15-12-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


संकल्प शक्ति के महत्त्व को जान इसे बढ़ाओ और प्रयोग में लाओ

आज ऊँचे ते ऊँचा बाप अपने चारों ओर के श्रेष्ठ बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि सारे विश्व की आत्माओं से आप बच्चे श्रेष्ठ अर्थात् हाइएस्ट हैं। दुनिया वाले कहते हैं हाइएस्ट इन दी वर्ल्ड और वह भी एक जन्म के लिए लेकिन आप बच्चे हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प हैं। सारे कल्प में आप श्रेष्ठ रहे हैं। जानते हो ना? अपना अनादि काल देखो अनादि काल में भी आप सभी आत्मायें बाप के नजदीक रहने वाले हो। देख रहे हो, अनादि रूप में बाप के साथ-साथ समीप रहने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो। रहते सभी हैं लेकिन आपका स्थान बहुत समीप है। तो अनादि रूप में भी ऊँचे-ते-ऊँचे हो। फिर आओ आदिकाल में सभी बच्चे देव-पदधारी देवता रूप में हो। याद है अपना दैवी स्वरूप? आदिकाल में सर्व प्राप्ति स्वरूप हो। तन-मन-धन और जन चार ही स्वरूप में श्रेष्ठ हैं। सदा सम्पन्न हो, सर्व प्राप्ति स्वरूप हो। ऐसा देव-पद और किसी भी आत्माओं को प्राप्त नहीं होता। चाहे धर्म आत्मायें हैं, महात्मायें हैं लेकिन ऐसा सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ, अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं, कोई भी अनुभव नहीं कर सकता। फिर आओ मध्यकाल में, तो मध्यकाल में भी आप आत्मायें पूज्य बनते हो। आपके जड़ चित्र पूजे जाते हैं। कोई भी आत्माओं की ऐसे विधिपूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे पूज्य आत्माओं की विधिपूर्वक पूजा होती है तो सोचो ऐसे विधिपूर्वक और किसकी पूजा होती है! हर कर्म की पूजा होती है क्योंकि कर्मयोगी बनते हो। तो पूजा भी हर कर्म की होती है। चाहे धर्म आत्मायें या महान आत्माओं को साथ में मन्दिर में भी रखते हैं लेकिन विधिपूर्वक पूजा नहीं होती। तो मध्यकाल में भी हाइएस्ट अर्थात् श्रेष्ठ हो। फिर आओ वर्तमान अन्तकाल में, तो अन्तकाल में भी अब संगम पर श्रेष्ठ आत्मायें हो। क्या श्रेष्ठता है? स्वयं बापदादा - परमात्म-आत्मा और आदि-आत्मा अर्थात् बापदादा, दोनों द्वारा पालना भी लेते हो, पढ़ाई भी पढ़ते हो, साथ में सतगुरू द्वारा श्रीमत लेने के अधिकारी बने हो। तो अनादिकाल, आदिकाल, मध्यमकाल और अब अन्तकाल में भी हाइएस्ट हो, श्रेष्ठ हो। इतना नशा रहता है?

बापदादा कहते हैं इस स्मृति को इमर्ज करो। मन में, बुद्धि में इस प्राप्ति को दोहराओ। जितना स्मृति को इमर्ज रखेंगे उतना स्मृति से रूहानी नशा होगा। खुशी होगी, शक्तिशाली बनेंगे। इतना हाइएस्ट आत्मा बने हैं। यह निश्चय है पक्का? कि हम ही हाइएस्ट, श्रेष्ठ बने थे, बने हैं और सदा बनते रहेंगे। नशा है? पक्का निश्चय है तो हाथ उठाओ। टीचर्स ने भी उठाया।

