“नये वर्ष में तीव्र पुरुषार्थ का अटेन्शन रख सदा आगे वढ़ते
रहना, चेकिंग कर स्वयं का परिवर्तन करना, फाइनल पेपर अचानक
होना है इसलिए हर सबजेक्ट में पास मार्क्स लेना, सदा साथ
रहना और साथ राज्य में आना”
नये वर्ष की नवीनता सम्पन्न मुबारक
हो,
मुबारक हो, मुबारक हो । बापदादा अपने तीव्र पुरुषार्थी
बच्चों को देख सभी बच्चों को नये वर्ष की नवीनता की मुबारक
दे रहे हैं । इस नये वर्ष के आरम्भ में हर बच्चे ने
मन्सा-वाचा-सम्बन्ध-सम्पर्क में अपने में अवश्य कोई नवीनता
का लक्ष्य रखकर प्रैक्टिकल में वर्ष की नवीनता बुद्धि में
रखी होगी । पुरुषार्थ में कदम को, विशेषता को अपनी बुद्धि
में लाया होगा । सभी चल रहे हैं, यह तो पुरुषार्थी का अर्थ
ही है आगे कदम को बढाना । तो बापदादा देख रहे थे कि हर एक
ने अपने पुरुषार्थ को आगे से आगे बढाने में श्रेष्ठ संकल्प
किया होगा! जिन्होंने आगे बढ़ने का संकल्प अपने प्रति किया,
वह हाथ उठाना । पीछे वाले भी हाथ उठायें, अगर किया है तो!
संगमयुग है ही कदम को आगे बढ़ाने का युग । तो अपने लिए
अवश्य आगे बढने का साधन वा विधि बनाई होगी । अपने प्रति
सहज और श्रेष्ठ साधन अवश्य लक्ष्य के रूप में इमर्ज रखा
होगा! जिन्होंने आगे के लिए कोई न कोई मन्सा-वाचा-कर्मणा
और सम्बन्ध सम्पर्क में कदम को आगे बढाने का लक्ष्य रखा
होगा, वह हाथ उठाओ । अच्छा है । हाथ तो बहुत अच्छा उठाया
है । पीछे वाले भी हाथ उठा रहे हैं । थोड़ा ऊंचा हाथ उठाओ,
ऐसे ऊंचा । अच्छा हाथ उठा रहे हैं । बापदादा भी पुरुषार्थ
के हाथ को देख खुश है और लक्ष्य और लक्षण साथ रहेगा । ऐसा
प्लैन अपने लिए अवश्य बनाया होगा, बनाया है भी ।
बापदादा ने देखा कि कई बच्चों ने अपने लिए प्लैन बनाया है
और बापदादा खुश हैं कि प्लैन और प्रैक्टिकल,
जैसा लक्ष्य रखा है उस लक्ष्य को अवश्य पूर्ण करेंगे ।
करेंगे ना! इसमें हाथ उठाओ, अच्छा करेंगे। क्योंकि बापदादा
खुद भी हर एक बच्चे का पोतामेल समय प्रमाण देखते हैं और
आगे से आगे बढने का वरदान भी साथ में देते हैं । बापदादा
ने देखा लक्ष्य बहुतों का अच्छा है लेकिन चलते-चलते कोई
सरकमस्टांश लक्ष्य को थोडा सा ढीला कर देता है । लक्ष्य
अच्छा रखा है और बापदादा भी लक्ष्य को देख खुश होते हैं
लेकिन साथ में आगे बढ़ने में थोडा बहुत फर्क दिखाई देता है
। फिर भी बापदादा ने देखा लक्ष्य मैजारिटी का अच्छा है ।
अब लक्ष्य और लक्षण दोनो ही साथ-साथ बढता रहे, यह अटेन्शन
रखना, इसकी आवश्यकता है । सोचा और किया, दोनो ही साथ-साथ
हो यह जरूरी है । चाहे कुछ भी बाते तो होती ही हैं, यही
छोटे- छोटे पेपर हैं लेकिन इस में आगे बढ़ना, इस बात में
अटेन्शन थोड़ा ज्यादा चाहिए क्योंकि बापदादा के पास हर एक
बच्चे का रिकार्ड रहता है । जैसे आप अपना रिकार्ड रखते हो,
ऐसे बापदादा भी हर बच्चे का बीच-बीच में रिकार्ड देखते हैं
