18-01-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘ब्रह्मा बाप समान नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनने के लिए, मन का टाइमटेबल बनाकर कर्म करते कर्मयोगी अशरीरी बनने का अभ्यास करो’’

आज चारों ओर के बच्चों में विशेष स्नेह समाया हुआ है। आज के दिन को कहते ही हैं स्मृति दिवस। बापदादा ने अमृतवेले से चारों ओर देखा, चाहे देश में, चाहे विदेश में सभी बच्चों के दिल में बाप के स्नेह की तस्वीर दिखाई दी। और बाप के दिल में भी हर एक बच्चे के स्नेह की तस्वीर समाई हुई थी। आज के दिन को विशेष स्नेह का, स्मृति का दिवस कहते हो। बापदादा ने अमृतवेले से भी पहले बच्चों के तरफ से अनेक स्नेह के मोतियों की मालायें देखी। हर एक बच्चे के दिल में आटोमेटिक यह गीत बज रहा है - मेरा बाबा, ब्रह्मा बाबा, मीठा बाबा। और बापदादा के दिल में यह गीत बज रहा है मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे। आज हर एक के अन्दर और शक्तियों के सिवाए स्नेह की शक्ति ज्यादा समाई हुई है। यह परमात्म स्नेह, ईश्वरीय स्नेह सिर्फ संगमयुग पर ही अनुभव होता है। यह परमात्म स्नेह जो अनुभवी जाने, हर एक बच्चे को सहजयोगी बना देता है। बापदादा ने देखा सर्व बच्चों में स्नेह का अनुभव बहुत-बहुत समाया हुआ है। आप सबका जन्म का आधार स्नेह है। ऐसा कोई भी बच्चा नहीं दिखाई देता, और शक्तियां कम भी हों लेकिन बाप का स्नेह या निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं के स्नेह का अनुभव मैजारिटी सभी के दिल में, चेहरे में दिखाई देता है। अभी आप सबको आज विशेष यहाँ तक किसने पहुंचाया? किस विमान में आये? ट्रेन में आये या विमान में आये? सबकी सूरत में स्नेह के प्लेन से पहुंच गये। कुछ भी करना पड़ा लेकिन स्नेह के प्लेन में सभी पहुंच गये हो।

