17-03-03   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


इस वर्ष - स्वमान में रहना, सम्मान देना, सबका सहयोगी बनना और समर्थ बनाना

आज भाग्य विधाता बापदादा चारों ओर के हर एक बच्चे के मस्तक में भाग्य की तीन लकीरें देख रहे हैं। एक परमात्म पालना की भाग्यवान लकीर, दूसरी सत शिक्षक की श्रेष्ठ शिक्षा की भाग्यवान लकीर, तीसरी श्रीमत की चमकती हुई लकीर। चारों ओर के बच्चों के मस्तक बीच तीनों लकीरें बहुत अच्छी चमक रही हैं। आप सभी भी अपने तीनों भाग्य की लकीर को देख रहे हैं ना। जब भाग्य विधाता आप बच्चों का बाप है तो आपके सिवाए श्रेष्ठ भाग्य और किसका हो सकता है! बापदादा देख रहे हैं विश्व की अनेक करोड़ आत्मायें हैं लेकिन उन करोड़ों में से 6 लाख परिवार... कितने थोड़े हैं! कोटों में कोई हो गये ना! वैसे हर मानव के जीवन में यह तीनों बातें पालना, पढ़ाई और श्रेष्ठ मत, तीनों ही आवश्यक हैं। लेकिन यह परमात्म पालना और देव आत्मायें वा मानव आत्माओं की मत, पालना, पढ़ाई में रात-दिन का अन्तर है। तो इतना श्रेष्ठ भाग्य जो संकल्प में भी नहीं था लेकिन अब हर एक का दिल गाता है - पा लिया। पा लिया वा पाना है? क्या कहेंगे? पा लिया ना! बाप भी ऐसे बच्चों के भाग्य को देख हार्षित होते हैं। बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह! बस इसी भाग्य को सिर्फ स्मृति में नहीं रखना है लेकिन सदा स्मृति स्वरूप रहना है। कई बच्चे सोचते बहुत अच्छा हैं लेकिन सोचना स्वरूप नहीं बनना है, स्मृति स्वरूप बनना है। स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप है। सोचना स्वरूप समर्थ स्वरूप नहीं है।

बापदादा बच्चों की भिन्न-भिन्न लीला देखते मुस्कराते रहते हैं। कोई- कोई सोचता स्वरूप रहते हैं, स्मृति स्वरूप सदा नहीं रहते। कभी सोचता स्वरूप, कभी स्मृति स्वरूप। जो स्मृति स्वरूप रहते हैं वह निरन्तर नेचरल स्वरूप रहते हैं। जो सोचता स्वरूप रहते हैं उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। यह संगमयुग मेहनत का युग नहीं है, सर्व प्राप्तियों के अनुभवों का युग है। 63 जन्म मेहनत की लेकिन अब मेहनत का फल प्राप्त करने का युग अर्थात् समय है।

बापदादा देख रहे थे कि देहभान की स्मृति में रहने में क्या मेहनत की - मैं फलाना हूँ, मैं फलाना हूँ... यह मेहनत की? नेचरल रहा ना! नेचर बन गई ना बॉडी कान्सेस की! इतनी पक्की नेचर हो गई जो अभी भी कभी-कभी कई बच्चों को आत्म-अभिमानी बनने के समय बॉडी कान्सेसनेस अपने तरफ आकर्षित कर लेती है। सोचते हैं मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, लेकिन देहभान ऐसा नेचरल रहा है जो बार-बार न चाहते, न सोचते देहभान में आ जाते हैं। बापदादा कहते हैं अब मरजीवा जन्म में आत्म-अभिमान अर्थात् देही-अभिमानी स्थिति भी ऐसे ही नेचर और नेचरल हो। मेहनत नहीं करनी पड़े - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। जैसे कोई भी बच्चा पैदा होता है और जब उसे थोड़ा समझ में आता है तो उसको परिचय देते हैं आप कौन हो, किसके हो, ऐसे ही जब ब्राह्मण जन्म लिया तो आप ब्राह्मण बच्चों को जन्मते ही क्या परिचय मिला? आप कौन हो? आत्मा का पाठ पक्का कराया गया ना! तो यह पहला परिचय नेचरल नेचर बन जाए। नेचर नेचरल और निरन्तर रहती है, याद करना नहीं पड़ता। ऐसे हर ब्राह्मण बच्चे की अब समय प्रमाण देही- अभिमानी स्टेज नेचरल हो। कई बच्चों की है, सोचना नहीं पड़ता, स्मृति स्वरूप हैं। अब निरन्तर और नेचरल स्मृति स्वरूप बनना ही है। लास्ट अन्तिम पेपर सभी ब्राह्मणों का यही छोटा-सा है - ''नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।``

