18-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ज्ञान सरोवर उद्घाटन के शुभ मुहूर्त्त पर अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य प्रात: 11.00 बजे

आज स्नेह सम्पन्न दिवस पर स्नेह के सागर बापदादा अपने अति स्नेही, स्नेह में समाए हुए लवलीन बच्चों से मिलने आए हैं। सबके स्नेह के गीत बापदादा सुनते रहे हैं और सुनते रहेंगे। हर एक बच्चे का स्नेह बापदादा देख, बाप भी गीत गाते हैं वाह मेरे स्नेही बच्चे वाह! बच्चों ने भी आज के समर्थ दिवस को सेवा में साकार किया है और करते रहेंगे। ब्रह्मा बाप भी बच्चों के गुणगान करते हैं। लेकिन साकार रूप से अव्यक्त रूप में और समीप वा साथ का विशेष अनुभव करा रहे हैं। क्या बच्चों को ऐसे लगता है कि बाप साथ नहीं है? लगता है? साथ जन्म लिया है, साथ सेवाधारी साथी रहे हैं और आगे भी साथ­साथ हैं और साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप को भी अकेला अच्छा नहीं लगता। आप लोगों को लगता है अकेले हैं? साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथ­साथ राज्य करेंगे। शिव बाप को आराम देंगे और आपके साथ ब्रह्मा बाप भी राज्य करेंगे। अपना राज्य याद है ना? आज सेवाधारी हैं और कल राज्य अधिकारी हैं। अपना राज्य सामने दिखाई दे रहा है ना? अपने राज्य का वो स्वर्ग का स्थान, स्वर्ग का दिव्य शरीर रूपी चोला सबके सामने स्पष्ट है ना। बस धारण किया कि किया। ऐसे अनुभव होता है ना? अपना भविष्य स्पष्ट है ना? आज वर्तमान है और कल भविष्य वर्तमान हो जायेगा-निश्चय है ना? पक्का निश्चय है?

सब पुराने­पुराने पक्के आए हैं ना। बापदादा को भी, विशेष ब्रह्मा बाप को भी खुशी है कि स्थापना के एक हैं आदि साथी रत्न, जो सामने बैठे हैं और दूसरे हैं स्थापना की वृद्धि के श्रेष्ठ रत्न। तो इस संगठन में ब्रह्मा बाप दोनों प्रकार के रत्नों को देख हर्षित हो रहे हैं। और बच्चे भी कितने उमंग­उत्साह से, शरीर का भी, सैलवेशन का भी ख्याल न करते हुए ठण्डी­ठण्डी हवाओं में पहुँच गए। ये ठण्डी हवाएं आप बच्चों से सलाम करने आती हैं। वैसे भी देखो जब राज्य तख्त पर बैठते हैं तो पीछे से क्या होता है? चंवर झुलाते हैं ना, तो उससे ठण्डी­ठण्डी हवाएं तो होती है। तो ये ठण्डी हवाएं भी चंवर झुलाने आती हैं। क्योंकि आप सब भी ऊंचे ते ऊंची विशेष आत्माएं हो। नशा है ना? तो आज ब्रह्मा बाप विशेष अपने जन्म के साथी और सेवा के साथी (सेवा के निमित्त पहले रत्न और जन्म के समय के पहले रत्न) दोनों को देख­देख हर्षित होते हैं।

अच्छा, यह हाल भी राज दरबार माफिक बनाया है। (ज्ञान सरोवर का ऑडोटोरियम हाल) राज दरबार लगती है तो गैलरी में बैठते हैं, तो गैलरी वाले भी अच्छे लग रहे हैं। (हाल में सभी भाई बैठे हैं, मातायें सब बाहर बैठी हैं) अच्छा आज तो माताओं के त्याग का भाग्य उन्हों को अभी मिल ही जाएगा। अच्छी तरह से तपस्या कर ही रही हैं। तपस्या का फल मिल जाएगा। ठण्डी­ ठण्डी हवा आ रही है तो धूप भी आ रही है। अच्छा।

