15-03-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘परमात्म प्यार की पात्र आत्मायें दु:खियों को सुख की अंचली दो, व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ बनो और समय को समीप लाओ’’

आज बापदादा अपने चारों ओर के परमात्म प्यारे बच्चों को देख रहे हैं। ऐसे परमात्म प्यारे कोटो में कोई बच्चे हैं क्योंकि इस समय ही परमात्म प्यार का अनुभव कर सकते, सारे कल्प में आत्माओं का प्यार, महात्माओं का, धर्मात्माओं का प्यार अनुभव किया लेकिन परमात्म प्यार सिर्फ अब संगमयुग पर होता है, जो आप सभी बच्चे अनुभव कर रहे हैं। कोई आपसे पूछे परमात्मा कहाँ है? तो क्या जवाब देंगे? मेरे साथ है। मेरे साथ ही रहते हैं। मेरे दिल में ही रहते हैं। ऐसा अनुभव कर रहे हो ना! आप ही जानते हो और आपको ही इस प्यार का अनुभव है कि हमारे दिल में बाप रहते और बाप के दिल में हम रहते। जानते हो कि यह परमात्म प्यार का नशा हमें ही अनुभव करने का भाग्य प्राप्त हुआ है। जब किसी से भी प्यार हो जाता है तो उसकी निशानी क्या होती है? उसकी निशानी है उसके ऊपर कुर्बान होना। तो परमपिता परमात्मा आप बच्चों से क्या चाहते हैं, वह तो आप सब जानते हो। बाप की हर एक बच्चे के प्रति यही चाहना है कि मेरा एक एक बच्चा बाप समान बने। जैसे बाप वैसे बच्चों की भी श्रेष्ठ स्थिति बने। वह श्रेष्ठ स्थिति क्या है? सम्पूर्ण पवित्रता की स्थिति। ऐसी पवित्रता जो स्वप्न में भी अपवित्रता आ नहीं सके। ऐसी सम्पूर्ण पवित्र स्थिति बना रहे हो? जिस सम्पूर्ण पवित्रता में अपवित्रता का नामनिशान नहीं।

वर्तमान समय समीप आने के कारण बापदादा अभी यही इशारा दे रहे हैं कि समय की समीपता अनुसार व्यर्थ संकल्प यह भी अपवित्रता की निशानी है। सारे दिन में यह भी चेक करो कि कोई भी व्यर्थ संकल्प अभिमान का वा अपमान का अपने तरफ खींचता तो नहीं है? क्योंकि चलते चलते अगर बाप की दी हुई विशेषताओं को अपनी विशेषता समझ अभिमान में आते हैं तो यह भी व्यर्थ संकल्प हुआ और मेरेपन के अशुभ संकल्प मैं कम नहीं हूँ, मैं भी सब जानता हूँ, यह मेरा संकल्प ही यथार्थ है, ऊंचा है, यह मेरेपन का अभिमान का संकल्प यह भी सूक्ष्म अपवित्रता का अंश है। तो अपने को चेक करो किसी भी प्रकार का अपवित्रता के व्यर्थ संकल्प का कोई अंश तो नहीं रह गया है? क्योंकि अभी पवित्र दुनिया की स्थापना का समय समीप लाने वाले आप परमात्म प्यारे बच्चे निमित्त हो। तो जो निमित्त आत्मायें हैं उन्हों का वायब्रेशन चारों ओर फैलता है। तो चेक करो किसी भी प्रकार का व्यर्थ संकल्प भी अपने तरफ खींचता तो नहीं है? क्योंकि अभी पवित्र दुनिया, पवित्र राज्य समीप आ रहा है। दु:ख और अशान्ति चारों ओर भिन्न-भिन्न स्वरूप में बढ़ रही है। उसके लिए पवित्रता का वायब्रेशन आवश्यक है। दु:ख अशान्ति का कारण अपवित्रता है। तो अपवित्र आत्माओं को और भक्त आत्माओं को अभी डबल सेवा चाहिए। वाणी की सेवा तो बापदादा ने देखा कि चारों ओर धूमधाम से चल रही है, अपना उल्हना भी निकाल रहे हो। लेकिन अभी आत्माओं को एकस्ट्रा सकाश चाहिए। वह है मन्सा सेवा द्वारा सकाश देना, हिम्मत देना, उमंग-उत्साह देना। तो इस समय डबल सेवा की आवश्यकता है। इसके लिए बापदादा ने कहा कि हर एक बच्चा अपने को पूर्वज समझो। आप इस कल्प वृक्ष का फाउण्डेशन पूर्वज और पूज्य आप आत्मायें हो। बापदादा तो दु:खी बच्चों का आवाज सुनते रहते हैं। आप बच्चों के पास उन्हों के पुकार का आवाज पहुंचना चाहिए। जितना सम्पूर्ण पवित्र आत्मा बनेंगे। बन रहे हैं, बने भी हैं लेकिन साथ-साथ अभी मन्सा सेवा को बढ़ाना है।