तो इस वर्ष में क्या करेंगे? कई बच्चे पूछते हैं - इस वर्ष में क्या विशेष लक्ष्य रखें? तो बापदादा कहते हैं सदा देही-अभिमानी, स्मृति स्वरूप भव। जीवनमुक्ति तो प्राप्त होनी ही है लेकिन जीवनमुक्त होने के पहले मेहनत मुक्त बनो। यह स्थिति समय को समीप लायेगी और आपके सर्व विश्व के भाई और बहनों को दु:ख, अशान्ति से मुक्त करेगी। आपकी यह स्थिति आत्माओं के लिए मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेगी। तो अपने भाई बहनों के ऊपर रहम नहीं आता! कितना चारों ओर आत्मायें चिल्ला रही हैं तो आपकी मुक्ति सर्व को मुक्ति दिलायेगी। यह चेक करो - नेचरल स्मृति सो समर्थ स्वरूप कहाँ तक बने हैं? समर्थ स्वरूप बनना ही व्यर्थ को सहज समाप्त कर देगा। बार-बार मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

अभी इस वर्ष बापदादा बच्चों के स्नेह में कोई भी बच्चे की किसी भी समस्या में मेहनत नहीं देखने चाहते। समस्या समाप्त और समाधान समर्थ स्वरूप। क्या यह हो सकता है? बोलो दादियां हो सकता है? टीचर्स बोलो, हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? फिर बहाना नहीं बताना, यह था ना, यह हुआ ना! यह नहीं होता तो नहीं होता! बापदादा बहुत मीठे-मीठे खेल देख चुके हैं। कुछ भी हो, हिमालय से भी बड़ा, सौ गुणा समस्या का स्वरूप हो, चाहे तन द्वारा, चाहे मन द्वारा, चाहे व्यक्ति द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा समस्या, पर-स्थिति आपकी स्व-स्थिति के आगे कुछ भी नहीं है और स्व-स्थिति का साधन है - स्वमान। नेचरल रूप में स्वमान हो। याद नहीं करना पड़े, बारबार मेहनत नहीं करनी पड़े, नहीं-नहीं मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं नूरे रत्न हूँ, मैं दिलतख्तनशीन हूँ.... हूँ ही। और कोई होने हैं क्या! कल्प पहले कौन बने थे? और बने थे या आप ही बने थे? आप ही थे, आप ही हैं, हर कल्प आप ही बनेंगे। यह निश्चित है। बापदादा सब चेहरे देख रहे हैं यह वही कल्प पहले वाले हैं। इस कल्प के हो या अनेक कल्प के हो? अनेक कल्प के हो ना! हो? हाथ उठाओ जो हर कल्प वाले हैं? फिर तो निश्चित है ना, आपको तो पास सर्टीफिकेट मिल गया है ना कि लेना है? मिल गया है ना? मिल गया है या लेना है? कल्प पहले मिल गया है, अभी क्यों नहीं मिलेगा। तो यही स्मृति स्वरूप बनो कि सर्टीफिकेट मिला हुआ है। चाहे पास विद आनर का, चाहे पास का, यह फर्क तो होगा, लेकिन हम ही हैं। पक्का है ना! कि ट्रेन में जाते-जाते भूलता जायेगा, प्लेन में जाके उड़ जायेगा? नहीं।

