18-03-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘कारण शब्द को निवारण में परिवर्तन कर मास्टर मुक्तिदाता बनो, सबको बाप के संग का रंग लगाकर समान बनने की होली मनाओ’’
आज सर्व खज़ानों के मालिक बापदादा अपने चारों ओर के खज़ाने सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के खज़ाने में कितने खज़ाने जमा हुए हैं, यह देख हर्षित हो रहे हैं। खज़ाने तो सभी को एक ही समय एक ही जैसे मिले हैं फिर भी जमा का खाता सभी बच्चों का अलग-अलग है। क्योंकि समय प्रमाण अभी बापदादा सभी बच्चों को सर्व खज़ानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं क्योंकि यह खज़ाने सिर्फ अभी एक जन्म के लिए नहीं हैं, यह अविनाशी खज़ाने अनेक जन्म साथ चलने वाले हैं। इस समय के खज़ानों को तो सभी बच्चे जानते ही हो। बापदादा ने क्या क्या खज़ाने दिये हैं वह कहने से ही सबके सामने आ गये हैं। सबके सामने खज़ानों की लिस्ट इमर्ज हो गई है ना! क्योंकि बापदादा ने पहले भी बताया है कि खज़ाने तो मिले लेकिन जमा करने की विधि क्या है? जो जितना निमित्त और निर्मान बनता है उतना ही खज़ाने जमा होते हैं।
तो चेक करो - निमित्त और निर्मान बनने की विधि से हमारे खाते में कितने खज़ाने जमा हुए हैं। जितने खज़ाने जमा होंगे, भरपूर होगा उनके चलन और चेहरे से भरपूर आत्मा का रूहानी नशा स्वत: ही दिखाई देता है। उसके चेहरे पर सदा रूहानी नशा वा फखुर चमकता है और जितना ही रूहानी फखुर होगा उतना ही बेफिक्र बादशाह होगा। रूहानी फखुर अर्थात् रूहानी नशा बेफिक्र बादशाह की निशानी है। तो अपने को चेक करो कि मेरे चलन और चेहरे पर बेफिक्र बादशाह का निश्चय और नशा है? दर्पण तो सबको मिली हुई है ना! तो दिल के दर्पण में अपना चेहरा चेक करो। किसी भी प्रकार का फिक्र तो नहीं है। क्या होगा! कैसे होगा! यह तो नहीं होगा! कोई भी संकल्प रह तो नहीं गया है? बेफिक्र बादशाह का संकल्प यही होगा जो हो रहा है वह बहुत अच्छा और जो होने वाला है वह और ही अच्छे ते अच्छा होगा। इसको कहा जाता है फखुर, रूहानी फखुर अर्थात् स्वमानधारी आत्मा। विनाशी धन वाले जितना कमाते उतना समय प्रमाण फिकर में रहते। आपको अपने ईश्वरीय खज़ानों के लिए फिकर है? बेफिक्र हो ना! क्योंकि जो खज़ानों के मालिक और परमात्म बालक हैं वह सदा ही स्वप्न में भी बेफिक्र बादशाह हैं क्योंकि उसको निश्चय है कि यह ईश्वरीय खज़ाने इस जन्म में तो क्या लेकिन अनेक जन्म साथ हैं, साथ रहेंगे। इसीलिए वह निश्चयबुद्धि निश्चिंत हैं।
तो आज बापदादा चारों ओर के बच्चों का जमा का खाता देख रहे थे। पहले भी सुनाया है कि विशेष तीन प्रकार के खाते जमा किये हैं और कर सकते हैं। एक है - अपने पुरूषार्थ प्रमाण खज़ाने जमा करना। यह एक खाता है। दूसरा खाता है - दुआओं का खाता। दुआओं का खाता जमा होने का साधन है सदा सम्बन्ध-सम्पर्क और सेवा में रहते हुए संकल्प, बोल और कर्म में, तीनों में स्वयं भी स्वयं से सन्तुष्ट और दूसरे भी सर्व और सदा सन्तुष्ट हों। सन्तुष्टता दुआओं का खाता बढ़ाती है। और तीसरा खाता है - पुण्य का खाता। पुण्य के खाते का साधन है - जो भी सेवा करते हैं, चाहे मन से, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से, चाहे सम्बन्ध में, सम्पर्क में आते सदा नि:स्वार्थ और बेहद की वृत्ति, स्वभाव, भाव और भावना से सेवा करना। इससे पुण्य का खाता स्वत: ही जमा हो जाता है। तो चेक करो - चेक करना आता है ना! आता है? जिसको नहीं आता हो वह हाथ उठाओ। जिसको नहीं आता है, कोई नहीं है माना सभी को आता है। तो चेक किया है? कि स्व पुरूषार्थ का खाता, दुआओं का खाता, पुण्य का खाता तीनों कितनी परसेन्ट में जमा हुआ है? चेक किया है? जो चेक करता है वह हाथ उठाओ। चेक करते हो? पहली लाइन नहीं करती है? चेक नहीं करते? क्या कहते हैं? करते हैं ना! क्योंकि बापदादा ने सुना दिया है, इशारा दे दिया है कि अभी समय की समीपता तीव्रगति से आगे बढ़ रही है इसलिए अपनी चेकिंग बारबार करनी है। क्योंकि बापदादा हर बच्चे को राजा बच्चा, राजयोगी सो राजा बच्चा देखने चाहते हैं। यही परमात्म बाप को रूहानी नशा है कि एक-एक बच्चा राजा बच्चा है। स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी परमात्म बच्चा है।
तो खज़ाने तो बापदादा द्वारा मिलते ही रहते हैं। इस खज़ानों के जमा करने की बहुत सहज विधि है - विधि कहो या चाबी कहो, वह जानते हो ना! जमा करने की चाबी क्या है? जानते हो? तीन बिन्दियां। है ना सभी के पास चाबी? तीन बिन्दियां लगाओ और खज़ाने जमा होते जायेंगे। माताओं को चाबी लगाने आती हैं ना, चाबी सम्भालने में होशियार होती हैं ना! तो सभी माताओं ने यह तीन बिन्दियों की चाबी सम्भालकर रखी है, लगाई है? बोलो, मातायें चाबी है? जिसके पास है वह हाथ उठाओ। मातायें उठाओ। चाबी चोरी तो नहीं हो जाती है? वैसे घर के हर चीज़ की चाबी माताओं को सम्भालने बहुत अच्छी आती है। तो यह चाबी भी सदा साथ में रहती है ना?