आज विश्व में सुख-शान्ति, सन्तोष आत्माओं में कम हो रहा है। तो आप परमात्म प्यार के पात्र आत्माओं को अभी प्यार की, सन्तुष्टता की, खुशी की अंचली देने की आवश्यकता है। दु:खियों को सुख की अंचली देनी है। एक तो मन्सा सेवा द्वारा सकाश दो और दूसरा अपने चेहरे और चलन द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो। अभी जो सेवा कर रहे हो और की है बापदादा खुश है कि सेवा में चारों ओर उमंग-उत्साह है लेकिन अभी एक सेवा रही हुई है। अभी तक यह आवाज तो हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां मनुष्य आत्मा को अच्छा बना देती हैं, यह जो अशुद्ध व्यवहार है, अशुद्ध व्यवहार से मुक्त कर देती हैं, जो गवर्मेन्ट चाहती है यूथ ग्रुप के लिए, वह सेवा बहुत अच्छी करते। लेकिन अभी बाप आया है, परमात्मा आ गया है, परमात्म ज्ञान यह दे रही हैं, मेरा बाप वर्सा देने आ गया है, अभी बाप की तरफ नजर जाने से उन्हों को भी परमात्म प्यार, परमात्मा की आकर्षण आकर्षित करेगी। अच्छा-अच्छा तो हो गया है लेकिन परमात्मा बाप की प्रत्यक्षता आकर्षित कर अच्छा बनायेगी। तो अभी बाप के तरफ पहचान, जिसको याद करते हैं वह ज्ञान, वह वर्सा मिल रहा है तो अभी मन्सा द्वारा बाप के समीप लाओ। अपने चेहरे और चलन द्वारा, आपके नयनों में बाप प्रत्यक्ष हो। तो अभी यह आपस में प्लैन बनाओ।

बापदादा ने देखा जो प्लैन बापदादा ने समय प्रति समय दिया है वह बच्चों ने बड़े विधि पूर्वक, उमंग-उत्साह से किया है, कर रहे हैं, इसकी बापदादा सभी बच्चों को पदम पदम गुणा मुबारक दे रहे हैं। अभी एडीशन करो कि भगवान वर्सा दे रहा है। अभी वर्सा नहीं लिया तो कब लेंगे! बाप को रहम आता है बच्चों का दु:ख, अशान्ति का वायुमण्डल देख करके। और बाप और आप जानते हो कि यह तो अति में जाना ही है। बिना अति के अन्त नहीं होता है। ऐसे समय पर आत्माओं को यह अनुभव कराओ, सिर्फ सुनाओ नहीं, अनुभव कराओ कि भगवान वर्सा दे रहा है। आप सभी भी यही पूछते हो ना कि यह बाप की प्रत्यक्षता कब और कैसे होगी! तो ब्रह्माकुमारियों तक पहुंचे हैं लेकिन ब्रह्माकुमारियों को सिखाने वाला कौन! ब्रह्माकुमारियों का, ब्रह्माकुमारों का दाता कौन! अभी समय को समीप लाना है, समाप्ति करनी है। समाप्ति को समीप लाने वाले कौन हैं? हर एक बच्चा समझता है ना कि मैं ही निमित्त हूँ। बाप ने यह जिम्मेवारी अपने साथ बच्चों को दी है। सन शोज फादर। कोई-कोई जब बाप को जानते, तो देखो आप सबने बाप को जाना तो क्या किया? पहचान लिया, जान लिया, तो बच्चा बन वर्से के अधिकारी बन गये। अभी वर्सा लेने वाली आत्माओं की क्यू लगनी चाहिए। और क्यू रूकी हुई क्यों है? क्योंकि कोई कोई बच्चे अभी व्यर्थ संकल्पों की क्यु में लगे हुए हैं। क्यों, क्या, कैसे, अभी इस समाप्ति में समय देते हैं लेकिन व्यर्थ समाप्त नहीं हुआ है। व्यर्थ समर्थ बनने में रूकावट डालता है।

