31-12-07   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


नये वर्ष में अखण्ड महादानी, अखण्ड निर्विघ्न, अखण्ड योगी और सदा सफलतामूर्त बनना’’

आज बापदादा अपने सामने डबल सभा को देख रहे हैं। एक तो साकार में सम्मुख बैठे हैं और दूसरे दूर बैठे भी दिल के समीप दिखाई दे रहे हैं। दोनों सभाओं की श्रेष्ठ आत्माओं के मस्तक में आत्म दीप चमक रहा है। कितना सुन्दर चमकता हुआ नजारा है। इतने सब एक संकल्प, एकरस स्थिति में स्थित परमात्म प्यार में लवलीन एकाग्र बुद्धि से स्नेह में समाये हुए कितने प्यारे लग रहे हैं। आप सभी भी आज विशेष नया वर्ष मनाने के लिए पहुंच गये हो। बापदादा भी सभी बच्चों का उमंग-उत्साह देख चमकते हुए आत्म दीप को देख हर्षित हो रहे हैं।

आज का दिन संगम का दिन है। एक वर्ष की पुराने की विदाई है और नये वर्ष की बधाई होने वाली है। नया वर्ष अर्थात् नया उमंग और उत्साह, स्व परिवर्तन का उमंग है, सर्व प्राप्तियों को स्वयं में प्राप्त देख दिल में उत्साह है। दुनिया वाले भी यह उत्सव मनाते हैं, उन्हों के लिए एक दिन का उत्सव है और आप लकी लवली बच्चों के लिए संगमयुग का हर दिन उत्सव है क्योंकि खुशी का उत्साह है। दुनिया वाले तो बुझे हुए दीपक को जलाके वर्ष मनाते हैं और बापदादा और आप इतने सारे चारों ओर के जगे हुए दीपकों के साथ नया वर्ष का उत्सव मनाने आये हैं। यह तो रीति रसम मनाने की निमित्त मात्र करते हो लेकिन आप सभी जगे हुए दीपक हो। अपना चमकता हुआ दीप दिखाई देता है ना! जो अविनाशी दीप है।