मातायें तो सदा खुशी के झूले में झूलती हैं, झूलती हैं ना! माताओं को बहुत नशा रहता है, क्या नशा रहता है? हमारे लिए बाप आया है। नशा है ना! द्वापर से सभी ने नीचे गिराया, इसलिए बाप को माताओं पर बहुत प्यार है और खास माताओं के लिए बाप आये हैं। खुश हो रहे हैं, लेकिन सदा खुश रहना। ऐसे नहीं अभी हाथ उठा रहे हैं और ट्रेन में जाओ तो थोड़ा-थोड़ा नशा उतरता जाए, सदा एकरस, अविनाशी नशा हो। कभी-कभी का नशा नहीं, सदा का नशा सदा ही खुशी प्रदान करता है। आप माताओं के चेहरे सदा ऐसे होने चाहिए जो दूर से रूहानी गुलाब दिखाई दो क्योंकि इस विश्व विद्यालय की जो बात सबको अच्छी लगती है, विशेषता दिखाई देती है वह यही कि मातायें रूहानी गुलाब समान सदा खिला हुआ पुष्प हैं और मातायें ही ज़िम्मेवारी उठाए, मातायें इतना बड़ा कार्य कर रही हैं। चाहे महामण्डलेश्वर भी हैं लेकिन वह भी समझते हैं कि मातायें निमित्त बनी हैं और ऐसे श्रेष्ठ कार्य सहज चला रही हैं। माताओं के लिए कहावत है - सच है नहीं, लेकिन कहावत है – दो मातायें भी इकट्ठे कोई कार्य करें, बड़ा मुश्किल है। लेकिन यहाँ कौन निमित्त हैं? मातायें ही हैं ना! जब भी मिलने आते हैं तो क्या पूछते हैं? मातायें चलाती हैं, आपस में लड़ती नहीं हैं? खिटखिट नहीं करती हैं? लेकिन उन्हों को क्या पता कि यह साधारण मातायें नहीं हैं, यह परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें, मातायें हैं। परमात्म-वरदान इन्हों को चला रहा है। ऐसे तो नहीं कि भाई (पाण्डव) समझते हैं कि माताओं का मान है, हमारा नहीं है क्या। आप का भी गायन है, 5 पाण्डव गाये हुए हैं। शक्तियों के साथ, 7 शीतलायें दिखाते हैं तो एक पाण्डव भी दिखाते हैं। और पाण्डवों के बिना मातायें नहीं चला सकती, माताओं के बिना पाण्डव नहीं चला सकते। दोनों भुजायें चाहिए लेकिन माताओं को बहुत गिरा दिया था ना, इसलिए बाप माताओं को जो दुनिया असम्भव समझती है, वह सम्भव करके दिखा रहे हैं। आप खुश हो ना माताओं को देख करके? या नहीं? खुश हैं ना! अगर माताओं को बाप निमित्त नहीं बनाता तो नया ज्ञान, नई सिस्टम होने कारण पाण्डवों को देखकर बहुत हंगामा होता। मातायें ढाल हैं क्योंकि नया ज्ञान है ना। नई बातें हैं। लेकिन बहनों के साथ भाई सदा ही साथ हैं। पाण्डव अपने कार्य में आगे हैं और बहनें अपने कार्य में आगे हैं। दोनों की राय से हर कार्य निर्विघ्न बन चल रहा है।