तो आज बापदादा व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति करने के लिए सभी चारों ओर के बच्चों को हिम्मत दे रहे हैं कि अभी से व्यर्थ को समाप्त कर सदा समर्थ बन समर्थ बनाओ। सिर्फ सन्देश नहीं दो समर्थ बनाओ, समर्थ बनो, समर्थ बनाओ। व्यर्थ का समाप्ति दिवस मनाओ। हो सकता है? जो समझते हैं कि व्यर्थ संकल्प अपने को भी नुकसान पहुंचाते हैं, समय बरबाद करते हैं, चेहरे पर सदा खुशनुमा, खुशकिस्मत का अनुभव कम कराते है। इसलिए अभी समाप्ति का समय समीप लाना है, किसको? आपको ना! जो समझते हैं कि अभी समाप्ति के समय को समीप लाना है, उसके लिए व्यर्थ को समाप्त करना ही है, करना है नहीं, करना ही है, स्वप्न में भी नहीं आवे, संकल्प तो छोड़ो लेकिन स्वप्न में भी नहीं आये, ऐसे हिम्मत वाले बच्चे जो अपने को समझते हैं वह हाथ उठाओ। मन का हाथ उठा रहे हो ना! बांहों का हाथ तो बहुत इजी है लेकिन मन का हाथ उठा रहे हो? जो मन का हाथ उठा रहे हैं वह हाथ उठाओ, मन का हाथ। अच्छा। आज के वी.आई.पी उठो। जो आज विशेष वी.आई.पी आये हैं वह उठो। यहाँ बैठे हैं ना! अच्छा। बापदादा आये हुए वी.आई.पी, वी.आई.पी का अर्थ है जो स्नेही है, सहयोगी है और कर्तव्य जो चल रहा है, उनसे प्यार है, बहिनों से प्यार है, भाईयों से प्यार है, उसको कहते हैं वी.आई.पी अर्थात् स्नेही सहयोगी। अभी क्या बनना पड़ेगा? वी.आई.पी तो हैं और बापदादा खुश है। अभी क्या बनेंगे? एक छोटी सी बात है, बताऊं?बतायें? बापदादा कहते हैं स्नेह बहुत अच्छा है, याद भी करते हैं, बाबा शब्द भी मन से निकलता है। बाकी एडीशन चाहिए एक, वह एडीशन क्या है? सहज योगी की लिस्ट में भी आओ। एक कदम तो उठाया है लेकिन आगे बढ़ने के लिए क्या किया जाता है? एक कदम उठाओ, उससे आगे बढ़ेंगे तो दूसरा कदम भी उठाना पड़ेगा। तो बापदादा की यही आश है स्नेही बच्चों के प्रति, सहयोगी बच्चों के प्रति। तो साथ-साथ सहजयोगी भी बनो। सहजयोगी बन सकते हैं? बन सकते हैं, मुश्किल कुछ नहीं होगा। छोड़ना नहीं पड़ेगा कुछ। और ही योग की शक्ति मदद देगी। आपके कार्य में वृद्धि होगी। तो बापदादा को स्नेही सहयोगी बच्चे याद आते हैं। क्यों याद आते हैं? क्योंकि आप एक एक्जैम्पुल हो। क्योंकि एक बात के लिए लोग घबराते हैं, तो शायद घरबार छोड़ना पड़ेगा। लेकिन आप सब घर में रहते स्नेह और सहयोग में चलते तो आपको देख करके उन्हों में उमंग-उत्साह आयेगा। आपकी सेवा हो जायेगी। अनेकों के तकदीर का ताला खोल सकते हो। पसन्द है? पसन्द है तो हाथ उठाओ। अच्छा। अभी बापदादा एक वरदान देते हैं। आपने हिम्मत रखी तो हिम्मत का फल बहुत मीठा होता है, तो बापदादा यह वरदान दे रहा है कि आप सभी आने वाली नई दुनिया में 21 जन्म सदा खुश रहेंगे। मेहनत नहीं करेंगे। दुनिया की उलझनों में नहीं पड़ेंगे। जो जीवन में चाहिए, तन मन धन सब मिल जायेगा। तन तन्दुरूस्त, मन खुश, धन अथाह यह आपको 21 जन्म की गैरन्टी है। बापदादा को मंजूर है, आप सिर्फ एक बात करो। रोज़ आश्रम में आ नहीं सकते हो