23-12-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


अपने तीन स्वरूप सदा स्मृति में रहें - 1­संगमयुगी ब्राह्मण, 2­ब्राह्मण सो फरिश्ता और 3­फरिश्ता सो देवता

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं। सबसे श्रेष्ठ स्वरूप है ब्राह्मण और ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता। ब्राह्मण स्वरूप, फरिश्ता स्वरूप और देवता स्वरूप। ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता सर्व शक्तियों सम्पन्न स्वरूप की है। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् मायाजीत। तो सर्व शक्ति सम्पन्न बनना ही मायाजीत बनना है। पहला स्वरूप ब्राह्मण-स्वयं को देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता (सर्व शक्तियाँ) धारण हुई हैं? सर्व शक्तियाँ हैं वा कोई­कोई शक्ति है? अगर एक शक्ति भी कमज़ोर है वा कम है तो ब्राह्मण स्वरूप के बदले बार­बार क्षत्रिय अर्थात् युद्ध करने वाले बन जाते हैं। क्षत्रिय का कर्तव्य है युद्ध करना और ब्राह्मण का कर्तव्य है - सदा और सहज मायाजीत बनना। ब्राह्मण अर्थात् विजयी। सदा सर्व शक्तियाँ अर्थात् सर्व शस्त्रों से सम्पन्न हैं। और क्षत्रिय अर्थात् कभी विजयी और कभी हार खाने वाले। क्योंकि शक्तियाँ मिलते हुए भी धारण नहीं कर सकते इसलिये समय और परिस्थिति प्रमाण सदा विजयी नहीं बन सकते। ब्राह्मण स्वरूप अर्थात् सदा ताज, तख्त और तिलकधारी। विश्व कल्याण की जिम्मेदारी के ताजधारी, सदा स्वत: स्मृति के तिलकधारी, सदा बाप के दिलतख्तनशीन। क्षत्रिय एकरस, अचल, अडोल न होने के कारण कभी अचल, कभी हलचल, कभी अधिकारी और कभी बाप से शक्ति मांगने वाले रॉयल भिखारी। ब्राह्मण अर्थात् सदा अलौकिक मौज के जीवन में रहने वाले। सदा रूहानी सीरत और सूरत वाले। क्षत्रिय अर्थात् कभी ऐसे, कभी कैसे। तो अपने से पूछो मैं कौन? कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय या सदा ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं से सम्पन्न हैं? लक्ष्य ब्राह्मण जीवन का है लेकिन कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय-ऐसे लक्षण तो नहीं हैं? लक्ष्य और लक्षण समान हैं वा अन्तर है? बोल और कर्म समान हैं वा अन्तर है? सभी ब्रह्माकुमार­ ब्रह्माकुमारी कहलाते हो ना? कि क्षत्रिय कहलाते हो? चन्द्रवंशी कहलाना भी पसन्द नहीं करते ना? कोई कहे आप चन्द्रवंशी हैं तो पसन्द आयेगा? नहीं। और कर्म क्या है? जिस समय युद्ध में लगे हुए हो उस समय का फोटो अपना निकालो। फोटो निकालने का शौक बहुत होता है ना? तो अपना फोटो निकालना आता है या दूसरों का फोटो निकालना आता है? तो अपना फोटो निकालो कि मैं कौन हूँ? अगर फोटो भी कोई का अच्छा नहीं निकलता है तो पसन्द नहीं करते हो ना? तो सारे दिन में वा कितने बारी समय प्रति समय ब्राह्मण के बजाय क्षत्रिय बन जाते हैं-ये चेक करो और चेक करके चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। चेक किया जाता है चेंज करने के लिये। तो सभी के पास परिवर्तन शक्ति है? कि कोई के पास नहीं है? ये तो बहुत अच्छी खुशी की बात है कि सभी के पास है। अब समय पर काम में लगाना आती है या कभी नहीं भी लगती है? क्योंकि शक्ति है तो समय पर काम आवे। दुश्मन है ही नहीं और शस्त्र बहुत बढ़िया हैं मेरे पास और जब दुश्मन आवे तो शस्त्र काम में ही नहीं आवे-क्या उसको शक्तिशाली कहेंगे? सिर्फ ये चेक नहीं करो कि शक्ति है लेकिन कर्म में समय प्रमाण जो शक्ति चाहिये वही शक्ति कार्य में लगाना आता है? कि दुश्मन वार कर देता, पीछे शक्ति याद आती है? तो ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं को चेक करो। ब्राह्मण सो फरिश्ता बनेगा। क्षत्रिय सो फरिश्ता नहीं। दूसरा स्वरूप है फरिश्ता। सभी को फरिश्ता बनना ही है ना? कि फरिश्ता बनना मुश्किल है? सहज है या मुश्किल? या कभी मुश्किल, कभी सहज? तो फरिश्ता स्वरूप की विशेषता सभी जानते भी हो कि फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट? तो डबल लाइट हैं? कि कभी बोझ उठाने को दिल करती और उठा लेते हो? वा उठाने नहीं चाहते हो लेकिन माया सिर पर टोकरी रख देती है? माया अपनी आर्टीफिशियल टेम्पररी शक्ति ऐसी दिखाती है जो मजबूरी से भी बोझ उठाना न चाहते भी उठा लेते हैं। क्योंकि कमज़ोर होने के कारण कमज़ोर सदा पर­अधीन होता है। तो माया भी अधीन बना देती है। अधिकारीपन भूल जाता है और अधीन बन जाते। उस समय भाषा क्या होती है? चाहते तो नहीं हैं लेकिन पता नहीं.....। हर बात में ‘पता नहीं’, ‘पता नहीं’ कहते रहेंगे। अधिकारी अर्थात् सदा स्वतन्त्र और अधीन अर्थात् सदा परवश। तो परवश कभी भी मौज की जीवन में नहीं रह सकते। ब्राह्मण अर्थात् मौज की जीवन। अगर कोई भी समय मौज के बजाय मूँझते हो-ये क्या है, ये कैसा है, क्या यही होता है..... तो ये मौज नहीं, ये मूँझने की जीवन है। अगर कोई भी समय मौज की कमी अनुभव करते हो तो फिर से ये पाठ पहला याद करो कि मैं कौन हूँ? सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन कौन­सी आत्मा हूँ? इसके कितने जवाब आयेंगे? लम्बी लिस्ट है ना! रोज की मुरली में ‘मैं कौन’ का भिन्नभिन्न पाठ पढ़ते रहते हो, सुनते रहते हो।

