30-03-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


तीव्र पुरूषार्थ की लगन को ज्वाला रूप बनाकर बेहद के वैराग्य की लहर फैलाओ

आज बापदादा हर एक बच्चे के मस्तक पर तीन लकीरें देख रहे हैं। जिसमें एक लकीर है - परमात्म पालना के भाग्य की लकीर। यह परमात्म पालना का भाग्य सारे कल्प में अब एक बार ही मिलता है, सिवाए इस संगमयुग के यह परमात्म पालना कभी भी नहीं प्राप्त हो सकती। यह परमात्म पालना बहुत थोड़े बच्चों को प्राप्त होती है। दूसरी लकीर है - परमात्म पढ़ाई के भाग्य की लकीर। परमात्म पढ़ाई यह कितना भाग्य है जो स्वयं परम आत्मा शिक्षक बन पढ़ा रहे हैं। तीसरी लकीर है - परमात्म प्राप्तियों की लकीर। सोचो कितनी प्राप्तियां हैं। सभी को याद है ना - प्राप्तियों की लिस्ट कितनी लम्बी है! तो हर एक के मस्तक में यह तीन लकीर चमक रही हैं। ऐसे भाग्यवान आत्मायें अपने को समझते हो? पालना, पढ़ाई और प्राप्तियां। साथ-साथ बापदादा बच्चों के निश्चय के आधार पर रूहानी नशे को भी देख रहे हैं। हर एक परमात्म बच्चा कितना रूहानी नशे वाली आत्मायें हैं! सारे विश्व में और सारे कल्प में सबसे हाइएस्ट भी हैं, महान भी हैं और होलीएस्ट भी हैं। आप जैसी पवित्र आत्मायें तन से भी, मन से भी देव रूप में सर्व गुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी और कोई बनता नहीं है। और फिर हाइएस्ट भी हो, होलीएस्ट भी हो साथ-साथ रिचेस्ट भी हो। बापदादा स्थापना में भी बच्चों को स्मृति दिलाते थे और फलक से अखबारों में भी डलवाया कि ‘‘ओम मण्डली रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड’’। यह स्थापना के समय की आप सबकी महिमा है। एक दिन में कितना भी बड़े ते बड़ा मल्टी-मल्टी मिल्युनर हो लेकिन आप जैसा रिचेस्ट हो नहीं सकता। इतना रिचेस्ट बनने का साधन क्या है? बहुत छोटा सा साधन है। लोग रिचेस्ट बनने के लिए कितनी मेहनत करते हैं और आप कितना सहज मालामाल बनते जाते हो। जानते हो ना साधन! सिर्फ छोटी सी बिन्दी लगानी है बस। बिन्दी लगाई, कमाई हुई। आत्मा भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा फुलस्टाप लगाना, वह भी बिन्दी है। तो बिन्दी आत्मा को याद किया, कमाई बढ़ गई। वैसे लौकिक में भी देखो, बिन्दी से ही संख्या बढ़ती है। एक के आगे बिन्दी लगाओ तो क्या हो जाता? 10, दो बिन्दी लगाओ, तीन बिन्दी लगाओ, चार बिन्दी लगाओ, बढ़ता जाता है। तो आपका साधन कितना सहज है! ‘‘मैं आत्मा हूँ’’ - यह स्मृति की बिन्दी लगाना अर्थात् खज़ाना जमा होना। फिर ‘‘बाप’’ बिन्दी लगाओ और खज़ाना जमा। कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में ड्रामा का फुलस्टाप लगाओ, बीती को फुलस्टाप लगाया और खज़ाना बढ़ जाता। तो बताओ सारे दिन में कितने बार बिन्दी लगाते हो? और बिन्दी लगाना कितना सहज है! मुश्किल है क्या? बिन्दी खिसक जाती है क्या?