तो फोन करो। यह कान का फोन है ना, वह करो। आपके कनेक्शन वाली टीचर जो भी है उससे अपना टाइम फिक्स करो, तो इस समय हम फोन करेंगे और उसमें रोज़ का जो महावाक्य जिसको मुरली कहते हैं, वह वरदान और शुरू का जो होता है आरम्भ, वह सुनो। क्यों? बापदादा क्यों कहते हैं? अगर करना है, तो हाथ उठाओ। अच्छा, आजकल के जमाने के हिसाब से बातें बहुत बदलती जाती हैं। गवर्मेन्ट के कायदे भी बदलने हैं, मनुष्यों की वृत्ति भी बदलनी है। इसके लिए हर एक के जीवन में बातें तो आनी ही हैं, व्यर्थ बातें, तो व्यर्थ को समाप्त करने के लिए समर्थ संकल्प चाहिए। वेस्ट को खत्म करने के लिए बेस्ट संकल्प चाहिए। वह रोज़ सुनने का है वरदान। वरदान जो है वह श्रेष्ठ संकल्प है। जब व्यर्थ आवे तो श्रेष्ठ संकल्प मन को चाहिए। मन खाली नहीं रह सकता है। मन को कुछ न कुछ संकल्प चाहिए। तो व्यर्थ वेस्ट को बेस्ट करने के लिए आपको यह वरदान और स्लोगन और आदि के शब्द यह मन को चेंज करने के लिए चाहिए। यह कर सकते हो? कर सकते हो? कोई करते भी होंगे। क्योंकि बाप को यही आप अनुभवी बन औरों को अनुभवी बनाने में बहुत सेवा कर सकते हैं। अभी समय फास्ट जा रहा है। तो फास्ट समय में आपकी सेवा भी फास्ट होगी। तो बापदादा को आप सब आये, यह खुशी है, बच्चों को देखा चाहे कभी कभी आने वाले हैं लेकिन हैं तो बच्चे ना। तो बच्चों को बाप तो देखेगा। इसलिए आप सिर्फ थोड़ा समय जब अमृतवेले उठते हो तो भले बेड पर लेटे हुए हो, आंख खुलती है तो पहले पहले शिवबाबा को गुडमा\नग करो। कर सकते हो? देखो कहावत है सारे दिन में अगर कोई अच्छे को देखते हैं तो सारा दिन अच्छा बीतता है कोई खराब को देख लेते हैं ना तो क्या कहते हैं? कहते हैं पता नहीं किसकी शक्ल देखी जो सारा दिन खराब गया। तो अच्छे ते अच्छा कौन? शिवबाबा। शिवबाबा से प्यार है ना। तो आंख खुलते शिवबाबा गुडमा\नग। और आंख बन्द करते रात्रि को, जब बेड पर जाओ तो शिवबाबा गुडनाईट। यह तो सहज है ना। तो सारा दिन आपका अच्छा होगा। क्योंकि शुभ संकल्प भी ले लिया ना वरदान। तो ऐसे करना। बापदादा का प्यार है ना आप लोगों से। तो यह करने से और आप आगे बढ़ते जायेंगे। अपने इस जीवन में भी खुशी का अनुभव करेंगे। कभी दु:ख की लहर नहीं आयेगी। तो मंजूर है और सहज योगी बनो बस। मैं आत्मा हूँ, शिवबाबा का बच्चा हूँ, बस, यह सहजयोगी। चलते फिरते यह याद करो मैं आत्मा हूँ, शिवबाबा का बच्चा हूँ। यह तो याद कर सकते हो ना! तो बहुत अच्छा। यह तो हुआ इन बच्चों से रूहरिहान।

अभी आप सभी जो वारिस भी हैं और वारिस बनने वाले भी हैं। जो अपने आपको बापदादा का पक्का वारिस समझते हैं, वह हाथ उठाओ। वारिस हैं? वी.आई.पी भी सभी हाथ उठा रहे हैं। ताली तो बजाओ। अच्छा। अभी वारिस क्वालिटी को आज यह संकल्प अपने से दृढ़ करेंगे, बापदादा को यह संकल्प देंगे कि हम अभी से, कब से नहीं, अब से व्यर्थ संकल्प को समाप्त करके ही छोड़ेंगे। मंजूर है। है मंजूर? है तो हाथ उठाओ। अच्छा। जो समझते हैं पक्का संकल्प है, मन का। हाथ उठाने का नहीं, मन का हाथ उठाने का, वह हाथ उठाओ। अच्छा सब। पीछे वाले उठा रहे हैं। जो पक्का वह दो हाथ उठाओ। तो आज है कौन सा