तो वर्तमान समय बापदादा यही चाहते हैं - अभी समय समीप होने के नाते से बापदादा एक शब्द सभी बच्चों के अन्दर से, संकल्प से, बोल से और प्रैक्टिकल कर्म से चेन्ज करना देखने चाहते हैं। हिम्मत है? एक शब्द यही बापदादा हर बच्चे का परिवर्तन कराना चाहते हैं, जो एक ही शब्द बार-बार तीव्र पुरूषार्थ से अलबेला पुरूषार्थी बना देता है और अभी समय अनुसार कौन सा पुरूषार्थ चाहिए? तीव्र पुरूषार्थ और सब चाहते भी हैं कि तीव्र पुरूषार्थियों के लाइन में आयें लेकिन एक शब्द अलबेला कर देता है। पता है वह? परिवर्तन करने के लिए तैयार हैं? है तैयार? हाथ उठाओ, तैयार हैं? देखो, आपका फोटो टी.वी. में आ रहा है। तैयार हैं, अच्छा मुबारक हो। अच्छा - तीव्र पुरूषार्थ से परिवर्तन करना है या कर लेंगे, देख लेंगे... ऐसे तो नहीं? एक शब्द जान तो गये होंगे, क्योंकि सब होशियार हैं, एक शब्द वह है कि ‘कारण’ शब्द को परिवर्तन कर ‘निवारण’ शब्द को सामने लाओ। कारण सामने आने से वा कारण सोचने से निवारण नहीं होता है। तो बापदादा संकल्प तक, सिर्फ बोलने तक नहीं लेकिन संकल्प तक यह कारण शब्द को निवारण में परिवर्तन करने चाहते हैं क्योंकि कारण भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं और वह कारण शब्द सोचने में, बोलने में, कर्म में आने में तीव्र पुरूषार्थ के आगे बन्धन बन जाता है क्योंकि आप सभी का बापदादा से वायदा है, स्नेह से वायदा है कि हम सभी भी बाप के, विश्व परिवर्तन के कार्य में साथी हैं। बाप के साथी हैं, बाप अकेला नहीं करता है, बच्चों को साथ लाते हैं। तो विश्व परिवर्तन के कार्य में आपका क्या कार्य है? सर्व आत्माओं के कारणों को भी निवारण करना क्योंकि आजकल मैजारिटी दु:खी और अशान्त होने के कारण अभी मुक्ति चाहते हैं। दु:ख अशान्ति से, सर्व बन्धनों से मुक्ति चाहते हैं और मुक्तिदाता कौन? बाप के साथ आप बच्चे भी मुक्तिदाता हैं। आपके जड़ चित्रों से आज तक क्या मांगते हैं? अभी दु:ख अशान्ति बढ़ते देख सभी मैजारिटी आत्मायें आप मुक्तिदाता आत्माओं को याद करती हैं। मन में दु:खी होके चिल्लाते हैं - हे मुक्तिदाता मुक्ति दो। क्या आपको आत्माओं के दु:ख अशान्ति की पुकार सुनने नहीं आती? लेकिन मुक्तिदाता बन पहले इस ‘कारण’ शब्द को मुक्त करो। तो स्वत: ही मुक्ति का आवाज आपके कानों में गूंजेगा। पहले अपने अन्दर से इस शब्द से मुक्त होंगे तो दूसरों को भी मुक्त कर सकेंगे। अभी तो दिन-प्रतिदिन आपके आगे मुक्तिदाता मुक्ति दो की क्यू लगने वाली है। लेकिन अभी तक अपने पुरूषार्थ में भिन्नभिन्न कारण शब्द के कारण मुक्ति का दरवाजा बन्द है। इसीलिए आज बापदादा इस शब्द के, इसके साथ और भी कमज़ोर शब्द आते हैं। विशेष है कारण फिर उसमें और भी कमज़ोरियाँ होती हैं, ऐसे वैसे, कैसे, यह भी इनके साथी शब्द हैं, जो दरवाजे बन्द के कारण हैं।
तो आज सब होली मनाने आये हो ना । सब भाग-भाग करके आये हैं। स्नेह के विमान में चढ़के आये हैं। बाप से स्नेह है, तो बाप के साथ होली मनाने पहुंच गये हैं। मुबारक हो, भले पधारे। बापदादा मुबारक देते हैं। बापदादा देख रहे हैं, कुर्सी पर चलने वाले भी, तबियत थोड़ी नीचे ऊपर होते भी हिम्मत से पहुंच गये हैं। बापदादा यह दृश्य देखते हैं, यहाँ क्लास में आते हैं ना। प्रोग्राम में आते हैं तो चेयर पर भी चलके पण्डे को पकड़कर आ जाते हैं। तो इसको क्या कहा जायेगा? परमात्म प्यार। बापदादा भी ऐसे हिम्मतवान स्नेही, दिल के स्नेही बच्चों को बहुत-बहुत दिल की दुआयें, दिल का प्यार विशेष दे रहे हैं। हिम्मत रखके आये हैं, बाप के और परिवार की मदद है ही। सभी को स्थान ठीक मिला है? मिला है? जिसको स्थान ठीक मिला है वह हाथ उठाओ। फॉरेनर्स को ठीक मिला है? मेला है मेला। वहाँ मेले में तो रेत भी चलती रहती है, खाना भी चलता रहता है। आपको ब्रह्मा भोजन अच्छा मिला, मिलता है? अच्छा हाथ हिला रहे हैं। सोने की तीन पैर पृथ्वी मिली।ऐसा मिलन फिर 5 हजार वर्ष के बाद संगम पर ही होगा। फिर नहीं होगा।
