ओम् शान्ति 18-1-18 मधुबन


प्राणेश्वर अव्यक्तमूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, सदा अव्यक्त वतन की सैर करने वाले, अपनी अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त वतन को साकार वतन में उतारने वाले, सर्व फरिश्ता स्वरूप निमित्त टीचर्स बहिनें तथा ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।
बाद समाचार - इस जनवरी मास में आप सभी ने अन्तर्मुखी बन विशेष योग तपस्या की है। चारों ओर अखण्ड योग के कार्यक्रम चले हैं। बहुत से भाई बहिनों ने मौन में रहकर अव्यक्त वतन के बहुत सुन्दर अनुभव भी किये हैं। आप सबकी तपस्या के सूक्ष्म शक्तिशाली वायब्रेशन पहुंचते रहते हैं। मधुबन में भी योग के बहुत सुन्दर कार्यक्रम चल रहे हैं। हर वर्ष की भांति प्यारे साकार ब्रह्मा बाप का यह 49 वां स्मृति दिवस सभी भाई बहिनों ने बहुत स्नेह और श्रद्धा के साथ मनाया। जैसे मधुबन के चारों धामों का बहुत सुन्दर श्रृंगार कलकत्ता के भाई बहिनें फूल मालाओंसे करते हैं, ऐसे ही पूरी रात जागकरके चारों धामों का श्रंृगार किया। इन सुगन्धित वैरायटी फूलों से पूरा ही मधुबन महक उठता है। बाबा के स्नेही बच्चे अमृतवेले से ही चारों धामों की सैर करते अव्यक्त मिलन मनाते, मीठे बाबा से बहुत मीठी मीठी रूहरिहान करने पहुंच जाते हैं। इस बार गुजरात और भोपाल के भाई बहिनों की सेवा का टर्न है, इसके अलावा देश विदेश से नये पुराने अनेकानेक बच्चे भी मधुबन वरदान भूमि में अव्यक्त दिवस पर वरदानों से अपनी झोली भरने के लिए पहुंचे हुए हैं। शान्तिवन में तो करीब 25 हजार सफेद पोशाकधारी भाई बहिनों की सभा है। उसमें से कुछ भाई बहिनें सवेरे-सवेरे पाण्डव भवन पहुंच कर चारों धामों की परिक्रमा करते रहे।
शान्तिवन में दादी जानकी जी ने तथा मधुबन में दादी रतनमोहिनी जी ने प्यारे बापदादा के गहरे शिक्षाप्रद साकार वा अव्यक्त मधुर महावाक्य सुनाये, वे महावाक्य तो आप सबने भी सुने होंगे। फिर प्यारे बापदादा को भोग स्वीकार कराया गया। बापदादा भी बच्चों को स्नेह के रेसपान्ड में सदा सम्पन्न और समान भव का वरदान देते हैं। भोग के पश्चात सभी वरिष्ठ भाई बहिनें ओम् शान्ति भवन में बाबा के कमरे में गये। फिर विशाल जनसमूह स्नेह के सागर में समाया हुआ शान्तिस्तम्भ पर पहुंचा और मधुर यादों के गीत के साथ सभी ने अपने स्नेह सुमन अर्पित किये। तत्पश्चात बाबा के कमरे में तथा कुटिया में भी सभी नम्बरवार जाते अव्यक्त मिलन मनाते रहे। दादी जानकी जी भी शान्तिवन से पाण्डव भवन पहुंच गई। सभी को नज़र से निहाल करते आपने भी चारों धामों की सैर की। फिर सभी दादियां व मुख्य भाई ज्ञान सरोवर में बाबा के कमरे में होते हुए शान्तिवन में पहुंचे और दोपहर में बापदादा को भोग लगाया गया। फिर सभी ने संगठित रूप में ब्रह्माभोजन स्वीकार किया। शाम के समय सभी अन्त:वाहक शरीर द्वारा सूक्ष्मलोक की सैर करने निमित्त डायमण्ड हाल में उपस्थित हुए। क्लास एवं योग के पश्चात सभी ने वीडियो द्वारा बापदादा से सम्मुख मिलन की अनुभूति की।