दिन? व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् समर्थ बनना। सदा समर्थ और दूसरा कार्य कौन सा है? दु:ख और अशान्ति की समाप्ति का दिवस समीप लाना। दो काम हैं। एक सदा समर्थ बनना और दूसरा समर्थ समय को समीप लाना। ठीक है। दोनों ही काम ठीक है? कांध हिलाओ। क्योंकि बापदादा के पास पुकार और दु:ख की आह बहुत सुनाई देती है। आपके पास पता नहीं क्यों नहीं सुनाई देती है। बापदादा जब ऐसे सुनते रहते हैं तो आप बच्चों को जो अपने को वारिस समझते हैं, वर्सा लेने वाले हैं, तो वर्सा लेने वाले को दूसरों को वर्सा दिलाने के ऊपर रहम आना चाहिए ना। रहम क्यों नहीं आता? वैराग्य, बेहद का वैराग्य और रहम आना चाहिए। छोटी छोटी बातों में क्यों, क्या के क्यूं में टाइम नहीं देना है। अभी हे बापदादा के सिकीलधे पदम पदम वरदानों के वरदानी बच्चे! अभी संकल्प को दृढ़ करो। और दृढ़ता की चाबी लगाओ। कर्मयोगी बनो। कर्मयोगी लाइफ वाले हो। लाइफ सदाकाल होती है, कभी कभी नहीं। तो अभी अपना कृपालु, यालु, दु:खहर्ता, सुख देता स्वरूप को इमर्ज करो। बापदादा ने अचानक का समय बहुतकाल से बताया है। तो अचानक के पहले भक्तों की पुकार तो पूरी करो। दु:खियों के दु:ख के आवाज तो सुनो। अभी हर एक छोटा बड़ा विश्व परिवर्तक, विश्व के दु:ख परिवर्तन कर सुख की दुनिया लाने वाले जिम्मेवार समझो।

बापदादा का यह आना जाना भी कब तक? इसलिए सब अचानक होना है। तो अभी वारिस क्वालिटी, वर्सा दिलाना, रहमदिल बनने का पार्ट बजाओ। ऐसे नहीं सोचना कब तक होगा! अचानक होगा। इसलिए व्यर्थ को समाप्त करना ही है। होना है नहीं, करना ही है। बापदादा ने रिजल्ट देखी सभी के कर्मो के गति को चेक किया। पुरूषार्थ की गति को चेक किया। खज़ाने जमा का खाता चेक किया। तो रिजल्ट में क्या देखा? जमा करने का पुरूषार्थ बहुत अच्छा करते हैं लेकिन जो जमा करते हो उसमें परसेन्टेज भिन्न-भिन्न है। जितना सोचते हो जमा किया, होता है जमा लेकिन परसेन्टेज, थोड़ा जमा होता है, सदा के लिए जमा नहीं। जितना करते हो उतना सदा के लिए जमा में फर्क है। इसलिए बापदादा अभी एक एक बात पर दृढ़ संकल्प कराता है। क्रोध पर कराया, लेकिन मन से भी किसके प्रति हलचल नहीं हो। क्यों, क्या नहीं हो। मुख से कन्ट्रोल किया है, कोई कोई ने अच्छा किया है लेकिन मन से थोड़ा थोड़ा चलता है। मिटाने की कोशिश कर रहे हैं फिर भी बापदादा खुश है कि अटेन्शन गया है। समझने लगे हैं कि इसमें मेरे को ही नुकसान है। समझा। अच्छा।

सेवा का टर्न ईस्टर्न ज़ोन, (बंगाल बिहार, उड़ीसा, आसाम) नेपाल और तामिलनाडु:- पौना हाल तो इसी ज़ोन वाले हैं। अच्छा। सेवाधारी, सिर्फ सेवाधारी उठो बाकी ऐसे जो साथ आये हैं वह बैठ जाओ। बहुत हैं। अच्छा है। तो अभी विशेष है ईस्टर्न ज़ोन। ईस्टर्न में भी बहुत ही भाग हैं। तो ईस्टर्न ज़ोन की तो विशेषता है, उसमें भी विशेष है कलकत्ता, जहाँ ज्ञान सूर्य प्रगट हुआ। तो जिस धरनी पर ज्ञान सूर्य प्रगट हुआ वह धरनी कितनी महान है। और बंगाल बिहार, बिहार भी कम नहीं। क्योंकि बापदादा ने देखा कि बिहार में सेवा का साधन बहुत अच्छा है। क्यों अच्छा है? क्योंकि बिहार के लोग चाहना बहुत अच्छी रखते