15-12-06   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘स्मृति स्वरूप, अनुभवी मूर्त बन सेकण्ड की तीव्रगति से परिवर्तन कर पास विद ऑनर बनो’’

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों में तीन विशेष भाग्य की रेखायें मस्तक में चमकती हुई देख रहे हैं। सभी के मस्तक भाग्य की रेखाओं से चमक रहे हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की रेखा। दूसरी है श्रेष्ठ शिक्षक द्वारा शिक्षा के भाग्य की रेखा। तीसरी है सतगुरू द्वारा श्रीमत के भाग्य की रेखा। वैसो भाग्य आपका अथाह है फिर भी आज यह विशेष तीन रेखायें देख रहे हैं। आप भी अपने मस्तक में चमकती हुई रेखायें अनुभव कर रहे हो ना! सबसे श्रेष्ठ है परमात्म प्यार के पालना की रेखा। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो परमात्म पालना भी ऊंचे ते ऊंची है। यह पालना कितने थोड़ों को प्राप्त होती है, लेकिन आप सब इस पालना के पात्र बने हो। यह पालना सारे कल्प में आप बच्चों को एक ही बार प्राप्त होती है। अब नहीं तो कब प्राप्त नहीं हो सकती। यह परमात्म पालना, परमात्म प्यार, परमात्म प्राप्तियां कोटों में कोई आत्माओं को ही अनुभव होती हैं। आप सभी तो अनुभवी हो ना! अनुभव है? पालना का भी अनुभव है, पढ़ाई का भी और श्रीमत का भी। अनुभवी मूर्त हो। तो सदा अपने मस्तक में यह भाग्य का सितारा चमकता हुआ दिखाई देता है, सदा? कि कभी चमकता हुआ सितारा डल भी हो जाता है क्या! ढीला नहीं होना चाहिए। अगर चमकता हुआ सितारा ढीला होता है, उसका कारण क्या है? जानते हो?

बापदादा ने देखा है कि कारण यह होता है, स्मृति स्वरूप नहीं बने हो। सोचते हो मैं आत्मा हूँ, लेकिन सोचता स्वरूप बनते हो, स्मृति स्वरूप कम बनते हो। जब तक स्मृति स्वरूप सदा नहीं बनते तो स्मृति ही समर्थी दिलाती है। स्मृति स्वरूप ही समर्थ स्वरूप है। इसलिए भाग्य का सितारा कम चमकता है। अपने आपसे पूछो कि ज्यादा समय सोच स्वरूप बनते हो वा स्मृति स्वरूप बनते हो? सोच स्वरूप बनने से सोचते बहुत अच्छा हो, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ.... लेकिन स्मृति न होने के कारण सोचते, व्यर्थ संकल्प साधारण संकल्प भी मिक्स हो जाते हैं। वास्तव में देखा जाए तो आपका अनादि स्वरूप स्मृति सो समर्थ स्वरूप है। सोचने वाला नहीं, स्वरूप है। और आदि में भी इस समय के स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त होती है। तो अनादि और आदि स्मृति स्वरूप है और इस समय अन्त में संगम समय पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो। तो आदि अनादि और अन्त तीनों कालों में स्मृति स्वरूप हो। सोचना स्वरूप नहीं हो। इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा कि वर्तमान समय अनुभवी मूर्त बनना श्रेष्ठ स्टेज है। सोचते हो आत्मा हूँ, परमात्म प्राप्ति है, लेकिन समझना और अनुभव करना इसमें बहुत अन्तर है। अनुभवी मूर्त कभी