आप सबको ज्ञात ही है कि हम सबकी अति स्नेही, बापदादा को अपने नयनों में सदा बसाने वाली, साकार में प्रभु मिलन कराने निमित्त बनी हुई हम सबकी आदरणीय दादी गुल्जार जी इस समय मुम्बई में स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं। उन्होंने भी सबको बहुत-बहुत स्नेह भरी याद भेजी है। अव्यक्त महावाक्य सुनने के पश्चात प्यारे बापदादा का भोग विशेष टोली सभी को मिली तथा बड़ी दादियों, वरिष्ठ भाई बहिनों ने स्मृति दिवस निमित्त अपने अनुभव सुनाये।
भ्राता निर्वैर जी ने विशेष स्मृति दिवस निमित्त अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आज के विशेष दिन पर सभी भाई बहनें बाबा के स्नेह में, जैसेकि सागर में समाये हुए रहे। देखो, आज सभा में 20-25 हजार भाई बहिनें बैठे हैं लेकिन कितनी साइलेन्स से सभी ने बाबा के महावाक्य सुने। यह बाबा के प्यार की शक्ति है, जो इतने भाई बहिनें होते भी जरा भी आवाज नहीं है। तो आज के दिन खास बाबा ने जो लक्ष्य दिया है कि एकरस अवस्था बनानी है। इसके लिए हम निरन्तर दिल से बाबा के स्नेह में डूबे रहें तो बाप समान बनते जायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाबा और शिवबाबा में अन्तर खत्म हो गया, इसी तरह हम भी अपने पुरुषार्थ से ऐसी स्थिति तक पहुंचे। जिसको बाबा वरदान रूप में कहते ''बाप समान भव''।
बृजमोहन भाई ने कहा कि आज बाबा ने मेहनत का रास्ता छोड़कर मुहब्बत का रास्ता लेने को याद कराया है। हम देखते हैं जब हमारा मन मुहब्बत में होता है तो समय का पता नहीं लगता है। तो सबसे सहज साधन यही है कि प्यारे बाबा के साथ किसी न किसी समय जो स्नेह की अनुभूति हुई है उसी स्नेह की अनुभूति को याद करें। साकार बाबा की श्रेष्ठ स्मृतियां हमारे साथ हैं। यह स्नेह ऐसी शक्ति है जिसमें मन अगर एक बार लग जाए तो हटाना ही मुश्किल हो जाता है। यह स्नेह की शक्ति संगमयुग पर भी होती तो सतयुग में भी होती। सतयुग में और सब शक्तियां गुणों में बदल जाती है लेकिन प्यार का गुण इमर्ज रहता है। तो जैसे हमारा प्रसिद्ध गीत है बचपन के दिन भुला न देना। ऐसे वह स्नेह के अनुभव की प्यारी सी घड़ी हम याद कर लेते हैं तो हमारा योग आटोमेटिक लगा रहता है।
फिर दादी जानकी जी ने तीन बारी औम शान्ति का महामन्त्र उच्चारण करते हुए कहा कि वन्डरफुल बाबा, वन्डरफुल बाबा के बच्चे। मेरी यही भावना है कि हर बाबा का बच्चा अनुभव करे कि मैं कौन! मेरा कौन! मैं और मेरा, मैने तो जिस दिन साकार बाबा को देखा, पक्का हो गया यही मेरा बाबा है। वाह बाबा वाह! व्हाई शब्द है ही नहीं। वाह मीठा बाबा वाह! बाबा ने हमको मीठा बनाने के लिए कितना प्यार दिया है। कोई घड़ी हमने न दु:ख दिया है, न लिया है। सच्ची