30-01-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘चारों ही सबजेक्ट में स्वमान के अनुभवी स्वरूप बन अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ’’

आज ब्राह्मण संसार के रचयिता बापदादा अपने चारों ओर के ब्राह्मण संसार को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण सारे संसार में विशेष आत्मा है। कोटों में कोई है क्योंकि साधारण तन में आये हुए बाप को पहचान लिया। बापदादा भी दिल में समाने वाले बच्चों को दिल से दिल का प्यार दे रहे हैं। हर एक बच्चा अपने को ऐसे बाप का प्यारा दिल में बाप को समाया हुआ अनुभव करते हैं! बाप के लिए हर बच्चा अति प्यारा सर्व का प्यारा है। आप सभी बच्चों का सर्व आत्माओं के प्रति चैलेन्ज है कि हम योगी जीवन वाले हैं। सिर्फ योग लगाने वाले नहीं लेकिन योगी जीवन वाले हैं। जीवन दो चार घण्टे की नहीं होती। जीवन सदाकाल के लिए होती है। तो चलते फिरते कर्म करते योगी जीवन वाले निरन्तर योगी हैं। चाहे योग में बैठते, चाहे कोई भी कर्म करते कर्मयोगी हैं। जीवन का लक्ष्य ही है सदा योगी। ऐसे अपनी योगी जीवन, नेचरल जीवन अनुभव करते हो? बापदादा हर बच्चे के मस्तक में चमकता हुआ भाग्य देखते हैं। क्या देखते हैं? मेरा हर बच्चा स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी है। क्यों? जहाँ स्वमान है वहाँ देहभान आ नहीं सकता। आदि से अन्त तक, अब तक बापदादा ने हर एक बच्चे को भिन्न-भिन्न स्वमान दिये हैं। अगर अभी भी स्वमानों को याद करो और एक-एक स्वमान की माला फेरते जाओ तो अनेक स्वमान स्वरूप बन, स्वमान में लवलीन हो जायेंगे। लेकिन बापदादा को एक बात बच्चों की अब तक भी अच्छी नहीं लगती, वह जानते हो कौन सी? जब कोई भी बच्चा कहता है कि हमें स्वमान में स्थित होने में कभी-कभी मेहनत लगती है, चाहते हैं लेकिन कभी-कभी मेहनत लगती है तो बाप सर्वशक्तिवान बच्चों की मेहनत नहीं देख सकते। क्योंकि जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। जहाँ मेहनत है वहाँ मोहब्बत में कमी है।

तो आज अमृतवेले बापदादा ने चारों ओर के ब्राह्मणों के पास चाहे देश चाहे विदेश में चक्कर लगाया तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे स्वमान में बैठे हैं, सोच रहे हैं कि मैं बापदादा के दिलतख्त नशीन हूँ, सोच भी रहे हैं, स्वमान में स्थित होने का पुरूषार्थ भी कर रहे हैं लेकिन कमी क्या देखी? स्वमान याद है, सोच रहे हैं, लेकिन स्वमान स्वरूप बन, अनुभवी मूर्त बन अनुभव के अथॉरिटी स्वरूप बनने में कमी दिखाई दी क्योंकि अथॉरिटी तो बहुत है लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी है और यह स्वमान की अनुभूति आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। तो मेहनत कर रहा है लेकिन अनुभव स्वरूप नहीं बना। तो बापदादा ने यह देखा कि बैठते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अनुभव स्वरूप कोई-कोई हैं। अनुभव में किसी भी प्रकार का देह अभिमान जरा भी अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो अनुभव स्वरूप बन जाना, कर्म करते भी कर्मयोगी के अनुभव स्वरूप में खो जाना, इसकी अभी और आवश्यकता है। स्वरूप में बन जाना। हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना, चाहे ज्ञान, योग, धारणा और सेवा, चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप बनना। अनुभवी को माया भी हिला नहीं सकती इसलिए बापदादा आज सभी बच्चों को अनुभवी स्वरूप में देखने चाहते हैं। सुनने और सोचने में फर्क है लेकिन अनुभवी स्वरूप बनना, जो सोचा, जिस स्वमान में स्थित रहने चाहे उसके अनुभव स्वरूप में स्थित हो जाए। अनुभव को कोई भी हिला नहीं सकता क्योंकि स्वमान और देहभान, जहाँ स्वमान स्वरूप है, स्वमान के अनुभव में स्थित है वहाँ देह भान आ नहीं सकता। जैसे देखो अंधकार है लेकिन स्विच आप ऑन करो रोशनी का तो अंधकार ऑटोमेटिकली गायब हो जाता। अंधकार को मिटाने में, अंधकार को भगाने में मेहनत नहीं करनी पड़ती। ऐसे ही जब स्वमान के सीट पर अनुभव का स्विच ऑन होता तो किसी भी प्रकार का देहभान, भिन्न-भिन्न प्रकार के देह भान भी हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार के बाप ने स्वमान भी दिये हैं। स्वमान को जानते हैं, पुरूषार्थ भी करते हैं लेकिन अनुभव का पुरूषार्थ करना और अनुभवी स्वरूप बनना उसमें अन्तर है इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। तो बापदादा को अब समय प्रमाण बाप समान बनने का लक्ष्य सम्पन्न करने समय यह मेहनत करना अच्छा नहीं लगता, हर एक अपने को चेक करो कि मैं कर्मयोगी जीवन वाला हूँ? जीवन नेचरल और सदाकाल की होती है, कभी-कभी की नहीं। ऐसा अनुभवी स्वरूप बनाओ जो लक्ष्य है योगी जीवन का, जो लक्ष्य है अनुभवी मूर्त बनने का वह लक्ष्य सम्पन्न है? सदा मस्तक से चमकती हुई लाइट खुद को भी अनुभव हो, खुद भी उस स्वरूप में स्थित हो, स्मृति स्वरूप हो, स्मृति करने वाला नहीं स्मृति स्वरूप हो और स्मृति स्वरूप है या नहीं, उनका प्रमाण यह है कि जहाँ स्मृति के अनुभवी स्वरूप हैं वहाँ अपने में समर्थी हर कार्य करते हुए भी अनुभव होगी। कार्य भिन्न-भिन्न होंगे लेकिन अनुभव स्वरूप की स्थिति भिन्न-भिन्न नहीं हो।

