16-11-06   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


अपने स्वमान की शान में रहो और समय के महत्व को जान एवररेडी बनो

आज बापदादा चारों ओर के अपने परमात्म प्यार के पात्र स्वमान की सीट पर सेट बच्चों को देख रहे हैं। सीट पर सेट तो सब बच्चे हैं लेकिन कई बच्चे एकाग्र स्थिति में सेट हैं और कोई बच्चे संकल्प में थोड़ा-थोड़ा अपसेट हैं। बापदादा वर्तमान समय के प्रमाण हर बच्चे को एकाग्रता के रूप में स्वमानधारी स्वरूप में सदा देखने चाहते हैं। सभी बच्चे भी एकाग्रता की स्थिति में स्थित होना चाहते हैं। अपने भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वमान जानते भी हैं, सोचते भी हैं लेकिन एकाग्रता हलचल में ले आती है। सदा एकरस स्थिति कम रहती है। अनुभव होता है और यह स्थिति चाहते भी हैं लेकिन कब-कब क्यों होती है, कारण! सदा अटेन्शन की कमी। अगर स्वमान की लिस्ट निकालो तो कितनी बड़ी है। सबसे पहला स्वमान है - जिस बाप को याद करते रहे, उनके डायरेक्ट बच्चे बने हो, नम्बरवन सन्तान हो। बापदादा ने आप कोटों में से कोई बच्चों को कहाँ-कहाँ से चुनकर अपना बना लिया। 5 ही खण्डों से डायरेक्ट बाप ने अपने बच्चों को अपना बना लिया। कितना बड़ा स्वमान है। सृष्टि रचता की पहली रचना आप हो। जानते हो ना इस स्वमान को! बापदादा ने अपने साथ-साथ आप बच्चों को सारे विश्व की आत्माओं के पूर्वज बनाया है। विश्व के पूर्वज हो, पूज्य हो। बापदादा ने हर बच्चे को विश्व के आधारमूर्त, उदाहरणमूर्त बनाया है। नशा है? थोड़ा-थोड़ा कभी कम हो जाता है। सोचो, सबसे अमूल्य जो सारे कल्प में ऐसा मूल्य तख्त किसको नहीं प्राप्त होता। वह परमात्म तख्त, लाइट का ताज, स्मृति का तिलक दिया। स्मृति आ रही है ना - मैं कौन! मेरा स्वमान क्या! नशा चढ़ रहा है ना! कितना भी सारे कल्प में सतयुगी अमूल्य तख्त है लेकिन परमात्म दिलतख्त आप बच्चों को ही प्राप्त होता है। बापदादा सदा लास्ट नम्बर बच्चे को भी फरिश्ता सो देवता स्वरूप में देखते हैं। अभी-अभी ब्राह्मण हैं, ब्राह्मण से फरिश्ता, फरिश्ता से देवता बनना ही है। जानते हो अपने स्वमान को? क्योंकि बापदादा जानते हैं कि स्वमान को भूलने के कारण ही देहभान, देह अभिमान आता है। परेशान भी होते हैं, जब बापदादा देखते हैं देह-अभिमान वा देहभान आता है तो कितने परेशान होते हैं। सभी अनुभवी हैं ना! स्वमान की शान में रहना और इस शान से परे परेशान रहना, दोनों को जानते हो। बापदादा देखते हैं कि सभी बच्चे मैजॉरिटी नॉलेजफुल तो अच्छे बने हैं, लेकिन पावर में फुल, पावरफुल नहीं हैं। परसेन्टेज में हैं। बापदादा ने हर एक बच्चे को अपने सर्व खज़ानों के बालक सो मालिक बनाया, सभी को सर्व खज़ाने दिये हैं, कम ज्यादा नहीं दिये हैं क्योंकि अनगिनत खज़ाना है, बेहद खज़ाना है। इसलिए हर बच्चे को बेहद का बालक सो मालिक बनाया है।

