21-10-05 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"सम्पूर्ण और सम्पन्न बनने की डेट फिक्स कर समय प्रमाण अब एवररेडी बनो"
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं। जैसे बाप के विशेष तीन सम्बन्ध याद रहते हैं वैसे बच्चों के भी तीन रूप देख हर्षित हो रहे हैं। अपने तीनों ही रूप जानते हो ना। इस समय सभी बच्चे ब्राह्मण रूप में हैं और ब्राह्मण सो लास्ट स्टेज, ब्राह्मण सो फरिश्ता है फिर फरिश्ता सो देवता हो। सबसे विशेष वर्तमान ब्राह्मण जीवन है। ब्राह्मण जीवन अमूल्य है। ब्राह्मण जीवन की विशेषता है प्युरिटी। प्युरिटी ही ब्राह्मण जीवन की रीयल्टी है। प्युरिटी ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। प्युरिटी ही सुख शान्ति की जननी है। जितनी प्युरिटी होगी उतनी सुख और शान्ति जीवन की नेचुरल और नेचर होगी। और प्योर आत्माओं का लक्ष्य है ब्राह्मण सो देवता नहीं लेकिन पहले फरिश्ता बनने का है, फरिश्ता सो देवता है। तो ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। यह तीन रूप बापदादा सभी बच्चों का देख रहे हैं। आप सभी को अपने तीन रूप सामने आ गये? आ गये? ब्राह्मण तो बन गये, अभी लक्ष्य है फरिश्ता बनने का। यही लक्ष्य है ना! है? फरिश्ता बनना ही है, चेक करो फरिश्तेपन की विशेषतायें जीवन में कितनी दिखाई देती हैं? फरिश्ता अर्थात् जिसका पुराने संसार और पुराने संस्कार से कोई नाता नहीं। फरिश्ता अर्थात् सिर्फ समस्या के समय डबल लाइट नहीं, लेकिन सदा मन्सा-वाचा, संबंध-सम्पर्क में डबल लाइट, हल्का। हल्की चीज़ अच्छी लगती है वा बोझ वाली चीज़ अच्छी लगती है ? क्या अच्छा लगता है? हल्का पसन्द है ना? फरिश्ता अर्थात् जो सर्व का, थोड़ों का नहीं, सर्व का प्यारा और न्यारा हो। सिर्फ प्यारा नहीं, जितना प्यारा उतना ही न्यारा हो। फरिश्ता की निशानी है, वह सर्व का प्रिय होगा। जो भी देखेंगे, जो भी मिलेंगे, जो भी संबंध में आयेंगे, सम्पर्क में आयेंगे वह अनुभव करेंगे कि यह मेरा है। जैसे बाप के लिए सभी अनुभव करते हैं, मेरा है। अनुभव करते हैं ना? ऐसे फरिश्ता अर्थात् हर एक अनुभव करे यह मेरा है। अपनापन का अनुभव हो क्योंकि हल्का होगा ना तो हल्कापन प्रिय बना देता है सबका। सारा ब्राह्मण परिवार अनुभव करे कि यह मेरा है। भारीपन नहीं हो क्योंकि फरिश्ते का अर्थ ही है डबल लाइट। फरिश्ता अर्थात् संकल्प, बोल, कर्म, संबंध, सम्पर्क में बेहद हो। हद नहीं हो। सब अपने हैं और मैं सबका हूँ। जहाँ ज्यादा अपनापन होता है ना वहाँ हल्कापन होता है। संस्कार में भी हल्कापन, तो चेक करो कितना परसेन्ट फरिश्ता स्टेज तक पहुंचे हैं? चेक करना आता है? चेकर भी बन गये हो, मेकर भी बन गये हो। मुबारक हो।
बापदादा ने आप सबके होम वर्क की रिजल्ट देखी। होमवर्क की रिजल्ट लिखी है ना सभी ने। तो रिजल्ट में क्या देखा? बापदादा की शुभ आश है कि कम-से-कम वर्तमान समय सभी बातों में, सात बातें लिखी है ना। कम-से-कम वर्तमान समय प्रमाण मैजारिटी की 75 परसेन्ट जरूर होनी चाहिए। सातों ही बातों में। कोई किसमें कम है, कोई किसमें कम है लेकिन बापदादा की यही शुभ आशा है कि अब समय को देखते हुए जो महारथी समझते हैं अपने को, उन्हों की स्टेज तो 95 परसेन्ट होनी चाहिए। होनी चाहिए ना ? पाण्डव होनी चाहिए? चलो थोड़ा दूसरा नम्बर है तो भी 75 परसेन्ट होनी चाहिए। क्या समझती हैं दादियां? 