तो आज बापदादा ने देखा कि मेहनत क्यों करनी पड़ती? अनुभव स्वरूप बनने का नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार देखा। तो बापदादा का हर एक बच्चे से जिगरी प्यार है तो प्यार वाले की मेहनत देखी नहीं जाती। चाहे किसी भी सबजेक्ट में मेहनत करनी पडती है, कभी-कभी शब्द यूज करना पड़ता है, इसका कारण है अनुभवी स्वरूप बनने की कमी। पुरूषार्थी है लेकिन स्वरूप नहीं बने हैं। एक सेकण्ड में चार ही सबजेक्ट में अपने स्वमान के अनुभवी स्वरूप की अनुभूति होनी चाहिए। जो देह अभिमान नजदीक आ नहीं सके। जैसे रोशनी के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता। निकालना नहीं पड़ता, नेचरल जहाँ अंधकार है वहाँ रोशनी कम है या नहीं है। तो सबसे बड़े में बड़ी अथॉरिटी अनुभव गाया हुआ है। अनुभव को हजारों लोग बदलने चाहे, बदल नहीं सकते। जैसे आप सबने चीनी का अनुभव करके देखा है कि वह मीठी होती है, अगर हजारों लोग आपको बदलने चाहे, बदल सकते हो? तो जो भी सबजेक्ट हैं, चाहे ज्ञान की, चाहे योगी की, चाहे धारणा की, चाहे सेवा की, किसी में भी चार में से एक में भी मेहनत लगती है, मिटाने की, सेवा में भी सफलता, धारणा में भी स्वभाव परिवर्तन की, योग में भी अचल रहने की, योगी जीवन की अनुभूति करने की, जहाँ मेहनत है या कभी-कभी कहते हो, इसका अर्थ है उस सबजेक्ट में आप अनुभवीमूर्त नहीं बने हो। अनुभव कभी-कभी नहीं होता, नेचरल नेचर होती है। तो अभी सुना मेहनत करने का कारण क्या? जिस भी समय आपको अनुभव होगा कि जब अनुभव की सीट पर सेट होते हो, किसी भी वरदान के स्वरूप में अनुभवी बन अनुभव करते हो तो उस समय मेहनत करनी होती है? नेचरल अनुभूति होती है। इसलिए अभी समय प्रमाण सब अचानक होना है। बताके नहीं होना है। जैसे अभी प्रकृति का अचानक बातों का खेल चल रहा है, आरम्भ हुआ है अभी। नई-नई बातें अचानक अर्थक्वेक हुआ, थोड़े समय में लाखों आत्मायें चली गई, क्या उन्हों को पता था कि कल हम होंगे या नहीं? ऐसे कई एक्सीडेंट, भिन्न-भिन्न स्थान पर अचानक होना आरम्भ हो गया है। इकट्ठे के इकट्ठे एक समय अनेकों की टिकेट कट रही है तो ऐसे समय में आप एवररेडी हैं? यह तो नहीं कहेंगे कि पुरूषार्थ कर रहा हूँ? एवररेडी अर्थात् कोई भी वरदान या स्वमान का संकल्प किया और स्वरूप बना इसलिए बापदादा आज इस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि किसी भी वरदान को फलीभूत कर वरदान या स्वमान के स्वरूप के अनुभवी बन सकते हो? बनना ही पड़ेगा। कोशिश कर रहा हूँ, अगर कोशिश भी करनी है तो अभी से क्योंकि बहुत समय का अभ्यास समय पर मदद देगा। पुरूषार्थी नहीं, अनुभवी क्योंकि अनुभव की अथॉरिटी आप सबको आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। जैसे देह भान के अनुभवी है, तो देहभान को याद करना पड़ता है क्या कि मैं फलाना हूँ! मानों आपका नाम देह पर पड़ा, तो देहभान हो गया ना, मैं फलाना हूँ, अगर हजारों लोग भी आपको कहे कि आप फलाना नहीं हो, आप यह हो, नाम बदली करके कहे तो आप मानेंगे?