तो आज बापदादा को संकल्प है कि सब बच्चों के जमा खाते को देखें। देखा भी है, आगे भी देखेंगे क्योंकि बापदादाने यह पहले ही बच्चों को सूचना दे दी है कि जमा के खाते जमा करने का समय अब संगमयुग है। इस संगमयुग पर अबजितना जमा करने चाहो, सारे कल्प का खाता अब जमा कर सकते हो। फिर जमा के खाते की बैंक ही बन्द हो जायेगी।फिर क्या करेंगे? इसलिए बापदादा को बच्चों से प्यार है ना। तो बापदादा जानते हैं कि बच्चे अलबेलेपन में कभी भूल जातेहैं, हो जायेगा, देख लेंगे, कर तो रहे हैं, चल तो रहे हैं ना। बड़े मजे से कहते, आप देख नहीं रहे हो, हम कर रहे हैं, हाँचल तो रहे हैं और क्या करें? लेकिन चलना और उड़ना कितना फर्क है? चल रहे हो मुबारक है। लेकिन अभी चलने कासमय समाप्त हो रहा है। अभी उड़ने का समय है। तभी मंज़िल पर पहुंच सकेंगे। साधारण प्रजा में आना, भगवान का बच्चाऔर साधारण प्रजा! शोभता है? इसीलिए बापदादा यही चाहता है कि आज से होली का अर्थ है ना - बीती सो बीती। तोहोली मनाने आये हो, तो बीती सो बीती, कोई भी कारण से अगर कोई भी कमज़ोरी रही हुई है तो अब घड़ी बीती सो बीती कर अपना चित्र स्मृति में लाओ, अपना ही चित्रकार बन अपना चित्र निकालो।
पता है - बापदादा अभी भी एक-एक बच्चे का कौन सा चित्र सामने देख रहा है? पता है कौन सा चित्र देख रहे हैं? अभी आप सभी भी अपना चित्र खींचो। आता है चित्र खींचने आता है ना! श्रेष्ठ संकल्प की कलम से अपना चित्र अभी-अभी सामने लाओ। पहले सभी ड्रिल करो, माइन्ड ड्रिल। कर्मेन्द्रियों की ड्रिल नहीं, मन की ड्रिल करो। रेडी, ड्रिल करने के लिए रेडी हैं। कांध हिलाओ। देखो सबसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ चित्र होता है, ताज, तख्त, तिलकधारी का। तो अपना चित्र सामने लाओ। और सब संकल्प किनारे कर देखो, आप सभी बापदादा के दिलतख्त नशीन हैं। तख्त है ना! ऐसा तख्त तो कहाँ भी नहीं मिलेगा। तो पहले यह चित्र निकालो कि मैं विशेष आत्मा, स्वमानधारी आत्मा, बापदादा की पहली रचना श्रेष्ठ आत्मा, बापदादा के दिलतख्तनशीन हूँ। तख्तनशीन हो गये! साथ में परमात्म रचना इस वृक्ष के जड़ में बैठी हुई पूर्वज और पूज्य आत्मा हूँ, इस स्मृति का तिलकधारी हूँ। स्मृति का तिलक लगाया! साथ में बेफिकर बादशाह, सारा फिकर का बोझ बापदादा को अर्पण कर डबल लाइट की ताजधारी हूँ। तो ताज, तिलक और तख्तधारी, ऐसी बाप अर्थात् परमात्म प्यारी आत्मा हूँ।
तो यह चित्र अपना खींच लिया। सदा यह डबल लाइट का ताज चलते फिरते धारण कर सकते हो। कभी भी अपना स्वमान याद करो तो यह ताज, तिलक, तख्तनशीन आत्मा हूँ, यह अपना चित्र दृढ़ संकल्प द्वारा सामने लाओ। याद है - शुरू-शुरू में आप लोगों का अभ्यास बार-बार एक शब्द की स्मृति में रहता था, वह एक शब्द था - मैं कौन? यह मैं कौन? यह शब्द बार-बार स्मृति में लाओ और अपने भिन्न-भिन्न स्वमान, टाइटल, भगवान के मिले हुए टाइटल। आजकल लोगों को, मनुष्य को मनुष्य से टाइटल मिलता तो भी कितना महत्व समझते हैं और आप बच्चों को बाप द्वारा कितने टाइटल मिले हैं? स्वमान मिले हैं? सदा स्वमान की लिस्ट अपने बुद्धि में मनन करते रहो। मैं कौन? लिस्ट लाओ। इसी नशे में रहो तो कारण जो हैं ना, वह शब्द मज र् हो जायेगा और निवारण, हर कर्म में दिखाई देगा। जब निवारण का स्वरूप बन जायेंगे तो सव र् आत्माओं को निर्वाणधाम, मुक्तिधाम में सहज जाने का रास्ता बताए मुक्त कर लेंगे।