। लक्ष्य बहुत अच्छा है, जिस समय प्लैन बनाते हैं, बहुत
उमंग-उत्साह से बनाते हैं लेकिन बाद में अटेन्शन देना
पडेगा क्योंकि आप सब को मालूम है कि लक्ष्य को पूर्ण करने
के लिए थोडा सा अटेन्शन सब देते हैं लेकिन नम्बर हैं । तो
स्वयको किस नम्बर में समझते हैं, बापने देखा समझ बहुत
अच्छी है, समझ के साथ अपनी चेकिंग भी अच्छी करते हैं लेकिन
चलते-चलते कोई बाते ऐसी आती हैं जो तीव पुरुषार्थ को
साधारण पुरुषार्थ में बदल लेती हैं । और बापदादा एक-एक को
देख यही कहते कि अटेन्शन अविनाशी रहे, बातें आती हैं लेकिन
बातों में अटेन्शन कम नहीं हो । वैसे बापदादा ने देखा है
कि कई बच्चे लक्ष्य अपना अच्छा रखते हैं और चलते भी हैं
लेकिन., लेकिन आता है । समय अब आप सबका इन्तजार कर रहे हैं
। लक्ष्य अच्छा हैं, चेकिंग भी अच्छा है लेकिन बीच-बीच में
कोई-कोई बात अपने तरफ आकर्षण कर देती है और फाइनल रिजल्ट
अचानक होनी है, कोई तारीख फिक्स नहीं होगी ।
बापदादा हर एक बच्चे को नम्बरवन,
पुरुषार्थ की विधि से हर बच्चे को देखने चाहते हैं और
बापदादा ने देखा है कि हर एक बच्चा भी चाहते यही हैं,
सिर्फ कहाँ कहाँ संग का रंग भी लग जाता है, अलबेलेपन का ।
हो जायेंगे, दोनों ही अनुभव तो किया है । तो समझते हैं समय
पर सोचा तो है, क्या है उस पर अटेन्शन दे देंगे । लेकिन यहाँ
अटेन्शन का नोट तो होता है लेकिन बहुत काल या बहुतकाल में
बीच-बीच में बहुतकाल से रिवाजी चाल हो जाती हैं, वह रिजल्ट
ज्यादा है । साधारणता की जो नेचर नहीं होनी चाहिए, वह कभी
कैसे, कभी कैसे हो जाती है । तो बापदादा चाहते हैं कि सदा
ही अपने ऊपर नजर हो, साधारणता नहीं हो । अभी तो आप सभी
पुरानों की लिस्ट वाले हो, थोडे नये-नये हैं, मैजारिटी
पुराने की लिस्ट में हैं । और फाइनल पेपर अचानक होना हैं,
डेट फिक्स नहीं होनी है । तो कोई भी अपनी विशेषता को
सदाकाल का बनाना यह आवश्यकता है क्योंकि पेपर सदा नहीं आता
है, बीच-बीच में पेपर ड़ामानुसार होते हैं इसलिए सदा
अटेन्शन चाहिए । बहुत अटेन्शन देते भी हैं, उनको तो बापदादा
तीव्र पुरुषार्थियों की लिस्ट में रखते हैं, अटेन्शन देते
हैं लेकिन कुछ समय तीव्र, कुछ समय बीच में फिर पेपर आते
हैं, उसमें थोडा- थोड़ा फर्क पड जाता है ।
तो बापदादा सभी बच्चों को देख खुश तो होते हैं कि
दिनप्रतिदिन देखा गया कि अपने ऊपर अटेन्शन देते जरूर हैं,
इतना अपने ऊपर अटेन्शन छोड दें, ऐसे नहीं हैं, हैं लेकिन
नम्बर हैं और बापदादा बीच-बीच में संगठित रूप में मिलने
में खास अटेन्शन देते हैं । लेकिन हर एक से पुरुषार्थ की
गति को देखने में भी अन्तर है, इसमें थोडा सा अलबेलापन
देखने में आ जाता हैं । हो जायेगा, हो जायेगा.... यह थोडा
एडीशन हो जाता हैं और बापदादा चाहता है, कोटों में कोई
बच्चे तो हैं, तो कोटों में कोई इन्हों का तो अटेन्शन होना
