ओम शान्ति 10-11-17 मधुबन
प्यारे बापदादा के अवतरण दिवस का यह दूसरा टर्न है।
प्यारे बापदादा का रथ गुल्लार दादी जी कल (9-11-17) को मुम्बई से शान्तिवन पहुंची। आज 10 तारीख को सायं 6:30 बजे से प्यारे बापदादा के महावाक्य वीडियो द्वारा सुनाये गये। वह महावाक्य आपके पास भेज रहे हैं। यह टर्न कर्नाटक जोन और इन्दौर (आरती बहन) जोन की सेवा का है। अव्यक्त महावाक्य सुनने के पश्चात दादी गुल्लार जी ने प्यारे बापदादा को भोग लगाया फिर सबसे नयन मुलाकात करते हुए, हाथ हिलाते मिलन मनाया और सबके प्रति मधुर महावाक्य उच्चारण किये, वह आपके पास भेज रहे हैं।
आज का दिन कितना प्यारा है जो मीठे बाबा की स्मृति दिला रहा है। भिन-भिन्न समय के दिन, मिलन के दिन, महावाक्य सुनने के दिन, यह सब आपको स्मृति दिलाने के लिए है क्योंकि इतने समय के बाद तो भूल भी जाता है लेकिन बुद्धि में, स्मृति में तो है हमको यह वरदान मिले हुए हैं। तो यह जो वरदान हैं, यह समय पर बहुत काम में आते हैं। कोई समय ऐसा आता है जब अपने को अकेला समझते हैं, कोई साथी साकार में नजर नहीं आता है लेकिन यह जो हमारा समय बीता है, यह समय बीता है संगठन की शक्ति से। संगठन हमको बहुत प्यार से, स्नेह से लेके चल रहा है। अकेला भी चलते हैं लेकिन संगठन की मदद अभी जरूरी है। जब संगठन की बात आती है तो सबके चेहरे बदल जाते हैं। वैसे तो हमारे अन्दर सबकी याद है और सबके अन्दर हमारी याद है। हम अकेले नहीं चलते हैं। संगठन में चलते हैं। संगठन हमको अपना बनाके, मिलाके चला रहा है और संगठन की जो शक्ति है, वह भी दिखाती है कि संगठन कितना प्यारा होता है। चलते-फिरते कितना संगठन का फायदा होता है। तो संगठन का लाभ लेते हुए हम संगठित रूप में भिन-भिन्न तरीके से संगठन को यूज कर रहे हैं। कहाँ भी कुछ होता है तो चाहे अकेले, चाहे संगठन में किसी भी रीति से जब साथ में संगठन में होते हैं तो कितना प्यारा समय बीतता है और कितना आपस का लव स्मृति में आता है इसलिए बहुत अच्छा है जो आज के दिन हम आपस में तो मिलते हैं लेकिन आपस में मिलने का आधार है हमारा बाबा। बाबा भी बच्चों से दिल से मिलते हैं फिर बाहर स्कूल में तो हमारा स्कूल शरीर भी है तो वह भी मिलता है, तो ऐसे लगता है जैसे हम एक परिवार हैं। तो आपस में मिलने का, बाहर और साथियों से मिलने का और मूल बात है, अपने बड़ों से मिलना। यह भी बहुत अच्छा मिलन मेले का रूप हो जाता है। अच्छा।
सबको बाबा और हमारी मीठी मम्मा की याद है, यही तो हमारे मुख्य आधार है, साथी है। वह साथ बहुत अच्छा है। हम सबके दिल में प्यार है तो बाहर भी मिलन मेले का रूप दिखाई देता है। अच्छा। ओम शान्ति।
31-10-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
आज बापदादा अपने चारों ओर के श्रेष्ठ स्वमानधारी विशेष बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे का स्वमान इतना विशेष है जो विश्व में कोई भी आत्मा का नहीं है। आप सभी विश्व की आत्माओं के पूर्वज भी हो और पूज्य भी हो। सारे सृष्टि के वृक्ष की जड़ में आप आधारमूर्त हो। सारे विश्व के पूर्वज पहली रचना हो। बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख खुश होते हैं। चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग मातायें हैं, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं। हर एक की अलग-अलग विशेषतायें हैं। आजकल कितने भी बड़े ते बड़े साइंसदान हैं, दुनिया के हिसाब से विशेष हैं लेकिन प्रकृतिजीत तो बनें, चन्द्रमां तक भी पहुंच गये लेकिन इतनी छोटी सी ज्योति स्वरूप आत्मा को नहीं पहचान सकते। और यहाँ छोटा सा बच्चा भी मैं आत्मा हूँ, ज्योति बिन्दु को जानता है। फलक से कहता है मैं आत्मा हूँ। कितने भी बड़े महात्मायें हैं और ब्राह्मण मातायें हैं, मातायें फलक से कहती हमने परमात्मा को