16-03-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा की निशानी - सन्तुष्टता और प्रसन्नता

आज सर्व प्राप्तियाँ कराने वाले बापदादा अपने चारों ओर के प्राप्ति सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। सर्व प्राप्तियों के दाता सम्पन्न और सम्पूर्ण बाप के बच्चे हैं तो हर एक बच्चे को बाप ने सर्व प्राप्तियों का वर्सा दिया है। ऐसे नहीं-किसको 10 दिया हो, किसको 20 दिया हो। सभी बच्चों को सर्व प्राप्तियों का अधिकार दिया है। सभी बच्चे फुल वर्से के अधिकारी हैं। तो बापदादा देख रहे हैं कि हर एक अधिकारी बच्चों ने अपने में प्राप्तियों का अधिकार कितना प्राप्त किया है? बाप ने सर्व दिया है। बाप को सर्व शक्तिमान् वा सम्पन्न सागर कहते हैं। लेकिन बच्चों ने उन प्राप्तियों को कहाँ तक अपना बनाया है? बाप का दिया हुआ वर्सा जब अपना बना लेते हैं तो जितना अपना बनाते हैं उतना नशा और खुशी रहती है-मेरा खज़ाना है। दिया बाप ने लेकिन अपने में धारण कर अपना बना लिया। तो क्या देखा? कि अपना बनाने में नम्बरवार हो गये हैं। बाप ने नम्बर नहीं बनाये हैं लेकिन अपने­अपने धारणा की यथा­शक्ति ने नम्बरवार बना दिया है। सम्पूर्ण अधिकार वा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा जो सदा अमृतवेले से रात तक प्राप्तियों के नशे वा अनुभव में रहती है, उनकी निशानी क्या होगी? प्राप्तियों की निशानी है सन्तुष्टता। वो सदा सन्तुष्टमणि बन दूसरों को भी सन्तुष्टता की झलक का वायब्रेशन फैलाते रहते हैं। उनका चेहरा सदा प्रसन्नचित्त दिखाई देगा। प्रसन्नचित्त अर्थात् सर्व प्रश्नचित्त से न्यारा। कोई प्रश्न नहीं होगा, प्रसन्न होगा। क्यों, क्या, कैसे-यह सब समाप्त। तो ऐसे प्रसन्नचित्त बने हो? कि अभी भी कभी­कभी कोई प्रश्न उठता है कि ये क्या है, ये क्यों है, ये कैसे होगा, कब होगा? ये प्रश्न चाहे मन में, चाहे दूसरों से उठता है? प्रश्नचित्त हो या प्रसन्नचित्त हो? या कभी प्रश्नचित्त, कभी प्रसन्नचित्त? क्या है? वैसे गायन है-अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खज़ाने में। ये किसका, किन ब्राह्मणों का गायन है? आपका है या दूसरे आने वाले हैं? आप ही हो! तो जब कोई अप्राप्ति होती है ना, अप्राप्ति असन्तुष्टता का कारण है। अपना अनुभव देखो-कभी भी मन असन्तुष्ट होता है तो कारण क्या होता है? कोई न कोई अप्राप्ति का अनुभव करते हो तब असन्तुष्टता होती है। गायन तो है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु। ये अब का गायन है या विनाश के समय का? विनाश के समय सम्पन्न हो जायेंगे कि अभी होना है? जो समझते हैं कि हम सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं, कभी भी किसी भी बात में, चाहे अपने सम्बन्ध में, चाहे दूसरों के सम्बन्ध में भी प्रश्न नहीं उठता, सदा सन्तुष्ट रहते हैं-ऐसी सन्तुष्ट आत्मायें कितनी होंगी? बहुत हैं! अच्छा, जो समझते हैं सदा प्रसन्न रहते हैं, चाहे माया कितना भी हिलाये, लेकिन हम नहीं हिलते, माया को हिला देते हैं, माया नमस्कार करती है, हम नहीं हिलते हैं, हम अंगद हैं, माया हार जाती लेकिन हम विजयी हैं, जो ऐसे हैं वो हाथ उठाओ, सदा शब्द याद रखना, कभी­कभी वाले नहीं। बहुत थोड़े हैं, कोटो में कोई हैं! क्वेश्चनमार्क उठता तो है ना। क्वेश्चनमार्क डिक्शनरी से निकल जाये। हलचल भी न हो। कम्प्युटर चलाते हो तो उसमें आता है ना? तो आपके बुद्धि रूपी कम्प्युटर में सदा फुलस्टॉप की मात्रा आये। क्वेश्चन मार्क, आश्चर्य की मात्रा खत्म। इसको कहा जाता है सदा प्रसन्नचित्त। ऐसा प्रसन्नचित्त औरों का भी क्वेश्चन मार्क खत्म कर देता है। नहीं तो स्वयं में अगर क्वेश्चन मार्क है तो कोई भी बात सुनेंगे, देखेंगे, कहेंगे-हाँ, ये तो होना नहीं चाहिये, लेकिन होता है, मैं भी समझती हूँ, होना नहीं चाहिये, मिक्स हो जायेंगे। उसके प्रश्न को और अण्डरलाइन कर देंगे। टेका तो दे दिया ना-कि हाँ, ये ठीक नहीं है लेकिन होता है....। तो प्रसन्नचित्त उसको नहीं किया लेकिन और ही प्रश्न को बढ़ा लिया। एडीशन हो गई। वैसे एक का क्वेश्चन था, अभी दो का हो गया, दो से चार का हो जायेगा। तो प्रसन्नचित्त वायब्रेशन के बजाय प्रश्नचित्त का वायब्रेशन जल्दी फैलता है। हाँ! ऐसा है.... साथ दे दिया। आश्चर्य की मात्रा आ गई ना-हाँ! तो फुलस्टॉप तो नहीं हुआ ना। चाहे अपने प्रति भी-ये मेरे से होना नहीं चाहिये, ये मेरे को मिलना चाहिये, ये दूसरे को नहीं होना चाहिये, तो ये चाहिये­चाहिये प्रश्नचित्त बना देती है, प्रसन्नचित्त नहीं। तो सभी का लक्ष्य क्या है? सन्तुष्ट, प्रसन्नचित्त।