तो अभी अपने आपको चेक करो - बेहद का बाप, हद का बाप नहीं है, बेहद का बाप है, बेहद खज़ाना है। तो आपके पास भी बेहद है? सदा है कि कभी-कभी कुछ चोरी हो जाता है? गुम हो जाता है? बाबा क्यों अटेन्शन दिला रहे हैं? परेशान न हो, स्वमान की सीट पर सेट रहो, अपसेट नहीं। 63 जन्म तो अपसेट का अनुभव कर लिया ना! अभी और करने चाहते हो? थक नहीं गये हो? अभी स्वमान में रहना अर्थात् अपने ऊंचे ते ऊंचे शान में रहना। क्यों? कितना समय बीत गया। 70 साल मना रहे हो ना! तो स्वयं की पहचान अर्थात् स्वमान की पहचान, स्वमान में स्थित रहना। समय अनुसार अभी सदा शब्द को प्रैक्टिकल लाइफ में लाना, शब्द को अण्डरलाइन नहीं करना लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में अण्डरलाइन करो। रहना है, रहेंगे, कर तो रहे हैं.. कर लेंगे। यह बेहद के बालक और मालिक का बोल नहीं है। अभी तो हर एक के दिल से यह अनहद शब्द निकले, पाना था वह पा लिया। पा रहे हैं, यह बेहद खज़ाने के बेहद बाप के बच्चे नहीं बोल सकते। पा लिया, जब बापदादा को पा लिया, मेरा बाबा कह दिया, मान लिया, जान भी लिया, मान भी लिया, तो यह अनहद शब्द पा लिया... क्योंकि बापदादा जानते हैं कि बच्चे स्वमान कभी-कभी होने के कारण समय के महत्व को भी स्मृति में कम रखते हैं। एक स्वयं का स्वमान, दूसरा है समय का महत्व। आप साधारण नहीं हो, पूर्वज हो, आप एक-एक के पीछे विश्व की आत्माओं का आधार है। सोचो, अगर आप हलचल में आयेंगे तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होगा! ऐसे नहीं समझो कि जो महारथी कहलाये जाते हैं, उनके पीछे विश्व का आधार है, अगर नये-नये भी हैं, क्योंकि आज नये भी बहुत आये होंगे। नये हैं, जिसने दिल से माना ‘‘मेरा बाबा’’। मान लिया है? जो नये नये आये हैं वह मानते हैं? जानते हैं नहीं, मानते हैं ‘‘मेरा बाबा’’ वह हाथ उठाओ। लम्बा उठाओ। नये नये हाथ उठा रहे हैं। पुराने तो पक्के ही हैं ना, जिसने दिल से माना मेरा बाबा और बाप ने भी माना मेरा बच्चा, वह सभी जिम्मेवार हैं। क्यों? जब से आप कहते हो मैं ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी हूँ, ब्रह्माकुमार और कुमारी हो वा शिवकुमार शिवकुमारी हो, या दोनों के हो? फिर तो बंध गये। जिम्मेवारी का ताज पड़ गया। पड़ गया है ना? पाण्डव बताओ जिम्मेवारी का ताज पड़ा है? भारी तो नहीं लग रहा है? हल्का है ना! है ही लाइट का। तो लाइट कितनी हल्की होती है।

तो समय का भी महत्व अटेन्शन में रखो। समय पूछ के नहीं आना है। कई बच्चे अभी भी कहते हैं, सोचते हैं, कि थोड़ा सा अन्दाज मालूम होना चाहिए। चलो 20 साल हैं, 10 साल हैं, थोड़ा मालूम हो। लेकिन बापदादा कहते हैं समय का फाइनल विनाश का छोड़ो, आपको अपने शरीर के विनाश का पता है? कोई है जिसको पता है कि मैं फलाने तारीख में शरीर छोडूंगा है पता? और आजकल तो ब्राह्मणों के जाने का भोग बहुत लगाते हो। कोई भरोसा नहीं। इसलिए समय का महत्व जानो। यह छोटा सा युग है आयु में छोटा, लेकिन बड़े ते बड़ी प्राप्ति का युग है क्योंकि बड़े ते बड़ा बाप इस छोटे से युग में ही आता है और बड़े युगो में नहीं आता। यही छोटा सा युग