95 परसेन्ट है? आगे लाइन वाले सभी क्या समझते हैं? 95 परसेन्ट है? और आपकी कितनी होनी चाहिए? 75 परसेन्ट? आप भी 75 समझते हो? अच्छा कल विनाश हो जाए तो? 75 परसेन्ट में जायेंगे? 75 परसेन्ट होगा तो वन वन वन में नहीं आयेंगे। फिर क्या करेंगे? चलो, बापदादा आज के दिन, आज विशेष है ना, तो आज के दिन को बीती सो बीती करते हैं, ठीक है? अच्छा जो कल से 75 कह रहे हैं ना, तो चलो 95 नहीं, 85 तक तो आयेंगे? आयेंगे। परसों अगर विनाश करें, तो 85 तक होंगे? पीछे वाले होंगे? हाथ उठाओ। अच्छा 85 परसेन्ट होगा? (किसी ने कहा 98 परसेन्ट है) मुबारक है, मुख में गुलाबजामुन खा लो क्योंकि देख तो रहे हो, जानते भी हो, कि हो जाना ही है। हो जायेंगे नहीं, होना ही है। गे, गे नहीं करो, हो जायेंगे, देख लेंगे.. कोशिश करेंगे... अब यह भाषा परिवर्तन करो। जो भी संकल्प करो, चेक करो कितनी परसेन्ट निश्चय और सफलतापूर्वक है? अभी चेक करने की स्पीड तीव्र करो। पहले चेक करो फिर कर्म में आओ। ऐसे नहीं जो भी संकल्प आया, जो भी बोल में आया, जो भी संबंध सम्पर्क में हुआ, नहीं। जो वी.वी. आई.पी. होते हैं उनकी चेकिंग कितनी होती है, पता है ना। हर चीज़ पहले चेक होती है फिर कदम रखते हैं। तो अभी दो घण्टे चार घण्टे के बाद चेकिंग नहीं चलेगी। पहले चेकिंग फिर कदम क्योंकि आप तो सृष्टि ड्रामा के, आजकल के वी.वी.आई.पी. जो हैं, वह तो एक जन्म के हैं। वह भी थोड़े समय के लिए हैं। और आप ब्राह्मण सो फरिश्ते कितने भी वी.वी. लगा दो, इतने हो। देखो, आप अपने आगे वी.वी.वी. लगाते जाओ, आपने अपने चित्र तो देखे हैं ना जो पूजे जा रहे हैं, वह देखे है ना। चलो मन्दिर नहीं देखे फोटो तो देखे हैं, अभी भी उन्हों की कितनी वैल्यु है। कितने बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं और आपका चित्र जो है वह तो तीन फुट में आ जाता है, तो कितना आपकी वैल्यु है। जड़ चित्र की भी वैल्यु है। है ना! वैल्यु है ना! आपके चित्र का दर्शन करने के लिए कितनी क्यु लगती है। और चैतन्य में कितने वी.वी.आई. पी. हो। तो कदम उठाने के पहले चेक करो, करने के बाद चेक किया, वह कदम तो गया। वह कदम फिर आपके हाथ में नहीं आयेगा। अज्ञानकाल में भी कहते हैं, सोच समझकर काम करो। काम करके सोचो नहीं। पहले सोचो फिर करो। तो अपने स्वमान की सीट पर रहो। जितना पोजीशन में रहते तो आपोजीशन नहीं हो सकती। माया की आपोजीशन तब होती है जब पोजीशन में नहीं रहते हो। तो अभी बापदादा का क्वेश्चन है, सबका लक्ष्य तो है सम्पूर्ण बनने का, सम्पन्न बनने का। लक्ष्य है या थोड़ा-थोड़ा बनने का है? लक्ष्य है? सबको है तो हाथ उठाओ। सम्पूर्ण बनना है, अच्छा। कब तक? आप लोगों से क्वेश्चन करते हो ना, स्टूडेन्ट से भी टीचर्स क्वेश्चन करती हैं ना- आपका क्या लक्ष्य है? तो आज बापदादा विशेष टीचर्स से पूछते हैं। 30 वर्ष वाले बैठे हैं ना। तो 30 वर्ष वालों को कल ही आपस में बैठकर प्रोग्राम बनाना चाहिए। मीटिंग तो बहुत करते हो। बापदादा देखते हैं मीटिंग, सीटिंग, मीटिंग सीटिंग। लेकिन अब ऐसी मीटिंग करो, कि कब तक सम्पन्न बनेंगे? और सब फंक्शन मनाते हो, डेट फिक्स करते हो, फलाना प्रोग्राम फलानी डेट, इसकी डेट नहीं है?जितने साल चाहिए उतने बताओ। क्यों? बापदादा क्यों कहते हैं? क्योंकि बाप से प्रकृति पूछती है कि कब तक विनाश करें? तो बापदादा क्या जवाब दें। बापदादा बच्चों से ही पूछेंगे ना। कब तक? आज की विशेष टॉपिक है कब तक? डबल फारेनर्स बैठे हैं ना, तो डबल पुरूषार्थ होगा ना। कमाल करो।
