19-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख आज्ञाकारी और सर्वंश त्यागी बनो

आज बेहद का बापदादा अपने बेहद के सेवा साथियों को देख रहे हैं। दो प्रकार के साथी हैं-एक हैं स्नेह सम्बन्ध का साथ निभाने वाले और दूसरे हैं स्नेह, सम्बन्ध और सेवा का साथ निभाने वाले। दोनों प्रकार के साथियों को देख रहे हैं। चाहे विश्व के लास्ट कोने में भी हैं लेकिन बापदादा के सामने हैं। बापदादा और बच्चों का वायदा है कि कहाँ भी रहेंगे, जहाँ भी हैं लेकिन सदा साथ हैं। ये ब्राह्मण जीवन आदि से अन्त तक बाप और बच्चों का अविनाशी साथ है। चाहे बच्चे साकार में हैं और बापदादा आकार निराकार हैं लेकिन अलग हैं क्या? नहीं है ना! तो दूर हो या समीप हो? ये दिल की समीपता साकार में भी समीपता अनुभव कराती है। चाहे किसी भी देश में हैं लेकिन दिल की समीपता साथ का अनुभव कराती है। अलग हो नहीं सकते, असम्भव है। परमात्म वायदा कभी टल नहीं सकता। परमात्म वायदा भावी बन जाता है तो भावी टाली नहीं टले। इसलिये सदा समीप हैं, सदा साथी हैं और साथी बन हाथ में हाथ, साथ लेते हुए कितने मौज से चल रहे हैं। मौज है कि मेहनत है? थोड़ी­थोड़ी मेहनत है? जब कोई बात आ जाती है तो बाप किनारे हो जाता है। कोई बात को नहीं लाओ तो बाप नहीं जायेगा। बात बाप को किनारे करती है। जैसे बीच में कोई पर्दा आ जाये, तो पर्दा आने से किनारा हो जाता है ना! तो ये बात रूपी पर्दा बीच­बीच में आ जाता है। लेकिन लाने वाला कौन? पर्दे का काम है आना और आपका काम क्या है? हटाना या थोड़ा­थोड़ा मजा लेना? बापदादा देखते हैं, बच्चे कभी­कभी बातों में बड़े मजे लेते हैं।

जिससे प्यार होता है, प्यार की निशानी है साथ रहना। साथ रहने का मतलब यह नहीं है कि आबू में रहना। आबू में तो देखो अभी थोड़ी भी संख्या ज्यादा है तो पानी की मुश्किल हो गई है ना! तो साकार में साथ रहना नहीं लेकिन दिल से साथ निभाना। अगर दिल से साथ नहीं निभाते तो मधुबन में होते भी दूर हैं। विदेश और लास्ट देश में रहते भी दिल से समीप हैं तो वो साथ हैं। इसीलिये बापदादा को दिलाराम कहते हैं, शरीर राम नहीं कहते। तो दिल बाप में है ना? बाप के दिल में आपका दिल है और आपके दिल में बाप का दिल है। तो दिल जाने इस रूहानी साथ को। अनुभवी हो ना? कि यहाँ से जायेंगे तो कहेंगे दूर हो गये? नहीं। सदा साथ निभाना-यह कोई भी आत्मा, आत्मा से नहीं निभा सकती। एक ही परम आत्मा आत्माओं से साथ निभा सकता है। और ये परमात्म साथ निभाने का भाग्य आप सभी बच्चों को ही है ना?

(आज पूरे हाल में सभी भाई­बहिनें पट पर बैठे हुए हैं) बहुत अच्छी सीन है। बापदादा को आज की सभा का दृश्य देख करके यादगार याद आ रहा है। यादगार में रूद्र माला दिखाते हैं, उसमें सिर्फ फेस दिखाई देते हैं, शरीर नहीं दिखाई देते। तो यहाँ से भी सिर्फ फेस ही दिखाई दे रहे हैं, बाकी कुछ नहीं दिखाई देता। तो रूद्र माला का यादगार दिखाई दे रहा है। एक के पीछे एक बैठे हैं ना तो शरीर छिप गये हैं, फेस दिखाई दे रहे हैं।

ये है स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप - ब्रह्मा बाप से सभी का स्नेह है तब तो आये हो ना! और कहलाते भी सभी ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी हो, शिव कुमार, शिव कुमारी नहीं कहते। तो ब्रह्मा बाप से ज्यादा प्यार है ना! और ब्रह्मा बाप का भी सदा बच्चों से प्यार है। तभी तो अव्यक्त होते भी अव्यक्त पालना कर रहे हैं। अव्यक्त पालना मिल रही है ना? या आप कहेंगे कि हमने ब्रह्मा बाबा का अनुभव नहीं किया है? ब्रह्माकुमार­ब्रह्माकुमारी कहलाते हो तो क्या बिना बाप की पालना के पैदा हो गये! अगर ब्रह्मा बाप की पालना नहीं होती तो आज सिर्फ निराकार बाप की पालना से यज्ञ की रचना और यज्ञ की वृद्धि नहीं होती। डबल फॉरेनर्स को ब्रह्मा बाप की पालना मिलती है ना? (हाँ जी) देखो, फॉरेन में बाप जाता है, तो इण्डिया में नहीं करता है क्या! तो उल्हना तो नहीं देते कि बाबा हमने देखा ही नहीं! सदा मिलते, सदा देखते, सदा साथ रहते हैं। साकार शरीर में, साकार रूप में तो सदा साथ नहीं दे सकते लेकिन अव्यक्त रूप में सभी को साथ दे सकते हैं। जब चाहो मिलन के दरवाजे खुले हुए हैं। अव्यक्त वतन में नहीं कहेंगे कि अभी जगह नहीं है, अभी टाइम नहीं है, नहीं। देह में देह के बंधन हैं और अव्यक्त में न देह का बंधन है, न देह की दुनिया के कायदों का बंधन है। यहाँ तो कायदे रखने पड़ते हैं ना-आगे बैठो, पीछे बैठो। अभी भी समय प्रमाण बहुत­बहुत­बहुत भाग्यवान हो! फिर भी बैठने की जगह तो मिली है ना! फिर तो खड़े रहने की भी जगह मुश्किल होगी। क्योंकि आप सभी को औरों को चांस देना पड़ेगा। अभी तो आप लोगों को चांस मिला है। जैसे अभी देखो मधुबन वालों को चांस देना पड़ा ना! (सभी मधुबन निवासी तथा आबू निवासी सभी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) ये भी परिवार का प्यार है।