जैसे देखो इस वर्ष संकल्प दृढ़ किया कि शिवरात्रि चारों ओर उमंग- उत्साह से मनानी है, मना ली ना! दृढ़ संकल्प से जो सोचा वह हो गया ना! तो यह किस बात की कमाल है? एकता और दृढ़ता। सोचा था 67 प्रोग्राम करने का लेकिन बापदादा ने देखा कि उससे भी ज्यादा कई बच्चों ने प्रोग्राम किये हैं। यह है समर्थ स्वरूप की निशानी, उमंग-उत्साह का प्रत्यक्ष प्रमाण। स्वत: ही चारों ओर कर लिया ना! ऐसे ही सब मिलकर एक दो को हिम्मत बढ़ाके यह संकल्प करो - अब समय को समीप लाना ही है। आत्माओं को मुक्ति दिलानी है। लेकिन तब होगा जब आप सोचना स्मृति स्वरूप में लायेंगे।

बापदादा ने सुना है कि फारेन वालों की भी विशेष स्नेह मिलन वा मीटिंग है और भारत वालों की भी मीटिंग है तो मीटिंग में सिर्फ सेवा के प्लैन नहीं बनाना, बनाना लेकिन बैलेन्स का बनाना। ऐसा एक दो के सहयोगी बनो जो सभी मास्टर सर्वशक्तिवान बन आगे उड़ते चलें। दाता बनकर सहयोग दो। बातें नहीं देखो, सहयोगी बनो। स्वमान में रहो और सम्मान देकर सहयोगी बनो क्योंकि किसी भी आत्मा को अगर आप दिल से सम्मान देते हो, यह बहुत-बहुत बड़ा पुण्य है क्योंकि कमज़ोर आत्मा को उमंग-उत्साह में लाया तो कितना बड़ा पुण्य है! गिरे हुए को गिराना नहीं है, गले लगाना है अर्थात् बाहर से गले नहीं लगाना, गले लगाना अर्थात् बाप समान बनाना। सहयोग देना।

तो पूछा है ना कि इस वर्ष क्या-क्या करना है? बस सम्मान देना और स्वमान में रहना। समर्थ बन समर्थ बनाना। व्यर्थ की बातों में नहीं जाना। जो कमज़ोर आत्मा है ही कमज़ोर, उसकी कमज़ोरी को देखते रहेंगे तो सहयोगी कैसे बनेंगे! सहयोग दो तो दुआयें मिलेंगी। सबसे सहज पुरूषार्थ है, और कुछ भी नहीं कर सकते हो तो सबसे सहज पुरूषार्थ है - दुआयें दो, दुआयें लो। सम्मान दो और महिमा योग्य बनो। सम्मान देने वाला ही सर्व द्वारा माननीय बनते हैं। और जितना अभी माननीय बनेंगे, उतना ही राज्य अधिकारी और पूज्य आत्मा बनेंगे। देते जाओ लेने का नहीं, लो और दो यह तो बिजनेस वालों का काम है। आप तो दाता के बच्चे हो। बाकी बापदादा चारों ओर के बच्चों की सेवा को देख खुश है, सभी ने अच्छी सेवा की है। लेकिन अभी आगे बढ़ना है ना! वाणी द्वारा सभी ने अच्छी सेवा की, साधनों द्वारा भी अच्छी सेवा की रिजल्ट निकाली। अनेक आत्माओं का उल्हना भी समाप्त किया।