भी न माया से धोखा खा सकता, न दु:ख की अनुभूति कर सकता। यह जो बीच-बीच में माया के खेल देखते हो, या खेल खेलते भी हो, उसका कारण है अनुभवी मूर्त की कमी है। अनुभव की अथॉरिटी सबसे श्रेष्ठ है। तो बापदादा ने देखा कि कई बच्चे सोचते हैं लेकिन स्वरूप की अनुभूति कम है। आज की दुनिया में मैजॉरिटी आत्मायें देखने और सुनने से थक गये हैं लेकिन अनुभव द्वारा प्राप्ति करने चाहते हैं। तो अनुभव कराना, अनुभवी ही करा सकता है। और अनुभवी आत्मा सदा आगे बढ़ती रहेगी, उड़ती रहेगी क्योंकि अनुभवी आत्मा में उमंग-उत्साह सदा इमर्ज रूप में रहता है। तो चेक करो हर प्वाइंट के अनुभवी मूर्त बने हैं? अनुभव की अथॉरिटी आपके हर कर्म में दिखाई देती है? हर बोल, हर संकल्प अनुभव की अथॉरिटी से है या सिर्फ समझने के आधार पर है? एक है समझना, दूसरा है अनुभव करना। हर सबजेक्ट में, ज्ञान की प्वाइंट्स वर्णन करना, वह तो बाहर के स्पीकर भी बहुत स्पीच कर लेते हैं। लेकिन हर प्वाइंट का अनुभवी स्वरूप बनना, यह है ज्ञानी तू आत्मा। योग लगाने वाले बहुत हैं, योग में बैठने वाले बहुत हैं, लेकिन योग का अनुभव अर्थात् शक्ति स्वरूप बनना और शक्ति स्वरूप की परख यह है कि जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है, उस समय उस शक्ति को आह्वान कर निर्विघ्न स्वरूप बन जाए। अगर एक भी शक्ति की कमी है, वर्णन है लेकिन स्वरूप नहीं है तो भी समय पर धोखा खा सकते हैं। चाहिए सहनशक्ति और आप यूज करो सामना करने की शक्ति, तो योगयुक्त अनुभवी स्वरूप नहीं कहेंगे। चार ही सबजेक्ट में स्मृति स्वरूप वा अनुभवी स्वरूप की निशानी क्या होगी? स्थिति में निमित्त भाव, वृत्ति में सदा शुभ भाव, आत्मिक भाव, नि:स्वार्थ भाव। वायुमण्डल में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा निर्माण भाव, वाणी में सदा निर्मल वाणी। यह विशेषतायें अनुभवी मूर्त की हर समय नेचुरल नेचर होगी। नेचुरल नेचर। अभी कई बच्चे कभी-कभी कहते हैं कि हम चाहते नहीं हैं यह करें लेकिन मेरी पुरानी नेचर है। नेचर नेचुरल काम वही करती है, सोचना नहीं पड़ता, लेकिन नेचर नेचुरल काम करती है। तो अपने को चेक करो- मेरी नेचुरल नेचर क्या है? अगर कोई भी पुरानी नेचर अंश मात्र भी है, तो हर समय वह कार्य में आते-आते पक्का संस्कार बन जाता है। उसको समाप्त करने के लिए पुरानी नेचर, पुराना स्वभाव, पुराना संस्कार को समाप्त करने के लिए चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते हो, उसका कारण क्या है? नॉलेजफुल तो सबमें बन गये हो, लेकिन जो चाहते हो होना नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है, कारण क्या है? परिवर्तन करने की शक्ति कम है। मैजॉरिटी में दिखाई देता है कि परिवर्तन की शक्ति, समझते हैं, वर्णन भी करते हैं, अगर सभी को परिवर्तन शक्ति की टॉपिक पर लिखने के लिए कहें या भाषण करने के लिए कहें तो बापदादा समझते हैं सभी बहुत होशियार