बापदादा हर रोज़ बच्चों के भिन्न-भिन्न कार्य देखते रहते हैं। नये-नये प्लैन बनते ही रहते हैं। समय तो सबको याद है। याद है? 99 का चक्कर भी पूरा हो गया ना! क्या सोचते थे, 99 आ गया, 99 आ गया। लेकिन आप सबके लिए सेवा करने का वर्ष, निर्विघ्न रहने का वर्ष मिला। देखो 99 में ही मौन भट्ठियाँ कर रहे हो ना! दुनिया घबराती है और आप, जितना वह घबराते हैं उतना ही आप सभी याद की गहराई में जा रहे हो। मन का मौन है ही - ज्ञान सागर के तले में जाना और नये-नये अनुभवों के रत्न लाना। जो बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है - सबसे बड़ा खज़ाना है जो वर्तमान और भविष्य बनाता है, वह है श्रेष्ठ खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्प का खज़ाना। संकल्प शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है जो आप बच्चों के पास है - श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति। संकल्प तो सबके पास हैं लेकिन श्रेष्ठ शक्ति, शुभ-भावना, शुभ-कामना की संकल्प शक्ति, मन-बुद्धि एकाग्र करने की शक्ति - यह आपके पास ही है। और जितना आगे बढ़ते जायेंगे इस संकल्प शक्ति को जमा करते जायेंगे, व्यर्थ नहीं गंवायेंगे, व्यर्थ गंवाने का मुख्य कारण है - व्यर्थ संकल्प। व्यर्थ संकल्प, बापदादा ने देखा है मैजारिटी बच्चों के सारे दिन में व्यर्थ अभी भी है। जैसे स्थूल धन को एकानामी से यूज़ करने वाले सदा ही सम्पन्न रहते हैं और व्यर्थ गंवाने वाले कहाँ-न-कहाँ धोखा खा लेते हैं। ऐसे श्रेष्ठ शुद्ध संकल्प में इतनी ताकत है जो आपके कैचिंग पावर, वायब्रेशन कैच करने की पावर, बहुत बढ़ सकती है। यह वायरलेस, यह टेलीफोन.... जैसे यह साइंस का साधन कार्य करता है वैसे यह शुद्ध संकल्प का खज़ाना, ऐसा ही कार्य करेगा जो लण्डन में बैठे हुए कोई भी आत्मा का वायब्रेशन आपको ऐसे ही स्पष्ट कैच होगा जैसे यह वायरलेस या टेलीफोन, टी.वी. यह जो भी साधन हैं....कितने साधन निकल गये हैं, इससे भी स्पष्ट आपकी कैचिंग पावर, एकाग्रता की शक्ति से बढ़ेगी। यह आधार तो खत्म होने ही हैं। यह सब साधन किस आधार पर हैं? लाइट के आधार पर। जो भी सुख के साधन हैं मैजारिटी लाइट के आधार पर हैं। तो क्या आपकी आध्यात्मिक लाइट, आत्म लाइट यह कार्य नहीं कर सकती! जो चाहो वायब्रेशन नजदीक के, दूर के कैच कर सकेंगे। अभी क्या है, एकाग्रता की शक्ति मन-बुद्धि दोनों ही एकाग्र हो तब कैचिंग पावर होगी। बहुत अनुभव करेंगे। संकल्प किया - नि:स्वार्थ, स्वच्छ, स्पष्ट वह बहुत क्विक अनुभव करायेगा। साइलेन्स की शक्ति के आगे यह साइन्स झुकेगी। अभी भी समझते जाते हैं कि साइंस में भी कोई मिसिंग हैं जो भरनी चाहिए। इसलिए बापदादा फिर से अण्डरलाइन करा रहा है कि अन्तिम स्टेज, अन्तिम सेवा - यह संकल्प शक्ति बहुत फास्ट सेवा करायेगी। इसीलिए संकल्प शक्ति के ऊपर और अटेन्शन दो। बचाओ, जमा करो। बहुत काम में आयेगी। प्रयोगी इस संकल्प की शक्ति से बनेंगे। साइंस का महत्त्व क्यों है? प्रयोग में आती है तब सब समझते हैं हाँ साइंस अच्छा काम करती है। तो साइलेन्स की पावर का प्रयोग करने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए और एकाग्रता का मूल आधार है - मन की कण्ट्रोलिंग पावर, जिससे मनोबल बढ़ता है। मनोबल की बड़ी महिमा है, यह रिद्धि-सिद्धि वाले भी मनोबल द्वारा अल्पकाल के चमत्कार दिखाते हैं। आप तो विधिपूर्वक, रिद्धि-सिद्धि नहीं, विधिपूर्वक कल्याण के चमत्कार दिखायेंगे जो वरदान हो जायेंगे, आत्माओं के लिए यह संकल्प शक्ति का प्रयोग वरदान सिद्ध हो जायेगा। तो पहले यह चेक करो कि मन को कण्ट्रोल करने की कण्ट्रोलिंग पावर है? सेकण्ड में जैसे साइन्स की शक्ति, स्विच के आधार से, स्विच आन करो, स्विच आफ करो - ऐसे सेकण्ड में मन को जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो, उतना कण्ट्रोल कर सकते हैं? बहुत अच्छे-अच्छे स्वयं प्रति भी और सेवा प्रति भी सिद्धि रूप दिखाई देंगे। लेकिन बापदादा देखते हैं कि संकल्प शक्ति के जमा का खाता अभी साधारण अटेन्शन है। जितना होना चाहिए उतना नहीं है। संकल्प के आधार पर बोल और कर्म ऑटोमेटिक चलते हैं। अलग- अलग मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं है, आज बोल को कण्ट्रोल करो, आज दृष्टि को अटेन्शन में लाओ, मेहनत करो, आज वृत्ति को अटेन्शन से चेंज करो। अगर संकल्प शक्ति पावरफुल है तो यह सब स्वत: ही कण्ट्रोल में आ जाते हैं। मेहनत से बच जायेंगे। तो संकल्प शक्ति का महत्त्व जानो।