साथ-साथ समय के तीव्रगति की रफ्तार देख बापदादा यही चाहते हैं कि सिर्फ थोड़ी आत्माओं की सेवा नहीं करनी है लेकिन विश्व की सर्व आत्माओं के मुक्तिदाता निमित्त आप हो क्योंकि बाप के साथी हो, तो समय की रफ्तार प्रमाण अभी एक ही समय इकट्ठा तीन सेवायें करनी हैं :- एक वाणी, दूसरा स्व शक्तिशाली स्थिति और तीसरा श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन जहाँ भी सेवा करो वहाँ ऐसा रूहानी वायब्रेशन फैलाओ जो वायब्रेशन के प्रभाव में सहज आकर्षित होते रहें। देखो, अभी लास्ट जन्म में भी आप सबके जड़ चित्र कैसे सेवा कर रहे हैं? क्या वाणी से बोलते? वायब्रेशन ऐसा होता जो भक्तों की भावना का फल सहज मिल जाता है। ऐसे वायब्रेशन शक्तिशाली हों, वायब्रेशन में सर्व शक्तियों की किरणें फैलती हों, वायुमण्डल बदल जाए। वायब्रेशन ऐसी चीज़ है जो दिल में छाप लग जाती है। आप सबको अनुभव है किसी आत्मा के प्रति अगर कोई अच्छा या बुरा वायब्रेशन आपके दिल में बैठ जाता है तो कितना समय चलता है? बहुत समय चलता है ना! निकालने चाहो तो भी नहीं निकलता है, किसका बुरा वायब्रेशन बैठ जाता है तो सहज निकलता है? तो आपका सर्व शक्तियों की किरणों का वायब्रेशन, छाप का काम करेगा। वाणी भूल सकती है, लेकिन वायब्रेशन की छाप सहज नहीं निकलती है। अनुभव है ना! है ना अनुभव?

यह गुजरात ने, बाम्बे ने जो उमंग-उत्साह दिखाया, उसको भी बापदादा पदम-पद्मगुणा मुबारक देते हैं। क्यों? विशेषता क्या रही? क्यों मुबारक देते हैं? फंक्शन तो बड़े-बड़े करते रहते हो लेकिन खास मुबारक क्यों दे रहे हैं? क्योंकि दोनों तरफ की विशेषता रही - एकता और दृढ़ता की। जहाँ एकता और दृढ़ता है वहाँ एक वर्ष के बजाए एक मास वर्ष के समान है। सुना - गुजरात और बाम्बे ने।

गुजरात - गुजरात वाले बहुत हैं। सेवा का टर्न है। गुजरात से 4500 आये हैं। (आज की सभा में करीब 18-19 हजार भाई बहनें डायमण्ड हाल में मुरली सुन रहे हैं) सभी को मुबारक हो। सिर्फ टीचर्स को नहीं, पहले आप लोगों को, अगर आपका सहयोग नहीं होता ना, तो टीचर्स भी क्या करती। इसीलिए गुजरात के सर्व बच्चों को अभी के गोल्डन चांस की भी मुबारक है और सेवा की भी मुबारक है, ऐसे ही सदा स्व उन्नति में, सेवा की उन्नति में एक ने कहा, दूसरे ने हाँ जी किया, ऐसे सदा एकता और दृढ़ता से बढ़ते रहना। मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।

मुम्बई, महाराष्ट्र - (बाम्बे के शिवाजी पार्क में करीब 75-80 हजार का विशाल संगठन हुआ) अच्छा मुबारक तो मिल गई। बापदादा दोनों को बहुत-बहुत, महाराष्ट्र, बाम्बे, आन्ध्रप्रदेश सभी को, सर्व ब्राह्मण परिवार की तरफ से और बापदादा की तरफ से गुजरात और महाराष्ट्र को दिल की बहुत-बहुत दुआयें हो। यह दिल की दुआयें, सदा दिल में उमंग-उत्साह बढ़ाती रहेंगी। ठीक है ना पाण्डव! सभी ने बहुत अच्छी सेवा की। सबके सहयोग से लाखों का प्रोग्राम सफल हुआ। अच्छा।