तो नये वर्ष में हर एक ने दिल में स्व प्रति, विश्व की आत्माओं प्रति कोई नया प्लैन बनाया है? 12 बजे के बाद नया वर्ष शुरू हो जायेगा तो इस वर्ष को विशेष किस रूप में मनायेंगे? जैसे पुराना वर्ष विदाई लेगा तो आप सबने भी पुराने संकल्प, पुराने संस्कार उन्हों को विदाई देने का संकल्प किया? वर्ष के साथ-साथ आप भी पुराने को विदाई दे नये उमंग-उत्साह के संकल्पों को प्रैक्टिकल में लायेंगे ना! तो सोचो अपने में क्या नवीनता लायेंगे? कौन से नये उमंग-उत्साह की लहर फैलायेंगे? कौन से विशेष संकल्प का वायब्रेशन फैलायेंगे? सोचा है? क्योंकि आप सभी ब्राह्मण सारे विश्व की आत्माओं के लिए परिवर्तन निमित्त आत्मायें हो। विश्व के फाउण्डेशन हो, पूर्वज हो, पूज्य हो। तो इस वर्ष अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा क्या वायब्रेशन फैलायेंगे? जैसे प्रकृति चारों ओर कभी गर्मी का, कभी सर्दी का, कभी बहार का वायब्रेशन फैलाती है। तो आप प्रकृति के मालिक प्रकृतिजीत कौन सा वायब्रेशन फैलायेंगे? जिससे आत्माओं को थोड़े समय के लिए भी सुख-चैन का अनुभव हो। इसके लिए बापदादा यही इशारा दे रहे हैं कि जो भी खज़ाने प्राप्त हुए हैं उन खज़ानों को सफल करो और सफलता स्वरूप बनो। विशेष समय का खज़ाना कभी भी व्यर्थ न जाये। एक सेकण्ड भी व्यर्थ को कार्य में लगाओ। समय को सफल करो, हर श्वांस को सफल करो, हर संकल्प को सफल करो, हर शक्ति को सफल करो, हर गुण को सफल करो। सफलतामूर्त बनने का यह विशेष वर्ष मनाओ क्योंकि सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। उस अधिकार को अपने कार्य में लगाए सफलतामूर्त बनो क्योंकि अब की सफलता आपके अनेक जन्म साथ रहने वाली है। आपके समय सफलता का प्रालब्ध पूरा आधाकल्प सफलता का फल प्राप्त होगा। अब के समय की सफलता का प्रालब्ध पूरा समय ही प्राप्त होगा। श्वांस को सफल करने से भविष्य में भी देखो आपके श्वांस सफलता का परिणाम भविष्य में सभी आत्मायें पूरा समय स्वस्थ रहती हैं। बीमारी का नाम नहीं। डाक्टर्स की डिपार्टमेंट ही नहीं क्योंकि डाक्टर्स क्या बन जायेंगे? राजा बन जायेंगे ना! विश्व के मालिक बन जायेंगे। लेकिन इस समय आप श्वांस सफल करते हो और सर्व आत्माओं को स्वस्थ रहने का प्रालब्ध प्राप्त होता है। ऐसे ही ज्ञान का खज़ाना, उसका फल स्वरूप स्वर्ग में आपके अपने राज्य में इतने समझदार, शक्तिवान बन जाते जो वहाँ कोई वजीर से राय लेने की आवश्यकता नहीं, स्वयं ही समझदार शक्तिवान होते हैं। शक्तियों को सफल करते हो, उसकी प्रालब्ध वहाँ सब शक्तियां विशेष धर्म सत्ता, राज्य सत्ता दोनों ही विशेष शक्तियां, सत्तायें वहाँ प्राप्त होंगी। गुणों का खज़ाना सफल करते हो तो उसकी प्रालब्ध देवता पद का अर्थ ही है दिव्यगुणधारी और साथ-साथ अभी लास्ट जन्म में आपकी जड़ मूर्ति का पूजन करते हैं तो क्या महिमा करते हैं? सर्वगुण सम्पन्न। तो इस समय की सफलता का प्रालब्ध स्वत: ही प्राप्त हो जाती। इसलिए चेक करो खज़ाने मिले, खज़ानों से सम्पन्न हुए हैं लेकिन स्व प्रति वा विश्व प्रति कितना सफल किया? पुराने वर्ष को विदाई देंगे तो पुराने वर्ष में क्या जमा खज़ाना सफल किया, कितना किया? यह चेक करना और आने वाले वर्ष में भी इन खज़ानों को व्यर्थ के बजाए सफल करना ही है। एक सेकण्ड भी और कोई खज़ाना भी व्यर्थ न जाये। पहले बताया है कि संगम समय का सेकण्ड, सेकण्ड नहीं है वर्ष के बराबर है। ऐसे नहीं समझना एक सेकण्ड, एक मिनट ही तो गया, व्यर्थ जाना इसको ही अलबेलापन कहा जाता है। आप सबका लक्ष्य है कि बाप ब्रह्मा समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनना है। तो ब्रह्मा बाप ने सर्व खज़ाने आदि से अन्तिम दिन तक सफल किया, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखा। सम्पूर्ण फरिश्ता बन गया। अपनी प्यारी दादी को भी देखा सफल किया और औरों को भी सफल करने का सदा उमंग उत्साह बढ़ाया। तो ड्रामानुसार विशेष विश्व सेवा के अलौकिक पार्ट के निमित्त बनी।

तो इस वर्ष, कल से हर दिन अपना चार्ट रखना - सफल और व्यर्थ... क्या हुआ कितना हुआ? अमृतवेले ही दृढ़ संकल्प करना, स्मृति स्वरूप बनना कि सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। सफलता मेरे गले का हार है। सफलता स्वरूप ही समान बनना है। ब्रह्मा बाप से प्यार है ना। तो ब्रह्मा बाप का सबसे ज्यादा प्यार किससे था? जानते हो? किससे प्यार था? मुरली से। लास्ट दिन भी मुरली का पाठ मिस नहीं किया। समान बनने में यह चेक करना - ब्रह्मा बाप का जिससे प्यार रहा, ब्रह्मा बाप के प्यार का सबूत है - जिससे बाप का प्यार था उससे मेरा प्यार स्वत: ही सहज होना चाहिए। ब्रह्मा बाप की और विशेषता क्या रही? सदा अलर्ट, अलबेलापन नहीं। लास्ट दिन भी कितना अलर्ट रूप में अपने सेवा का पार्ट बजाया। शरीर कमज़ोर होते भी कैसे अलर्ट होके, आधार लेके नहीं बैठे और अलर्ट करके गये। तीन बातों का मन्त्र देके गये। याद है ना सबको। तो जितना अलर्ट रहेंगे, फॉलो करेंगे, अलबेलापन खत्म होगा। अलबेलेपन के विशेष बोल बापदादा बहुत सुनते रहते हैं। जानते हो ना! अगर इन तीन शब्दों को (निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी) सदा अपने मन में रिवाइज और रियलाइज करते चलो तो आटोमेटिकली सहज और स्वत: समान बन ही जायेंगे। तो एक बात सफल करो सफलतामूर्त बनो।