तो फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। लाइट अर्थात् हल्कापन। हल्कापन का अर्थ है सिर्फ परिस्थिति के समय हल्का नहीं लेकिन सारे दिन में स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में लाइट रहे? वैसे ठीक हैं लेकिन स्वभाव­संस्कार में भी अगर हल्कापन नहीं है तो फरिश्ता कहेंगे? और हल्के की निशानी है-हल्की चीज़ सभी को प्यारी लगती है। कोई बोझ वाली चीज़ आपको देवे तो पसन्द करेंगे? और हल्की बढ़िया चीज़ हो तो पसन्द करेंगे ना? तो जो स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में हल्का होगा उसकी निशानी-वो सर्व के प्यारे और न्यारे होंगे। क्योंकि ब्राह्मण स्वभाव है, अलग स्वभाव नहीं। ब्राह्मण अर्थात् सबके दिल पसन्द स्वभाव­संस्कार वा सम्बन्ध­सम्पर्क वाले हो। मैजारिटी 95% के दिलपसन्द जरूर हो-इतनी रिजल्ट जरूर होनी चाहिये। 5% अभी भी मार्जिन दे रहे हैं, अन्त तक नहीं है लेकिन अभी दे रहे हैं। 95% सर्व के दिल पसन्द अर्थात् सर्व से लाइट। और वो हल्कापन बोल, कर्म और वृत्ति से अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विल पॉवर से उन्हों को भी पहचान दो। आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ परिवर्तन करने में सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। और फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी देह और पुरानी दुनिया से रिश्ता नहीं। ये सभी को याद है ना? कि अभी भी वो रहा हुआ है? पुरानी देह से लगाव है क्या? देह के सम्बन्ध से हल्के हो गये हो कि नहीं? काका, चाचा, मामा, उससे न्यारे हो गये हो ना? कि अभी भी हैं? न्यारे और प्यारे हैं? प्यारे हैं लेकिन न्यारे होकरके प्यारे बनते हैं, ये गलती हो जाती है। ये मिस हो जाता है। या तो न्यारे हो जाना सहज लगता है या तो प्यारा होना सहज लगता। लेकिन ये देह के सम्बन्ध काका, चाचा, मामा, ये फिर भी सहज हैं। सहज हैं या थोड़ा­थोड़ा स्वप्न में, संकल्प में आ जाता है? जब ब्राह्मण परिवार में कोई परिस्थिति आती है तो चाचा, काका, मामा याद आते हैं? बापदादा देखते हैं कि परिस्थिति के समय कई आत्माओं को ब्राह्मण परिवार के बजाय लौकिक सम्बन्ध जल्दी स्मृति में आता है। परिस्थिति किनारे के बजाय सहारा अनुभव कराती है। जब मरजीवा बन गये तो अगले जन्म के सम्बन्धी काका, चाचा, माँ, बाप, याद हैं क्या? स्वप्न में भी आते हैं क्या? तो सम्बन्ध, जन्म बदल गया ना। तो फरिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, यही परिभाषा बोलते हो ना? फिर समय पर कहाँ से निकल आते हैं? टूटा हुआ रिश्ता जुड़ जाता है? मरे हुए से जिन्दा हो जाते हो? फरिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, सब नया। बापदादा ने देखा कि फरिश्ता बनने में जो रूकावट होती है उसका कारण एक पहली सीढ़ी है देह भान को छोड़ना, दूसरी सीढ़ी जो और सूक्ष्म है वो है देह अभिमान को छोड़ना। देह भान और देह अभिमान। देह भान फिर भी कॉमन चीज़ है लेकिन जितने ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा बनते हैं उतना देह अभिमान रूकावट डालता है। और अभिमान अनेक प्रकार का आता है-अपने बुद्धि का अभिमान, अपने श्रेष्ठ संस्कार का अभिमान, अपने अच्छे स्वभाव का अभिमान, अपनी विशेषताओं का अभिमान, अपनी कोई विशेष कला का अभिमान, अपनी सेवा की सफलता का अभिमान। ये सूक्ष्म अभिमान देह भान से भी बहुत महीन हैं। अभिमान का दरवाजा तो जानते हो ना? मैं­पन, मेरापन-ये है अभिमान के दरवाजे। तो फरिश्ता का अर्थ ये नहीं कि सिर्फ देह भान वा देह के आकर्षण से परे होना वा देह के स्थूल सम्बन्ध से परे होना, लेकिन फरिश्ता अर्थात् देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारे होना। और अभिमान की निशानी-जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान भी जल्दी फील होता है। जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग बहुत जल्दी होती है। क्योंकि ‘मैं’ और ‘मेरे’ के दरवाजे खुले हुए होते हैं। फरिश्ते का यथार्थ स्वरूप है देह भान और देह के सम्बन्ध से, देह अभिमान से न्यारा। अगर कोई गुण हैं, कोई शक्ति है तो दाता को क्यों भूल जाते हैं? और दूसरी बात इससे सहज न्यारे होने का रास्ता वा विधि बहुत सहज है, एक अक्षर है। एक अक्षर में इतनी ताकत है जो देह अभिमान और देह भान सदा के लिये समाप्त हो जाता है। वो एक शब्द कौन­सा है? करनकरावनहार बाप करा रहा है। ‘करनकरावनहार’ शब्द भान और अभिमान दोनों को मिटा देता है। एक शब्द याद करना तो सहज है ना? और सारी पॉइन्ट्स भूल भी जाओ, भूलना तो नहीं है लेकिन अगर भूल भी जाओ तो एक शब्द तो याद कर सकते हो ना? करनकरावनहार बाबा है। तो देखो, फरिश्ते जीवन का अनुभव कितना सहज अनुभव होता। ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना-किस आधार से? सदा करनकरावनहार की स्मृति से समर्थ बन फरिश्ते बने। फॉलो फादर है ना? या फॉलो माया है? कभी माया भी मदर फादर बन जाती है, बड़ी अच्छी पालना और प्राप्ति कराती है। लेकिन वो सब है धोखे की प्राप्ति। पहले प्राप्ति, फिर धोखा। परखने की शक्ति तो है ना? माया है या बाप है-इसको समय पर परखना है। धोखा खाकर परखना, यह कोई समझदारी नहीं हुई। धोखा खाकर तो सब समझ जाते हैं लेकिन ज्ञानी तू आत्मा पहले यह परखकर स्वयं को बचा लेता है। तो समझा फरिश्ता किसको कहते हैं?

