ओम् शान्ति 15-12-18 मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्तमूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, सम्बन्ध, संस्कार, सम्बन्ध सबमें हल्का रह अपनी कर्मातीत स्थिति की समीपता का अनुभव करने वाले, इस अलौकिक अव्यक्त पालना का रिटर्न देने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - प्यारे बापदादा के अवतरण का यह पांचवा ग्रुप गुजरात ज़ोन का है। बापदादा कहते गुजरात तो मधुबन का दूसरा कमरा है। यज्ञ की हर सेवा में सभी सदा हाँ जी करते, तन-मन-धन से सदा सहयोगी रहते हैं। समय प्रमाण मीठे बापदादा हमारी मीठी दादी प्रकाशमणि जी का उदाहरण देते हुए अब सभी को डबल लाइट रहने की विशेष प्रेरणा दे रहे हैं।

अभी तो जनवरी मास समीप आ रहा है। यह 2019 अव्यक्त पालना की गोल्डन जुबिली का वर्ष है। वैसे तो जनवरी मास में सभी बाबा के स्नेही बच्चे अन्तर्मुखता की गुफा में बैठ विशेष तपस्या करते ही हैं। चारों ओर बहुत अच्छी लहर होती है। परन्तु इस वर्ष विशेष सबको 50 दिन के लिए योग तपस्या का कार्यक्रम अपने-अपने स्थानों पर रखना है।

अभी तो हम सबके अन्दर यही शुभ संकल्प है कि अब जल्दी से जल्दी विश्व में बापदादा की प्रत्यक्षता हो क्योंकि परमात्म प्रत्यक्षता ही विश्व परिवर्तन का आधार है। इसके लिए वाचा सेवाओंके साथ अभी आवश्यकता है पावरफुल मन्सा सेवा की। जितना हमारी मन्सा शुद्ध शक्तिशाली, शुभ भावनाओंसे सम्पन्न होगी उतना ही प्रकृति सहित सर्व आत्माओंतक सकाश पहुंचेंगी। तो जरूर आप सभी नये वर्ष में नवीनता सम्पन्न योग तपस्या के कार्यक्रम बनाना जी। कम से कम हर सेवाकेन्द्र पर 50 दिन अखण्ड योग तपस्या के प्रोग्राम चलें ताकि छोटी मोटी बातें जो पुरुषार्थ में विघ्न रूप बनती हैं वह सब समाप्त हो जाएं। इसके लिए मन की शुद्धता, बुद्धि की एकाग्रता, वाणी की मधुरता का विशेष हर एक चार्ट भी रखे और प्रतिदिन कम से कम 4 घण्टा पावरफुल योग करते विश्व को सकाश देने की सेवा करे। तो बापदादा की रही हुई सब आशायें सहज पूरी हो जायेंगी।

प्यारे बापदादा से तो सभी का जिगरी प्यार है इसलिए अव्यक्त अनुभूतियां करने के लिए सभी अपने-अपने टर्न अनुसार मधुबन पहुंच जाते हैं। बापदादा भी वतन से बच्चों को हर प्रकार की भासना वा पालना का अनुभव कराते हैं। आने वाले सभी भाई बहिनें बहुत अच्छी अनुभूतियां करते हैं।

हम सबने जो इस टर्न में अव्यक्त महावाक्य वीडियो द्वारा सुने हैं वह आपके पास भेज रहे हैं। सभी को रिफ्रेश करना जी। ओम् शान्ति।

ओम् शान्ति 15-12-18 ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज-वीडियो 5-2-09 मधुबन

''सेवा करते डबल लाइट स्थिति द्वारा फरिश्तेपन की अवस्था में रहो, अशरीरी बनने का अभ्यास करो''


आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं - जैसे बाप के तीन रूप जानते हो, ऐसे बच्चों के भी तीन रूप देख रहे हैं। जो इस संगमयुग का लक्ष्य और लक्षण है, पहला स्वरूप ब्रह्मण, दूसरा फरिश्ता, तीसरा देवता। ब्रह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। तो वर्तमान समय अभी विशेष क्या लक्ष्य सामने रहता है? क्योंकि फरिश्ता बनने के बिना देवता नहीं बन सकते। तो वर्तमान समय और स्वयं के पुरुषार्थ प्रमाण अभी लक्ष्य यही है फरिश्ता। संगमयुग का सम्पन्न स्वरूप फरिश्ता सो देवता बनना है। फरिश्ते की परिभाषा जानते भी हो, फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया के सम्बन्ध, संस्कार, संकल्प से हल्का हो। पुराने संस्कार सबमें हल्के हों। सिर्फ अपने संस्कार स्वभाव, संसार में हल्कापन नहीं, लेकिन फरिश्ता अर्थात् सर्व के सम्बन्ध में आते सर्व के स्वभाव संस्कार में हल्कापन। इस हल्केपन की निशानी क्या है? वह फरिश्ता आत्मा सर्व के प्यारे होंगे। कोई कोई के प्यारे नहीं, सर्व के प्यारे। जैसे ब्रह्मा बाप को हर एक समझता है मेरा है। मेरा बाबा कहते हैं। ऐसे फरिश्ता अर्थात् सर्व के प्रिय। कई बच्चे सोचते हैं कि ब्रह्मा बाबा तो ब्रह्मा ही था, लेकिन आप सबने आप समान ब्रह्मण आत्माओं में देखा कि आप सबकी प्यारी दादी, जिसको सभी प्यार से अनुभव करते रहे कि मेरी दादी है। सर्व तरफ स्वभाव, संस्कार और इस पुराने संसार में रहते न्यारी और प्यारी, सब हक से कहते हमारी दादी। तो कारण क्या? स्वयं स्वभाव, संस्कार में हल्के। सबको मेरापन अनुभव कराया। तो एक्जैम्पुल रहा। जगत अम्बा का भी देखा लेकिन कई सोचते हैं वह तो जगत अम्बा थी ना। लेकिन दादी आप ब्रह्मण परिवार जैसी साथी थी। उनसे अगर पुरुषार्थ सुनते वा पूछते तो उनके मुख में सदैव एक ही शब्द रहा - ''अब कर्मातीत बनना है।'' कर्मातीत बनने की लगन में औरों को भी यही शब्द बार-बार याद दिलाती रही। तो हर ब्रह्मण का अभी लक्ष्य और लक्षण विशेष यही रहना चाहिए, है भी लेकिन नम्बरवार है। यही लगन हो अब फरिश्ता बनना ही है। फरिश्ता अर्थात् इस देह, साकार देह से न्यारा, सदा लाइट के देहधारी। फरिश्ता अर्थात् इस कर्मेन्द्रियों के राजा।

बापदादा ने पहले भी सुनाया कि सारे सृष्टि चक्र के अन्दर एक ही बापदादा है जो फलक से कहते हैं कि मेरा एक एक बच्चा राजा बच्चा है, स्वराज्य अधिकारी है। तो फरिश्ता अर्थात् स्वराज्य अधिकारी। ऐसा स्वराज्य अधिकारी आत्मा, लाइट के स्वरूपधारी। कोई भी ऐसे लाइट के डबल हल्केपन की स्थिति में स्थित होंके अगर कोई को भी मिलते हैं तो उनके मस्तक में आत्मा ज्योति का भान चलते फिरते भी दिखाई देगा। अभी यह तीव्र पुरुषार्थ का लक्ष्य और लक्षण सदा इमर्ज रखो। जैसे ब्रह्मा बाप में देखा अगर कोई भी मिलता, दृष्टि लेता तो बात करते-करते क्या दिखाई देता? और लास्ट में अनुभव किया कि ब्रह्मा बाप बात करते-करते भी मीठी अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाता। चाहे कितना भी सर्विस समाचार हो, लेकिन दूसरों को भी सेकण्ड में अशरीरीपन का अनुभव कराते रहे और कोई भी मुरली में चेक करो, तो बार-बार मैं अशरीरी आत्मा हूँ, आत्मा का पाठ एक ही मुरली में कितने बार याद दिलाते रहे। तो अभी समय अनुसार छोटी-छोटी विस्तार की बातें, स्वभाव-संस्कार की बातें अशरीरी अवस्था से दूर कर देती हैं। अभी इसमें परिवर्तन चाहिए।