यह भट्ठियाँ विशेष इसीलिए कराई जाती हैं, आदत पड़ जाए। यहाँ की आदत भविष्य में भी अटेन्शन दे करते रहें तब अविनाशी हो। समझा। क्या महत्व है? आपके पास बड़ा ऊँचे-ते-ऊँचा खज़ाना बाप ने दिया है। यह श्रेष्ठ संकल्प, शुभ-भावना, शुभ-कामना के संकल्प का खज़ाना है? सबको बाप ने दिया है लेकिन जमा नम्बरवार करते हैं और प्रयोग में लाने की शक्ति भी नम्बरवार है। अभी भी शुभ-भावना वा शुभ-कामना इसका प्रयोग किया है? विधि पूर्वक करने से सिद्धि का अनुभव होता है? अभी थोड़ा-थोड़ा होता है। आखिर आपके संकल्प की शक्ति इतनी महान हो जायेगी - जो सेवा में मुख द्वारा सन्देश देने में समय भी लगाते हो, सम्पत्ति भी लगाते हो, हलचल में भी आते हो, थकते भी हो..लेकिन श्रेष्ठ संकल्प की सेवा में यह सब बच जायेगा। बढ़ाओ। इस संकल्प शक्ति को बढ़ाने से प्रत्यक्षता भी जल्दी होगी। अभी 62-63 वर्ष हो गये हैं, इतने समय में कितनी आत्मायें बनाई हैं? 9 लाख भी पूरे नहीं हुए हैं। और सारे विश्व को सन्देश पहुँचाना है तो कितनी करोड़ आत्मायें हैं? अभी तक भी भगवान इन्हों का टीचर है, भगवान इन्हों को चला रहा है, करावनहार परमात्मा करा रहा है...यह स्पष्ट नहीं हुआ है। अच्छा कार्य है और श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं यह आवाज़ तो है लेकिन करावनहार अभी भी गुप्त है। तो यह संकल्प-शक्ति से हर एक के बुद्धि को परिवर्तित कर सकते हो। चाहे अहो प्रभू कहके प्रत्यक्ष हो, चाहे बाप के रूप में प्रत्यक्ष हो। तो बापदादा अभी भी फिर से अटेन्शन दिलाता है कि संकल्प शक्ति को बढ़ाओ और प्रयोग में लाते रहो। समझा। अच्छा –

आज माताओं का चांस है, एक माताओं का ग्रुप और मेडीसिन (मेडिकल) वाले, दो वर्ग हैं। मातायें क्या कमाल करेंगी? मेम्बर तो बन गई? महिला वर्ग की मेम्बर हो, अच्छी बात है ना! लेकिन जो भी मेम्बर बने हैं, अच्छा किया है। अभी आप सबकी लिस्ट गवर्मेन्ट को भेजेंगे, क्यों भेजेंगे? डरना नहीं। इनकमटैक्स वाले नहीं आयेंगे आपके पास। इसीलिए भेजेंगे कि यह सब मातायें अभी जगत मातायें बन, जगत को सुधारेंगी। यह कार्य करेंगी ना? तो गवर्मेन्ट को आपका नाम भेजें कि इतनी मातायें दुनिया को स्वर्ग बनाने वाली हैं? भेजें, हाथ उठाओ, डरते तो नहीं हो। डरना नहीं लेकिन यह ध्यान रखना कि अगर आपकी ऐसी इन्क्वायरी करें तो पहले आपका घर स्वर्ग बना है क्योंकि पहले घर फिर विश्व। तो कोई भी माता के पास आकर देखे तो घर में सुख-शान्ति है? तो दिखाई देगा, घर स्वर्ग बनासर? या विश्व को स्वर्ग बनायेंगी, घर को नहीं। पहले घर को बनायेंगी तभी दूसरों पर भी प्रभाव पड़ेगा। नहीं तो कहेंगे घर में कलह लगा पड़ा है, स्वर्ग कहाँ है। तो इसीलिए माताओं को ऐसा वायुमण्डल बनाना है जो कोई भी देखे तो यही दिखाई दे कि माताओं ने परिवर्तन अच्छा किया है। अच्छा जो मेम्बर हैं वह हाथ उठाओ। कितने मेम्बर हैं? (एक हज़ार आये हैं) एक हज़ार भी बहुत हैं। तो जिन्होंने हाथ उठाया मेम्बर हैं, उन्हों के घर में सुख-शान्ति है? हाँ, वह हाथ उठाओ। खड़ी हो जाओ। समझ में आया या ऐसे ही खड़ी हो गई। घर स्वर्ग है? घर में शान्ति है? अच्छा - इन्हों का फोटो निकालो। अच्छा है।