है जिसमें सारे कल्प की प्राप्ति का बीज डालने का समय है। चाहे विश्व का राज्य प्राप्त करो, चाहे पूज्य बनो, सारे कल्प के बीज डालने का समय यह है और डबल फल प्राप्त करने का समय है। भविÌत का फल भी अभी मिलता और प्रत्यक्षफल भी अभी मिलता है। अभी-अभी किया, प्रत्यक्ष फल मिलता है और भविष्य भी बनता है। ऐसा सारे कल्प में देखो, है कोई युग ऐसा? क्योंकि इस समय ही बाप ने हर बच्चे की हथेली पर बड़े ते बड़ी सौगात दी है, याद है सौगात अपनी? स्वर्ग का राज़-भाग। नई दुनिया के स्वर्ग की गिफ्ट, हर बच्चे की हथेली में दी है। इतनी बड़ी गिफ्ट कोई नहीं देता और कभी नहीं दे सकता। अभी मिलती है। अभी आप मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो और कोई युग में मास्टर सर्वशक्तिवान का मर्तबा नहीं मिलता है। तो स्वयं के स्वमान में भी एकाग्र रहो और समय के महत्व को भी जानो। स्वयं और समय, स्वयं को स्वमान है, समय का महत्व है। अलबेला नहीं बनना। 70 साल बीत चुके हैं, अभी अगर अलबेले बनें तो बहुत कुछ अपनी प्राप्ति कम कर देंगे। क्योंकि जितना आगे बढ़ते हैं ना उतना एक अलबेलापन, बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे चल जायेंगे, पहुंच जायेंगे, देखना पीछे नहीं रहेंगे, हो जायेगा, यह अलबेलापन और रॉयल आलस्य। अलबेलापन और आलस्य। कब शब्द है आलस्य, अब शब्द है तुरत दान महापुण्य।

तो अभी आज पहला टर्न है ना! तो बापदादा अटेन्शन खिंचवा रहा है। इस सीजन में न स्वमान से उतरना है, न समय के महत्व को भूलना है। अलर्ट, होशियार, खबरदार। प्यारे हैं ना! जिससे प्यार होता है ना उसकी जरा भी कमज़ोरी-कमी देखी नहीं जाती है। सुनाया ना कि बापदादा का लास्ट बच्चा भी है तो उससे भी अति प्यार है। बच्चा तो है ना। तो अभी इस चलती हुई सीजन में, सीजन भले इन्डिया वालों की है लेकिन डबल विदेशी भी कम नहीं हैं, बापदादा ने देखा है, कोई भी टर्न ऐसा नहीं होता जिसमें डबल विदेशी नहीं हो। यह उन्हों की कमाल है। अभी हाथ उठाओ डबल विदेशी। देखो कितने हैं! स्पेशल सीजन बीत गई, फिर भी देखो कितने हैं! मुबारक है। भले पधारे, बहुत-बहुत मुबारक है। तो सुना अभी क्या करना है? इस सीजन में क्या-क्या करना है, वह होम वर्क दे दिया। स्वयं को रियलाइज करो, स्वयं को ही करो, दूसरे को नहीं और रीयल गोल्ड बनो क्योकि बापदादा समझते हैं जिसने मेरा बाबा कहा वह साथ में चले। बराती होके नहीं चले। बापदादा के साथ श्रीमत का हाथ पकड़ साथ चले और फिर ब्रह्मा बाप के साथ पहले राज्य में आवे। मजा तो पहले नये घर में होता है ना। एक मास के बाद भी कहते, एक मास पुराना है। नया घर, नई दुनिया, नई चाल, नया रसम रिवाज और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आये। सभी कहते हैं ना, ब्रह्मा बाप से हमारा बहुत प्यार है। तो प्यार की निशानी क्या होती है? साथ रहे, साथ चले, साथ आये। यह है प्यार का सबूत। पसन्द है? साथ रहना, साथ चलना, साथ आना, पसन्द है? है पसन्द? तो जो चीज़ पसन्द होती है उसको