दृढ़ संकल्प करो - आता है दृढ़ संकल्प करना? जब दृढ़ता होती है तो दृढ़ता सफलता की चाबी है। जरा भी दृढ़ संकल्प में कमी नहीं लाओ क्योंकि माया का काम है हार खिलाना और आपका काम क्या है? आपका काम है - बाप के गले का हार बनना, न माया से हार खाना। तो सभी यह संकल्प करो मैं सदा बाप के गले की विजय माला हूँ। गले का हार हूँ। गले का हार विजयी हार है। तो बापदादा हाथ उठवाते हैं तो आप क्या बनेंगे? सब क्या उत्तर देते हैं? एक ही उत्तर देते हैं लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। रामसीता नहीं। तो लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हम बापदादा के विजयी माला के मणके हैं, पूज्य आत्मायें हैं, आपके माला का मणका जपते जपते अपनी समस्याओं को समाप्त करते हैं। ऐसे श्रेष्ठ मणके हो। तो आज बापदादा को क्या देंगे? होली की कोई तो गिफ्ट देंगे ना! यह कारण शब्द, यह तो तो, और कारण, तो तो करेंगे तो तोता बन जायेंगे ना। तो तो भी नहीं, ऐसे वैसे भी नहीं, कोई भी प्रकार का कारण नहीं, निवारण।
तो आज, होली बापदादा के सदा संग में रहने की, कम्बाइण्ड रहने की होली मनाई? सबसे पक्के में पक्का संग में रहना है कम्बाइण्ड रूप। साथ वाला फिर भी आगे पीछे हो सकता लेकिन कम्बाइण्ड सदा साथ रहता है। तो होली अर्थात् बाप के संग के रंग में रहना। बाप का रंग लगाना है अर्थात् समान बनना है। तो कम्बाइण्ड हैं ना कि कभी-कभी हैं! कई बच्चे देखा है पुरूषार्थ करके थोड़े कमज़ोर हो जाते हैं ना तो अकेलापन पसन्द करते हैं, कोई को साथ नहीं पसन्द करते, अकेला रहना, अकेला सोचना, यह अकेलापन भी नहीं ठीक, प्रभू परिवार है। इतने प्रभु परिवार के साथी अकेले कैसे होंगे! यह माया की चालाकी हैं। पहले अकेला कर देती फिर वार करती। माला में देखो अकेला मोती है? माला में विशेषता क्या है? एक मोती का दूसरे मोती से समीप का सम्बन्ध है, जरा भी बीच में धागा नहीं दिखता है। स्नेही, सहयोगी, साथी यही आपका यादगार है। तो होली मनाई? बाप समान बनना अर्थात् संग के रंग में आ जाना। तो सबका संकल्प क्या है? समान बनना है ना! बाप को खुशी है, बापदादा एक-एक बच्चे को समान बनने की, श्रेष्ठ संकल्प करने की पदम पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। नशा है ना - हमारे जितना पदम-पदम भाग्यवान कौन? इसी नशे में रहो।
जो पहले बारी मिलने आये हैं वह हाथ उठाओ। तो पहले बारी जो बच्चे हिम्मत रखके आये हैं उन्हों को विशेष बापदादा इस संगठन के मौज मनाने की मुबारक दे रहे हैं और साथ में विशेष वरदान दे रहे हैं - वह वरदान है अमर भव। यह वरदान सदा अमृतवेले मिलन मनाने के बाद सारे दिन के लिए बार-बार याद रखना। अमर हूँ, अमर बाप का बच्चा हूँ, अमरपद प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ। जन्म भले लेंगे लेकिन सुख शान्ति अमर रहेगी। अच्छा।
सेवा का टर्न दिल्ली-आगरा का है:- बापदादा ने देखा है जिस भी जोन को टर्न मिलता है ना वह बड़ी दिल से, खुली दिल से सभी को चांस दिला देते हैं। अच्छा है यह, डबल फायदा हो जाता है। एक है यज्ञ सेवा का और दूसरा यज्ञ सेवा का पुण्य तो बहुत बड़ा है। एक का लाख गुणा फल मिलता है। यज्ञ की महिमा कम नहीं है। तो जो भी आते हैं उनको बहुत फायदे हैं। एक यज्ञ सेवा का पुण्य जमा होता है और दूसरा इतनी श्रेष्ठ आत्मायें मधुबन में ही इकट्ठी मिलती हैं। चाहे पाण्डव हैं, चाहे दादियां हैं, चाहे महारथी बहन-भाई हैं और साथ में इतना बेहद का परिवार कहाँ मिलेगा आपको। सतयुग में भी छोटा परिवार होगा। अभी कितनी संख्या आई है? (17,500 भाई-बहनें आये हैं, उसमें 500 बच्चे हैं) 500 बच्चे आये हैं तो कितने तकदीरवान हैं। इतने हजारों का परिवार न सतयुग में मिलेगा, न त्रेता में मिलेगा, न द्वापर, कलियुग में मिलेगा। ऐसा एक परिवार 17 हजार का परिवार, कभी सुना है! सम्भालना ही मुश्किल हो जाए। लेकिन यहाँ देखो सभी मजे मजे से रह रहे हैं। तो कितना फायदा है। परिवार से मिलना कब नहीं होता है। और यह तो विशेष भगवान का परिवार है।