ब्रह्मा बाप से प्यार अर्थात् बाप समान बनना। निराकार के समान बनना, वो थोड़े समय का अनुभव करते हो। लेकिन ब्राह्मण अर्थात् सदा ब्रह्मा समान ब्रह्माचारी। जो ब्रह्मा बाप का आचरण वो ही सर्व ब्राह्मणों का आचरण अर्थात् कर्म। उच्चारण भी ब्रह्मा बाप समान है, आचरण भी ब्रह्मा बाप समान है, जिसको कहते हो फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप के हर कदम पर कदम रखना इसको कहा जाता है फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप ने बाप के श्रीमत पर पहला कदम क्या उठाया?

पहला कदम आज्ञाकारी बने। जो आज्ञा मिली उसी आज्ञा को प्रत्यक्ष स्वरूप में लाया। तो चेक करो कि आज्ञाकारी के पहले कदम में फॉलो फादर हैं? अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध, सम्पर्क में जो आज्ञा मिली हुई है उसी आज्ञा प्रमाण चलते हैं? कि कोई आज्ञा पालन होती है और कोई नहीं होती है? संकल्प भी आज्ञा प्रमाण है, कि मिक्स है? अगर मिक्स है तो फुल आज्ञाकारी हैं या अधूरे आज्ञाकारी? हर समय के संकल्प की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। अमृतवेले क्या संकल्प करना है ये भी स्पष्ट है ना! तो फॉलो करते हो कि कभी परमधाम में चले जाते हो और कभी निद्रालोक में चले जाते हो? हर कर्म में, हर समय कदम पर कदम है? बाप का कदम एक और बच्चे का कदम दूसरा हो तो उसे आज्ञाकारी नहीं कहेंगे ना! चाहे परमार्थ में, चाहे व्यवहार में, दोनों में जो जैसी आज्ञा है वैसे आज्ञा को पालन करना-इसकी परसेन्टेज चेक करो। चेक करना आता है? तो पहला कदम आज्ञाकारी बने, इसलिये आज्ञाकारी को सदा बाप की दुआएं स्वत: मिलती हैं और साथ­साथ ब्राह्मण परिवार की भी दुआएं हैं। तो चेक करो कि जो भी संकल्प किया, चाहे स्व प्रति, चाहे सेवा के प्रति, चाहे स्थूल कर्म के प्रति या अन्य आत्माओं के प्रति उसमें सबकी दुआयें मिली? क्योंकि आज्ञाकारी बनने से सर्व की दुआयें मिलती हैं और यदि दुआयें मिल रही हैं तो उसकी निशानी है कि दुआओं के प्रभाव से दिल सदा सन्तुष्ट रहेगी, मन सन्तुष्ट रहेगा। बाहर की सन्तुष्टता नहीं लेकिन मन की सन्तुष्टता। और मन की सन्तुष्टता यथार्थ है वा मियाँ मिù§ हैं-इसकी निशानी, अगर यथार्थ रीति से यथार्थ आज्ञाकारी हैं, दुआएं हैं तो सदा स्वयं और सर्व डबल लाइट रहेंगे। अगर डबल लाइट नहीं रहते तो समझो मन की सन्तुष्टता नहीं। बाप की वा परिवार की दुआएं भी नहीं मिल रही हैं। परिवार की भी दुआएं आवश्यक हैं। ऐसे नहीं समझो कि बाप से हमारा कनेक्शन है, बाप की तो दुआएं हैं, परिवार से नहीं बनता कोई हर्जा नहीं। पहले भी सुनाया कि माला में सिर्फ युगल दाना नहीं है, उससे माला नहीं बनती। तो माला में आना है इसलिए पूरा लक्ष्य रखो कि हरेक आत्मा मुझे देखकर खुश रहे, देख करके हल्के हो जायें, बोझ खत्म हो जाए। तो दिल की सन्तुष्टता वा आज्ञाकारी की दुआएं स्वयं को भी लाइट और दूसरे को भी लाइट बनायेंगी। इससे समझो कि आज्ञाकारी कहाँ तक हैं? जैसे ब्रह्मा बाप को देखा हर एक छोटा­बड़ा सन्तुष्ट होकर खुशी में नाचता। नाचने के टाइम तो हल्के होंगे ना तभी तो नाचेंगे ना। चाहे कोई मोटा है लेकिन मन से हल्का है तो भी नाचता है और पतला है लेकिन भारी है तो नहीं नाचेगा। तो बोल ऐसे हों जो स्वयं भी अपने आपसे सन्तुष्ट हो और दूसरे भी सन्तुष्ट रहें। ऐसे नहीं, हमारा तो भाव नहीं था, हमारी तो भावना नहीं थी, लेकिन भाव और भावना पहुँचती क्यों नहीं? अगर सही है तो दूसरे तक वायब्रेशन्स क्यों नहीं जाता है? कोई तो कारण होगा ना? तो चेक करो दुआओं के पात्र कहाँ तक बने हैं?