हैं और बिहार में अभी अभी जो हलचल हुई, उसमें बहिनों ने बिहार के भाईयों ने जो कार्य किया है, जो उन्हों को चाहिए था, जीवन के लिए वह प्राप्त कराने का और ज्ञान सुनाने का, मन का भोजन और तन की परवरिश दोनों की है, इसलिए बिहार में नाम बहुत अच्छा फैला है। प्यार से सुनते हैं, यह सेवा दिल से की है, बापदादा ऐसी सेवा डबल, सिर्फ चीजे देनें की नहीं, सेन्टर भी खोले हैं, ऐसे डबल सेवा करने वाले बिहार के बच्चों को बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। वैसे तो देखा जाए और जगह पर भी करते हैं, और की है। उन्हों का नाम नहीं लेते लेकिन करते रहते हैं। फारेन में भी किया है, इन्डिया में भी किया है लेकिन बिहार की विशेषता यह है कि वहाँ जगह जगह पर ज्ञान की वर्षा बहुत अच्छी की है। कितने सेन्टर खोले हैं? (एक वर्ष में 12 सेन्टर 12 जिलों में खोले हैं) गीता पाठशालायें भी खोली होगी। (वह भी खुली हैं) अच्छा है। बापदादा को यह सेवा बहुत अच्छी लगती है। जहाँ भी ऐसी हालत हो वहाँ यह डबल सेवा करनी चाहिए। सेन्टर खोलने में निमित्त आपको बनना पड़ेगा क्योंकि वहाँ की हालत खराब होती है लेकिन फिर थोड़े समय में आपके सहयोगी अच्छे बन जायेंगे। और बापदादा ने देखा कि अभी इस ज़ोन में भी सेवा फैल रही है चाहे बंगाल, चाहे बिहार, चाहे उनके साथी हैं, नेपाल भी है, उड़ीसा, आसाम और तामिलनाडु। इनके साथी बहुत हैं क्योंकि ज्ञान सूर्य प्रगटा ना तो सेन्टर भी बहुत हैं साथी भी बहुत हैं। और आज तक बापदादा ने देखा कि हर एक एरिया को चाहे बड़ा ज़ोन नहीं है, छोटे हैं लेकिन छोटों में सेवा का उमंग और बहुत है। और रूचि से किया भी है, कर भी रहे हैं। इसलिए इन सब ज़ोन में जो भी नाम ले रहे हैं, उन सब तरफ सेवा का बोलबाला हो गया है। और रिजल्ट में यह भी देखा गया तो रेग्युलर स्टूडेन्ट भी बने हैं। चाहे बड़े या छोटे प्रोग्रामस, मीडिया का भी साथ है लेकिन अभी जो बाबा ने कहा है कि समय को समीप लाओ, उसकी तैयारी जल्दी से जल्दी करना है। अच्छा। बापदादा जो बंगाल बिहार की तरफ से आये हैं उन सबको भी मुबारक देते हैं कि यज्ञ सेवा का पुण्य का कार्य अच्छा सम्भाल भी रहे हैं, भीड़ थोड़ी ज्यादा है लेकिन बापदादा ने एक बात देखी कि सभी को कम संख्या में आने के बजाए बड़ी संख्या में आना पसन्द आ गया है। दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। फिर भी कुम्भ के मेले से शुद्ध खाना तो मिलता है। रहने के लिए चलो टेन्ट भी तो मिलता है। लेकिन जो भी आते हैं बापदादा उन्हों का प्यार देख करके, क्योंकि प्यार में कुछ भी देखना पड़ता या करना पड़ता, तो वह पता नहीं पड़ता है, कर रहे हैं, खुशी खुशी से करते हैं। तो बंगाल बिहार के ज़ोन ने भी सेवा का पार्ट अच्छा बजाया। अच्छा। यहाँ जो बैठे हैं इन्हों में से किसी को तकलीफ है सोने की या खाने की वह हाथ उठाओ। जिसको खाने की सोने की तकलीफ हो तो हाथ उठाओ। हाँ बड़ा हाथ उठाओ। अच्छा।