भूलेंगे अपना नाम! जन्म लेते जो नाम पड़ा वह देहभान कितना पक्का और नेचरल रहता है। कोई और को भी आपके नाम से बुलायेंगे, आपको नहीं बुलाना है, लेकिन आपके नामधारी को बुला रहे हैं, आपका कान नाम सुनते अटेन्शन जायेगा मुझे बुला रहा है। तो देहभान इतना पक्का हो गया है। ऐसे देही अभिमानी, स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी इतना पक्का हो। आप कहते हो ना, हमारा जीवन परिवर्तन है तो परिवर्तन क्या किया? देह भान से स्वमान, स्वराज्य अधिकारी बनें। तो चेक करो ज्ञान स्वरूप बना हूँ? या ज्ञान सुनने और सुनाने वाला बना हूँ? ज्ञान अर्थात् नॉलेज, नॉलेज का प्रैक्टिकल रूप है, नॉलेज को कहते हैं, नॉलेज इज लाइट, नॉलेज इज माइट, तो ज्ञान स्वरूप बनना अर्थात् जो भी कर्म करेंगे वह लाइट और माइट वाला होगा। यथार्थ होगा। इसको कहा जाता है ज्ञान स्वरूप बनना। ज्ञान सुनाने वाला नहीं, ज्ञान स्वरूप बनना। योग स्वरूप का अर्थ है कर्मेन्द्रियों जीत बनना। हर कर्मेन्द्रिय पर स्वराज्यधारी। इसको कहा जाता है योग अर्थात् युक्तियुक्त जीवन। ऐसे अगर ज्ञान योग का स्वरूप है तो हर गुण की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। जहाँ ज्ञान, योग है, योगयुक्त है वहाँ गुणों की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। सेवा हर समय ऑटोमेटिक होगी। समय अनुसार चाहे मन्सा सेवा करे, चाहे वाचा करे, चाहे कर्मणा करे, चाहे स्नेह सम्बन्ध में करे, सेवा भी हर समय अखण्ड चलती रहेगी। सम्बन्ध सम्पर्क में भी सेवा होती है। मानो कोई आपके भाई या बहन ब्राह्मण परिवार में थोड़ा सा मायूस है, थोड़ा पुरूषार्थ में डल है, कोई संस्कार के वश है, ऐसे सम्पर्क वाली आत्मा को आपने उमंग-उत्साह दिलाया, सहयोग दिया, स्नेह दिया, यह भी सेवा का पुण्य आपका जमा होता है। गिरे हुए को उठाना यह पुण्य गाया जाता है। तो सम्बन्ध और सम्पर्क में भी सेवा करना यह सच्चे सेवाधारी का कर्तव्य है। सेवा मिले या सेवा दी जाए तो सेवा है, वह नहीं। स्वयं मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्पर्क सम्बन्ध में सेवा ऑटोमेटिकली होती रहे। कई बार बापदादा ने देखा कि सम्पर्क में कोई-कोई बच्चा देखता भी है कि इनका स्वभाव संस्कार थोड़ा जो होना चाहिए वह नहीं है, लेकिन यह तो है ही ऐसा, यह बदलना नहीं है, इसकी सेवा करना टाइम वेस्ट है, ऐसा संकल्प करना क्या यथार्थ है? जब आप मानते हो कि हम प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाने वाले हैं, प्रकृति को और वह मनुष्यात्मा है, ब्राह्मण कहलाता है लेकिन संस्कार वश है, जब प्रकृति का संस्कार बदलने की चैलेन्ज की है तो वह तो प्रकृति से पुरूष है, आत्मा है। आपके सम्बन्ध में है। तो सच्चा सेवाधारी अपने सेवा का पुण्य कमाने का शुभ भावना अवश्य रखेगा। यह तो है ही ऐसा, यह बदल ही नहीं सकता, यह शुभ भावना नहीं, यह सूक्ष्म घृणा भावना है, फिर भी अपना भाई बहन है, फिर भी मेरा बाबा तो कहता है ना! तो सच्चे सेवाधारी सेवा के बिना शुभ भावना देना इस सेवा में भी पुण्य कमायेंगे। गिरे हुए को गिराना नहीं, उठाना। सहयोग देना, इसको कहेंगे सच्चे सेवाधारी, पुण्य आत्मा। तो ऐसे अपने को चेक करो इतना सेवा का उमंग-उत्साह है? इसको कहा जाता है अनुभव के अथॉरिटी वाला। तो अभी बापदादा यही चाहता है, अनुभवी मूर्त बनो, अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ।