हैं, बहुत अच्छा भाषण भी कर सकते हैं, लिख भी सकते हैं और दूसरा कोई आता है उसको समझाते भी बहुत अच्छा है - कोई हर्जा नहीं, परिवर्तन कर लो। लेकिन स्वयं में परिवर्तन करने की शक्ति और वर्तमान समय के महत्व को जानते हुए परिवर्तन करने में समय नहीं लगाना चाहिए। सेकण्ड में परिवर्तन की शक्ति, क्योंकि जब समझते हो - होना नहीं चाहिए, समझते हुए भी अगर परिवर्तन नहीं कर पाते हो, उसका कारण है - सोचते हो लेकिन स्वरूप नहीं बने हो।

सोचना स्वरूप ज्यादा सारे दिन में बनते हो, स्मृति सो समर्थ स्वरूप वह मैजॉरिटी कम है। अभी तीव्रगति का समय है, तीव्र पुरूषार्थ का समय है, साधारण पुरूषार्थ का समय नहीं है, सेकण्ड में परिवर्तन का अर्थ है - स्मृति स्वरूप द्वारा एक सेकण्ड में निर्विकल्प, व्यर्थ संकल्प निवृत्त हो जाए, क्यों? समय को समाप्ति को समीप लाने वाले निमित्त हो। तो अभी के समय के महत्व प्रमाण जब जानते भी हो कि हर कदम में पदम समाया हुआ है, तो बढ़ाने का तो बुद्धि में रखते हो लेकिन गवॉने का भी तो बुद्धि में रखो। अगर कदम में पदम बनता भी है तो कदम में पदम गंवाते भी तो हो, या नहीं? तो अभी मिनट की बात भी गई, दूसरों के लिए कहते हो वन मिनट साइलेन्स में रहो लेकिन आप लोगों के लिए सेकण्ड की बात होनी चाहिए। जैसे हाँ और ना सोचने में कितना टाइम लगता है? सेकण्ड। तो परिवर्तन शक्ति इतनी फास्ट चाहिए। समझा ठीक है, नहीं ठीक है, ना ठीक को बिन्दी और ठीक को प्रैक्टिकल में लाना है। अभी बिन्दी के महत्व को कार्य में लगाओ। तीन बिन्दियों को तो जानते हो ना! लेकिन बिन्दी को समय पर कार्य में लगाओ। जैसे साइंस वाले सब बात में तीव्रगति कर रहे हैं, और परिवर्तन की शक्ति भी ज्यादा कार्य में लगा रहे हैं। तो साइलेन्स की शक्ति वाले अभी लक्ष्य रखो अगर परिवर्तन करना है, नॉलेजफुल हो तो अभी पावरफुल बनो, सेकण्ड की गति से। कर रहे हैं, हो जायेंगे... कर लेंगे...., नहीं। हो सकता है या मुश्किल है? क्योंकि लास्ट समय सेकण्ड का पेपर आना है, मिनट का नहीं, तो सेकण्ड का अभ्यास बहुतकाल का होगा तब तो सेकण्ड में पास विद आनर बनेंगे ना! परमात्म स्टूडेन्ट हैं, परमात्म पढ़ाई पढ़ रहे हैं, तो पास विद ऑनर बनना ही है ना! पास मार्क्स लिया तो क्या हुआ। पास विद ऑनर। क्या लक्ष्य रखा है? जो समझते हैं पास विद ऑनर बनना है वह हाथ उठाओ, पास विद ऑनर, ऑनर शब्द अण्डरलाइन करना। अच्छा।

तो अभी क्या करना पड़ेगा? मिनट मोटर तो कामन है, सेकण्ड का काम है अभी। हाँ पंजाब वाले, सेकण्ड का मामला है अभी। इसमें नम्बरवन कौन होगा? पंजाब। क्या बड़ी बात है। जितना फलक से कहते हो, बहुत अच्छा कहते हो, फलक से कहते हो, बापदादा जब सुनते हैं बहुत खुश होते हैं, कहते हो - क्या बड़ी बात है, बापदादा साथ है। तो साथ तो अथॉरिटी है, तो क्या करना है अभी? तीव्र बनना पड़ेगा अभी। सेवा तो कर रहे हो, और सेवा के बिना और करेंगे भी क्या? खाली बैठेंगे