आज के दिन को स्मृति दिवस कहा जाता है लेकिन स्मृति दिवस के साथ-साथ समर्थी दिवस भी कहा जाता है। आज के दिन को ताजपोशी का दिन भी कहा जाता है क्योंकि आज के दिन बापदादा ने विशेष ब्रह्मा बाप ने निमित्त बने हुए महावीर बच्चों को विश्व सेवा का ताज पहनाया। बाप, ब्रह्मा बाप खुद अननोन हुए और बच्चों को विश्व सेवा के स्मृति का तिलक दिया। बच्चों को करनहार बनाया और स्वयं करावनहार बनें। अपने समान फरिश्ते रूप का वरदान देकर लाइट का ताज पहनाया और बापदादा ने जो ताज, तिलक का वरदान दिया, उसी प्रमाण बच्चों का कर्तव्य देख खुश है। बच्चों ने सेवा का वरदान कार्य में लाया, यह देख बापदादा खुश है। अभी तक जो पार्ट बजाया है और आगे भी बजाना है, उसकी पदमगुणा ब्रह्मा बाप विशेष मुबारक दे रहे हैं। वाह बच्चे वाह! विदेश में भी चक्कर लगाया तो क्या देखा? हर बच्चा स्नेह में समाया हुआ है। जो बाप द्वारा समार्थियाँ मिली हैं क्योंकि यह दिन विशेष स्नेह से समार्थियों का वरदान प्राप्त करने का दिन है। बापदादा ने देखा कोई-कोई बच्चे बहुत अच्छे लगन में याद में, सेवा में लगे हुए हैं। अमृतवेला बहुत अच्छी रीति से अनुभव करते हैं। अशरीरीपन का भी अनुभव करते हैं लेकिन जब कर्मयोगी बनने का समय आता है तो दोनों काम योगी का भी और कर्म का भी, दो काम इकठ्ठा करने में फर्क पड़ जाता है। पुरूषार्थ करते हैं कि कर्म और योग का बैलेन्स हो लेकिन जैसे अमृतवेले शक्तिशाली अवस्था का अनुभव करते हैं, वैसे कर्म में फर्क पड़ जाता है, मेहनत करनी पड़ती है और बापदादा ने सभी बच्चों को कह दिया है कि विश्व का विनाश अचानक होना है, अगर सारा दिन अटेन्शन के बजाए, किसी भी धारणा की कमी होने के कारण कर्मयोगी की स्टेज में फर्क आता है तो विश्व के विनाश की डेट तो बापदादा अनाउन्स नहीं करेंगे लेकिन अपना जीवन काल समाप्त कब होना है, यह मालूम है? कोई को मालूम है कि मेरा मृत्यु फलानी डेट पर होना है, है मालूम? वह हाथ उठाओ। अचानक कुछ भी हो सकता है, कोई प्रकृति का कारण बनता है तो कितने का मृत्यु साथ में हो जाता है। तो विश्व के डेट के संकल्प से अलबेला नहीं बनना। आपकी जगदम्बा का स्लोगन था - तो कभी भी कब नहीं कहो, अब। कल कुछ भी हो जाए लेकिन मुझे एवररेडी रहना ही है। तो इतनी तैयारी सबके अटेन्शन में है? अपना कर्मों का हिसाब चुक्तू किया है? चार ही सबजेक्ट ज्ञान, योग, सेवा और धारणा, चार ही तरफ, चारों में ऐसी तैयारी है? पूरा बेहद के वैराग्य का अनुभव चेक किया है? अपनी दिल में यह चेक किया है कि एवररेडी हैं? नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप क्योंकि ब्रह्मा बाप ने भी स्वयं को पुरूषार्थ करके ऐसा बनाया जो अनुभवी बच्चों ने देखा, कोई भी तरफ यह वातावरण नहीं था, कोई हिसाब किताब का, अचानक अशरीरी बनने का अभ्यास अशरीरी बनाकर उड़ गये। कोई ने समझा कि ब्रह्मा बाप जाने वाले हैं! लेकिन नष्टोमोहा, बच्चों के हाथ में हाथ होते कहाँ आकर्षण रही? फरिश्ता बन गये। बच्चों को फरिश्ते बनाने का तिलक दे गये। इसका कारण बहुत समय अशरीरीपन का अभ्यास रहा। कई अनुभवी बच्चे जो साथ रहे हैं उन्होंने अनुभव किया, कर्म करते करते ऐसे अशरीरी बन जाते। तो यह जो कर्मयोग में अन्तर पड़ जाता है, इसका कारण कर्म करते यह स्मृति में इमर्ज नहीं होता, मैं आत्मा हूँ, यह तो सब जानते ही हैं लेकिन मैं आत्मा, कौन सी आत्मा हूँ? मैं करावनहार आत्मा हूँ और यह कर्मेन्द्रियां करनहार हैं, यह करावनहार का स्वमान कर्म करते स्मृति स्वरूप में रहे, चाहे कर्मेन्द्रियों से कर्म कराना है लेकिन मैं करावनहार हूँ, मालिक हूँ, इस सीट पर अगर सेट है तो कोई भी कर्मेन्द्रिय आर्डर में रहेगी। बिना सीट पर सेट होते कोई किसका नहीं मानता। तो करावनहार आत्मा हूँ, यह कर्मेन्द्रियां करनहार हैं, करावनहार नहीं है। जैसे ब्रह्मा बाप का अनुभव सुना कि ब्रह्मा बाप ने शुरू में यह अभ्यास किया जो रोज़ समाप्ति के समय इन कर्मेन्द्रियों की राज दरबार लगाते थे। पुराने बच्चों ने वह डायरी देखी होगी तो रोज दरबार लगाते थे और करावनहार मालिक बन हर कर्मेन्द्रियों का समाचार लेते थे, देते थे। इतना अटेन्शन शुरू में ही ब्रह्मा बाप ने भी किया तो आपको भी करावनहार मालिक समझ, क्योंकि आत्मा राजा है यह कर्मेन्द्रियां साथी हैं। तो यह चेक करना चाहिए कि आज के दिन विशेष मन-बुद्धि संस्कार, स्वभाव कहो संस्कार कहो इन्हों का क्या हाल रहा?और फौरन चेक करने से कर्मेन्द्रियों को अटेन्शन रहता है कि हमारा राजा हमारा हालचाल लेगा, तो आत्मा राजा करनहार कर्मेन्द्रियों से करावनहार बन चेक करो। नहीं तो देखा गया है कई बच्चे कहते हैं कि हम कर्मेन्द्रियों को आर्डर करते हैं लेकिन फिर हो जाता है। पुरूषार्थ करते हैं लेकिन कोई-कोई संस्कार या स्वभाव आर्डर में नहीं रहते। उसका कारण इसी अपने स्वमान की सीट पर सेट नहीं रहते। बिना सीट पर बैठने के आर्डर कितना भी करो तो आर्डर मानने वाले मानते नहीं हैं। तो कर्म करते अपने करावनहार मालिकपन की सीट पर सेट रहो। कई बच्चे यह भी बापदादा से रूहरिहान करते कि बाबा आपने हमें सर्व शक्तिवान बनाया, शक्तिवान भी नहीं सर्वशक्तिवान का वरदान हर एक बच्चे को ब्राह्मण जन्म लेते हुए दिया है, याद है अपने जन्म का वरदान! हर एक बच्चे को बाप ने मास्टर सर्वशक्तिवान भव का वरदान दिया है। किसने वरदान दिया? आलमाइटी अथॉरिटी ने। लेकिन कम्पलेन करते हैं कि जिस समय जो शक्ति चाहिए वह आती नहीं है। आर्डर नहीं मानती है। वह क्यों? जब आलमाइटी अथॉरिटी का वरदान है, उससे बड़ा कोई नहीं। तो वरदान के स्थिति में स्थित रहकरके अगर आर्डर करो तो हो नहीं सकता कि आप आर्डर करो और शक्ति नहीं मानें। एक तो आत्मा मालिक है, सर्वशक्तिवान का वरदान मिला हुआ है, उस स्वरूप में स्थित होके मालिक हूँ, वरदान है, दोनों स्वरूप की स्मृति के स्थिति में रहके आर्डर करो। शक्ति आपका नहीं मानें असम्भव क्योंकि वरदान और बाप के प्रापर्टी का अधिकार संगमयुग पर आप सबको सर्वशक्तिवान का टाइटिल मिला है सिर्फ उस स्थिति में स्थित नहीं रहते। सदा नहीं रहते। कभी-कभी आ जाता है। यह कभी शब्द अपने ब्राह्मण डिक्शनरी से निकाल दो। अभी अभी हाजिर। आप कहते हो ना कि बाबा आपको हम याद करते हैं तो आप हाजिर हो जाते हैं। है अनुभव? हाथ उठाओ। अनुभव है? अभी देखो, हाथ तो उठा रहे हो। बाप हाजिर हो जाता। हजूर हाजिर हो जाता, तो यह शक्ति क्या है? यह शक्तियां भी आपको बाप के प्रापर्टी में मिली हैं। तो मालिक बनके आर्डर करो। मालिक बनके आर्डर नहीं करते हो, शक्ति खो जाती है ना तो उसी स्थिति में रहते हुए आर्डर करते हो, तो मालिक ही नहीं है आर्डर क्यों मानें!