बापदादा ने कमाई का साधन सिर्फ यही सिखाया है कि बिन्दी लगाते जाओ, तो सभी को बिन्दी लगाने आती है? अगर आती है तो एक हाथ की ताली बजाओ। पक्की है ना! या कभी खिसक जाती है, कभी लग जाती है? सबसे सहज बिन्दी लगाना है। कोई इस आंखों से ब्लाइन्ड भी हो, वह भी अगर कागज पर पेन्सिल रखेगा तो बिन्दी लग जाती है और आप तो त्रिनेत्री हो, इसलिए इन तीन बिन्दियों को सदा यूज़ करो। क्वेश्चन मार्क कितना टेढ़ा है, लिखकर देखो, टेढ़ा है ना? और बिन्दी कितनी सहज है। इसलिए बापदादा भिन्न-भिन्न रूप से बच्चों को समान बनाने की विधि सुनाते रहते हैं। विधि है ही बिन्दी। और कोई विधि नहीं है। अगर विदेही बनते हो तो भी विधि है - बिन्दी बनना। अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है। इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा है - अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूहरिहान करते जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ, वह लाल बिन्दियों का तिलक लगाने नहीं शुरू करना लेकिन स्मृति का तिलक लगाओ। और चेक करो - किसी भी कारण से यह स्मृति का तिलक मिटे नहीं। अविनाशी, अमिट तिलक है?

बापदादा बच्चों का प्यार भी देखते हैं, कितने प्यार से भाग-भाग कर मिलन मनाने पहुंचते हैं और फिर आज हाल में भी मिलन मनाने के लिए कितनी मेहनत से, कितने प्यार से नींद, प्यास को भूलकर पहले नम्बर में नजदीक बैठने का पुरूषार्थ करते हैं। बापदादा सब देखते हैं, क्या-क्या करते हैं वह सारा ड्रामा देखते हैं। बापदादा बच्चों के प्यार पर न्योछावर भी होते हैं और यह भी बच्चों को कहते हैं जैसे साकार में मिलने के लिए दौड़-दौड़ कर आते हो ऐसे ही बाप समान बनने के लिए भी तीव्र पुरूषार्थ करो, इसमें सोचते हो ना कि सबसे आगे ते आगे नम्बर मिले। सबको तो मिलता नहीं है, यहाँ साकारी दुनिया है ना! तो साकारी दुनिया के नियम रखने ही पड़ते हैं। बापदादा उस समय सोचते हैं कि सब आगे-आगे बैठ जाएं लेकिन यह हो सकता है? हो भी रहा है, कैसे? पीछे वालों को बापदादा सदा नयनों में समाया हुआ देखते हैं। तो सबसे समीप हैं नयन। तो पीछे नहीं बैठे हो लेकिन बापदादा के नयनों में बैठे हो। नूरे रत्न हो। पीछे वालों ने सुना? दूर नहीं हो, समीप हो। शरीर से पीछे बैठे हैं लेकिन आत्मा सबसे समीप है। और बापदादा तो सबसे ज्यादा पीछे वालों को ही देखते हैं। देखो नजदीक वालों को इन स्थूल नयनों से देखने का चांस है और पीछे वालों को इन नयनों से नजदीक देखने का चांस नहीं है इसलिए बापदादा नयनों में समा लेता है।