दिल पर साहेब राज़ी है, हिम्मते बच्चे मददे बाप। नियत साफ है तो मुराद साकार हो जाती है। तन मन धन तो सफल हो ही गये। मन वचन कर्म से सेवा करने का भाग्य मिला है। बाबा ने अपना बनाकर मुस्कराना सिखा दिया है इसलिए कोई भी बात मुश्किल नहीं है। बाबा ने सच्चाई, स्नेह ऐसा दिया, पहले अपनी गोद बिठाया, फिर गले लगाया, अभी पलकों में बिठाकर साथ लेकर जा रहा है। तो श्वांसों श्वांस परमात्मा बाप की याद दिल में, मन में, बुद्धि में है, इसलिए संकल्प समय श्वांस सफल हो रहा है। बाबा कहते हैं बच्चे जीते रहो, जागते रहो, जगाते रहो।
फिर दादी रतनमोहिनी जी ने भी स्मृति दिवस निमित्त वरदानी महावाक्य उच्चारण करते हुए कहा कि बाबा ने हमें नया संसार बनाने के निमित्त बनाया है, उसके लिए हम अपने में नये संस्कार जागृत कर लें। आज हम सबने जो महावाक्य सुने हैं, उन महावाक्यों को बार-बार स्मृति में रखते हुए स्वयं का स्वरूप ऐसा ही अनुभव करते रहें। जैसे अभी सभी बड़ी शान्ति और प्रेम से बैठे हैं ऐसे सदा ही ऐसा अनुभव करते और कराते रहना।
फिर मधुरवाणी ग्रुप ने बाबा की स्मृतियों का बहुत प्यारा गीत गाया। इस प्रकार यह स्मृति सो समर्थी दिवस अनेक वरदानों से भरपूर करते सम्पन्न हुआ। अच्छा। सभी को याद.. ओम् शान्ति।
18-1-18 - बापदादा के अवतरण दिवस पर वीडियो द्वारा सुनाये गये अव्यक्त महावाक्य (रिवाइज- 18-01-08)
आज बापदादा अपने चारों ओर के बेफिक्र बादशाहों के संगठन को देख रहे हैं। इतनी बड़ी बादशाहों की सभा सारे कल्प में इस संगम के समय होती है। स्वर्ग में भी इतनी बड़ी सभा बादशाहों की नहीं होगी। लेकिन अब बापदादा सर्व बादशाहों की सभा को देख हर्षित हो रहे हैं। दूर वाले भी दिल के नजदीक दिखाई दे रहे हैं। आप सब नयनों में समाये हुए हो, वह दिल में समाये हुए हैं। कितनी सुन्दर सभा है, आज के विशेष दिवस पर सभी के चेहरों पर अव्यक्त स्थिति के स्मृति की झलक दिखाई दे रही है। सबके दिल में ब्रह्मा बाप की स्मृति समाई हुई है। आदि देव ब्रह्मा बाप और शिव बाप दोनों ही सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं।
आज तो सवेरे दो बजे से लेकर बापदादा के गले में भिन्न-भिन्न प्रकार की मालायें पड़ी हुई थी। यह फूलों की मालायें तो कामन हैं। हीरों की मालायें भी कोई बड़ी बात नहीं हैं लेकिन स्नेह के अमूल्य मोतियों की माला अति श्रेष्ठ है। हर एक बच्चे के दिल में आज के दिन स्नेह विशेष इमर्ज रहा। बापदादा के पास चार प्रकार की भिन्न-भिन्न मालायें इमर्ज थी। पहला नम्बर श्रेष्ठ बच्चों की जो बाप समान बनने के श्रेष्ठ पुरुषार्थी बच्चे हैं, ऐसे बच्चे माला के रूप में बाप के गले में पिरोये हुए थे। पहली माला सबसे छोटी थी। दूसरी माला - दिल के स्नेह समीप समान बनने के पुरुषार्थी बच्चों की माला, वह श्रेष्ठ पुरुषार्थी यह पुरुषार्थी। तीसरी माला थी - जो बड़ी थी वह थी - स्नेही