ही चाहिए । और बापदादा जानते हैं कि फाइनल पेपर अचानक होना
है, सरकमस्टांश भी ऐसे ही होंगे इसलिए अपनी चेकिंग को भी
चेक करो कि जैसे बापदादा चाहता है, वर्णन भी करता है, उसी
प्रमाण मेरी भी चेकिग है? सुनते तो रहते ही हो, तो बापदादा
क्या चाहते हैं? कम से कम रात को सोने के पहले हर दिन की
चेकिंग आवश्यक है क्योंकि कामकाज में थक जाते हैं ना, तो
टाइम देते हैं, दिल में
आता है लेकिन थकावट अपने तरफ खीच लेती है । तो बापदादा समय
को देख कर फिर भी अटेन्शन दिलाते रहते हैं । अटेन्शन देने
में कभी भी अलबेले नहीं बनना ।
बापदादा देखते हैं पुरुषार्थ बहुत
तरीके से करते हैं,
अटेन्शन भी देते हैं एकदम ऐसे अलबेले भी नहीं हैं लेकिन
समय अचानक आना है, कोई भी समय आना है इसलिए बापदादा भी
जनरल में यही सोचते हैं हर बच्चे को कहते हैं, अटेन्शन
प्लीज़ । हर सबजेक्ट में कमसे कम पास मार्क्स तो होने चाहिए
। नम्बर थोडा सा पीछे है वह बात अलग है लेकिन अटेन्शन है,
परिवर्तन भी है, यह चेक करो । अलबेलापन तो नहीं आता? हो
जायेगे, हो जायेंगे यह क्या बड़ी बात है, इसको कहते हैं
अटेन्शन में अलबेलापन । तो बापदादा हर बच्चे के पुरुषार्थ
में मैजारिटी खुश भी है लेकिन बीच-बीच में माया भी अपना
चांस ले लेती है । तो बापदादा मुबारक भी देते हैं लेकिन
साथ में अटेन्शन, अटेन्शन का अर्थ है नो टेन्शन । किसी भी
प्रकार का, चाहे किसी भी सबजेक्ट में अटेन्शन पूरा हो ।
ऐसे नहीं सोचे यह तो थोडा बहुत चल जायेगा, कभी एक नम्बर की
कमी से भी बहुत नुकसान हो जाता है इसलिए बापदादा एक बच्चे
को भी साधारण पुरुषार्थ में भी देखना नहीं चाहते हैं । यह
संगठन तो बीच-बीच में होता हैं यह अच्छा है, संगठन को देख
के बापदादा से मिलने से उमंग में आ जाते हैं लेकिन यह उमंग
आगे भी चलता रहे, उसमें थोडी छोटी- मोटी बाते पुरुषार्थ
खत्म नहीं करती, थोड़ा सा ढीला करती हैं । तो बापदादा खुश
होते हैं कि फिर भी बीच में कोई न कोई प्रोग्राम ज्यादा से
ज्यादा मिलने का रखते हैं, सम्मुख मिलने से उमंग और उत्साह
बढता है, यह तो बापदादा भी देख रहे हैं । तो सभी अपने आपको
जिम्मेवार समझ चेक करें, अपने आप सावधान रहें ।
सभी ठीक हैं,
हाथ उठाओ । हाथ उठाते हैं बापदादा इस पर तो खुश हो जाते
हैं लेकिन बच्चे भी चतुर हैं ना । कहेंगे उस समय तो हम ठीक
थे ना इसलिए हाथ उठाया और है भी राइट । लेकिन आप सभी तो
औरों को भी आगे बढानेवाले हैं, ठीक चल रहे हैं वह तो ठीक
हैं, बाप भी मानते हैं लेकिन यह सर्टिफिकेट सदा रहे
अर्थात् इतना अटेन्शन अपने ऊपर सदा रहे, तो क्या होगा,
बापदादा भी खुश हैं और स्वयं पुरुषार्थ करने वाले भी ठीक ।
और उन्हों के साथी भी ठीक । तो अच्छा पुरुषार्थी हैं । तो
बापदादा भी खुश हैं जब हाथ उठाते हैं तो बापदादा समझते हैं
कोई कहेंगे हाथ उठा लिया लेकिन हाथ उठाया उनको आगे के लिए