बापदादा मुस्कराते रहते हैं, दो बजता है और लाइन शुरू हो जाती है। बापदादा समझते हैं कि बच्चे खड़े-खड़े थक भी जाते हैं लेकिन बापदादा सभी बच्चों को प्यार का मसाज़ कर देते हैं। टांगों में मसाज़ हो जाता है। बापदादा का मसाज़ देखा है ना - बहुत न्यारा और प्यारा है। तो आज सभी इस सीज़न का लास्ट चांस लेने के लिए चारों ओर से भाग-भागकर पहुंच गये हैं। अच्छा है। बाप से मिलन का उमंग-उत्साह सदा आगे बढ़ाता है। लेकिन बापदादा तो बच्चों को एक सेकण्ड भी नहीं भूलता है। बाप एक है और बच्चे अनेक परन्तु अनेक बच्चों को भी एक सेकण्ड भी नहीं भूलते क्योंकि सिकीलधे हो। देखो कहाँ-कहाँ देश-विदेश के कोने-कोने से बाप ने ही आपको ढूंढा। आप बाप को ढूंढ सके? भटकते रहे लेकिन मिल नहीं सके और बाप ने भिन्न-भिन्न देश, गांव, कस्बे जहाँ-जहाँ भी बाप के बच्चे हैं, वहाँ से ढूंढ लिया। अपना बना लिया। गीत गाते हो ना - मैं बाबा का और बाबा मेरा। न जाति देखी, न देश देखा, न रंग देखा, सबके मस्तक पर एक ही रूहानी रंग देखा - ज्योति बिन्दु। डबल फॉरेनर्स क्या समझते हैं? बाप ने जाति देखी? काला है, गोरा है, श्याम है, सुन्दर है? कुछ नहीं देखा। मेरा है - यह देखा। तो बताओ बाप का प्यार है या आपका प्यार है? किसका है? (दोनों का है) बच्चे भी उत्तर देने में होशियार हैं, कहते हैं बाबा आप ही कहते हो कि प्यार से प्यार खींचता है, तो आपका प्यार है तो हमारा है तब तो खींचता है। बच्चे भी होशियार हैं और बाप को खुशी है कि इतना हिम्मत, उमंग-उत्साह रखने वाले बच्चे हैं।

बापदादा के पास 15 दिन के चार्ट का बहुत बच्चों का रिजल्ट आया है। एक बात तो बापदादा ने चारों ओर की रिजल्ट में देखी कि मैजॉरिटी बच्चों का अटेन्शन रहा है। परसेन्टेज़ जितनी स्वयं भी चाहते हैं उतनी नहीं है, परन्तु अटेन्शन है और दिल ही दिल में जो तीव्र पुरुषार्थी बच्चे हैं वह अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लक्ष्य से आगे बढ़ भी रहे हैं। और आगे बढ़ते-बढ़ते मंजिल पर पहुंच ही जायेंगे। मैनारिटी अभी भी कभी अलबेलेपन में और कभी आलस्य के वश अटेन्शन भी कम दे रहे हैं। उन्हों का एक विशेष स्लोगन है - हो ही जायेंगे, जायेंगे.... जाना है नहीं, जायेंगे। हो ही जायेगा - यह है अलबेलापन। जाना ही है, यह है तीव्र पुरूषार्थ। बापदादा वायदे बहुत सुनते हैं, बार-बार वायदे बहुत अच्छे करते हैं। बच्चे वायदे इतनी अच्छी हिम्मत से करते हैं जो उस समय बापदादा को भी बच्चे दिलखुश मिठाई खिला देते हैं। बाप भी खा लेते हैं। लेकिन वायदा अर्थात् पुरूषार्थ में ज्यादा से ज्यादा फायदा। अगर फायदा नहीं तो वायदा समर्थ नहीं है। तो वायदा भले करो फिर भी दिलखुश मिठाई तो खिलाते हो ना! साथ-साथ तीव्र पुरूषार्थ की लगन को अग्नि रूप में लाओ। ज्वालामुखी बनो। समय प्रमाण रहे हुए जो भी मन के, सम्बन्ध-सम्पर्क के हिसाब-किताब हैं उसको ज्वाला स्वरूप से भस्म करो। लगन है, इसमें बापदादा भी पास करते हैं लेकिन अभी लगन को अग्नि रूप में लाओ।