आपकी टीचर को आपके घर में भेजें देखने के लिए। वैसे तो हिम्मत वाली हैं, कोई ने समझा है, कोई ने नहीं भी समझा है। अच्छा है। अगर कोई भी थोड़ी खिटखिट हो तो अभी जाकर पहले घर को ठीक करना फिर विश्व की सेवा कर सकेंगी। ठीक है ना। जिन्होंने नहीं हाथ उठाया वह भी करना - शुभ-भावना से, जवाब नहीं देना, क्रोध नहीं करना, इससे भी फर्क पड़ जाता है। देखो यज्ञ की हिस्ट्री में ऐसे बहुत दृष्टान्त हैं, बहुत मारते थे, मारते हैं ना। तो बहुत माताओं की शुभ-भावना से सेवा करने से वह बाप के बच्चे बन गये। तो आप भी सोचेंगी कि हमारे घर में तो लड़ाई होती है, मारते भी हैं, यह होता है वह होता है लेकिन जब कोई बदल सकते हैं तो आप नहीं बदल सकती हो! शुभ-भावना और अपनी चलन परिवर्तन हो जाती तो वह भी नर्म हो जाते हैं। गर्म नहीं होते, नर्म हो जाते हैं। इसलिए मातायें पहले अपने घरों को, बच्चों को ठीक करो। अच्छा नहीं मानते हैं लेकिन प्यार से चलें, ज्ञान की ग्लानी नहीं करें, इतना तो हो सकता है ना। चलो क्रोधी हैं, क्या भी हैं, आदतें खराब हैं लेकिन यह तो कहें कि माता जी बहुत अच्छी हैं। हम ऐसे हैं लेकिन माता अच्छी है। इतना प्रभाव तो हो। बदली होना चाहिए ना। फिर देखो सेवा कितनी फैलती है। ठीक है मातायें। बहुत अच्छा, देखो आपके वर्ग को भी चांस मिला है ना। तो लक्की हो गई ना। अच्छा –