अच्छा दिल्ली वालों ने भविष्य राजधानी दिल्ली को बनाना है ना। पक्का है ना! तैयार हो ना! तो सभी के लिए बहुत बड़ा परिवार है, सभी आपकी दिल्ली में आयेंगे। साथी बनेंगे आपके? तो तैयारी भी तो करनी है ना। तो तैयारी की है दिल्ली में? आह्वाहन किया है सभी को? अभी तो दिल्ली खिटपिट में हो। रोज खबरें सुनो तो क्या खबरें आती हैं? गड़बड़ सड़बड़। और अब क्या बनेंगी? कौन सी दिल्ली बनेंगी? सोने की दिल्ली बनेंगी। सभी को स्थान देंगे ना। सभी को राजधानी में मंगायेंगे ना। तो दिल्ली वालों को पहले दिल्ली को तैयार करना पड़ेगा। तब तो आयेंगे ना सभी। दिल्ली वालों में विशेषतायें हैं। बापदादा ने देखा है कि दिल्ली वालों ने कई सेवाओं की विशेषतायें इमर्ज की हैं। निमित्त बनें हैं। अभी दिल्ली को सोने की दिल्ली बनाने के लिए ऐसा कोई प्लैन बनाओ जो सबके दिल से निकले वाह! निमित्त दिल्ली वाले आपने हमको स्वर्ग का राज्य भाग्य दिला दिया! क्योंकि दिल्ली में ही स्वर्ग बनना है। स्थापना तो वहाँ होनी है। अच्छा है, संगठन भी अच्छा है और सेवा के प्लैन बनाने में भी विशेष आत्मायें हैं। और दिल्ली से साकार ब्रह्मा और जगदम्बा और निमित्त बनी हुई सर्व दादियों का प्यार रहा है। कोई दादी है जो दिल्ली में नहीं गई हो! कोई नहीं है। तो दिल्ली वाले अभी सेवा में भी कोई नया प्लैन बनाओ। अभी सभी जोन नवीनता चाहते हैं, क्योंकि बहुत कर चुके हैं ना। अभी अमृतवेले खास बैठना और कोई नये प्लैन को सोचना, निकल आयेगा। अभी भी जो सेवा कर रहे हो वह अच्छी कर रहे हो। सभी जोन कुछ न कुछ करते तो रहते हैं। बापदादा ने सुना - कि जहाँ बापदादा ने बच्चों को सेवा करने के लिए गिफ्ट में स्थान बनाके दिया है, चाहे दिल्ली ओ.आर.सी. में, चाहे हैदराबाद में, हैदराबाद वाली कहाँ है (कुलदीप बहन को) अभी वहाँ भी अच्छी सेवा की लहर आरम्भ हो गई है। अच्छी हिम्मत रखी है, हिम्मत की बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। दिल्ली में भी भिन्न-भिन्न प्रकार से स्थान बिजी रखने में अच्छी मेहनत कर रहे हैं। वैसे बापदादा के पास सभी जोन भिन्न-भिन्न रूप में, जैसे गुजरात है वह यूथ की कर रहे हैं, चाहे गांव में कर रहे हैं, चाहे यूथ की कर रहे हैं। तो हर एक जोन अपने-अपने हिसाब से सेवा में अच्छी रूचि रख रहे हैं क्योंकि हर एक जोन में भिन्न-भिन्न वर्ग होने के कारण वर्गीकरण की सेवा सहज है। समाचार तो बापदादा के पास आता है, बापदादा खुश होते हैं लेकिन अभी चाहिए, जैसे पहले छोटा-छोटा बेल बजाके एडवरटाइज करते हैं और कहाँ-कहाँ बड़े ते बड़ा ढोल बजाते हो, वार्निग देते हैं यह होना है, यह होना है। अभी ऐसा कोई बुलन्द आवाज का बड़ा ढोल बजाओ। छोटे-छोटे ढोल बज रहे हैं। शिवरात्रि पर बापदादा ने देखा कि कईयों ने बोर्ड भी लगाये, आ गया, आ गया... लेकिन सबके दिलों तक नहीं पहुंचा है। अभी सबके दिल में यह आवाज आवे, हमारा बाबा आ गया।
तो कौन सा जोन पहले करेगा? जो भी जोन करे बापदादा सभी को चांस देते हैं। कम से कम जो वर्ग का प्रोग्राम करते हो उसमें आई हुई सारी सभा दिल से कहे, नारा नहीं लगाये आ गया, आ गया, दिल से कहे हमारा बाबा आ गया। थोड़े बोलते हैं, थोड़े समझते हैं लेकिन सारी सभा अपने उमंग उत्साह से कहे आ गया। यह तो कर सकते हो। सारी सभा को तैयार करो। आते तो हैं, लेकिन मानें भी। समय तो समीप आ ही रहा है तो मुबारक है दिल्ली वालों को। क्योंकि दिल्ली वालों की जिम्मेवारी बहुत बड़ी है। और पहले-पहले सेवा की स्थापना कायदे प्रमाण, आजकल के कायदे प्रमाण सेन्टर नहीं, लेकिन सेवा का आरम्भ दिल्ली से हुआ है। तो अभी और कमाल करना। कोई की भी बुद्धि में प्लैन आ सकता है। अच्छा - मुबारक हो।