ज्ञान सरोवर कहेंगे या स्नेह का सरोवर कहेंगे? ज्ञान सरोवर में स्नेह का सरोवर अच्छा है। ये ज्ञान सरोवर सेवा का विशेष लाइट हाउस और माइट हाउस है। इस धरनी से अनेक आत्माओं के भाग्य का सितारा चमकेगा। अनेक आत्माएं अपने बिछुड़े हुए बाप से मिलन मनायेंगी। अनेक आत्माओं के दु:ख दूर करने वाली धरनी है। सरोवर में आते ही सुख की लहरों में लहराने का अनुभव करते रहेंगे। इस ज्ञान सरोवर द्वारा तीन प्रकार के लोग, तीन प्रकार की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे-कोई वर्से के अधिकारी, कोई वरदानों के अधिकारी और कोई सिर्फ दुआओं के अधिकारी। तो तीन प्रकार के प्राप्ति सम्पन्न। ये श्रेष्ठ सरोवर है। साधारण आत्माएं आयेंगी और फरिश्ता जीवन का अनुभव कर जायेंगी। साथ­साथ अनेक ब्राह्मण आत्माएं तपस्या के सूक्ष्म अनुभूतियों द्वारा अव्यक्त पालना और सूक्ष्म योग के सहज अनुभव और प्राप्तियों का लाभ लेंगी। कई ब्राह्मण आत्माओं की श्रेष्ठ आशायें स्व उन्नति की पूर्ण होने का साधन बहुत श्रेष्ठ है। स्थान तो कॉमन है लेकिन स्थिति श्रेष्ठ अनुभव कराने वाला है। विधिपूर्वक ज्ञान के नॉलेज को विश्व में प्रत्यक्ष करने का स्थान है। और सबसे पहला फायदा तो बाप और बच्चों के मिलने का है। देखो, डबल संख्या में मिल तो रहे हैं ना! चाहे बाहर बैठे हैं या कहाँ भी रहे हैं, डबल संख्या तो है ना। तो सबसे प्रत्यक्षफल बच्चों की संख्या डबल मिलन मना रही है। समझा? ऐसे सरोवर में, सरोवर बनाने वालों को, सहयोग देने वालों को, संकल्प से हिम्मत दिलाने वालों को, स्नेह के हाथों से सरोवर को सम्पन्न करने वाले देश विदेश के बच्चों को पदमगुणा मुबारक हो, मुबारक हो।

यह पहला ही स्थान है जिसमें छोटे बच्चों से लेकर जो भी ब्राह्मण हैं उनके सहयोग का तन­मन­धन लगा है। तन से इंट नहीं भी उठाई है लेकिन तन से अपने­अपने साथियों को साथी बनाया है, उमंग दिलाया है तो ऐसे स्नेह, सहयोग, शक्ति की बूँद­बूँद से सजा हुआ सरोवर श्रेष्ठ सफलता का अनुभव कराता रहेगा। तो सभी सहयोगियों को, कोने­कोने के विदेश, देश वालों को और विशेष जिन्होंने ठण्डी­ठण्डी हवाओं में, बारिश में भी हिम्मत नहीं हारी है, उन्हों को विशेष मुबारक है, मुबारक है। बापदादा जानते हैं बच्चों ने थोड़ी तकलीफ तो उठाई लेकिन प्यार से उठाई है। मोहब्बत में मेहनत का अनुभव नहीं किया है और जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की पदमगुणा मदद भी है ही। इसलिये बापदादा मसाज करते रहे हैं, करते रहेंगे। अच्छा, यहाँ के इंजीनियर्स हाथ उठाओ। समय पर सम्पन्न करने की बहुत­बहुत मुबारक हो। आपको बैठने योग्य तो बना कर दे दिया ना! बाप तो आ गए ना! वायदा ही ये था। आप सब भी इन्हों को मुबारक दे रहे हो ना! जिन्होंने हाल को सजाया वो कहाँ है? ये मुन्नी पार्टी है। देखो, स्नेह का सरोवर है ना तो कलकत्ता से यहाँ फूल आ गए। (कलकत्ता से बहुत सुन्दर रंगय्बिरंगे फूल आये हैं जिससे सारी स्टेज सजी हुई है) अच्छा! आप सबको भी पहुँचने की मुबारक है और माताओं को पदमगुणा मुबारक है।