जितना अभी बाप और ब्राह्मण आत्माओं की दुआओं के पात्र बनेंगे उतना ही राज्य के पात्र बनेंगे। अगर अभी ब्राह्मण परिवार को सन्तुष्ट नहीं कर सकते, तो राज्य क्या चलायेंगे! राज्य को क्या सन्तुष्ट करेंगे! क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें आपकी रॉयल फैमिली बनेंगे तो जो फैमिली को सन्तुष्ट नहीं कर सकते वो प्रजा को क्या करेंगे? संस्कार तो यहाँ भरना है ना! कि वहाँ योग करके भरेंगे! यहाँ ही भरना है। अगर वर्तमान ब्राह्मण परिवार में कारण का निवारण नहीं कर सकते, कारण­कारण ही कहते रहते हैं, तो जहाँ कारण है वहाँ निवारण शक्ति नहीं है। अगर परिवार में निवारण शक्ति नहीं तो विश्व के राज्य को क्या निवारण करेंगे! क्योंकि आपके राज्य में हर आत्मा सदा निवारण स्वरूप है। वहाँ कारण होंगे क्या? जैसे अभी राज्य सभा में कारण बताते हैं-ये कारण है, ये कारण है, ये कारण है...... वहाँ ऐसे राज्य दरबार होगी क्या? वहाँ तो सिर्फ खुश खैराफत पूछेंगे। सिर्फ दरबार नहीं है लेकिन बहुत अच्छा मिलन है। तो कारण कहकर अपने को दुआओं से वंचित नहीं करो। ब्रह्मा बाप ने कारण को निवारण किया इसीलिये नम्बरवन हुआ। बापदादा के पास सभी के कारणों के फाइल ही इकट्ठे होते हैं। सभी के फाइल हैं-किसका छोटा, किसका बड़ा फाइल है। तो अभी भी फाइलें रखनी है, फाइल बढ़ाते रहना है या रिफाइन होना है? तो आज से फाइल सब खत्म कर दें? फिर दूसरा नया फाइल तो नहीं रखना पड़ेगा। अगर नया फाइल रखा तो फाइन पड़ेगा। सोच लो! बोलो-खत्म करें कि थोड़ा दिन रखें? शिव रात्रि तक रखें! जो समझते हैं शिवरात्रि तक थोड़ी मार्जिन मिलनी चाहिये, तब तक पुरूषार्थ करके रिफाइन हो जायेंगे, वो हाथ उठाओ। अच्छा है, हिम्मत रखना भी अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ अभी हिम्मत नहीं रखना। ऐसे तो नहीं बापदादा के सामने थे तो हिम्मत थी, नीचे उतरे तो थोड़ी हिम्मत कम हो गई और अपने देशों में गये तो और कम हो गई। कोई बात आई तो और कम हो गई। ऐसे तो नहीं करेंगे? देखो जब कोई भी कारण सामने आता है और कारण के कारण हिम्मत कम होती है, कमज़ोरी आती है और जब वो बात समाप्त हो जाती है तो अपने ऊपर शर्म आती है ना! अपने ऊपर ही संकोच होता है कि ये अच्छा नहीं किया, ये अच्छा नहीं हुआ। करके और फिर पश्चाताप् करे...... ये तो आपकी प्रजा का काम है या आपका है? पश्चाताप् वाले क्या राजा बनेंगे? तो सोचो साक्षी स्थिति के सिंहासन पर बैठ जाओ और अपने आपको ही जज करो। अपना जज बनना, दूसरे का जज नहीं बनना। दूसरे का जज बनना सभी को आता है, दूसरे का जज बहुत जल्दी बन जाते हैं और अपना वकील बन जाते हैं। तो साक्षीपन के सिंहासन पर अपने आपका निर्णय बहुत अच्छा होगा। सिंहासन के नीचे रहकर जज करते हो तो निर्णय अच्छा नहीं होता। सेकण्ड में तख्तनशीन बन जाओ। ये स्थिति आपका तख्त है। यथार्थ सहज निर्णय का तख्त ये साक्षीपन की स्थिति है। साक्षी नहीं होते हैं तो दूसरे की बात, दूसरे की चलन वो ज्यादा सामने आती है, अपनी नहीं आती। अगर साक्षी होकर देखेंगे तो अपनी भी नजर आयेगी, दूसरे की भी नजर आयेगी। फिर जजमेन्ट जो होगी वो यथार्थ होगी, नहीं तो यथार्थ नहीं होती। बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि ड्रामा में जो भी बातें आती हैं उन बातों में बहुत अच्छा अक्ल है लेकिन कभी­कभी ब्राह्मण बच्चों में अक्ल थोड़ा कम हो जाता है। बात आती है और चली जाती है, लेकिन ब्राह्मण बच्चे बात को पकड़कर बैठते हैं। बात रूकती नहीं, चली जाती है लेकिन स्वयं बात को नहीं छोड़ते। तो बातों में अक्ल ज्यादा हुआ या ब्राह्मणों में? बातें अक्ल वाली हुई ना! कई बच्चे कहते हैं दो दिन से ये बात चल रही है, दो घण्टे ये बात चली और दो ण्टे में गँवाया कितना? दो दिन में गँवाया कितना? तो अक्ल वाले बनो।