दूसरी बात - बापदादा ने बच्चों की वर्ष की रिजल्ट देखी। क्या देखा? महादानी बने हो, लेकिन अखण्ड महादानी, अखण्ड अण्डरलाइन, अखण्ड महादानी, अखण्ड योगी, अखण्ड निर्विघ्न अभी इसकी आवश्यकता है। क्या अखण्ड हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन वाले अखण्ड हो सकता है? हाथ उठाओ अगर हो सकता है तो। जो कर सकता है, कर सकते हो? मधुबन वाले भी उठा रहे हैं। बापदादा मधुबन वालों को पहले देखता है। मधुबन से प्यार है। शान्तिवन या पाण्डव भवन या जो भी दादी की भुजायें हैं, सबको ध्यान से देखते हैं। अगर अखण्ड हो गया, मन्सा से शक्ति फैलाने की सेवा में बिजी रहो, वाचा से ज्ञान की सेवा और कर्म से गुणदान वा गुण का सहयोग देने की सेवा।

आजकल चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं सभी को गुण का दान, गुणों का सहयोग देना आवश्यक है। अगर स्वयं सहज सिम्पुल रूप में सैम्पुल बनके रहे तो आटोमेटिक दूसरे को आपके गुणमूर्त का सहयोग स्वत: ही मिलेगा। आजकल ब्राह्मण आत्मायें भी सैम्पुल देखने चाहती हैं, सुनने नहीं चाहती हैं। आपस में भी क्या कहते हो? कौन बना है? तो प्रत्यक्ष रूप में गुणमूर्त देखने चाहते हैं। तो कर्म से विशेष गुणों का सहयोग, गुणों का दान देने की आवश्यकता है। सुनने कोई नहीं चाहता, देखने चाहता है। तो अभी यह विशेष ध्यान में रखना कि मुझे ज्ञान से, वाचा से तो सेवा करते ही रहते हो और करते ही रहना है, छोड़ना नहीं है लेकिन अभी मन्सा और कर्म, मन्सा द्वारा वायब्रेशन फैलाओ। सकाश फैलाओ। वायब्रेशन वा सकाश दूर बैठे भी पहुंचा सकते हो। शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा किसी भी आत्मा को मन्सा सेवा द्वारा वायब्रेशन वा सकाश दे सकते हो।

