उसका साधन क्या है जो समय कम लगे और प्राप्ति ज्यादा हो? इसका साधन है आन्ध्र प्रदेश की हर ब्राह्मण आत्मा को लाइट हाउस, माइट हाउस बनना पड़े। लाइट हाउस कितना जल्दी लाइट फैलाता है और चारों ओर फैला देता है। तो आन्ध्र प्रदेश लाइट हाउस, माइट हाउस बन ऐसा प्रकाश फैलाओ जो सबको दिखाई दे कि मैं आत्मा हूँ और बाप आ चुका है। रोशनी में दिखाई देता है ना कि मैं कौन हूँ? तो ऐसे लाइट और माइट हाउस बनकर लाइट और माइट फैलाओ।

डबल विदेशी - डबल विदेशियों ने बाप का एक टाइटल तो प्रैक्टिकल कर लिया है। कौन सा? सर्वव्यापी का। कोई ऐसा प्रोग्राम नहीं होता जिसमें डबल विदेशी न हो। तो सर्व कार्य में व्यापी हो गये और बापदादा को भी खुशी होती है। क्योंकि डबल विदेशियों से इन्टरनेशनल हो जाता है। बाप का टाइटल भी विश्व कल्याणकारी है ना। भारत कल्याणकारी तो नहीं है ना। तो जब डबल विदेशी आते हैं तो बाप का भी विश्व कल्याणकारी टाइटल सिद्ध कर देते हैं। रौनक हो जाती है। डबल विदेशियों की विशेषता है - हर कार्य में रौनक करने वाले। वहाँ गोल्डन दुनिया में भी क्या करेंगे? चारों ओर रौनक मचा देंगे। विदेश में वैसे भी लाइट की सजावट की रौनक बहुत होती है ना। तो ब्राह्मण परिवार की रूहानी रौनक डबल विदेशी हैं। डबल विदेशी कहाँ­कहाँ से आये हैं? (लन्दन, नैरोबी, न्युजीलैण्ड, जर्मनी, जापान, मैक्सिको) मैक्सिको नाच रहा है, मैक्सिको वालों की बहादुरी भी बहुत अच्छी है, स्थान भी दूर है और इकॉनॉमी सिस्टम भी विचित्र ही है। फिर भी भावना और स्नेह पहुँचा देता है। इसलिये मैक्सिको वालों को मुबारक। अच्छा, देखो लन्दन वाले भी बहुत आगे बढ़ा रहे हैं, समाचार सुना चाबी मिल गई है। (लन्दन शहर में म्यूजयम के लिए मकान मिला है) इससे क्या सिद्ध हुआ कि ब्राह्मणों का दृढ़ संकल्प जो चाहे वो कर सकता है। बुद्धिवान बन किसी की भी बुद्धि को बदल सकते हैं। कायदे भी बदल करके फायदे में दिखाई देते हैं। विदेश के कायदे कितने सख्त हैं लेकिन कायदे के ऊपर फायदा विजय प्राप्त कर लेता है। (बाबा करनकरावनहार बन करा लेता है) लेकिन ब्राह्मण बच्चे भी भुजायें हैं। भुजाओं के बिना तो कोई काम नहीं होता।

जीतू भाई (ज्ञान सरोवर के कान्ट्रैक्टर) परिवार सहित बापदादा के सामने सभा में बैठे हैं:­ बाप की भुजा हो ना? (राइट हैण्ड हैं) मुबारक हो। राइट हैण्ड की मुबारक हो। परमात्म भुजा बनना कितना बड़ा भाग्य है! सेवा के सहयोगी बनना अर्थात् भुजा बनना। सभी का बाप से अच्छा प्यार है। बाप को भी प्यार है। बाप से ज्यादा प्यार है या प्रवृत्ति से ज्यादा प्यार है? (दोनों से) जवाब देने में होशियार हैं। अच्छा है कितने शेयर्स आप लोगों ने इकट्ठा किया है? अपना एकाउण्ट देखा है? सारे परिवार को कितने शेयर्स मिले हैं? अगर घर बैठे शेयर मिल जायें, बिना मेहनत के तो इसको भाग्य कहेंगे ना? अच्छा है, बाप से भी मिल लिया, मना भी लिया। परिवार ही अच्छा है।