आगरा वाले उठो - थोड़े हैं। फिर भी आगरा वाले विशेष सेवा कर सकते हैं। जो आजकल की गवर्मेन्ट है उस गवर्मेन्ट द्वारा आगरा में सेवा होती है, उससे भी ज्यादा आगरा में आलमाइटी गवर्मेन्ट द्वारा सेवा होनी है। तो अभी ऐसा प्लैन आगरा वाले बनाओ जो आलमाइटी गवर्मेन्ट की सेवा का नाम बुलन्द हो। जब दूसरे बारी आओ तो सारी सेवा का आपस में प्लैन बनाके कोई साथी बनाना हो, कोई की मदद लेनी हो तो मदद भी लेके बापदादा को प्रैक्टिकल रिजल्ट बताना कि इस वर्ष यह यह सेवा विशेष हुई। टीचर्स कहाँ हैं? तो करेंगे? सारा प्लैन बनाके आना। कहाँ-कहाँ की, जैसे कई जोन बनाके लाते हैं, कहाँ-कहाँ की, क्या नवीनता की, कहॉ तक आवाज फैला यह सारा रिकार्ड ले आना। ठीक है। हैं थोड़े लेकिन 5 पाण्डवों ने क्या नहीं किया। तो आप यह कमाल दिखाओ, संख्या कम और सेवा सबसे ज्यादा। ठीक है। अच्छा है। ब्रह्मा बाप का तो आगरा के ऊपर बहुत ध्यान रहा। तो ब्रह्मा बाप को सबूत देना। अच्छा। अच्छा है सेवा का चांस लिया, बहुत अच्छा।
डबल विदेशी - 50 देशों के 700 भाई बहिने आये हैं:- अंकल जी भी आये हैं वाह!। बापदादा को खुशी होती है इस युगल को देख करके, परिवार को देख करके। क्योंकि ब्राह्मण परिवार में कायदे प्रमाण जो पहला पहला वी.आई.पी निमित्त बना वह आप बने हो। ताली तो बजाओ। और कमाल यह है कि ड्युटी पर गवर्मेन्ट की ड्युटी पर होते सेन्टर स्थापन किया और अनेक वी.आई.पीज को परिचय दिया। चाहे ग्याना में खोला, लेकिन ग्याना ही अमेरिका की सेवा के निमित्त बना। तो सिर्फ ग्याना के नहीं हो, अमेरिका सेवा के भी निमित्त हो। इसीलिए बापदादा को बहुत दुआयें भी हैं, दिल का यादप्यार भी पदम पदम गुणा है। आण्टी कहाँ है? बच्चियां भी आई है ना। लाडली हैं, परिवार की भी लाडली, बापदादा की भी लाडली। हैं ना। अच्छा है।
डबल फारेनर्स को बापदादा ने टाइटल क्या दिया? डबल तीव्र पुरूषार्थी। वह तो सदा बापदादा कहते हैं कि डबल फारेनर्स ने बापदादा का विश्व परिवर्तक का टाइटल सिद्ध किया। नहीं तो सब कहते थे भारत कल्याणी हैं, विदेश के कारण विश्व कल्याणकारी बनें प्रैक्टिकल में। और बापदादा ने देखा है कि हर सीजन में डबल फॉरेनर्स की संख्या बढ़ती जाती है और विशेष परिवर्तन यह है कि पहले जो यह आवाज निकलता है हमारा कल्चर, भारत का कल्चर, यह आवाज नहीं है। परिवर्तन हो गया। अभी सभी का एक ही कल्चर हो गया, ब्राह्मण कल्चर। पसन्द है ना। ब्राह्मण कल्चर पसन्द है? पसन्द है, इसलिएबापदादा को भी आप डबल फॉरेनर्स बहुत- बहुत बहुत पसन्द हो। क्योंकि विशेषता यह है कि अगर करेंगे कोई भी कार्य तो पूरा करेंगे। हिम्मत रख करके हाँ तो हाँ, ना तो ना। इसमें होशियार हैं। लेकिन मैजारिटी हाँ जी, हाँ जी हैं। मीठा बाबा, मीठी दादियां, मीठा परिवार, हाँ जी, हाँ जी करने में अच्छे आगे जा रहे हैं। पहले फॉरेन में कहते थे स्टूडेन्ट का बढ़ना बहुत मुश्किल है। अभी मुश्किल है? अभी आ रहे हैं ना। अभी वी.आई.पी भी सम्बन्ध सम्पर्क में आ रहे हैं। तो आप सबकी दिल का उमंग उत्साह आपको भी आगे बढ़ा रहा है और सेवा को भी आगे बढ़ा रहा है। आगे बढ़ रहे हैं ना! बढ़ रहे हैं ना? सन्तुष्ट हो ना! अच्छा है, यह आबू में जो संगठन करते हो ना, यह सबमें बल भर जाता है। इसीलिए अवश्य हर सीजन में आते रहो, आते रहो, यज्ञ की शोभा बढ़ाते रहो। बापदादा को इन्हों की जो मीटिंग रखते हैं और प्रोग्रामस रखते हैं, डायलॉग का, समय की पुकार का, अच्छा लगता है। अच्छा मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