तीसरा है फरिश्ता सो देवता। अभी देवता बनना है या भविष्य में बनेंगे? देवता अर्थात् सर्व गुणों से सजे­सजाये। ये दिव्यगुण संगम के देवता जीवन के श्रृंगार हैं। इस समय दिव्य गुणों से सजे­सजाये होते हो तब ही भविष्य में स्थूल श्रृंगार से सजे­सजाये रहते हो। तो देवता अर्थात् दिव्यगुणों से सजे­सजाये। और दूसरा देवता अर्थात् देने वाला। लेवता नहीं, लेकिन देवता। तो मास्टर दाता हो? वा कभी लेवता, कभी देवता? चेक करो कि दिव्य गुणों का श्रृंगार सदा रहता है वा कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है, कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है? सम्पूर्ण सर्व गुण सम्पन्न...... यही देवता जीवन की निशानी है। ये गुण ही गहने हैं। तो देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की सर्व शक्तियाँ, फरिश्ते स्वरूप की डबल लाइट स्थिति और देवता स्वरूप की दातापन की निशानी और दिव्य गुणों सम्पन्न बने हैं? तीनों स्वरूप अनुभव करते हो? जैसे बाप के तीन सम्बन्ध-बाप, शिक्षक, सद्गुरू सदा याद रहते, ऐसे ये तीन स्वरूप सदा याद रखो। समझा? बनना तो आपको ही है या और कोई आने वाले हैं? आपको ही बनना है ना? आज ब्राह्मण, कल फरिश्ता और कल देवता। अपने फरिश्ते स्वरूप को ज्ञान के दर्पण में देखो। फरिश्ते सदा उड़ते रहते हैं और मैसेज देते रहते हैं। फरिश्ता आया, सन्देश दिया और उड़ा। तो वो फरिश्ते कौन हैं? आप ही हो ना? फलक से कहो-हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे। पक्का है ना? इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि विजयी। क्षत्रिय हो वा विजयी हो? क्षत्रिय कोई तो बनेगा? वो दूसरे बनेंगे! तो आप ब्राह्मण हो। चलते­चलते कभी क्षत्रिय नहीं बनना। अगर बार­बार क्षत्रिय बनते रहेंगे, युद्ध करते रहेंगे तो युद्ध के संस्कार ले जाने वाले कहाँ पहुँचेंगे? चन्द्रवंशी में या सूर्यवंशी में? तो चन्द्रवंशी तो पसन्द नहीं है ना, कि कभी­कभी हो गये तो भी हर्जा नहीं? तो सब कौन हो? ब्राह्मण? पक्के ब्राह्मण हो या थोड़े­थोड़े कच्चे? शक्तियाँ पक्की हैं? पाण्डव पक्के हैं? अगर पक्के हैं तो सदा खुशखबरी के पत्र आवें। माया आ गई, ये हो गया, पता नहीं क्या हो गया, कैसे हो गया-ये संकल्प में भी नहीं हो। बाप तो कहते हैं स्वप्न मात्र भी नहीं। स्वप्न में भी क्यों, क्या नहीं-ऐसे पक्के हो? शक्तियाँ महा पक्की हो? कहो, पाण्डव पक्के तो हम महा पक्के। क्योंकि शक्तियों को ही निमित्त बनाया है। तो निमित्त वाले ही कच्चे­पक्के होंगे तो औरों का क्या हाल होगा! पाण्डव बैकबोन हैं। बैकबोन बनना अच्छा लगता है ना? या सामना करना अच्छा लगता है? बैकबोन बनना अच्छा है, सेफ हो बहुत, नहीं तो मार खाते। अच्छा।