बिजनेस इन्डस्ट्री वर्ग - बापदादा बिजनेस वर्ग वालों को विशेष संकल्प दे रहे हैं, क्योंकि बिजनेस वालों के पास ग्राहक तो लेने के लिए आते ही हैं, आपको जाना नहीं पड़ता है, आते ही हैं। तो जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उन्हों को कम से कम सन्देश देते रहो, हर एक बिजनेस या इन्डस्ट्री वाले ने अपना-अपना कार्ड छपाया हुआ है, जिसमें अच्छे से अच्छा शार्ट में ज्ञान का स्लोगन हो, एड्रेस हो और दो शब्दों में निमन्त्रण हो। ऐसे सबने अपना-अपना कार्ड छपाया है, जिसने छपाया है वह हाथ उठाओ। इतनों ने छपाया ही नहीं है। बिजनेस वाले तो घर बैठे सेवा कर सकते हैं। उल्हना तो नहीं देंगे कि हम ग्राहक बनकर आपके पास आये, हमको सन्देश भी नहीं दिया। तो कार्ड जरूर छपाना। ऐसा सुन्दर कार्ड छपाना जो वेस्ट पेपर बाक्स में कोई डाले नहीं, सम्भाल के रखे। और बिजनेसमैन को सौदा कराना तो बहुत अच्छा आता है ना, बिजनेसमैन वह अच्छा है जो कोई भी ग्राहक को सौदे के बिना वापस नहीं भेजे। तो आप भगवान से सौदा नहीं कराते हो! सिर्फ कपड़े का और चीजों का कराते हो! बिजनेसमैन बहुत ही आत्माओं को सहयोगी बना सकते हो और सहयोगी से धीरे-धीरे योगी भी बन जायेंगे। तो सहयोगी की लिस्ट हर एक को इस वर्ष में बनानी है। हर एक बिजनेसमैन ने कितनी आत्माओं को सन्देश दिया, कितनी आत्माओं को सहयोगी बनाया, कितनी आत्माओं को सहजयोगी बनाया? ठीक है, करेंगे? दादी कहती है ना संख्या बढ़ाओ तो हर एक बिजनेसमैन भी संख्या बढ़ा सकता है। ठीक है ना। अभी बापदादा भी रिजल्ट देखेंगे। ऐसे नहीं सोचना बापदादा को पता क्या पड़ेगा। बापदादा देखता है, वतन में बैठकर भी देख सकता है। पूछने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। तो बिजनेस वाले कमाल करेंगे ना। जो अच्छा काम करते हैं तो उनके लिए कहते हैं मुख में गुलाब और बापदादा कहते हैं बिजनेसमैन के मुख में गुलाबजामुन। पड़ गया मुख में! अच्छा।

स्पोर्ट विंग (खेलकूद प्रभाग) - खेल-कूद भी चाहिए जरूर। आप कौन सा खेल कराते हो? खेल देखते हो या कराते भी हो? देखते तो सभी हैं, आजकल तो सभी देखने में मशगूल (मगन) रहते हैं। बापदादा को पता है। अच्छा यह भी बहुत जरूरी है क्योंकि आजकल आत्माओं में टेन्शन बहुत है तो खेलकूद भी चाहिए ना। बापदादा ने सुना कि फारेन में एक बच्चे ने बच्चों के लिए खेल बहुत अच्छा बनाया है। किसने बनाया है? बापदादा को समाचार मिला और बापदादा को पसन्द आया है, सभी को दिखाना। तो खेलकूद डिपार्टमेंट एक इसकी इन्वेन्शन देख करके ऐसी कोई इन्वेन्शन्स निकालो, जिसमें खेल का खेल हो और ज्ञान का ज्ञान हो। चाहे कोई कोर्स कराओ तो भी खेल में। अच्छी इन्वेन्शन है, मुबारक हो। तो ऐसा कोई रमणीक प्रोग्राम बनाओ। भाषण तो सभी ने बहुत सुने हैं ना लेकिन ऐसी कोई नई चीज़ निकालो जो न चाहते हुए भी लोग आवें और आपके भाई बहन जाग जावें। बाकी अच्छा है प्लैन बनाते रहते हो, मीटिंग करते रहते हो, दादा को यह बच्चों का प्लैन अच्छा लगता है। तो इस वर्ष में ऐसे कोई चीज़ बनाना जैसे बापदादा को याद है जब पहले मेले करते थे उसमें भी ऐसी ऐसी चीज़ें रखते थे जो लोग स्वत: ही एक दो को भेजते थे कि आप भी जाके देखो। तो ऐसी इन्वेन्शन निकालना। ठीक है ना! इसकी इन्चार्ज (शशी बहन) है, फिर तो होशियार है, करेंगे। अच्छा। मुबारक हो।