जिसका प्रसन्नचित्त होता है उसके मन­बुद्धि के व्यर्थ की गति फास्ट नहीं होगी। सदा निर्मल, निर्मान। निर्मान होने के कारण सभी को अपने प्रसन्नचित्त की छाया में शीतलता देंगे। कैसा भी आग समान जला हुआ, बहुत गरम दिमाग का हो लेकिन प्रसन्नचित्त के वायब्रेशन की छाया में शीतल हो जायेगा। कमज़ोरी क्या आती है? वैसे ठीक चलते हो, अपने रीति से अच्छे चलते हो लेकिन जब सम्बन्ध­सम्पर्क में आते हो तो दूसरे की कमज़ोरी देखते­सुनते, वर्णन करते प्रभाव में आ जाते हो। फिर कहते हो कि इसने किया ना, इसीलिये मेरे से भी हो गया। इसने कहा, तभी मैंने कहा। उसने 50 बारी कहा, मैंने एक बारी कहा। फिर बाप के आगे भी बहुत मीठी­मीठी बातें रखते हैं, कहते हैं-बाबा आप समझो ना इतना सहन कहाँ तक करेंगे! फिर भी पुरूषार्थी हैं ना, तो थोड़ा तो आयेगा ना! बाप को भी समझाने लगते हैं। यहाँ जो निमित्त हैं उन्हों वो बहुत कथायें सुनाते हैं। ऐसा था ना, ऐसा था ना, ऐसा था ना.... ऐसे­ऐसे की माला जपते हैं। बापदादा सदा ही इशारा देते हैं कि ऐसी बातें दो अक्षर में वर्णन करो। लम्बा वर्णन नहीं करो। क्योंकि ये व्यर्थ बातें बहुत चटपटी होती हैं। मजेदार लगती हैं, जैसे खाने में भी खट्टी­मीठी चीज़ हो तो अच्छी लगेगी ना, और फीकी, सादी हो तो कहेंगे ये तो खाते ही रहते हैं। तो व्यर्थ बातें, व्यर्थ चिन्तन सुनना, बोलना और करना इसमें चलते­चलते इन्ट्रेस्ट बढ़ जाता है। फिर सोचते हैं-मैं तो नहीं चाहती थी लेकिन उसने सुनाया ना तो मैंने कहा कि अच्छा उसका सुन लें, दिल खाली कर दें। उसकी तो दिल खाली हुई और अपना दिल भर लिया। वो थोड़ा­थोड़ा दिल में भरते­भरते फिर संस्कार बन जाता है और जब संस्कार बन जाता है तो महसूस ही नहीं होता कि ये राँग है। ये व्यर्थ संस्कार बुद्धि के निर्णय को खत्म कर देता है। इसलिये सबसे सहज सदा सन्तुष्ट रहने की विधि है-सदा अपने सामने कोई न कोई विशेष प्राप्ति को रखो। क्योंकि प्राप्ति भूलती नहीं है। ज्ञान की पॉइन्ट्स भूल सकती हैं लेकिन कोई भी प्राप्ति भूलती नहीं है। बाप से क्या­क्या मिला, कितना मिला है, वेरायटी पसन्द आती है ना! एक जैसा पसन्द नहीं होता। तो आप अपने प्राप्तियों को देखो-ज्ञान के खज़ाने की प्राप्ति कितनी है, योग से शक्तियों की प्राप्ति कितनी है, दिव्यगुणों की प्राप्तियाँ कितनी हैं, प्रैक्टिकल नशे में, खुशी में रहने की प्राप्तियाँ कितनी हैं? बहुत लिस्ट है ना! पहले भी सुनाया था कि कभी कोई, कभी कोई गुण की प्राप्ति को सामने रखते हुए सन्तुष्ट रहो। क्योंकि एक गुण भी अपनाया तो जैसे विकारों का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है, अगर बाहर के रूप में इमर्ज रीति से क्रोध है लेकिन आन्तरिक चेक करो तो क्रोध के साथ लोभ, अहंकार होता ही है। ये सब आपस में साथी हैं। कोई इमर्ज रूप में होते हैं, कोई मर्ज रूप में होते हैं। तो गुण भी जो हैं उन्हों का भी आपस में सम्बन्ध है। इमर्ज एक गुण को रखो लेकिन दूसरे गुण भी उनके साथ ही मर्ज रूप में होते हैं। तो रोज कोई न कोई प्राप्ति स्वरूप का अनुभव अवश्य करो। अगर प्राप्ति इमर्ज रूप में होगी तो प्राप्ति के आगे अप्राप्ति खत्म हो जायेगी और सदा सन्तुष्ट रहेंगे। वैसे भी देखो, दुनिया में भी मुख्य प्राप्ति सभी क्या चाहते हैं?