फारेनर्स एक्जैम्पुल बनो। बस ब्राह्मण परिवार के आगे, विश्व के आगे सम्पन्न और सम्पूर्ण। सर्व शक्तियां, सर्वगुण से सम्पन्न अर्थात् सम्पूर्ण, सर्व हो। मन्सा, वाचा, संबंध-सम्पर्क। चार ही में। चार में से अगर एक में भी कमज़ोर रह गये, तो सम्पन्न नहीं कहेंगे। चार बातें याद है ना - मन्सा, वाचा, सम्बन्ध-सम्पर्क में कर्म आ गया। चार ही बातों में। ऐसे नहीं मन्सा वाचा में तो हम ठीक हैं, सम्बन्ध-सम्पर्क में थोड़ा है। सुनाया ना - जिसके सामने भी जायें, चाहे जिसके भी सम्पर्क में जायें वह अनुभव करे कि यह मेरा है। मेरे के ऊपर हुज्जत होती है ना। दूसरे के ऊपर इतना हल्कापन नहीं होता है, थोड़ा भारी होता है लेकिन अपने के ऊपर हल्कापन होता है। तो सबसे हल्के, ऐसे नहीं सिर्फ अपने जोन में हल्के, अपने सेन्टर में हल्के, नहीं। अगर जोन में हल्के या सेन्टर में हल्के, तो विश्वराजन कैसे बनेंगे? न विश्वकल्याणकारी बन सकते हैं, न विश्वराजन बन सकते हैं। राजन का अर्थ यह नहीं है कि तख्त पर बैठें, राजधानी में रॉयल फैमिली में भी राज्य अधिकार है, राज्य का। तो क्या करेंगे? कब तक के प्रश्न का उत्तर देंगे ना ? मीटिंग करेंगे? मीटिंग करके फाइनल करना। ठीक है? अच्छा।
सभी ठीक हैं, उमंग आता है कि करना ही है होना ही है? बापदादा उमंग उल्लास दिलाता है। माया देखती है उमंग उल्लास में हैं तो कुछ-न-कुछ कर लेती है क्योंकि उसका भी अभी अन्तिमकाल नजदीक है ना। तो वह अपने अस्त्र-शस्त्र जो भी हैं वह यूज करती है और ऐसी पालना करती है जो समझ नहीं सकते हैं कि यह माया की पालना है, माया की मत है या बाप की मत है, उसमें मिक्स कर देते हैं। यह फरिश्तेपन में या पुरूषार्थ में विशेष जो रूकावट होती है, उसके दो शब्द ही हैं जो कामन शब्द हैं, मुश्किल भी नहीं हैं और सभी यूज भी करते हैं अनेक बार। वह क्या है? मैं और मेरा। बापदादा ने बहुत सहज विधि पहले भी बताई है, इस मैं और मेरे को परिवर्तन करने की। याद है? देखो, जिस समय आप मैं शब्द बोलते हो ना, उस समय सामने मैं हूँ ही आत्मा, मैं शब्द बोलो और सामने आत्मा रूप को लाओ। मैं शब्द ऐसे नहीं बोलो, मैं, आत्मा। यह नेचुरल स्मृति में लाओ, मैं शब्द के पीछे आत्मा लगा दो। मैं आत्मा। जब मेरा शब्द बोलते हो तो पहले कहो मेरा बाबा, मेरा रूमाल, मेरी साड़ी, मेरा यह। लेकिन पहले मेरा बाबा। मेरा शब्द बोला, बाबा सामने आया। मैं शब्द बोला आत्मा सामने आई, यह नेचर और नेचुरल बनाओ। सहज है, ना कि मुश्किल है। जानते ही हो मैं आत्मा हूँ। सिर्फ उस समय मानते नहीं हो। जानना 100 परसेन्ट है, मानना परसेन्टेज में है। जब बॉडी कान्सेस नेचुरल हो गया, याद करना पड़ता है क्या मैं बॉडी हूँ ? नेचरल याद है ना। तो मैं शब्द मुख के पहले तो संकल्प में आता है ना। तो संकल्प में भी मैं शब्द आवे तो फौरन आत्मा स्वरूप सामने आये। सहज नहीं है यह अभ्यास करना। सिर्फ मैं शब्द नहीं बोलना, आत्मा साथ में बोलना, पक्का हो जायेगा। है ना पक्का। दूसरे को भी कोई बुलायेगा तो आप ऐसे ऐसे करेंगे। तो मैं आत्मा हूँ। आत्मा का संसार बापदादा। आत्मा का संस्कार ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। तो क्या करेंगे, यह मन की ड्रिल। आजकल डाक्टर्स भी कहते हैं ड्रिल करो, ड्रिल करो। एक्सरसाइज। तो यह एक्सरसाइज करो। मैं आत्मा। मेरा बाबा। क्योंकि समय की गति को