बापदादा ने देखा सेवा में रिजल्ट अच्छी हो रही है, सेवा के लिए मैजारिटी को उमंग-उत्साह है, प्लैन भी बनाते रहते हैं, सन्देश देना यह भी आवश्यक है और बापदादा ने आज भी भिन्न-भिन्न वर्ग की, भिन्न-भिन्न स्थान के सेवा की अच्छी रिजल्ट देखी लेकिन सेवा के साथ अशरीरीपन का वायुमण्डल मेहनत कम और प्रभाव ज्यादा डालता है। सुना हुआ अच्छा तो लगता है, लेकिन वायुमण्डल से अशरीरीपन की दृष्टि से अनुभव करते हैं और अनुभव भूलता नहीं है। तो फरिश्तेपन की धुन अभी सेवा में विशेष एडीशन करो। कोई न कोई शान्ति का, खुशी का, सुख का, आत्मिक प्रेम का अनुभव कराओ। चलन में प्यार प्रेम और जो खातिरी करते हो, सम्बन्ध से, परिवार से वह तो अनुभव करके जाते हैं लेकिन अतीन्द्रिय सुख की फीलिंग, शान्ति का रूहानी नशा अभी वायुमण्डल और वायब्रेशन द्वारा विशेष अटेन्शन में रखो। विशेष अनुभव कराओ, कोई न कोई अनुभव कराओ। जैसे सिस्टम में प्रभावित होके जाते हैं ऐसी सिस्टम परिवार के प्यार की और कहाँ भी नहीं मिलती, ऐसे अभी कोई न कोई शक्ति का, कोई न कोई प्राप्ति का अनुभव करके जायें।

अभी तक ब्रह्माकुमारियां काम कर रही हैं, ब्रह्माकुमारियों का ज्ञान अच्छा है। देने वाला कौन! चलाने वाला कौन! सोर्स कौन! आप सबसे बाबा शब्द सुन करके कहते भी हैं बाबा है इन्हों का, लेकिन मेरा वही बाबा है, बाप की प्रत्यक्षता अभी गुप्त रूप में है। बाबा बाबा कहते हैं, लेकिन मेरा बाबा, मैं बाबा का, बाबा मेरा, यह कोटों में कोई के मुख से निकलता है।