हर एक चाहता है कि अपना नाम अच्छा हो, दूसरा मान और तीसरा शान। नाम­मान­शान-ये प्राप्त करना चाहते हैं। आप भी क्या चाहते हो? आप भी तो यही चाहते हो ना! हद का नहीं, बेहद का। तो दुनिया वाले तो हद के नाम के पिछाड़ी दौड़ते हैं और आपका नाम विश्व में जितना ऊंचा है उतना और किसका है? तो आप अपने नाम को देखो। सबसे नाम की विशेषता ये है कि आपका नाम कौन जपता है? स्वयं भगवान आपका नाम जपता है! तो इससे बड़ा नाम क्या होगा! आपके नाम से अभी लास्ट जन्म में भी अनेक आत्मायें अपना शरीर निर्वाह चला रही हैं। आप ब्राह्मण हो ना, तो ब्राह्मणों के नाम से आज भी नामधारी ब्राह्मण कितना कमा रहे हैं! अभी तक नामधारी ब्राह्मण भी कितना ऊंचे गाये जाते हैं! तो आपके नाम की कितनी महिमा है! इतना श्रेष्ठ नाम आपका हो गया, इसीलिये हद के नाम के पीछे नहीं जाओ। मेरा नाम तो कभी किसी में लेते ही नहीं हैं, मेरा नाम सदा पीछे ही रहता है, सेवा मैं करती हूँ नाम दूसरे का हो जाता है...., तो हद के नाम के पीछे नहीं जाओ। बाप के दिल में आपका नाम सदा ही श्रेष्ठ है। जब बाप के दिल में नाम हो गया तो कोई सेवा में या कोई प्रोग्राम में या कोई भी बातों में आपका नाम नहीं भी आया तो क्या हर्जा, बाप के पास तो है ना! जैसे भक्ति मार्ग में हनुमान का चित्र दिखाते हैं ना तो उसके दिल में क्या था? राम था। और बाप के दिल में क्या है? (बच्चे) तो बच्चों में आप हो या नहीं हो? तो सभी का नाम है! देखा है, पक्का? कभी मिस हो गया हो तो! आप सभी का नाम है! तो और नाम के पीछे क्यों पड़ते हो? क्योंकि मैजारिटी यही नाम­मान­शान गिराता भी है और यही नाम­मान­शान नशा भी चढ़ाता है। तो प्राप्ति के रूप में देखो। अगर मानों कोई कारण से आपका नाम गुप्त है और आप समझते हो कि मेरा नाम होना चाहिये, यथार्थ है फिर भी अगर किसी आत्मा से हिसाबकिताब के कारण या उसके संस्कार के कारण आपका नाम नहीं होता है, आप राइट हो, वो रांग है फिर भी उसका नाम होता है, आपका नहीं, तो विजय माला में आपका नाम निश्चित है। इसीलिये इसकी भी परवाह नहीं करो। इस रूप में माया ज्यादा आती है। इसलिये अभी गलती से नाम मिस हो भी गया, कोई हर्जा नहीं लेकिन विजय माला में आपका नाम मिस नहीं हो सकता। पहले आपका नाम होगा। तो अपने नाम की महिमा याद रखो कि मेरा नाम बाप के दिल पर है, विजय माला में है, अन्त तक मेरा नाम सेवा कर रहा है।

और आपका मान कितना है? भगवान ने भी आपको अपने से आगे रखा है! पहले बच्चे। तो स्वयं बाप ने मान दे दिया। कितना आपका मान है, उसका प्रुफ देखो कि आपके जड़ चित्रों का भी लास्ट जन्म तक कितना मान है! चाहे जाने, नहीं जाने लेकिन कोई भी देवी­देवता का चित्र होगा तो कितने मान से उसको देखते हैं! सबसे श्रेष्ठ मान अब तक आपके चित्रों का भी है। ये प्रुफ है। जब आपके चित्र ही इतने माननीय, पूजनीय हैं तो जिसका मान रखा जाता है उसको पूजनीय माना जाता है। हमेशा कहते हैं ना-यह हमारे पूजनीय हैं, पूज्य हैं। तो प्रैक्टिकल प्रुफ है कि आपके चित्रों का भी मान है तो चैतन्य में हैं तब भी चित्रों का मान है। अगर चैतन्य में मान नहीं होता तो चित्रों को कैसे मिलता? बाप तो सदा कहते हैं-पहले बच्चे। बच्चे डबल पूजे जाते हैं, बाप सिंगल। तो आपका मान बाप से ज्यादा हुआ ना! इतना श्रेष्ठ मान मिल गया! तो जब भी कोई हद के मान की बात आये तो सोचना कि आत्माओं का मान क्या करेगा जब परम आत्मा का मान मिल गया। ऐसे नहीं सोचो-कि हम इतना कुछ करते हैं फिर भी मान नहीं देते, पूछते ही नहीं हैं! ये सोचना व्यर्थ है। क्योंकि जितना आप हद के मान के पीछे दौड़ लगायेंगे ना तो ये हद की कोई भी चीज़ परछाई के समान है। परछाई के पीछे पड़ने से कभी परछाई मिलती है कि और आगे बढ़ती जाती है? तो ये हद का मान, हद का नाम-ये परछाई है। ये माया के धूप में दिखाई देती है लेकिन है कुछ भी नहीं। तो नाम भी आपको मिल गया, मान भी आपको मिला हुआ है और शान कितना है! अपने एक­एक शान को याद करो और किसने शान में बिठाया? बाप ने बिठाया। बाप के दिलतख्तन­शीन हैं। सबसे बड़े ते बड़ी शान राज्य पद है ना! तो आपको तख्त­ताज मिल गया है ना! जो परम आत्मा के तख्तनशीन हैं इससे बड़ी शान क्या है!