तो अभी इस वर्ष एक मन्सा शक्तियों का वायब्रेशन, शक्तियों द्वारा सकाश और कर्म द्वारा गुण का सहयोग वा अज्ञानी आत्माओं को गुणदान, नये वर्ष में गिफ्ट भी देते हो ना। तो इस वर्ष स्वयं गुणमूर्त बन गुणों की गिफ्ट देना। गुणों की टोली खिलाते हो ना। मिलते हो तो टोली खिलाते हो ना। टोली खिलाने में खुश हो जाते हैं ना। कोई आत्मायें, भागन्ती भी टोली को याद करते हैं। और भूल जाते हैं लेकिन टोली याद आती है। तो इस वर्ष कौन सी टोली खिलायेंगे? गुणों की टोली खिलाना। गुणों की पिकनिक करना क्योंकि बाप समान समय की समीपता प्रमाण और दादी के इशारे प्रमाण समय की सम्पन्नता अचानक कभी भी होना सम्भव है। इसलिए बाप समान बनना है वा दादी को प्यार का रिटर्न देना है तो जो आवश्यकता है - मन्सा और कर्म द्वारा सहयोगी बनने का, कोई कैसा भी है यह नहीं सोचो, यह बनें तो मैं बनूं। नम्बरवन बनना है तो बने तो बनूं, तो पहला नम्बर तो बनने वाला बन जायेगा। आपका नम्बर तो दूसरा हो जायेगा। क्या आप दूसरा नम्बर बनने चाहते हैं कि पहला नम्बर बनने चाहते हैं? वैसे अगर किसको कहो आप दूसरा नम्बर ले लो तो लेंगे? सभी यही कहेंगे पहला नम्बर लेना है। तो पहला निमित्त बनना है। दूसरे को निमित्त क्यों बनाते हो। अपने को निमित्त बनाओ ना। ब्रह्मा बाप ने क्या कहा? हर बात में खुद निमित्त बनके निमित्त बनाया। हे अर्जुन बन पार्ट बजाया। मुझे निमित्त बनना है। मुझे करना है। दूसरा करेगा, मुझे देखके और करेंगे। और को देख मैं करूंगा नहीं। मुझे देख और करेंगे। यह ब्रह्मा बाप का पहला पाठ है। तो सुना क्या करना है? सफलता मूर्त, सफल सफलता मूर्त, अखण्ड दानी, माया को आने की हिम्मत ही नहीं बनेंगी। जब अखण्ड महादानी बन जायेंगे, निरन्तर सेवाधारी रहेंगे, बिजी रहेंगे, मन बुद्धि सेवाधारी रहेगा तो माया कहाँ आयेगी। तो अभी इस वर्ष क्या बनना है? सबका एक आवाज निकले दिल से, यह बापदादा चाहता है, वह क्या? नो प्राब्लम, कम्पलीट। प्राब्लम नहीं लेकिन कम्पलीट बनना ही है। दृढ़ निश्चयबुद्धि, विजयमाला के नजदीक मणका बनना ही है। ठीक है ना! बनना है ना! मधुबन वाले बनना है। नो कम्पलेन? नो कम्पलेन। हाथ उठाओ हिम्मत रखने वाले। नो प्राब्लम। वाह! मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

देखो, निश्चय का प्रत्यक्ष प्रमाण है रूहानी नशा। अगर रूहानी नशा नहीं तो निश्चय भी नहीं है। फुल निश्चय नहीं है, थोड़ा बहुत है। तो नशा रखो क्या बड़ी बात है! कितने कल्प आप ही बाप समान बने हैं, याद है? अनगिनत बार बने हो। तो यह नशा रखो हम ही बने हैं, हम ही हैं और हम ही बार-बार बनते रहेंगे। यह नशा सदा ही कर्म में दिखाई दे। संकल्प में नहीं, बोल में नहीं, लेकिन कर्म में, कर्म का अर्थ है चलन में, चेहरे में दिखाई दे। तो होमवर्क मिल गया। मिला ना? अब देखेंगे नम्बरवार में आते हो या नम्बरवन में आते हो। अच्छा।

बापदादा के पास कार्ड, पत्र, ईमेल, याद-प्यार कम्प्यटुर द्वारा भी बहुत आये हैं और बापदादा दूर बैठे दिलतख्तनशीन बच्चों को, हर एक को नाम सहित विशेषता सहित यादप्यार और दिल की दुआयें सम्मुख इमर्ज कर दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि यादप्यार, प्यार तो सबको रहता ही है और बापदादा सदा अमृतवेले विशेष ब्राह्मण आत्माओं को यादप्यार का रेसपान्ड विशेष करता है। इसीलिए कार्ड भी अच्छे अच्छे बनाये हैं, बापदादा के पास तो वतन में, यहाँ रखते हैं लेकिन वतन में पहले पहुंचते हैं। अच्छा।

सेवा का टर्न यू.पी. जोन और पश्चिम नेपाल का है:- बापदादा ने देखा है, जिस भी जोन का टर्न होता है ना तो आधा ग्रुप तो वहाँ का होता है। अभी आप बैठ जाओ और जो दूसरे हैं इस जोन के बिना जो आये हैं वह उठो। इस जोन के बिना, अच्छा, आधा-आधा है, बैठ जाओ। अच्छा चांस मिलता है ना अपने सेवा के टर्न में कितने भी लाते हो ना तो खुला निमन्त्रण मिलता है। एक मिलन का चांस, दूसरा सेवा का चांस। तो डबल चांस लेने वाले। यू.पी. की विशेषता क्या है? पता है। यू.पी. सिकीलधी है। क्यों सिकीलधी है? क्यों है सिकीलधी? मम्मा बाबा के ज्यादा चक्कर लगे हैं। जैसे बाम्बे, दिल्ली वैसे यू.पी. में भी चक्कर लगे हैं। यू.पी. में ब्रह्मा का यादगार है ना। ब्रह्मा का है। जैसे राजस्थान में पुष्कर में ब्रह्मा का यादगार है ना, ऐसे यू.पी. में भी ब्रह्मा कुण्ड है और प्रैक्टिकल में ब्रह्मा बाप ने यू.पी. में सेवा की है। बच्चों को बहुत लाडप्यार दिया है। जो उस समय थे, बहुत लाडप्यार प्यारा है। अच्छा।