क्या? सेवा तो ब्राह्मण आत्माओं का धर्म है, कर्म है। लेकिन अभी सेवा के साथ-साथ समर्थ स्वरूप, जितना सेवा का उमंग-उत्साह दिखाया है, बापदादा खुश है, मुबारक भी देते हैं। लेकिन जैसे सेवा का ताज मिला है ना, ताज पहना हुआ है देखो कितना अच्छा लग रहा है। अभी स्मृति स्वरूप बनने का ताज पहनके दिखाना। यूथ ग्रुप है ना! तो कमाल क्या करेंगे? सेवा में भी नम्बरवन और समर्थ स्वरूप में भी नम्बरवन। सन्देश देना भी ब्राह्मण जीवन का धर्म और कर्म है लेकिन अभी बापदादा इशारा दे रहा है कि परिवर्तन की मशीनरी तीव्र करो। नहीं तो पास विद आनर होने में मुश्किल हो जायेगा। बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। सोचा और किया। सिर्फ सोचना स्वरूप नहीं बनो, समर्थ स्मृति सो समर्थ स्वरूप बनो। व्यर्थ को तीव्र गति से समाप्त करो। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म, व्यर्थ समय और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी व्यर्थ विधि, रीति सब समाप्त करो। जब ब्राह्मण आत्मायें तीव्रगति से यह स्व के व्यर्थ की समाप्ति करेंगे तब आत्माओं की दुआयें और अपने पुण्य का खाता तीव्रगति से जमा करेंगे।

बापदादा ने पहले भी सुनाया कि बापदादा तीन खाते चेक करते हैं। पुरूषार्थ की गति का खाता, दुआओं का खाता, पुण्य का खाता लेकिन मैजॉरिटी के खाते अभी भरपूर कम हैं। इसलिए बापदादा आज यही स्लोगन याद दिला रहे हैं कि अब तीव्र बनो, तीव्र पुरूषार्थी बनो। तीव्र गति से समाप्ति वाले बनो। तीव्र गति से मन्सा द्वारा वायुमण्डल परिवर्तन वाले बनो। बापदादा एक बात में सभी बच्चों पर बहुत खुश भी है। किस बात में? प्यार सबका बाप से जिगरी है, इसकी मुबारक है। लेकिन बोलूं क्या करो! इस सीजन की समाप्ति तक, अभी तो टाइम पड़ा है, इस सीजन के समाप्त तक तीव्र गति का कुछ न कुछ जलवा दिखाओ। पसन्द है? पसन्द है? जो समझते हैं लक्ष्य और लक्षण दोनों ही स्मृति में रखेंगे वह हाथ उठाओ। लक्ष्य और लक्षण दोनों सामने रखेंगे वह हाथ उठाओ। डबल फारेनर्स भी रखेंगे, टीचर्स भी रखेंगे और यूथ भी रखेगा, और पहली लाइन वाले भी रखेंगे। तो पदम, पदम, पदमगुणा इनएडवांस मुबारक हो। अच्छा अभी क्या करना है?

सेवा का टर्न पंजाब का है:- आधा क्लास तो पंजाब है। बहुत अच्छा किया है। सेवा में एवररेडी बन पहुंच गये हो, इसकी मुबारक है। अच्छा, पंजाब वाले क्या कोई नया प्लैन बना रहे हैं? जो किसने नहीं किया हो, कोई ऐसा प्लैन टच होता है? होता है। सुबह को हो जायेगा। ऐसा करके दिखाओ, जो सब ब्राह्मण थैंक्स भी दें, मुबारक भी दें, वाह! वाह! के गीत भी गायें। अभी तक जो किया है, वह तो कर ही रहे हैं, अच्छा कर रहे हैं। बापदादा सेवा के समाचार सुनते रहते हैं और सुनकर दिल में दिल का प्यार भी देते हैं। अभी कुछ और नवीनता करके दिखाओ। पंजाब को शेर कहा जाता है ना। तो ऐसी कोई गजघोर करके दिखाओ जो सबकी नज़र बापदादा की तरफ सहज ही आ जाए। हो