तो चार ही सबजेक्ट में जो अपने को अनुभवी स्वरूप बन अनुभव के अथॉरिटी को कार्य में लगायेंगे, जो कमी हो उसको सम्पन्न करेंगे, इतना अटेन्शन देंगे अपने पर वह हाथ उठाओ। मन का हाथ उठा रहे हो ना! शरीर का हाथ नहीं, मन का हाथ। उठाओ। मन का हाथ उठाना क्योंकि बापदादा शिवरात्रि पर रिजल्ट लेंगे। मन में कोई का भी कमी का संस्कार अपनी शुभ भावना को कम नहीं करे। उसका संस्कार तो ढीला है लेकिन वह इतना तो पावरफुल है जो आपकी शुभ भावना को कम कर लेता है इसलिए जैसे ब्रह्मा बाप ने क्या नहीं देखा, क्या नहीं किया, जिम्मेवार होते फिर भी अन्त में शुभ भावना, शुभ कामना के तीन शब्द सभी को शिक्षा देके गये। याद है ना! तीन शब्द याद हैं ना! स्वयं भी निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी इसी स्थिति में अव्यक्त बनें, किसी को भी कर्मभोग की फीलिंग नहीं दिलाई, किसने समझा कि कर्मभोग समाप्त हो रहा है!क्या हो गया? अव्यक्त हो गया। ऐसे ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता भव का वरदान जो बाप ने करके दिखाया, फॉलो ब्रह्मा बाप। ब्रह्मा बाप से प्यार रहा, अभी भी चाहे साकार में नहीं देखा लेकिन अव्यक्त बाप के रूप में भी स्नेह सबका है। बापदादा दोनों से स्नेह में देखा गया है कि स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी पास हैं। स्नेह ही चला रहा है। चाहे धारणा नहीं भी हो, कोई भी सबजेक्ट में कमी हो, लेकिन स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी सभी पास हैं। स्नेह चला रहा है। आप सभी क्यों आये हैं?किस विमान में आये हो? स्नेह के विमान में पहुंचे हो। और बापदादा का भी लास्ट बच्चे से भी प्यार है। कैसा भी है लेकिन प्यार में पास है क्योंकि बाप का हर बच्चे के प्रति दिल का प्यार है। चाहे कैसा भी है लेकिन मेरा है। जैसे आप कहते हो मेरा बाबा, तो बाप क्या कहते हैं? मेरे बच्चे हैं। ऐसी शुभ भावना आपस में परिवार की भी होना आवश्यक है। स्वभाव नहीं देखो, बाप जानते हैं, भाव स्वभाव है, लेकिन भाव स्वभाव, प्यार को खत्म नहीं करे, सम्बन्ध को खत्म नहीं करे, कार्य को सफल कम करे यह राइट नहीं। परिवार है। कौन सा परिवार है? प्रभु परिवार, परमात्म परिवार। इसमें कोई भी कारण से प्यार की कमी नहीं होनी चाहिए। ऐसे है? है प्यार की कमी? प्यार अर्थात् शुभ भावना जरूर हो। कैसा भी है, परमात्म परिवार है। जिसने माना कि मैं प्रभु परिवार का हूँ, तो परिवार अर्थात् प्यार। अगर परिवार में प्यार नहीं तो परिवार नहीं। इसलिए आज क्या पाठ पढ़ा? पक्का किया? हर आत्मा से शुभ भावना, शुभ भाव। यह परमात्म परिवार एक से एक समय ही होता है, इतना बड़ा परिवार परमात्मा के सिवाए और किसका हो ही नहीं सकता। तो चेक करना क्योंकि यह भी पुरूषार्थ में विघ्न पड़ता है। तो विघ्न मुक्त होंगे तभी अनुभवी बन अनुभव के अथॉरिटी द्वारा सभी को अनुभवी बनायेंगे। अच्छा।