तो शक्ति मिलेगी ना । अपने आप तो सोचेंगे ना । मानो कल ही
किसके ऊपर पेपर आ जाता है तो सोच तो चलेगा किसमें हाथ
उठाया । और करेक्शन करके आगे बढ़ा । बापदादा यही चाहते हैं
हर बच्चा जैसे अभी यहाँ साथ बैठे हैं खुशी-खुशी से, ऐसे ही
फाइनल में भी ऐसे हो । हर बात में पास, पास, पास । सोचेगे,
देखेगे नहीं पास हैं ही । तो क्या समझते हो पास होंगे ही
या थोडा- थोडा होगा। जो समझते हैं अभी पास होकर ही
दिखायेगे वह हाथ उठाओ । देखो, हा, हाथ उठाने में तो
बापदादा खुश होते हैं । अच्छा लगता हैं, उमंग हैं लेकिन
बहुत ही छोटी-छोटी बातें रूकावट डाल देती हैं । अभी इसको
मिटाने की कोशिश करो । सोचते भी हो, आगे से नहीं होगा
लेकिन फिर भी हो जाता हैं अभी तक की रिजल्ट में जो सोचते
हैं कि अभी से परिवर्तन होना हैं, अपने को परिवर्तित करना
हैं वह हाथ उठाओ । हाथ इतना अच्छा उठाते हैं जो बापदादा
खुश हो जाता हैं । अच्छा है । तो बापदादा साथ है तो हाथ भी
साथ देता है । लेकिन बापदादा को तो साथ सदा रखना है ना ।
यह तो हुआ दो घण्टे का साथ । सदा ऐसे ही साथ का अनुभव रखो,
बस । अपने को अकेले नहीं करो । बापदादा को सदा साथ रखो ।
तो अभी सभी जब फिर बापदादा मिले तब तक तो ऐसा ही हाथ रहेगा
। इसमें दो दो हाथ उठाओ । तो अभी हमेशा रात्रि को बापदादा
को सामने रख,
इमर्ज कर अपनी रिजल्ट उठाके बापदादा को खुश कर देना । कोई
गलती नहीं हुई । न मन्सा, न वाचा, न कर्मणा । हो सकता हैं?
इसमें हाथ उठाओ । अच्छा । हाथ तो उठाया, इसमें तो बापदादा
खुश हुआ लेकिन जब भी कुछ हो जाता है तो अपने जो साथी हैं,
जो पुरुषार्थी हैं उनको बताके और आगे के लिए प्रामिस करो,
भले किसी के आगे प्रामिस नहीं करो, अपने आप से तो कर सकते
हो । बाप को सामने रख प्रामिस करो क्योंकि रिजल्ट में तो
समय भी गिनते हैं ना । कितना समय रहे । अच्छा उस समय तो
ठीक है, वह भी अच्छा है लेकिन फाइनल रिजल्ट में समय भी चेक
होगा ना इसलिए अभी अपने आपसे रोज रात को यह सभा और अपना
हाथ इमर्ज करना, मैंने बाप के आगे क्या हाथ उठाया, कि
परिवर्तन करेंगे या सोचेगे? तो हिम्मत है इतनी? आज के बाद
जो सोचा है सम्पूर्ण बनने का, वह अविनाशी होगा । हो सकता
है? बीती सो बीती । आज अपने दिल से सभा के बीच अपने को
देखते हुए सभी देख रहे हैं, यह नहीं सोचो, बाप के सामने
प्रामिस कर रहा हूँ, तो बाप ने देखा अर्थात् सभी ने देखा ।
हो सकता हैं यह? तो जिसमें हिम्मत है, आगे से जो बीच-बीच
में थोड़ा सा किसी भी कारण से, कारण तो बनता ही हैं लेकिन
किसी भी कारण से अपने संपूर्णता की सीट नहीं छोडेगा, वह
हाथ उठाओ । अच्छा, मुबारक हो । अभी जिसने नहीं उठाया, उसको
तो शर्म आयेगा इसीलिए वह हाथ नहीं उठाओ लेकिन उमंग- उत्साह
हैं, हाथ उठाके करके दिखायेगे वह हाथ उठाओ । हाथ उठाते