एज्युकेशन विंग - एज्युकेशन का महत्त्व है, इसलिए गवर्मेन्ट भी एज्युकेशन की तरफ बहुत रूचि रख रही है तो आप सभी भी ने मिलकर एज्युकेशन के प्रोग्राम किये भी हैं, कर भी रहे हैं लेकिन और भी आगे बढ़ाते चलना। इस वर्ग से भी बहुत आत्मायें निकल सकती हैं। अच्छा।

विदेश के 125 भाई-बहनें मीटिंग के लिए आये हैं - तो क्या कमाल करेंगे? इतने सभी बापदादा के सिकीलधे सर्विसएबुल इकट्ठे होंगे तो क्याक् या जलवा दिखायेंगे? कोई नवीनता करेंगे ना! अच्छा है। सभी मिलकर ऐसा कोई ज्वालारूप प्रोग्राम बनाओ, साधारण प्लैन नहीं, ज्वाला रूप प्लैन बनाओ। एक तो सब ज्वाला रूप हो जाएं, बन जाएं। स्व में ज्वाला स्वरूप और सेवा में ऐसे इन्वेन्शन निकालो जो शार्टकट हो क्योंकि आजकल के समय अनुसार लोगों को सबसे बड़ी समस्या समय निकालने की है। तो ऐसा कोई प्लैन बनाओ, चाहे वृत्ति हो, चाहे दृष्टि हो, चाहे वायब्रेशन हो, थोड़े समय में वह समझ जाए कि यहाँ से ही कुछ मिल सकता है। चुम्बक जैसी सेवा का प्लैन बनाओ। जैसे चुम्बक से कोई हटने चाहते हैं तो भी नहीं हटते हैं। दूर से ही समीप आ जाते हैं। ऐसे नया प्लैन बनाओ, डबल विदेशी हैं ना! और आपके निमित्त बनी हुई दादी या दीदियां, आपकी दीदियां और दादियां सभी होशियार हैं। पाण्डव भी कम नहीं हैं। देखो, यहाँ 5 पाण्डव खड़े हैं। तो 5 पाण्डवों ने क्या किया था? अक्षोणी सेना को खत्म कर दिया। तो पाण्डव भी कम नहीं हैं। एक एक पाण्डव महान है। तो करेंगे ना कमाल? कैसे भी बनाओ, चाहे वृत्ति से, चाहे दृष्टि से, चाहे दृढ़ संकल्प से, कोई प्लैन बनाना। दादियां, दीदियां ठीक है ना! डबल फारेनर्स इन्डिया की टीचर्स से कम नहीं हैं, बहुत संख्या है। फिर तो कमाल हुई पड़ी है। अच्छा है आप पहले प्लैन निकालना फिर इन्डिया की जो मीटिंग होगी वह उस प्लैन में रत्न जड़ित भरेंगी। आप घाट बनाना उसमें हीरा मोती इन्डिया की मीटिंग वाले लगायेंगे। लगायेंगे ना? मीटिंग में लगायेंगे? मुबारक हो। बापदादा साकार रूप में सामने अभी देख-देख खुश हो रहे हैं, फारेन में इतने तैयार हो गये हैं, देखो। सभी को बहुत अच्छा लगता है, खुशी होती है। सभी ने देखा कितने टीचर्स तैयार हो गये हैं। वह भी विशेष टीचर्स हैं, दूसरे तो बहुत हैं। तो बापदादा डबल विदेशी सेवाधारी बच्चों को देख बहुत-बहुत-बहुत-बहुत खुश हैं। यह समझते हैं, हम क्यों ताली बजायें, दूसरे बजायें ना? मुबारक तो आप लोग देंगे ना। (सभी ने तालियां बजाई) अच्छा किया खूब ताली बजाओ।