तो पहला कदम आज्ञाकारी, दूसरा कदम है सर्वंश त्यागी। पहले आज्ञाकारी की दुआएं मिली और दुआओं के बल से सर्वंश त्यागी। तो त्याग में भी नम्बरवन एग्जाम्पल ब्रह्मा बना। देह के सम्बन्धों का त्याग बड़ी बात नहीं है। लेकिन देह के पुराने स्वभाव­संस्कार का त्याग जरूरी है। सम्बन्ध का त्याग तो और धर्म में भी करते हैं लेकिन स्वभाव­संस्कार का सर्व वंश सहित त्याग करना-इसको कहा जाता है सर्वंश त्यागी। अगर अंश मात्र भी देह का स्वभाव­संस्कार रह जाता है तो समय प्रति समय वो वंश बढ़ता रहता है और वो वंश इतना तेज होता है जैसे लौकिक परिवार में देखा है ना बड़े बूढ़े बड़े शीतल होंगे लेकिन पोत्रे­धोत्रे बहुत तेज होंगे। तो अगर कोई वंश भी पुराना रहा हुआ है वो भी उल्टी कमाल करके दिखाता है। उस समय की हालत बापदादा देखते हैं बिल्कुल ऐसे लगता है जैसे कोई दुनिया में दिवाला निकालते हैं-तो सेकण्ड में लखपति से कखपति बन जाते हैं। सारे खज़ाने सेकण्ड में खत्म। फिर मेहनत करनी पड़े ना। इसलिये सर्वंश त्यागी अर्थात् देह के सम्बन्ध और देह के पुराने स्वभाव­संस्कार से त्यागी। कभी भी अपनी अवस्था को चेक करो अगर धोखा देता है तो कौन देता है? स्वभाव­संस्कार ना! तो त्याग का भाग्य समाप्त करने वाला ये स्वभाव­संस्कार हैं। और बापदादा तो ब्राह्मणों के लिये और अण्डर लाइन करते हैं कि त्याग का भी त्याग करो। ‘‘मैं त्यागी हूँ’’-इस अभिमान का भी त्याग। इसको कहा जाता है त्याग का भी त्याग। मैंने किया, सहन किया, ये किया, ये किया-ये कथायें नहीं करो। अगर किसने सहन भी किया तो सहन के पीछे शक्ति है। सिर्फ सहन नहीं है, सहन करना अर्थात् शक्ति धारण करना, इसलिये सहन शक्ति कहते हैं। सहन करना अर्थात् शक्ति रूप को प्रत्यक्ष रूप दिखाना। तो अच्छा ही हुआ ना। क्या सहन किया? और ही लाभ ले लिया ना! और किसके प्रति सहन किया? बाप के आज्ञाकारी बनने के लिये सहन किया, दूसरे के लिये नहीं सहन किया। बाप की आज्ञा मानी। तो आज्ञा की दुआएं मिलेगी ना! तो सहन क्या किया? दुआएं ली ना! बात को सामने रखते हो तो सोचते हो बहुत सहन किया, कब तक सहन करेंगे, सहन करने की भी कोई हद होनी चाहिये। लेकिन जितना बेहद सहन, उतनी बेहद की दुआएं। क्योंकि बाप के आज्ञाकारी बन रहे हैं। बाप ने कहा है सहन करो। तो आज्ञा को मानना खुशी की बात है या मजबूरी की बात है? मजबूरी से सहन नहीं करो। कई सहन करते भी हैं और कहते भी हैं कि मेरे जैसा कोई सहन नहीं करता। फिर दादियों को आकर बताते हैं-आपको नहीं पता हमने कितना सहन किया! लेकिन नुकसान क्या किया! फायदा ही इकट्ठा हुआ।

तो त्याग की परिभाषा समझी? देखो भक्ति मार्ग में भी ये निशानी है कि जब बलि चढ़ाते हैं तो अगर बलि का बकरा चिल्लाता है तो वो प्रसाद नहीं माना जाता। एक धक से बिना चिल्लाये स्वाहा हो जाता है तो प्रसाद हो जाता है। तो बलि के बकरे को भी कहते हैं चिल्लाये नहीं। और आप कहते हैं सहन किया, सहन किया तो क्या ये चिल्लाना नहीं हुआ? चाहे मन में, चाहे मुख से अगर थोड़ा भी चिल्लाते हैं तो प्रसाद नहीं हुआ। बाप को स्वीकार नहीं होता है तो दुआएं कैसे देगा? तो क्या करेंगे, थोड़ा­थोड़ा अन्दर चिल्लायेंगे? थोड़ा कोने में, बाथरूम में, छिपकर एक­दो आंसू बहायेंगे? थोड़ी तो छुट्टी मिलनी चाहिये! माताओं को बच्चे तंग करें तो क्या करेंगी? थोड़ा मन में तो रोयेंगी? मातायें मन में रोती हो? थोड़ा­थोड़ा रोती हो! और भाई क्या करते हैं? वो आंखों से नहीं रोते हैं लेकिन क्रोध करके अन्दर से रो लेते हैं। जोश आना भी रोना है। तो पाण्डव सेना क्या समझती है? थोड़ा रोने की छुट्टी चाहिये? जिसको थोड़ी­थोड़ी छुट्टी चाहिये वो हाथ उठाओ। नहीं चाहिये? तो आज से रोने का फाइल भी खत्म, कि सिर्फ ताली बजाकर खुश कर दिया? फिर तो आज से पोस्ट भी कम हो जायेगी। पोस्ट का फालतु खर्चा ज्ञान सरोवर के लिए बच जायेगा, जब कोई ऐसी बात आये तो पोस्ट के पैसे भण्डारी में डाल देना। ज्ञान सरोवर में तो अभी भी लगना है ना।