(जाल मिस्त्री, जिन्होंने हाल में साउण्ड का प्रबन्ध किया है) देखो अगर इनकी हिम्मत नहीं होती तो आप मुरली नहीं सुन सकते थे। सभी मुरली के पीछे तो दीवाने हैं ना। मुरली का साधन सबसे श्रेष्ठ है। कितना अच्छा प्रबन्ध किया है। आराम से सुनने आ रहा है। बाहर भी सुनाई दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा प्रबन्ध किया है। जो भी सेवा के निमित्त हैं एक­एक डिपार्टमेन्ट का नाम नहीं लेते हैं लेकिन हर एक समझे मुझे स्नेह और सहयोग की मुबारक। अच्छा, सबसे पहली मुबारक किसको दें? दादी को। (बापदादा को) बापदादा तो देने वाला है ना। बापदादा सदा कहते हैं कि बच्चों का नम्बरवन सर्वेन्ट है तो बाप है। बाप तो सदा सेवाधारी है लेकिन बच्चे भी सेवा में बाप से भी आगे सहयोगी हैं। क्या एक­एक का नाम लें लेकिन दिल में एक­एक बच्चे का नाम ले रहे हैं और याद­प्यार दे रहे हैं। सभी डिपार्टमेन्ट को मुबारक है। लाइट के बिना भी काम नहीं, माइक के बिना भी काम नहीं। लाइट, माइट, माइक सभी को मुबारक।

(टीचर्स से) आप लोग नहीं होते तो सेन्टर्स नहीं खुलते। एक­एक ने देखो कितने सेन्टर्स खोले हैं। यहाँ सेवा की राजधानी और वहाँ राज्य की राजधानी होगी। अच्छा। पाण्डव भी देख रहे हैं। अच्छे­अच्छे पाण्डव भी पहुँच गये हैं। पाण्डव के बिना भी गति नहीं लेकिन पाण्डवों ने शक्तियों को आगे रखा है। आप लोगों ने रखा है कि बाप ने रखा है? फॉलो फादर किया है। वैसे आप सभी भी बाप के समीप बैठे हो। ऐसे नहीं समझना ये ही हैं समीप। लेकिन जो सामने हैं वो अति समीप हैं।

डबल फारेनर्स भी आए हैं। यह भी कमाल कर रहे हैं। देशय्विदेश में प्रत्यक्ष करने की सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं और करते रहेंगे। अच्छा! (फिर बापदादा ने ज्ञान सरोवर की विशाल स्टेज पर खड़े होकर इंजीनियर्स के साथ मोमबत्ती जलाई तथा मुख्य टीचर्स एवं दादियों के साथ केक काटी, फिर मुख्य दादियां बापदादा के साथ हाल के बाहर प्लाजा में आई, जहाँ पर बापदादा ने 2 हजार से भी अधिक संख्या में बैठी हुई माताओं से हाथ हिलाते हुए मुलाकात की तथा ध्वज फहराया, तत्पश्चात् जो महावाक्य उच्चारण किये वह इस प्रकार हैं):­

बापदादा, आप सभी बच्चों के दिल में जो बाप के स्नेह का झण्डा लहरा रहा है, उसको देख हर्षित हो रहे हैं। यह सेवा के लिए है और बाप बच्चों के बीच में दिल में स्नेह का झण्डा है। तो जैसे यह फ्लैग सेरीमनी करते हो तो ऊंचा लहराते हो ना, ऐसे ही सदा स्नेह में ऊंचे ते ऊंचा लहराते रहो। यह झण्डा भी बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा है। यह कपड़े का झण्डा है लेकिन इस कपड़े के झण्डे में आप सबका आवाज समाया हुआ है कि ‘‘बाप आ गये हैं।’’ यही प्रत्यक्षता का झण्डा अभी कोने­कोने में लहरायेगा। और आप सभी वह लहराया हुआ प्रत्यक्षता का झण्डा देखेंगे, सुनेंगे, हर्षित होंगे। तो आज ज्ञान सरोवर में है, कल विश्व में यह झण्डा लहरायेगा। आप सभी को तपस्या करनी पड़ी उसकी मुबारक लेकिन बहुत आराम से अच्छे बैठे हो और जितना आपको देखने में आ रहा है उतना अन्दर पीछे वालों को नहीं। आप बाहर नहीं थे लेकिन दिल के अन्दर थे। सब बहुत­बहुत खुशनसीब हो इसलिये सदा खुशी बांटते रहना। खुश रहना और खुशी बांटते रहना।