कभी­कभी निर्णय करने में एक छोटी­सी गलती कर देते हो। जो रीयल शान है, रूहानी शान है वो कभी भी अभिमान की फीलिंग नहीं देगा। तो कभी­कभी क्या करते हो? होता अभिमान है लेकिन समझते हो कि ये शान तो अपना रखना चाहिये, इतना शान तो रखना चाहिये ना, शान में रहना अच्छा होता है, लेकिन शान है या अभिमान है, उसको अच्छी तरह से चेक करो। कभी­कभी अभिमान को शान समझ लेते हैं और फिर निर्मान नहीं होते हैं। आप अपने शान को रीयल समझते हो लेकिन दूसरे समझते हैं कि ये अभिमान है तो थोड़ा भी कुछ कह देंगे तो आपको अपमान लगेगा। अभिमान वाले को अपमान बहुत जल्दी फील होगा। थोड़ा भी किसने हंसी में भी कुछ कह दिया तो अपमान लगेगा। ये अभिमान की निशानी है। सोचेंगे-नहीं, मैं तो ऐसा हूँ नहीं, ऐसे थोड़ेही कहना चाहिये। तो निर्णय ठीक करो। उस समय निर्णय में कमी कर लेते हो। यथार्थ के बजाय मिक्स होता है और आप उसको यथार्थ समझ लेते हो। तो कहने में आता है कि ये हैं बहुत अच्छे लेकिन बोलचाल, उठना, बैठना जो है ना वो अभिमान का लगता है। ये भी किसी ने कहा तो अपमान की फीलिंग आ जायेगी। तो स्वमान और अभिमान के अन्तर को भी चेक करो। स्वमान कितना बड़ा है, शान कितनी बड़ी है, उस बेहद के नाम, मान और शान को सदा इमर्ज रखो। मर्ज नहीं, इमर्ज करो। जैसे याद में कभी­कभी अलबेलापन आ जाता है तो कहते हैं हम हैं ही बाप के, याद क्या करें....। लेकिन इमर्ज संकल्प से प्राप्ति का अनुभव होता है। ऐसे ही हर धारणा में अलर्ट रहो, अलबेले नहीं बनो। क्योंकि समय समीप आ रहा है और समय समीप क्या सूचना दे रहा है? समान बनो, सम्पन्न बनो। तो समय की चैलेन्ज को देखो। आपको कोई भी अप्राप्ति नहीं है। और क्या प्राप्ति होती है? अगर स्थूल रीति से देखो तो तन्दुरूस्ती चाहिये, सम्पत्ति चाहिये, सम्बन्ध चाहिये-यही प्राप्ति में चाहिये ना। तो आपकी आत्मा कितनी तन्दुरूस्त है? आत्मा में लो ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड प्रेशर होता है क्या? नहीं, सदा तन्दुरूस्त। क्योंकि अमृतवेले हर रोज बापदादा सदा तन्दुरूस्त भव का वरदान देता है। शरीर का तो हिसाबकिताब है लेकिन आत्मा सदा तन्दुरूस्त। आत्मा को कोई बीमारी नहीं है। तो आत्मा की तन्दुरूस्ती है ना? कि कभी­कभी बीमार पड़ जाते हो?

डबल विदेशी बीमार पड़ते हैं? कि थोड़ा­थोड़ा रेस्ट कर लेते हैं? डबल विदेशी अर्थात् डबल हेल्दी। और ऐसे डबल हेल्दी को देख करके बीमार भी हेल्दी हो जायेगा। तो तन्दुरूस्ती की प्राप्ति आपको कितनी बड़ी है। और सम्बन्ध में देखो, दुनिया वालों को तो कोई सम्बन्ध होगा, कोई नहीं होगा। होगा तो कभी वो सम्बन्ध खत्म भी हो जायेगा, लेकिन आपके सर्व सम्बन्ध एक बाप से हैं। कोई सम्बन्ध की कमी है क्या? कि सिर्फ बाप है, फ्रेंड नहीं है-ऐसे तो नहीं समझते ना! सर्व सम्बन्ध बाप से हैं। किसी भी सम्बन्ध से बाप को याद करो तो बाप सदा वह सम्बन्ध निभाने के लिये हाजर है। बाप को क्या देरी लगती है! एक ही समय पर सबसे सम्बन्ध निभा सकते हैं। ऐसे नहीं, मैं तो फ्रेंड का सम्बन्ध चाहती थी लेकिन बाबा दूसरे में बिजी था! ऐसे तो नहीं समझते ना? जिस सेकण्ड जिस सम्बन्ध से याद करो-उस सम्बन्ध में बाप कहते हैं हे बालक सो मालिक, जी हाजिर। मालिक बुलावे और पहुँचे नहीं, ये कैसे हो सकता है! तो सम्बन्ध में भी देखो-सर्व सम्बन्ध की प्राप्ति है? यह अनुभव है कि सिर्फ सुना है?

जब भी अपनी अवस्था अनुसार बिन्दी नहीं याद आवे, बिन्दी सूक्ष्म है ना, आपकी स्थिति या अवस्था कमज़ोर है, स्थूल में है तो सूक्ष्म बिन्दी याद करते भी याद नहीं आयेगी, तो ऐसे टाइम पर युद्ध नहीं करो-नहीं, बिन्दी होनी चाहिये, बिन्दी आवे, बिन्दी आवे....। प्राप्ति याद करो, सम्बन्ध याद करो, साकार मिलन याद करो, अपना भिन्नभिन्न विचित्र अनुभव याद करो। वो तो सहज है ना। किसी को भी भाषण करने नहीं आये और समझे कि मैं तो भाषण करने वाली बनी नहीं। सबसे अच्छे ते अच्छा भाषण है-अनुभव सुनाना। ये सभी को आता है या नहीं? इसके लिये तैयारी चाहिये क्या? कौन­सी पॉइन्ट बोलूँ, कौन­सी नहीं? अनुभव के रूप से बोलो तो देखो नम्बरवन हो जायेंगे। अपने भिन्नभिन्न अनुभव जो किये हैं वो बांटते जाओ तो बढ़ता जायेगा। सभी को भाषण करना आता है, पांच वर्ष के बच्चे को भी आता है। तो युद्ध में समय नहीं गँवाओ। नहीं, यही होना चाहिये, नहीं। किसी भी विधि से व्यर्थ को समाप्त करो और समर्थ को इमर्ज करो। युद्ध करते­करते क्या होता है? कमज़ोरी के संस्कार पड़ जाते हैं। फिर सोचते कि मेरे से तो होता ही नहीं है, बाबा कहते हैं विकर्म विनाश करो, मेरे से तो होता नहीं है। विकर्म विनाश नहीं होता तो सुकर्म तो बनाओ ना, व्यर्थ में टाइम नहीं गंवाओ। तो जितना जितना श्रेष्ठ कर्मों का खाता बढ़ता जायेगा तो भी विकर्मों का खाता खत्म होता जायेगा। इसीलिये समय को नहीं गँवाओ। सबसे बड़े ते बड़ा मूल्य है समय का। क्योंकि इस समय का गायन है-अब नहीं तो कब नहीं। एक­एक सेकण्ड-अब नहीं तो कब नहीं। चलते फिरते, रास्ते चलते दो बातें सुन ली, दो बातें कर ली-ये भी समय जाता है। और जितना समय गँवाते हैं ना तो व्यर्थ के संस्कार पक्के होते जाते हैं। कोई लम्बी बात करे तो उसको शॉर्ट करो। सुनाया ना-व्यर्थ बात का वर्णन बहुत लम्बा होता है। तो व्यर्थ को बचाओ। समझने में ऐसे होता है-मैंने तो कुछ नहीं किया, न सुना, न बोला लेकिन चलते­चलते दो शब्द उसने बोला, दो शब्द उससे बोला और व्यर्थ का खाता जमा हो जाता है। सुनने से भी व्यर्थ जमा होता है। अगर कोई व्यर्थ सुनाते भी हैं तो उसको भी शॉर्ट करो, उसको सिखाओ। यह है शुद्ध सेवा, रहम करना। रहमदिल हो ना!