(76 देशों के डबल विदेशी आये हुए हैं, कुमारों की रिट्रीट भी चली)- कुमारों ने निशानी अच्छी लगाई है। यूथ ग्रुप ने कोई नया प्लैन बनाया, या अभी सोच रहे हो? आप भी ब्राह्मण परिवार से ब्राह्मण संसार का वर्ल्ड कप लो। अभी दिल्ली वालों ने यूथ के प्रोग्राम का प्लैन नहीं बनाया है। दिल्ली वाले उठो दिल्ली वालों को वर्ल्ड के कुमारों को, यूथ को इकठ्ठा कर, चुन करके और ब्राह्मण संसार से वर्ल्ड कप दिलाना है। करना है ना? हिम्मत है ना? प्लैन बनाना। बना सकते हो। प्राइममिनिस्टर और प्रेजीडेंट यूथ के फेवर में हैं। अभी वर्तमान समय वर्ल्ड में एक क्रिकेट का खेल नहीं कहते हैं लेकिन और खेल चल रहा है एक तरफ है हलचल और दूसरे तरफ है अचल। तो अभी दोनों का फुल फोर्स है, हलचल का भी फोर्स है तो अचल स्थिति वालों का भी फोर्स है इसलिए वायुमण्डल प्रमाण फायदा उठा सकते हैं। प्लैन बनाना। यह मीटिंग करेंगे ना, उसमें बनाना। बहुत अच्छा दिल्ली वाले। यूथ आप भी सोचो, आप भी प्लैन बनाना सुनाना शुरू करो और दिल्ली वाले भी प्लैन बनाना शुरू करें, कमाल करके दिखाना, विजय तो आपकी है ही। अच्छा।

अहमदाबाद से ट्रेनिंग की कुमारियां आई हैं - कुमारियां क्या सोच रही हैं? कुमारियां तो बहुत लक्की हैं। सरेण्डर हुई और दीदी कहलाई। और देखो कितना भाग्य है जो टीचर बनने से बापदादा के मुरली सुनाने का तख्त मिलता है। गुरू की गद्दी मिलती है। बापदादा टीचर्स को कहते ही हैं गुरूभाई हैं। तो ऐसे बनेंगी ना! अभी ट्रेनिंग कर रही हैं, या पूरी कर ली? पूरी हो गई। अभी सेन्टर्स पर रहती हैं, मुबारक हो। देखो ऐसी टीचर बनना जो सभी कहें टीचर है तो यह! नि:स्वार्थ सेवाधारी टीचर। टीचर्स तो बहुत हैं लेकिन आप ऐसी टीचर बनना, नि:स्वार्थ सेवाधारी। निर्माण और निर्मलचित। ऐसी बनेंगी ना! उमंग अच्छा है। उमंग भी है, उत्साह भी है, सफल होंगे नहीं लेकिन हुए पड़े हैं। अच्छा।

अभी सेकण्ड में ज्ञान सूर्य स्थिति में स्थित हो चारों ओर के भयभीत, हलचल वाली आत्माओं को, सर्व शक्तियों की किरणें फैलाओ। बहुत भयभीत हैं। शक्ति दो। वायब्रेशन फैलाओ। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