ड्रामानुसार स्लो करना पड़ता है। होना चाहिए क्रियेटर को तीव्र, क्रियेशन को नहीं लेकिन अभी के प्रमाण समय तेज जा रहा है। प्रवृति एवररेडी है सिर्फ आर्डर के लिए रूकी हुई है। ड्रामा का समय ही आर्डर करेगा ना। स्थापना वाले अगर एवररेडी नहीं होंगे तो विनाश के बाद क्या प्रलय होगी? होनी है प्रलय? कि विनाश के बाद स्थापना होनी ही है? तो स्थापना के निमित्त बने हुए अभी समय प्रमाण एवररेडी होने चाहिए। बापदादा यही देखने चाहते हैं, जैसे ब्रह्मा बाप अर्जुन बना ना, एक्जैम्पुल बना ना। ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले कौन बनते हैं? स्वयं को भी देखो, समय को भी देखो। बापदादा ने पहले भी कहा कि वर्तमान समय आप सभी ब्राह्मण सो फरिश्ते आत्माओं को निमित्तभाव और निमार्कणभाव, इन दोनों शब्दों को अण्डरलाइन करना है। इसमें बॉडी कान्सेस का मैंपन खत्म हो जायेगा। मेरापन भी खत्म हो जायेगा। निमित्त हूँ और निमार्कण स्वभाव। जितना निमार्कण होते हैं ना उतना मान मिलता है। क्योंकि जो निमार्कण होता है ना वह सबका प्यारा बन जाता है। और जब प्यारा बन जाता है तो मान तो आटोमेटिकली मिलेगा। तो निमित्त और निमार्कणभाव और भावना, शुभभावना। भाव और भावना दो चीज़ें होती हैं तो निमित्त और निमार्कणभाव और भावना हर एक के प्रति शुभभावना, शुभकामना। कैसा भी हो, आपके निमित्त निमार्कणभाव और शुभभावना वायुमण्डल ऐसा बनायेगी, जो सामने वाला भी वायब्रेशन से बदल जायेगा। कई बच्चे रूहरिहान करते हैं ना तो कहते हैं हमने एक मास से शुभ भावना रखी, वह बदलता ही नहीं है। फिर थक जाते हो, दिलशिकस्त हो जाते हैं। अभी उस बिचारे की जो वृत्ति है या दृष्टि है वह है ही पत्थर जैसी, उसमें थोड़ा तो टाइम लगेगा ना। अच्छा मानो वह नहीं बदलता है तो आप अपने को तो ठीक रखो ना। आप तो अपनी पोजीशन में रहो ना। आप क्यों दिलशिकस्त हो जाते हो। दिलशिकस्त नहीं हो। अच्छा वह नहीं बदला तो मैं भी उसके साथ बदल न जाऊँ। दिलशिकस्त हो जाना, वह पावरफुल हुआ जो उसने आपको बदल लिया। आप अपने स्वमान की सीट क्यों छोड़ते हो? वेस्ट थोट्स भी नहीं उठना चाहिए, क्यों? क्यों कहा और वेस्ट थोट्स का दरवाजा खुला। वह दरवाजा बन्द बहुत मुश्किल होता है। इसीलिए क्यों नहीं सोचो, पॉवरफुल होकर वायब्रेशन देते रहो। आप अपनी सीट छोडकर क्यों दिलशिकस्त हो जाते हो? याद रखा ना पोजीशन से नीचे नहीं आओ, फिर बहुत आपोजीशन हो जाती है। व्यक्ति-व्यक्ति में आपोजीशन हो जाती है, स्वभाव संस्कार में आपोजीशन हो जाती है, विचारों में आपोजीशन हो जाती है इसलिए पोजीशन में रहो। तो कल क्या करेंगे? याद है? बापदादा का प्यार है ना, तो बापदादा समझते हैं सब ब्रह्मा बाप समान बन जायें। क्या बाप के आगे आपोजीशन नहीं आई, ब्रह्मा बाप के आगे आपोजीशन नहीं हुई, माया की भी हुई, आत्माओं की भी हुई, प्रकृति की भी हुई, लेकिन ब्रह्मा बाप ने पोजीशन छोड़ी? नहीं छोड़ी ना। तभी फरिश्ता बना ना। तो अभी एक दो को अपने को तो फिरिश्ता समझकर चलो। मैं फरिश्ता हूँ, सब फरिश्ते हैं। न मेरा, पुराने संसार संस्कार से नाता, न इन कोई ब्राह्मणों का। बस खत्म। यह भी फरिश्ता यह भी फरिश्ता उसी नजर से देखो। वायुमण्डल फैलाओ। अच्छा।