तो बापदादा अभी क्या चाहते हैं? पता है ना! बाप अभी यही चाहते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा कर्म करते हुए भी राजा बच्चा बन, स्वराज्य अधिकारी बन स्वराज्य की सीट को नहीं छोड़े। तो राजा सारा दिन राजा ही होता है ना! कि कभी राजा होता है कभी नहीं। तख्त पर बैठना या नहीं बैठना वह अलग बात है लेकिन घर में भी रहते मैं राजा हूँ, यह तो नहीं भूलता। तो कर्मयोगी और अमृतवेले के यथार्थ योग शक्तिशाली स्थिति उसमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए। डबल काम है लेकिन आप कौन हो? आप तो विश्व के परिवर्तक हो, विश्व कल्याणकारी हो। इसलिए बाप यही चाहते कि चलते-फिरते राजापन नहीं भूलो, सीट को नहीं छोड़ो। बिना सीट के कोई आर्डर नहीं मानता। आजकल देखो सीट के पीछे कितना कुछ करते हैं? अपना हक लेने के लिए कितना प्रयत्न करते। अपना हक कोई छोड़ने नहीं चाहता। तो आप अपना परमात्म हक मैं कौन! हर समय जो काम करते हो तो काम करते भी अपने मन का टाइमटेबल बनाके रखो। यह काम करते हुए मन का स्वमान क्या रहेगा? आज के दिन कौन सा लक्ष्य रखूंगा? हर काम के टाइम जो भी अपने स्वमान की लिस्ट है, भले भिन्न-भिन्न टाइमटेबल बनाओ जैसे स्थूल कर्म का टाइमटेबल फिक्स करते हो वैसे मन का टाइमटेबल फिक्स करो। मालूम तो है इस समय यह काम करना है, उसके साथ स्वमान कौन सा रखना है? मालिकपन का अधिकार किस स्वमान के रूप में रखना है, यह मन का टाइमटेबल बनाओ। टाइमटेबल बनाने आता है ना! माताओं को आता है? मातायें अपना आपेही प्रोग्राम बनाओ। अच्छा खाना बनाना है उस समय कौन सा स्वमान अपनी बुद्धि में इमर्ज रखना है। बहुत माला है स्वमान की। इतनी बड़ी माला है जो स्वमान गिनती करते जाओ और माला में समा जाओ। तो अभी बहुतकाल का भी कोई बच्चे कहते हैं, अभी तक तो विनाश का कुछ दिखाई नहीं देता है। अभी तो डेट फिक्स नहीं है, कर लेंगे, हो जायेगा, यह अलबेलापन है। सन्देश देने में भी विश्व कल्याणकारी हैं, तो कई बच्चे समझते हैं अभी समय पड़ा है, आगे चलवे सन्देश दे देंगे, लेकिन नहीं। जिनको पीछे सन्देश देंगे वह भी आपको उल्हना देंगे क्या उल्हना देंगे? आपने पहले क्यों नहीं बताया तो हम भी कुछ कर लेते थे, अभी आपने लास्ट में बताया। तो हम तो सिर्फ पहचान कर अहो प्रभू तेरी लीला अपार है, यही कह सकेंगे। पद तो पा नहीं सकेंगे। क्यों? बहुत समय का भी सहयोग चाहिए। आप सभी वारिस बैठे हो ना! जो अपने को समझते हैं हम वारिस हैं, वह हाथ उठाओ, वारिस हैं? अच्छा, वारिस हैं तो आपको फुल वर्सा पाना है या थोड़ा? सभी कहेंगे फुल वर्सा पाना है। तो फुल वर्सा है 21 जन्म पूरे, आदि से अन्त तक रॉयल प्रजा नहीं, रॉयल फैमिली में आना। राज्य फैमिली में आना। तख्त पर तो एक ही बैठेंगे ना। युगल बैठेंगे। लेकिन वहाँ की सभा जब भी लगती है तो रॉयल फैमिली के विशेष निमित्त आत्मायें वह ताजधारी बनके बैठते हैं। बिना ताज नहीं बैठते हैं। और हर कार्य में सलाह, राय देने वाले ऐसे नहीं कि सिर्फ वह राज्य करेगा, साथ में राय से ही करते हैं इसलिए अगर सम्पूर्ण वर्सा लेना है तो पहले जन्म से लेके अन्त तक 21 जन्म पूरे आधे भी नहीं, बीच में तो जाना नहीं है, अकाले मृत्यु तो होना नहीं है। तो पूरा वर्सा लेना है कि थोड़े में खुश होना है? आपकी मातेश्वरी जगत अम्बा सदा यह लक्ष्य रखती थी बापदादा ने जो श्रीमत, चाहे मन्सा चाहे वाचा चाहे कर्मणा, जो भी श्रीमत दी वह हमें करना ही है। ऐसे पूरा वर्सा लेने वाले यही लक्ष्य बुद्धि में रखो कि अचानक एवररेडी और बहुत समय, तीनों ही शब्द साथ में याद रखो। इसलिए बापदादा के सभी आशाओं के दीपक बच्चों प्रति यही वरदान है कि सदा यह तीनों ही शब्द याद रखकर सभी आशाओं के दीपक बनने का प्रत्यक्ष सबूत दिखाओ।