तो संगमयुग का लक्ष्य क्या है? हम सब आत्माओंका बाप आ गया, वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना! वह प्रभाव फरिश्ता अवस्था से वायुमण्डल फैलेगा। इन्हों की दृष्टि से लाइट मिलती है, इन्हों की दृष्टि में रूहानियत की लाइट नज़र आती है, तो अभी तीव्र पुरुषार्थ का यही लक्ष्य रखो मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ, चलते फिरते फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति को बढ़ाओ। अशरीरीपन के अनुभव को बढ़ाओ। सेकण्ड में कोई भी संकल्पों को समाप्त करने में, संस्कार स्वभाव में डबल लाइट। कई बच्चे कहते हैं हम तो हल्के रहते हैं लेकिन हमको दूसरे जानते नहीं हैं। लेकिन ऐसे डबल लाइट फरिश्ता, तो डबल लाइट की लाइट क्या छिप सकती है? छोटी सी स्थूल लाइट टार्च हो या माचिस की तीली हो लाइट कहाँ भी जलेगी, छिपेगी नहीं और यह तो रूहानी लाइट है, तो अपने वायुमण्डल से उन्हों को अनुभव कराओ कि यह कौन हैं! चाहे जगदम्बा चाहे दादी ने कहा नहीं कि मुझे जानते नहीं हैं। अपने वायुमण्डल से सर्व की प्यारी रही। इसीलिए दादी का मिसाल देते हैं क्योंकि ब्रह्मा बाप के लिए भी सोचते हैं ब्रह्मा बाबा में तो शिवबाबा था, शिव बाप के लिए भी सोचते कि वह तो है ही निराकार, न्यारा और निराकार, हम तो स्थूल शरीरधारी हैं। इतने बड़े संगठन में रहने वाले हैं, हर एक के संस्कार के बीच में रहने वाले हैं, संस्कार को मिलाना अर्थात् फरिश्ता बनना। संस्कार को देख कई बच्चे दिलशिकस्त भी हो जाते हैं, बाबा बहुत अच्छा, ब्रह्मा बाप बहुत अच्छा, ज्ञान बहुत अच्छा, प्राप्तियां बहुत अच्छी, लेकिन संस्कार स्वभाव मिलाना अर्थात् सर्व के प्यारे बनना। कोई कोई के प्यारे नहीं, क्योंकि कई बच्चे कहते हैं कि कोई कोई से प्यार विशेषता को देख करके भी हो जाता है। इनका भाषण बहुत अच्छा है, इसमें फलानी विशेषता बहुत अच्छी है, वाणी बहुत अच्छी है, फरिश्ता बनने में यह विघ्न आता है। प्यारा भले बनाओ, लेकिन मैं आत्मा न्यारी हूँ, न्यारी स्टेज से प्यारा बनाओ। विशेषता से प्यारा नहीं। यह इसका गुण मुझे बहुत अच्छा लगता है ना, वह धारण भले करो लेकिन इसके कारण सिर्फ प्यारा बनना वह रांग है। फरिश्ता सभी का प्यारा। हर एक कहे मेरा, अपनापन अनुभव हो। ऐसी फरिश्ते अवस्था में विघ्न दो चीज़ें डालती हैं। एक तो देह भान, वह तो नेचुरल सबको अनुभव है, 63 जन्म का फिर फिर देहभान प्रगट हो जाता है और दूसरा है देह अभिमान, देह भान और देह अभिमान, ज्ञान में जितना आगे जाते हैं, तो स्वयं के प्रति भी कभी कभी देह-अभिमान आ जाता है, वह अभिमान नीचे गिराता है, देह अभिमान क्या आता है? जो भी कोई विशेषता है ना, उस विशेषता के कारण अभिमान रहता है, मैं कोई कम हूँ, मेरा भाषण सबको पसन्द आता है। मेरी सेवा का प्रभाव पड़ता है, कोई भी कला, मेरी हैण्डलिंग बहुत अच्छी है, मेरा कोर्स कराना बहुत अच्छा है।कोई न कोई ज्ञान में आगे बढ़ने में, सेवा में आगे बढ़ने में यह अभिमान अपने प्रति भी आता और दूसरे के गुण या कला या विशेषता प्रति भी प्यार हो जाता। लेकिन याद कौन आयेगा? देहभान ही याद आयेगा ना, फलाना बुद्धि का बहुत अच्छा है, मेरी हैण्डलिंग बहुत अच्छी है, यह अभिमान सेवा वा पुरुषार्थ में आगे बढ़ने वालों को अभिमान के रूप में आता है। तो यह भी चेक करना है और अभिमान वाले को अभिमान है तो इसको चेक करने का साधन है, अभिमान वाले को जरा भी कोई ने अपमान किया, उसके विचार का, उसकी राय का, उसकी कला का, उसकी हैण्डलिंग का अपमान बहुत जल्दी महसूस होगा। और अपमान महसूस हुआ, उसकी और सूक्ष्म निशानी क्रोध का अंश पैदा होता है, रोब। वह फरिश्ता बनने नहीं देता। तो वर्तमान समय के हिसाब से बापदादा फिर से इशारा दे रहा है, अपना संगमयुग का लास्ट स्वरूप फरिश्ता अब जीवन में प्रत्यक्ष करो, साकार में लाओ। फरिश्ता बनने से अशरीरी बनना बहुत सहज हो जायेगा। अपनी चेकिंग करो, कि अपनी विशेषता या और किसकी विशेषता से सूक्ष्म रूप में भी कोई लगाव वा अभिमान तो नहीं है? कई बच्चों की अवस्था कोई छोटी सी बात भी होगी ना तो नीचे ऊपर हो जाती है। दिलखुश, चेहरा खुश.. उसके बजाए या चिंतन वाला चेहरा या चिंता वाला चेहरा हो जाता और चलते-चलते दिलशिकस्त भी हो जाते। दिलखुश के बजाए दिलशिकस्त। तो समझा, अब अपने संगमयुग की लास्ट स्टेज फरिश्तेपन के संस्कार इमर्ज करो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, फालो फादर करना है ना। बात करतेकरते लास्ट में कई बच्चों को अनुभव है, सुनाने आये समाचार लेकिन समाचार से परे, आवाज से परे स्थिति का अनुभव किया हुआ देखा है। कई बातों का समाचार सुनाने, बहुत प्लैन बनाकर आते यह बताऊंगा, यह बताऊंगा, यह पूछूंगा.. लेकिन सामने आते क्या बोलना था वही भूल जाता। तो यह है फरिश्ता अवस्था। तो आज क्या पाठ पक्का किया? मैं कौन? फरिश्ता। किसी बातों से, किसी की विशेषताओंसे वा अपनी विशेषता से, देह अभिमान से परे डबल लाइट फरिश्ता क्योंकि फरिश्ता बनने के बिना देवता का ऊंचा पद नहीं मिलेगा। सतयुग में तो आ जायेंगे, क्योंकि बच्चे बने हैं, वर्सा तो मिलेगा लेकिन श्रेष्ठ पद नहीं। जो वायदा है सदा साथ रहेंगे, साथ-साथ राज्य करेंगे, तख्त पर भले नहीं बैठे लेकिन राज्य अधिकारी बनें, वहाँ की राज्य सभा देखी है ना। जो भी राज्य सभा के अधिकारी हैं, वह तिलक और ताजधारी, राज्य का तिलक, राज्य की निशानी ताज। तो बहुत समय से स्वराज्य अधिकारी, बीच-बीच में नहीं। बहुत समय के स्वराज्य अधिकारी तख्त पर भले नहीं बैठे लेकिन रॉयल फैमिली के अधिकारी बन जाते हैं। अच्छा।