आज जो पहली बार आये हैं वह उठके खड़े हो। हाथ हिलाओ। बापदादा पहले बारी आने वालों को विशेष मुबारक दे रहे हैं क्योंकि टूलेट के बजाए लेट में भी आ तो गये। और बापदादा सभी आने वालों को यह खुशखबरी सुनाते हैं कि अगर देरी से आने वाले भी तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला का पुरूषार्थ कर आगे बढ़ने चाहे तो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा आगे जा सकते हो। लेकिन तीव्र पुरूषार्थ। साधारण पुरूषार्थी नहीं। हर बारी बापदादा पहले बारी आने वालों को देख खुश भी होते हैं और सभी आने वाले को परिवार, सारा ही परिवार आपको देख करके खुश होते हैं। आ तो गये हैं, कुछ न कुछ वर्सा लेने के अधिकारी तो बनेंगे इसलिए बापदादा भी कहते हैं भले पधारे, बाप के बिछुडे हुए बच्चे भले पधारे। अच्छा। बैठे जाओ। अच्छा।

सेवा का टर्न - राजस्थान और इन्दौर का है:- अच्छा पहले इन्दौर वाले हाथ उठाओ। अभी राजस्थान वाले हाथ उठाओ। अच्छा। दोनों ने अपनी सेवा का पार्ट अच्छा बजाया है। बापदादा ने देखा है कि यह सेवा का चांस सभी उमंग-उत्साह से करते भी हैं और कराते भी हैं। सेवा का यह पार्ट इन 10-15 दिन में भिन्न-भिन्न कमाई का साधन है। एक फायदा यह है कि सेवा का मेवा हर एक का पुण्य जमा होता है। दूसरा फायदा यहाँ मधुबन का ज्ञान का वायुमण्डल, बड़े परिवार का वायुमण्डल, स्नेह का पुरूषार्थ में भी बल मिलता है। क्योंकि वायुमण्डल वायबे्रशन और ज्ञान स्नान एक बारी तीर्थो पर स्नान करने जाते हैं तो अपना बहुत पुण्य मानते हैं और यहाँ जितने दिन भी रहते हो उतने दिन ज्ञान स्नान, ज्ञान के वचन कानों में पड़ते रहते हैं। और योगी आत्मायें, प्रभु प्यार वाली आत्मायें उनका वायबे्रशन भी आटोमेटिकली मिलता रहता है। एकान्त के वायुमण्डल का लाभ मिलता है। अगर कोई अपने काम में और पढ़ाई में फायदों में अपने को बिजी रखता है तो उनको थोड़े दिनों में अपना भविष्य ऊंचा बनाने का चांस मिलता है। इसलिए यज्ञ का काम भी चलता और आने वालों का पुण्य भी जमा होता। दोनों ही ज़ोन आये हैं लेकिन बापदादा ने देखा कि आजकल के वायुमण्डल में सेवा का उमंग मैजारिटी सभी जॉन में है। इन्दौर भी सेन्टर बढ़ा भी रहे हैं और सन्देश देकर बाप के बना रहे हैं। राजस्थान भी ऐसे ही आगे बढ़ रहे हैं। आजकल की लहर सेवा का उमंग सभी में है और बापदादा भी इशारा दे रहे हैं कि जिस भी ज़ोन वाले हों, जहाँ से भी आये हो, शिवरात्रि बाप का जन्म भी है, सेवा का आरम्भ भी है और विशेष आत्माओं का भी जन्म दिन है। ऐसे जैसे कोई आजकल के गवर्मेन्ट का नामीग्रामी का जन्म होता है तो उस जन्म को धूमधाम से मनाते हैं, जैसे गांधी बापू जी का जन्म दिन कितना मनाते हैं, कोशिश करते हैं कि ऐसे दिन एक-एक को भारत का यादगार झण्डी या झण्डा लहराना चाहिए। ऐसे यह विशेष जन्म महारथियों का भी है, बाप का भी है। बापदादा का भी है। तो ऐसे दिन पर हर एक को क्या मनाना है? बापदादा का यह संकल्प है कि इस शिवरात्रि पर या एक सप्ताह पहले या एक सप्ताह पीछे इन दिनों में अपने परिचित, अपने मोहल्ले वाले, अपने दफ्तर के कार्य करने वाले साथी, इन्हों को सन्देश जरूर दो कि अगर बाप से वर्सा लेना है तो ले लो, यह सन्देश जरूर दे दो। आपके मोहल्ले में कोई ऐसा नहीं रहे जो कहे कि हमको अभी लास्ट में सन्देश क्यों दिया। थोड़ा पहले तो देते तो हम भी कुछ बना तो लेते, नहीं तो लास्ट में तो सिर्फ अहो प्रभू कहते रहेंगे। आप आये हमने नहीं पहचाना। उल्हना देते रहेंगे। तो इस शिवरात्रि पर किसी भी विधि से ऐसा प्रोग्राम आपस में बनाओ जो पहचान वालों को सन्देश मिल जाये। फिर रहा उन्हों की तकदीर। लेकिन आपने अपना कार्य पूरा किया। तो हर एक को ऐसे किसी भी रूप में उन्हों को सन्देश पहुंच जाए फिर जैसी नेचर, जैसा स्वभाव उसी प्रमाण अपने-अपने तरीके से सन्देश जरूर दो। बड़ा दिन है, खुशखबरी आपको सुनाते हैं। तो यह उल्हना निकल जाए। अभी भी प्रोग्राम करते हो तो क्या कहते हैं, ऐसे भी कहते हैं अभी भी, कि हमको तो अभी पता पड़ा है। आपने पहले क्यों नहीं किया? इसलिए बच्चों का, बापदादा का जन्म दिन है, जो पुराने हैं वह अपना जन्मदिन कौन सा मनाते हैं? शिवरात्रि मनाते हैं ना! तो इतनों के जन्म दिन पर यह सन्देश देने की मिठाई बांटों। ठीक है!बांटेंगे! हाथ उठाओ। कोई भी वंचित नहीं रहे, किसी भी विधि से, फंक्शन करो या पोस्ट द्वारा भेजो, लेकिन कोई रहे नहीं। किसी भी साधन से उनको सन्देश जरूर पहुंचाओ। वह आप आपस में राय कर तीन चार तरीके बनाओ। वर्ग वाले भी अपने सभी कनेक्शन वालों को शिवरात्रि के महत्व का सन्देश जरूर दें। पसन्द है? अच्छा।