बापदादा ने देखा बच्चों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के कोर्स बनाये हैं। अच्छा है। बापदादा मुबारक देते हैं लेकिन अब समय प्रमाण कोर्स के बजाए फोर्स का कोर्स कराओ। ऐसा फोर्स का कोर्स कराओ जो वह आत्मायें बाप के सिर्फ स्नेही-सहयोगी नहीं बनें लेकिन हर श्रीमत को पालन करने वाली फोर्स, सर्व फोर्स भरने वाली आत्मा बनें। समीप का रत्न बनें। यह हो सकता है? अभी फोर्स का कोर्स कराओ। क्योंकि बापदादा देख रहे हैं कि अभी प्रकृति हलचल में आ गई इसलिए कोई न कोई कारण प्रकृति की हलचल अपना प्रभाव दिखा रही है और दिखाती रहेगी। जो ख्याल ख्वाब में बातें नहीं हैं वह प्रैक्टिकल देखते चलेंगे। तो प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाना है। अभी तो अपने-अपने प्रभाव डाल रही है, इसलिए समय प्रति समय नई-नई बातें होती रहती हैं। लेकिन आप सब तो वारिस हो ना!सिर्फ स्नेही सहयोगी नहीं वारिस, फुल अधिकारी। है? वारिस हैं ना! वारिस है! डबल फारेनर्स भी वारिस हैं ना!वारिस है? फुल वर्सा लेने वाले। अधूरा नहीं। पाण्डव फुल वर्सा लेने वाले हो?