भी, बाप की सेवा में साथी भी लेकिन कभी तीव्र पुरुषार्थी और कभी, कभी-कभी तूफानों का सामना ज्यादा करने वाले। लेकिन चाहने वाले, सम्पन्न बनने की चाहना भी अच्छी रहती है। चौथी माला थी उल्हनें वालों की। भिन्न-भिन्न प्रकार के बच्चों की अव्यक्त फरिश्ते फेस के रूप में मालायें थी। बापदादा भी भिन्न-भिन्न मालाओंको देख खुश भी हो रहे थे और स्नेह और सकाश साथ-साथ दे रहे थे। अभी आप सब अपने आपको सोचो मैं कौन? लेकिन चारों ओर के बच्चों में विशेष संकल्प वर्तमान समय दिल में इमर्ज है कि अब कुछ करना ही है। यह उमंग-उत्साह मैजारिटी में संकल्प रूप में है। स्वरूप में नम्बरवार है लेकिन संकल्प में है।
बापदादा सभी बच्चों को आज के स्नेह के दिन, स्मृति के दिन, समर्थी के दिन की विशेष दिल की दुआयें और दिल की बधाईयां दे रहे हैं। आज का विशेष दिन स्नेह का होने कारण मैजारिटी स्नेह में खोये हुए हैं। ऐसे ही पुरुषार्थ में सदा स्नेह में खोये हुए रहो। लवलीन रहो तो सहज साधन है स्नेह, दिल का स्नेह। बाप के परिचय की स्मृति सहित स्नेह। बाप की प्राप्तियों के स्नेह सम्पन्न स्नेह। स्नेह बहुत सहज साधन है क्योंकि स्नेही आत्मा मेहनत से बच जाती है। स्नेह में लीन होने के कारण, स्नेह में खोये हुए होने के कारण किसी भी प्रकार की मेहनत मनोरंजन के रूप में अनुभव होगी। स्नेही स्वत: ही देह के भान, देह के सम्बन्ध का ध्यान, देह की दुनिया के ध्यान से ऊपर स्नेह में स्वत: ही लीन रहते। दिल का स्नेह बाप के समीप का, साथ का, समानता का अनुभव कराता है। स्नेही सदा अपने को बाप की दुआओंके पात्र समझते हैं। स्नेह असम्भव को भी सहज सम्भव कर देता है। सदा अपने मस्तक पर, माथे पर बाप के सहयोग का, स्नेह का हाथ अनुभव करते हैं। निश्चयबुद्धि, निश्चिंत रहते हैं। आप सभी आदि स्थापना के बच्चों को आदि के समय का अनुभव है, अभी भी सेवा के आदि निमित्त बच्चों को Dानुभव है कि आदि में सभी बच्चों को बाप मिला, उस स्मृति से स्नेह का नशा कितना था! नौलेज तो पीछे मिली लेकिन पहला-पहला नशा स्नेह में खोये हुए हैं। बाप स्नेह का सागर है तो मैजारिटी बच्चे आदि से स्नेह के सागर में खोये हुए हैं, पुरुषार्थ की रफ्लातार में बहुत अच्छे स्पीड से चले हैं। लेकिन कोई बच्चे स्नेह के सागर में खो जाते हैं, कोई सिर्फ डुबकी लगाके बाहर आ जाते हैं। इसीलिए जितना खोये हुए बच्चों को मेहनत कम लगती उतनी उन्हों को नहीं। कभी मेहनत, कभी मुहब्बत, दोनों में रहते हैं। लेकिन जो स्नेह में लवलीन रहते हैं वह सदा अपने को छत्रछाया के अन्दर रहने का अनुभव करतेहैं। दिल के स्नेही बच्चे मेहनत को भी मुहब्बत में बदल लेते हैं। उन्हों के आगे पहाड़ जैसी समस्या भी पहाड़ नहीं लेकिन रूई समान अनुभव होती है। पत्थर भी पानी समान अनुभव होता है। तो जैसे आज विशेष स्नेह के वायुमण्डल में रहे तो अनुभव किया मेहनत है या मनोरंजन हुआ!