अच्छा, आज होली मनाने आये हो। तो होली तो आप बन गये हो, अभी क्या होली मनायेंगे? होली बन गये हैं, होली हंस हो ना! ये होली आत्माओं की सभा कितनी न्यारी और प्यारी लगती है। होली की विशेषता है ही रंग लगाने की। आप सभी को तो रूहानी रंग लग गया। पक्का लग गया ना कि थोड़ी माया की धूप में रंग उड़ जायेगा। नहीं उड़ेगा! दुनिया वाले तो एक दिन के लिये मनोरंजन करते हैं और आपका सदा ही मनोरंजन है। मन नाचता­खेलता रहता है। वास्तव में सब उत्सव आपके जीवन का यादगार हैं। होली की विशेषता रंग लगाना, होली जलाना और फिर मंगल मिलन मनाना। जब बाप के संग के रंग में रंग गये, सबसे बड़े ते बड़ा, अच्छे ते अच्छा रंग है सदा बाप का संग। तो सदा संग है ना। तो सदा ही होली है। क्योंकि संग का रंग सदा ही है। और जब बाप के साथ रहते हो, संग रहते हो तो बुराइयाँ तो स्वत: ही जल जाती हैं। अपवित्रता को जलाना ये होली जलाना है। और जब रंग में रंग जाते हैं, बुराइयाँ जल जाती हैं तो क्या होता है? मंगल मिलन। सदा एक­दो से मिलते हो तो शुभ भावना सबके प्रति रखते हो, तो ये शुभ भावना से मिलना-ये है मंगल मिलन। सदा ही शुभ है। तो मंगल मिलन शुभ मिलन है। चाहे कैसी भी आत्मा हो लेकिन आप शुभ भावना से उनको भी परिवर्तन कर देते हो। तो सदा मंगल मिलन बाप से भी और अपने में भी मनाते ही रहते हो। वो होली है नुकसान की और आपकी होली है फायदे की। वहाँ कितना नुकसान होता है! रंग का नुकसान, समय का नुकसान, कपड़ों का भी नुकसान। और आपका है जमा करने का। होली मनाना अच्छा लगता है, रंग डालना अच्छा लगता है? देवताओं के समान थोड़ा­बहुत सुहेज करना वो है दिन को महत्व देना। बाकी ज्यादा रंग लगाना तो दुनिया जैसे हो जाते हैं। सदा होलीएस्ट बनने की होली की मुबारक। वो तो विशेष उत्सव पर मीठा मुख करते हैं और आप तो हर गुरूवार को मीठा मुख करते हो। भोग मीठा बनाते हो ना? या मीठा नहीं बनाते, नमकीन रख देते हो! डबल फॉरेनर्स बनाते हैं? कि ब्रेड का भोग लगा देते हो? सुनाया था ना कि ये भी विधि है। तो विधि को अपनाने से खुशी होती है। जैसे कोई अपना प्यारा आ जाता है तो क्या करते हो? प्यार से उसके लिये बनाते हो ना। बाप से प्यार है तो दो चीज़ भल नहीं बनाओ, एक ही चीज़ बनाओ लेकिन बनाओ प्यार से और विधिपूर्वक। ऐसे नहीं, ऑफिस का टाइम हो गया और गैस पर हलुआ बन रहा है, टाइम नहीं है तो यही लगा दो। (सभी हँस रहे हैं) अच्छा नहीं लगता है ना इसीलिये हँसी आती है। बापदादा तो आपके प्यार का फल भी प्यार से ही स्वीकार करते हैं लेकिन जो स्टूडेण्ट आते हैं वो अपने­अपने स्थान पर इतनी चीज़ें तो नहीं बना सकते इसीलिये बाप बच्चों के प्रति भी ये नियम रखते हैं। कम से कम हर गुरूवार उन्हों को वेरायटी मिलनी चाहिये। तो बाप भी खा लेंगे, बच्चे भी खा लेंगे।