गांव गांव में भी, जैसे गांव में रहने वाले ब्राह्मण तो बने ही हैं कोई न कोई, उनको अपने गांव में किसी भी रीति से चाहे पर्चा भेजो, चाहे सम्मुख जाओ लेकिन सन्देश जरूर दो। घर-घर में मालूम हो कि यह शिवरात्रि क्या है। इसमें देखेंगे कौन सा ज़ोन कितना नम्बर लेता है। हिसाब रखना। बापदादा रिजल्ट देखेंगे, कितनों को पर्चे बांटे, कितनों से प्रैक्टिकल मिले, सब रिजल्ट निकालना। हर एक को बिजी रहना है, कोई भी फ्री नहीं रहे। अच्छा। इन्दौर और राजस्थान। दोनों की विशेषता ब्रह्मा बाप के लाडले। ब्रह्मा बाप द्वारा इन्दौर का फाउण्डेशन पड़ा और राजस्थान में ब्रह्मा बाप या बापदादा द्वारा पहला म्यूजियम बना। तो दोनों ही ब्रह्मा बाबा के, बाप के तो हैं ही लेकिन विशेष ब्रह्मा बाप के लाडले हैं। तो ब्रह्मा बाप की छत्रछाया दोनों के ऊपर सदा रहती है। है तो सभी ज़ोन पर लेकिन इन्हों की विशेषता है। ब्रह्मा बाप जब सन्देशी जाती है और एडवांस पार्टी इमर्ज होती है तो उन्हों से यह पहली शुरू-शुरू की बातें बहुत रूहरिहान में करते हैं। आप सबके महारथी जो स्थापना के निमित्त बने हैं, वह बहुत साथी एडवांस पार्टी में निमित्त बने हैं तो उन्हों से बापदादा आदि की रूहरिहान बहुत करते हैं। और बापदादा और एडवांस पार्टी दोनों का एक ही संकल्प है कि अब कब गेट खोलने आयेंगे। क्योंकि अकेले एडवांस पार्टी भी खोल नहीं सकती, बापदादा भी खोल नहीं सकते, साथ खोलेंगे। तो पूछते हैं एडवांस पार्टी वाले और बापदादा भी कहते हैं कि आखिर भी सभी निराकारी फरिश्ते स्वरूप में कब एवररेडी होंगे! आजकल प्रकृति भी बहुत पुकारती है, बोझ बहुत बढ़ता जाता है। मन का भी, शरीरों का भी। इसलिए सभी आपका आवाह्न कर रहे हैं। अब थोडा-थोडा अपना एवररेडी का नज़ारा दिखाओ। वह नज़ारा है ज्यादा में ज्यादा समय या फरिश्ता रूप या निराकारी रूप, प्रैक्टिकल में प्रत्यक्ष करो अपना। गुप्त पुरूषार्थ करते हैं लेकिन अभी प्रत्यक्ष दिखाई दे, आपके मस्तक से लाइट का प्रकाश अनुभव हो। नयनों से रूहानियत की शक्ति अनुभव हो। मुख से, चेहरे से मधुरता, मुस्कुराता चेहरा अनुभव हो। तारीख पूछेंगे तो हर एक सोचेगा क्योंकि संगठन रूप में जो भी महावीर हैं, तीव्र पुरूषार्थी हैं उनको संगठन रूप में जाना है। आगे पीछे नहीं जाना है। पहले यहाँ एवररेडी का रूप प्रत्यक्ष होना है, जिससे प्रत्यक्षता हो बापदादा की, कार्य की। तो अभी तीव्र पुरूषार्थ करो, एक दो को सहयोग दो, आगे बढ़ाओ। कमज़ोर को सहारा दो। ऐसा संगठन बनाओ। अच्छा।

ग्राम विकास विंग, साइंस इंजीनियर विंग और स्पार्क:- अपना परिचय अच्छी तरह दे रहे हैं। अच्छा तीनों ही वर्ग का समाचार बापदादा ने सुना है। तो हर एक वर्ग जो भी आये हो उन्होंने आपस में अच्छी प्रगतिशील मीटिंग की है और मीटिंग में अपना-अपना आगे का प्लैन भी बनाया है। बापदादा खुश है कि आजकल वर्ग वाले सेवा में हर एक नम्बरवन लेना चाहते हैं। यह तीव्र पुरूषार्थ का उमंग उत्साह देख बापदादा सभी वर्गों को खास इन तीनों वर्गों को पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। प्लैन अच्छे बनाये हैं। अच्छे बनाये हैं और उमंग का बनाया है। इसलिए बापदादा तीनों को कहते हैं जो प्लैन बनाये हैं वह अभी जल्दी से जल्दी प्रैक्टिकल में लाओ। बापदादा को पसन्द है। सिर्फ बीच-बीच में आजकल तो फोन सिस्टम भी है, आपस में कान्फ्रेन्स करने की। तो हर एक वर्ग का जो विशेष निमित्त है, वह बीच-बीच में फोन कान्फ्रेन्स करके भी उमंग उत्साह बढ़ाओ। क्योंकि अपने-अपने शहर में उमंग उत्साह दिलायेंगे तो जैसे मीटिंग में उमंग उत्साह आता है विशेष। ऐसे बीच-बीच में रिजल्ट पूछ उन्हों को भी उमंग में लाओ। अच्छा है। यह बोर्ड पब्लिक के तरफ करो। नेचर की भी आजकल सभी को चिंता है। तो आप विशेष सन्देश दो, मन की नेचर द्वारा प्रकृति की नेचर को कैसे सुधार सकते हैं। प्लैन बनाया है लेकिन अभी हर जगह मिलकर प्रोग्राम द्वारा एनाउन्स करो, छोटे-छोटे प्रोग्राम भी बनाओ लेकिन आवाज फैलाओ। अभी जो भी प्रोग्राम चल रहे हैं बापदादा ने देखा कि हर एक प्रोग्राम में आवाज फैलाने का तरीका बहुत अच्छा बनाया है और भी जो कर रहे हैं, उसमें सबके निमित्त बने हुए सेवाधारियों की राय लेकर और प्रोग्राम में चार चांद और लगाओ। जहाँ भी जायें विशेष या छोटे-छोटे स्थान में भी आवाज हो, ब्रह्माकुमारियां कुछ प्रोग्राम कर रही हैं। शान्ति में नहीं बैठो, अभी उमंग उत्साह से आवाज फैलाओ। अभी नजदीक आने का समय है। वायुमण्डल अभी वैराग्य वृत्ति का नवीनता देखने और सुनने का इच्छुक है। एक दो में राय कर और उत्साह उमंग का चारों ओर आवाज फैलाओ। मुख्य जो स्थान हैं, देश हैं उसमें वर्तमान समय इकठ्ठा सन्देश पहुंचे, हर मुख्य स्थान पर अखबारों में आवे, यह हुआ, यह हुआ... यह कर रहे हैं, यह कर रहे हैं... चाहे रेडियो, चाहे टी.वी. सब तरफ से आवाज फैलाओ। अपने-अपने एरिया में भी टी.वी. द्वारा रेडियो द्वारा आवाज फैला सकते हो। अच्छा। बहुत-बहुत मुबारक हो, वर्ग आजकल उत्साह में कर रहे हैं, और करते रहना। अच्छा।