आज तो स्नेह का सबको अनुभव हुआ ना! स्नेह में खोये हुए थे? खोये हुए थे सभी! आज मेहनत का अनुभव हुआ? किसी भी बात की मेहनत का अनुभव हुआ? क्या, क्यों, कैसे का संकल्प आया? स्नेह सब भुला देता है। तो बापदादा कहते हैं कि बाप के इस स्नेह को भूलो नहीं। स्नेह का सागर मिला है, खूब लहराओ। जब भी कोई मेहनत का अनुभव हो ना, क्योंकि माया बीच-बीच में पेपर तो लेती है, लेकिन उस समय स्नेह के अनुभव को याद करो। तो मेहनत मुहब्बत में बदल जायेगी। अनुभव करके देखो। क्या है, गलती क्या हो जाती है! उस समय क्या, क्यों.. इसमें बहुत चले जाते हो। जो आया है वह जाता भी है लेकिन जायेगा कैसे? स्नेह को याद करने से मेहनत चली जायेगी क्योंकि सभी को भिन्न-भिन्न समय पर बापदादा दोनों के स्नेह का अनुभव तो है। है ना अनुभव! कभी तो किया है ना, चलो सदा नहीं है कभी तो है। उस समय को याद करो - बाप का स्नेह क्या है! बाप के स्नेह से क्याक्या अनुभव किया! तो स्नेह की स्मृति से मेहनत बदल जायेगी क्योंकि बापदादा को किसी भी बच्चे की मेहनत की स्थिति अच्छी नहीं लगती। मेरे बच्चे और मेहनत! तो मेहनत मुक्त कब बनेंगे? यह संगमयुग ही है जिसमें मेहनत मुक्त, मौज़ ही मौज़ में रह सकते हैं। मौज नहीं है तो कोई न कोई बोझ बुद्धि में है, बाप ने कहा है बोझ मुझे दे दो। मैंपन को भूल ट्रस्टी बन जाओ। जिम्मेवारी बाप को दे दो और स्वयं दिल के सच्चे बच्चे बन खाओ, खेलो और मौज करो क्योंकि यह संगमयुग सभी युग में से मौज़ों का युग है। इस मौजों के युग में भी मौज नहीं मनायेंगे तो कब मनायेंगे? बापदादा जब देखते हैं ना कि बच्चे बोझ उठाके बहुत मेहनत कर रहे हैं। दे नहीं देते, खुद ही उठा लेते। तो बाप को तो तरस पड़ेगा ना, रहम आयेगा ना। मौजों के समय मेहनत! स्नेह में खो जाओ, स्नेह के समय को याद करो। हर एक को कोई न कोई समय विशेष स्नेह की अनुभूति होती ही है, हुई है। बाप जानता है हुई है लेकिन याद नहीं करते हो। मेहनत को ही देखते रहते, उलझते रहते। अगर आज भी अमृतवेले से अब तक बापदादा दोनों अथॉरिटी के स्नेह का दिल से अनुभव किया होगा तो आज के दिन को भी याद करने से स्नेह के आगे मेहनत समाप्त हो जायेगी।
अभी बापदादा इस वर्ष में हर बच्चे को स्नेह युक्त, मेहनत मुक्त देखने चाहते हैं। मेहनत का नामनिशान दिल में नहीं रहे, जीवन में नहीं रहे। हो सकता है? हो सकता है? जो समझते हैं करके ही छोड़ना है, हिम्मत वाले हैं वो हाथ उठाओ। आज विशेष ऐसे हर बच्चे को बाप का विशेष वरदान है - मेहनत मुक्त होने का। स्वीकार है? फिर कुछ हो जाए तो क्या करेंगे? क्या, क्यों तो नहीं करेंगे ना? मुहब्बत के समय को याद करना। अनुभव को याद करना और अनुभव में खो जाना।
अभी समय की समीपता को देख रहे हो। जैसे समय की समीपता हो रही है ऐसे आप सबका भी बाप के साथ समीपता का अनुभव बढ़ना चाहिए ना। बाप से आपकी समीपता समय की समीपता को समाप्त करेगी। क्या आप सभी बच्चों को आत्माओं के दु:ख अशान्ति का आवाज कानों में नहीं सुनाई देता! आप ही पूर्वज भी हो, पूज्य भी हो। तो हे पूर्वज आत्मायें, हे पूज्य आत्मायें, कब विश्व कल्याण का कार्य सम्पन्न करेंगे?
बापदादा के पास समाचार बहुत अच्छे अच्छे आते हैं। संकल्प तक बहुत अच्छे हैं। स्वरूप में आने में यथाशक्ति हो जाते हैं। अभी दो मिनट के लिए सभी परमात्म स्नेह, संगमयुग के आत्मिक मौज की स्थिति में स्थित हो जाओ। (ड्रिल) अच्छा - यही अनुभव हर दिन बार-बार समय प्रति समय अनुभव करते रहना। स्नेह को नहीं छोड़ना। स्नेह में खो जाना सीखो। अच्छा।