तामिलनाडु:- क्योंकि आजकल तामिलनाडु भी सेवा के उमंग उत्साह में है। बापदादा ने समाचार भी सुना कि यह जो शिव का मेला बनाया है, उसकी सेवा जगह जगह पर जाके भी करते हैं। फायदा और देशों को भी पहुंचाते हैं यह बहुत अच्छा है क्योंकि फिर भी विशेष तो शिवबाबा का परिचय है ना। उसमें शिवबाबा का ही परिचय मिलता है तो यह सेवा और देशों में भी जाकर करते हैं यह बापदादा को अच्छा सेवा का समाचार लगा। करते रहो। और अच्छा है आपस में जिस ज़ोन की युनिटी है, युनिटी स्वत: ही पुण्य का काम कराती है, उमंग उत्साह बढ़ाती है। बापदादा ने देखा कि सभी ने सारे ज़ोन ने मिलके जो हॉल बनाया है, सबके सहयोग से ज़ोन के सहयोग से जो हाल बनाया है, यह एक दो में ज़ोन वालों का सहयोग यह बात भी अच्छी है। क्योंकि जोन इकठ्ठा इसीलिए किया जाता है कि एक दो के नजदीक होने के कारण एक दो को सहयोग देना सहज हो जाता है। तो यह भी सहयोगी बनना, मेरी एरिया नहीं, सब मेरे हैं। आवश्यकता जहाँ है वह मेरा है। चाहे ज़ोन नाम अलग अलग है लेकिन जहाँ आवश्यकता है, आवश्यकता के समय सहयोग देना यह महापुण्य है। अगर अपना पुण्य का खाता जमा करना है, तो सहयोगी बनो और सेवा को और चारचांद लगाओ। यह बापदादा को अच्छा लगा। तो इस संगठन को बढ़ाते रहना। बढ़ाते रहेंगे ना, हाथ उठाओ। सभी ने हाथ उठाया। अच्छा। हम सब एक हैं, यह तो सेवा के कारण, कोई देखरेख हो सके इसके कारण जोन बनाया है, बाकी एक ही हैं, एक ही रहेंगे, एक के हैं, एक के रहेंगे। अच्छा।

नेपाल:- नेपाल की सर्विस का समाचार सुनते रहते हैं। वहाँ जैसा वायुमण्डल हैं उस हिसाब से सेवा की वृद्धि युक्ति से अच्छी कर रहे हैं। बापदादा नेपाल की सर्विस सुन करके खुश होते हैं कि कुछ भी हो जाए लेकिन यह आध्यात्मिक सेवा कम नहीं होती है। बढ़ती है लेकिन कम नहीं होती है। सेन्टर बढ़ रहे हैं, हलचल में अचल हैं। इसलिए बापदादा को नेपाल की सेवा पर नाज है। बहुत अच्छा। यह सब नेपाल उठा है। नेपाल वाले हाथ ऊंचा करो। यह अच्छा बनाया है कि ज़ोन ज़ोन को मिलने से वह जी भरके आ जाते हैं। और सेवा भी करते हैं सभी को सैलवेशन भी मिल जाती है। अच्छा।

डबल विदेशी :- डबल विदेशियों को बापदादा ने टाइटल दिया है डबल पुरूषार्थी। तो बताओ डबल पुरूषार्थी हो, हाथ उठाओ। डबल विदेशी नहीं डबल पुरूषार्थी। बहुत अच्छा। बापदादा हमेशा कहते आये हैं कि विदेश की सेवा ने बाप को विश्व सेवाधारी सिद्ध किया। पहले सिर्फ भारत सेवाधारी थे लेकिन अभी हर टर्न में 90 देशों से 80 देशों से डबल विदेशी आते हैं। तो बापदादा को खुशी है कि हर सीजन में विदेश में भी सेवा बढ़ती जाती है और कितने उमंग से हर टर्न में पहुंच जाते हैं। चाहे कितना भी प्रयत्न करना पड़ता है बापदादा को पता है तो पहले शुरूआत में एक बार होके जाते थे और दूसरे साल के लिए बाक्स में टिकेट के लिए इकठ्ठा करते थे, आते जरूर थे। लेकिन अभी तन मन धन सबमें आगे जा रहे हैं। और बापदादा ने पहले भी सुनाया कि यह मधुबन में आके जो रिफ्रेश होते है और ग्रुप ग्रुप रिफ्रेश होते हैं, पर्सनल अटेन्शन देते हैं यह बापदादा को पसन्द है और इस बारी की रिजल्ट भी बापदादा ने सुनी। तो एक दो के स्नेही, सहयोगी बनकर एक दो को कोई भी इशारा देने में पुरूषार्थ तीव्र करने में कोई कमी है तो खुली दिल से एक दो में दी है। यह बापदादा को समाचार पसन्द आया क्योंकि जब तक अपनी