चारों ओर के बच्चों के भिन्न-भिन्न यादप्यार और समाचार के पत्र और ई-मेल बाप के पास पहुंच गये हैं। हर एक कहता है मेरी भी याद देना, मेरी भी याद देना। बापदादा कहते हैं हर एक प्यारे बच्चों की बापदादा के पास याद पहुंच गई है। दूर बैठे भी बापदादा के दिलतख्त नशीन हैं। तो आप सबको जिन्होंने भी कहा है ना - याद देना, याद देना। तो बाबा के पास पहुंच गई। यही बच्चों का प्यार और बाप का प्यार बच्चों को उड़ा रहा है। अच्छा। चारों ओर के अति श्रेष्ठ भाग्यवान, कोटों में कोई विशेष आत्माओं को सदा स्वमान में रहने वाले, सम्मान देने वाले, सर्विसएबुल बच्चों को, सदा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप आत्माओं को, सदा अचल अडोल स्थिति के आसन पर स्थित सर्वशक्ति स्वरूप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जी से - बापदादा आपके ऊपर विशेष खुश है। क्यों खुश है? विशेष इस बात पर खुश है कि जैसे ब्रह्मा बाप सभी को आर्डर करता था यह करना है, अभी करना है, ऐसे आपने भी ब्रह्मा बाप को फालो किया। (आप भी मेरे साथ हैं) वह तो है ही, निमित्त तो आप बनी ना। और ऐसा दृढ़ संकल्प किया जो चारों ओर सफलता है, इसीलिए आपमें रूहानी ताकत बहुत गुप्त भरी हुई है। तबियत ठीक है, रूहानी शक्ति इतनी भरी हुई है जो तबियत कुछ भी नहीं है। कमाल है ना! (गुजरात ने किया, बाम्बे ने एक-एक लाख का प्रोग्राम किया, अभी पंजाब और मद्रास कर रहा है) यह कलकत्ता भी करेगा। (दादा निर्मलशान्ता से) आप सिर्फ बैठ जाना कुर्सा पर बस और कुछ नहीं करना, आपके सब सहयोगी बनेंगे। सब आपेही तैयारी कर लेंगे। (बाबा को बिठा देंगे) बाबा के साथ आप भी बैठना। दोनों बैठना। (अगली सीजन में बापदादा का प्रोग्राम कैसे चलेगा?) जैसे चलता है वैसे ही चलेगा। बाबा का मिलना चलता रहेगा। अभी तो एक साल की बात हो रही है। फिर अगले साल, अगले साल की बतायेंगे। दादियों का मिलना देखकर सबकी दिल होती है हम भी दादी होते तो मिलते ना। आप भी दादी बनेंगे। अभी बापदादा ने प्लैन बनाया है दिल में, अभी दिया नहीं है। तो जो सेवा के, ब्रह्मा बाबा के साकार समय में सेवा में आदि रत्न निकले हैं, उन्हों का संगठन पक्का करना है। (कब करेंगे?) जब आप करो। यह ड्युटी आपकी (दादी जानकी की) है। आपके दिल का संकल्प भी है ना? क्योंकि जैसे आप दादियों का एकता और दृढ़ता का संगठन पक्का है, ऐसे आदि सेवा के रत्नों का संगठन पक्का हो, इसकी बहुत-बहुत आवश्यकता है क्योंकि सेवा तो बढ़नी ही है। तो संगठन की शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। संगठन की निशानी का यादगार है पांच पाण्डव। पांच हैं लेकिन संगठन की निशानी है। अच्छा - अभी जो साकार ब्रह्मा के होते हुए सेवा के लिए सेन्टर पर रहे हैं, सेवा में लगे हैं, वह उठो। भाई भी हैं, पाण्डवों के बिना थोड़े ही गति है। यहाँ तो थोड़े हैं लेकिन और भी हैं। संगठन को जमा करने की जिम्मेवारी इनकी (दादी जानकी की) है, यह (दादी) तो बैकबोन है। बहुत अच्छे-अच्छे रत्न हैं। अच्छा। सब ठीक हैं। कुछ भी करते रहते हो लेकिन आपके संगठन की महानता है। किला मजबूत है। अच्छा।

सभी बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात बापदादा के साथ बच्चों ने होली खेली - खूब गुलाबवाशी एक दूसरे पर डाली, बाद में बापदादा ने सभी बच्चों को होली उत्सव की याद दी। चारों ओर के होली बच्चे परमात्मा के संग-संग का होली का उत्सव मना रहे हो, उमंग और उत्साह है और सदा ही इसी उत्सव में उत्साह में रहना। तो हर दिन उत्सव हो जायेगा। उत्साह में रहना अर्थात् उत्सव मनाना। तो सभी उत्साह में हैं ना। तो होली है और होली मना रहे हैं। सदा इस परमात्म संग के रंग की होली में रहना। अच्छा। सभी को होली उत्सव की मुबारक।

ओम् शान्ति।