सभी अपने स्वीट होम में पहुँच गये। संकल्प था-जाना है, जाना है और अभी फिर क्या संकल्प है? अभी भी जाना है ना? सेवा अर्थ जा रहे हैं इसलिये खुशी­खुशी से जाते हैं। सेवा पर जायेंगे या दुकान पर जायेंगे, घर में जायेंगे, दफ्तर में जायेंगे? चाहे दफ्तर हो, चाहे घर हो, लेकिन सभी सेवा के स्थान हैं। सेवाधारियों की हर जगह सेवा है। तो मधुबन में आना और उमंग­उत्साह का खज़ाना भरना और फिर सेवा पर जाना। खुशी­खुशी से जाते हो ना? कि मजबूरी से जाते हो? सेवा माना खुशी। हिसाबकिताब है, कर्ज चुकाने जा रहे हैं, ऐसे नहीं। फर्ज चुकाने जा रहे हैं। घर में बगुले बहुत हैं। अगर बगुले नहीं होंगे तो ज्ञान किसको देंगे? हंस को हंस बनायेंगे क्या? बगुलों को ही तो हंस बनायेंगे ना? तो क्या याद रखेंगे? ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। पक्का रहेगा ना? कि ट्रेन में जाते­जाते एक भूल जायेगा? अपने स्थान पर जाते­जाते बाकी एक रह जाये-ऐसे तो नहीं होगा ना?