विश्व में एक तरफ भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि होगी, दूसरे तरफ आप बच्चों का पावरफुल योग अर्थात् लगन की अग्नि ज्वाला रूप में आवश्यक है। यह ज्वाला रूप इस भ्रष्टाचार, अत्याचार के अग्नि को समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी। आपकी लगन ज्वाला रूप की हो अर्थात् पावरफुल योग हो, तो यह याद की अग्नि, उस अग्नि को समाप्त करेगी और दूसरे तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करायेगी। बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रज्वलित करायेगी। एक तरफ भस्म करेगी दूसरे तरफ शीतल भी करेगी। बेहद के वैराग्य की लहर फैलायेगी। बच्चे कहते हैं - मेरा योग तो है, सिवाए बाबा के और कोई नहीं, यह बहुत अच्छा है। परन्तु समय अनुसार अभी ज्वाला रूप बनो। जो यादगार में शक्तियों का शक्ति रूप, महाशक्ति रूप, सर्व शस्त्रधारी दिखाया है, अभी वह महा शक्ति रूप प्रत्यक्ष करो। चाहे पाण्डव हैं, चाहे शक्तियां हैं, सभी सागर से निकली हुई ज्ञान नदियां हो, सागर नहीं हो, नदी हो। ज्ञान गंगाये हो। तो ज्ञान गंगायें अब आत्माओं को अपने ज्ञान की शीतलता द्वारा पापों की आग से मुक्त करो। यह है वर्तमान समय का ब्राह्मणों का कार्य।

सभी बच्चे पूछते हैं कि इस साल क्या सेवा करें? तो बापदादा पहली सेवा यही बताते हैं कि अभी समय अनुसार सभी बच्चे वानप्रस्थ अवस्था में हैं, तो वानप्रस्थी अपने समय, साधन सभी बच्चों को देकर स्वयं वानप्रस्थ होते हैं। तो आप सभी भी अपने समय का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्प का खज़ाना अभी औरों के प्रति लगाओ। अपने प्रति समय, संकल्प कम लगाओ। औरों के प्रति लगाने से स्वयं भी उस सेवा का प्रत्यक्षफल खाने के निमित्त बन जायेंगे। मन्सा सेवा, वाचा सेवा और सबसे ज्यादा - चाहे ब्राह्मण, चाहे और जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उन्हों को कुछ न कुछ मास्टर दाता बनके देते जाओ। नि:स्वार्थ बन खुशी दो, शान्ति दो, आनंद की अनुभूति कराओ, प्रेम की अनुभूति कराओ। देना है और देना माना स्वत: ही लेना। जो भी जिस समय, जिस रूप में सम्बन्ध-सम्पर्क में आये कुछ लेकर जाये। आप मास्टर दाता के पास आकर खाली नहीं जाये। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा - चलते-फिरते भी अगर कोई भी बच्चा सामने आया तो कुछ न कुछ अनुभूति के बिना खाली नहीं जाता। यह चेक करो जो भी आया, मिला, कुछ दिया वा खाली गया? खजाने से जो भरपूर होते हैं वह देने के बिना रह नहीं सकते। अखुट, अखण्ड दाता बनो। कोई मांगे, नहीं। दाता कभी यह नहीं देखता कि यह मांगे तो दें। अखुट महादानी, महादाता स्वयं ही देता है। तो पहली सेवा इस वर्ष - महान दाता की करो। आप दाता द्वारा मिला हुआ देते हो। ब्राह्मण कोई भिखारी नहीं हैं लेकिन सहयोगी हैं। तो आपस में ब्राह्मणों को एक दो में दान नहीं देना है, सहयोग देना है। यह है पहला नम्बर सेवा। और साथ-साथ बापदादा ने विदेश के बच्चों की खुशखबरी सुनी तो बापदादा ने देखा कि जो इस सृष्टि के आवाज फैलाने के निमित्त बापदादा ने जो माइक नाम दिया है तो विदेश के बच्चों ने आपस में इस कार्य को किया है और जब प्लैन बना है तो प्रैक्टिकल होना ही है। लेकिन भारत में भी जो 13 ज़ोन हैं, हर एक ज़ोन से कम से कम एक ऐसा विशेष निमित्त सेवाधारी बनें, जिसको माइक कहो या कुछ भी कहो, आवाज फैलाने वाले कोई निमित्त बनाओ, यह बापदादा ने कम से कम कहा है लेकिन अगर बड़े-बड़े देश में ऐसे निमित्त बनने वाले हैं तो सिर्फ ज़ोन वाले नहीं लेकिन बड़े देशों से भी ऐसे तैयार कर प्रोग्राम बनाना है। बापदादा ने विदेश के बच्चों को दिल ही दिल में मुबारक दी, अभी मुख से भी दे रहे हैं कि प्रैक्टिकल में लाने का प्लैन पहले बापदादा के सामने लाया। वैसे बापदादा जानते हैं कि भारत में और ही सहज है लेकिन अभी कुछ क्वालिटी की सेवा कर सहयोगी समीप लाओ। बहुत सहयोगी हैं लेकिन संगठन में उन्हों को और समीप लाओ।