डबल फारेनर्स हैं ना तो डबल नशा चढ़ा रहे हैं। आज चांस मिला है ना! यह भी देखो भारतवासियों की सहानुभूति है आपसे। आपको चांस देके खुद नीचे बैठे हैं, देखो। नीचे बैठने वालों को बापदादा त्याग का भाग्य जमा कर ही रहा है। अच्छा। अभी क्या करना है? सभी जैसे अभी अभी बहुत मीठा मुस्कुरा रहे हो। ऐसे ही सदा रहना। कभी भी किसी से भी बात करो ना, मुस्कुराओ जरूर। आपके मुस्कुराने से उसका आधा दुख तो दूर हो जायेगा। चैरिटी बिगन्स एट होम। किसी से भी बोलो, साथी से ब्राह्मण से चाहे अज्ञानी से, मुस्कुराता चेहरा, रूहे गुलाब। सीरियस होके नहीं बोलो, क्या कर रहे हो, क्यों कर रहे हो, नहीं। मुस्कुराके बोलो। मुस्कुराने का स्टॉक है? खत्म तो नहीं हो गया? मुस्कुराया हुआ चेहरा, कितना अच्छा लगता है। जोश वाला चेहरा दूसरा देखके ही हट जाना चाहता है। और मुस्कुराने वाले चेहरे के नजदीक जाने चाहेंगे। तो आपको अभी का मुस्कुराता हुआ चेहरे का फोटो निकालकर देवें। वह फोटो अपने साथ रखेंगे, कागज का रखेंगे या दिल का? अच्छा।
(76 देशों से आये हैं - कई ग्रुप भी हैं - जैसे सर्व अफ्रीका कोर ग्रुप) - अच्छी सेवा कर रहे हैं, बापदादा को समाचार मिला था कि निर्विघ्न फास्ट सेवा हो रही है। जैसे अफ्रीका ने सन्देश देने का फास्ट किया है, ताली तो बजाओ। मुबारक हो। ऐसे सभी को करना आवश्यक है। प्लैन बनाओ सेवाका। बनाओ लेकिन सेवा करो तो बोझवाली सेवा नहीं करो। कई बच्चे सेवा के बाद इतने थक जाते हैं तो कोई मालिश-पालिस वाला चाहिए। सेवा यथार्थ वह है जिसमें खुशी मिले, हल्कापन हो। प्राप्ति होती है ना। प्राप्ति में थकावट होती है क्या? कई बच्चे पुरूषार्थ भी ऐसा करते हैं भारी पुरूषार्थ मेहनत का। फाउण्डेशन है मुहब्बत स्नेह। बाप और बच्चे का स्नेह, सेवा से आत्माओं को बाप से स्नेह का फल मिलता है। तो सेवा भी करते हैं तो भारी रूप नहीं, हल्का। सेवा बोझवाली नहीं है सेवा हल्का बनाने वाली है। पुरूषार्थ भी मेहनत से नहीं करो। बापदादा को मेहनत अच्छी नहीं लगती। हैं मास्टरसर्वशक्तिवान और मेहनत कर रहे हैं। अच्छा लगता है? न पुरूषार्थ में न सेवा में। तो बापदादा ने देखा, इन्हों की रिजल्ट का समाचार सुना। उमंग-उत्साह से कर रहे हैं और विशेषता यह है कि अपने आपस में ही हैण्डस निकालके आगे बढ़ रहे हैं। नहीं तो कई कहते हैं सेवा बहुत हैं, हैण्डस नहीं हैं। हैण्डस होवें तो सेवा बढ़ जाये लेकिन इन्होंने यह माँगनी नहीं की, यह विशेषता है। अपने ही हैण्ड तैयार किये, कैसे भी किये, किये। अपने ही हैण्डस तैयार किये और बढ़ते जा रहे है। फास्ट वृद्धि की है ना? क्या विशेषता सुनाई थी, जितनी जोन में सेवा नहीं हुई है उतनी अभी हुई है। फास्ट हुई है ना, मुबारक हो। अच्छा कर रहे हैं।
पीस आफ माइंड ग्रुप - अच्छा किया। अभी जो ग्रुप आया उनको पालना करना। जैसे स्थापना की ना तो पालना भी करते रहना। कनेक्शन नहीं तोड़ना, कुछ न कुछ उन्हों को भेजते रहो, कनेक्शन जोड़ते रहो। ठीक है ना। बापदादा ने समाचार सुना है तो यह जो करते हैं - कॉल आफ टाइम, कॉल आफ टाइम वाले कुछ न कुछ भेजते रहते हैं। तो कनेक्शन रख रहे हैं ना, ऐसे आप सभी भी कनेक्शन रखते रहो। चलो पहले सम्पर्क में आये, फिर संबंध में आवे, फिर संबंध में आते-आते ब्राह्मण बन जायेंगे। तो आगे बढ़ाते रहो उन्हों को। बीच-बीच में उन्हों को बुलाके चाहे भिन्न-भिन्न देश के वहाँ बुलाया लेकिन आप उसकी जिम्मेवारी लो, बुलाया क्या उसकी रिजल्ट है, तब आगे बढ़ेंगे। प्रोग्राम अच्छे करते हो लेकिन पालना कम हाती है। पालना न मिलने से, क्या है जन्म तो ले लिया लेकिन बढ़ते नहीं हैं। आयु बिचारों की वही रहती