सभी आराम से रहे हुए हैं? डबल फॉरेनर्स फिर भी खटाराणे हैं और भारतवासी पटराने। पट में सोना सहज लगता है ना? पलंग याद तो नहीं आते? हाँ, कोई समय ऐसा आयेगा जो सभी को पलंग मिलेगा। लेकिन कब आयेगा? जब सारा आबू अपना बनायेंगे। ये संगठन का सुख पलंग और डनलप से भी ज्यादा है। यहाँ भी आराम से नींद तो आती है ना? ज्ञान अमृत पीते­पीते सो जाते हो, तो कितनी अच्छी नींद करेंगे। ज्ञान अमृत पीना और ब्रह्मा भोजन खाना। सभी को बना­बनाया भोजन मिलता है। सभी खुश हैं। खुशनसीब भी हैं और खुशमिजाज भी हैं। कि कभी सीरियस, कभी खुश मिजाज? कभी शक्ल में अन्तर नहीं आना चाहिए। जब क्रोध या गुस्सा आता है तो चेहरा लाल­पीला होता है ना? सदा चेहरा हर्षितमुख हो। इसको कहते हैं खुशमिजाज रहना। अच्छा, सभी जितना बाप को याद करते हैं और दिल से प्यार करते तो बाप सभी को आपसे पदमगुणा याद करते और प्यार करते हैं। बाप से पूछते हैं कि सारा दिन क्या करते हो? बाप क्या कहते हैं कि सारा दिन बच्चों को ही याद करते हैं। और काम ही क्या है? ये नशा है ना? दुनिया वाले बाप को याद करते हैं और बाप आपको याद करते हैं। अच्छा!

गुजरात - गुजरात को एवररेडी रहने, जी हाँ करने का वरदान मिला हुआ है। गुजरात में दो विशेषताओं की निशानी अभी भी दिखाई देती है और आगे भी दिखाते रहना है। वो दो निशानियाँ व दो विशेषतायें कौन­सी हैं? सन्तुष्टता और प्रसन्नता। प्रसन्नता भी तब रहती है जब सन्तुष्टता है। तो ये दो विशेषतायें विशेष हैं और सदा रहेंगी। समझा? गुजरात वाले कभी असन्तुष्ट न रहेंगे, न करेंगे। दो विशेषताओं के कारण सदा उड़ते रहेंगे। गुजरात विशेष ब्रह्मा बाप ने अपने संकल्प से स्थापन किया। और जन्मते ही सदा सहयोगी रहे हैं और अब भी हैं। समझा! सहयोग की अंगुली सदा है ही है। देखो, कोई भी प्रोग्राम होता है, सीजन भी होती है तो ब्रह्मा भोजन में गुजरात की माताओं को याद करते हैं ना। कितनी भी कोई रोटी बनावे लेकिन गुजरात जैसी नहीं बना सकते, ये विशेषता है। तो हर कार्य में एवररेडी रहने वाले। अच्छा!

इस्टर्न - इस्टर्न का सूर्य उदय हो गया। इस्टर्न जोन वाले सदा ही स्वयं को और औरों को पूज्य आत्मा बनाने की प्रेरणा देने वाले हैं। क्योंकि इस्टर्न में पूजा बहुत होती है। तो पुजारी बहुत हैं। तो पुजारियों को पूज्य बनाना - इस सेवा का चांस इस्टर्न जोन को बहुत है। और जो ज्यादा में ज्यादा पुजारी से पूज्य बनाते हैं, उसकी पूजा बहुत जन्म और बहुत विधिपूर्वक होती है। तो इस्टर्न वाले पूज्य बनाने के कारण बहुत बड़े पूज्य आत्मा अनेक जन्म बनने वाले हैं। यही सेवा करते हो ना? पुजारी से पूज्य बनते हैं या सिर्फ दर्शन करने वाले बनते हैं? क्या होता है? तो इस्टर्न जोन को पूज्य बनाने का विशेष वरदान भी मिला हुआ है और चांस भी मिला हुआ है। तो नशा रहता है कि हम पूज्य आत्मायें हैं और औरों को भी पूज्य बनाने के निमित्त हैं। समझा? इस्टर्न जोन की विशेषता - ब्रह्मा बाप की प्रत्यक्षता भूमि है। तो भूमि को भी वरदान है। इस्टर्न जोन में ही ब्रह्मा बाप में प्रत्यक्षता हुई। तो कितनी श्रेष्ठ भूमि है! भूमि भी श्रेष्ठ, सेवा भी श्रेष्ठ और सेवाधारी भी सदा श्रेष्ठ। अच्छा-(सभी ने खूब तालियां बजाई) ऐसे ही सदा खुशी में तालियाँ बजाते रहना। खुशी की तालियाँ कौन­सी होती हैं? खुशी की ताली बजाने आती हैं? ये तालियाँ तो स्थूल हैं। खुशी की ताली कौन­सी है? खुशी की ताली है मुस्कराना। यहाँ भले बजाओ, मना नहीं है लेकिन वहाँ जाकर खुशी की ताली सदा बजाते रहना। सभी ऐसे करना। आपकी खुशी और मुस्कराहट ऐसी हो जो आपको देखने वाले भी ताली बजाना शुरू कर दें।