पा लिया। पा लिया है ना! और महात्मायें क्या कहते? परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। प्रवृत्ति वाले चैलेन्ज करते हैं कि हम सब प्रवृत्ति में रहते, साथ रहते पवित्र रहते हैं क्योंकि हमारे बीच में बाप है। इसलिए दोनों साथ रहते भी सहज पवित्र रह सकते हैं क्योंकि पवित्रता हमारा स्वधर्म है। पर धर्म मुश्किल होता है, स्व धर्म सहज होता है। और लोग क्या कहते? आग और कपूस साथ में रह नहीं सकते। बड़ा मुश्किल है और आप सब क्या कहते? बहुत सहज है। आप सबका शुरू शुरू का एक गीत था - कितने भी सेठ, स्वामी हैं लेकिन एक अल्फ को नहीं जाना है। छोटी सी बिन्दी आत्मा को नहीं जाना लेकिन आप सभी बच्चों ने जान लिया, पा लिया। इतने निश्चय और फखुर से बोलते हो, असम्भव सम्भव है। बापदादा भी हर एक बच्चे को विजयी रत्न देख हर्षित होते हैं क्योंकि हिम्मते बच्चे मददे बाप है। इसलिए दुनिया लिए जो असम्भव बातें हैं वह आपके लिए सहज और सम्भव हो गई हैं। फखुर रहता है कि हम परमात्मा के डायरेक्ट बच्चे हैं। इस नशे के कारण, निश्चय के कारण परमात्म बच्चे होने के कारण माया से भी बचे हुए हो। बच्चा बनना अर्थात् सहज बच जाना। तो बच्चे हो और सब विघ्नों से, समस्याओं से बचे हुए हो।
तो अपने इतने श्रेष्ठ स्वमान को जानते हो ना! क्यों सहज है? क्योंकि आप साइलेन्स की शक्ति द्वारा, परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाते हो। निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेते हो। माया कितने भी समस्या के रूप में आती है लेकिन आप परिवर्तन की शक्ति से, साइलेन्स की शक्ति से समस्या को समाधान स्वरूप बना देते हो। कारण को निवारण रूप में बदल देते हो। है ना इतनी ताकत, कोर्स भी कराते हो ना! निगेटिव को पॉजिटिव करने की विधि सिखाते हो। यह परिवर्तन शक्ति बाप द्वारा वर्से में मिली है। एक ही शक्ति नहीं, सर्वशक्तियां परमात्म वर्सा मिला है, इसीलिए बापदादा हर रोज कहते हैं, हर रोज मुरली सुनते हो ना! तो हर रोज बापदादा यही कहते- बाप को याद करो और वर्से को याद करो। बाप की याद भी सहज क्यों आती है? जब वर्से की प्राप्ति को याद करते तो बाप की याद प्राप्ति के कारण सहज आ जाती है। हर एक बच्चे को यह रूहानी फखुर रहता है, दिल में गीत गाते हैं - पाना था वो पा लिया। सभी के दिल में यह स्वत: ही गीत बजता है ना! फखुर है ना! जितना इस फखुर में रहेंगे तो फखुर की निशानी है, बेफिक्र होंगे। अगर किसी भी प्रकार का संकल्प में, बोल में या सम्बन्ध-सम्पर्क में फिकर रहता है तो फखुर नहीं है। बापदादा ने बेफिक्र बादशाह बनाया है। बोलो, बेफिक्र बादशाह हो? है, हाथ उठाओ जो बेफिकर बादशाह हैं? बेफिकर कि कभी कभी फिकर आ जाता है? अच्छा है। जब बाप बेफिक्र है, तो बच्चों को क्या फिकर है।
बापदादा ने तो कह दिया है सब फिक्र वा किसी भी प्रकार का बोझ है तो बापदादा को दे दो। बाप सागर है ना। तो बोझ सारा समा जायेगा। कभी बापदादा बच्चों का एक गीत सुनके मुस्कराता है। पता है कौन सा गीत? क्या करें, कैसे करें.... कभी कभी तो गाते हो। बापदादा तो सुनता रहता है। लेकिन बापदादा सभी बच्चों को यही कहते हैं हे मीठे बच्चे, लाडले बच्चे साक्षी-दृष्टा के स्थिति की सीट पर सेट हो जाओ और सीट पर सेट होके खेल देखो, बहुत मजा आयेगा, वाह! त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित हो जाओ। सीट से नीचे आते इसलिए अपसेट होते हो। सेट रहो तो अपसेट नहीं होंगे।