है, आयु आगे बढ़ती नहीं है तो ऐसे करना। लेकिन किया अच्छा है। बापदादा तो वतन में बैठे भी देखते हैं समाचार भी सुनते हैं। समाचार बापदादा को बहुत अच्छा लगता है, थकता नहीं है। तो मुबारक हो। सन्देश देने वाले सन्देशवाहक बनें, इसकी मुबारक हो। ताली बजाओ। (पीस आफ माइन्ड के कुछ सैम्पुल बैठे हैं, बापदादा ने सबको आगे बुलाया - टोटल 6 हैं।) यह देखो कितना अच्छा एक्जैम्पुल है, तो दिल से आप सभी को यह सब ब्राह्मण आत्मायें पीसफुल बनने की मुबारक दे रहे हैं। पीसफुल बनने की मुबारक। अभी नया जन्म हुआ ना। तो बर्थ डे हो गई आज। तो आपके बर्थ डे की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा, तो देखो सेवा की तो फल भी मिला। अच्छा।
इन्टरफेथ कोर ग्रुप - अच्छा इन्टरफेथ वाले। अच्छा है। यह सेवाधारी होके आये हैं। अच्छा है सबको सन्देश देने में यह भी क्यों रह जाएं। तो अच्छा किया। इस ग्रुप को भी बुलाया। और विशेष बापदादा ने देखी कि इन्टरनेशनल रूप में किया। देश और विदेश ने मिलके एक संकल्प लेके किया यह बहुत अच्छा किया। और सक्सेस भी हुआ तो इन्टरनेशनल प्रोग्राम सक्सेस किया इसकी मुबारक है। और आगे भी इस ग्रुप को बढ़ाते रहना क्योंकि यह तो आपके साथी हैं ना, आध्यात्मिक तो है ना। इन्हों में से एक भी परिवर्तन होके माइक बनें तो बहुत सेवा कर सकता है। तो अच्छा किया बापदादा खुश है। और सभी भी खुश, तभी तो ताली बजाई। आगे बढ़ाते रहना। छोड़ नहीं देना। जैसे यह कॉल आफ टाइम करते रहते हैं ना ऐसे करते रहना। आगे बढ़ाते रहना। अच्छा।
जानकी फाउण्डेशन और वैल्यु ट्रेनिंग ग्रुप - बहुत अच्छा बापददादा ने देखा नये-नये विधि द्वारा सन्देश पहुँचाने का कार्य अच्छा है क्योंकि आजकल हेल्थ कान्सेस तो सबसे ज्यादा हैं। तो इस विधि से एक किताब भी दिखाया था बापदादा को, वह भी अच्छा सेवा के निमित बनेगा। लेकिन जैसे नाम है फाउण्डेशन, वैसे ही याद और सेवा का फाउण्डेशन कम्बाइन्ड करते हुए जानकी फाउण्डेशन को आगे बढ़ाते रहना। ठीक है ना। हाँ क्योंकि आपकी सेवा विस्तार में बहुत आगे बढ़ सकती है। बढ़ रही है और बढ़ती रहेगी। वैल्यु का बुक देखा था। अच्छे उमंग-उत्साह से सेवा करने का फल प्रत्यक्ष मिलता है। जितना आगे बढ़ते जायेंगे उतने नजदीक आते जायेंगे। यह सब तरफ किया है। जो भी फाउण्डेशन है अलग-अलग वह इस फाउण्डेशन में समीप आते जायेंगे। थकते तो नहीं हैं ना। डबल सेवा करते हो ना जॉब भी करते हो, यह भी करते हो। तो डबल सेवा, डबल विदेशी इसकी डबल मुबारक हो। बहुत अच्छा।
आई.टी.ग्रुप- अच्छा यह देश विदेश इकठ्ठा है। कोई नया प्लैन बनाया है? नया वेबसाइट बनाया है और मुरली का नया सिस्टम शुरू किया है। उसके अलावा नया ईमेल का सिस्टम बनाया है। क्योंकि इससे आवाज तो चारों ओर फैल सकता है। इसको एकाग्र होके नये-नये प्लैन बनाते जाओ और बढ़ते जाओ। क्योंकि देश विदेश दोनों का कनेक्शन है ना। जितना इस डिपार्टमेंट को आगे बढ़ाते जायेंगे उतना एक स्थान पर बैठे बहुतों को सन्देश दे सकेंगे। यह बहुत अच्छा साधन मिला है। साधन द्वारा सन्देश देने का कार्य यही आपके डिपार्टमेंट की साधना हो जायेगी। अच्छा किया है। यह मोहिनी हैण्डिल करती है, अच्छा है। देखो वह पीस वाला करती, वह कॉल आफ टाइम करती, अच्छी सीट ली है। बापदादा डबल विदेशियों को भिन्न-भिन्न सेवा की मुबारक के साथ दुआयें भी दे रहे हैं। दुआयें हों। (दादी भी दुआयें दे रही हैं।)