जायेगा। बापदादा को संकल्प है, पंजाब कोई नवीनता करेगा ही। अभी भी गोल्डन चांस मिला है, सेवा का गोल्डन चांस लिया और हर साल लेते भी रहते हैं और अच्छे हिम्मत उमंग से सभी मिल करके कर भी रहे हैं। संख्या तो बहुत अच्छी आई है। अच्छे-अच्छे महावीर हैं। देखो ब्रह्मा बाप का भी पंजाब से प्यार रहा तो पंजाब में पहुंच गये थे। तो ब्रह्मा बाप का भी विशेष प्यार देखा। सभी महारथियों का भी पंजाब में पांव पड़ा है। कोई ऐसी नवीनता करके दिखाओ। कर सकते हैं। पंजाब की पांच नदियां मशहूर हैं। बापदादा तो देख रहे हैं कि अच्छे ब्रह्मा बाप की पालना वाले भी हैं। तो पालना का रिटर्न तो देना पड़ेगा ना। अच्छा है बापदादा की बहुत बढ़िया उम्मींद है पंजाब में। करेंगे ना! कोई ऐसा कार्य करके दिखाओ जो सबकी नज़र बाप की तरफ पड़ जाए। है पाण्डवों में हिम्मत है? पाण्डव हिम्मत वाले हैं? अच्छा है, माताओं की संख्या भी काफी है, टीचर्स भी बहुत हैं। अच्छा - प्लैन बनाना आपस में। पाण्डव प्लैन बनाना। कमाल का प्लैन बनाना। अच्छा।

सारे भारत से युवा पद यात्री आये हैं:- अच्छा - बापदादा ने स्वागत समारोह भी देखा और जो युवा वर्ग वालों ने सेवा की, वह समाचार भी सुना। तो सेवा तो बहुत अच्छी की है और हिम्मत और उमंग से अथक बन सेवा की है, यह भी सर्टीफिकेट अच्छा दिखाया है। जहाँ उमंग-उत्साह होता है वहाँ सफलता होती ही है। तो देखा गया कि विशेष सब यात्राओं में उमंग-उल्हास अच्छा रहा। उमंग-उत्साह के कारण निरोगी भी रहे, निर्विघ्न भी रहे। अभी जैसे यात्रा के समय निर्विघ्न रहे, ऐसे इस ब्राह्मण जीवन में सदा निर्विघ्न, निर्विकल्प, निरव्यर्थ संकल्प, अगर सभी कुमार एक मास भी यह बहुत अच्छा चार्ट दिखायें, तो बापदादा और सुनहरी पुष्पों की वर्षा करेंगे। बिल्कुल स्वप्न मात्र भी निर्विघ्न। बोल और कर्म तो बड़ी चीज़ है लेकिन स्वप्न मात्र भी निर्विघ्न हो। स्व को देखो, समय को देखो, दूसरे की कमी को देखो ही नहीं, अगर देखते भी हो तो अपने मन में नहीं रखो। अगर किसी की कमज़ोरी मन में रखेंगे, तो बाप कैसे याद आयेगा! कमज़ोरी के साथ बाप नहीं ठहरता। एक सेकण्ड की तीव्रगति का, सभी यूथ जैसे उमंग उत्साह से यात्रा में सफल हुए, वैसे इस विषय पर सफल होके दिखाओ, फिर सेरीमनी बापदादा मनायेगा। करेंगे! ऐसी हिम्मत है? पक्का? क्योंकि यहाँ से जाने के बाद, माया सुन रही है। माया को पता है कि यह प्रामिस कर रहे हैं। अगर कोई भी कमी देखी तो विधिपूर्वक अपने जो निमित्त बड़े हैं उन्हों को सुना दिया लेकिन पीठ नहीं करो, उसको सजा मिली, नहीं मिली, क्या कदम उठाया गया, क्यों नहीं उठाया गया! इस व्यर्थ में नहीं जाओ। हिसाब-किताब बापदादा देख रहे हैं, देखते रहते हैं। तो निर्विघ्न भव का वरदान जीवन में लायेंगे? लायेंगे? टी.