छोड़ा थोड़ेही जाता है! तो बाप की हर बच्चे के साथ प्रीत की रीत यही है कि साथ चलें, पीछे-पीछे नहीं। अगर कुछ रह जायेगा तो धर्मराज की सजा के लिए रूकना पड़ेगा। हाथ में हाथ नहीं होगा, पीछे-पीछे आयेंगे। मजा किसमें है? साथ में है ना! तो पक्का वायदा है ना? पक्का वायदा है साथ चलना है या पीछे-पीछे आना है? देखो हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं। हाथ देख करके बापदादा खुश तो होते हैं लेकिन श्रीमत का हाथ उठाना। शिवबाबा को तो हाथ होगा नहीं, ब्रह्मा बाबा, आत्मा को भी हाथ नहीं होगा, आपको भी यह स्थूल हाथ नहीं होगा, श्रीमत का हाथ पकड़कर साथ चलना। चलेंगे ना! कांध तो हिलाओ। अच्छा हाथ हिला रहे हैं। बापदादा यही चाहते हैं एक भी बच्चा पीछे नहीं रहे, सब साथ-साथ चलें। एवररेडी रहना पड़ेगा। अच्छा।अब बापदादा चारों ओर के बच्चों का रजिस्टर देखता रहेगा। वायदा किया, निभाया अर्थात् फायदा उठाया। सिर्फ वायदा नहीं करना, फायदा उठाना। अच्छा। अभी सभी दृढ़ संकल्प करेंगे! दृढ़ संकल्प की स्थिति में स्थित होकर बैठो, करना ही है, चलना ही है। साथ चलना है। अभी यह दृढ़ संकल्प अपने से करो, इस स्थिति में बैठ जाओ। गे गे नहीं करना। करना ही है। अच्छा। अभी क्या करना है!

सेवा का टर्न का राजस्थान का है, इन्दौर, गुजरात सहयोगी है:- अच्छा जो भी सेवा के लिए आये हैं, सब उठो। अच्छा है, आधा क्लास तो सहयोगी है। सहयोग देना, देना नहीं है बहुत-बहुत दुआयें लेना है क्योंकि जिसकी भी सेवा करते हैं, वह खुश होते हैं। तो जो खुश होते हैं, उनकी दुआयें ऑटोमेटिकली निकलती हैं, तो कितनी दुआयें जमा की! राजस्थान है ना। निमित्त राजस्थान है तो यह गोल्डन चांस मिलता है, पुण्य का खाता जमा करने का। अच्छा है, राजस्थान को तो सहज नशा है कि बापदादा राजस्थान में ही आया है। बापदादा को राजस्थान अच्छा लगा ना। अच्छा है साथ देने वाले गुजरात तो है ही साथी, जब भी कुछ होता है तो पहले गुजरात ही मददगार बनता है। तो गुजरात को टाइटल है एवररेडी ग्रुप। अच्छा है। कभी ना नहीं करते हैं, पहुंच ही जाते हैं। कहाँ है सरला? अच्छा गुजरात को साथी बनाया है। राजस्थान के नजदीक गुजरात ही है, इसलिए ज्यादा पुण्य जमा होता है। अभी टर्न निमित्त राजस्थान है। तो अगली सीजन बीती, अभी दूसरी सीजन शुरू हुई है, 6 मास बीच में पड़ता है तो उसमें राजस्थान ने कितने वारिस तैयार किये हैं? नाम ही है राजस्थान, बाप भी राजस्थान में आया है, तो बोलो कितने वारिस तैयार विये हैं? क्योंकि बापदादा ने कहा था कि वारिस निकालने हैं, तो पहला टर्न आपका आया है, निकले हैं, हाथ उठाओ। दो निकला हो एक निकला हो या निकलने की उम्मींद हो तो हाथ उठाओ। कितने एक या 5, कितने? (जयपुर से 3-4 निकले हैं, पुरूषार्थ जारी है, जोधपुर से 2 निकले हैं) 5 तो हो गये ना। और कितने हैं! देखेंगे 5 कौन से निकले हैं, तैयार किया उसकी मुबारक है। अभी कभी बुलायेंगे उन वारिसों को। अच्छा है, जो जोन सेवा में आये, अभी तो पहला टर्न है ना, तो जो जोन सेवा में आये उनको वारिसों की लिस्ट जरूर लानी है। ठीक है ना, आपको पसन्द है ना। डबल फारेन भी लेकर आना। डबल फारेनर्स ने किस देश में कितने वारिस निकाले, देखेंगे क्योंकि अभी 108 की माला तो तैयार करनी है ना। बापदादा ने सुना है आबू वाले भी सेवा करते हैं। आबू के आस पास भी आबू वाले बहुत सेवा करते हैं, आबू वाले उठो। ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सभी उठो। अच्छा। आबू निवासी नीचे ऊपर एक ही आबू है। तो आबू निवासी कहते हैं कि बापदादा हमको यादप्यार नहीं देते हैं। तो आज विशेष आबू निवासियों को चाहे चार भुजायें हैं विशेष, दादी को कहते हैं बहुत भुजाधारी है, तो 4 मुख्य भुजायें हैं तो सभी को बापदादा सेवा के पुण्य के आरम्भ की दुआयें और मुबारक दे रहे हैं क्योंकि चाहे सेवाधारी कितने भी आये लेकिन फिर भी आबू निवासियों के बिना तो काम नहीं चलता। इसीलिए आपके पुण्य के खाते की भण्डारी खुल गई है। अभी देखेंगे कितनी-कितनी भरते हैं। गवर्मेन्ट वह भण्डारी बंद कराती हैं ना तो बापदादा पुण्य की भण्डारी खोल रहे हैं। आबू निवासियों को नशा है ना, खुशी है ना, घर बैठे पुण्य जमा होता रहता है, प्यार और नि:स्वार्थ से सेवा करते तो पुण्य की भण्डारी भरती जाती, ऑटोमेटिक। हाथ से डालने की जरूरत नहीं है सिर्फ प्यार से सेवा करने की बात है। तो दिल और चुल पर तो हो ही। चुल पर भी हो दिल पर भी हो, अभी आबू वालों ने कितने वारिस निकाले, हिसाब तो पूछेंगे ना! ऊपर का निमित्त कौन है? पाण्डव भवन का। कौन है निमित्त! मृत्युंजय, हाँ आप बताओ, आबू की एरिया से कितने वारिस निकले? निकले हैं कि हिसाब करना है! अभी हिसाब देखना है कितने निकले, चलो दूसरे टर्न में सुनाना और नीचे कौन है! (भूपाल भाई) हाँ कितने वारिस निकले, 6 मास तो पक्का हो गया। और इसमें सभी ने सेवा कहाँ न कहाँ की है, अभी हिसाब नहीं निकाला है चलो कोई हर्जा नहीं, बहुत बिजी रहे होंगे, दूसरे टर्न में पूछेंगे। नहीं निकाले हो तो निकालना। क्योंकि आबू तो हेड क्वार्टर है ना, तो हेड क्वार्टर का समाचार भी हेड हो। अच्छा है।

इन्दौर होस्टल की कुमारियाँ:- सभी कुमारियाँ 100 ब्राह्मण से उत्तम गाई जाती हैं। साधारण कुमारियां नहीं, ब्रह्माकुमारियाँ। तो हर एक ब्रह्माकुमारी 100 ब्राह्मण से उत्तम गाई जाती है तो आप कुमारियों ने कितने स्टूडेन्ट तैयार किये हैं! वारिस नहीं पूछ रहे हैं, वारिस पीछे पूछेंगे, स्टूडेन्ट कितने तैयार किये हैं या अपने को ही तैयार कर रहे हैं? बोलो, आपकी टीचर कहाँ है! (हॉस्टल की टीचर, करूणा बहन, शकुन्तला बहन) आगे आओ। अच्छा कितने स्टूडेन्ट तैयार हुए हैं। (कई कुमारियां, ब्रह्माकुमारियां बनी हैं, उनके माता पिता भी ज्ञान में आ जाते हैं) कितने स्टूडेन्ट बने हैं, एवरेज बताओ। अच्छा है, कुमारियां तैयार होके सेन्टर सम्भालेगी ना, कि नौकरी करेंगी? जो सेन्टर सम्भालने के लिए तैयार हो रही हैं, वह हाथ उठाओ। यह बहुत हैं। तो इन्हों की ट्रेनिंग कब पूरी होगी! (अभी पढ़ाई चल रही हैं) कब तक पढ़ेंगी? जिसका ग्रेजुएशन पूरा हुआ है वह हाथ उठाओ। 