सिंधी ग्रुप:- सिंधी ग्रुप वाले हाथ उठाओ। यह उमंग सेवा का तरीका बहुत अच्छा बना लिया है। बापदादा विशेष निमित्त बनने वाले उन्हों को मुबारक देते हैं क्योंकि इसी कारण सभी को सन्देश तो मिल गया। आये कितने भी लेकिन परिचय कितनों को मिला। और सभी औरों को भी यह आपका साधन अच्छा लगेगा। सेवा भी हो गई और मनाना भी हो गया। डबल काम हो गया और जो भी साथ में आये हैं उन्हों की दुआयें भी मिल जायेंगी। अच्छा है। बाप को, शिवबाबा को अपने अवतरण का स्थान कौन सा पसन्द आया? सिन्ध पसन्द आई ना! तो भाग्य है ना! अवतरण के स्थान का महत्व कितना होता है! जो भी धर्म पिता आये हैं उन्हों के जन्म स्थान का कितना यादगार रहता है। तो सिन्ध जन्म भूमि उसका भी बहुत महत्व है। अभी यह प्लैन बना रही है, जनक प्रोग्राम बना रही है, अभी आप भी अपने-अपने पहचान वाले को जो वहाँ बैठे हैं, अगर परिचय है तो उन्हों को समाचार सुनाओ कि अभी यह स्थान अपना स्थान लिया है। छोटे से बड़ा हो जायेगा। लेकिन बापदादा यह अटेन्शन दिलाते हैं कि जिस समय जाओ उस समय के वायुमण्डल को जानकर फिर कदम उठाना क्योंकि यह इन लोगों के बदलने में देरी नहीं लगती है। बाकी अच्छा है, जहाँ जन्म स्थान है वहाँ प्रत्यक्षता होनी ही चाहिए। चाहे कोई भी धर्म वाले हों लेकिन है तो एक ही बाप के बच्चे। बाप का सन्देश सुनने के लिए सभी का हक लगता है। तो बापदादा आपका यह प्लैन देखकर खुश है। सभी को जो भी आये हैं उन सबको बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो।

डबल विदेशी- बापदादा ने देखा कि डबल विदेशी चांस लेने में बहुत होशियार हैं। कहाँ से भी पहुंच भी जाते और अपने सर्विस के प्लैन अच्छे-अच्छे बनाके संगठन भी अपना मजबूत कर लेते। स्थान बहुत अच्छा ढूंढा है। बाप से भी मिलना, परिवार से भी मिलना और अपनी प्रोग्रेस भी करना। यह बापदादा को पसन्द है। विदेशी ऐसा सैम्पुल बनके दिखाओ जो जिस देश में निमित्त हो उस देश में जो भी सेन्टर हो, जितने भी सेन्टर हो वह निर्विघ्न बनने का एक्जैम्पुल बनाके दिखाओ। नम्बर लो। इन्डिया के ज़ोन भी पुरूषार्थ कर रहे हैं, अभी एनाउन्स नहीं हुआ है लेकिन आप नम्बर ले लो। जो भी ले। हिम्मत अच्छी है और सहयोग भी अच्छा मिला हुआ है। बापदादा ने देखा कि जो बनाते हैं उसकी जो पैकिंग करते हैं, इन्डियन भाषा में कहा जाता है पीठ करते हैं। कनेक्शन जोड़के किसी भी साधन से कनेक्शन में आगे बढ़ाते हैं। अच्छा है। उमंग उत्साह की लहर फैलाते रहते हो और हर साल कुछ न कुछ विशेषता एड भी करते। इसलिए बापदादा पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं।

