ओम् शान्ति 30-11-18 मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति लाडले, सदा सर्व अविनाशी खजानों से सम्पन्न, रिचेस्ट इन दी कल्प, होलीएस्ट और हाइएस्ट सर्व निमित्त टीचर्स बहिनें तथा ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - प्यारे बापदादा की सूक्ष्म शक्तियों और वरदानों का डायरेक्ट अनुभव करते हुए आप सब अव्यक्त अवतरण दिवस पर उसी लगन और उमंग-उत्साह के साथ अलौकिक मंगल मिलन की अनुभूतियां करते रहते हो। यह सेवा का टर्न कर्नाटक का है। करीब 17-18 हजार भाई बहिनें शान्तिवन में पहुंचे हुए हैं। सभी को बहुत अच्छी ज्ञान योग की पालना के साथ, मीठी दादी जानकी जी भी खूब रिफ्रेश कर रही हैं। चारों ओर बहुत अच्छे उमंग-उत्साह का वातावरण है। आज अमृतवेले से ही सभी भाई बहिनें अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त अनुभूतियां कर रहे हैं। चारों ओर बहुत शान्त अव्यक्ति वातावरण है। शाम के समय विधिवत डायमण्ड हाल, कान्फ्रेन्स हाल, बगीचे आदि में वीडियों द्वारा मुरली सुनते, उसी प्रभु प्यार में समाये हुए हैं। यह भी कमाल है मीठे बापदादा की जो हर बच्चे को भावना अनुसार पूरी भासना दे रहे हैं। कोई को भी यह महसूस होने नहीं देते कि मेरा बाबा से सम्मुख मिलन नहीं हुआ। सभी नये पुराने बाबा के बच्चे रिवाइज मुरली द्वारा भी अपने आपको खूब भरपूर कर रहे हैं। अभी हमारी मीठी दादी गुल्जार जी के आगमन की प्रतिक्षा है। बाबा कब अपने रथ को मधुबन में पहुंचाते हैं, इसका तो सब बेसब्री से इन्तजार कर ही रहे हैं। अभी अव्यक्त बापदादा के पार्ट की गोल्डन जुबली समीप है। 2019 में हम सब बाबा के अव्यक्त मिलन का 50वां साल मनायेंगे। इसी उपलक्ष में चारों ओर योग तपस्या के विशेष कार्यक्रम रखते हुए सभी ब्रह्मा बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करें। जनवरी मास के सभी डायरेक्शन्स मधुबन से आप सबके पास आ जायेंगे। जरूर आप सब भी नया वर्ष, नये उमंग-उत्साह के साथ मनाने की प्लैनिंग कर रहे होंगे। अच्छा - आज जो हम सभी ने अव्यक्त महावाक्य सुने है, वह आपके पास भेज रहे हैं, सबको रिफ्रेश करना जी। सर्व को याद... ओम् शान्ति।


30-11-18 ओम् शान्ति वीडियो द्वारा रिवाइज 02-02-07 मधुबन


''परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी - होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट''


आज विश्व परिवर्तक बापदादा अपने साथी बच्चों से मिलने आये हैं। हर एक बच्चे के मस्तक में तीन परमात्म विशेष प्राप्तियां देख रहे हैं। एक है होलीएस्ट, 2- हाइएस्ट और 3- रिचेस्ट। इस ज्ञान का फाउण्डेशन ही है होली अर्थात् पवित्र बनना। तो हर एक बच्चा होलीएस्ट है, पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन-वाणी-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता। आप देखो, आप परमात्म ब्राह्मण आत्मायें आदि-मध्य-अन्त तीनों ही काल में होलीएस्ट रहती हो। पहले-पहले आत्मा जब परमधाम में रहते हो तो वहाँ भी होलीएस्ट हो फिर जब आदि में आते हो तो आदिकाल में भी देवता रूप में होलीएस्ट आत्मा रहे। होलीएस्ट अर्थात् पवित्र आत्मा की विशेषता है - प्रवृत्ति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना। और भी पवित्र बनते हैं लेकिन आपकी पवित्रता की विशेषता है - स्वप्नमात्र भी अपवित्रता मन-बुद्धि में टच नहीं करे। सतयुग में आत्मा भी पवित्र बनती और शरीर भी आपका पवित्र बनता। आत्मा और शरीर दोनों की पवित्रता जो देव आत्मा रूप में रहती है, वह श्रेष्ठ पवित्रता है। जैसे होलीएस्ट बनते हो, इतना ही हाइएस्ट भी बनते हो। सबसे ऊंचे ते ऊंचे ब्राह्मण आत्मायें और ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे बने हो। आदि में परमधाम में भी हाइएस्ट अर्थात् बाप के साथ-साथ रहते हो। मध्य में भी पूज्य आत्मायें बनते हो। कितने सुन्दर मन्दिर बनते हैं और कितनी विधिपूर्वक पूजा होती है। जितनी विधिपूर्वक आप देवताओं के मन्दिर में पूजा होती है उतने औरों के मन्दिर बनते हैं लेकिन विधिपूर्वक पूजा आपके देवता रूप की होती है। तो होलीएस्ट भी हो और हाइएस्ट भी हो, साथ में रिचेस्ट भी हो। दुनिया में कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप श्रेष्ठ आत्मायें रिचेस्ट इन कल्प हैं। सारा कल्प रिचेस्ट हो। अपने खज़ाने स्मृति में आते हैं, कितने खज़ानों के मालिक हो! अविनाशी खज़ाने जो इस एक जन्म में प्राप्त करते हो वह अनेक जन्म चलते हैं। और कोई का भी खज़ाना अनेक जन्म नहीं चलते। लेकिन आपके खज़ाने आध्यात्मिक हैं। शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, गुणों का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्प का खज़ाना और वर्तमान समय का खज़ाना, यह सर्व खज़ाने जन्म-जन्म चलते हैं। एक जन्म के प्राप्त हुए खज़ाने साथ चलते हैं क्योंकि सर्व खज़ानों के दाता परमात्मा बाप द्वारा प्राप्त होता है। तो यह नशा है कि हमारे खज़ाने अविनाशी हैं?