तो बापदादा की आशा का दीपक हूँ। तो यही याद रखो - स्मृति दिवस पर हर एक बच्चा चाहे आये हैं, चाहे अभी नहीं आये हैं, चाहे दूर बैठे दिल में समाये हुए हैं, हर एक को बापदादा की यह आज्ञा - बनना और मानना है कि मुझे कभी शब्द नहीं कहना है। अभी-अभी, कल भी किसने देखा, आज। जो करना है वह करना ही है, सोचना नहीं। सोचेंगे, करेंगे, हो जायेगा, यह बाप को भी दिलासा देते हैं। बाबा आप ख्याल नहीं करो हम समय पर ठीक हो जायेंगे। लेकिन बापदादा यही चाहते कि अभी-अभी कोई भी पेपर आ जाए तो हर एक बच्चा फुल पास हो जाए। हो सकता है? हो सकता है? फुल पास होना है? अच्छा। आज जो पहली बार आये हैं वह उठो। पहले बारी आने वालों को बापदादा आने की बहुत-बहुत मुबारक दे रहे हैं और वरदान दे रहे हैं कि तीव्र पुरूषार्थी बन आप चाहो तो आगे से आगे आ सकते हो। यह वरदान प्रैक्टिकल में लाने चाहे तो बापदादा का वरदान है। इसके लिए पहले आने वालों के लिए बापदादा खुशखबरी सुना रहे हैं कि लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट, यह दिल खुश मिठाई खा लो।

बापदादा को यह खुशी है कि फिर भी टू लेट के बोर्ड के पहले आ गये, यह बहुत खुशी की बात है। आप लोग अगर आगे गये तो हम सब खुश होंगे यह नहीं कहेंगे कि आप क्यों, हम क्यों नहीं, नहीं। पहले आप। अच्छा - बैठ जाओ, दिलखुश मिठाई खाई!

सेवा का टर्न इन्दौर ज़ोन का है:- इन्डोर का अर्थ ही है, लकीर के अन्दर रहने वाले। तो बापदादा को हर एक ज़ोन की सेवा का उमंग उत्साह देख खुशी होती है और चांस भी सभी अच्छी तरह से लेते रहते हैं क्योंकि जानते हो कि सेवा का मेवा मिलता है। कौन सा मेवा मिलता है? सभी की आशीर्वाद मिलती है। लोग तो समझते हैं एक ब्राह्मण को खिलाया, बहुत पुण्य जमा हुआ। लेकिन आप कितने ब्राह्मणों को खिलाते हो। कितना पुण्य और सभी सच्चे ब्राह्मण हैं। तो आप सभी ने सेवा का मेवा खाया? खाया? तो तन्दरूस्त हो ना! मेवा खाने से तन्दरूस्त बनते हैं। तो अच्छा है। हर ज़ोन में देखा गया कि संख्या बढ़ती जाती है लेकिन बापदादा ने पहले भी कहा है कि संख्या बढ़ रही है, यह तो बहुत अच्छा। सन्देश मिला, बाप का पैगाम मिला और बाप के बने इसके लिए बहुत-बहुत मुबारक हो लेकिन अभी समय अनुसार पहले भी बाप ने कहा है कि वारिस बनाओ। इन्दौर ने पक्के वारिस, क्योंकि बापदादा उन वारिसों का पेपर लेंगे। पहले नाम भेजो फिर बापदादा देखेंगे कि वारिस क्वालिटी कहाँ तक वारिसपन निभा रही हैं। और दूसरा बापदादा ने कहा अनुभवी नामीग्रामी जिनका अनुभव सुनकर औरों को उमंग आवे, मैं भी बनूं, वह माइक क्वालिटी भी तैयार करनी है। तो किया, काम किया? इन्दौर ने किया? अभी बापदादा के पास लिस्ट नहीं आई है। अच्छा। (छतीसगढ़ की पूरी गवर्मेन्ट यहाँ आई, वह अभी माइक बनकर अच्छी सेवा कर रहे हैं) अच्छा है। यह सारे इन्दौर के हैं। काफी संख्या है। अच्छा है। अच्छा। बापदादा की इन्दौर में एक विशेष उम्मींद है क्योंकि यह ब्रह्मा बाप के अन्तिम समय पर खुद बापदादा ने इन्दौर सेन्टर खुलवाया है, इसलिए आज स्मृति दिवस मना रहे हैं तो इन्दौर को कोई ऐसी बात करनी है जो अभी तक न्यारी और प्यारी हो। सभी ज़ोन पुरूषार्थ कर रहे हैं अच्छा, बापदादा के पास समाचार तो सबका आता भी है। लेकिन बापदादा अभी फास्ट आगे बढ़ने का जो चाहना रखते हैं, निर्विघ्न ज़ोन, हर ज़ोन में जितने भी सेवाकेन्द्र हैं, उपसेवाकेन्द्र हैं लेकिन हर एरिया निर्विघ्न सेवाकेन्द्र हो। हर एक में तीव्र पुरूषार्थ की लहर हो। तो नम्बर इन्दौर ले लेवे। इसमें नम्बरवन कोई भी ज़ोन ने रिपोर्ट नहीं दी है कि सारा ज़ोन निर्विघ्न है। पुरूषार्थ कर रहे हैं लेकिन चारों ओर चाहे गीता पाठशाला हो लेकिन निर्विघ्न हो। यह रिर्पोट बापदादा चाहते हैं। अच्छा।