3-4 हैं, यह 3-4 ही सेन्टर सम्भालेगी या नौकरी करेंगी या दोनों करेंगी! (ओम प्रकाश भाई ने सुनाया - अभी तक लगभग 450 कुमारियाँ ऐसी हैं, जो पढ़कर सेन्टर सम्भाल रही हैं) फिर तो अच्छा है। अच्छा है, हैण्डस तो बनते हैं, तो टीचर्स को मुबारक हो। आप जो भी आई हो, वह पुरूषार्थ में सन्तुष्ट हो? अपने पुरूषार्थ में सन्तुष्ट हो, पढ़ाई में सन्तुष्ट हो? हाँ या अभी नई नई हैं! खुश रहती हैं, सन्तुष्ट रहती हैं? अच्छा हैण्डस तैयार करो क्योंकि समय कम है, सेवा बहुत है। सेवा बहुत-बहुत रही हुई है। आपका गीत भी है, समय की पुकार का प्रोग्राम भी करते हो ना, तो समय की पुकार टीचर्स की बहुत है। इसलिए जल्दी-जल्दी तैयार करो। अच्छा - खुश रहना और खुशी से उड़ती रहना।

30 देशों से लगभग 300 डबल विदेशी भाई बहिनें आये हुए हैं:- तो डबल विदेशियों का डबल पुरूषार्थ चलता है, एक है सेवा का, दूसरा है स्वयं का। तो टाइटल तो डबल विदेशी अच्छा है, डबल सेवा चल रही है सबकी, इन्डिविज्युअल। डबल सेवा। किस समय एक चलती, किस समय दूसरी चलती या साथ-साथ चलती है! जो समझते हैं कि दोनों ही सेवा स्वयं की और साथ की जो भी आत्मायें हैं उनकी सेवा साथ-साथ चलती है वह हाथ उठाओ। मैजारिटी पास हैं। ठीक रफ्तार से चलती है और आगे बढ़ाओ क्योंकि अभी समय के अनुसार एक ही समय डबल सेवा चाहिए। विश्व की भी और स्वयं की भी। सारे वर्ल्ड में सुख शान्ति की किरणें देना है। तो आप सोचो अभी कितनी आत्मायें रही हुई हैं। चाहे विदेश में चाहे देश में, तो वह सेवा करनी है ना। हर रोज यह चेक करो - कि डबल सेवा हुई? कितनी परसेन्ट में हुई? पावरफुल हुई या परसेन्टेज में हुई? वैसे सभी के लिए यह कह रहे हैं, सिर्फ डबल विदेशियों के लिए नहीं है, भारतवासियों को भी करनी है। अभी थोड़ी फास्ट गति करो, फास्ट गति से आत्मायें निकलें, कम से कम इतना तो कहें कि हमारा बाबा आ गया। बाबा शब्द तो बोले दिल से। मुख से नहीं, दिल से। तो यह अभी चार्ट रखना। क्योंकि डबल विदेशी तो डबल रफ्तार में जाने वाले है ना? बापदादा खुश होते हैं क्यों? बापदादा को एक विशेषता डबल विदेशियों की बहुत प्यारी लगती है। जानते हो ना वह! सच बोलते हैं। चाहे गिरते भी हैं तो भी सच बोलते हैं, चढ़ते हैं तो भी सच बोलते हैं। तो सच्ची दिल पर साहेब राजी होता है। अब ऐसा वायुमण्डल बनाओ जो एक दो को देखकर सभी जैसे रेस करते हैं ना, रीस नहीं रेस करते हैं तो कोशिश करते हैं नम्बर आगे जायें। लेकिन आप खुद तो आगे जाओ लेकिन साथियों को भी ऐसी लिफ्ट दो जो वह भी आगे जायें। ठीक है ना? ऐसी हिम्मत है ना? हर एक सेन्टर का वायुमण्डल ऐसा हो जैसे मधुबन का वायुमण्डल। मधुबन वाले सम्पूर्ण नहीं बन गये हैं लेकिन जो भी आते हैं वह मधुबन के वायुमण्डल से खुश हो जाते हैं, ऐसा सेन्टर का वायुमण्डल हो। जो गाया हुआ है ना, घर घर स्वर्ग बनेगा। तो सब सेन्टर इन्डिया वालों के लिए भी है, तो सब सेन्टर ऐसे हों जो स्वर्ग का नक्शा हो। तब तो कहेंगे घर-घर स्वर्ग बन गया। अच्छा है, फारेनर्स की यह भी विशेषता है अगर दृढ़ संकल्प किया किसी भी बात का, तो वह करके दिखाते हैं। अभी इस संस्कार को इस कार्य में लगाओ, करके ही छोड़ना है। ठीक है। करना है ना? तो अगली सीजन में यह रिजल्ट पूछेंगे। हर एक सेन्टर स्वर्ग का नक्शा हो। अच्छा। मुबारक हो।