अभी यू.पी. नया क्या कर रही है? बापदादा ने लास्ट मुरली में कहा था कि नया कोई प्लैन निकालो। यह प्रदर्शनी, कान्फ्रेन्स, यह मेला, यह अभी कामन हो गये हैं। कई बार कई देख चुके हैं तो जब सुनते हैं ना मेला लगा है, प्रदर्शनी लगी है तो कहते हमने देखा है। समझा नहीं समझा लेकिन देख तो लिया ना। अभी नई कोई इन्वेन्शन निकालो। अब कम खर्चा बालानशीन ऐसी इन्वेन्शन निकालो जो छोटा सेन्टर भी कर सके, बड़ा सेन्टर भी कर सके। देखेंगे, कौन सा बच्चा नई इन्वेन्शन करने के निमित्त बनता है। यू.पी. वाले बनेंगे। यू.पी. में बुद्धिवान तो बहुत हैं। निकाल सकते हैं। यू.पी. की विशेषता दूसरी है कि यू.पी. के सेवा के आरम्भ में वारिस निकले। अच्छे अच्छे वारिस निकले। ऐसे दिल्ली में भी निकले हैं, बाम्बे में भी निकले हैं लेकिन यू.पी. में भी निकले हैं। अभी कर्नाटक में भी स्वार्णिम कर्नाटक कर रहे हैं बापदादा रिजल्ट देखेंगे वारिस कितने निकले, माइक कितने निकले? सन्देश तो मिला उसकी मुबारक है। और यू.पी. में भक्ति का यादगार भी बहुत है। भक्त क्वालिटी भी बहुत हैं। अन्धश्रधा वाले भी हैं और भावना वाले भी हैं, दोनों हैं। अभी यू.पी. वाले कमाल दिखाना। सबसे पहला नम्बर वारिस क्वालिटी आप निकालके लास्ट टर्न पर लिस्ट भेजना फिर यहाँ से तारीख जायेगी तब ले आना। वारिस बनाने की विधि क्या है? जानते हो ना! जो स्वयं हर बात में अनुभव मूर्त बन उन्हों के प्रति अपना दिल का अनुभव सुनाता नहीं है, लेकिन अपना अनुभव का स्वरूप उन्हों को अनुभव कराता है। वह वारिस बना सकता है। जो सिर्फ ज्ञान देता है वह अच्छा बनाता है लेकिन अच्छे ते अच्छा नहीं बनाता है। अच्छे ते अच्छा है वारिस क्वालिटी। तो देखेंगे लास्ट टर्न में क्या कोई लिस्ट आती है। कोई भी करे, निमित्त यू.पी. है लेकिन कोई भी जोन वारिस की लिस्ट भेजे। नम्बरवन देखें कौन बनता है! अच्छा। मुबारक है यू.पी. वालों को। बापदादा ने सुना है कि यज्ञ सेवा का पार्ट बहुत अच्छी तरह से निभाया है। इसलिए सेवा की भी मुबारक है और साथ-साथ जी हाजिर का पाठ अच्छा बजाया, इसकी भी मुबारक। अच्छा।

डबल विदेशी:- (60 देशों से 800 भाई बहिनें आये हैं):- अच्छा- बच्चों ने तो निशानी लगाई है, अच्छे हैं। बच्चों को चाकलेट की टोली दी है। दी है? खिलाई है। कौन है निमित्त। बच्चों को चाकलेट अच्छा लगता है ना! और अपने आगे उड़ने की विधि भी बताई है? कौन है निमित्त? बच्चों के लिए कौन निमित्त है हाथ उठाओ। तो अगले वर्ष यह बच्चे आयेंगे तो और चेंज होके आयेंगे ना। हाँ बच्चे आगे आओ।