इसीलिए है, वैसे तो बाप जानते हैं क्या रिजल्ट होती हैं
लेकिन उठाने से आपको यह हाथ उठाना भी मदद करेगा । इतने
सगठन के बीच में हाथ उठाया, यह कोई कम बात हैं क्या! इसलिए
अभी यह सोचो कि परिवर्तन का अर्थ क्या होता है? अच्छा अभी
साहस किया तो सही ना । तो ऐसी प्रामिस करके फिर भी नहीं
करने का, तो लाइन में तो आ जायेंगें ना । तो जब भी कोई ऐसे
हो उस समय सभा के बीच में हाथ उठाया ना, याद करो । अपने
आपको ही फायदा है और बाप तो खुश होगा लेकिन करना तो आपको
पडेगा ना । तो जब भी कोई परिस्थिति आवे अपना हाथ याद करना
। मदद मिलेगी । ऐसे ही याद करने से नहीं । इतने सारे भाई
बहनो के बीच में आपने अपने दिल से प्रामिस किया तो वह मदद
मिलेगी । क्योंकि बापदादा चाहते हैं कि जो भी बच्चा यहाँ
हाजिर हैं अभी, हिम्मत तो रखते हैं ना । चाहते तो हैं ना
बनना, नहीं तो हाथ क्यों उठाओ । नहीं उठाओ, कौन देखता हैं
लेकिन सोचते हैं, हिम्मत रखते हैं लेकिन उस हिम्मत को पानी
देते रहो । बस प्रामिस किया और छूट जाते हैं । यह हाथ
हमेंशा याद रखो कितनी सभा हैं । बाप तो है ही । बाप के आगे
तो क्या इतने ब्राह्मणो के आगे संकल्प किया उसको हल्का
नहीं करना । चाहते हो तभी तो हाथ उठाते हैं ना । तो जो
चाहना हैं, कहा है हाथ उठाया है नहीं । मन की मेरी चाहना
है इसीलिए हाथ उठाया, तो उसको आगे बढ़ाते रहो । बात को न
देख करके बढने की बात को सोचो । हो जायेगे । और कौन
बनेंगे! आप ही तो बनने वाले हो ना! इसलिए अपने में फेथ
रखो, जो कहा हैं वह करके दिखाना है । ठीक है ना! वैसे भी
कहा जाता है, अपना कहना याद रखो, जिस समय कुछ होता भी है
उस समय इस समय की बात याद रखो क्योंकि अभी भी जो कहते हैं,
तो चाहते तो हो ना, तभी तो कहते हो करेंगे । अभी अपने को
भी पक्का करते रहो । अमृतवेले यह सीन लाओ मैने क्या संकल्प
उठाया । और बापदादा इतने भाई बहन आपको देखकर खुश हुए, तो
इतने लोगो को आपने खुशी दी । हाँ का हाथ उठाया सब खुश हुए
ना । तो इतने भाई बहिनो की खुशी को भूलना नहीं । याद तो रख
सकते हो ना । रख सकते हो, कि मैने ऐसे-ऐसे वायुमण्डल में
अनुभव किया था? परिवर्तन होना तो है । बिना परिवर्तन के
वहाँ भी साथ नहीं रहेंगे, दूर दूर रहेंगे । तो अच्छा
लगेगा? अन्त में जब, चलो सतयुग में तो पता ही नहीं पडेगा ।
लेकिन अन्त में रिजल्ट में जब पता पडेगा यह कितना नम्बर
आया, तो क्या होगा? उस समय भी अच्छा नहीं लगेगा । इसलिए
संकल्प दृढ़ करो । सरकमस्टांश आयेंगे, यह तो पता ही है,
अनुभवी हो । करना है, सम्पूर्ण बनना ही है, यह निश्चय रखो
। लक्ष्य क्या हैं? जो इतने सब बैठे है, कितने सब ऐसे आ
रहे हैं । तो लक्ष्य क्या है? सम्पूर्ण बनने का है ना! तो
हर एक को देखो, रात को नोट करो जो लक्ष्य है, हाथ उठाया
है, लक्ष्य है ऐसे ही सारे दिन लक्षण चले । चेक करो अपने
आपको । दूसरा करे या नहीं करे, अपने आपको चेक करो ।