बाम्बे, पूना - पूना और बाम्बे सदा ही िफक्र से फारिग रहने वाले। बाम्बे भी बेफिक्र बादशाहों का स्थान है और पूना भी बेफिक्र बादशाहों का स्थान है। तो सभी बेफिक्र हो? या थोड़ा­थोड़ा िफक्र है? स्वयं बेफिक्र बादशाह हैं और दूसरों के भी िफक्र को मिटाने वाले हैं। सभी को बेफिक्र बादशाह बनाने वाले हैं। तो बादशाही देने में होशियार हो ना। गरीब को बादशाह बनाना आता है? बेफिक्र बादशाह बनाने वाले और स्वयं भी सदा बेफिक्र रहने वाले, यही संगमयुग के श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषता है-बेफिक्र बादशाह। तो बादशाह हो कि कभी प्रजा भी बन जाते हो? सेवा में आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे। पूना वालों ने कितने सेवास्थान बनाये हैं? (22) और गीता पाठशालायें कितनी हैं? (300) तो देखो सेवा में होशियार हो ना। और बाम्बे में सेवाकेन्द्र कितने हैं? (36) और गीता पाठशालायें? वो अनगिनत! अच्छा है, वैसे तो चारों ओर सेवायें वृद्धि को प्राप्त कर ही रही हैं लेकिन सेवा की दुआओं द्वारा स्व की उड़ती कला और सर्व की उड़ती कला, ऐसी स्पीड तीव्र बनाते चलो। इसलिये बापदादा सेवा पर सदा खुश हैं। आप भी खुश हो ना? अभी 9 लाख पूरे नहीं किये हैं। अभी वो करना है लेकिन फिर भी कर रहे हैं, तो जो कर रहे हैं उस पर बापदादा खुश हैं। लेकिन अभी करने की मार्जिन है, समाप्त नहीं हुआ है। अभी कितने तैयार हुए हैं? (3 लाख) अभी तो डबल पड़ा है। अभी एक परसेन्ट बना है, दो परसेन्ट रह गया है। तो देखेंगे 9 लाख का हार (नौलखा हार) बाप को कौन पहनाता है? कौन तैयार करता है? अच्छा।

कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश - कर्नाटक में मैजारिटी स्नेही आत्मायें बहुत हैं, बाप के स्नेही मैजारिटी हैं। तो स्नेह सहज याद का साधन है। और जो स्वयं स्नेही होता है वो औरों को भी सहज स्नेही बना देता है। तो कर्नाटक को विशेष यह वरदान है वा विशेषता है। तो स्नेह है और स्नेह के कारण वृद्धि भी है। अभी स्नेह को प्रैक्टिकल में लाते भी हो और और ज्यादा स्नेह की शक्ति से और आगे बढ़ते रहना। तो स्नेह के कारण बाप को भूलते कम हैं लेकिन भूलते हैं तो बहुत भूलते हैं। क्यों? कभी­कभी भूलने के भी समाचार आते हैं। लेकिन स्नेह की विशेषता को कभी भी छोड़ना नहीं। ये एक ड्रामानुसार कर्नाटक को विशेषता मिली हुई है, इसको यूज कर भी रहे हैं, और भी आगे अन्डरलाइन कर आगे बढ़ते रहना। ऐसे तैयार हैं? अच्छा। टीचर्स ये समझती हैं कि आज के बाद कर्नाटक से स्नेह के बिना और कोई समाचार नहीं आयेंगे? हिम्मत है टीचर्स में? हाँ बोलो या ना बोलो। अच्छा, ऐसी गैरेन्टी है? जो समझते हैं कि इस विशेषता को प्रैक्टिकल में लाना ही है, वो हाथ उठाओ। अभी देखना कोई पत्र ऐसा नहीं आयेगा। ठीक है? मंजूर है? अच्छा है, स्नेही तो बहुत हैं। दृष्टि के इतने स्नेही हैं, भाषा नहीं समझें लेकिन स्नेह बहुत है। तो बापदादा स्नेह को देख खुश होते हैं। लेकिन सम्पूर्ण तो बनना है ना। तो थोड़ा भी स्नेही आत्माओं के बीच में रूकावट नहीं आनी चाहिये। इसलिये कर्नाटक सदा ये स्नेह का नाटक करके दिखाये। फिर भी बापदादा देखते हैं कि वृद्धि करने में भी होशियार हैं। लेकिन सदा स्नेही रहना और स्नेही बनाना, स्नेह का ही नाटक करना। समझा?