(बच्चों ने गीत गाया - बाबा आप कितने अच्छे हो, कितने प्यारे हो..) अच्छी मेहनत की है। अभी दूसरे साल आयेंगे तो इससे भी आगे उड़ते हुए उड़ने वाले फरिश्ते बनके आयेंगे। ठीक है ना! दूसरे वर्ष और प्रोग्रेस करके आयेंगे। अच्छा - सुनो, कल बापदादा के तरफ से बच्चों को विशेष चाकलेट बनाके खिलाना। अच्छा। डबल विदेशी - बापदादा ने कहा था कि डबल विदेशी नहीं, अभी डबल पुरूषार्थी। तो डबल हैं? बापदादा को याद है पहले की बात कि बापदादा ने कहा था कभी भी विदेशी जो हैं ना, वह वाह! वाह! के बजाए, व्हाई व्हाई बहुत करते हैं। व्हाई और आई... आप तो नहीं करने वाले हो ना। आप व्हाई कहने वाले हो या वाह! वाह! कहने वाले हो। वाह! वाह! सदा? सदा वाह! वाह! कभी किसी बात में व्हाई नहीं। व्हाई माना हाय। तो हाय हाय नहीं, व्हाई नहीं वाह! वाह!। जो हो रहा है वह बहुत अच्छा, जो हो गया वह उससे भी अच्छा, जो होने वाला है वह परम अच्छा। यह है डबल पुरूषार्थ की निशानी। नो प्राब्लम वाले हो ना। नो प्राब्लम कि थोड़ी-थोड़ी प्राब्लम है। अच्छा यहाँ प्राब्लम छोड़के जाना, प्लेन में नहीं ले जाना क्योंकि बाप के पास आये हो तो बाप को कुछ तो कमाल दिखायेंगे ना। तो यह कमाल दिखाओ, कभी-कभी नहीं, थोड़ा-थोड़ा है यह नहीं, सदा रूहानी गुलाब। खिला हुआ गुलाब। क्योंकि सभी भारतवासियों के फारेन वाले बाप के भी, दादियों को भी फारेन वाले बहुत लाडले हैं, प्यारे हैं। फारेन वालों को देखके खुश होते हैं। तो आप भी सदा खुश रहेंगे ना। सदा शब्द याद कर लो। इस वर्ष की यह सौगात ले जाओ। सदा शब्द कभी नहीं भूलना। विघ्न आने में सदा नहीं करना, निर्विघ्न बनने में सदा। अच्छा है, मधुबन का श्रृंगार हो। डबल विदेशी विशेष मधुबन का श्रृंगार हो। तो श्रृंगार की बहुत वैल्यु होती है। तो वैल्युबुल हो। अच्छा है। यह बहुत अच्छा करते हो। बापदादा ने देखा है हर ग्रुप में इन्टरनेशनल ग्रुप होता है। अभी कितने देशों के हैं? (60 देशों के) तो देखो रौनक है ना! 60 देशों से भाग भागकर पहुंच गये हो। तो बापदादा के तरफ से मधुबन के तरफ से आपको पदम पदम मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।

इन्टरनेशनल यूथ ग्रुप:- अच्छा इतना बड़ा है। यूथ ग्रुप भी बड़ा है। बापदादा ने यूथ ग्रुप का समाचार सुना। जो आपस में प्लैन बनाया है वह अच्छा प्लैन बनाया है लेकिन स्व उन्नति का प्लैन पहले नम्बर प्रैक्टिकल में लाना क्योंकि यूथ ग्रुप को दुनिया वाले भी कमाल करने की आशा से देखते हैं। गवर्मेन्ट भी इसी आशा से देखती कि यूथ कुछ करके दिखाये, बनके दिखाये और बनाके दिखाये। प्रोग्राम तो अच्छा बनाया है। सिस्टम भी अच्छी बनाई है। बनाने वालों को मुबारक दे रहे हैं। अभी हर समय अपनी रिजल्ट निमित्त बनने वालों को भेजते रहना क्योंकि चेकिंग करते रहेंगे ना तो चेंज हो जायेंगे। चेकिंग में अलबेलापन आयेगा तो चेंज भी नहीं हो सकेंगे। इसीलिए जैसे डायरेक्शन मिले हैं वैसे अपनी रिपोर्ट, रिपार्ट बुरी नहीं अच्छी, अपना चार्ट देते रहना। इसमें थकना नहीं, अलबेले नहीं होना। फिर फारेन के यूथ को इन्डिया में दिखायेंगे, गवर्मेन्ट से मिलायेंगे और इन्डिया के ग्रुप को फारेन गवर्मेन्ट से मिलायेंगे। तो तैयार हो जाओ। उनको चार्ट दिखायेंगे ना कि यह कैसे अपना पुरूषार्थ करते हैं, परिवर्तन करते हैं और सफलता पाई है। तो ठीक है, बहुत अच्छा किया है, करते रहना। अच्छा।