मेहनत तो बहुत करते हो लेकिन मुहब्बत से मेहनत करते हो तो मेहनत मुहब्बत में बदल जाती है। वैसे तो डबल विदेशी स्वयं भी खाना बनाने के लिये टाइम नहीं होने के कारण जैसे आता है वैसे चलते रहते हैं। डबल विदेशियों का ब्रह्मा भोजन भी बहुत इजी है। इण्डिया का ब्रह्मा भोजन और डबल विदेश में ब्रह्मा भोजन-कितना फर्क होता है! जो इण्डियन बहनें हैं वो तो करते होंगे। लेकिन जहाँ सिर्फ डबल विदेशी हैं उन्हों का ब्रह्मा भोजन तो रोज हो सकता है। अच्छा है। तबियत के लिये भी ठीक है और सहज भी है। लेकिन गुरूवार को कुछ न कुछ बनाना।

अच्छा, सब तरफ से आये हैं। डबल विदेशियों ने भी रेस अच्छी की है। सब ठीक रहे हुए हो? पलंग मिला है या पटरानी, पटराणे बने हैं? सबको खटिया मिली है कि कोई पट में भी सोते हैं? सबको खटिया मिलती है। यह आपकी विशेष खातिरी है। पट में सो तो सकते हो ना या नहीं? कि कमर में दर्द पड़ेगा? जो मिले उसमें सन्तुष्ट रहो। अगर खटिया मिलती है तो भी ठीक, अगर धरनी मिलती है तो भी ठीक। आदत सब पड़नी चाहिये। अच्छा!

ब्राज़ील ज्यादा ग्रुप आया है इसीलिये खुशी है। बहुत अच्छा। (फर्स्ट टाइम वाले ज्यादा हैं) अच्छा है वृद्धि होना ये तो ड्रामा की नूंध है। ये तो बढ़ेगा। संख्या बढ़ना ये सेवा की वृद्धि की निशानी है। तो अच्छा है बापदादा खुश हैं कि सभी तरफ से मैजारिटी देखा गया कि चारों ओर के ग्रुप्स बढ़ करके ही आये हैं। जो अगले साल की संख्या है और इस साल की संख्या में काफी फर्क है। जब मधुबन तक इतने ज्यादा पहुँच गये हैं तो वहाँ भी तो होंगे ना। तो अच्छा है, सेवा के वृद्धि की सभी को मुबारक। अच्छा, ब्राजील वाले क्या करेंगे? कौन­सा नशा रखेंगे? (उमंग­उत्साह) बहुत ज्यादा उमंग है। तो सदा उमंग­उत्साह में रहना अर्थात् अपने श्रेष्ठ शान वा स्वमान में रहना। तो सबसे बड़ी शान है कि सदा खुश रहने वाले और दूसरों को खुशी बांटने वाले दाता के बच्चे हैं। सदा देने वाले हैं, लेने वाले नहीं। बाप से तो बिना मांगे भी मिलता ही रहता है। बाप से मिलता है और बच्चों को बांटना है तो सदा खुशी के खज़ाने को बांटने वाले महादानी। ये है ब्राजील वालों के लिये विशेष वरदान।

साउथ अमेरिका:­ उसमें कौन है हाथ उठाओ। (पांच देश हैं) तो पांच ही देश किस टाइटल को याद करेंगे? टाइटल तो बहुत हैं ना। हर रोज कोई न कोई विशेष शान का टाइटल मिलता है। तो ये पांच ही मिल करके क्या टाइटल याद रखेंगे? (सन्तुष्टमणि) अच्छा-मणि कहाँ होती है? ताज में होती है ना। तो सबसे ऊंचे स्थान पर मणि चमकती है। तो ये पांच ही सदा ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाले सन्तुष्टमणि बन अपनी सन्तुष्टता की लाइट चारों ओर फैलायेंगे। तो सदा सन्तुष्ट मणि भव। ये अच्छा है। दूर होते भी समीप हैं। देश दूर है लेकिन दिल से नजदीक हैं। समझा? अच्छा!

जर्मनी:­ जर्मनी वालों को अभी कोई नई कमाल करके दिखानी है। जो सभी ने किया है वो तो किया लेकिन जर्मनी वाले नवीनता क्या करेंगे? हाथ उठाओ जो समझते हैं नवीनता करके दिखायेंगे। ये तो बहुत हैं। एक­एक की अंगुली से नवीनता का पहाड़ तो उठा हुआ ही है। उठेगा नहीं, उठा हुआ ही है। सभी अच्छे हैं, उमंग­उत्साह है, अभी सिर्फ प्रैक्टिकल में लाना है। दिल में है लेकिन दिल के उमंग­उत्साह को बाहर में लाना है। ऐसी कमाल करके दिखाओ, जो किसी ने ऐसी आत्मायें तैयार नहीं की हो लेकिन जर्मनी ऐसी आत्मायें तैयार करें जो सब ताली बजायें-वाह जर्मनी, वाह! वैसे तो जर्मनी की मदद अभी भी अच्छी मिल रही है। अच्छी मेहनत कर रहे हैं। यहाँ हॉस्पिटल में कितनी मदद कर रहे हैं। हॉस्पिटल में तो मदद की है उसकी मुबारक हो। अभी ऐसा अच्छा सेवाकेन्द्र खोलो, जो उस सेवा स्थान के ऐसे वायब्रेशन हों जिससे हर एक को नवीनता का अनुभव हो। जैसे चुम्बक दूर से ही खींचता है ऐसे सेवास्थान की आत्माओं के वायब्रेशन सभी को आकर्षित करें। हिम्मत है ना! सेवाकेन्द्र खोलने की राय पसन्द है? जर्मनी वाले फिर से हाथ उठाओ। हिम्मत है? ये हिम्मत का हाथ है या वैसे! बापदादा देख रहे हैं कि आत्मायें अच्छी हैं। जो करना चाहें वो कर सकती हैं लेकिन अभी तक गुप्त रहे, अभी प्रत्यक्ष हो जायेंगे। तो सभी ब्राह्मणों की बापदादा सहित जर्मनी वालों को दुआएं हैं। कितनी दुआएं मिल गई! ठीक है ना! जब सब ब्राह्मणों की, बापदादा की विशेष नजर जर्मनी पर पड़ी तो क्या होगा? कमाल होगी। तो सदा सर्व को दुआएं देते हुए स्वयं को भी बाप की दुवाओं से भरपूर आत्मा अनुभव करते रहना। समझा? जर्मनी का सुन करके आप सभी को भी खुशी हो रही है ना। देखो कितनी खुशी है, सबके चेहरे मुस्करा रहे हैं। अच्छा!