अच्छा - आन्ध्रा वाले क्या कमाल करेंगे? सेवा में स्व­उन्नति में नम्बरवन। ठीक है? नम्बरवन बनना है। अच्छा!

डबल विदेशी - डबल विदेशी क्रिसमस मनाने आये हैं, न्यु इयर मनाने आये हैं। तो पहले सभी डबल विदेशियों को क्रिसमस की मुबारक। क्योंकि चारों ओर से कार्ड और पत्र भी बहुत आये हैं ना। बापदादा के पास तो पोस्ट के पहले ही पहुँच जाते हैं। आप लोग एयरमेल से भेजते हो ना और बापदादा के पास एयरफ्लाई से पहुँच जाते हैं। विदेश में भी सेवा और स्व पुरूषार्थ की लहर अच्छी चल रही है और मैजारिटी सभी के अन्दर ये उमंग बहुत अच्छा है। दिन­रात एक ही लगन है कि विश्व में बाप के प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी से जल्दी लहरायें। क्योंकि विदेशियों की ड्युटी है भारत को जगाना। तो ऊंचा झण्डा लहरायेंगे तब तो सबकी नजर जायेगी। लेकिन बापदादा डबल विदेशियों को कमाल करने वाले भी कहते हैं। तो कौन­सी कमाल की है? दूरी को समीप अनुभव करने की कमाल की है। जितना देश दूर है ना, इतना दिल से समीप हैं। चारों ओर से आये हैं। बापदादा सभी डबल विदेशियों को विशेष विशेषता का वरदान देते हैं कि सदा दिल तख्त नशीन। बाप के दिल पर आप हैं और आपके दिल पर बाप है। रशिया वाले भी कमाल कर रहे हैं ना! आगे बढ़ते जाते हैं। रशिया वालों को सबसे ज्यादा किस बात की विशेष खुशी है? रशिया वालों को विशेष खुशी इस बात की है - जो स्वतन्त्रता की प्रिय इच्छा थी वो स्वतन्त्रता मिल गई। समझा? देश के हिसाब से, आत्मा के बन्धन के हिसाब से परतन्त्र बहुत रहे और अभी स्वतन्त्र हो गये। स्वतन्त्र है ना! तो स्वतन्त्रता का झण्डा रशिया में लहरा रहा है। शिव बाबा के झण्डे के साथ सभी स्थानों पर स्वतन्त्रता का झण्डा भी लहरा रहा है। और कितने खुश होते हैं। सारे परतन्त्रता के बन्धन से मुक्त हो गये और कितना सहज सर्व प्राप्तियाँ कर ली! सर्व प्राप्तियाँ हो गई ना! (हाँ जी) अच्छा है, हिम्मत भी अच्छी है। डबल विदेशी अपने को चलाने की हिम्मत और औरों को भी चलाने की हिम्मत अच्छी रखते हैं। और हिम्मत के कारण ही विदेश में सेवा में आगे बढ़ते हैं। तो विशेष हिम्मत और मदद दोनों के पात्र आत्मायें हैं। देखो, लन्दन वालों ने भी हिम्मत करके म्युजियम ले लिया ना! चाबी मिल गई ना! स्वर्ग की चाबी के पहले सेवा की चाबी मिल गई। अच्छी कमाल की। सबकी नजर जाती है कि आखिर भी ये राजयोगी हैं क्या? ये गुप्त ही गुप्त क्या कर रहे हैं? ऑस्ट्रेलिया या जो भी भिन्नभिन्न देशों से आये हैं तो बापदादा सभी बच्चों को विशेष क्रिसमस की सौगात दे रहे हैं कि ‘‘सदा दिल खुश मिठाई खाते रहो और खिलाते रहो।’’ स्वर्ग की बादशाही की सौगात तो सभी को मिली हुई है ना। सभी के हाथ में नई दुनिया, स्वर्ग का गोला है ना? पत्र और कार्ड भेजने में फास्ट गति वाले हैं। बापदादा समझते हैं कि अपने याद का सबूत वा निशानी भेजने में होशियार हैं। ठीक है? मौज में रहने वाले हैं ना? सभी स्थान के सिकीलधे, लाडले आत्माओं को विशेष बापदादा सम्मुख देख रहे हैं और सदा समीप रहने की विशेषता से आगे बढ़ते रहेंगे। समझा? अच्छा!