ज्ञान सरोवर से प्यार सभी का बहुत अच्छा है। ज्ञान सरोवर से प्यार अर्थात् सेवा से प्यार। स्थान से प्यार नहीं है लेकिन सेवा के निमित्त स्थान है तो सेवा से प्यार। जो भी सभी यहाँ बैठे हैं कोई ऐसा है जिसने ज्ञान सरोवर में अपना कणादाना नहीं डाला है? जिन्होंने डाला है वो हाथ उठाओ। सभी ने किया है। मधुबन वाले, हॉस्पिटल वाले, सेवाधारी सभी डालते हैं? तो सबके सहयोग से देखो कितना अच्छा सेवा का स्थान बन गया। सभी को अच्छा लगा ना, पसन्द आया? हाँ, रहने में थोड़ी तकलीफ हुई है लेकिन ठीक हो जायेगा। फिर दूसरे बारी आयेंगे तो मौज मनायेंगे। अभी तो कभी गरम पानी नहीं, कभी ठण्डा पानी नहीं। नये मकान में होता है। लेकिन ज्ञान सरोवर में रहने वाले सभी खुश हैं? सुनाया ना आप तो फिर भी बहुत­बहुत­बहुत भाग्यवान हो। भक्ति मार्ग के मेले में तो मिट्टी पर सोते हैं, यहाँ गदेला, रजाई तो मिली है ना! तो सब अच्छे सोये हुए हैं? नया बिस्तरा है, नया मकान है। फिर भी देखो इतनों को आने का चांस तो मिला है ना! अच्छा, दादियों को ज्ञान सरोवर पसन्द है ना!

ज्ञान सरोवर में दो लक्ष्य हैं - एक तो विशेष सेवा, दूसरा ब्राह्मणों का एशलम। तो दोनों लक्ष्य के कारण इसी विधि से बनाया है। यहाँ पाण्डव भवन में सिवाए ब्राह्मणों के एलाउ नहीं करते लेकिन वहाँ अनेक सम्पर्क वाले नजदीक सम्बन्ध में आयेंगे। जो नाम है ईश्वरीय विश्वविद्यालय, तो जो नाम है विद्यालय उस नाम को भी प्रत्यक्ष करेंगे। तो डबल सेवा है ना? यहाँ ब्राह्मणों के हिसाब से बना हुआ है और वहाँ विश्व की सर्व आत्माओं के हिसाब से। इसलिये अन्तर हो गया ना, लक्ष्य में अन्तर हो गया। अच्छा!

और कदम फिर पीछे बतायेंगे। लेकिन ये दोनों कदम अच्छी तरह से चेक करना और याद रखना फाइल सारे खत्म। भूल नहीं जाना। कौन से फाइल? कारण के और रोने के। जोश भी रोना है। आवेशता में आना ये भी मन का रोना है। वो समझते हैं हमने रोया थोड़ेही। लेकिन मन में तो बहुत रोया। तो दोनों फाइल खत्म! फाइन नहीं डालना अपने ऊपर, रिफाइन बनना।

ब्रह्मा बाप अपने आदि साथियों को देख करके खुश हो रहे हैं। साथी हो ना? टीचर्स सब साथी हो ना? पाण्डव भी आदि साथी हैं तो शक्तियाँ भी साथी हैं। राइट हैण्ड हैं इसलिये ब्रह्मा की अनेक भुजायें दिखाई हैं। भुजा अर्थात् सहयोगी­साथी। सभी राइट हैण्ड हो ना? यहाँ लेफ्ट भी राइट हो जाता है। लेफ्ट को लेफ्ट नहीं कहेंगे, सर्व साथी कहेंगे। अच्छा! चारों ओर से आये हैं।

एक हैं भारत की सेवा के निमित्त सभी जोन। तो भारत के सेवाधारी बच्चों को बापदादा सेवा की मुबारक भी देते हैं और साथ­साथ सदा सपूत और सबूत देने वाले बच्चों को विशेष दिव्य गुणों की ज्वेलरी गिफ्ट में दे रहे हैं। सपूत की निशानी है सबूत देना अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाना। तो सपूत बच्चे अपना­अपना सबूत अर्थात् सेवा के फल का प्रमाण दिखा रहे हैं और आगे भी दिखाते रहेंगे। इसके लिये जो सपूत बच्चे होते हैं उन्हों को बापदादा, माँ सदा बढ़िया ते बढ़िया श्रृंगार करते हैं, सजाते हैं। जो अच्छा बच्चा लगता है उसको सदा बढ़िया चीज़ देते हैं। तो यहाँ तो सभी एक­दो से बढ़िया हो। इसलिए बापदादा ऐसे सपूत और सबूत देने वाले बच्चों को विशेष दिव्य गुणों की ज्वेलरी गिफ्ट में दे रहे हैं। तो ये गिफ्ट सम्भाल के रखना। कानों में भी पहनना और मस्तक पर भी पहनना, सिर पर ताज पहनना, उतारना नहीं। माया को चोरी करने नहीं देना। माया को भी पता पड़ रहा है कि इन्हों को गिफ्ट मिल रही है। तो डबल लॉक है ना? याद और सेवा दोनों के बैलेन्स में सदा रहना अर्थात् डबल लॉक लगाना। तो सभी के पास डबल लॉक है या एक लॉक है एक ढीला है? देखना चाबी तो नहीं खो गई है। आप समझो चाबी बहुत सम्भाल के रखी है लेकिन जब आवश्यकता हो तो दिखाई न दे, ऐसे तो नहीं? अच्छे हैं!

(बापदादा ने सभी जोन्स के भाई­बहिनों से से हाथ उठवाये)

दिल्ली - चाबी सम्भाल के रखना। माया बिल्ली नहीं आ जाये दिल्ली में! दिल्ली वाले क्या करेंगे? बड़े­बड़े माइक लाना, छोटे नहीं। क्योंकि दिल्ली का आवाज सहज चारों ओर फैलता है। दिल्ली की न्यूज इन्टरनेशनल न्यूज होती है। इसलिये दिल्ली वालों को एक माइक नहीं, माइक का ग्रुप लाना है। झण्डा लहराना है। दिल्ली में राज्य का झण्डा लहरायेंगे तो राज्य के फ्लैग के पहले सेवा का फ्लैग। तो एक माइक नहीं लाना, झुण्ड लाना। एक का आवाज चारों ओर नहीं फैलता फैलता। संगठन में आते हैं तो सबकी नजर जाती है।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू - पंजाब तो है ही शेर, शेर के आगे बिल्ली क्या आयेगी! पंजाब शेर है ना!