अच्छा, आज जो पहली बारी आये हैं वह उठो। अच्छा, पौनी सभा तो उठी हुई है। अच्छा जो भी पहली बारी आये हैं, उन सभी को बाप से साकार में मिलने की, पहले बारी की जन्म की मुबारक हो।

सेवा का टर्न गुजरात का है:- अच्छा गुजरात के जो नये पहली बारी आये हैं वह उठो। जो बाप से पहले बारी मिलने आये हैं गुजरात के, हाथ हिलाओ। अच्छा हुआ, आ तो गये। अपना मधुबन, बापदादा का मधुबन तो देखा। इसकी भी मुबारक हो। अच्छा, अभी सभी गुजरात के उठो। बापदादा शुरू से गुजरात को मधुबन का कमरा समझते हैं।

जैसे सेवा पर अटेन्शन देते हो तो सेवा वृद्धि को तो पाई है ना, बापदादा खुश है लेकिन अभी धारणा के ऊपर अटेन्शन और चाहिए क्योंकि अन्त में सेवा चाहेंगे तो भी नहीं कर सकेंगे, अभी कर ली सो कर ली। उस समय फरिश्ता लाइफ या अशरीरी बनने का सेकण्ड में बिन्दु लगाने का, यही काम में आना है। और अचानक होना है। इसका अभ्यास अगर कम होगा, सेवा में ही लगे रहे तो रिजल्ट क्या होगी! सेवा में लगना है लेकिन दोनों का बैलेन्स चाहिए।