ट्रेवलर फिल्म ग्रुप- यह फिल्म बना रहे हैं। अच्छा है क्योंकि आजकल कलचरल प्रोग्राम भी सबको पसन्द आता है। पूरा कोर्स करा लेते हो, कलचरल में ही सारा कोर्स हो जाता है। यह बहुत अच्छा है। बापदादा को पसन्द है। देखा भी है। अच्छा कर रहे हो। आप कहेंगे अभी दिखायेंगे। लेकिन बापदादा ने देख लिया है। इन साधनों द्वारा तो फिर भी देख लेंगे लेकिन बापदादा के पास आपसे भी बहुत बड़ी मशीनरी है उसमें देख लिया है। अच्छा कर रहे हैं करते रहेंगे, बाप को प्रत्यक्ष करते ही रहेंगे। बहुत अच्छा, मुबारक हो।
मिडिल इस्ट सेवा में बहुत आगे जा रहे हैं:- बहुत अच्छे-अच्छे रतन हैं। एक-एक की विशेषता अपनी अपनी है। करावनहार करा रहा है और आप बच्चे निमित्त बनके कर रहे हैं। सब अच्छे उमंग-उत्साह का सर्टिफिकेट दादियों द्वारा मिला है इसकी तो बहुत-बहुत मुबारक हो। लेकिन इसका कारण क्या? जिस भी सेवा स्थान का सेवा का वृद्धि होती है और निर्विघ्न होते हैं उसका कारण क्या होता है? जानते हो? पालना। कई सेन्टर्स में वी.आई.पी की सेवा बहुत अच्छी करते हैं लेकिन स्टूडेन्ट की पालना कम करते हैं| इसीलिए स्टूडेन्ट बढ़ते नहीं हैं। और स्टूडेन्ट रेग्युलर सेवा के उमंग-उत्साह में नहीं रहेंगे, क्लास करेंगे, जो कहेंगे वह करेंगे लेकिन अपने उमंग-उत्साह में नहीं आयेंगे। तो यह रिजल्ट है पालना की। मुबारक हो। सभी जो भी टीचर्स निमित्त बैठी हैं वह जितनी वी.आई.पी. का अटेन्शन रखते हो, उतनी पालना स्टूडेन्ट की भी रखो। स्टूडेन्ट में नवीनता लाओ, कोई न कोई नवीनता लाने से उमंग-उत्साह बढ़ेगा। बहुत बिजी हो जाते हो सेवा में फिर थक जाते हो, फिर पालना इतनी रूचि से नहीं करते हो। पहले तो राजधानी तैयार करो। वह तो स्टूडेन्ट से ही होगी ना। दिल से पालना करो। एक-एक की कमज़ोरी हटाने की मेहनत करो। खुशी की मेहनत करो, बोझ वाली नहीं क्योंकि क्लास के स्टूडेन्ट जितना ज्यादा बढ़ेंगे उतनी राजधानी जल्दी तैयार होगी। जो सहयोगी हैं, उनको संबंध में लाओ स्टूडेन्ट बनाओ। अच्छा है, टीचर्स की महिमा सुनी थी बहुत अच्छी सेवा कर रहे हैं, अच्छे प्लैन बना रहे हैं। टीचर्स हाथ उठाओ। अच्छा, आपको लाख गुणा बधाई हो।
अभी एक मिनट ऐसा पावरफुल सर्वशक्तियाँ सम्पन्न विश्व की आत्माओं को किरणें दो जो चारों ओर आपके शक्तियों का वायब्रेशन विश्व में फैल जाये। अच्छा। चारों ओर के ब्राह्मण सो फरिश्ते बच्चों को, सदा स्वदर्शन द्वारा स्व को चेक और चेंज करने वाले, ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले फरमानबरदार बच्चों को, सदा डबल लाइट बन सेवा और पुरूषार्थ करने वाले फरिश्ते आत्माओं को, सदा अपनी पोजीशन की सीट पर सेट हो आपोजीशन को समाप्त करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को, संगमयुग का प्रत्यक्ष फल अनुभव करने वाले बाप के समीप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- दादियों को देखकर खुश होते हैं ना। बस दादी की मुस्कुराती मूरत और दृष्टि बहुत सुखदाई है। आप जब मुस्कुराकर मिलती हो, दृष्टि देती हो ना तो सब बहुत खुश हो जाते हैं। मुस्कुरा रही है। बापदादा ने तो कहा है सदैव चेहरा मुस्कुराना चाहिए सभी का। मुस्कुराने के बिना कभी भी नहीं हो। देखो दादी कह रही है मुस्कुरायेंगे नहीं तो मुश्किलातें आ जायेंगी। (दादी सिर्फ इशारा करती है) दादी फरिश्ता बन रही है ना, फरिश्तेपन की स्टेज आ रही है। मुस्कुराने में सबकुछ आ जाता है। बहुत भाषण किया है