कैनेडा:­ कैनेडा वाले क्या करेंगे? कैनेडा का स्थान तो बहुत बड़ा है, उसमें नवीनता क्या बनाई है? सेवाकेन्द्र तो सभी हैं लेकिन नवीनता क्या बनाई है? कैनेडा वालों को जैसे स्थान है उसी अनुसार कोई न कोई नवीनता करो, म्युजियम कॉमन नहीं, जो अभी तक हो चुका है वह कॉमन हो गया, अभी और इन्वेन्शन कर ऐसा बनाओ जैसे लौकिक हिस्ट्री में वण्डर्स गाये जाते हैं ना ऐसे कैनेडा का स्थान वण्डर्स में गाया जाये। हो सकता है? अगर हाँ है तो हाथ उठाओ। थोड़े हैं लेकिन साथ में और भी तो हैं ना। तो ऐसी कोई कमाल करके दिखाओ और सदा स्वयं को बाप के इन्स्टåमेन्ट समझकर करो। बाप करावनहार है, करावनहार की स्मृति से निमित्त बन कार्य करने वाली आत्मायें हैं। तो करावनहार के द्वारा हर कार्य सहज हो जाता है। समझा? बहुत अच्छे इन्स्टåमेन्ट हैं। अच्छा!

मैक्सिको:­ मैक्सिकों वालों की भी कमाल है। वहाँ के मनी की हालत तो खराब है लेकिन मैक्सिको के ब्राह्मणों की हालत सबसे अच्छी है। बेफिक्र बादशाह हैं। देश की हालत तो होनी ही है लेकिन वो कलियुग की हालत है और आप सभी संगमयुग पर बैठे हो। इसीलिये मैक्सिको वाले साक्षी दृष्टा बन हर दृश्य को देखने वाले हैं। हलचल में आने वाले नहीं, लेकिन साक्षीपन की सीट पर दृष्टा बन खेल देख रहे हैं और खेल में हर्षित हो रहे हैं। नीचे­ऊपर होने के प्रभाव से न्यारे और प्यारे। अच्छा है, देश की हालत लोगों को हिलाती है तो जब हिलते हैं ना तो और ही स्प्रिचुअलिटी की तरफ अटेन्शन जाता है। वैराग्य की धरनी तैयार होती है और जितनी वैराग्य की धरनी तैयार होती है उतना बीज फल जल्दी देता है। तो मैक्सिको को अभी और सेवा का चांस है। बढ़ो और बढ़ाओ। बाकी निश्चयबुद्धि अच्छे­अच्छे बच्चे सदा बाप के सामने हैं और सदा रहेंगे। समझा?

करेबियन:­ गयाना, ट्रिनीडाड, सुरीनाम, बारबेडोज.... सभी तरफ सेवा का अच्छा चांस है और चांस रहेगा। तो करेबियन जो हैं वो चांस लेने वाले विशेष चांसलर हैं। चांस अच्छा लेते रहते हैं। और जितना चांस लेते हैं उतना अपने को भी खुशी होती है और दूसरों को भी खुशी होती है। धरनी को अच्छा परिवर्तन किया है। पहले भक्ति की कठोर धरनी थी, अभी परिवर्तन होकर ज्ञान सुनने की जिज्ञासा वाले बने। तो भक्ति के ऊपर जीत प्राप्त कर ली ना, विजयी बन गये। अच्छी रिजल्ट है, बापदादा खुश हैं। समझा! चांसलर हैं। अच्छा, कितने नाम लेंगे, सभी को याद­प्यार तो मिलता ही है बाकी सभी के लिये, चाहे बड़े शहर हैं, चाहे छोटे हैं, छोटे और सिकीलधे हैं क्योंकि जहाँ छोटे होते हैं वहाँ खातिरी होती है और बहुत होते हैं तो बट जाता है। जैसे देखो डबल विदेशी थोड़े थे तो पर्सनल मिलते थे और बढ़ गये हैं तो बट गया। और छोटे सुभान अल्लाह हैं। सभी को बापदादा देखते हैं, ऐसे नहीं समझना सिर्फ अमेरिका अफ्रीका देखते हैं। सभी जगह चक्कर लगाते हैं। पहले छोटों को प्यार करते हैं फिर बड़ों को। तो सभी के लिये यही विशेष वरदान है कि बिन्दु और सिन्धु, जितना ही बिन्दु है उतना ही सिन्धु बनो। ज्ञान, गुण और शक्तियों की धारणा में सिन्धु बनो और स्मृति में बिन्दु बनो। बिन्दु बनो, बिन्दु को याद करो और बिन्दु लगाते चलो। तो बिन्दु स्मृति स्वरूप और धारणा में सिन्धु स्वरूप। यही लक्ष्य सब रखते चलो। अभी किसी भी प्रकार का वेस्ट खत्म करो। हर कर्म बेस्ट। हर सेकण्ड बेस्ट हो, बोल भी बेस्ट हो, सम्बन्ध­सम्पर्क सब बेस्ट हो। जितना बेस्ट करते जायेंगे तो वेस्ट स्वत: ही खत्म हो जायेगा। अभी वेस्ट का खाता कुछ दिखाई देता है, तो बापदादा को अच्छा नहीं लगता है। आपके सारे दिन की दिनचर्या चेक करते हैं, वहाँ चारों ओर सबकी टी.वी. लगी हुई है। एक­एक बच्चे की टी.वी. है, तो दिखाई तो देता है ना कि ये वेस्ट कर रहा है या बेस्ट कर रहा है। एक सेकण्ड में देख लेते हैं। तो अभी भी वेस्ट का खाता कुछ बेस्ट से ज्यादा लगता है। तो बापदादा को वेस्ट देखकर अच्छा लगेगा? तो इस वर्ष में यह प्रतिज्ञा करो कि वेस्ट खत्म करेंगे, बेस्ट बनेंगे। कितनी भी परीक्षा आये लेकिन परीक्षा परीक्षा है, प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा है। परीक्षा आये, प्रतिज्ञा याद करो। और जब सब बेस्ट बन जायेंगे तब ही प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। आपके लिये रूका हुआ है। ऐसे ही पर्दा खुल जाये और आप तैयार हो रहे हो तो अच्छा लगेगा! इसीलिये पर्दा बन्द है। कोई मन को ठीक कर रहा है, कोई तन को ठीक कर रहा है, कोई स्वभाव को, कोई संस्कार को और पर्दा खुल जाये तो ठीक लगेगा! इसीलिये जल्दी­जल्दी तैयार हो जाओ। डायमण्ड जुबली मनाने की तैयारी कर रहे हो ना। तो सब बेदाग डायमण्ड बन जायें। डायमण्ड जुबली का तो ये अर्थ है ना। मनाओ डायमण्ड जुबली और रहे फ्लो (इर्त्ी; दाग) वाले डायमण्ड, तो अच्छा लगेगा! इसीलिये इस वर्ष में तैयार हो जाओ। टी.वी. खुले तो सब बेस्ट, बेस्ट, बेस्ट हो। वेस्ट का नाम निशान ही दिखाई न देवे। हो सकता है? कि होना ही है? बापदादा ने तो जानबूझ कर कहा कि हो सकता है। आप जवाब दो-होना ही है। अच्छा।