बापदादा बार-बार इशारा दे रहा है कि अचानक होना है और ऐसी सरकमस्टांश में होना है इसीलिए बाप को उल्हना कोई नहीं दे कि आपने बताया नहीं। बार-बार भिन्न-भिन्न इशारे दे रहे हैं। सेवा का फल मिलता है, सेवा की मार्क्स हैं, क्योंकि चार सबजेक्ट हैं ना, तो सेवा के सबजेक्ट की मार्क्स मिलेंगी लेकिन और तीन सबजेक्ट! अगर एक सबजेक्ट में आपने मार्क्स ले ली और तीन में कम ली तो नम्बर क्या मिलेगा? चार ही में फर्स्ट नम्बर आना चाहिए। यह बापदादा की हर बच्चों के प्रति शुभ आश है। अच्छा।

चारों ओर के दिलखुश, दिल सच्ची, दिल साफ वालों को हर संकल्प, मुराद हासिंल। इसका अर्थ है जो भी संकल्प किया उसकी सफलता प्राप्त होना। तो ऐसे तीनों विशेषता, बड़ी दिल, साफ दिल और सच्ची दिल वाले, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख पदमगुणा से भी ज्यादा खुश होते हैं और ऑटोमेटिक गीत बजता है, वाह! वाह मेरे बच्चे वाह! सदा मुबारक के पात्र बच्चे वाह!
 

दादी जानकी जी:- ओम शान्ति। जैसा लक्ष्य रखा है उस लक्ष्य अनुसार लक्षण भी आ जाये, आ गये हैं ना, बोलो बाबा की कमाल है ना। आज के दिन ऐसे सहजयोगी, राजयोगी चलते फिरते, खाते खिलाते, फरिश्ते की लाइफ अब न बनेगी तो कब बनेगी। संगयमुग के दिन कितने प्यारे हैं, बाबा हमारे साथ है, साथ है साथी बनने के लिए, कमाल है बाबा आपकी। बाबा दवाई भी दे रहे हैं, दुआयें भाr दे रहे हैं। आज का दिन कितना वण्डरफुल है। मुरली तो अच्छी है सुनते जाओ, अपने दिल को लगाते जाओ। दिलाराम बाबा कितना वण्डरफुल है। मैं तो यही कहूँगी कि हम सो फरिश्ता अभी बन जाये, देवता पीछे बनेंगे। फरिश्ता अभी बनेंगे या बने हुए हैं? मैं पूछती हूँ साथी बहनों से भाईयों से। शान्ति और शक्ति, प्रेम और खुशी चारों बातों का वायुमण्डल है। शब्द क्या बोलूं बाबा। हम खुश है, राजी है, खुशराजी की महफिल है। खुशराजी हैं सभी, नाराज कोई नहीं है न होता है न होने देता है। बाबा आपने ऐसे हमारे को सम्भाला है 100 साल के भी ऊपर हो गई, अच्छा! बोलो मेरा बाबा, मीठा बाबा प्यारा बाबा, शुक्रिया बाबा। बाबा कहेगा मेरी बच्ची। मैं कौन, मेरा कौन बस और कुछ नहीं सोचो, मैं कौन - आत्मा में मन बुद्धि संस्कार है मन बिचारा शान्त हो गया है। बुद्धि कहती है चारों ओर शान्ति का वातावरण बनाने में दृष्टि वृत्ति स्मृति तीनों इकट्ठी सेवा करती हैं। ओम शान्ति।


नीलू बहन मुम्बई से फोन पर:- गुल्जार दादी जी ने सभी को बहुत-बहुत प्यार से ओम शान्ति बोला। दादी जी सभा को देख बहुत खुश हो रहीं है।