मेडिकल विंग:- इस विंग में प्रैक्टिकल डाक्टर्स कितने हैं? डाक्टर्स हाथ उठाओ। अच्छा इतने डाक्टर्स हैं क्योंकि बापदादा ने देखा कि समय प्रमाण डाक्टर्स की सेवा और आगे बढ़ेगी क्योंकि आजकल के समय में चिंता और भय फैला हुआ है। तो डाक्टर्स यह तो डबल डाक्टर्स होंगे ही। डाक्टर्स जो डबल डाक्टर हैं वह हाथ उठाओ। मन के भी तन के भी। क्योंकि आजकल मन का रोग और बढ़ता जायेगा इसलिए डबल डाक्टर्स की सेवा और बढ़ती जायेगी। प्रकृति की हलचल के कारण नये-नये रोग निकलते हैं तो ऐसे समय पर डबल डाक्टर्स की आवश्यकता है। तो आप सभी एवररेडी हो, कहाँ भी बुलावा हो तो सेवा दे सकते हो? जो सेवा दे सकते हैं वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। नाम नोट करके देना क्योंकि निमन्त्रण तो आते हैं तो समय निकालेंगे? निकालेंगे? जो समय के लिए भी तैयार हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा। बहिनें कम उठा रही हैं। सेवाकेन्द्र चलाना है। इनका नाम नोट करके देना। बापदादा डाक्टर्स की महिमा करते हैं क्यों महिमा करता है? क्योंकि डाक्टर्स भी बापदादा के समान दु:ख लेके सुख तो दे देते हैं। लेकिन अल्पकाल के लिए देते हैं। बाप सदाकाल के लिए देते हैं इसीलिए कहा कि डबल डाक्टर होंगे और समय निकालेंगे तो आप लोगों को आगे चल करके डबल डाक्टर्स की वैल्यु होगी। बापदादा ने सुना कि डाक्टर्स को फुर्सत नहीं होती है लेकिन डाक्टर्स हर एक बिजी होते भी बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। पहले भी बापदादा ने सुनाया कि हर एक डाक्टर अपना कार्ड तो छपाते हो। छपाते हो ना कार्ड? तो एक तरफ तो अपना परिचय देते हो और दूसरा तरफ खाली होता है, तो उस खाली तरफ आप मन की दवाई के लिए फलानी एड्रेस है, यह अगर कार्ड जितने भी पेशेन्ट हैं उनको दो तो आपकी घर बैठे सेवा हो जायेगी। क्योंकि डाक्टर्स का सभी मानते हैं। कोई कितना भी कहेगा नहीं यह नहीं खाओ फिर भी खाते रहेंगे। लेकिन डाक्टर्स अगर कहेंगे कि यह हो जायेगा, यह हो जायेगा। तो कर लेते हैं। मजबूरी से करें या प्यार से करें लेकिन करते हैं इसीलिए बापदादा कहते हैं कि डाक्टर्स बहुत सेवा कर सकते हैं और अच्छा है। देखा गया है तो प्रोग्राम करते रहते हैं लेकिन थोड़ा और तेजी से होना चाहिए। आपके भिन्न-भिन्न ज़ोन के डाक्टर्स अपने ज़ोन में ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो वहाँ ही प्रोग्राम इकठ्ठा होके करते रहें तो आप बहुत सेवा कर सकते हो। बापदादा को डाक्टर्स की सेवा आवश्यक लगती है क्योंकि यह तो बीमारियां बढ़नी ही हैं। मन की बीमारी तो चारों ओर फैली हुई है तो आप लोगों के आक्युपेशन के डर से सभी मान सकते हैं। अच्छा है। बापदादा को पसन्द है इस वर्ग की सेवा और जोरशोर से बढ़ाओ। अच्छा।