इस आध्यात्मिक खज़ानों को प्राप्त करने के लिए सहजयोगी बने हो। याद की शक्ति से खज़ाने जमा करते हो। इस समय भी इन सर्व खज़ानों से सम्पन्न बेफिक्र बादशाह हो, कोई फिक्र है? है फिक्र? क्योंकि यह खज़ाने जो हैं इसको न चोर लूट सकता, न राजा खा सकता, न पानी डुबो सकता, इसलिए बेफिक्र बादशाह हो। तो यह खज़ाने सदा स्मृति में रहते हैं ना! और याद भी सहज क्यों है? क्योंकि सबसे ज्यादा याद का आधार होता है एक सम्बन्ध और दूसरा प्राप्ति। जितना प्यारा सम्बन्ध होता है उतनी याद स्वत: आती है क्योंकि सम्बन्ध में स्नेह होता है और जहाँ स्नेह होता है तो स्नेही की याद करना मुश्किल नहीं होता, लेकिन भूलना मुश्किल होता है। तो बाप ने सर्व सम्बन्ध का आधार बना दिया है। सभी अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? वा मुश्किल योगी हैं? सहज है? कि कभी सहज है, कभी मुश्किल है? जब बाप को सम्बन्ध और स्नेह से याद करते हो तो याद मुश्किल नहीं होती और प्राप्तियों को याद करो। सर्व प्राप्तियों के दाता ने सर्व प्राप्तियां करा दी। तो अपने को सर्व खज़ानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? खज़ानों को जमा करने की सहज विधि भी बापदादा ने सुनाई - जो भी अविनाशी खज़ाने हैं उन सभी खज़ानों की प्राप्ति करने की विधि है- बिन्दी। जैसे विनाशी खज़ानों में भी बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना। तो अविनाशी खज़ानों की जमाकरने की विधि है बिन्दी लगाना। तीन बिन्दियां हैं - एक मैं आत्मा बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो भी बीत जाता वह फुलस्टाप अर्थात् बिन्दी। तो बिन्दी लगाने आती है? सबसे ज्यादा सहज मात्रा कौन सी है? बिन्दी लगाना ना! तो आत्मा बिन्दी हूँ, बाप भी बिन्दी है, इस स्मृति से स्वत: ही खज़ाने जमा हो जाते हैं। तो बिन्दी को सेकण्ड में याद करने से कितनी खुशी होती है! यह सर्व खज़ाने आपके ब्राह्मण जीवन का अधिकार हैं क्योंकि बच्चे बनना अर्थात् अधिकारी बनना। और विशेष तीन सम्बन्ध का अधिकार प्राप्त होता है - परमात्मा को बाप भी बनाया है, शिक्षक भी बनाया है और सतगुरू भी बनाया है। इन तीनों सम्बन्ध से पालना, पढ़ाई से सोर्स आफ इनकम और सतगुरू द्वारा वरदान मिलता है। कितना सहज वरदान मिलता है? क्योंकि बच्चे का जन्म सिद्ध अधिकार है बाप के वरदान प्राप्त करने का।