मातायें सभी हाथ उठाओ:- (10 हजार मातायें आई हैं) अच्छे हाथ दिखाई दे रहे हैं, बापदादा भी हाथ हिला रहे हैं। माताओं को वरदान है विशेष जिस सेन्टर में मातायें बहुत अच्छी पुरूषार्थी हैं, स्नेही हैं बापदादा का वरदान है, जहाँ मातायें हैं वहाँ यज्ञ का भण्डारा और यज्ञ की भण्डारी सदा भरपूर है। अच्छा है। माताओं के स्नेह की जो यज्ञ सेवा है उसमें बरक्कत है। तो बरक्कत होने के कारण भण्डारी और भण्डारे में भी बरक्कत हो जाती है इसीलिए माताओं को बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। मुबारक दे रहे हैं, मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
पाण्डव हाथ उठाओ:- पाण्डव भी बहुत हैं। देखो, पाण्डवों के बिना सेन्टर की सेवा में उन्नति नहीं हो सकती है। पाण्डव एक तो सेवा के प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं, पाण्डवों को यह वरदान मिला हुआ है। सेवा के नये-नये प्लैन अच्छे बनाते हैं और शक्तियों के रखवाले हैं। सदा पाण्डव यही समझें, कहाँ भी रहते हो चाहे सेन्टर पर रहते हो, चाहे घर में रहते हो लेकिन शक्तियों के रखवाले हो। कोई की भी कोई उल्टी सुल्टी नज़र न जाये। ऐसे सेवाधारी हो। और पाण्डव अगर नहीं आते तो जो इस श्रेष्ठ ज्ञान की विशेष नवीनता है कि यहाँ प्रवृत्ति में रहते न्यारे और प्यारे, परिवार में रहते न्यारे और प्यारे, मोहजीत नष्टोमोहा, वह पाण्डव नहीं होते, सिर्फ शक्तियां होती तो कैसे चलता! इसीलिए कहाँ शक्तियों की महिमा है, कहाँ पाण्डवों की है और इसका चित्र चतुर्भुज का चित्र है। पाण्डवों के बिना भी बाप का कार्य आगे नहीं बढ़ सकता और शक्तियों के बिना भी बाप का कार्य पूरा नहीं। इसीलिए परिवार के परिवार की आवश्यकता क्या, महत्व है। छोटे बच्चे भी कम नहीं है, छोटे बच्चों को देखकर सब खुश होते हैं। जो छोटे बच्चे आये हैं वह उठो। हाथ हिलाओ। तो आपको क्या कहेंगे? वाह! बच्चे वाह! बच्चों की भी महिमा है, अगर बच्चे नहीं चलते तो प्रवृत्ति थोड़ेही कहेंगे। प्रवृत्ति में बच्चे भी चाहिए, पाण्डव भी चाहिए, शक्ति भी चाहिए। तो सुना बच्चों ने भी रिट्रीट की है। कुमारों की रिट्रीट हुई है, कुमारियों की भी रिट्रीट हुई है। जिनकी रिट्रीट हुई है वह उठो। अधरकुमार भी उठो, यूथ भी उठो।
बापदादा के पास सारा समाचार आता है। आप लोगों ने जो पुरूषार्थ किया, चाहे कुमारों ने चाहे अधरकुमारों ने, बापदादा खुश है कि मधुबन के वायुमण्डल में आकर अपनी स्थिति को, अपने पुरूषार्थ को आगे बढ़ाया, यह बहुत अच्छा है। क्योंकि यहाँ जैसा वायुमण्डल और कहाँ नहीं मिलता। अभी सिर्फ चाहे यूथकुमार, चाहे अधरकुमार, जो यहाँ तीव्र पुरुषार्थ की अनुभूति की, अनुभूति की तीव्र पुरूषार्थ की? वह अमर रखना। अमर भव का वरदान सदा याद रखना। ऐसे नहीं वहाँ जाओ तो कहो तीव्र पुरूषार्थ नहीं, पुरूषार्थ है नहीं। और ही कहना हम तो और ही उड़ती कला में उड़ रहे हैं। ठीक है। ऐसी रिजल्ट निकालना। बहुत अच्छा किया। बापदादा खुश है। अच्छा।
अभी एक सेकण्ड में सभी ब्राह्मण अपने राजयोग का अभ्यास करते हुए मन को एकाग्र करने का मालिक बन मन को जहाँ चाहो, जितना समय चाहो, जैसे चाहो वैसे अभी-अभी मन को एकाग्र करो। कहाँ भी मन यहाँ-वहाँ चंचल नहीं हो। मेरा बाबा, मीठा बाबा, प्यारा बाबा इस स्नेह के संग के रंग की, आध्यात्मिक होली मनाओ। (ड्रिल) अच्छा।