डबल विदेशी:- (40 देशों से आये हैं): आज तो विशेष सेरीमनी मनाने भी आये हैं। बापदादा को खुशी है कि मधुबन में सेरीमनी मनाने के निमित्त सभी को उमंग-उत्साह आता है। हाथ उठाओ जो सेरीमनी मनाने आये हैं? अच्छा। जिनकी सेरीमनी है वह हाथ उठाओ। दो हाथ उठाओ। बहुत अच्छा किया। निमन्त्रण देने का, आबू की यात्रा कराने का यह चांस बहुत अच्छा लिया क्योंकि बापदादा की पधरामणी सिन्ध में हुई। फाउण्डेशन सिन्ध है। तो सिन्ध वाले अपना हक रखते हैं कि हम तो सिन्धी हैं। अच्छा है यह भी एक विधि है सभी को यात्रा कराने की। तो बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। अच्छा लगा ना। अपना घर। अच्छा लगा? क्योंकि यहाँ देखा होगा किसी भी कमरे में किसका नाम नहीं। क्योंकि यह बाप का घर है। तो आप बाप के बच्चे कहाँ आये हो? अपने घर में।

(हिमाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री सामने बैठे हैं)

यह भी अभी आये हैं ना? तो कहाँ आये हो? अपने घर में आये हो। अपने परिवार में आये हो। बापदादा यही कहते हैं कि राज्य और आध्यात्मिकता अगर दोनों मिलकर विशेष बापू गांधी जी के संकल्प को पूर्ण करने चाहें तो कर सकते हैं। सहज कर सकते हैं और करते जा रहे हैं। बापदादा को खुशी है कि किसी न किसी संग के साथ अभी नेताओं में भी नाम फैल रहा है। तीनों शक्तियां साइंस, आध्यात्मिकता और राज्य सत्ता, तीनों ही सत्तायें मिलकरके एक संकल्प करें, सहयोगी बनें तो हम बापू गांधी जी और बापू का भी बापू परमात्मा दोनों बाप की आशायें पूर्ण करेंगे तो बहुत सहज हो जायेगा। अच्छा।

डबल विदेशी - विदेश में भी भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवायें चल रही हैं और चलती रहेंगी। बापदादा ने देखा कि नये-नये प्लैन बनाते रहते हैं और प्रैक्टिकल में कर भी रहे हैं, फारेन वाले इन्डिया वालों को अपना अनुभव सुनाके सेवा कर रहे हैं और इन्डिया वाले फारेन वालों को अपने अनुभव सुना करके देश विदेश में आवाज फैला रहे हैं, अभी भी प्रोग्राम कर रहे हैं ना। अच्छा है। अभी दूसरा नम्बर है। (अभी सर्व इन्डिया प्रोग्राम चेन्नई में है) बापदादा के पास सभी का उमंग उत्साह का पत्र और यादप्यार एडवांस में मिली है, जो भी करते हैं, आरम्भ करते हैं तो पहले छोटा होता है फिर बढ़ता जाता है क्योंकि आजकल के समय में सभी को आवश्यकता लगती है, तीन सत्ता होते भी धर्म सत्ता भी है, आध्यात्मिकता अलग है, धर्म सत्ता अलग है लेकिन सत्ता तो है। तो भी जो चाहते हैं वह नहीं हो रहा है। तो सभी सोचने लगते हैं कि कमी किसकी है? तीन तो काम कर रही हैं, तो भी जो चाहते हैं वह नहीं हो रहा है। तो अभी चाहते हैं लेकिन समय का बहाना देते हैं। समय नहीं हैं। क्या करें, क्या नहीं करें... लेकिन ऐसे अगर एक दो ग्रुप अपने को सहयोगी बनायें तो बापदादा का वरदान है कि भारत स्वर्ग बनना ही है। दोनों बापू की आशायें पूर्ण होनी ही है। तो फारेन वाले भी मन्सा सेवा से सहयोगी हैं ना! बापदादा ने देखा कि वृद्धि सब धर्मो में हो रही है, एक धर्म नहीं सिर्फ हिन्दू नहीं लेकिन मुस्लिम, बुद्धिष्ठ सब धर्म, क्रिश्चियन, सब धीरे धीरे आध्यात्मिकता में रूची ले रहे हैं। पहले देखो ब्रह्माकुमारियों का नाम सुनके डरते थे, विनाश-विनाश क्या कहती हैं। और अभी क्या कहते हैं? अभी कहते हैं बताओ विनाश कब होगा, कैसे होगा और क्या करें? इसलिए होना तो है ही यह तो गैरन्टी है। आप सबको गैरन्टी है ना चाहे विदेश वाले चाहे भारत वाले गैरन्टी है ना, आपका सहयोग है ही है। होना ही है। ताली बजाओ। सभी को उमंग अच्छा है। और निमित्त बनी हुई आत्मायें चाहे पाण्डव, चाहे शक्तियां दोनों में उमंग उत्साह है। सिर्फ अभी बापदादा ने जो इशारा दिया पुरूषार्थ को तीव्र करो। पुरूषार्थ नहीं, पुरूषार्थ का समय गया अभी तीव्र पुरूषार्थ का समय है। और कभी-कभी पर नहीं ठहरो, अभी। अभी करना है, अभी बनना है। तो होना ही है। अच्छा।