अभी है मैडीकल वर्ग। हाथ उठाओ। ग्लोबल हॉस्पिटल वाले भी हाथ उठाओ, वह भी मेडिकल विंग है। डबल विदेशियों में कोई हैं। मैडीकल विंग बहुत सहज सेवा कर सकता है, क्यों? जब पेशेन्ट आते हैं, आपके पास तो पेशेन्ट ही आयेंगे। तो पेशेन्ट हमेशा डाक्टर को भगवान का रूप समझते हैं और भावना भी होती है। अगर डाक्टर किसको कहता है कि यह चीज़ नहीं खानी है, तो डर के मारे नहीं खायेंगे और कोई गुरू कहेगा तो भी नहीं मानेंगे। तो मैडीकल वालों को सहज सेवा का साधन है जो भी आवे उनको समय मुकरर करना पड़ता है, क्योंकि काम के समय तो आप कुछ कर नहीं सकते, लेकिन कोई ऐसा विधि बनाओ जो पेशेन्ट थोड़ा भी इन्ट्रेस्टेड हो, उनको एक टाइम बुलाकर और उन्हों को 15 मिनट आधा घण्टा भी परिचय दो तो क्या होगा, आपकी सेवा बढ़ती जायेगी। सन्देश देना वह और बात है, सन्देश से खुश होते हैं लेकिन राजयोगी नहीं बनते हैं। सन्देश आप लोगों ने कितने बार दिया है। अभी भी देखो यात्रायें निकाल रहे हो ना! तो सन्देश कितनों को मिलेगा। कोई ने पर्चे छपाये है, कोई ने कोई रूपरेखा रखी है, फंक्शन रखा है, लेकिन जब तक थोड़ा टाइम भी किसको अनुभव नहीं होता तब तक स्टूडेन्ट नहीं बन सकता। आप देखो जो भी ज्यादा रिजल्ट निकलती है सेवा की, जो योग शिविर करते हैं और एक सप्ताह सम्पर्क में आते हैं, योग द्वारा कोई अनुभव कराते हैं तो वह रेग्युलर बनते हैं। तो आप लोग भी कोई ऐसी विधि बनाओ, जो स्टूडेन्ट बनें। क्योंकि 9 लाख जो बनेंगे तो सिर्फ सन्देश वाले नहीं, 9 लाख सतयुग की पहली प्रजा है। तो सिर्फ सन्देश वाले नहीं, रेग्युलर कुछ न कुछ अनुभूति करने वाले बनेंगे। तो ऐसी विधि बनाओ। सन्देश वाले भी चाहिए, क्योंकि लास्ट में 33 करोड़ देवतायें कहते हैं। कलियुग अन्त तक वह भी चाहिए लेकिन पहले 9 लाख तो तैयार करो। आप जायेंगे तो प्रजा पीछे आयेगी क्या! प्रजा भी तो चाहिए जिस पर राज्य करो। तो पहले कुछ न कुछ अनुभव कराओ। जिसको कोई भी अनुभव होता है वह छोड़ नहीं सकते हैं। बाकी काम तो अच्छा है, किसके दुख को दूर करना। कार्य तो बहुत अच्छा करते हो, लेकिन सदा के लिए नहीं करते हो। दवाई खायेंगे तो बीमारी हटेगी, दवाई बन्द तो बीमारी फिर से आ जाती है। तो ऐसी दवाई दो, जो बीमारी का नाम निशान नहीं हो, वह है मेडीटेशन। फिर भी डाक्टर्स या नर्सेज या कोई भी काम करने वाले चाहिए जरूर। तो बापदादा खुश होते हैं। जब डाक्टर्स इकट्ठे होते हैं तो बापदादा भी खुश होते हैं कि ब्राह्मण परिवार में भी काम में आयेंगे ना। जितना समय नाजुक आयेगा, उतनी बीमारियां भी तो बढ़ेंगी ना। तो डाक्टर्स तो अच्छे अच्छे चाहिए। तो डाक्टर्स से बापदादा पूछते हैं - कि मैडीकल कार्य में तो अच्छे हो लेकिन `मैडीसिन और मैडीटेशन' - आप डाक्टर्स का दोनों में बैलेन्स है? जितना इस कार्य में बिज़ी हो और प्रोग्रेस करते जाते हो, इतना ही मैडीटेशन में भी बढ़ता जाता है। बढ़ता है? जो समझते हैं हमारा बैलेन्स रहता है, मैडीटेशन और मैडीसिन का काम करने में, वह हाथ उठाओ। बैलेन्स है? इन्हों का भी फोटो निकालो। यह सब काम में आने वाले हैं इसीलिए आपका फोटो निकाल रहे हैं। अच्छा।