वी. में इनका फोटो निकालो। देखो, सभी सेवाकेन्द्र से, मैजॉरिटी सब जोन से हैं। अगर आप जो भी हैं, बहनें भी हैं, भाई भी हैं, अगर आप स्वयं हर जोन में करके दिखायेंगे तो आपकी वृत्ति का वायुमण्डल फैलेगा। यह नहीं सोचना वायुमण्डल फैला या नहीं फैला, यह नहीं सोचना। अवश्य फैलेगा। तो यूथ ऐसी कमाल करके दिखायें तो गवर्मेन्ट को रिजल्ट दिखायेंगे। स्वप्न मात्र भी पास विद ऑनर हो। बाकी जो सेवा की, वह अच्छी की है, सबको पसन्द भी आई, आपकी सेवा बाप को भी पसन्द है लेकिन आगे के लिए कोई कमाल करके दिखाओ। संख्या भी अच्छी है। देखो यह अनुभव करके देखा कि सेवा के उमंग-उत्साह में रहे तो चार्ट ठीक रहा ना। कोई खिटखिट नहीं हुई ना, न शरीर की, न विघ्न की, मैजॉरिटी। तो ऐसे ही उमंग-उत्साह से कोई भी संकल्प करेंगे तो विजय है ही है। तो याद रखना - यूथ का स्लोगन है - करना ही है। बुरा नहीं करना, अच्छा करना। विजयी बनना ही है। सफलता का सितारा बनना ही है। ठीक है। अच्छा।

डबल विदेशी:- बहुत अच्छा सितारा हिला रहे हैं। बापदादा कहते हैं डबल विदेशी मधुबन का विशेष श्रृंगार हैं। डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। अभी देखेंगे तीव्र गति के पुरूषार्थ में नम्बरवन कौन सा जोन जाता है। मधुबन जायेगा, मधुबन वाले बैठे हैं ना। मधुबन वाले उठो। अच्छा। मधुबन वाले तो बहुत हैं। तो क्या करेगा मधुबन। तीव्र पुरूषार्थ में नम्बरवन। है! हिम्मत है? हिम्मत है? हिम्मत वाले हाथ उठाओ। अभी मधुबन की कोई भी, ऐसी कोई भी बात बापदादा के पास नहीं आयेगी, यह हुआ, यह हुआ नहीं आयेगा। अच्छा हुआ, अच्छा हुआ, अच्छा हुआ... ठीक है। पक्का? पक्का? देखो। हाथ उठाया है या मन का हाथ उठाया है? मन का हाथ उठाया है ना? थोड़ों ने अभी हाथ उठाया। मन का हाथ उठा रहे हो ना। अभी बापदादा हर मास की रिजल्ट पूछेंगे। पूछें? पूछें? बहुत अच्छा। मधुबन वालों का स्वमान, सारे विदेश में, इन्डिया में हैं। मधुबन वासियों को बहुत ऊंची नज़र से देखते हैं। अति स्नेह की नज़र से देखते हैं। तो ऐसा ही रिजल्ट सुनते रहेंगे अभी। मन में तो सभी जानते हैं क्या करना है, क्या नहीं करना है, बापदादा क्या चाहते हैं, समझते तो सभी हैं, अभी सिर्फ करना है। नॉलेजफुल हो लेकिन अभी पावरफुल बनना। अच्छा | डबल विदेशी बापदादा को बहुत प्यारे लगते हैं, प्यारे तो सभी हैं लेकिन इसीलिए प्यार करते कि सच्ची दिल वाले हैं। महसूस जल्दी करते हैं लेकिन परिवर्तन की शक्ति अभी और एड करनी है। एड करेंगे ना। परिवर्तन की शक्ति एडीशन करो। बाकी महसूस करते हो, जानते हो, इसीलिए बाबा का प्यार है कि सच्चे हैं लेकिन परिवर्तन करने की थोड़ी और एडीशन करो। ठीक है सभी खुश हैं? खुशी में नाचते रहते, और बाप के गुणों के गीत गाते रहते। बहुत अच्छा।

अच्छा। जो पहली बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। खड़े हो जाओ। अच्छा - बहुत आये हैं। पहले बारी वाले बहुत हैं। बापदादा पहले बारी आने वालों को यही कहते हैं कि जैसे पहले बारी आये हो वैसे हर सबजेक्ट में पहला नम्बर आना। आने में देखो उमंग उत्साह से आये हो ना। प्यार के विमान में चढ़के पहुंच गये हो। अभी उमंग और उत्साह के पंखों से सब सबजेक्ट में नम्बरवन आना है, यह दृढ़ संकल्प रखो। अच्छा है मुबारक हो। अच्छा।