अभी इन्दौर क्या करेगा? कोई एक्जैम्पुल नम्बरवन बनाके दिखायेगा, चाहे इन्दौर करे चाहे राजस्थान करे, नम्बर ले लो। है हिम्मत। है ना हिम्मत? बापदादा को साथी तो बनाया ही है। तो बापदादा साथ है सिर्फ निमित्त बनना है। अच्छा।

बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख रहे हैं। हर एक बच्चे में किसी न किसी सबजेक्ट में विशेषता समाई हुई है इसलिए बापदादा इन्डिविज्युअल एक-एक बच्चे को होवनहार विजयी स्वरूप में देख रहे हैं क्योंकि सबको साथी बनके चलना है। साथ है, साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ में राज्य करेंगे। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख देख खुश हो गीत गाते वाह बच्चे वाह! हर बच्चे के दिल में बाप है और बाप के दिल में हर बच्चा है। और यहाँ इतना परिवार मधुबन निवासी देखकर यह भी खुशी होती है वाह मधुबन वाह! सबका एशलम मधुबन है ही है इसलिए मधुबन में भागकर आ जाते हैं। अब बाप की जो आशा है वह जल्दी से जल्दी पूर्ण करना है। चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना ही है। बापदादा देश विदेश चारों ओर के बच्चे यहाँ बैठे देख रहे हैं। सभी कैसे देख देख हर्षित हो रहे हैं। यह साधन, यह साइंस इसी समय प्रोग्रेस में जा रही है, नई नई इन्वेन्शन दुनिया के हैं लेकिन आपके फायदे के साधन अच्छे अच्छे निकाल रहे हैं। दूर होते भी साथ हैं। तो साइंस वालों को भी मुबारक है जो साधन तो बनाये हैं। अच्छा। सभी बच्चों को देश विदेश के सभी बच्चों को बहुत-बहुत दिल का प्यार और याद स्वीकार हो और विशेष ऐसे विशेष बच्चों को नमस्ते।

दादियों से:- उमंग उत्साह भी अच्छा है और प्रबन्ध भी मिल रहा है। यह साधन आपके समय ही निकले हैं, आपको ही सुख मिल रहा है। वह विनाश की बातें ही करते और आप फायदा ले रहे हो। अच्छा है।

मोहिनी बहन मुम्बई हॉस्पिटल में हैं, उन्हों ने विशेष याद भेजी है:- अभी लग गई है ना ठीक करने में, तो ठीक करके ही आवे। याद तो आती है लेकिन तबियत को भी साथ चलाना है। बापदादा को भी याद कर रही है, बापदादा के पास पहुंच रहा है। उसको विशेष याद प्यार भी दे रहे हैं।

दीदी निर्मलशान्ता से:- आपकी हिम्मत शरीर को चला रही है। बाप मददगार है और आपकी हिम्मत है।

रतनमोहिनी दादी से:- उड़ा भी रहे हैं, उड़ भी रहे हैं।

शान्तामणि दादी से:- ठीक है, खुश है। दृष्टि ले रही है बहुत अच्छी।

तीनों भाईयों से:- तीनों ही मिलके शिवरात्रि का प्लैन बनाना। जो भी विशेष स्थान हैं उसमें एक ही समय एक ही जैसा अपना-अपना करें, लेकिन मुख्य स्थानों में एडवरटाइज करो। सभी स्थानो पर हो। क्योंकि मुख्य स्थान तो कहाँ न कहाँ प्रबन्ध करके कर सकते हैं जैसे एक ही समय बड़े प्रोग्राम किये ना ऐसे शिवरात्रि का प्रोग्राम जगह जगह पर हो और सभी तरफ का इकठ्ठा करके जैसे पहले दिखाया वैसे दिखाओ।

मद्रास का प्रोग्राम बहुत अच्छा हुआ है:- यह भी आपस में सेवा में कुछ एडीशन करना हो या नवीनता करनी हो तो आपस में मीटिंग करके उसको भी आगे बढ़ा सकते हो। निमित्त हैं, निमित्त बनके काम तो अच्छा कर रहे हो लेकिन फिर भी इसमें एडीशन करनी हो तो कर सकते हो।

निजार भाई से:- अच्छा मुबारक हो। प्रोग्राम तो अच्छा चल रहा है फिर भी आपस में राय करके अगर कुछ एडीशन करनी हो तो एडीशन भी करो, चलाते चलो। जो राय हो वह सुनो, अगर पसन्द आवे तो उसको बढ़ाओ। बाकी अच्छा है। मीटिंग में जो भी राय हो वह दो और बाकी फिर सभी मिलकर फाइनल करने के बाद फिर उसको करके देखो।

डायमण्ड हॉल में नई स्क्रीन लगाई गई है, जिसे बापदादा देख रहे हैं:- सभी खुशी में उड़ रहे हो, यही बापदादा देख रहे हैं कि सभी एक-एक उड़ रहे हैं।