(डा.अशोक मेहता से) ये क्या मनाने आये हैं? बर्थ डे मनाने आये हैं। जन्मते ही भाग्य की लकीर श्रेष्ठ लेकर आये हो। गीत है ना तकदीर जगाकर आये हैं। तो जन्मते मेहनत करनी पड़ी है कि सहज प्राप्ति से आगे बढ़ते जाते हैं? सहज प्राप्ति है ना! तो तकदीर लेकरके ही आये हैं। और कलम तो हाथ में है ही। सेवा का बल, परिवार का सहयोग और बाप का प्यार तीनों प्राप्त हैं। तो तीनों सहज कर रहे हैं और करते रहेंगे। परिवार के भी समीप आने में देरी नहीं लगी ना? बाप के समीप जल्दी आये तो परिवार के समीप भी बहुत तीव्र गति से आ रहे हो। देखो, कितने प्यारे हो सबके! जिसका बाप से और सेवा से प्यार है ना तो बाप का और परिवार का प्यार स्वत: ही मिलता है। ऐसे हैं ना? सब पहचाने हुए लगते हैं ना। कहाँ भी जाओ तो आपको जल्दी पहचान लेंगे ना? अच्छा, सभी ने दिल खुश मिठाई खाई?

टीचर्स - देखो, टीचर्स नहीं होती तो आप लोग कैसे आते? टीचर्स का महत्व है ना! फिर भी निमित्त टीचर्स तो हैं। आप सभी को पाठ पक्का कराने वाले निमित्त हैं ना? उमंग­उत्साह बढ़ाने वाले निमित्त टीचर्स हैं। टीचर्स का विशेष कार्य ही है उमंग­उत्साह के पंख लगाए, स्वयं भी उड़ने वाले और दूसरों को भी उड़ाने वाले। योग्य टीचर्स की विशेषता ही यह है कि आने वाले हर स्टूडेण्ट सदा ही सहज पुरूषार्थ द्वारा आगे से आगे उड़ते रहेंगे। वैसे टीचर्स का भाग्य ब्राह्मण परिवार में एक्स्ट्रा भी है। क्योंकि निमित्त बनना ये एक एक्स्ट्रा लिफ्ट है। सेवा के अधिकारी बनना-ये एक्स्ट्रा अधिकार अन्दर बहुत मदद करता है। तो टीचर्स को बापदादा सदा निमित्त और समान सेवाधारी समझते हैं। जो बाप का कार्य वो निमित्त टीचर्स का कार्य। तो बापदादा सदा टीचर्स को समान स्वरूप से देखते हैं। इतना स्नेह और इतना रिगार्ड बाप सदा देते हैं और उसी नजर से देखते हैं कि ये समान सेवाधारी हैं। टीचर्स के बिना तो काम नहीं चलेगा ना! आप लोगों को ठप्पा तो टीचर्स का लगाना पड़ता है ना? अगर टीचर्स आपके फॉर्म पर ठप्पा नहीं लगायेंगी तो कैसे आयेंगे? अच्छा!

चारों ओर के हाइएस्ट और रिचेस्ट श्रेष्ठ आत्माओं को, हर खज़ानों के मालिक सम्पन्न आत्माओं को, सदा स्वयं को एवररेडी बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी आत्माओं को, सदा समय, संकल्प, बोल द्वारा श्रेष्ठ कमाई का खाता जमा करने वाले अति समीप आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादी जी से :­

सब सहज चल रहा है ना? मेला चल रहा है या खेल चल रहा है? सन्तुष्टता का खेल चल रहा है। सन्तुष्ट करने वाले सन्तुष्ट करते हैं और सन्तुष्ट होने वाले सन्तुष्ट होते हैं। ये सन्तुष्टता का खेल सभी को प्यारा लगता है। और सब ठीक है? (तलहटी में दो टर्न का सोचा है) पहले लिस्ट देखो, पीछे दो बारी भी होगा तो कोई बात नहीं। बाप बच्चों की सब आशायें पूर्ण करता है। बाप को आने में तो कोई तकलीफ नहीं है ना। चाहे मधुबन, पाण्डव भवन में आये, चाहे तलहटी में आये, उनको आने में कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ तो बच्चों को है, लेकिन वो तकलीफ नहीं लगती। जब बच्चे हिम्मत रखते हैं कि हमारे लिये तकलीफ नहीं है, मनोरंजन है, तो बाप को तो तन में ही आना है ना, बस। संगम पर करना ही क्या है? मेला और खेला। सेवा है खेल। मेला मचाओ, सेवा का खेल करो, और क्या करना है? खाओपियो, ब्रह्मा भोजन खाओ। अच्छा।