कलकत्ता वालों ने आज फूलों का श्रृंगार किया है:-  बापदादा ने देखा कि दिल से करते हैं। श्रृंगार करना कोई बड़ी बात नहीं है, आपसे भी अच्छे करने वाले हैं लेकिन आपको बाप से प्यार है, बाप की पहचान थोड़ी बहुत है इसलिए जो भी श्रृंगार करते हो ना, उसमें सिर्फ काम नहीं लेकिन प्यार भी है। तो जहाँ प्यार है वहाँ प्यार की खुशबू सबको अच्छी लगती है। और हर साल आते हैं। अपनी ड्युटी समझकर नहीं, लेकिन अपना काम समझ करके करते हैं। तो मुबारक हो आप सबको। निमित्त बने हुए उमंग हुल्लास दिलाते हैं। बहुत अच्छा करते हो। स्मृति दिवस आता है और कलकत्ता को याद करते हैं, विशेषता है। मुबारक हो। अच्छा।

चारों ओर के तीव्र पुरूषार्थी सदा उमंग उत्साह से कदम आगे बढ़ाने वाले जो सच्ची दिल से करते हैं उनके मस्तक पर विजय का तिलक बापदादा देख रहे हैं, सभी को निश्चय है, नशा है तो हम विजयी हैं, विजयी थे और विजयी रहेंगे, इसलिए हर एक के मस्तक में बापदादा विजय का तिलक देख रहे हैं। चारों ओर के स्नेही भी हैं, आज अमृतवेले से बहुत-बहुत स्नेह की मालायें बापदादा के पास आई और बापदादा आप सभी बच्चों को रिटर्न में सदा विजयी बनने की माला डाल रहे हैं। तो चारों ओर के बच्चे देख भी रहे हैं क्योंकि साइंस ने यह सब साधन आपके लिए भी बनाये हैं, जो कहाँ भी बैठे देख सकते हो, सुन सकते हो, तो बापदादा देख रहे हैं, जगह-जगह पर कैसे देख भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं, तो चारों ओर के बच्चों को बापदादा स्मृति दिवस की यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा के दिल में हर बच्चा समाया हुआ है और हर बच्चे की दिल में बाप समाया है, बाप की दिल में बच्चा समाया है, तो मुबारक हो, मुबारक हो और मुबारक के साथ नमस्ते भी।

दादियों से:- मुरब्बी बच्चों का पार्ट बजा रही हो, इसको देख बापदादा खुश है। (मोहिनी बहन से) हिम्मत वाली हो और हिम्मत ही आपकी विशेष दवाई है।

दादी रतनमोहिनी से:- यह भी अच्छी है, हर कार्य में हाँ जी, हाँ जी हाँ जी मिलाके चल रही हो और चलती रहेंगी।

चेन्नई में सर्व इन्डिया प्रोग्राम होने जा रहा है, सभी ने खास याद दी है:- मूल बात तो है कि गवर्नर हाउस मिला है और वह भी इन्ट्रेस्टेट है यह सेवा का सबूत है इसीलिए बापदादा सभी बच्चों को एक बीना के साथ सभी निमित्त बच्चों को लाख गुणा पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं और निजार बच्चा भी उमंग वाला है। चाहता है और क्या-क्या करूं, प्लैन बनाता रहता है उसको भी विशेष याद देना। गवर्नर सहयोगी तो है लेकिन जैसे पांव आगे बढ़ाना होता है ना तो पहले एक पांव बढ़ाया जाता है और आगे बढ़ना होता है तो दूसरा पांव बढ़ाया जाता है तो स्नेही और सहयोगी है ल्ोकिन अभी इस प्रोग्राम की रिजल्ट में और पांव आगे बढ़ाके आप लोगों का साथी बन जाये। अभी स्नेही है, सहयोगी है, सेवा का महत्व समझता है, अभी महत्व तक है अभी और दूसरा कदम आगे बढ़ाना है।

माननीय मुख्य मंत्री भ्राता प्रो.प्रेमकुमार धूमल, हिमाचल प्रदेश:- बहुत अच्छा किया जो संकल्प को सम्पूर्ण पूरा किया। अपना घर समझते हो ना! क्योंकि बाप का घर है तो बाप का घर अपना घर। जब भी चाहे, जब चाहे थोड़ी रेस्ट लेनी हो ना तो अपने घर आ जाओ। आप भी खुश हो ना। आप भी आते रहना। अभी सिर्फ इनके साथ आये हैं, नहीं। वैसे भी आते रहना।