बापदादा को हर वर्ग का महत्त्व है क्योंकि जैसे शरीर में एक अंग भी नहीं हो, कम हो तो कमी महसूस होती है ना। ऐसे यह हर वर्ग बहुत-बहुत महत्त्वपूर्ण है। तो डाक्टर्स का वर्ग भी बापदादा को सेवाधारी ग्रुप देखने में आता है। सिर्फ थोड़ा समय इस सेवा को भी देते रहो। कई डाक्टर्स कहते हैं हमको फुर्सत ही नहीं होती है। फुर्सत नहीं होती होगी फिर भी कितने भी बिज़ी हों, अपना एक कार्ड छपा के रखो, जिसमें यह इशारा हो, अट्रेक्शन का कोई स्लोगन हो, तो और आगे सफा चाहते हो तो यह यह एड्रेसेज़ हैं, जहाँ आप रहते हो वहाँ के सेन्टर्स की एड्रेस हो। यहाँ जाकर अनुभव करो, कार्ड तो दे सकते। जब पर्चा लिखकर देते हो यह दवाई लेना, यह दवाई लेना। तो पर्चा देने के समय यह कार्ड भी दे दो। हो सकता है कोई कोई को तीर लग जाए क्योंकि डाक्टरों की बात मानते हैं और टेन्शन तो सभी को होता है। एक प्रकृति की तरफ से टेन्शन, परिवार की तरफ से टेन्शन और अपने मन की तरफ से भी टेन्शन। तो टेन्शन फ्री लाइफ की दवाई यह है, ऐसा कुछ उसको अट्रेक्शन की छोटी सी बात लिखो तो क्या होगा, आपकी सेवा के खाते में तो जमा हो जायेगा ना। ऐसे कई करते भी हैं, जो नहीं करते हैं वह करो। डबल डाक्टर हो सिंगल थोड़ेही हो। डबल डाक्टर हो तो डबल सेवा करो। सब अपने अपने स्थान पर सेवा में ठीक हो, कोई खिटखिट तो नहीं है? सब ठीक हो? अच्छा। ठीक नहीं वाले तो उठायेंगे नहीं, शर्म आयेगा ना। लेकिन डबल सेवा से लौकिक सेवा भी ठीक हो जाती है क्योंकि सेवा का भी बल है, जैसे योग का बल है, ज्ञान का बल है, दिव्य गुणों का बल है, धारणा का बल है...वैसे ही सेवा का भी बल है। चार ही सब्जेक्ट में 100-100 मार्क्स हैं। तो चार ही सब्जेक्ट वा चार ही बल अगर जमा हो जाता है तो मार्क्स तो बढ़ जायेंगी ना। चलो कोई में 50 हो, कोई में 75 हो लेकिन टोटल में तो बढ़ जायेगा ना। तो चार ही सब्जेक्ट में मार्क्स जमा करते चलो। यह नहीं सोचो कि इसमें तो थोड़ी हैं, कई बच्चे जवाब देते हैं। बाप कहते हैं ना चार्ट रखो तो कहते हैं चार्ट रखने की कोशिश की, उस दिन चार्ट ही खराब था इसलिए लिखा ही नहीं। है तो बहाना। अच्छा चार्ट खराब है और ही लिखने से सुधरेगा ना। बातें बनाने में तो होशियार हैं। तो समझा। डाक्टर्स को फर्स्ट नम्बर आना है या पीछे पीछे आना है। फर्स्ट आयेंगे ना। तो फर्स्ट आने के लिए यह अटेन्शन रखो, मार्क्स बढ़ाओ क्योंकि वहाँ सतयुग में तो डाक्टर्स बनना ही नहीं है। राजा बनना है ना। राजयोगी हो। तो राजयोगी हो, राजा बनना है तो अटेन्शन भी रखना पड़ेगा। अच्छा।

जो हार्ट का कोर्स कर रहे हैं, वह हाथ उठाओ। हार्ट तो ठीक है ना। डाक्टर कहाँ है? (सतीष गुप्ता को) अच्छा है अगर सहज साधन से ठीक हो जाता है, तो डबल फायदा है। दवाई भी है और मैडीटेशन भी है। तो डबल खाता एक चुक्तू होता है, एक जमा होता है, अच्छा फायदा है। अगर समझते हैं बहुत अच्छा है तो एक हाथ उठाओ। यह भी अच्छा रिसर्च है। ऐसे ही ठीक हो जाएँ तो अच्छा है ना! यह भी देखो कोई भी सर्च करते हैं तो यह भी क्या है? संकल्प शक्ति से ही इन्वेन्शन होती है। कोई भी इन्वेन्शन का आधार एकाग्रता से संकल्प शक्ति होती है। इसलिए इन्हों को तो बहुत अच्छा चांस मिल जाता है। मधुबन भी मिल जाता, बीमारी भी खत्म हो जाती और मैडीटेशन में भी बढ़ते जाते। अच्छा।

बाम्बे के सेवाधारी उठो। यह सेवा का चांस अच्छा लगता है? इसी बहाने से सेवा से ब्राह्मणों की पहचान मिलती है। ब्राह्मण परिवार में परिचय हो जाता है और बेहद में आने का चांस है। सेवा का बल भी कम नहीं है। देखो जो भी पुराने, जिसको दादियां कहते हो, इन्हों में एक्स्ट्रा बल है। किसका बल है? सेवा का। (खाँसी आई) बाजा खराब हो जाता है ना!

और स्थापना में सेवा की है। आप सब जो यहाँ बैठे हो वह आदि में, इन्हों की मेहनत, सहनशक्ति, त्याग वृत्ति, इन्हों का फल आप हो। इन्हों को बल मिला आपको फल मिला। सभी की हिस्ट्रियां तो सुनी हैं ना। क्या नहीं त्याग किया! आप तो बने बनाये आधार पर आ गये हो। मक्खन इन्होंने निकाला आप खाने पर आ गये। अच्छा लगता है ना। आदि के पाण्डव भी हैं, उन्होंने भी त्याग किया है। अभी भी देखो जहाँ भी प्रोग्राम होता है, अभी तक भी कहते कोई दादियां आ जाएँ। तो दादियों का त्याग का भाग्य तो है ना। त्याग की हिस्ट्रियां तो, कहानियां तो बहुत हैं ना। अभी भी सेवाधारी सेवा चारों ओर करने वाले बहुत हैं, यह आदि हैं और आप अभी के सेवाधारी भी अच्छे अच्छे हैं। कितने-कितने सेन्टर्स खोले हैं? बापदादा तो एक-एक की महिमा करना शुरू करे तो कितनी रातें लग जाएं! और एक-एक की महिमा है, हर एक की विशेषता है और रहेगी। अच्छा।