चारों ओर के श्रेष्ठ विशेष होली और हाइएस्ट बच्चों को, सदा स्वयं को बाप समान सर्व शक्तियों से सम्पन्न मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करने वाले, सदा हर कमज़ोरियों से मुक्त बन अन्य आत्माओं को भी मुक्ति दिलाने वाले मुक्तिदाता बच्चों को, सदा स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले, सदा अमर भव के वरदान के अनुभव स्वरूप रहने वाले, ऐसे चारों ओर के, चाहे सामने बैठने वाले, चाहे दूर बैठे स्नेह में समाये हुए बच्चों को यादप्यार वा अपने उमंग-उत्साह, पुरूषार्थ के समाचार देने वालों को बापदादा का बहुत-बहुत दिल का यादप्यार और दिल की पदम पदमगुणा यादप्यार स्वीकार हो और सभी राजयोगी सो राज्य अधिकारी बच्चों को नमस्ते।
मोहिनी बहन से:- (तबियत का समाचार सुनाया) अच्छा किया समय पर पूरा करके आ गई। यह बुद्धि की होशियारी है। बहुत अच्छा।
(दादी जानकी से) मजा आ रहा है ना। (क्या बताऊं, कैसे बताऊं) आंखों से। यह अच्छा है, चलाने वाला चला रहा है। (एज में सबसे बड़ी हूँ) मुबारक हो। (सब बापदादा को देख लें) यह आंखें देखें ना, दुनिया देखे बाबा क्या करता है, कैसे करता है। अच्छा, (दादियों से) सभी ठीक हैं! सब आदि रत्न हैं। बहुत अछा। उड़ रहे हैं। अच्छा। ठीक, बैठ जाओ। पुरानी चीज़ें जो होती हैं ना अमूल्य होती हैं, उन्हों का मूल्य बहुत होता है।
रमेश भाई, ऊषा बहन, डा.अनिला बहन से:- बहुत अच्छा किया। यह तो आदि रत्न है। सेवा का आदि रत्न। पहला परिवार है जहाँ जगदम्बा रही है। तो लकी परिवार है। (ऊषा बहन से) अच्छा पार्ट बजाया। लेकिन जैसे इनकी नेचर है उसी प्रमाण बहुत-बहुत-बहुत अच्छा पार्ट बजाया। इसीलिए सबका प्यार है और सब खुश हैं कि बहुत अच्छा पार्ट बजाया। अच्छा किया। डायरेक्ट पालना लेने वाली है। यह आदि फैमिली है। जिसने साकार बाप की भी पालना नजदीक से ली और सेवा में भी पार्ट बजाया। (डा.अनीला बहन से) इसको भी वरदान है।
शान्ति बहन (सिरीफोर्ट) से:- देखा जाता है कि अभी शरीर के हिसाब को मैजारिटी पास करने में पास हो जाते हैं। आपने भी पास का सर्टीफिकेट ले लिया। बहुत अच्छा पार्ट बजाया है। आजकल तो डाक्टर्स की सेवा बहुत हो जाती है। वह फर्क देखते हैं ना, प्रैक्टिकल लाइफ, उसका असर होता है। (सेवा करने वाली बहनों से) यह बहुत लाडली है। यह छोटी बहुत लाडली है, दिल से सेवा की है। दिल की सेवा का बहुत महत्व है। सेवा सब करते हैं लेकिन जो दिल से करता है उसका महत्व है। यह पुरूषार्थ में आगे जा रही है बहुत अच्छा। (डा.अनीला बहन से) बाप से दिल का स्नेह, परिवार से दिल का स्नेह तो परिवार की भी दुआयें, बाप की भी दुआयें हैं।
विदेश की मुख्य बड़ी बहनों से:- अच्छा है, मधुबन रहने का भी चांस और सेवा का भी विशेष चांस है। फिर भी देखो आप सेवा का जो दूसरा ग्रुप निमित्त बना उसके मुख्य एक्टर्स हो। आदि के समय का तो यह ग्रुप बैठा है लेकिन सेवा के आदि रत्न, सेवा के साथी बनके साथी बनाने वाले वह आप लोगों का ग्रुप है। तो बापदादा जितना इन्हों की महिमा करता है, आदि स्थापना के रत्नों की, इतना आदि सेवा के साथी उन्हों की भी महिमा करता है। चाहे फॉरेन है लेकिन निमित्त आप लोग हो। मैजारिटी सब सेवा की स्थापना के रत्न हो। तो आप लोगों को भी चांस तो अच्छा मिला है। मेहनत जरूर करनी पड़ती है क्योंकि उन्हों का रहना सहना, कल्चर न्यारा होता है उसको एक कल्चर में जोड़ना इसकी आप लोगों को मुबारक हो। अच्छी मेहनत की है। मेहनत तो करनी पड़ी है लेकिन सफलता हुई है। मेहनत व्यर्थ नहीं गई है, अभी रेसपाण्ड तो अच्छा मिलता है। विदेशी भी सेवा में साथी तो अच्छे बनते हैं। हर सेन्टर पर आपको साथ देने वाले तो बने हैं। बने हैं ना! बापदादा खुश है। तो एक-एक को पदम पदमगुणा मुबारक हो, मुबारक हो।
चन्द्रहास बाबू जी से:- ठीक है। मन मजबूत है ना। मन मजबूत है तो तन ठीक हो जायेगा। मन सदा खुशी में नाचता रहे। चाहे स्ट्रेचर पर जाये लेकिन माइण्ड डांस होती रहे। फिकर तो नहीं है ना। बेफिकर बादशाह।