साथ-साथ बापदादा का यह संकल्प है कि हर एक बड़े शहरों की जो एरिया होती है, वह बहुत बड़ी होती है, हर एक सेन्टर को अपनी एरिया से ऐसे विशेष तैयार करना आवश्यक है क्योंकि समय समीप आ रहा है और लास्ट समय आप सभी को स्वयं अपना परिचय नहीं देना है, आपकी तरफ से वह स्पीच करे, वह स्पीकर हो और आप सर्चलाइट हो। तो हर एक को अपनी एरिया से ऐसा माइक निकालना है। हर एक एरिया में कोई न कोई विशेष बिजनेसमैन कहो वा ऐसा भिन्न-भिन्न वर्ग का कोई मुख्य होता ही है। अपने- अपने सेन्टर पर अपनी एरिया की विशेष आत्माओं को तैयार करो। वह सुनावे कि यह ज्ञान क्या है। आप अभी लास्ट समय साक्षात्कार मूर्त, फरिश्ता बन दृष्टि दो और वह स्पीकर बने। स्पीकर बनना तो सभी सीख गये हैं, छोटी-छोटी टीचर्स भी स्पीच बहुत अच्छा करती हैं। स्पीच सभी करते हो। अभी स्पीकर औरों को तैयार करो। आपकी दृष्टि वा दो वचन सभी को ऐसी भासना दें जैसे कई समय की स्पीच कर ली है। ऐसा समय आना ही है।

अभी समय भी फास्ट गति ले रहा है, सिर्फ समय बार-बार फास्ट होकर आप लोगों को ऐसे पीठ करके (मुड़कर के) देखता है कि हमारे मालिक तेज रफतार से आ रहे हैं वा समय फास्ट जा रहा है? मालिक तो आप हो ना? तो आपको बार-बार देखता है, फास्ट आ रहे हैं! इसलिए इस वर्ष क्वालिटी की सेवा में विशेष अटेन्शन दो। हर एक सेन्टर की रिजल्ट आनी चाहिए कि हमारे सेन्टर पर किस वर्ग के और कितनी क्वालिटी की सेवा हो रही है। क्वान्टिटी तो स्वत: ही बढ़ती जायेगी। अभी भी देखो यह हाल भी छोटा हो गया है ना। क्वान्टिटी तो बढ़नी ही है, अभी ऐसे प्रैक्टिकल ग्रुप तैयार करो।