अभी-अभी अभ्यास करो - एक सेकण्ड में निर्विकल्प, निरव्यर्थ संकल्प बन एकाग्र, एक बाप दूसरा न कोई, इस एक ही संकल्प में एकाग्र होकर बैठ सकते हो! और कोई संकल्प नहीं हो। एक ही संकल्प की एकाग्रता शक्ति के अनुभव में बैठ जाओ। टाइम नहीं लगाना, एक सेकण्ड में। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों के जिन्होंने भी विशेष याद प्यार भेजा है, वह हर एक बच्चा अपने नाम से यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार करना। बापदादा देख रहे हैं कि सभी के दिल में आता है हमारी भी याद, हमारी भी याद, लेकिन आप बच्चे संकल्प करते हो और बापदादा के पास उसी समय ही पहुंच जाता है। इसलिए सभी बच्चों को हर एक को नाम और विशेषता सम्पन्न यादप्यार दे रहे हैं। तो सभी सदा स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप, अनुभव स्वरूप श्रेष्ठ बच्चों को, सदा जो सोचा शुभ, वह तुरत किया, जैसे तुरत दान का महत्व है वैसे तुरत परिवर्तन का भी महत्व है। तो तुरत परिवर्तन करनेवाले विश्व परिवर्तक बच्चों को, सदा परमात्म पालना, परमात्म प्यार, परमात्म पढ़ाई और परमात्म श्रीमत को हर कर्म में लाने वाले महावीर बच्चों को, सदा हिम्मत और एकाग्रता, एकता द्वारा नम्बरवन तीव्र पुरूषार्थ करने वाले बच्चों को बापदादा का दिल का यादप्यार और दिल की दुआयें और नमस्ते।

दादी जी से:- विजय प्राप्त करके दिखा रही है। दादियों से:- सभी अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। बाप दादा हर एक के पार्ट को देख खुश होते हैं। छोटे छोटे भी अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे नहीं समझना हम तो छोटे हैं। छोटे सुभान अल्लाह हैं। शक्तियों का अपना पार्ट है, पाण्डवों का अपना पार्ट है। पाण्डव नहीं हों तो भी काम नहीं चले, शक्तियां नहीं हो तो भी काम नहीं चले, इसीलिए भारत में चतुर्भुज का यादगार है। और कोई भी धर्म में चतुर्भुज नहीं दिखाते लेकिन भारत के यादगार में चतुर्भुज का महत्व है। तो दोनों अच्छा पार्ट बजा रहे हैं लेकिन अभी जल्दी करना है, बस। कभी-कभी थोड़ा ढीला पड़ जाते हैं। अभी ढीले पड़ने का समय नहीं है। बातें तो भिन्न-भिन्न होती ही हैं लेकिन हमें बातों का राज़ समझ राज़युक्त, योगयुक्त, स्नेहयुक्त, सहयोग युक्त बन चलना है। अच्छा है ना। (दादी जी से) बहुत अच्छा लगता है ना? देखो कितने आये हैं। क्यों आये हैं? यह सभी क्यों आये हैं! आप से मिलने आये हैं। बापदादा से तो मिलने आये हैं लेकिन साथ में दादियां नहीं हों तो कहते हैं ना मजा नहीं आता। और आप सभी नहीं हो तो भी मजा नहीं होता।

(शान्तामणी दादी बीमार है, अहमदाबाद हॉस्पिटल में है, परदादी भी अहमदाबाद में हैं): ठीक है, हिसाब चुक्तू करने का कुछ समय है।