ना, जब से जन्म लिया है तब से भाषण किया है, क्लास कराये हैं, अभी स्लोगन मुआफिक बोलती है। फरिश्ता बनकर डांस करती है। फरिश्ता और क्या करता है? उड़ता है और डांस करता है। अच्छा। डबल फारेनर्स ने कहा है कल से 85 परसेनट बन जायेंगे। दादी तो है 95 परसेन्ट। कापी करो बस। कोई सीरियस बने ना तो उसको टाइटल देना - गैस का गुब्बारा बन गया। गैस का गुब्बारा होता है ना, तो जब गम्भीर हो जाते हैं तो गैस भर जाता है व्यर्थ संकल्पों का। कोई को बोलना नहीं गुब्बारा, नहीं तो और गैस भर जायेगा। शुभ भावना रखना। इन्हों को ही तो बनना है और कौन बनेगा।
तीनों बड़े भाईयों से:- तीनों ही आपस में एक संकल्प करके चल रहे हैं, एक ही संकल्प तीनों का। हाँ जी, हाँ जी, सबकी दुआयें आपको मिल रही हैं। मिलती हैं ना। अच्छा है पाण्डवों में भी एक्जैम्पुल तो हैं ना। बहुत अच्छा। (सोमनाथ वालों की याद दी - वहाँ भी सेवा अच्छी हो रही है)। उन्हों को भी सेवा के याद की मुबारक। (प्रेजीडेंट हमेशा बाबा का सन्देश पूछता है कि बाबा ने क्या सन्देश दिया है) उनको याद रहता है कि सन्देश आया है। देखो यह एक ही प्रेजीडेंट हैं जिसमें तीन सत्ता हैं - साइंटिस्ट भी है, राजनेता भी है और धर्म में भी रूचि है। जितने भी प्रेजीडेंट आये हैं, और प्रेजीडेंट ऐसा नहीं हुआ है। तो इसका भी पार्ट है। आध्यात्मिक रास्ते में रूचि है इसीलिए आध्यात्मिक रास्ते का साथी है।
विदेश की बड़ी बहिनों से - अच्छा - यह डबल सेवाधारियों की सेवा के निमित्त बने हुए हैं। अच्छा है। बापदादा के पास समाचार तो आता ही रहता है और सभी अच्छी तरह से सम्भाल भी रहे हैं। चक्कर भी लगाते रहते हो। बापदादा को अच्छा लगता है, आपस में जब मिलते हो, प्लैन बनाते हो, तो संगठन की शक्ति को प्रयोग करते हो, यह बहुत अच्छा है क्योंकि हर एक की विशेषता अपनी-अपनी है। विचार कोई समय किसी का बहुत अच्छा निकल आता है, तो आपस में मिलते रहते हो, मीटिंग करते हो यह बापदादा को अच्छा लगता है। अभी आप लोगों को पहले फरिश्तेपन के नजदीक आना पड़ेगा क्योंकि आप साकार रूप में एक्जैम्पल हो। साकार में अभी आप भी एक्जैम्पुल हो, निमित्त हो। तो जैसी आपकी रफ्तार होगी वैसे औरों को भी हिम्मत मिलेगी। उमंग आयेगा। सब पुराने हैं। साकार बाप की पालना का रिटर्न है फॉलो ब्रह्मा बाबा। सबमें अव्वल नम्बर, तभी तो अव्वल आत्मा बनी ना। सारे ड्रामा में अव्वल नम्बर आत्मा। तो फॉलो ब्रह्मा बाप। और सबका प्यार और दुआयें कितनी मिलती हैं। अपना पुरूषार्थ तो है लेकिन दुआयें भी मिलती हैं। जिसके निमित्त बनते हैं उनकी दुआयें मिलती हैं, यह भी लिफ्ट है, आप लोगों को ईश्वरीय गिफ्ट भी है। (मौरीशियस में रिट्रीट प्लेस बन रहा है) अच्छा बन रहा है, सेवा बहुत अच्छी होगी। अच्छा।
(डबल विदेशी भाई बहिनों ने बापदादा के पास निम्नलिखित 7 बातों का चार्ट सन्देशी द्वारा भेजा, जिसकी रिजल्ट पर आगे के पुरूषार्थ का इशारा दिया है)
(1) स्व परिवर्तन की रफ्तार क्या है?
(2) अपने स्वमान में निरन्तर स्थित रहकर दूसरों को सम्मान देता हूँ?
(3) सर्व से दुआयें ली और दी?
(4) सर्व खज़ानों का स्टॉक कहाँ तक जमा किया?
(5) अपने मन को सेकण्ड में एकाग्र और निरन्तर एकरस कर सकता हूँ?
(6) बिन्दू बन, बिन्दू को याद कर सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा सकता हूँ?
(7) पिछले 6 महीनों से खुशी, शान्ति और शक्ति की किरणें फैलाके ज्ञान सूर्य बना?