स्प्रीचुअल्टी इन रिसर्चेज डायलाग करने के लिए प्लैनिंग ग्रुप:- (रमेश भाई ने बापदादा को सुनाया कि हर वर्ग में जो कोई न कोई विशेष किसी विषय पर रिसर्च कर रहे हैं, उन मुख्य लोगों का एक डायलाग करने काविचार है, उसकी मीटिंग चल रही है) अच्छा कोई प्रोग्राम बनाया। अच्छा - हर एक विंग अपनी सेवा करके उसमें से निकालेंगे, फिर उसका डायलाग रखेंगे, तो हर एक विंग का बापदादा भी देखेंगे, किस विंग ने क्या निकाला,कौन सी, कौन सी आत्मायें रूचि वाली निकाली, अच्छा है फिर सब मिलकर डायलाग करेंगे, बहुत अच्छा। (सभी विंग्स और सभी जोन के कनेक्शन से सबके सहयोग से यहाँ डायलाग का कार्यक्रम होगा) पहले हर एक विंग अपने अपने जोन में करेंगे, फिर उसमें जो निकले उन्हें यहाँ इकट्ठे करो, फिर यहाँ डायलाग करो। ठीक है ना। साथ-साथ समाचार देते रहे, सहयोग देते रहें। करो हर एक वर्ग, देखें किसमें कितने निकलते हैं। बहुत अच्छा।

दिल्ली का प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा:- जो दिल्ली से आये हैं वह उठो। अच्छा इतने आये हैं, भले आये। दिल्ली का मेला तो अच्छा हुआ, आवाज फैला। आवाज फैला ना! क्योंकि टी.वी. द्वारा भी सन्देश मिला। यह तो अच्छा हुआ क्योंकि 10 दिन करने से लोगों को सन्देश मिल गया। एक दिन में तो जितने आते हैं उतने ही सुनते हैं सन्देश। लेकिन 10 दिन में वैरायटी आई होगी और अपना अपना सन्देश लिया होगा। तो अच्छा लगा। आप सबको अच्छा लगा? मेला करना अच्छा लगा? (बहुत अच्छा लगा, बाबा को स्पेशल थैंक्स दिल्ली वालों की तरफ से) बापदादा ने देखा कि चारों ओर और जोन वालों में भी उमंग है कि ऐसा हम भी करें, तो दिल्ली निमित्त बन गई, औरों को भी प्रेरणा देने के लिए। अच्छा हुआ बहुत समय के बाद मेला शुरू किया है। पहले तो मेला ही था ना। चारों ओर मेले होते थे, अभी बड़े प्रोग्राम हो गये हैं, तो मेला भी वैरायटी अच्छा है। तो मुबारक हो सभी दिल्ली वालों को। और दिल्ली वालों ने ही किया इसकी भी मुबारक। (इन्टरनेशनल था, आबू का भी था) फारेन वालों को भी मुबारक, आबू वालों को भी मुबारक है। अच्छा रहा, बापदादा को समाचार मिला। एक दो को देख करके आगे बढ़ते चलो। बापदादा यही देखने चाहते हैं कि इतनी करोड़ आत्माओं को कम से कम यह सन्देश तो मिले। अभी काफी रहे हुए हैं, जैसे अफ़्रीका ने किया, बापदादा ने सुना कि यूरोप में भी कोई देश नहीं रहा है ना। यूरोप और अफ्रीका दोनों तरफ कोई विशेष देश नहीं रहे हैं, ऐसे सब तरफ होना चाहिए। सन्देश तो पहुंचे ना। नहीं तो उलाहना बहुत मिलेंगे आपको। सब उल्हना देंगे हमारा बाप आया और आपने हमको सुनाया भी नहीं। उल्हना नहीं रह जाए। अच्छा।