कमी को जाना नहीं, पहचाना नहीं तो परिवर्तन हो नहीं सकता। इसलिए बापदादा को पुरूषार्थ की विधि अच्छी लगी। थोड़े थोड़े आपस में मिलके जो मीटिंग करते हैं उसमें अटेन्शन ज्यादा जाता। तो डबल विदेशी डबल पुरूषार्थी हैं यह बापदादा ने मधुबन के समाचार में ज्यादा देखा। बाकी सभी जो भी आये हो अभी अपने को निर्विघ्न समझते हो? निर्विघ्न समझते हो वह हाथ उठाओ, निर्विघ्न। अच्छा। मैजारिटी है। कोई कोई नहीं भी हैं। मैजारिटी हैं। तो बापदादा आज डबल विदेशियों को डबल वरदान देते हैं एक तो सेवा कर सेन्टर की वृद्धि बढ़ाओ। रेग्युलर स्टूडेन्ट बढ़ाते चलो। बढ़ेंगे। और दूसरा एक दो को पुरूषार्थ करने और कराने का जो मीटिंग बनाई है, जो हर वर्ष करते रहते हैं उसका भी फायदा जितना उठाना चाहिए उतना और उठाते चलेंगे। बाकी आपस में जो बनाया है वह विधि अच्छी है इससे और ज्यादा प्रोग्रेस हो सकती है, इसको अटेन्शन देके और बढ़ायेंगे तो बढ़ जायेगी। सुना। बापदादा खुश है। और दिल में क्या याद करते? वाह बच्चे वाह! अच्छा।

फर्स्ट टाइम वालों से:- अभी की सीजन में मैजारिटी आधी क्लास से भी ज्यादा पहली बार वाले होते हैं क्योंकि रेग्युलर तो बाहर बैठते हैं क्लास में तो नये बैठते हैं। अच्छा सभी ने देखा कितना परिवार बढ़ रहा है। बापदादा कहते हैं वाह परिवार वाह! अभी तो जो भी स्थान बनायेंगे ना वह छोटा होना ही है। प्लैन बनाना है ना। क्योंकि अभी आप सभी का अटेन्शन सन्देश देने में अच्छी तरह से गया। तो जो इतनी सेवा होती है उनमें से वृद्धि तो होगी ना। तो पहले बारी आने वालों को बापदादा पहले बारी आने की बहुत-बहुत पदमगुणा मुबारक देते हैं। अभी निर्विघ्न बन आने वाली समस्याओं को स्वयं वा सहयोग से जल्दी से जल्दी समाप्त कर उड़ते चलो। अभी चलने का समय पूरा हो गया, आप जब आये हो तो उड़ने का समय है। तो उड़ने के समय पर चलना नहीं, उड़ना। तो उड़ेंगे रहेंगे और आगे बढ़ते रहेंगे यह बापदादा का विशेष वरदान और एकस्ट्रा मदद पहले आने वालों को है। अच्छा।

अभी चारों ओर के परमात्म प्रेमी बच्चों को जो सदा बाप के प्यार में उड़ते रहते हैं तीव्र पुरूषार्थी हैं और सेवा में निर्विघ्न सच्चे सेवाधारी हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा भी देख रहे हैं, साथ साथ दूर वालों को भी देख रहे हैं और यहाँ शान्तिवन में भी जो जगह जगह पर स्क्रीन पर देख रहे हैं, सुन रहे हैं, उन सभी बच्चों को बापदादा सदा के लिए खुश रहो और खुशी बांटों, यह वरदान दे रहे हैं। खुश चेहरा, कोई भी आपका चेहरा देखे वह चेहरा देखके खुश हो जाए। कैसा भी हो आपका चेहरा खुशनुमा देखके खुद भी खुश हो जाए, यह वरदान चारों ओर के बच्चे या जो सम्मुख बैठे हैं उन सभी के लिए एक वरदान है। कभी चेहरा मुरझाया हुआ नहीं। अगर आप मुरझायेंगे तो विश्व का हाल क्या होगा! आपको सदा खुशनुमा चेहरा और खुशनुमा चलन में रहना है और रहाना है। ऐसे सभी तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और मीठे मीठे बच्चों को नमस्ते।

निर्मलशान्ता दादी से:- यह अच्छा है। कोई भी हिसाब किताब चुक्तू करने में साक्षी, न्यारे प्यारे होकरके करने में एक्जैम्पुल अच्छी हो।