ज्युरिस्ट और कलचरल विंग:- अच्छा है बापदादा के पास समाचार तो सब पहुंचता रहता है। दोनों ही विंग कोई न कोई प्लैन बनाते रहते हैं और अच्छा प्रोग्रेस भी कर रहे हैं। जो स्पार्क विंग है, उसमें क्या रिसर्च किया है? क्या एक्जैम्पुल कोई रिसर्च करने के बाद प्रैक्टिकल प्रूफ बनाया है, जैसे हार्ट पेशेन्ट निरोगी बन गये हैं, वह सबूत है, यूथ का भी समाचार सुना, तो अच्छा गवर्मेन्ट तक सबूत जा रहा है। ऐसे गांव वालों की सेवा में भी प्रत्यक्ष सेन्टर गीता पाठशालायें खुल गये हैं, यह रिकार्ड तो अच्छा है, ऐसे स्पार्क वालों ने, स्पार्क वाले हैं कल्चर वाले खड़े हैं तो ऐसा कोई विशेष एक्जैम्पुल बनाया है कि रिसर्च से यह परिवर्तन का सैम्पुल बना है, बापदादा वह सैम्पुल देखने भी चाहते, सुनने भी चाहते। क्या रिसर्च किया और कितनों ने उस रिसर्च करने का प्रैक्टिकल लाभ उठाया। यह देखने चाहते हैं। कल्चर वालों ने क्या कल्चरल डिपार्टमेंन्टस में, कोई ऐसी डिपार्टमेंट तैयार की है जो प्रत्यक्ष रूप में वर्णन करें कि हमनें आध्यात्मिक कल्चर द्वारा यह-यह अनुभव किया है। हमारी सारी डिपार्टमेंट परिवर्तन हुई है। ऐसे सभी वर्ग को, सभी वर्ग को बापदादा यही कहते हैं ऐसे सात-आठ, दस-बारह एक्जैम्पुल तैयार करो जो फिर गवर्मेन्ट को, वर्गीकरण क्या करता है उसका एक्जैम्पुल सुनायें। तो गवर्मेन्ट का भी सहयोग मिल सकता है। बापदादा ने सुना था एक डिपार्टमेंट ने कहा है कि पैसा हमारे पास है, काम आपके पास है। तो काम का प्रत्यक्ष सबूत देखने से उन्हों का भी सफल कराओ ना, नहीं तो ऐसे ही बिचारा खज़ाना चला जायेगा। उन्हों को यूज करने नहीं आता, आप सफल करा सकते हो, प्रभाव से। तो सभी वर्ग वाले मिलके ऐसा कोई प्लैन बनाओ जो प्रैक्टिकल में हर वर्ग का सबूत दिखाई दे। (ऊषा बहन ने चन्द्रपुर, भोपाल के कलचरल प्रोग्राम का समाचार सुनाया) प्रोग्राम अच्छा किया उसकी मुबारक है, अभी अच्छा बनाके दिखाओ।

सभी को माइन्ड डांस आती है? मन की डांस आती है? तो सारे दिन में कितना समय मन में खुशी की डांस करते हो? इसमें तो थकने की बात नहीं। गोड़ों के दर्द की भी बात नहीं, बिजी की भी बात नहीं, टाइम देना पड़ेगा यह भी नहीं, खर्चा भी नहीं। तो क्या करना चाहिए? जब भी बापदादा टी.वी. खोले तो क्या दिखाई दे? हर बच्चा मन की डांस में बिजी है। तो सदा बिजी रहेंगे तो बापदादा अचानक टी.वी. खोलेगा और देखेगा कौन-कौन डांस कर रहा है। खुशी की डांस तो अच्छी है ना। तो सदा यह डांस करते रहना। अच्छा - अभी क्या करना है? बापदादा तो मिलन मनाने में ही बिजी हो गये हैं। अच्छा।