बंगाल, बिहार, उड़ीसा, नेपाल, आसाम - ये पांच नदियाँ इकट्ठी हैं। अच्छा है, पांचों का मिलन है। सबसे पहले बंगाल में सूर्योदय होता है तो माया का अंधकार तो आ नहीं सकता। अच्छा है अभी थोड़ी और संख्या को बढ़ाओ। कोई वारिस निकालो, पांच प्रदेश हैं, तो पांचों प्रदेशों से अच्छे से अच्छे वारिसों को स्टेज पर लाओ। अगर गुप्त हैं तो स्टेज पर लाओ। अगर नहीं हैं तो निकालो। दूसरे सीजन में सबसे ज्यादा संख्या इन पांच नदियों की होनी चाहिये। समझा?

यू.पी., बनारस - यू.पी. बनारस क्या करेंगे? भक्त तो ज्यादा यू.पी. में हैं। तो भक्तों का जल्दी­जल्दी कल्याण करो, बिचारे भटकते रहते हैं। कभी कुम्भ के मेले में, कभी किसी मेले में, कभी मन्दिरों में तो कभी कहाँ, भटकने वाले भक्तों को बाप का परिचय देकर मधुबन तक पहुँचाओ। समझा?

राजस्थान - राजस्थान क्या करेगा? राजाओं को फिर से राज्य­भाग्य के अधिकारी बनाओ। जब नाम ही राजस्थान है तो कितने राजायें होंगे। अब राजायें नहीं हैं, लेकिन राजायें बना तो सकते हो ना। कितनी दुआयें देंगे कि हमको फिर से राज्य अधिकारी बनाया! तो हिम्मत है ना? राजस्थान, ऐसा ग्रुप तैयार करो जो सारे राजायें, राज्य अधिकार की खुशी में मधुबन की स्टेज पर डांस करे।

बाम्बे, महाराष्ट्र - महाराष्ट्र की धरनी तो बहुत अच्छी है, उसकी मुबारक है। लेकिन अभी बाम्बे वा महाराष्ट्र एक वारिस क्वालिटी का ग्रुप तैयार करो। जैसे वो राजाओं का ग्रुप लायेंगे तो महाराष्ट्र वा बाम्बे वारिसों का ग्रुप लाये। ला सकते हैं? देखेंगे दूसरे सीजन में वारिसों का गुलदस्ता आयेगा। अच्छा।

गुजरात - वो तो चुल पर और दिल पर है। चुल पर है तभी देखो रोटी अच्छी बनाते हैं ना! तो दिल के चुल पर हैं और साथ­साथ हिम्मत की मुबारक तो बापदादा सदा ही गुजरात को देते हैं। गुजरात वारिस बना सकता है। गुजरात में वारिस क्वालिटी निकल सकती है। जैसे बाम्बे वारिस क्वालिटी का ग्रुप बनायेंगे आप महावारिस का ग्रुप बनाओ। धरनी अच्छी है। अभी क्वान्टिटी में ज्यादा लग गये हैं, पहले­पहले कुछ वारिस निकले, अभी क्वान्टिटी में क्वालिटी छिप गई हैं। नाम लेते हैं तो दिखाई देते हैं, इसलिये अभी फिर से वारिस क्वालिटी निकालो। एक वारिस हजारों क्वान्टिटी के बरोबर है। समझा गुजरात क्या करेगा? महावारिस लायेंगे, वन नम्बर लेंगे ना! सभी नम्बरवन लेना, टू कोई नहीं लेना।

तामिलनाडु - तामिल वाले कौन­सा ग्रुप लायेंगे? तामिल में स्थूल नॉलेजफुल क्वालिटी बहुत अच्छी है। तो जो नॉलेज की अथॉरिटी कहलाई जाती है ऐसे अथॉरिटी वालों का ग्रुप तैयार करके लाना। हिम्मत है ना? सारा ग्रुप नॉलेज के अथॉरिटी वाले हो। ये भी छोटे­छोटे माइक हो जाते हैं।

कर्नाटक - कर्नाटक वाले कौन­सा ग्रुप लायेंगे? ज्ञान का नाटक करने वाले। वहाँ जो भी धर्म के निमित्त, धर्म आत्मायें सम्बन्ध­सम्पर्क में हैं उन्हें बच्चों के रूप में ग्रुप बनाकर लेकर आयें। धर्म नेता बनकर नहीं आवे, चांदी की कुर्सा चाहिये, वो चाहिये... नहीं। लेकिन धर्म नेताएं बच्चे बनकर आयें। तो जैसे राज्य अधिकारियों द्वारा नाम बाला होता है वैसे धर्म नेताओं द्वारा भी, ये भी बड़े माइक हैं, तो ऐसा ग्रुप लाओ। एक धर्म आत्मा नहीं लाना, संगठन में लाना। धर्म नेताओं को सम्भाल सकेंगे कि वो आपस में ही लड़ेंगे? नहीं, भावना वाले हैं, चाहे धर्म नेतायें भी हैं फिर भी माताओं में भावना अच्छी है। इसलिये कनार्टक वाले धर्म नेताओं का नाटक दिखाना। अच्छा!

आन्ध्र प्रदेश - आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा में भी अच्छे­अच्छे पोजीशन वाले हैं और भावना वाले भी हैं इसलिये आन्ध्रा वालों को जो आजकल के नामीग्रामी गाये हुए हैं उन सभी को बाप के घर में पहुँचाओ। समझा? देखेंगे कौन अपना अच्छा ग्रुप लाता है? अगले सीजन में सब ग्रुप­ग्रुप आयेंगे ना! देखेंगे नम्बरवन, टू, थ्री कौन हैं? तब तो प्रत्यक्षता होगी ना! नहीं तो कैसे होगी?