चारों ओर के सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें, सदा सन्तुष्ट, सदा प्रसन्नय्चित्त रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा स्वयं को श्रेष्ठ नाम, मान, शान के अधिकारी अनुभव करने वाली समीप आत्मायें, सदा सर्व को सन्तुष्टता के वायब्रेशन की लाइट­माइट देने वाले प्रसन्नचित्त आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

(बापदादा के साथ जब दादियां स्टेज पर बैठीं तो सभी फोटो निकाल रहे हैं) क्या करेंगे इतने फोटो? डबल विदेशी फोटो बहुत निकालते हैं। आप सब कहते हो दिल में बाबा है तो फोटो क्यों निकालते हो? दिल में तो है ना। ये भी एक मनोरंजन है। अभी डबल विदेशी भी पक्के हो गये। पहले जल्दी डिस्टर्ब होते थे, अभी कम होते हैं। फर्क आ गया ना। अच्छे हैं, परिवर्तन अच्छा किया है। अभी मूड ऑफ करते हो? मूड ऑफ होती है? नहीं। आपके बुद्धि का स्वीच ऑन है तो मूड ऑफ नहीं होगी। जब स्विच ऑफ हो जाता है ना तो मूड ऑफ होती है। तो आपका तो ऑटोमेटिक स्विच है ना! कि फ्युज होता है? जिसका फ्युज होता है वो कन्फ्युज होता है। अभी फर्क है। अभी और भी फ्लाय करते­करते जो बाप चाहते हैं वो दिखायेंगे। लेकिन बापदादा का नाम प्रत्यक्ष करने में आप सभी विशेष निमित्त आत्मायें हो।

अहमदाबाद (सुख­शान्ति भवन ) के भाई­बहनों से:­ अच्छे हैं, सेवा भी अच्छी करते हैं। सबको सन्तुष्ट करना यही बड़े ते बड़ी सेवा कर रहे हो। चाहे सीजन में नहीं आये हो लेकिन बापदादा सदा ही याद करते हैं। तो सुख­शान्ति भवन वाले सदा सुख­शान्ति में रहने वाले हैं। अशान्ति का नामय्निशान नहीं। और बापदादा के पास सफलता की रिजल्ट है इसलिये मुबारक हो, मुबारक हो।

तलहटी में बापदादा के कार्यक्रम के लिये आये सेवाधारियों के प्रति-अच्छा है, गुजरात सेवा की जिम्मेदारी उठाने में नम्बर आगे लेते हैं। सारा गुजरात ही संगठन में सेवा के निमित्त बना है। जो निमित्त बनते हैं उन्हों को विशेष एक कदम पर पदम गुणा सहयोग मिलता है। इसीलिये हिम्मत भी अच्छी रखी है, मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं। प्रकृति थोड़ा हिलाती है लेकिन ये अचल हैं। अच्छा है, एक संगठन की शक्ति, दूसरी हिम्मत है तो कार्य सफल हुआ ही पड़ा है।

निर्वैर भाई ने बापदादा को गुलदस्ता भेंट किया- अच्छा, ज्ञान सरोवर का क्या हो रहा है? अभी बाकी जो रहा हुआ काम है उसमें अभी किसी भी ढंग से कम खर्चा बाला नशीन करके दिखाओ।

आप सभी ज्ञान सरोवर देख करके खुश होते हो ना? ज्ञान सरोवर किसने बनाया? (बाबा ने) आप सबने। अगर आप सबकी अंगुली नहीं होती तो ज्ञान सरोवर का पहाड़ कैसे उठता! बना तो अच्छा है। फिर भी जिसने जो किया है वो बहुत अच्छा किया है और आगे भी अच्छे ते अच्छा करते ही रहेंगे। ठीक है ना! सभी ने ज्ञान सरोवर में अंगुली लगाई है या किसी ने नहीं भी लगाई है? जो भी सभी बैठे हो, सभी ने अपनी अंगुली लगाई है ना? अच्छा।