चारों ओर के चमकते हुए आत्म दीप बच्चों को, सदा सफल करने वाले सफलता स्वरूप बच्चों को, सदा अखण्ड महादानी, अखण्ड निर्विघ्न, अखण्ड ज्ञान और योगयुक्त, सदा एक ही समय में तीन सेवा करने वाले मन्सा वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल द्वारा, वाचा वाणी द्वारा और चलन और चेहरे कर्म द्वारा, तीनों सेवा एक ही समय इकट्ठा हो तब आपका प्रभाव अच्छा कहने वाले नहीं, लेकिन अच्छा बनने वालों के ऊपर पड़ेगा। तो ऐसे अनुभवी मूर्त द्वारा अनुभव कराने वाले बच्चों को बापदादा का नये वर्ष के लिए पदम पदमगुणा यादप्यार, दुआयें और दिल का तख्त सदा तख्तनशीन बनाने वाला है, इसलिए चारों ओर के बच्चों को जो सम्मुख है, वा दूर बैठे दिलतख्त पर हैं, सभी को नाम और विशेषता सहित यादप्यार और नमस्ते।

अच्छा - जो पहली बार आये हैं वह उठकर खड़े हो जाओ। हाथ हिलाओ। देखो आधा क्लास पहले बारी का आया है। पीछे वाले हाथ हिलाओ। दिखाई दे रहा है टी.वी. में। बहुत हैं। अच्छा पहले वारी आने वालों को बापदादा की बहुत-बहुत दिल से मुबारक भी है, और दिल का यादप्यार भी है। जैसे अभी आये हो, तो अभी के आने वालों को बापदादा का वरदान है अमर भव।

दादी जानकी से:- अच्छा सम्भाल रही हैं। आप सन्तुष्ट हो। बीज सन्तुष्ट तो सब सन्तुष्ट। दादी की भी छत्रछाया है। उनकी भी दृष्टि है। यह सिर्फ सेवा के लिए बुलाया है बाकी है जैसे सेवा पर ही। (मनोहर दादी से) अच्छा पार्ट बजा रही है। क्लास में हाजिरी देती हो, यह बहुत अच्छा स्वयं भी रिफ्रेश औरों को भी रिफ्रेश करती हो। यह छोड़ना नहीं। इसने संकल्प किया है, बिना डाक्टर के ठीक रहूंगी। हो जायेगी।

(तीनों भाईयों से):- अच्छा त्रिमूर्ति ठीक है, त्रिमूर्ति हो ना। अभी जैसे बाप त्रिमूर्ति रूप में प्रसिद्ध है ना, ऐसे आप तीनों भी कोई ऐसा विशाल कार्य करके दिखाओ जो सब कहें वाह! सब वाह! वाह! के गीत गायें। स्व प्रति और सेवा प्रति, दोनों। स्व प्रति भी तीन नहीं, एक। एक ने कहा दूसरे ने माना। विचार दिया, सन्तुष्ट किया। यह सब देखने चाहते हैं। करना तो पड़ेगा ना। एक कोई निमित्त बन जाओ। मुझे निमित्त बनना है। हर एक अपने को समझे, मुझे निमित्त बनना है। प्राइज मिलेगी ना। दिल का प्यार यह प्राइज सबसे बड़ी है। इस बात पर प्यार। वैसे प्यार है लेकिन इस बात पर प्यार कौन लेता है वह प्यार प्राइज के रूप में, ठीक है ना। अच्छा।

2008 के आगमन पर प्यारे बापदादा द्वारा नये वर्ष की बधाईयां (रात्रि 12 बजे के बाद)

चारों ओर के सभी लकी और लवली बच्चों को नये वर्ष की बहुत-बहुत मुबारक भी है और दुआयें भी हैं। नये वर्ष में सदा नये उमंग-उत्साह में रहना और नये संकल्प सेवा की वृद्धि और स्वयं के तीव्र पुरूषार्थ की सिद्धि को प्राप्त करते उड़ते रहना और उड़ाते रहना। अभी के लिए गुडनाइट और साथ में कल के लिए अभी-अभी शुरू हो गया तो गुडमार्निगं भी गुडनाइट भी। अच्छा।