बापदादा हर बच्चे का जमा का खाता चेक करते हैं। आप सभी भी अपने हर समय का जमा का खाता चेक करो। जमा हुआ वा नहीं हुआ, उसकी विधि है जो भी कर्म किया, उस कर्म में स्वयं भी सन्तुष्ट और जिसके साथ कर्म किया वह भी सन्तुष्ट। अगर दोनों में सन्तुष्टता है तो समझो कर्म का खाता जमा हुआ। अगर स्वयं में वा जिससे सम्बन्ध है, उसमें सन्तुष्टता नहीं आई तो जमा नहीं होता।

बापदादा सभी बच्चों को समय की सूचना भी देते रहते हैं। यह वर्तमान संगम का समय सारे कल्प में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समय है क्योंकि यह संगम ही श्रेष्ठ कर्मो के बीज बोने का समय है। प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने का समय है। इस संगम समय में एक एक सेकण्ड श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है। सभी एक सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? बापदादा ने सहज विधि सुनाई है कि निरन्तर याद के लिए एक विधि बनाओ - सारे दिन में दो शब्द सभी बोलते हो और अनेक बार बोलते हो वह दो शब्द हैं ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरा’’। तो जब मैं शब्द बोलते हो तो बाप ने परिचय दे दिया है कि मैं आत्मा हूँ। तो जब भी मैं शब्द बोलते हो तो यह याद करो कि मैं आत्मा हूँ। अकेला मैं नहीं सोचो, मैं आत्मा हूँ, यह साथ में सोचो क्योंकि आप तो जानते हो ना कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, परमात्म पालना के अन्दर रहने वाली आत्मा हूँ और जब मेरा शब्द बोलते हो तो मेरा कौन? मेरा बाबा अर्थात् बाप परमात्मा। तो जब भी मैं और मेरा शब्द कहते हो उस समय यह एडीशन करो, मैं आत्मा और मेरा बाबा। जितना मेरापन लायेंगे बाप में, उतना याद सहज होती जायेगी क्योंकि मेरा कभी भूलता नहीं है। सारे दिन में देखो मेरा ही याद आता है। तो इस विधि से सहज निरन्तर योगी बन सकते हो। बापदादा ने हर बच्चे को स्वमान की सीट पर बिठाया है। स्वमान की लिस्ट अगर स्मृति में लाओ तो कितनी लम्बी है! क्योंकि स्वमान में स्थित हैं तो देह अभिमान नहीं आ सकता। या देह अभिमान होगा या स्वमान होगा। स्व मान का अर्थ ही है - स्व अर्थात् आत्मा का श्रेष्ठ स्मृति का स्थान। तो सभी अपने स्वमान में स्थित हैं? जितना स्वमान में स्थित होंगे उतना दूसरे को सम्मान देना स्वत: ही हो जाता है। तो स्वमान में स्थित रहना कितना सहज है!

तो सभी खुशनुमा रहते हैं? क्योंकि खुशनुमा रहने वाला दूसरे को भी खुशनुमा बना देता है। बापदादा सदा कहते हैं कि सारे दिन में खुशी कभी नहीं गंवाओ। क्यों? खुशी ऐसी चीज़ है जो एक ही खुशी में हेल्थ भी है, वेल्थ भी है और हैपी भी है। खुशी नहीं तो जीवन नीरस रहती है। खुशी को ही कहा जाता है - ‘‘खुशी जैसा कोई खज़ाना नहीं।’’ कितने भी खज़ाने हो लेकिन खुशी नहीं तो खज़ाने से भी प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। खुशी के लिए कहा जाता है - खुशी जैसी कोई खुराक नहीं। तो वेल्थ भी है खुशी और खुशी हेल्थ भी है और नाम ही खुशी है तो हैपी तो है ही है। तो खुशी में तीनों ही चीजे हैं। और बाप ने अविनाशी खुशी का खज़ाना दिया है, बाप का खज़ाना गंवाना नहीं। तो सदा खुश रहते?

बापदादा ने होमवर्क दिया तो खुश रहना है और खुशी बांटनी है क्योंकि खुशी ऐसी चीज़ है जो जितनी बांटेंगे उतनी बढ़ेगी। अनुभव करके देखा है! किया है ना अनुभव? अगर खुशी बांटते हैं तो बांटने से पहले अपने पास बढ़ती है। खुश करने वाले से पहले स्वयं खुश होते हैं। तो सभी ने होमवर्क किया है? किया है? जिसने किया है वह हाथ उठाओ। जिसने किया है - खुश रहना है, कारण नहीं निवारण करना है, समाधान स्वरूप बनना है। हाथ उठाओ। अभी यह तो नहीं कहेंगे ना - यह हो गया! बापदादा के पास कई बच्चों ने अपनी रिजल्ट भी लिखी है कि हम कितने परसेन्ट ओ.के. रहे हैं। और लक्ष्य रखेंगे तो लक्ष्य से लक्षण स्वत: ही आते हैं। अच्छा।