हैदराबाद, सिकन्द्राबाद से ओल्डएज होम का ग्रुप आया है:- (फरिश्ता भवन, ओमनिवास बूढ़ा घर बनाया है। उसमें अनेक वी.आई.पीज देखने के लिए आते हैं, सभी मिलकर बहुत अच्छा पुरूषार्थ करते हैं) भिन्न भिन्न सेवाओं से आगे बढ़ रहे हैं, बढ़ते रहो। अच्छा।

सब तरफ के डबल सेवाधारी बच्चों को, चारों ओर के सदा एकाग्र स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बापदादा के मस्तक मणियां, चारों ओर के समय के महत्व को जान तीव्र पुरूषार्थ का सबूत देने वाले सपूत बच्चों को, चारों ओर के उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ते, उड़ाने वाले डबल लाइट फरिश्ते बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- सभी साथ देते चल रहे हैं - यह बापदादा को खुशी है, हर एक अपनी विशेषता की अंगुली दे रहे हैं। (दादी जी से) सभी को आदि रत्न देख करके खुशी होती है ना। आदि से लेके सेवा में अपनी हड्डियाँ लगाई है। हड्डि सेवा की है। बहुत अच्छा है। देखो कुछ भी होता है लेकिन एक बात देखो, चाहे बेड पर हैं, चाहे कहाँ भी हैं लेकिन बाप को नहीं भूले हैं। बाप दिल में समाया हुआ है। ऐसे है ना। देखो कितना अच्छा मुस्करा रही है। बाकी आयु बड़ी है, और धर्मराजपुरी से टाटा करके जाना है, सजा नहीं खानी है, धर्मराज को भी सिर झुकाना पड़ेगा। स्वागत करनी पड़ेगी ना। टाटा करना पड़ेगा, इसीलिए यहाँ थोड़ा बहुत बाप की याद में हिसाब पूरा कर रहे हैं। बाकी कष्ट नहीं है, बीमारी भले है लेकिन दु:ख की मात्रा नहीं है।

(परदादी से) यह बहुत मुस्करा रही है। सबको दृष्टि दो। अच्छा। (दादी ने बाबा को भाकी पहनी) बहुत अच्छा। (मुन्नी बहन ने कहा बाबा हमने एक बार मिस किया) मिस नहीं किया, बापदादा ने तो देखा। योगिनी बहन से:- सेवा अच्छी लगी ना, महारथी से महारथी उनकी सेवा में मजा है। रौनक लगी ना। चाहे हॉस्पिटल हो, चाहे क्या भी हो लेकिन रौनक लग गई ना। (मेहमान-निवाजी अच्छी की) मेहमान-निवाजी नहीं की, अपना पुण्य जमा किया। जिन्होंने भी सेवा की, उन्होंने अपना पुण्य का खाता जमा किया। (आपकी गाइडेन्स में सब अच्छा हुआ) सबकी सेवा की दृढ़ता ने काम किया। अशोक मेहता को बहुत-बहुत याद। जो भी डाक्टर्स निमित्त बने, जिन्होंने भी सेवा की है, दिल से और प्यार से की है। (बापदादा आपको बहुत-बहुत थैंक्स) बापदादा को तो मुबारक दी, लेकिन बापदादा बच्चों को मुबारक देते हैं। (मुन्नी बहन ने बहुत धैर्य रखा) धैर्य तो रखना ही पड़ेगा। बहुतकाल किया है। देखो फिर भी इन्होंने (दादियों ने) मिलके जो यहाँ थे सबने मिलकर किया ना।

(निरवैर भाई ने कहा - दादी जी और भी ठीक हो जायेगी थोड़ा टाइम लगेगा) हो जायेगी कोई बात नहीं, टाइम तो लगता ही है क्योंकि बहुतकाल का बहुत समय देना पड़ता है। सब दादियों को देखकर कितनी खुशी है। (बम्बई के सभी सेवाधारी भाई बहिनों ने, विशेष टीचर्स बहनों ने भी बहुत-बहुत याद दी है) उन सभी को सेवा की दुआयें और यादप्यार। (बृजमोहन भाई को) अच्छा किया, मेले की मुबारक हो।