जो बापदादा ने अभ्यास सुनाया, मन सेकण्ड में एकाग्र हो जाए, क्योंकि समस्या अचानक आती है और उसी समय अगर मनोबल है, तो समस्या समाप्त हो जाती है लेकिन समस्या एक पढ़ाई पढ़ाने वाली बन जाती है। इसलिए सभी मन बुद्धि को अभी-अभी एकाग्र करो। देखो होता है। (ड्रिल) ऐसे सारे दिन में अभ्यास करते रहो। अच्छा।

चारों ओर की श्रेष्ठ आत्माओं को, आदि मध्य और अन्त में श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली आत्माओं को, सदा अपने श्रेष्ठ संकल्प की विधि को अनुभव करने वाले, सदा सहज योगी के साथ-साथ प्रयोगी बनने वाले, सदा संकल्प की शक्ति द्वारा सर्व शक्तियों को बढ़ाने वाले, मन और बुद्धि पर नियन्त्रण रखने वाले, सदा प्रयोगी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

देश विदेश के बच्चों को भी बापदादा देख रहे हैं। संकल्प द्वारा जो यादप्यार या रूह-रूहान करते हैं वह बापदादा के पास पहुँच जाता है। अभी भी जो साइन्स के बल द्वारा सुन रहे हैं, उन सभी बच्चों को हर देश के एक एक बच्चे को यादप्यार। जनक बच्ची को भी विशेष बापदादा यादप्यार दे रहे हैं क्योंकि मन से यहाँ है, तन से वहाँ है। तो सभी को, एक-एक को विशेष यादप्यार। अच्छा, योग भट्टी का प्रोग्राम बहुत अच्छा चल रहा है।

(हाल में सभी भाई-बहनों को दृष्टि देने के पश्चात् बापदादा के सामने सभी दादियां बैठी हैं)

सदा अपने को बापदादा के नयनों के नूर समझते हो ना? नयनों में सदा समाये हुए, नयनों में समाने से सदा ही दृष्टि में समाये रहेंगे। यह भी बाप और बच्चों को संगमयुग के सुहेज हैं। मिलना, सुनना, खाना पीना, यह संगम के सुहेज हैं। ऐसे ही सुहेज मनाते-मनाते अपने घर चले जायेंगे। फिर राज्य में आयेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करना। अच्छा है। दुनिया वाले सोचते रहते और आप सदा मनाते रहते। कोई सोच नहीं है, क्या होगा, कैसे होगा। किसी प्रकार का सोच नहीं है। अच्छा।

जयन्ती बहन से - यह आ गई। अच्छा पार्ट मिला है। एक देश से दूसरे देश में, दूसरे से तीसरे, उड़ते रहते, उड़ाते रहते। अच्छा। बापदादा खुश है। ठीक है।

दादियों से - आप लोगों के सहयोग से ही सारा कारोबार चल रहा है। सहयोगी विशेष भुजायें हैं। अच्छा है, ग्रुप अच्छा मिला है। (मोहिनी बहन से) ग्रुप में हो ना। सब साथी हैं। सबके साथ से कार्य चल रहा है। पाण्डव भी साथी अच्छे मिले हैं। कम्पनी है ना यह भी। तो अच्छी कम्पनी के कारोबार सम्भालने वाले भी हैं, सेवाधारी भी हैं, सबका हाथ हैं। ऐसे नहीं फारेन में हैं तो यज्ञ में हाथ नहीं है। एक-एक बच्चे का हाथ यज्ञ सेवा में लगा हुआ है। चाहे कहाँ भी रहते हो, देश में रहते हो या विदेश में लेकिन आप एक-एक ब्राह्मण के हाथ से यज्ञ चल रहा है। यज्ञ रचने वाले ब्राह्मण हो। समझते हो ना हम यज्ञ रचने वाले हैं? बालक सो मालिक हैं। अच्छा।