साथ-साथ ब्राह्मण आत्माओं में और भी समीप लाने के लिए, हर एक तरफ वा मधुबन में चारों ओर ज्वाला स्वरूप का वायुमण्डल बनाने के लिए, चाहे जिसको भट्ठी वहते हो वह करो, चाहे आपस में संगठन में रूहरिहान करके ज्वाला स्वरूप का अनुभव कराओ और आगे बढ़ाओ। जब इस सेवा में लग जायेंगे तो जो छोटी-छोटी बातें हैं ना - जिसमें समय लगता है, मेहनत लगती है, दिलशिकस्त बनते हैं वह सब ऐसे लगेगा जैसे ज्वालामुखी हाइएस्ट स्टेज और उसके आगे यह समय देना, मेहनत करना, एक गुड़ियों का खेल अनुभव होगा। स्वत: ही सहज ही सेफ हो जायेंगे। बापदादा ने कहा ना कि सबसे ज्यादा बापदादा को रहम तब पड़ता है जब देखते हैं कि मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चे और छोटी-छोटी बातों के लिए मेहनत करते हैं। मोहब्बत ज्वालामुखी रूप की कम है तब मेहनत लगती है। तो अभी मेहनत से मुक्त बनो, अलबेले नहीं बनना लेकिन मेहनत से मुक्त होना। ऐसे नहीं सोचना मेहनत तो करनी नहीं है तो आराम से सो जाओ। लेकिन मोहब्बत से मेहनत खत्म करो। अलबेलेपन से नहीं। समझा - क्या करना है?

अभी बापदादा को आना तो है ही। पूछते हैं आगे क्या होगा? बापदादा आयेंगे या नहीं आयेंगे? बापदादा ना तो करते नहीं हैं, हाँ जी, हाँ जी करते हैं। बच्चे कहते हैं हजूर, बाप कहते हैं जी हाजिर। तो समझा क्या करना है, क्या नहीं करना है। मेहनत मोहब्बत से कट करो। अभी मेहनत मुक्त वर्ष मनाओ - मोहब्बत से, आलस्य से नहीं। यह पक्का याद रखना - आलस्य नहीं।

ठीक है - सब संकल्प पूरे हुए? कोई रह गया? जनक से (दादी जानकी से) पूछते हैं - कुछ रहा? दादी तो मुस्करा रही है। खेल पूरा हो गया? यह आपरेशन भी क्या है? खेल में खेल है। खेल अच्छा रहा ना! अच्छा –

सभी विशेष टीचर्स भी बैठी हैं। एक पंथ दो कार्य किया है, टीचर्स बड़ी होशियार हैं। (मीटिंग भी है और बापदादा से मिलन भी हुआ)

अच्छा - अनेक कल्प में तो आये हो लेकिन जो इस कल्प में पहली बार आये हैं वह हाथ उठाओ। जो भी पहली बार आये हैं चाहे आगे बैठे हैं, चाहे पीछे बैठे हैं, उन्हों को बापदादा विशेष स्नेह की दृष्टि भी दे रहे हैं और पदम गुणा मुबारक भी दे रहे हैं। बहुत अच्छे समय पर आ गये। आप देखो अभी भी इतनी संख्या है, आगे चलकर इतना भी नहीं मिल सकेगा। बैठना भी मिले, यह भी मुश्किल होगा। इसीलिए अभी आ गये, बहुत अच्छा किया। मुबारक हो। अच्छा - गर्मा लग रही है सभी को। (रंग-बिरंगी हाथ के पंखे सबके पास हैं) देखो भक्ति की यात्राओं से तो बहुत सुखी बैठे हो, मिट्टी में नहीं बैठे हो, दरी और चादर पर ही बैठे हो। (ड्रिल)

सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बारबार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर सारे दिन में यूज़ करके देखो। ऐसे नहीं आर्डर करो - कन्ट्रोल और दो मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, 5 मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, इसलिए बीच-बीच में कन्ट्रोलिंग पावर को यूज़ करके देखते जाओ। सेकण्ड में होता है, मिनट में होता है, ज्यादा मिनट में होता है, यह सब चेक करते जाओ।

अभी सभी को तीन मास का चार्ट और पक्का करना है। सर्टिफिकेट लेना है। पहले स्वयं, स्वयं को सर्टिफिकेट देना फिर बापदादा देंगे। अच्छा।