सेवा का टर्न कर्नाटक का है:- कर्नाटक वाले उठो। अच्छा है कर्नाटक वालों ने सेवा का गोल्डन चांस ले लिया है क्योंकि अब संगमयुग में प्रत्यक्ष फल मिलता है। जमा भी होता है लेकिन प्रत्यक्षफल मिलता है जो उसी समय खुशी प्राप्त होती है। तो जितना दिन भी सेवा की है, तो प्रत्यक्षफल अपने में खुशी अनुभव किया? खुशी मिली? हाथ उठाओ। माया आई? नहीं आई? जिसको माया नहीं आई वह हाथ उठाओ। पाण्डवों को माया आई? थोड़ी-थोड़ी आई है? अच्छा है, यहाँ का वायुमण्डल बहुत सहयोग देता है। जैसे साइन्स वाले साइन्स की शक्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन कर देते हैं ना। गर्मी में सर्दी, हवा का वायुमण्डल बना देते हैं ना! सर्दी में गर्मी का वायुमण्डल बना देते हैं, तो साइलेन्स की शक्ति आध्यात्मिक स्मृति का वायुमण्डल बना देता है क्योंकि यहाँ सेवा करते वृत्ति में क्या रहता है? यज्ञ सेवा है, यज्ञ का पुण्य बहुत बड़ा होता है। तो इस अविनाशी यज्ञ में सेवा करने से वृत्ति श्रेष्ठ बन जाती है। तो वायुमण्डल भी श्रेष्ठ बन जाता है। अभी कर्नाटक वाले क्या विशेषता दिखायेंगे? कोई नया कार्य करके दिखाओ। देखो कर्नाटक में संख्या बहुत है और एरिया भी बहुत है। सेवा की एरिया बहुत बड़ी है। कर्नाटक वाले बड़े ते बड़ी सेवा यही कर सकते हैं जो कर्नाटक के कोई भी छोटे बड़े कोई स्थान नहीं रहें जो आपको उल्हना देवें कि हमारा बाप आया और हमें आपने सूचना नहीं दी, सन्देश नहीं दिया। यह उल्हना नहीं रह जाये।

जो पहली बार आये हैं वह उठो:- तो आप सभी को ब्राह्मण जन्म की मुबारक हो। अच्छा मिठाई तो मिलेगी लेकिन बापदादा दिलखुश मिठाई खिला रहे हैं। पहले बारी मधुबन आने की यह दिलखुश मिठाई सदा याद रखना। वह मिठाई तो मुख में डाला और खत्म हो जायेगी लेकिन यह दिलखुश मिठाई सदा साथ रहेगी।
बापदादा की रूहानी ड्रिल याद है ना! अभी बापदादा हर बच्चे से चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, चाहे छोटे हैं चाहे बड़े हैं, छोटे और ही समान बाप जल्दी बन सकते हैं। तो अभी सेकण्ड में जहाँ मन को लगाने चाहो वहाँ मन एकाग्र हो जाए। यह एकाग्रता की ड्रिल सदा ही करते चलो। अभी एक सेकण्ड में मन के मालिक बन मैं और मेरा बाबा संसार है, दूसरा न कोई, इस एकाग्र स्मृति में स्थित हो जाओ। अच्छा।

चारों ओर के सर्व तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को सदा उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ती ला के अनुभवी मूर्त बच्चों को, सदा अपने स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बच्चों को, सदा रहमदिल बन विश्व की आत्माओं को मन्सा शक्ति द्वारा कुछ न कुछ अंचली सुख-शान्ति की देने वाले दयालु, कृपालु बच्चों को, सदा बाप के स्नेह में समाये हुए दिलतख्तनशीन बच्चों को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जानकी:- हमारा बाबा वन्डरफुल, गुल्जार दादी का पार्ट भी वन्डरफुल है। गुल्जार दादी ने बाबा के जो सन्देश मेरे प्रति दिये हैं, वह आज देखें। साकार बाबा ने हम बच्चों को अच्छी पालना दी, बाद में अव्यक्त रूप से गुल्जार दादी द्वारा बापदादा ने भी बहुत अच्छी पालना दी है। सभी को यादप्यार मिला, खास कर्नाटक वालों को भी बापदादा ने याद किया। जो बाबा मुख से बोलता था वह मैं पढ़ रही थी। यह साधन वन्डरफुल है। ड्रामानुसार साइन्स की भी कमाल है। हम साइलेन्स में रहने वाले बाबा के बच्चे क्या करते हैं। बाबा जो हमको हुक्म करता है वह आटोमेटिकली लाइफ में आ जाता है। ओ.के.