इन्दौर - संख्या तो अच्छी है इन्दौर की। इन्दौर वाले क्या करेंगे? इन्दौर में भी नामीग्रामी अच्छे हैं, जिसको सेठ लोग कहते हैं ना, तो सेठ लोग बहुत हैं। तो सेठों का ग्रुप लाना। जब सभी सेठों का ग्रुप आयेगा तो कितना अच्छा लगेगा। कोई टोपी वाले, कोई पगड़ी वाले। इन्दौर वाले क्या समझते हैं? बापदादा ने इन्दौर में भेजा ही है सेठों की सेवा के लिये। लेकिन अभी तक कोई सेठ नहीं आया है। आप लोगों को पहले सेठ के पास भेजा ना। लेकिन वो कहाँ आया है? कितने सेठ आये हैं? छोटे­छोटे बिजनेस वाले नहीं, सेठ लोग। तो एक सेठ आयेगा तो उसके सेवाधारी कितने होते हैं! तो कितने आ जायेंगे? लेकिन अभी साहूकार साहूकार नहीं है, चिन्ता के घर हैं। इसलिये अभी समय बदल रहा है। अभी वह साहूकारी का नशा नहीं है। अपने बचने का नशा है। साहूकारी का नहीं।

भोपाल, आगरा - आगरा ने तो अभी काम पूरा नहीं किया है। ताजमहल के साथ ज्ञान के ताज का साक्षात्कार हो, अभी वो सोच रहे हैं। अभी पहले आगरा वालों को वो ही करना है। समझा! पीछे ग्रुप लायेंगे। जब स्थान बन जायेगा तो इन्टरनेशनल ग्रुप लायेंगे।

अच्छा, भोपाल वाले क्या करेंगे? वहाँ छोटे­छोटे माइक बहुत हैं। एडमिय्निस्ट्री के लोग बहुत हैं। तो छोटे­छोटे माइक के ग्रुप भी आवाज फैला सकते हैं। वहाँ भी ऑफिसर क्वालिटी अच्छी है। तो अच्छे­अच्छे सेवा में सहयोगी ऑफिसर्स ग्रुप समीप आने वाले और लायेंगे, लाते हैं लेकिन और समीप लायेंगे। तो कितने ग्रुप आयेंगे? बहुत ग्रुप आयेंगे ना। और सब वेराइटी ग्रुप देखकरके आप क्या करेंगे? ताली बजायेंगे। प्रत्यक्षता की ताली बजाना, ये ताली नहीं। तो सभी खुश हो ना? अच्छा।

इस ग्रुप में बीमार आये हुए हैं? बीमार जो आये हैं वह हाथ उठायें। कोई नहीं है। इस समय सब तन्दुरूस्त हैं, बीमारी भूल गई। हॉस्पिटल में पेशेन्ट आये हैं? नहीं आये हैं। तो ये ग्रुप अच्छा हुआ ना पेशेन्ट कोई नहीं है। पेशन्स में रहने वाले हैं इसलिये पेशेन्ट नहीं हैं। अच्छा।

डबल विदेशी - डबल विदेशियों को बापदादा दिल से याद­प्यार के साथ­साथ दुआओं की गिफ्ट दे रहे हैं। क्योंकि इन्हों की हिम्मत भारतवासियों से भी ज्यादा है। कई दीवारें पार कर बाप के बने हैं। इसलिये बापदादा सदा उमंग­उत्साह के पंख देकर उड़ाते रहते हैं, इस हिम्मत की दुआओं के साथ सभी देशों के बच्चों को विशेष गिफ्ट दे रहे हैं और यही गिफ्ट लिफ्ट का काम करेगी। मेहनत नहीं करनी पड़े। समझा? अभी पंखों की गिफ्ट को सदा साथ रखना। दुआएं सदा साथ रखना। अच्छा है, सब देशों से थोड़े­थोड़े पहुँच जाते हैं यही बापदादा को देख­देख खुशी होती है। कैसे भी सरकमस्टांश हो लेकिन दिल की दुआएं सैलवेशन बन जाती हैं इसलिये पहुँच जाते हैं। एक भी ग्रुप विदेशियों के बिना नहीं गया है। हर ग्रुप में हैं, तो हाजिर­नाजिर हो गये ना!

मधुबन निवासी, हॉस्पिटल परिवार - (मधुबन निवासी, हॉस्पिटल वाले सब पाण्डव भवन में बैठ मुरली सुन रहे हैं) उन्हों का ख्याल आ रहा है। मधुबन वाले तो हर रोज की लॉटरी लेने वाले हैं। कितनी लॉटरी मिलती है। मेहनत नहीं करनी पड़ती है, लॉटरी आ जाती है। चाहे मधुबन में या हॉस्पिटल में या ज्ञान सरोवर में, नीचे­ऊपर जो भी हैं, रोज की लॉटरी निकलती है। और लॉटरी से ही चल रहे हैं। आराम से खा पी रहे हैं। सेन्टर वालों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है भण्डारी भरने की और मधुबन वालों की भण्डारी और भण्डारा सदा भरपूर है। मधुबन है खर्च करने वाले और मधुबन में इकट्ठा करने वाले सेन्टर वाले हैं। तो सेन्टर वाले कमाउ बच्चे हो। तो कमाने का नशा अपना, लॉटरी का नशा अपना। तो सबको अपना­अपना भाग्य मिला हुआ है। किसी का भाग्य किसी से कम नहीं। क्योंकि भाग्य विधाता के भाग्य का भण्डारा भरपूर है। इसीलिये सबका एक­दो से ज्यादा भाग्य है। सिर्फ अपना­अपना है लेकिन है एक­एक का एक­दो से बढ़िया। अच्छा!