चारों ओर के परमात्म पालना के अधिकारी आत्माओं को, परमात्म पढ़ाई के अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा बिन्दी की विधि से तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा मेहनत से मुक्त रहने वाले मोहब्बत में समाये हुए बच्चों को, ज्वाला स्वरूप विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जी से

जो भी कुछ ड्रामा होता है - सभी का स्नेह बढ़ता है। निमित्त आत्माओं में सभी के जैसे प्राण हैं। इसलिए आपरेशन तो निमित्त है लेकिन सबके स्नेह और दुआओं का खज़ाना बहुत जमा हो गया। देखो, ड्रामा में मुरलियां भी कितनी समय प्रमाण रिपीट हुई, बापदादा ने सभी को सकाश देने और लेने का पाठ पढ़ा लिया। समय अनुसार मुरलियां भी वही चली। बापदादा का तो प्यार है ही लेकिन हर एक बच्चों का भी दिल से प्यार है। परमात्म प्यार और ब्राह्मण आत्माओं का प्यार यह उड़ा देता है क्योंकि आपके साकार में थोड़ा समय भी मिलने का सभी को महत्व है। इतना समय मिलने के बजाए फरिश्ते मुआफिक यह मिलन - यह भी ड्रामा में पार्ट अच्छा रहा। अभी अपने को ब्रह्मा बाप के समान फरिश्ता रूप से मिलना, चलना और उड़ना - यही पार्ट चल रहा है। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा एकदम न्यारा, कर्मातीत अनुभव रहा। ऐसे आप सभी महारथियों को अभी ऐसे ब्रह्मा समान कर्मातीत अवस्था के समीप आना ही है। फॉलो फादर। एक सेकण्ड की आपकी दृष्टि कई घण्टों की प्राप्ति का अनुभव  करायेगी। अभी बोलने की, बैठने की भी मेहनत कम होती जायेगी। एकदम ब्रह्मा बाप ही दिखाई देगा। यह दादियां नहीं हैं, ब्रह्मा बाप है। अव्यक्त ब्रह्मा, अव्यक्त रूप से पालना दे रहे हैं और आप द्वारा साकार ब्रह्मा बाप की अनुभूति बढ़ती जायेगी। आपको दादी नहीं देखेंगे, ब्रह्मा देखेंगे। होता है ना ऐसे? अच्छा। कीमती रत्न हो। कीमती रत्नों की सम्भाल की जाती है।

आप निमित्त बनी हुई आत्माओं के उमंग-उत्साह से चारों ओर की आत्मायें उमंग-उत्साह से चल रही हैं क्योंकि एक दो के सहयोगी हो। जैसे बाप कहते हैं ना - हाजिर हजूर। वैसे एक दो में हाज़र - हाज़र इस स्नेह और संगठन से शक्ति औरों को मिल रही है और दुआयें आपको मिल रही हैं। दोनों को प्राप्ति है। सबसे ज्यादा दुआओं का खज़ाना किसका जमा होता है? आपका। इसमें पहले मैं कहने में अभिमान नहीं है, स्वमान है। कुछ दो तो दुआयें मिलें।

अभी भी वैराग्य वृत्ति नहीं आई है, इसमें बापदादा भी देख रहे हैं, कब आरम्भ होता है। अभी तो साधन यूज़ करने के अनुभवी ज्यादा हैं। बापदादा जानते हैं कि जब तक ब्राह्मणों में बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज नहीं हुई है तो विश्व में भी वैराग्य वृत्ति नहीं आ सकती। सारे विश्व में वैराग्य वृत्ति ही कुछ पापों से मुक्त करेगी। अभी शक्ति सेना को रहम आना चाहिए। अभी रहम कम है, सेवा है। लेकिन रहमदिल, वह अभी ज्यादा इमर्ज चाहिए। पाप कर्म का बिचारे बोझ उठाते जाते हैं। बोझ से झुकते जा रहे हैं। तो रहम आना चाहिए, तरस आना चाहिए।

अच्छा। ओम् शान्ति।