चारों ओर के सर्व ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता, तीनों स्वरूप के स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा एक शब्द ‘करनकरावनहार’ की स्मृति से स्वयं को डबल लाइट बनाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा देवता अर्थात् दाता बन देने वाले, सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा वरदानों को कर्म में लाने वाले कर्मयोगी आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और क्रिसमस की मुबारक और नमस्ते।

(सभी दादियाँ बापदादा के सम्मुख स्टेज पर खड़ी हैं)

दादी जानकी से - अच्छा है उड़ने में होशियार हो गई है। जीवन दान मिला है। और जितनी सेवा करते जाते तो जीवन की तन्दुरूस्ती और बढ़ती जाती है। क्योंकि सबकी दुआएं तन्दुरूस्त बना देती हैं। बाप की तो मदद है ही लेकिन दुआयें जवान बना रही हैं। जब किसको दुआयें मिलती हैं ना, या कोई भी खुशी, शान्ति की प्राप्ति होती है तो मुख से, दिल से यही दुआयें होती हैं कि हमारी आयु आपको लग जाये। कार्ड में भी क्या भेजते हैं कि हमारी आयु आपको मिल जाये। तो आप एक चक्र में हजारों की सेवा करते हो तो यही जार गुणा दुआयें मिल जाती हैं। अच्छा है, सभी अपनी­अपनी सेवा अच्छी करते रहते हो।

सभी का दादियों में शुभ मोह है ना? साधारण मोह तो नहीं है ना। दु:ख देने वाला मोह नहीं, सुख देने वाला। लेकिन जितना मोह, उतने ही निर्मोही। न्यारे भी और प्यारे भी। ऐसे है ना? कि सिर्फ प्यारे हैं, न्यारे नहीं? न्यारे और प्यारे दोनों का बैलेन्स रखने वाले। ये भी ड्रामा में आदि से विशेष आत्माओं का निमित्त बनने का पार्ट है। पालना ली भी बहुत है, जितनी आप लोगों ने पालना ली है डायरेक्ट बाप की, उतनी इन्होंने तो नहीं ली है। तो जितनी पालना ली है उतनी पालना करने का पार्ट भी मिला है। तो सब खुश हैं? हजार साल सभी की आयु बन जाये! हजार साल! घर नहीं जाना है? पुरानी दुनिया में ही रहना है?

अच्छा है, यह म्युजियम भी कमाल करेगा। ये है दृढ़ता का प्रत्यक्ष स्वरूप। तो दृढ़ता सफलता के लिये असम्भव से भी सम्भव करा देती है। हिम्मत वाले हैं। तो सभी जो विशेष निमित्त बने हैं उन्हों को विशेष याद प्यार। यह भी सेवा का अच्छा साधन है, कोई न कोई निमित्त बन अपना भाग्य बनाते हैं। देने वाले पहले ही ड्रामा में नूँधे हुए हैं। अच्छा।

चन्द्रमणि दादी से - ये भी चक्र लगाकर आई। चक्रवर्ता राजा में नाम पक्का हो गया ना। अच्छा है, सेवा भविष्य को प्रत्यक्ष कर रही है। नाम तो नहीं लेंगे ना कि ये ये हैं लेकिन सेवा स्वयं में प्रत्यक्ष कर रही है। कितने चक्रवर्ता राजा तैयार हो रहे हैं? एक चक्र में अनेक आत्मायें सन्तुष्ट हो जाती हैं तो उस चक्र में चक्रवर्ता राजा का वरदान होता है। कितनी आत्मायें सन्तुष्ट होती हैं? बहुत होती हैं। जितनी आयु बढ़ती जाती है उतने ज्यादा चक्र लगाते हैं।

दादी जी - अभी मेले का सोच रही है। दिल्ली और बाम्बे के भी बैठे हैं ना। कमाल करके ही दिखायेंगे। दिल्ली और बाम्बे निमित्त हैं ही। स्थापना के भी निमित्त हैं तो प्रत्यक्षता के भी निमित्त हैं। ऐसे ही विदेश में लन्दन, स्थापना के भी निमित्त है और प्रत्यक्ष करने के भी निमित्त है। अच्छा।