यह तीन चीज़ें बच्चों को परेशान करती हैं। कौन सी तीन चीज़ें? - चंचल मन, भटकती बुद्धि और क्या कहते हैं? पुराने संस्कार। बापदादा को बच्चों की एक बात सुनके हंसी आती है, पता है कौन सी बात है? कहते हैं बाबा क्या करें, मेरे पुराने संस्कार हैं ना! बापदादा मुस्कराता है। जब कह ही रहे हो, मेरे संस्कार, तो मेरा बनाया है? तो मेरे पर तो अधिकार होता ही है। जब पुराने संस्कार को मेरा बना दिया, तो मेरा तो जगह लेगा ना। क्या यह ब्राह्मण आत्मा कह सकती है मेरे संस्कार? मेरा-मेरा कहा है तो मेरे ने अपनी जगह बना दी है। आप ब्राह्मण मेरा नहीं कह सकते। यह पास्ट जीवन के संस्कार हैं। शूद्र जीवन के संस्कार हैं। ब्राह्मण जीवन के नहीं है। तो मेरा-मेरा कहा है तो वह भी मेरे अधिकार से बैठ गये हैं। ब्राह्मण जीवन के श्रेष्ठ संस्कार जानते हो ना! और यह संस्कार जिनको आप पुराने कहते हो, वह भी पुराने नहीं हैं, आप श्रेष्ठ आत्माओं का पुराने ते पुराना संस्कार अनादि और आदि संस्कार है। यह तो द्वापर मध्य के संस्कार हैं। तो मध्य के संस्कार को समाप्त कर देना, बाप की मदद से कोई मुश्किल नहीं है। होता क्या है? कि समय पर बाप कम्बाइन्ड है, उसे कम्बाइन्ड जान, कम्बाइन्ड का अर्थ ही है समय पर सहयोगी। लेकिन समय पर सहयोग न लेने के कारण मध्य के संस्कार महान बन जाते हैं।
बापदादा जानते हैं कि सभी बच्चे बाप के प्यार के पात्र हैं, अधिकारी हैं। बाबा जानते हैं कि प्यार के कारण ही सभी पहुंच गये हैं। चाहे विदेश से आये हैं, चाहे देश से आये हैं, लेकिन सभी परमात्म प्यार की आकर्षण से अपने घर में पहुंचे हैं। बापदादा भी जानते हैं प्यार में मैजॉरिटी पास हैं। विदेश से प्यार के प्लेन में पहुंच गये हो। बोलो, सभी प्यार की डोर में बंधे हुए यहाँ पहुंच गये हो ना! यह परमात्म प्यार दिल को आराम देने वाला है। अच्छा - जो पहली बार यहाँ पहुचे हैं वह हाथ उठाओ। हाथ हिलाओ। भले पधारे।
अभी समय की समीपता प्रमाण वरदानों को हर समय अनुभव में लाओ। अनुभव की अथॉरिटी बनो। जब चाहो तब अपने अशरीरी बनने की, फरिश्ता स्वरूप बनने की एक्सरसाइज करते रहो। अभी-अभी ब्राह्मण, अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी अशरीरी, चलते फिरते, कामकाज करते हुए भी एक मिनट, दो मिनट निकाल अभ्यास करो। चेक करो जो संकल्प किया, वही स्वरूप अनुभव किया? अच्छा।
चारों ओर के सदा श्रेष्ठ स्वमानधारी, सदा स्वयं को परमपूज्य और पूर्वज अनुभव करने वाले, सदा अपने को हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनाने वाले, सदा बाप के दिलतख्त नशीन, भृकुटी के तख्तनशीन, सदा श्रेष्ठ स्थिति के अनुभवों में स्थित रहने वाले, चारों ओर के सभी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
सेवा का टर्न कर्नाटक जोन का है:- बापदादा ने कर्नाटक वालों को काम दिया था, याद है। क्या दिया था! वारिस क्वालिटी निकाले के लिए, याद है? सेवा में तो नम्बर लिया अच्छा, अभी इतने वारिस निकालो जो नम्बरवन आ जाओ। जो निमित्त हैं वह तो हैं, नये नये निकालो। तो बापदादा सभी बच्चों को देख खुश है। आप भी खुश है, बाप भी खुश है। जितना आप बाप को देखकर खुश होते हैं, उससे ज्यादा बच्चों को देख बाप खुश होते हैं।
सेवा का टर्न इन्दौर ज़ोन का है:- यज्ञ सेवा का गोल्डन चांस मिलना यह बहुत बड़ा पुण्य जमा करने का है हर कदम यज्ञ सेवा करना अर्थात् अपना पुण्य जमा करना। तो इन 10-15 दिन में हर कदम सेवा किया तो कितने पदम बने? यज्ञ सेवा महान सेवा है। और बापदादा ने देखा है कि जो भी ज़ोन यह गोल्डन चांस लेता है वह बहुत सिक व प्यार से सेवा करते हैं। रिजल्ट वेरी गुड होती है। तो आप सबकी भी रिजल्ट अच्छी है और अच्छे ते अच्छी रहेगी।
डबल विदेशी: अभी बापदादा ने देखा है कि विदेश में भी सेवा का उमंग अच्छा बढ़ रहा है। पहले कहते थे विदेश में स्टूडेन्ट बनना बड़ा मुश्किल है और अभी क्या है? अभी मुश्किल है या सहज है? सहज है? और बापदादा को बहुत अच्छा लगा कि आपस में मिलकर निर्विघ्न बनाने का प्लैन बनाया है और निर्विघ्न बनाने का प्लैन बहुत विधि पूर्वक निर्विघ्न बनाया है। इसकी बहुत-बहुत मुबारक हो, पदमगुणा मुबारक हो।