सभी खुश हैं,
कितने खुश हो? अच्छा है । खुशी कभी नहीं गंवाना । भले
कलियुग अन्त हैं, तो भी खुश हो ना । तो खुश है और सदा खुश
रहेंगे । ठीक बोला । इसमें दो-दो हाथ उठाओ । अच्छा । अभी
जब भी कोई बात हो ना, तो मैंने सभा में इतने ब्राह्मणो के
बीच में किसमें हाथ उठाया । हाथ तो उठाया ना अभी । इसमें
पक्का रहना क्योंकि सतयुग में भी साथ रहना है ना कि अलग हो
जायेंगे । साथ रहेंगे ना । राज्य भी करेंगे तो साथ में
करेंगे ना । अलग कहाँ हो जायेंगे इसलिए सदा याद रखो आपका
साथ आधा कल्प रहेगा । पीछे कुछ भी हो लेकिन आधाकल्प साथ
रहेगा । और जो निश्चयबुद्धि हैं वह तो क्या समझते हैं,
शुरू से लास्ट तक साथ रहेंगे भिन्न-भिन्न रूप में ।
बापदादा एक भी बच्चे को अलग नहीं करने चाहते हैं । हर एक
बच्चा रोज अमृतवेले याद करो, साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ
राज्य करेंगे । अच्छा है । बापदादा को संगठन अच्छा लगता है
। और ऐसे ही सतयुग में भी समान बनेंगे तो वहाँ भी इकट्ठे
होते रहेंगे । एक दो में आयेगे जायेंगे, मिलेंगे । सभी हैं
ना साथी । साथी हैं, हाथ उठाओ । अच्छा है । आपसमें साथी
साथ रहेंगे, कितना अच्छा है । भले अलग रहेंगे, लेकिन दिलका
साथ होगा । ड्रेस चेंज होगी लेकिन मन नहीं चेंज होगा ।
अच्छा । अभी फिर मिलेंगे ।
सेवा का टर्न गुजरात का हैं,
15 हजार भाई बहिने गुजरात से आये हैं:
अच्छा है । अभी भी गुजरात
ज्यादा है,
टर्न है ना । और गुजरात की एक विशेषता है, एक विशेषता यह
है कि साथ भी है लेकिन दिल में भी साथ है । कोई भी आर्डर
करो तो गुजरात आ जाता हैं । संख्या ज्यादा है यह भी सेवा
का फल हैं । गुजरात में संख्या अच्छी है । अच्छा है,
गुजरात नजदीक भी है, हर बात में साथी बन जाते हैं ।
डवल विदेशी- 5०० भाई वहिने आये हैं:
अच्छा हैं । जो डबल विदेशी,
विदेश से आये हैं, हैं तो देश के लेकिन विदेश से आये हैं,
वह उठो । अच्छा ।
एक मिनट साइलेन्स । ऐसे लगे जैसे हाल में कोई नहीं ।
चारों ओर के बच्चों को
बापदादा का विशेष हर एक को यादप्यार स्वीकार हो । हर बच्चे
को बापदादा देखकर कितने खुश होते हैं,
चाहे कहाँ के भी हो, विदेश के हो, देश के हो लेकिन बाप के
बन गये, यह खुशी सभी बच्चों को हैं ।
(न्यूयार्क
की मोहिनी बहन कीयाद दी, घुटनो का आपरेशन हुआ हैं)
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ठीक हो जायेगा,
कोई बात नहीं चल पड़ेगी, सबसे आगे । उमंग है । उमंग के कारण
ही चलेगी ।
दादी जानकीसे:
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(बाबा दादी को शरीर का बहुत बड़ा पेपर आया हैं,
आप कुछ जादू करो) अरे बाप अलग है ही नहीं । जादू तो कर ही
रहा है । सारा यज्ञ साथ है, क्या भी हो लेकिन यज्ञ की
मूर्ति हो । आपको देखके सबको उत्साह आता है । निमित्त है ।