टीचर्स - टीचर्स कौन हैं? राइट हैण्ड हैं ना! राइट हैण्ड के बिना कोई काम नहीं होता। बाप के कार्य को सफल करने वाले राइट हैण्ड। अच्छा।

चारों ओर के सर्व बापदादा के स्नेह को प्रत्यक्ष करने वाले, फॉलो फादर करने वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बापदादा के कदम पर कदम रखने वाले आज्ञाकारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा ब्रह्मा बाप समान सर्वंश त्यागी विशेष आत्मायें, सदा सपूत बन हर समय सबूत देने वाले सुपात्र आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादियों से - सब सहज सम्पन्न हो रहा है ना? खुशी सब भुला देती है। खुशी के आगे और कुछ लगता नहीं। तो मधुबन है खुशियों की खान। खुशी के कारण सब सहज हो जाता है। चाहे खाना मिले, नहीं मिले लेकिन खुशी की खुराक मिलती रहती है। (सभा को देखते हुए) सभी बहुत खुश हो ना? कि थोड़ी­बहुत कमी रह गई? नहीं। खुशियों की खान पर आ गये हो ना! कुछ भी हो लेकिन सन्तुष्टता का वरदान मिला हुआ है। तो सन्तुष्टता का फल है प्रसन्नता। सब प्रसन्न रहते हैं। नीचे­ऊपर भी होगा फिर प्रसन्न हो जाते हैं। अगर प्रसन्न चित्त आत्मायें देखनी हो तो कहाँ देखें? मधुबन में या सेन्टर पर भी? प्रसन्नचित्त देखना हो तो ब्राह्मणों को देखो। सदा सन्तुष्ट, सदा प्रसन्न चित्त। चित्त में और कुछ है क्या? प्रसन्नता ही प्रसन्नता। ऐसे है ना! सभी प्रसन्नचित्त हैं कि प्रश्नचित्त हैं? ऐसी कोई सभा होगी जो सब मुस्कराते रहें? और सतसंग में जाओ तो कोई का चेहरा कैसा होगा, कोई का कैसा होगा? और यहाँ सबके चेहरे देखो तो क्या हैं? मुस्कराते हुए। ब्राह्मणों के मुस्कान की निशानी देवताओं के चित्र में भी दिखाते हैं। वो किसके चित्र हैं? आपके हैं ना? कि बड़ी दादियों के हैं? आपके मन्दिर हैं? कौन­सी देवी या देवता हो? मालूम है? गणेश हो, हनूमान हो, देवियाँ हो, क्या हो? कोई भी देवी­देवता हो लेकिन दिव्यगुणधारी आत्मा देवता है। फिर कोई हनूमान कहे या गणेश कहे या देवी कहे, लेकिन दिव्यगुणधारी देव आत्मा हो।

अच्छा - (दादियों से) आप लोगों को मालूम पड़ता है कि आपके भक्त किस समय प्रार्थना करते हैं? जिस समय भक्त पुकारते हैं तो आप लोगों को मालूम पड़ता है? कि अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं? बिचारे भक्त ऐसे ही चिल्लाते हैं! फील होता है ना! भक्तों के पुकार की फीलिंग जरूर आती है। तब तो शुभ भावना, शुभ कामनायें देते हो ना! वायुमण्डल में शान्ति क्यों फैलाते हो, लाइट हाउस, माइट हाउस क्यों बनते हो? सर्व भक्त आत्मायें या अन्य आत्मायें सन्तुष्ट, खुश रहे, शान्त रहे। (दादी जानकी से) विश्व के गोले पर खड़ी हो ना! कि लण्डन के गोले पर खड़ी हो? विश्व के गोले पर हैं ना! मधुबन के गोले पर नहीं, विश्व के गोले पर। आना और जाना तो प्रैक्टिस है। अभी आना­जाना क्या लगता है? विदेश लगता है या घर लगता है? घर से हाल में आये या हाल से घर में आये! अच्छा-लण्डन वालों को भी विशेष सेवा की मुबारक। मुश्किल को सहज करना ये एक अच्छा एग्जाम्पल है। अच्छा है कोई ने तन से, कोई ने मन से, कोई ने धन से, सर्व के सहयोग से ही सफलता मिली है और मिलती ही रहेगी। लण्डन भी विदेश का लाइट हाउस है। जैसे भारत के लिये मधुबन लाइट हाउस है तो लण्डन भी लाइट हाउस है। इसलिये दोनों दादियों से बहुत प्यार है ना। दोनों का बाप से प्यार और बाप का इन्हों से प्यार और सबका भी दादियों से प्यार। बहुत प्यार है ना! अच्छा है प्यार ही किला है। अगर प्यार का किला नहीं होता तो यज्ञ की स्थापना का कार्य हिलता लेकिन प्यार का किला अविनाशी अखण्ड बनाकर चला रहा है। जोड़ी अच्छी है। प्यार रखो तो ऐसे प्यार रखो, प्यारे भी और न्यारे भी। अच्छा!

(ज्वेल ऑफ लाइट पुस्तक का हिन्दी अनुवाद (रत्न प्रभा - दादी प्रकाश­मणि) छपवाया गया है जिसका बापदादा ने अपने हस्तों से अनावरण किया) जो भी हो रहा है वो सेवा को और उड़ती कला में ले जाने का साधन है। ये भी सेवा का साधन है, ऐसे ही सेवाओं की प्रत्यक्षता होते सेवा कराने वाला बाप प्रत्यक्ष हो जायेगा। साधन अच्छे हैं - प्रत्यक्षता के लिये।

अच्छा - ओम् शान्ति।